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निर्गुण सृजन
कविता

निर्गुण सृजन

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** पीत पल्लव की बारी है, नव कोपल प्रस्फुटन जारी है। सृष्टि का सृजन करके फिर, ये प्रकृति कब हारी है। जीवन की जीवन से देखो, जंग निराली है....... माटी का जो घट खाली है, मनोराग-संचयन भारी है। कर्मो का अर्जन करके फिर, माटी से सतत मिलन जारी है। जीवन की देखो जीवन से, जंग निराली है....... वसन तो इसका तन बना है, प्राण जब दीपक की बाती है। नौ द्वार के राजमहल में फिर, प्रियतम-प्रभु आत्मा से यारी है। जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है........ जब तक ये घट तेल भरा है, तब तक दीपशिखा जली है। कर्म प्रारब्ध पूरन हुए फिर, प्राण बिना ये घट खाली है। जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है........ काया को तो आत्मा ही प्यारी है, हरि-मिलन अंतिम तैयारी है। जब भान हो इस बात का फिर, वही अनुभूति तो चमत्कारी है। जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है......... परिचय :...
वक्त की बात क्या करें कोई
कविता

वक्त की बात क्या करें कोई

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, (छत्तीसगढ़) ******************** वक्त की बात क्या करें कोई फिर वही बात क्या करें कोई हम तो अपने सनम की बाहों में फिर नरम हाथ क्या करें कोई खुद को खोना तुझको पाना है । फिर तेरा साथ क्या करें कोई मुंतशिर इस तरह हुए अरमा फिर नए ख्वाब क्या करें कोई "अनु" अपनी वफा की राहों में। बेवफा रात क्या करें कोई। परिचय :- अनुराधा बक्शी "अनु" निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़ सम्प्रति : अभिभाषक घोषणा पत्र : मैं यह शपथ लेकर कहती हूं कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक कर...
टेसू के फूल
कविता

टेसू के फूल

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** होले-होले फैल रहीं, जंगल की आग, खिल रहे पलाश, सुबह हो या शाम, बौराये आम, चुप है चमेली, मौन अमलतास, होले-होले फैल, रहीं है आग। फूल आफताब, सुर्ख सा गुलाब, कैद है खुशबू, जहान बदहवास, रूप कचनार, अकेली रतनार, प्रियतम के दिन, प्रियतम के पास, खिले टेसू मौन, चुप चमेली अमलतास। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प...
सच्ची समाज-सेवा
लघुकथा

सच्ची समाज-सेवा

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** संध्या देवी सुबह से समारोह की तैयारी में जुटी थी। आज उनके अनाथालय में वार्षिक सामरोह का आयोजन हो रहा था। हर साल की तरह इस बार भी उनके काम को सराहा जा रहा था। वह अनाथालय को अपना दूसरा घर समझती थी। सारी जिम्मेदारी उन्हीं की थी। उनकी मर्जी के बिना यहाँ पत्ता भी नहीं हिल सकता था। उनके प्रयासों से ही अनाथालय तरक्की कर रहा था।यहां पर हर तरह का प्रबंध था। चाहे महिलाओं की शिक्षा का सवाल हो या उनके स्वालम्बन का ही। संध्या देवी एक-एक काम पर बारीकी से नजर रखती थी। उन्हें अब भी याद है, जब इस अनाथालय की शुरुआत हुई थी। उस समय यहां छोटी सी जगह थी, दो कच्चे कमरे थे।गाँव के बाहर ही उन्हें छोटी सी जगह दी गई थी। गाँव वाले उनके विरुद्ध थे। क्योंकि अनाथालय को लेकर बाजार काफी गर्म था कि अनाथालय में सेवा के नाम पर गलत काम होते हैं। कुछ लोगों का मानना था कि ...
हिन्दी तेरी शब्दों की मिठास
कविता

हिन्दी तेरी शब्दों की मिठास

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** पढ़ना, लिखना, सुनना तुझको ये विश्वास हमारी हैं, गीत, गजल में तुझे ही गाऊँ अब ये प्रयास हमारी हैं जो अल्फाज़ो में जान भरे वो एक आस तुम्हारी हैं, हे हिन्दी तेरे शब्दों की वो मिठास कितनी प्यारी हैं । वो मिठास कितनी प्यारी हैं ।। इस जग में बोल-चाल की भाषाए तो अनेक हैं, कोई सुना, कोई समझा, कोई कहा एक से एक हैं, न जाने क्या खाश बात है तेरी ही एक भाषा में तुहि अच्छी, तूही सुंदर, और तुही सबसे नेक है । तुझको ही हम समझते रहे, ये अभ्यास हमारी है, हे हिन्दी तेरे शब्दों की वो मिठास कितनी प्यारी हैं । वो मिठास कितनी प्यारी हैं ।। क्या कहु इस हिन्दी को ये हिन्दी बहुत महान है, मातृ भाषा, राष्ट्र भाषा, और भारत की शान है । ये प्यारी और हमारी हिन्दी हम सबकी तो जान हैं, इस हिन्दी के उपकार हम सबको मिली पहचान हैं। तुहि एक ऐसी भाषा है, जिससे हर आस हमारी है...
मिट्टी मेरे गांव की
कविता

मिट्टी मेरे गांव की

किशनू झा “तूफान” ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** युगों युगों से रही बोलती, भाषा जो सद्भाव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। खेतों में हरियाली वसुधा, का श्रृंगार कराती है। एक पड़ोसन दूजे के घर, मठ्ठा लेने जाती है। भाईचारा सिखलातीं हैं, गलियां मेरे गांव की । जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। यहाँ सूर्य भी पहले आकर, उजियाला फैलाता है। और पिता के नाम से हर इक, घर को जाना जाता है । आती यादें, चोर सिपाही, कागज वाली नांव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। गाँव में किशनू के आने को, ईश्वर भी ललचाते हैं। राम, श्याम, घनश्याम यहाँ, नामों में सबके आते हैं। चारों धामों से बड़कर है, मिट्टी माँ के पांव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। परिचय : किशनू झा "तूफान" पिता - श्री मंगल सिंह झा माता - श्रीमती ...
एक दिन अफसोस के मारे पछताओगे
कविता

एक दिन अफसोस के मारे पछताओगे

अक्षय भंडारी राजगढ़ जिला धार(म.प्र.) ******************** आँखों मे कब तक वो नज़ारे छुपाओगे आँखों ओर पलको को कब तक रुलाओगे, नज़ारो को देख आखों को आंसुओ में कब तक भिगाओगे, एक दिन दोनो नज़ारे देख थक कर रूठ जाएगी अगर आखों में यू ही नज़ारे लिए बैठोगे तो एक दिन अफसोस के मारे पछताओगे।। परिचय :- अक्षय भंडारी निवासी : राजगढ़ जिला धार शिक्षा : बीजेएमसी सम्प्रति : पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक कर...
हिचक
लघुकथा

हिचक

सेवा सदन प्रसाद नवी मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** "काका कोरोना का टीका आ गया है। वरिष्ठ नागरिकों को प्राथमिकता दी जाएगी। अब आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है।" गोमू ने काका को समझाते हुए कहा। "नहीं, मैं यह टीका नहीं लूंगा- पता नहीं क्या हो जाय?" काका के स्वर में भय एवं हिचकिचाहट का मिला जुला भाव था। "काका कुछ नहीं होगा- बीमारी से लङने की क्षमता बढेगी।" "अब कौन सा मैं मुंबई शहर में हूं। पैदल ही सही पर अपना गांव तो आ गया। यहां कुछ खतरा नहीं है। नहीं लेना है टीका-वीका।" "काका आपको मुंबई से गांव आने में कितनी मुसीबतें झेलनी पङी और आने में लगभग दस दिन लग गये। पर कोरोना को पुनः शहर से गांव आने में चंद मिनट ही लगेंगे।" भतीजे की बात सुनकर काका पुनः सहम गया और हिचक गायब हो गई..... परिचय : सेवा सदन प्रसाद निवासी - नवी मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार स...
क्या करोगे जानकर
कविता

क्या करोगे जानकर

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** क्या करोगे जानकर मेरे बारे में। समझ नहीं पाओगे। इसीलिए तुम अपनी सुनाओ। अपने जीत का कोई गीत गुनगुनाओ। मेरे हृदय के छाले देख घबराओ मत, वो तो अपनों ने दिए हैं, वो ही तो हार हैं मेरे गले का। नहीं , मत लगाओ मोल इस हार का तुम इतने बड़े सौदागर नहीं। नहीं समझ पाओगे इनकी कीमत क्योंकि अभी समय और रिश्तों की चक्की में, तुम पिसे नहीं , नफरतों के सील-बट्टों से तुम घिसे नहीं। ये रिश्ते ना, बड़े अजीब होते। दूर के ढोल जैसे सुहावने से प्रतीत होते हैं। पर जब उतरो इस सागर में, तब सच्चाई दिखती है। उसमें तैरती गंद को देख बड़ी तकलीफ़ होती है। मृगतृष्णा हैं सारे भ्रम के हैं बादल ये कारे। बस स्वार्थ तक ही सीमित, होते कई रिश्ते हमारे। इसीलिए मत पूछो मुझसे कुछ भी अंदर तक जला है दिल फूट पिघलेगा। सुनाओ अभी अपनी कहानी क्योंकि अभी कोरा है रिश्ता, यहीं से अभी समय...
बसंत
कविता

बसंत

डॉ. उपासना दीक्षित गाजियाबाद उ.प्र. ******************** समझो दुःखों का अंत पढो़ नव जीवन का मंत्र आ गया आनंद रुपी पवन छा गया श्रृंगार का सृजन जब बसंत छा जाये तुम आओ द्वार हमारे मैं दरवाजा खोलूँ हर बन्धन को छोडूँ तुम कुर्सी को खिसकाकर तकिये को तनिक टिकाकर बैठो हर चिंता छोड़े आलस को तन पर ओढ़े मैं भी सटकर यूँ बैठूँ गृहकाज की चिंता छोडूँ खिड़की को खोल सलीके लूँ मस्त पवन के झोंके हो चाय की प्याली रखी यादों की भाप उड़े यूं तुम याद करो तरुणाई हो मेरे साथ पुरवाई पीले फ़ूलों की आभा है प्यार तुम्हारा जागा तुम हौले से मुस्काओ बसंत के दूत बन जाओ न जागे तीव्र भावना हो केवल प्यारी भावना तुम समझो और मैं समझूँ कैसा है बसंत का आना तुम हम बनकर रह जाओ हम तुम बनकर रह जायें तुम मन का बसंत सम्भालो मैं तन का बसंत सम्भालूँ घर की दीवारें बोलें मन के दरवाजे खोंले अनुभव की सर्द हवाऐं बसंत के रंग नहायें तुम हम...
रहो अटल चट्टान
दोहा

रहो अटल चट्टान

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** संकट कितने हो बड़े, रहो अटल चट्टान। नेक कर्म करते रहो, पुनः मिलेगा मान।।(१) कभी न हिम्मत हारिए, हो मुश्किल का दौर। अंगद पाँव जमाइए, मिल जाएगा ठौर।। (२) सच्चाई की राह पे, चलता है जो कोय। दथविपदा चाहे हो बड़ी, जीत सत्य की होय।।(३) कलम दुधारू अस्त्र है , समझें असी समान। कवि लेखनी सशक्त है, पाते हैं सम्मान।। (४) कांधे पर हल जो धरे , निपट कृषक कहाय। कुछ तो कवि ऐसा लिखो, मुख मुस्कान समाय।।(५) खाली बर्तन देखिए, करता अति आवाज। तोल-मोल कर बोलिए यही सफलता राज।। (६) नफरत ऐसी आग है, सकल भस्म हो जाय। प्रेम डोर में बांधे, जन्म सफल हो जाय।। (७) चिंता से कछु ना बने, चिंतन राह दिखाय। जब भी भीर आन पड़े, शीतल मन सुलझाय।।(८) कभी हार ना मानिए, विषम काल हो पास। नियत अवधि पश्चात ही, होता सदा उजास।।(९) परिचय :- संजू ...
वंचनाओं के मसौदे गढ़ रहे हम
कविता

वंचनाओं के मसौदे गढ़ रहे हम

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** रक्त चूसक पोथियों की वादियों में। सोच करती संक्रमित उन व्याधियों में। भ्रांतियों का नव हिमालय चढ़ रहे हम।।१ रक्त में उन्माद का विष घोलता जो। पत्थरों के कान में सच बोलता जो।। पाठ्य पुस्तक द्वेष की ही पढ़ रहे हम।।२ लोकतंत्री बैल को डाली नकेलें। हाशिये पर पीटते गुरु और चेलें।। फिर पुरातन पंथ पर ही बढ़ रहे हम।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु ...
हस्ती
कविता

हस्ती

ममता रथ रायपुर ******************** ये सच है कि मेरी कोई हस्ती नही है पर जो भी है वह कागज़ की कश्ती नही है जिसे कोई बहा दे बरसाती नाले में या फेंक दे कोई कूड़े दान में मेरी हस्ती कोई मिट्टी की मूरत भी नहीं जिसे कुछ दिनो तक पूज कर फिर पानी मे पवाहित कर दिया जाए मेरी हस्ती किसी के हाथ की कठपुतली भी नहीं जिसे जो चाहे अपने ही इशारे पर नचाते रहे और अंत मे डोर को कस दे सच तो ये है कि मै जो हूँ मुझे वैसा ही स्वीकारा जाए और उसे प्यार और विश्वास से सीचा जाए हाँ तभी होगा मुझे गर्व अपनी प्यारी सी हस्ती पर परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाश...
प्रेम पथ
कविता

प्रेम पथ

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** प्रेम मार्ग अति कठिन, चलना होता मुश्किल, जब तक राह नहीं चले, लगती है झिलमिल, जब चल पड़ते राह पर, कठिन हो तिल तिल, खुशी और गम मिले, मंजिल जब जाये मिल। हीर-रांझा चले राह पर, अंतिम मौत ही पाई, सोहनी और महिवाल ने, प्रेम पथ ही निभाई, कभी-कभी इस मार्ग में, मिले बड़ी कठिनाई, कभी-कभी इस राह में, ,चलकर नाम कमाई। प्रेम पथ कांटों भरा होता, चलना संभल संभल, प्रेम पथ पर चलकर ही, प्रेमी दूर जाता निकल, प्रेम पथ एक दरिया हो, कितने हो चुके विफल, प्रेमी दर्द में चलते रहते, अंत में होते हैं सफल। प्रेम मार्ग पर जब चले थे, शीरी और फरियाद, प्रेम बात जब चलती है, उनको करते सब याद, प्रेमी युगल आगे बढ़ता नहीं करता वो फरियाद, प्रेम पथ पर सफल रहा, जग करता उनको याद। प्रेम पथ एक सागर है, कितनों ने नैया उतारा है, कुछ उतर गये कुछ डूबे, कितने जन पछताए हैं, कि...
जिंदगी का ताना बाना
कविता

जिंदगी का ताना बाना

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** एक-दूसरे पर छींटाकशी छोड़कर कल जो था वो भूलकर नहीं रहे मन मसोस कर संभले आज को जीकर मन के भाव सँवार कर तृप्त हो जाए हम प्यार परोसकर प्यार के एहसासो को चुनकर संग-संग जिंदगी का ताना बाना बुनकर जो बिखरा है उसे समेटकर और कुछ उधडा है तो उसे सीकर मिलन की आस को पूरा कर खुशियों के रंग बिखेरकर एक दूजे की सुनकर चले समझ कर सँभाल कर पहले से हो जाए ओर भी बेहतर दिल का हर जख़्म जाए भर क्योंकि समय का पहिया चले निरंतर कितना भी हो जाए अगर मगर बीच राह मे छोड़, न जाना ठहर रूह से रूह का आलिंगन कर जन्मो जन्मो तक चले संग, बनकर हमसफर परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं...
इश्क ही वो इश्क ही क्या
कविता

इश्क ही वो इश्क ही क्या

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** इश्क ही वो इश्क ही क्या, जिसमें जीवन की ना रुसवाईया हो, ना उसमें दर्द भरी तनहाईयाँ हो, और ना नयनों मे आँशु की बरसात हो, और ना उसमें तड़प हो ना गरज हो, तो वो फिर इश्क ही क्या है! इश्क ही वो इश्क ही क्या , जिसमें सातों जन्मों-जन्मों का स्वप्न ना हो, जिसमें खुशियों की अंबार ना हो, जिसमें तारों को तोड़कर लाने जैसी स्वप्न ना हो, जिसमें रात को दिन और दिन को रात ना लगे, तो वो फिर इश्क ही क्या है! इश्क ही वो इश्क ही क्या, जिसमें बिन दर्द का दर्द ना हो, जिसमें बिन नींद का चैन ना हो, जिसमें बिन रोग का रोगी ना हो, जिसमें जाति-धर्म मिट ना जाएँ, तो वो फिर इश्क ही क्या है ! इश्क मे अंधापन होना चाहिए, ना जाति ना धर्म सिर्फ प्रेम का भूत हो, जिसमें ना जिस्म की लालसा हो, ना कुछ लेने का लोभ-लालच, सिर्फ निस्वार्थ प्रेम की चाह हो, असली इश्क तो वही है जो ...
इश्क की सुबह कब होगी
कविता

इश्क की सुबह कब होगी

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** इश्क की सुबह कब होगी जाने, वो रात कब होगी गुजर रही है ये धीरे धीरे ढा रही है वो गज़ब होगी रास्तो की नही मंज़िले है जो मर्जी रब की होगी बात तुम चाहो वही हो वह रात यहां तब होगी तेरे वादो से लिपटा हूॅ मै वो बाते यहा सब होगी कुछ तुम्हारी कुछ हमारी यहा अपनी अदब होगी जमाना देखेगा मोहन को इश्क मे बात अजब होगी परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवा...
नारी की वेदना… नदी से
कविता

नारी की वेदना… नदी से

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** सरिता सी सर-सर बहती हो, जाने कितनी वेदना सहती हो, जब सागर से जा मिलती हो। तब नारी की उपमा बनती हो।। सुख-दुःख भी तुझमे सारा है, जीवन की तु परिभाषा है, हर नारी की तुम आशा हो। सुख-दुःख जीवन का साया है।। नारी ममता की धारा है, तीनो पक्षो को लेकर जब चलती है, सात पुस्तो का नाम रोशन करती है। हे, तटिनी, तरंगिणी, निर्झरिणी, कुलंकषा, अपगा तुमसे मेरी ये विनती है, जीवन की धार नदी करदो, सागर से जाकर मिल जाऊं। साहिल में जाकर लग जाऊं।। ये झील सी आँखों में लेकर पीड़ा, मीरा की वेदना बन जाऊं, गिरधर गोपाला मैं गाऊ। नदियाँ हूँ सागर से मिल जाऊं।। तेरे प्यार के रंग में रंग जाऊं।।। परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर...
बेइंतेहा मोहब्बत
कविता

बेइंतेहा मोहब्बत

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** दिल है मेरा तुम्हारे लिए ही बेकरार दिल को मेरे सिर्फ तुम्हारा है इंतज़ार। नहीं कटते हैं पल-पल दिन और रात करा दो एक बार तुम अपना दीदार। कर बैठे हैं तुमसे ही हम बेइंतेहा प्यार अब कैसे यकीं दिलाऊं तुम को यार। सिर चढ़के बोल रहा मुझमे तेरा खुमार जनम-जनम के लिए चाहिए तेरा प्यार। आगोश में समेटो श्वेतल को जाने बहार करूंगी टूटकर मोहब्बत तुमसे बेशुमार। परिचय - श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी - अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र - मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाई...
प्रेम का वास्तविक स्वरूप
आलेख

प्रेम का वास्तविक स्वरूप

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** अपने मित्र के व्हाट्सएप स्टेटस पर प्रथम बार गीत सुना "मुझे तु राजी लगती है जीती हुई बाजी लगती है" प्रेम का यह स्वरूप जब देखा तो लगा हम यह कहां आ गए? जिस प्रेम की पराकाष्ठा भक्ति है, जो प्रेम उस निर्गुण निराकार परमात्मा को सगुण साकार स्वरूप में धारण करने के लिए विवश कर देता है, वह एक हार जीत की बाजी हो गया। मेरे विचारों में यह प्रेम का सबसे विकृत रूप है। प्रेम तत्व मे तो दो होता ही नहीं है, प्रेम की पराकाष्ठा एक तत्व में विलीन हो जाना है और यदि प्रेम मे जब द्वेत भी होता है तो उस में समर्पण होता है, त्याग होता है, हारना होता है। प्रेम की किताब में या प्रेम के जगत में "जो जीता है वास्तव में वह तो हार ही गया है और जो हारता है वही वास्तव में जीता है" किसी शायर ने क्या खूब कहा है "जो डूब गया सो पार गया, जो पार गया सो डूब गया" आज की युव...
मौसम
कविता

मौसम

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मोहब्बत को याद करों दिल फिर से जवां हो जाता ख़्वाब हो पुराने मगर आंखों में फिर चमक दे जाता। वसंत के आने से मन गुनगुनाता प्यार का पंछी भी गीत गाता धड़कन ऐसी धड़कती की डालियों से पत्ता टूट जाता। कहते वसंत ऋतु में ऐसे ही आता आमों पर लगे मोर फूल सुहाते ताड़ी के भी ऊँचें पेड़ शोर मचाते सूने पहाड़ भी गीत गुंजाते टेसू भी ये सब देख मुस्कुराते। मौसम भी यदि बेमौसम हो जाते प्यार के मौसम को कैसे भूल जाते रूठना हो तब औऱ मौसम रूठ जाते वसंत ऋतु प्यार को सभी प्रेमी मनाते। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवा...
दिखाकर वो छुपाना चाहता है
ग़ज़ल

दिखाकर वो छुपाना चाहता है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** दिखाकर वो छुपाना चाहता है। मुझे फिर आज़माना चाहता है। निशाने पर सभी के आज में हूँ, कि किस-किस से बचाना चाहता है। घड़ी भर दिल्लगी में साथ रहकर, वो मुझपे हक जताना चाहता है। जताया है मुझे उसने सितमग़र, मुझे फिर से मनाना चाहता है। जो ग़ज़लें पहले गाकर छोड़ दी है, उन्हें फिर गुनगुनाना चाहता है। हवा और मौज के इस इम्तिहाँ में, परिंदा पर उठाना चाहता है। निभाता है जिन्हें वो दूसरों से, उन्हें मुझसे निभाना चाहता है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचन...
निराला के प्रति चार मुक्तक
मुक्तक

निराला के प्रति चार मुक्तक

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** एक नई पहचान बनाई, नई कविता दे कर के। नश्वर जग में अमर हो गए, सदा निराला यूं मरके।। कविता उनकी सीधे-सीधे, दर्दों से संवाद रही। उनकी आंखों में आंसू थे, जिनके दिल थे पत्थर के।। इंसानों की खिदमत में वे, रहे सर्वदा कब हारे। झुके गर्विले पर्वत उनके, आगे देखें हैं सारे।। वही किया जो सोचा मन में, कथनी करनी एक रही। नहीं निराला बने भूलकर, मानवता के हत्यारे।। दान नहीं स्वीकार किया है, लड़कर के अधिकार लिया। वही किया है इस दुनिया में, जब-जब जो-जो धार लिया।। सत्य धर्म के रहे निकट वे, महाप्राण मानवतावादी। इसीलिए जनता का दिल से, प्यार "अनंत" अपार लिया।। सूर्यकांत निराला के जो, व्यवहारों का दर्शन भी। सफल हुए करने में लोगों, लाए है परिवर्तन भी।। भरते थे वे खाली झोली, "अनंत," करते हमदर्दी। उनकी देखा देखी करलो, सदा करें मन नर्तन भी।। परिचय :- अख्त...
विद्या की माता शारदे
गीत

विद्या की माता शारदे

संजय जैन मुंबई ******************** वो ज्ञान की माता है सरस्वती नाम है उनका-२। वो विद्या की माता है। शारदा माता नाम उनका। वो ज्ञान की माता है।। हाय रे मनका पागलपन मुझ से लिखवाता है। क्या मुझे लिखना क्या वो लिखवता ये तो वो ही जाने-२। मन में मेरे वो आकर लिखवाते है मुझसे।। वो ज्ञान की माता है..।। इधर जिंदगी झूम रही है उधर मौत खड़ी। कोई क्या जाने कब आ जाये मेरा बुलावा जी-२। और क्या लिखना मुझको रह गया है अब बाकी। वो ज्ञान की माता है...।। मेरे दिल और ध्यान में सदा रहती है माता जी। जो कुछ भी मैं लिखता और गाता उनके कृपा दृष्टि से-२। मैं उनके चरणो में वंदन बराम्बार करता। वो ज्ञान की माता है..।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और...
हे वीणा वादिनि कृपा कर दो
कविता

हे वीणा वादिनि कृपा कर दो

सपना मिश्रा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** हे वीणा वादिनी, हे ज्ञान की देवी, कृपा कर दो। ज्ञान से अपने हमें भर दो। हे ममता की मूरत, है वर्णों की ज्ञाता, वेद पुराणों की भाषा, हे भाग्य विधाता, आशीष से अपने हमें तर दो। हे वीणा वादिनी, कृपा कर दो। हे मां शारदे, सुर ताल से अपने हमें स्वर दो। हे वीणा वादिनी, हे संगीत की देवी, सरगम में स्वर भर दो। करती हो कृपा सब पर हम पर भी कृपा कर दो। ज्ञान से अपने हमें तर दो। परिचय :- सपना मिश्रा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाई...