निर्गुण सृजन
माधुरी व्यास "नवपमा"
इंदौर (म.प्र.)
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पीत पल्लव की बारी है,
नव कोपल प्रस्फुटन जारी है।
सृष्टि का सृजन करके फिर,
ये प्रकृति कब हारी है।
जीवन की जीवन से देखो, जंग निराली है.......
माटी का जो घट खाली है,
मनोराग-संचयन भारी है।
कर्मो का अर्जन करके फिर,
माटी से सतत मिलन जारी है।
जीवन की देखो जीवन से, जंग निराली है.......
वसन तो इसका तन बना है,
प्राण जब दीपक की बाती है।
नौ द्वार के राजमहल में फिर,
प्रियतम-प्रभु आत्मा से यारी है।
जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है........
जब तक ये घट तेल भरा है,
तब तक दीपशिखा जली है।
कर्म प्रारब्ध पूरन हुए फिर,
प्राण बिना ये घट खाली है।
जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है........
काया को तो आत्मा ही प्यारी है,
हरि-मिलन अंतिम तैयारी है।
जब भान हो इस बात का फिर,
वही अनुभूति तो चमत्कारी है।
जीवन से जीवन की देखो, जंग निराली है.........
परिचय :...

























