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जीवन : एक यात्रा
आलेख

जीवन : एक यात्रा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** मानव जीवन जिंदगी के विभिन्न पड़ावों को पार करते हुए अपनी अंतिम यात्रा तक पहुंच कर खत्म होती है। परंतु यह विडंबना ही है कि इस यात्रा के किसी। भी पड़ाव पर आपको ठहरने की आजादी नहीं है। जीवन के हर पल में आपको अपनी सतत यात्रा जारी रखनी होती है। आपके हालात, परिस्थिति और समय कैसे भी हों, आपकी यात्रा जारी ही रहती है। आप खुश हैं, दुखी हैं, सुख में हैं या किसी परेशानी में है। आपकी अन्य गतिविधियां, क्रियाकलाप ठहर सकते हैं, मगर कभी ऐसा नहीं देखा गया कि जीवन यात्रा ग्रहों की तरह ही चलायमान है। संभवत ऐसा इसलिए भी है कि यह हमें प्रेरित करने, चलते रहने का सूत्र दे रहा है और हम उसे नजरअंदाज करने की कोशिश में भ्रम का शिकार बने बैठे हैं। यदि हमें अपनी जीवनयात्रा को सरल, सुगम और निर्विरोध बनाना है तो हमें बुराइयों से बचना होगा। ईर्ष्या, ...
किसानों के हमदर्द
कविता

किसानों के हमदर्द

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** कब तक कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। हम जय जवान जय किसान कहेंगे शान से। आते हैं हम भी हलधरों के खानदान से।। प्यारे हैं सभी आप हमें अपनी जान से। परखेगें मगर अपने ही चश्मे से ज्ञान से।। कबत क कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। कीचड़ से निकालेंगे करो मत उधम, सुनो। खेती परंपरा की नहीं रखती दम, सुनो।। मत रोको रास्तों को नहीं हम भी कम सुनो। कानून को हाथों में न लो बन अधम सुनो।। कब तक कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। तुम टूट चुके क्या करोगे और बिखर कर। रोते रहे कम कीमतों को ले इधर-उधर।। खेती नहीं है लाभ का धंधा चलो शहर। पक्के मकान देंगे तुम्हें चैन उम्र भर।। कब तक कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। ...
संबल देते रहो।
कविता

संबल देते रहो।

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** मुझे तुम धैर्य बंधाते रहो, जुगनुओं की तरह ही सही, रौशनी हमको देते रहो। हम कठिन मार्ग पर चल सके, ऐसा विश्वास देते रहो। ये तो माना तूफान हैं, पंथ मे लाख व्यवथान है, पैर ठहरे न इनके लिये, तीव्र गति इनको देते रहो। ये अंधेरा घना हो रहा, पलक मूंदे ये जग सोता रहा, पल रूकेगा न इनके लिये चेतना इनको देते रहो। ये हवा तो विषेली हुई, बूँद भी तो नशीली हुई, प्राण घातक है इनके लिये आस्था इनको देते रहो। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान स...
देश प्रेमी पथिक
कविता

देश प्रेमी पथिक

बुद्धि सागर गौतम नौसढ़, गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रेम पथिक हूं अच्छे दिल का, प्रेम राह पर चलता हूं। कांटो की परवाह नहीं है, नहीं किसी से डरता हूं। तेरा सच्चा प्रेमी हूं मैं, तुम पर मैं तो मरता हूं। सारी दुनिया से लड़ने की, हिम्मत मैं तो रखता हूं। प्रेम पथिक हूं देश प्रेम का, प्रेम देश से करता हूं। मातृभूमि भारत का अपने, हर पल सेवा करता हूं। मानवता का पाठ पढ़ाता, गीत देश का गाता हूं। प्रेम कहानी मैं भारत का, सबको खूब सुनाता हूं। परिचय :- बुद्धि सागर गौतम जन्म : १० जनवरी १९८८ सम्प्रति : शिक्षक- स्पर्श राजकीय बालिका इंटर कालेज गोरखपुर, लेखक, कवि। निवासी : नौसढ़, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के...
क्या हम क्या हमारा
आलेख

क्या हम क्या हमारा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                                                                   यह विचारणीय तथ्य है मित्रों कि जब हमारा जन्म होता है तब हम वस्त्र विहीन होते हैं और जब आखिरी समय पर लाश चिता पर लिटाई जाती है तब भी जिस कफ़न से शरीर ढका जाता है वह कफ़न आग की लपटों में पहले ही जल जाता है और इंसान का शरीर फिर वस्त्र विहीन हो जाता है। अर्थात दुनिया में बिना लिबास के आए और बिना लिबास चलते बने फिर समझ नहीं आता कि सारी उम्र इंसान ये तमाशाई दुसाले ओढ़ कर आखिर किसको भरमाने की कोशिश करता है खुद को या औरों को ? ये गाड़ी, बंगला, धन, दौलत, गुरुर, घमंड, सोना, जवाहरात, जमीन, परिवार? जब तन को ढँके कपड़े भी पहले जले, धर्म-अधर्म, नीति-अनीति धन दौलत जतन-जतन कर पाई-पाई जोड़ी लड़ाई-झगड़ा भी किया। कोर्ट कचहरी थाना तहसीली दुनिया भर के स्वांग रचे इस धरती पर आकर तुम ने। पर क...
क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा
ग़ज़ल

क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा। वो हवाओं की तरह छुप के गुज़र जाएगा। फूल की तरहाँ रहेगा अगर जहाँ में वो, हाथ लगते ही यहाँ पल में बिखर जाएगा। ये शरारत है सभी उसकी की गई लेकिन, इसका इल्ज़ाम किसी और के सर जाएगा। रास आ जायेगी जब फिर से हर खुशी उसको, तब से दिल उसका सभी ग़म से उभर जाएगा। जितनी यादों को बसा रखा है उसने दिल में, उनका चेहरा उसकी आँखों मे उतर जाएगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
किसान
कविता

किसान

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** हाथ की लकीरों से लड़ जाता है। जब बंजर धरती पे, अपनी मेहनत के हल से लकीरें खींच जाता है। हाथ की लकीरों से लड़ जाता है। कभी स्थितियों से कभी परिस्थितियों से, दो-दो हाथ कर जाता है। वो पालता है, पेट सबके। खुद आधा पेट भर के, मुनाफाखोरी के आगे, हाथ-पैर जोड़ता रह जाता है। हाथ की लकीरों से लड़ जाता है। जो जीवन को जीवन देता है। सबको अपनी मेहनत से ऊचाईयां देता है। उसकी महानता को, अगर समझें होते। कर्ज में डूबे किसान, फांसी पर यूं न चढ़ें होते।। आज अनशन लेकर, सड़कों पर क्यों खड़े होते। दीजिए सम्मान, उसे......जिस का हकदार है। वह धरा पर, जीवन धरा का प्राण है। डॉक्टर, इंजीनियर .....बनने से पहले, जीवन देने वाला है। अमृत सदृश रोटी हर रोज देने वाला है।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
आरक्षण और नहीं
कविता

आरक्षण और नहीं

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** "आरक्षण और नहीं" से मैं सहमत नहीं! आरक्षण होना ही चाहिए मांँ की कोख में... कन्या-भ्रूण का! ताकि बीमार मानसिकता के लोग स्खलित ना कर दे उसे वहां से! सरसियों से खींच उसका सर धड़ से विच्छिन्न कर फेंक ना दें कूड़ेदान में!! कैंचियों से काट उसका अंग-प्रत्यंग बड़ी निर्ममता से गिरा न दे... अवांछित कचरे के डब्बे में!!! हर एक माँ-बाप और दादी-दादा बुआ चाची नानी के मन-मस्तिष्क में भली-भांँति बिठा दो यह बात कि सृष्टि वाहिनी कन्या का जन्म परम कल्याणकारी है! घर समाज राष्ट्र और जगती के लिए!! आरक्षण होना ही चाहिए कन्या शिशु के जन्म का! परम पावन आह्लादित मनसे: जननी कन्या का आह्वान करो! उसके प्रादुर्भाव का स्वागत करो!! दोनों बाहें पसार हर्षित नयन!!! आरक्षण होना ही चाहिए कन्या के राजकुमारों से लालन-पालन का... मांँ-बाप की यथाशक्ति! उसकी समुचित शिक्षा-दीक्षा क...
जिम्मेदारी
कविता

जिम्मेदारी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** ये देश हमारा है बस इसी गुमान में मत रहिए देश से प्यार भी कीजिए, आपकी भी कुछ जिम्मेदारियां भी हैं उसका भी निर्वाह कीजिए। देश और देश के संसाधनों पर आपका भी हक है इसमें नया क्या है? देश के प्रति आपकी भी कुछ कर्तव्य भी उसे भी तो कीजिये। ये मत भूलिए कि देश आपका है आपसे नहीं है, आप देश से हैं देश आपसे नहीं है। गुरुर भर मत कीजिए कि देश हमारा है, अपनी जिम्मेदारी निभाइए देश को आगे बढ़ाइए देश को सबसे आगे ले जाना है एकता और विकास का परचम लहराना है, आइए !आप भी कंधे से कंधा मिलाइए हम सब अपनी अपनी यथोचित जिम्मेदारी निभायें तब कहें देश हमारा है तो हमारी जिम्मेदारी भी है। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरि...
दोस्तों की महफ़िल
ग़ज़ल

दोस्तों की महफ़िल

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** अरसों बाद आज सजी दोस्तों की महफ़िल, मस्ती के गुबार फूटने लगे ख़ुश हुए दिल। ग़म-ए-हयात मिटाने बिच की खीज़ मिटाने, यार मेरे जो ख़फ़ा थे वो भी हुए शामिल। ज़िंदगी की हर चीज़ मना सकते चुटकी में, मगर रूठें अपने यार मनाने बड़े मुश्किल। आई उसकी याद चार चाँद लगा दिए ग़मों ने, इश्क़ की तर्ज़ छिड़ी तो भूल गए मंज़िल। शेरो-शायरी की भरमार ग़ज़लों की हुज़ूम, 'विकाश' उलझे ख़ुशी की या ग़म की महफ़िल। परिचय :- विकाश बैनीवाल पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल निवासी : गांव-मुन्सरी, तहसील-भादरा जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक पास, बी.एड जारी है घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा ...
कोरा कागज
कविता

कोरा कागज

विकास शर्मा जयपुर (राजस्थान) ******************** मन में भरे अनगिनत विचार, लिखो तुम इन्हें कोरे कागज पर। मन भी हल्का हो जाए, जितने शब्दों के तुम समानार्थी ढूँढों। उतना ही कागज का अर्थ बढ़ जाये जितने तुमने छंद-अलंकार लगाये। शब्दों में प्रत्यय का भाव जगाओ, तो कहीं उपसर्ग से नए शब्द बनाओ। हिंदी और उसकी बिंदिया से । अपने मनोभावों को सजाओ, बने शुद्ध भाव कहीं अर्धविराम लगाने से देखों इन शब्दों की ताकत को। कागज की बनी भाषा में, उल्लास से निकले भाव मन में। भुल जाओ तुम दुख दर्द को, कागज पर पढ़ोगे जब अपने मन की लिखी भाषा को। परिचय :- विकास शर्मा निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
उम्मीदों की भोर
कविता

उम्मीदों की भोर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** निगल रहा अब अंधकार जग, होकर आदमखोर। क्षितिज परे जाकर दुबकी है, उम्मीदों की भोर।। जंगी ताले ने जकड़ा है, दुनिया का चिंतन। शुष्क कूप में करते मेंढक, सरहद पर मंथन।। हर बैठक का फल खा जाता, छली केमरा चोर।। क्षितिज परे जाकर दुबकी है, उम्मीदों की भोर।।१ निर्जन में सम्पन्न भेड़िए, करते हैं कसरत। कम्बल ओढ़े चरती हैं अब, कुछ भेड़ें आहत।। शून्य कौर के आगे लगकर, करे पेट में शोर। क्षितिज परे जाकर दुबकी है, उम्मीदों की भोर।।२ भगा दिए हैं दर से शिल्पी, इन बाजारों ने। वस्त्र जंग के पहन लिए हैं, अब औजारों ने।। 'जीवन' का हर उत्सव भूला, इस जंगल का मोर। क्षितिज परे जाकर दुबकी है, उम्मीदों की भोर।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी...
मेरी दासताँ
कविता

मेरी दासताँ

जया आर्य भोपाल म.प्र. ******************** हस्ती मेरी मिटेगी नहीं अभी बहुत सी बातें करनी बाकी है अब भी बची हैं कुछ इश्क की बातें जो दिल में आग लगाती हैं। मेरे अफसानों को तुम करोगे याद कुछ तो फसाने हैं इनअल्फज़ों में यहीं जमीं पर पड़े पाये हैं मैने कुछ तो आस्मानों से चुरालाये हैं। आज भी इस भीड़ में जब अकेले होते हैं तो हर तरफ से आती है आवाजें कौन हो तुम कहां से आये हो क्यों सोये हुए जज़्बात जगाते हो। न जाने कितने दिलों पे राज किया है मैने हर दिल मेरे इर्द गिर्द घूमती है किस दिल से कहूं तुम मेरे हो हर दिल के जख्म सिए हैं मैने। ऐ खुदा तुझे पुकारते हैं हर दम तभी तो प्यार जिन्दा है मुझमें मैं रहूं न रहूं तेरी इस दुनियां में सांसे मेरी दासताँ सुनाएंगी हर दम। परिचय - जया आर्य जन्म : १७ मई १९४७ निवासी : भोपाल म.प्र. शिक्षा : तमिल भाषी अंग्रेज़ी में एमए. उपलब्धि : ग्रेड १, हिंदी उदघोषक आकाशवाणी मुम...
प्यासा पंछी
कविता

प्यासा पंछी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** नेह नीर का प्यासा पंछी, आँगन डोल रहा। अपनी प्यारी वाणी में वह, कुछ है बोल रहा। संभवतः कर रहा निवेदन, सुमधुर भाषा है। उसकी कुछ अपनी चाहत है, कुछ अभिलाषा है। सुनने वालों के कानों में, मिसरी घोल रहा। नेह नीर का प्यासा पंछी, आँगन डोल रहा। आदि काल से है मानव के, खग से प्रिय नाते। विहग संग पाकर घर-आँगन , सब जन सुख पाते। मानव जीवन में हर नभचर, नित अनमोल रहा। नेह नीर का प्यासा पंछी, आँगन डोल रहा। उसके गाने में है सरगम, स्वर है मनमोही। धुन सीधे उर को छूती है, लय है आरोही। मधुर-मधुर स्वर लहरी द्वारा, उर पट खोल रहा। नेह नीर का प्यासा पंछी, आँगन डोल रहा। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और ...
अबला नहीं सबला
लघुकथा

अबला नहीं सबला

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** सोनी की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी। वह जोर-जोर से रोए जा रही थी। सभी इसका कारण जानना चाहते थे। पर वह चुपचाप आँसू बहा रही थी। रुखसाना इस दुनिया में होती तो अपनी लाडली को खुद ही संभाल लेती। पर जो चले जाते हैं वह देखने थोड़े ही आते हैं।सब जीते जी का झगड़ा है। मरने वाले का नाता इस संसार से तभी तक रहता है, जब तक तन में प्राण होता है। उसके बाद दोनों के रास्ते अलग हो जाते हैं। मरने वाले की अंतिम यात्रा शुरू हो जाती है। यह सब बातें ग्रन्थों में लिखी है। और संत महात्मा भी ऐसा ही बताते हैं। कल ही एक प्रचारक कह रहा था कि मरने के बाद आत्मा अपनी दूसरी राह पर निकल जाती हैं। यह यात्रा हजारों वर्षों तक चलती रहती हैं। फिर आत्मा का हिसाब-किताब होता है। फिर दोबारा जन्म होता है। मैं भी क्या लेकर बैठ गई? यह धर्म- कर्म की बातें हैं। यह कोई समय है इन बातों को क...
बड़ी देर कर दी
कविता

बड़ी देर कर दी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** जीवन की राह में, नहीं चलती मर्जी, समय पर चलना, बड़ी देर कर दी। समय का पाबंध, नहीं हो खुदगर्जी, देरी न हो अच्छी, बड़ी देर कर दी। दर्द कभी ना दो, बनो नहीं बेदर्दी, देरी भ्रष्टाचार हो, बड़ी देर कर दी। गर्मी जब बीतती, फिर आती सर्दी, सावन भी कहता, बहुत देर कर दी। मरीज दम तोड़ता, चले डाक्टर मर्जी, नहीं लगती अर्जी, बहुत देर कर दी। अन्न पैदा न हुआ, कैसी खेती करली, बीज बोया देर से, बहुत देर कर दी। विद्यार्थी फेल हो, खूब लगाई अर्जी, सालभर पढ़ा नहीं, बहुत देर कर दी। युद्ध में हार गया, तत्परता न बरती, चारों ओर घिरता, बहुत देर कर दी। मरीज बीमार हो, लापरवाही बरती, रोग ठीक न हुआ, बहुत देर कर दी। बढ़ा हुआ प्रदूषण, हदें ही पार करली, अब भी वक्त बचा, बहुत देर कर दी। रोग बढ़ता जाएगा, जब लगी हो सर्दी, वक्त है बचाव कर, बहुत देर कर दी। जोह र...
ठोकरें खा के भी
ग़ज़ल

ठोकरें खा के भी

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** ठोकरें खा के भी जो लोग संभल जाते हैं। मुश्किलों से कई वो लोग निकल जाते हैं।। नूर की बूँद ज़माने में बही जाती है। उसके जलवों से ज़माने भी बदल जाते हैं।। प्यार मिल जाए मुकद्दर से किसी का जिनको। उनके दिल में कई अरमान मचल जाते हैं।। बादलों पर सवार होके ना आया करना। परी समझते हैं बच्चे भी बहल जाते हैं।। हौसले और इरादे नहीं पक्के जिनके। आहटें होते ही वो लोग दहल जाते हैं।। शाख पर पत्तियां निकली नया मौसम आया। अब तो मौसम की तरह लोग बदल जाते हैं।। दूर पर्वत पे "शलभ" देवता का डेरा है। उसके आगोश में पत्थर भी पिघल जाते हैं।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहित्य...
मौसम संमदर किनारा मेहबूब पैसै
कविता

मौसम संमदर किनारा मेहबूब पैसै

अलका जैन (इंदौर) ******************** मौसम संमदर किनारा मेहबूब पैसै लोक डाउन ने सब पर पानी फेरा करोना जीते जी मार डाला यार मंझधार में साथ रहे किनारे पर वो अजनबी बन गया हाय रो मत दुनिया में होता लाख बहाने मरने के यार तू सिर्फ एक सहारा जिंदगी का बस मै नहीं तू ही तू कस्मे वादे प्यार वफा बेकार जिस्म की चाहते सबसे पहले नया दौर मेहबूबा चाहे इश्क नादानी करें महफ़िल यार दोस्त खुशी पैमाना दुनिया बदला पैमाना मंहगी वस्तु खुशी दे तेरा को देख खुश कोई लहू संग अश्क बह रहे अश्क बाहाये समझा कौन दर्द ए मुफलिस दर्द-दर्द और दर्द मुफलिस की जिंदगी हुनर को दाद दे कौन माया दिवानी कला को मान दे कोन हुनरमंद कैसे हूनर निखारे यारो अश्क तेरे ही नहीं दीवाने दुनियाभर की आंखों नम क्या तू क्या जाने अश्क पीता जा और जी मिलेगी मंजिल एक दिन तुझे भी भटक घूमना ना छोड़ हुनरमंद कलाकार मेहनत रंग लाएगी एक दिन परिचय :- इं...
देख मां
कविता

देख मां

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** अमिट कहानी लिख डाली है बेटों ने, तेरी लाज बचाने कदम बढ़ाए है बेटों ने। सोंधी खुश्बू तेरी माटी की महक गई , तेरे रक्षा के लिए जान भी कुर्बान गई। मनाते है हम दीवाली घरों में बैठकर, वो खेलते है होली सरहदों पर जाकर। जब दुश्मन अपनी पंख फड़फड़ाते है, तब वीरों ने डटकर अपना लहू बहाते है। दांव पेच खेलकर कायरों ने हराने को, शूरवीर हारते नहीं आंखे चार कराने को। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे ...
रात की बात
कविता

रात की बात

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** रात आज मुझ से बात कर रही थी चाँद सितारों का जिक्र कर रही थी। बीच बीच मे जुगनुओं को डपट देती कभी सुनी पड़ी सड़को को निहार रही थी। मैं पूछ बैठा कभी उजाले से बात हुई है। उसकी निगाहें उठी, वो सितारों को ताक रही थी। वो गुनगुना रही थी, सन्नाटे की धुन पर सूरज का कोई पुराना गीत गा रही थी। अचानक खींच लिया उसने मुझे आगोश में नींद के साथ वो मेरी ही बात कर रही थी। रात का जादू अपने पूरे शबाब पर था। ख्वाबो में वो मुझे सूरज से मिला रही थी। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घ...
बहिष्कार
गीत

बहिष्कार

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सत्य, अहिंसा और प्रेम का परिष्कार करना है सब को। नकारात्मक दृष्टिकोण का बहिष्कार करना है सब को। जीवन शैली सरस सरल हो। सुधा सुलभ हो लुप्त गरल हो। नहीं विकल हो मानव कोई,। स्नेह-शान्ति धारा अविरल हो। कुटिल तामसिकता का जग में तिरस्कार करना है सब को। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। रोटी, कपड़ा और निकेतन। प्राप्त करें जगती पर जन-जन। न हों अभावों की बाधाएँ, सुख-सुविधा पूरित हों जीवन। छोड़ स्वार्थ सब परहित पर भी अब विचार करना है सबको। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। निर्मित करने हैं विद्यालय। अधिक बढ़ाने हैं सेवालय। जहाँ विषमता की खाई है, वहाँ बनें उपकार हिमालय। मानव हितकारी शुभ उपक्रम बार-बार करना है सबको। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। जन-जन का उत्थान ज़रूरी। जन हित के अभियान ज़रूरी। हो व्...
भीम हमारे
कविता

भीम हमारे

बुद्धि सागर गौतम नौसढ़, गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** बाबा साहब भीम हमारे, मां भीमा के लाल रहे। सूबेदार पिता जी उनके, चौदहवीं संतान रहे। पिता रामजी राव हुए खुश, अन्न, वस्त्र भी बांट रहे। विधि मंत्री पहले भारत के, बाबा साहब जी भीम रहे। बालक भीमराव पढ़ने में, अपनी रुचि दिखलाए थे। सूबेदार पिता जी उनके, नामांकन करवाए थे। दर-दर, दर-दर भटक रहे थे, तभी सफलता पाए थे। प्रतिभाशाली भीमराव जी, सदा प्रथम ही आए थे। भारत आजाद कराने को, भीमराव संघर्ष किए। कठिन परिस्थिति में भी पढ़कर, संविधान निर्माण किए। शोषित पीड़ित, नर नारी को, उनका हक अधिकार दिए। भारत मेरा आजाद हुआ, भीम राव कानून दे। करूं नमन में भीम आपको, भारत नव निर्माण किए। चौदह अप्रैल को जन्म लिए, छः दिसंबर प्रस्थान किए। भारतवासी ऋणी आपका, नमन आपको करते हैं। जय भारत, जय भीम प्रेम से, मिलकर बोला करते हैं। परिचय :- बुद्धि सागर गौतम जन...
अन्नदाता
कविता

अन्नदाता

श्रीमती आभा चौहान अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हम सबका अन्नदाता किसान है कहलाता अपनी कड़ी मेहनत से रोटी देता सारे जग को पर उसका परिवार कोसता है अपनी किस्मत को न जाने कितनी मेहनत कर इस फसल को है उगाता बंजर धरती को भी पुकारता है कहकर माता जो सब को भरपेट है खिलाता वो कभी कभी खुद भूखा है सो जाता हमारे देश का किसान जो रोज हल चलाता है इतनी मेहनत करने पर भी कितना कम वो पाता है सारा देश भूखा मरेगा अगर किसान यू आत्महत्या करेगा। हम सबको मिलकर हर किसान को बचाना है अपने अन्नदाता को उसका हक दिलाना है। परिचय :- श्रीमती आभा चौहान निवासी :- अहमदाबाद गुजरात घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक...
मृगतृष्णा
कविता

मृगतृष्णा

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कोई भूख से परेशान है कोई बदहजमी से हलकान है शहर के इस हालत पर बताओ कौन कौन पशेमान* है। सभी को पता है ये बात ऊंट किस करवट बैठेगा खत्म हो जाएगा वो शख्स ये बात अगर किसी से कहेगा। गांव के लिए कोई सच्चा न था ये बुरा है तो वो भी अच्छा न था किससे करे गिला शिकवा हमारा नसीब ही पक्का न था। रहबर है तू, बारबार जता नही जाना कहा है, कुछ पता नही अब दौड़ने लगे है सभी उधर जिधर कोई रास्ता जाता नही। हर निगाह में यही एक सवाल है न मैं न तु फिर कौन मालामाल है कान पक गए ये सुन सुन कर देगा खुशियां आने वाला साल है *पशेमान- लज्जित होना परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष...
वीराने में बहार
लघुकथा

वीराने में बहार

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                 नंदिता एक श्रेष्ठ शिक्षक का पर्याय बन चुकी थी। वह संस्कृत और हिंदी पढ़ाती थी। केवल उसके विषय के छात्र ही नहीं, अपितु पूरे विद्यालय के छात्र उसे पसंद करते थे और उसका सम्मान भी करते थे। स्टाफ का भी शायद ही कोई कर्मचारी ऐसा हो, जो उससे द्वेष रखता हो। विगत अठ्ठाईस वर्षों से नंदिता शिक्षक कर्म का निर्वहन पूर्ण समर्पण से कर रही थी। उसके चेहरे पर दिन की उजाले की हुकूमत थी, तो हृदय में मिठास का अखूट सोता प्रवहित रहता था। शायद इन्हीं विशेषताओं के फल स्वरूप उसने घर-बाहर अनगिनत लोगों को अपने व्यहवार का कायल बना लिया था। कई पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी नंदिता का नाम २६ जनवरी को महामहीम राष्ट्रपति के करकमलों से सम्मानित किये जाने वाले शिक्षकों की सूची में शामिल था। नंदिता ने दिवाल घड़ी की ओर ताँका, साढ़े चार बज रहे थे। वह विश्...