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हिन्दी ढूँढे पहचान
कविता

हिन्दी ढूँढे पहचान

दीप्ति शर्मा "दीप" जटनी (उड़ीसा) ******************** (हिन्दी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में तृतीय स्थान प्राप्त रचना) हिन्दी के प्रेमी बनो, दो विशेष सम्मान। नित्य मने हिन्दी दिवस, ना हो अब अपमान।। मिलाती दिलों को सदा, लाती सबको पास। साहित्य की बहे नदी, भाषा है ये खास।। हिन्दी को सब पूज लो, वही हमारी मात। प्यार से लगाती गले, पूछे न कभी जात।। सोये भारतीय सुनो, जगाओ स्वाभिमान। हिन्दी भाषा अब बनें, हम सबकी पहचान।। देख स्वयँ की दुर्दशा, हुई आज हैरान। हाय व्यथा किससे कहे, है बड़ी परेशान।। भाषाओं की माँ यहाँ, ढूँढ रही पहचान। वो अपने ही देश में, बन गई मेहमान।। ए बी सी जाने सभी, वर्ण का नहीं ज्ञान। अंग्रेजी की धूम है, हिन्दी से अंजान।। हाथ जोड़ विनती करूँ, हिन्दी को दो मान। उसको कभी मिले नहीं, दोयम दर्जा स्थान।। परिचय :- दीप्ति ...
हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्थान
कविता

हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्थान

मृगेन्द्र कुमार श्रीवास्तव "तन्हा" सिंहपुर, शहडोल, म.प्र. ******************** (हिन्दी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में द्वितीय स्थान प्राप्त रचना) हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्थान। एक ही नारा, अब तो हमारा। एक ही है आह्वान।। हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्थान।। हिन्दी है संस्कृति का सौरभ। हिन्दी है भारत का गौरव। सरस, सुबोध, सरल है हिन्दी, जन-मन का अभिमान।। हिन्दी......।। हिन्दू की है पहचान यही। है हिन्द का गौरव गान यही। है सकल ज्ञान की खान यही। अपनाना है आसान।। हिन्दी......।। हिन्दी भाषाओं में है बड़ी। ये राष्ट्रीयता की प्रबल कड़ी। ये बहुसंख्यक की अभिलाषा। मिला राजभाषा सम्मान।। हिन्दी.....।। हिन्दी में हम व्यवहार करें। हिन्दी का खूब प्रचार करें। निज भाषा का सत्कार करें। छेड़ें नूतन अभियान।। हिन्दी.....।। परिचय :- मृगेन्द्र कुमार श्रीवास्त...
हमारी हिन्दी
कविता

हमारी हिन्दी

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** (हिन्दी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त रचना) प्रतिपल राग विराग छंद रस; के समागम सुर निहित। अवतीर्ण तत्सम सहित तत्भव; दिव्य सर्व सुभाष हित। कौशल सहोदर संस्कृत; सर्वस्व अक्षर अंतरित, भावोमयी उत्कर्ष मर्म अनुराग संचय द्वंदजित। युग नवल अथ प्राचीन; सहज अकाट्य रचना सुवासित। अंतर सुशोभित शब्द व्यंजन; गूँजते स्वर दिग्विजित। सौरम्य कांति नवल अम्बर; भ्रांतिहीन स्वउज्जवलित। संधि समासों जनित पूरित; चिन्ह विस्मय बोधवित। मानक सुनिधि परिपूर्ण ग्रंथ; क्रांति तेजस काव्यतित। 'हिन्दी' विराजित विश्व मस्तक; पटल व्यापक सात्विक। परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपनाम - अर्चना अनुपम मूल निवासी - जिला कटनी, मध्य प्रदेश वर्तमान निवास - जबलपुर मध्यप्रदेश पद - स.उ.नि.(अ), प...
न्याय की तलाश
ग़ज़ल

न्याय की तलाश

अजय प्रसाद अंडाल, बर्दवान (प. बंगाल) ******************** सदियों से ही उचित न्याय की तलाश में हूँ दलितों, पीड़ितों औ शोषित के लिबास में हूँ। ज़िक्र मेरी भला कोई करे क्योंकर ग्रंथो में कहाँ नज़रो के, वाल्मिकी या वेद व्यास में हूँ। हर दौर ही दगा दे गई यारों दिलासा दे कर बस ज़रुरत के मुताबिक उनके पास में हूँ। रोज़ लड़ता हूँ लड़खड़ाकर जंग ज़िंदगी से मुसीबतों के महफ़ूज साया-ए-उदास में हूँ। कभी तो अहमियत मिलेगी मेरी गज़लों को अजय उस महफिल-ए-ग़ज़ल की तलाश में हूँ परिचय :-  अजय प्रसाद शिक्षा : एम. ए. (इंग्लिश) बीएड पिता : स्वर्गीय बसंत जन्म : १० मार्च १९७३ निवासी : अंडाल जिला- बर्दवान प. बंगाल सम्प्रति : अंग्रेजी अध्यापक- देव पब्लिक स्कूल बिजवान नालंदा, (बिहार) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी...
मानव माँस
लघुकथा

मानव माँस

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** गिद्ध के बच्चे जिद कर रहे थे कि उन्हें मानव माँस ही खाना है । वे बच्चे मानव माँस का स्वाद चख चुके थे। गिद्ध परेशान! कहां से लाऊँ? संयोगवश गिद्ध को मानव माँस मिल गया, एक आदमी को फांसी की सज़ा दी गई थी। गिद्ध खुश था कि अब उसके बच्चे मानव मांस खाकर, प्रसन्न हो जाएंगे। यह क्या? बच्चों ने पहला निवाला खाते ही...थू.. कहते हुए बुरा सा मुंह बना लिया। यह मानव मांस नहीं, यह तो किसी कुत्ते का मांस है। गिद्ध अवाक! उन मुंह देखता रह गया। वह उन्हें कैसे बताता वह सामूहिक बलात्कार के अपराध में सज़ा पाए मानव का माँस था। परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशि...
गाँधी  चालीसा
कविता

गाँधी चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* सत्य धरम अरु राष्ट्रहित, गाँधी का अवतार। भौतिक सुख साधन तजे, राखे उच्च विचार।। जय जय प्यारे बापू गाँधी। सत्य अहिंसा की तुम आँधी।।१ भारत माता के तुम पूता। बने जगत के शांति दूता।।२ जन्मे मोहन दो अक्टोबर। सन अट्ठारह सौ उनहत्तर।।३ पितु करमचन्द पुतली माता। तुम जन्मे पोरा गुजराता।।४ हरिश्चंद्र जब नाटक देखा। जाना जीवन सांचा लेखा।।५ भक्त श्रवण की कथा सुहाई। मात पिता की सेवा भाई।।६ संस्कार बचपन से पाया। साफ छवि का चरित्र बनाया।७ शाला में जब नाम लिखाया। सीधा बालक गुरु को भाया।।८ एक निरीक्षक शाला आये। शिक्षक देख तुरत घबराये।९ केपिटल लिखना नही आया। नकल त्याग ईमान दिखाया।।१० कॉलेज की जब शिक्षा पाई। विधि की सीख विलायत जाई।११ लंदन में जब करी पढ़ाई। तीन बात मां ने समझाईं।।१२ परनारी से दूरी रखना। मदिरा मांस कभी न चखना।१३ सादा जीवन उच्च व...
जलन कायदा
कविता

जलन कायदा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** जलन से कैसे हो सकता फायदा भाई जलन का भी कोई कायदा। नमन नही बन सके कोई भुलावा जतन करने में कैसा रहे छलावा वहन करता मनुष्य ही काम का काम ही पहिया बने उस नाम का जलन से कैसे हो सकता फायदा भाई जलन का भी कोई कायदा। अकड़बाजी बन गई क्यूँ दस्तूर है बहस से भी रहता आखिर दूर है वजह नहीं फिर भी बनता बावला रिश्तों में क्यों लाए सतत फासला जलन से कैसे हो सकता फायदा भाई जलन का भी कोई कायदा। खलल स्वभाव विकास की रोक है पहलगामी तो अंतर्मन की खोज है चहल से ही बढ़ता जाए जब दायरा निश्चय मानुष बन सकता है आसरा जलन से कैसे हो सकता फायदा भाई जलन का भी कोई कायदा। जलन करने की कोई तो सीमा हो दहन भाव कभी कभी तो धीमा हो शब्द ज्ञान बनाते जब शायर शायरा चकरा जाते हैं देख देखकर माजरा जलन से कैसे हो सकता फायदा भाई जलन का भी कोई कायदा। सहन करता इंसान ही जीवट बने मिलन...
दुख देते हैं जानबूझ कर
गीत

दुख देते हैं जानबूझ कर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** दुख देते हैं जानबूझ कर, दुखियारों को बापू। महिमामंडित करते हैं हम, हत्यारों को बापू।। देश जूझता आज तुम्हारा, मजधारों में पल पल। बढ़ते हैं विपरीत दिशा में, छलिया करते हैं छल।। बेच रहे हैं धनवानो को, निर्धन के हक सारे। श्रमजीवी मजबूर हो गए, फिरते मारे मारे।। गिरवी रखनेको आतुर घर, दीवारों को बापू। महिमामंडित करते हैं हम, हत्यारों को बापू।। व्यक्ति पूजा करने वाले, देशभक्त कहलाते। देशभक्त बेबस लगते हैं, देश निकाला पाते।। रहे प्रिय जो भारतमां को, अपमानित होते हैं। मनकी कहने किससे जाएं, मन ही मन रोते हैं।। करते तेज अहिंसावादी तलवारों को बापू। महिमामंडित करते हैं हम, हत्यारों को बापू।। सत्य अहिंसा सत्याग्रह के, अब लाले पड़ते हैं। देशद्रोहियों के सीनों पर, हम मेडल जड़ते हैं।। देश उसी का माना जाता, जिसने अपना माना। नाम भले कुछ धर्म भले कुछ, ज...
मैं गांधी ना बन पाऊंगा
कविता

मैं गांधी ना बन पाऊंगा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** सत्य के मार्ग पर... तो चलूंगा। लेकिन भ्रष्ट सोच को, अहिंसा से कैसे मिटाऊंगा। मैं गांधी ना बन पाऊंगा। क्या......... मैं गांधी बन। एक गाल पर चांटा खाकर, दूसरा गाल भी, सामने कर जाऊंगा। नहीं..........मैं मजलूमों पर उठने वाला, हाथ तोड़ कर आऊंगा। मैं गांधी ना बन पाऊंगा। जुल्मों के खिलाफ... क्या..? धरना देकर मांग पत्र दे जाऊंगा। मैं आजाद हिंद की, क्रांति को कैसे मूक कर जाऊंगा। मैं गांधी ना बन पाऊंगा। कमजोर बेसहारों के लिए, आवाज से लेकर हाथ तक उठाऊंगा। मैं अहिंसा की कदर करता हूं। लेकिन जो नहीं समझते, उन्हें हिंसा से ही समझाऊंगा। मैं देश के गद्दारों से, अहिंसा के संग कैसे लड़ पाऊंगा। इनको इनकी भाषा में ही, अहिंसा का सबक सिखाऊंगा। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
चुप न बैठो
कविता

चुप न बैठो

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** सृष्टि की रचनाधार चुप न बैठो खामोश न बैठो। कलयुग कुंडली मार कर बैठा है, तुम्हें ही क्रांति की तलवार उठाना है । चुप न बैठो.... वर्तमान समाज बहरा है इंसानियत गूंगी है अनमोल अश्रु व्यर्थ न गंवाओ, आवाज उठाओ आवाज़ उठाओ, चुप न बैठो.... इस राक्षसी दरबार में तुम किससे आस लगाओगी, चंडी बन बलात्कारियों की मुंड मालाएं तुम ही तो शिव को चढ़ाओगी, आवाज उठाओ आवाज उठाओ चुप न बैठो.... मानवता को लुटने से बचाओ, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाओ, रण चंडी सी खुद बन जाओ, काली सा विराट स्वरूप दिखाओ आवाज़ उठाओ, आवाज उठाओ, चुप न बैठो.... परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐंकर, ल...
गर हमारी हिम्मत तुमसे नजरे मिलाने की होती
कविता

गर हमारी हिम्मत तुमसे नजरे मिलाने की होती

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** गर हमारी हिम्मत तुमसे नजरे मिलाने की होती हकीकत-ए-जिंदगी की कहानी दिखाने की होती बाते करते है अक्सर लोग घर दुब्बकर बैठै क्यूं नशे मन कुछ बाते राज़ की छुपाने की होती उनसे राब्ता तो रहा है थोड़ी दूर फ़ासले का हसरते मानो साथ उनके जमाने की होती अदब करते रहे है हम रूतबे नही जानते क्या है यही मासूमियत तो उनमे पहचानने की। होती तुम अभी वाकिफ़ नही शायद मेरी दीवानगी से खुदा के दर कद्र भी इश्क के परवाने की होती यही इल्म तो ज़मी के बंदो को समझाए कौन फरिश्ता नही नुमाइदा हूं हिम्मत झुटानै की होती परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
अधिकार मांगता हूं
कविता

अधिकार मांगता हूं

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** सबको खिला कर मैं खुद भूखा रहता हूं जल ना मिले तो पसीने से प्यास बुझाता हूं आए कितनी भी मुसीबतें, हिम्मत न हारता हूं टूट जाए कुटिया, उसमें ही जीवन गुजारता हूं। धरती को माता मैं, पिता आसमान को मानता हूं प्रकृति ही सब देती है, बस यह मैं जानता हूं बैलों को मैं अपने भगवान जैसे पूजता हूं ना मिले बैल तो मैं खुद हल खींचता हूं। उधार लेकर मै खाद, बीज बोता हूं दिन को आराम ना रात को सोता हूं साल भर मेहनत कर, इतना न कमा पाता हूं बिक जाते खेत मगर, ना कर्ज चुका पाता हूं। अमीर ना बन सका, तो गरीबी में खुश रहता हूं जिंदगी में आने वाले, मैं सब दुख सहता हूं अपनी चीज का भाव तय करते, सब को देखता हूं लेकिन फसल का मै, ना खुद भाव लगा सकता हूं। खुद समर्थ हूं मै, सब कुछ कर सकता हूं खेतों में काम करते, तेज धूप सहता हूं बारिशों के पानी में, मै खुद भी...
बापू तेरे देश में
कविता

बापू तेरे देश में

मोहम्मद मुमताज़ हसन रिकाबगंज, (बिहार) ******************** गोरों को था मार भगाया तूने, आज़ादी का ध्वज फहराया तूने! दी कुर्बानी देश की खातिर, मिटे देशभक्ति के आवेश में! लेकिन अब क्या हो रहा है, बापू तेरे देश में! राजनीति बन गई अखाड़ा, 'वोट बैंक' का बजे नगाड़ा! तस्वीर लगा होती रिश्वतखोरी, रखा क्या 'सत्यवादी' सन्देशमें! कैसी मानसिकता आई है, बापू तेरे देश में! 'सत्य-अहिंसा' का कोरा मंत्र, चल रहा 'झूठवाद' से प्रजातंत्र! अंग्रेजों-सी मूरत दिखती है खददरधारी वेश में! कैसे आएगा 'राम राज' बोलो, बापू तेरे देश में! 'गणतंत्र'आज भयभीत दिखता, सड़कों पर क़ानून है बिकता! देश पे छाए संकट के बादल, तनाव हुआ जब धर्म-विशेष में! खतरे में भाईचारा सदियों का बापू तेरे देश में! गांधी तेरे तीनों बन्दर, गए सलाखों के अंदर! सत्ता मिल जाती है यूं भी, साम्प्रदायिक झगड़े-क्लेश में! भूल गए वो मूलमंत्र तुम्हारा जो दिए राष्...
अन्नदाता
कविता

अन्नदाता

सीताराम सिंह रावत अजमेर (राजस्थान) ******************** तपते सूरज में पसीने से नहाता किसान दुनिया का अन्नदाता भीख मांग कर क्यों बीज लाता? क्यों फांसी पर लटक जाता ? क्यों अन्नदाता को दो वक्त का अन्न नहीं मिलता क्यों इतनी जी तोड़ मेहनत के बाद चेहरा नहीं खिलता आखिर क्यों किसान का चेहरा एक सवाल होता उचित दाम के न मिलने पर रोता क्यों किसान के सपने को मार दिया जाता इसलिये कि वो एक अन्नदाता है। इसलिये कि वो आपको सवाल नहीं पूछता या किसान का कोई मूल्य नहीं होता। परिचय :- सीताराम सिंह रावत निवासी : अजमेर (राजस्थान) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, रा...
चाह नहीं
कविता

चाह नहीं

डॉ. चंद्रा सायता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लहरेंं आती रहीं कभी धूप की तपिश लेकर और कभी आती रहीं छावँ की ठंडक लेकर। इन आती-जाती रही लहरों के मोहपाश में बंधा रहा मैं, न जाने कब तक बेहोंशी में। सामने खड़ी थी बन याघक कुछ मांगती थकी-मांदी जिंदगी सिमटी, अनजान सी। अचानक, उछाल लेती जलराशि से स्नात मैं शून्य में समाहित था राग-विराग से दूर मैं। परिचय :- डॉ. चंद्रा सायता शिक्षा : एम.ए.(समाजशात्र, हिंदी सा. तथा अंग्रेजी सा.), एल-एल. बी. तथा पीएच. डी. (अनुवाद)। निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश लेखन : १९७८ से लघुकथा सतत लेखन प्रकाशित पुस्तकें : १- गिरहें २- गिरहें का सिंधी अनुवाद ३- माटी कहे कुम्हार से सम्मान : गिरहें पर म.प्र. लेखिका संघ भोपाल से गिरहें के अनुवाद पर तथा गिरह़ें पर शब्द प्रवाह द्वारा तृतीय स्थान संप्रति : सहायक निदेशक (रा.भा.) कर्मचारी भविष्य निधि संगठन,श्रम मंत्रालय...
कौन कहता है
कविता

कौन कहता है

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** कौन कहता है यहांँ मस्जिदोशिवाले हैं। अपनी आंँखों में महज़ प्यास है, निवाले हैं।। तंगदस्ती कहांँ-कहांँ पे मार देती है, वक़्त ने कितने ही बेवक़्त सितम ढाले हैं।। कोई बादल बिना पूछे बरस नहीं सकता, आसमां तक भी सियासत के बोलबाले हैं। बस्तियांँ जलती रहें, मस्तियांँ भी चलती रहें, अजीब शय हैं, ख़ुदाई का शौक़ पाले हैं। मत करो, ज़िक्र से उनके लहू उबलता है, तन पे उजले लिबास, मन के बड़े काले हैं। मेरा वका़र जो ललकार उन्हें देता है, मखमली जूतियांँ पैरों में नहीं, छाले हैं। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सक...
मोबाइल
कविता

मोबाइल

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम से, कोने- कोने से बातें हो जाती है। रिश्तों में दुरियाँ बढती चलीं जाती हैं, अब इसे जीवन कहे या मृत्यु कहे..... वाह! मोबाइल क्या नाम दिया है..... दुनिया भर की खबर देख लेते हैं, मानव सोच को सकारात्मक करते। अपना उधोग इससे कर सकते हैं, पर मानव इसका दूरउपयोग क्यों करते..... अब मोबाइल अपनी हर आवश्यकता पूरी करते..... ना दिन का पता ना रात का, बस मोबाइल पर समय गुजर जाता। पास होने पर अजनबी लगते, मोबाइल पर बातचित हो जाती हैं...... यह सुंदर दुनिया मोबाइल में खो जाती हैं........ परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी (राजसमंद) राजस्थान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक ...
भइया से बोली भउजी
कविता

भइया से बोली भउजी

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** इक दिन भइया से बोली भउजी करत के कंघी इया साल त सईया देखा लड़बय हमहू सरपंची भइया बोले बोट न पउबै नाहक होइ नामूजी आँखि तरेरि भइया कइ भन्नाय के बोली भउजी मिली बोट कइसे न देखी सोचेंन हयन सरल उपाय चमकती साड़ी सेट पहिनब हमजोरिन संग बागब गांव नैनन कजरा जुड़ा म गजरा ओठन पोटिकै लाली चारि जने के बीच बइठि पुनि मारब नयन कटारी परी बोट जिन्हा सजि धजिकै इस्कूले कय हम जाय मतदान परभारीसे हसि हसि अपने कैतिक लेब मिलाय कइसेउ मइसउ जीति गयेन जो तुहु कहउबय सरपंचपति दांत निपोरे अब तकि बागेउ लहि जाइहि तोहरउ घती अधिकारीन क साथ मिलाउब नाली रोड़ खूब बनबाउंब रुपिया पइसा पास म होइ सहर अपनउ बगला होइ आंगन बाड़ी केर पंजीरी दरिया अउ आबास बड़े मनई जे गाँव के जोरिहि हम से हाथ जेतकी जोजना सरकारी सगरिन से करब कमाई सुनब केहू कै न करब ऊहै जो हमरे मन म आई ...
बेरोजगारी
कविता

बेरोजगारी

धीरेन्द्र पांचाल वाराणसी, (उत्तर प्रदेश) ******************** बिगड़े ना बोल नाही अइसे दबेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। हमरा के चाही नाही मेवा मलाई। नोकरी के आस प्यास देता बुझाई। जिनगी के खोल जनि अइसे उकेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। बीतता उमिर अब पाकता डाढ़ी। रोईं अकेले बन्द कइके केवाड़ी। नइया उमिरिया के मारे हिलकोरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। मुहर हव लाग गइल देहियाँ पे भारी। लम्पट आवारा सभे बुझे अनारी। जुआ ना दारू नाही गांजा क डेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। रोटी ना भात रात कइसे बिताईं। छोटकी बेमार बिया कइसे सुताईं। गऊवां के लोग कहें हम्मे लखेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। माई के सस्ता दवाई उधारी। ओहु पे चल रहल रउआ के आरी। मछरी के अस कस नाहीं दरेरा। मोदी जी आँख तनी हमनी पे फेरा। परिचय :- धीरेन्द्र पांचाल निवासी : चन्दौली, वाराणसी, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं ...
कर्ज
लघुकथा

कर्ज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                         आज रामू काका की बेटी संध्या का आईआईटी में प्रवेश का परिणाम आया। सब बहुत खुश थे कि एक गरीब की बेटी तमाम आर्थिक झंझावातों के बीच सफलता की सीढियां चल रही थी, खुद रामू को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। उनके लिए तो ये सब सपना जैसा था।क्योंकि बेटी को उँचाई पर देखने का सपना देखने वाले रामू काका अथक प्रयासों के बाद भी उसे वो सुविधा नहीं दे पा रहे थे जिसकी उसे दरकार थी। अचानक सारी खुशियों को ग्रहण लग गया, रामू काका पक्षाघात का शिकार हो गये। घर में इतने पैसे नहीं थे कि ढंग से इलाज हो सके। तभी अचानक क्षेत्रीय विधायक रामू काका के दरवाजे पर आ गये। सन्नाटे का माहौल देख वे अचंभित से हुए तभी संध्या बाहर आई और विधायक जी को देखकर रोने लगी। विधायक जी ने उसे ढांढस बँधाया, पूरी जानकारी ली और तुरंत ही अपनी गाड़...
घर वही, जहाँ बुढ़ापा खिलखिलाये
आलेख

घर वही, जहाँ बुढ़ापा खिलखिलाये

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ********************                                   किसी ने सच ही कहा है कि जिस घर मे बुजुर्ग सन्तुष्ट व प्रसन्नचित्त रहते हैं, वह घर धरती पर स्वर्ग के समान है, परन्तु आज आधुनिकता के परिप्रेक्ष्य में रिश्तों में उत्पन्न व्यवहारिकता व आपसी सामंजस्य व घटती सम्मान की भावना के कारण ऐसा स्वर्ग अब अपवाद का रूप लेता जा रहा है। ऐसी परिस्थितियों में अब बुजुर्गों को जीवन के अर्धशतक के नज़दीक आते आते सिर्फ अपने भविष्य के प्रति सचेत हो जाना चाहिये, कुछ नहीं पता हालात क्या मोड़ ले लें, स्वयं को आर्थिक रूप से मजबूत कर, स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखते हुए आशा व विश्वास से परिपूर्ण ऊर्जावान बनाये रखना होगा तभी तो बुढ़ापा खिलखिलाहट से भरा होगा, उसकी जगमगाहट अंदर तक आपको जाग्रत कर देगी। आज बच्चों की भी अपनी विवशताएँ है, कम आमदनी, बढ़ते खर्चे, चकाचैंध से भरा जीवन जीवन ज...
गोलगप्पे
कहानी

गोलगप्पे

गीता कौशिक “रतन” नार्थ करोलाइना (अमरीका) ********************                                  ग्यारह वर्षीय शैली अपनी सभी सहेलियों में क़द-काठी में सबसे लम्बी थी। खेलकूद प्रतियोगिताओं और पढ़ाई में सबसे होशियार परन्तु साथ ही सबसे अधिक शरारती भी। चित्रकारी और शायरी का इतना शौक़ कि गणित की कक्षा में भी बैठी हुई कापी के पिछले पन्नों पर टीचर की तस्वीर बनाकर उसके नीचे शायराना अंदाज में कुछ भी दो पंक्तियाँ और लिख देती। कक्षा के सभी छात्र शैली के द्वारा की गई चित्रकारी और शेरो-शायरी की ख़ूब सराहना करते और इसी के साथ उसकी कापी वाहवाही बटोरतीं पूरी कक्षा में घूमतीं रहती। टीचर जब कक्षा के सभी बच्चों की कापी चैक करने के लिए माँगती तो शैली भी बड़ी होशियारी से सबकी कापियों के नीचे सरका कर अपनी कापी भी रख देती। घंटी बजते ही चुपके से उसे वापस भी निकाल लेती। एक दिन की बात है कि कक्षा में टीचर ब्...
हुनर बदलने का
कविता

हुनर बदलने का

सपना मिश्रा मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** वक्त बदलता है तो हालात बदलते हैं लोग बदलते हैं तो जज्बात बदलता है किस्मत बदलती है तो जीवन बदलता है जीवन बदलता है तो एहसास बदलते हैं एहसास बदलते हैं तो अपने बदलते हैं बदलने का हुनर तो पूरी दुनिया के पास है वादा करके निभाने में बड़ा फर्क होता है कोई पाकर बदलता है तो कोई खोकर बदलता है नतीजे बदलते हैं तो रिश्ते भी बदलते हैं यह हुनर है या फितरत मौसम से भी ज्यादा इंसान बदलते हैं... परिचय :- सपना मिश्रा निवासी : मुंबई (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
मन
कविता

मन

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** वक्त बुरा नहीं होता, बुरे होते विचार, मन मेरा प्रसन्न हो तो,लोग करें प्यार, मन को काबू कर, बन सकता महान, मन मंद वेग मेें हो, बन जाए पहचान। मन की गति समझ नहीं पातेे, कितने, जगत हुये पंडित और हजारों विद्वान, मन पर काबू किया, साधु, संत महान, काबू से बाहर मन, राक्षस उन्हें जान। फूल सा मन था, जब होता था बच्चा, मेरा मन कहता था, दिल का हूं सच्चा, काम मन से किया, लगता था अच्छा, छल पट से दूर था, इसलिए था बच्चा। हुआ युवा,मन जवां, करता उल्टी बातें, मेरे मन से सोच में, कट जाती थी रातें, मन मलिन हो गया, कुत्सित थे विचार, मन की मेरी समझे, घट का जन प्यार। हुआ बुजुर्ग आज मैं, नहीं रहा ये जवां, बुरे भले विचार पले,नहीं रहा मन जवां, सोच विचार करता, शुभ वक्त दिया गवां सूखा पेड़ बन गया, खुश्क हो गई हवा। एक दिन मेरा मन, यूं कहने लगा मुझसे, अभी वक...
वही इंसान तो…
ग़ज़ल

वही इंसान तो…

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** वही इंसान तो अक्सर सही मंजिल नहीं पाता। जो सच्ची राह पर अपनी कभी चलकर नहीं जाता। सभी मुश्किल उसे इस राह की हैरान करती है, कभी जो हौसला अपना यहाँ लेकर नहीं आता। वो बातें हैं यहाँ उसके लिए इक फ़लसफ़े जैसी, हक़ीक़त में जिन्हें अपने अमल में जो नहीं लाता। निभाते हैं सभी उसकी रिवायत को शराफ़त से, बना रहता है जब उसका सभी से कुछ न कुछ नाता। कभी वो ख्वाहिशें उसकी यहाँ पूरी नहीं होती, कि जिसको ये नहीं भाता कि जिसको वो नहीं भाता। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जा...