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सुंदरता
कविता

सुंदरता

संजय जैन मुंबई ******************** नही होती सुंदरता किसी के भी शरीर में। ये बस भ्रम है अपने अपने मन का। यदि होता शरीर सुंदर तो कृष्ण तो सवाले थे। पर फिर भी सभी की आंखों के तारे थे।। क्योंकि सुंदरता होती है उसके कर्म और विचार में। तभी तो लोग उसके प्रति आकर्षित होकर आते है। वह अपनी वाणी व्यवहार और चरित्र से जाना जाता है। तभी तो लोग उसे अपना आदर्श बना लेते है।। जो अर्जित किया हमने अपने गुरुओं से ज्ञान। वही ज्ञान को हम दुनियाँ को सुनता है। जिससे होता है एक सभ्य समाज का निर्माण। फिर सभी को ये दुनियां, सुंदर लगाने लगती है। इसलिए संजय कहता है, जमाने के लोगो से। शरीर सुंदर नही होता सुंदर होते उसके संस्कार।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन मे...
सावित्री महल
कहानी

सावित्री महल

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** सात साल से वह उसकी बाट जोह रही थी। अब तो उसकी आँखो से आँसू भी आने बन्द हो गए थे। बस उदासी ही उसके साथ रह गई थी। वह आस-पड़ोस में भी बहुत कम जाती थी। उसकी हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही थी। अपने गुजारे लायक थोड़ा बहुत कमा लेती थी। घर में नाममात्र का सामान रह गया था। सब कुछ धीरे-धीरे बिक चुका था। पर पति महेश का कुछ भी पता नहीं चल सका था। घर पूरी तरह खँडहर में बदलता जा रहा था। यह वही घर था जिसमें वह हजारों सपनें लेकर आई थी। महेश ने भी उसका साथ निभाने की कसमें खाई थी।कितने खुश थे वो दोनों अपनी छोटी सी गृहस्थी में? उसके अधिक सपनें नहीं थे। वह तो सिर्फ पति का साथ चाहती थी। वह आज भी उस मनहूस दिन को कोसती थी। जब उसने मजाक ही महेश से महल बनवाने की बात कह दी थी। उसने यही कहा था कि तुम मुझें कितना प्यार करते हों? बहुत प्यार, तुम बताओ। तुम्हें म...
माता का आंचल
कविता

माता का आंचल

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** माँ की पल्लु पकड़ आज रो रहा हूँ मैं।। प्यार भरी ममता आंचल मे सौ रहा हूँ मैं।। सपने में आया उड़ता परिन्दा काट रहा था हाँथ मेरे।। मानो माँ से कह रहा हो छोड़ इसे चल साथ मेरे।। माँ की ममता बहक गई,, आँसु आँखो-से छलक गई।। दूर खड़ी थी माँ मेरी छूने से मुझको तरस गई।। उड़ गया परिंदा नीले गगन में ले गया माँ को साथ मेरे आँख खुली तो पाया में कोई नहीं अब साथ मेरे।। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17...
प्रेम का सौन्दर्य
कविता

प्रेम का सौन्दर्य

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** प्रेम जज्बा है दिलों का मिलन है रूहो का कुछ पलों का आकर्षण नहीं गूढ़ता लिये है चाहतों का सीप में मोती का बनना बागों में कलियों का खिलना प्रेम की कोई सीमा नहीं मूरत में श्रद्धा की होना कृष्ण की मुस्कान है प्रेम राधा का देदीप्यमान है प्रेम प्रेम की कोई बंदिश नहीं मज़हब का इमान है प्रेम प्रेम पलकों पेे सजता है नयनो से झलकता है लबों पे तरन्नुम लिये बन रागिनी बज उठता है सुदामा का स्वाभिमान है आत्मा का अभिमान है सब विधाओं से अलग अध्यात्म का सोपान है मीरा की आन है द्रोपदी का सम्मान है भक्ति और शक्ति का सूचक सौन्दर्य का प्रतिमान है "मधु" से मधुर ध्यान है प्रेम माँ का दिया ग्यान है प्रेम आत्मा को परमात्मा से मिला दे पूजा का ऐसा विधान है प्रेम परिचय :-  मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्...
बरसात में भी कागज कमाने है।
कविता

बरसात में भी कागज कमाने है।

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** घटाएं आ गई, आसमा छा गई, और दिन भी आये सुहाने हैं, घटाएं आ गई, आसमा छा गई, और दिन भी आये सुहाने हैं, और एक पापा है, साहब जिन्हें आज भी इस बरसात में कागज कमाने है। घर आकर बच्चों को जब पापा ने खाना खिलाया होगा, हम बच्चों को क्या पता, पापा ने आज किस हाल में कमाया होगा। बच्चों के सपने पूरे हो, और रहने के लिए सुंदर घर भी बनाने है, बच्चों के सपने पूरे हो, और रहने के लिए सुंदर घर भी बनाने है, और एक पापा है, साहब जिन्हें आज भी इस बरसात में कागज कमाने है। आज फिर किसी ठीकेदार के आगे, पापा ने हाथ फैलाया होगा । पूरे दिन अपने लहू को जिसने, पसीने के रूप में बहाया होगा । बच्चों के लिए सुंदर कपड़े, और ढ़ेर सारे खिलौने लाने हैं, बच्चों के लिए सुंदर कपड़े, और ढ़ेर सारे खिलौने लाने हैं, और एक पापा है, साहब जिन्हें आज भी इस बरसात में कागज कमाने है। उन्हीं...
विरह की वेदना
कविता

विरह की वेदना

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ********************         रस- करुण, शांत। भाषा- तत्सम हिन्दी शब्द संयोजन। समर्पित- शास्वत पौराणिक पात्र हेतु। कर धर भटकते मौन कम्पित स्वर, दशा ज्यों मार्मिक। सती देह मृत स्थूल शिव, वो शास्वत भी पार्थिव।। मधुकर लताकर वट समूहों से व्यथा निज गा रहे। श्री राम सिय की वेदना सह अश्रु जनित सुना रहे।। प्रियतम पुनः मधुमास में आकर हमारी स्वास में। वंशी की देकर तान वृन्दावन सुसज्जित रास हो।। अनिमेष अपलक राधिका कुछ यूँ वो विरहाधीन है। निष्ठुर नियति के सामने मछली ज्यों नीर विहीन है।। विक्षिप्त, गिरती सी संभलती कौंध कहती हे!वरा । सर पीटती रोती विलापित भाव बेसुध उत्तरा।। दावाग्नि ज्वलित प्रतीत श्रावण की घटा प्रिय क्षोभ में। देवों के हित ले प्रीत भस्म, रति; अति विकल विक्षोह में।। व्यापक अनादि देव विह्हल, द्रवित अंतर श्री पतैय। व्याकुल विहंगम हंस, निर्झर नयन कालिन...
गणनायक गणराज
दोहा

गणनायक गणराज

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** एकदंत मूषक वाहन, गणनायक गणराज। गणपति वंदन आपको, सकल सुधारों काज। बुद्धि विधाता कृपाशर, गजानन महाराज। महागणपति लम्बोदर, गौरीसुत अधिराज। विघ्न विनाशक उमापुत्र, शुभ गुणकानन कविश। सिद्धि विनायक चतुर्भुज, भालचंद्र अवनीश। मंगलकरण क्षेमकरी, विघ्नहर विघ्नराज। प्रथम निमंत्रण नाथ को, पूरे करना काज। बाल गणपति महाकाय, बुद्धिनाथ गणराज। पहला वंदन आपको, विनायक विघ्नराज। विद्यावारिधि हेरम्ब, मंगलमूर्ति प्रमोद। वीरगणपति सिद्धिदाता, भीम भूपति सुबोध। रिद्ध-सिद्ध के दातार, नाव लगा दो पार। कृपा कर नाथ दीन पर, हो भवसागर पार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
कान्हा की कृपादृष्टि
कविता

कान्हा की कृपादृष्टि

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** जब छोटी छोटी बातों से ही, महाभारत हो जाती है तनिक द्वैष मोह त्रुटियों से ही, महाभारत हो जाती है, मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है जब फलीभूत हो अहंकार, मानवता होती तार तार अवशेष ना हो कोई उपचार, भूचाल तमस में करुण पुकार उत्ताल उफनती लहरों में भी, नौका पार हो जाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है धृष्ट सृष्ट अदृष्ट अणु, सृष्टि को आँख दिखाता है गुण तत्व विक्षोभ भय, प्रलय की अलख जगाता है उत्कृष्ट पृष्ठ में शक्ति कोई, सीमारेखा समझाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है भूलो मत तिल्ली चिनगारी से, बडी आग लग जाती है सहज मिलन मन ...
विद्वता वाग्मिता एवं विनम्रता की त्रिवेणी : साहित्यकार आचार्य श्यामनंदन शास्त्री
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विद्वता वाग्मिता एवं विनम्रता की त्रिवेणी : साहित्यकार आचार्य श्यामनंदन शास्त्री

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** विद्या ददाति विनयम् की साक्षात् साकार प्रतिमा, सर्जक मेधा एवं साहित्य- साधना के प्रतीक! हिंदी, संस्कृत एवं मगही के अधीती विद्वान, अप्रतिम ज्ञानगर्भित-शिष्यवत्सल प्राध्यापक, काव्यशास्त्र के प्रकांड विद्वान, गंभीर चिंतक, प्रखर वक्ता, सिद्धहस्त लेखक, उत्कृष्ट कवि, लघुकथा के पुरोधा तथा जरूरतमंदों के सहारा, एक सच्चे समाजसेवी एवं प्रगतिशील व्यक्तित्व के धनी मानवता के पैरोकार आचार्य श्यामनंदन शास्त्री अपने कर्म-वाणी-लेखनी और आचार-विचार-व्यवहार से स्वयं को आजीवन मांँ सरस्वती के सच्चे उपासक पुत्र सिद्ध करते रहे। अपने जीवन के अंतिम दिन (यानी प्रयाण-दिवस २५ अगस्त, २००४) तक इस सरस्वती-साधक ने १२ घंटों के प्रतिदिन के स्वाध्याय एवं लेखन के अकाट्य नियम में कोई परिवर्तन नहीं किया!! किशोरावस्था तक ही किशोर वय श्यामनंदन के स्वाध्याय का यह आलम था कि इनके पिता...
सत्यवादियों की बस्ती
कविता

सत्यवादियों की बस्ती

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सत्यवादियों की बस्ती में, झूठे भी मिल जाते हैं। देते अपने तर्क अनोखे, सच को झूठ बताते हैं। शब्दों के होते जादूगर, कथनों से मोहित करते। अपनी निजी कुटिल कल्पना, मानव-अंतस में भरते। मायावी शैली से मन में, सबके धाक जमाते हैं। देते अपने तर्क अनोखे, सच को झूठ बताते हैं। पत्थर को हीरा कहते वे, पीतल को कहते सोना। खांसी को क्षय रोग मानते, ज्वर को कहते कोरोना। अपने संभाषण के द्वारा, शब्द बाण बरसातें हैं। सत्यवादियों की बस्ती में, झूठे भी मिल जाते हैं। उनकी हाँ में हाँ कहते हैं, सीधे-सादे भोले जन। वे झूठी क़समें खाते हैं, जतलाते है अपनापन। चिकनी-चुपड़ी बातों से वे, सबके मन को भाते हैं। सत्यवादियों की बस्ती में, झूठे भी मिल जाते हैं। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•...
ऐसा क्यों, कब तक…???
कविता

ऐसा क्यों, कब तक…???

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मैं देख रहा हूँ युगों से कभी तुम पत्थर की शिला बन जाती हो तो कभी देकर अग्निपरीक्षा धरती में समा जाती हो कभी काट दी जाती है तुम्हारी गर्दन तो कभी अंगभंग की शिकार हो जाती हो। कभी भरी सभा में अपमानित की जाती हो तो कभी स्वार्थ वश हर ली जाती हो। कभी सधवा हो कर भी विधवा सा जीवन जीती हो तो कभी वरदान को श्राप सा झेल जाती हो। कभी बनती हो खिलौना लम्पटों का तो कभी स्वाभिमान के लिए जलती चिता पर बैठ जाती हो। कभी कुचल कर जला दिया जाता है तुझे तो कभी गर्भ में ही मार दी जाती हो। कब तक बनी रहोगी विनीता क्यो नही करती हो तुम, प्रश्न अहल्या, सिया, रेणुका मीनाक्षी, द्रौपदी, अम्बिका उर्मिला, कुंती, उर्वशी पद्मिनी, वामा। ऐसा क्यों, कब तक? ऐसा क्यों, कब तक? कितने सुंदर रूप है तुम्हारे माँ, बहन, बेटी पत्नी, सखी। फिर भी तुम स्त्री, होने का दंड पाती हो। परिच...
बाल विवाह
कविता

बाल विवाह

रुमा राजपूत पटियाला पंजाब ******************** एक नन्ही सी कली। एक गांव में पली। घर की अट इक लौटी बेटी, जहां बाल-विवाह की प्रथा चली। हो ग‌ई थोड़ी-सी बड़ी, आ गई मुसीबत की घड़ी। गुड़िया के साथ खेलती, अपनी सखियों के साथ, रहती कुछ न बोलती, जो कहते, वो करती। दस वर्ष की आयु में, बैठा दिया विवाह के मंडप में, खेल कहकर करा दिया विवाह, उस लड़के के साथ में दोस्त कहकर। भेज दिया माता-पिता ने अपनी बेटी को, जहां नहीं जानती थी किसी को, कह दिया माता-पिता ने अपनी बेटी को, मिलेगी बहुत खूब सारी खुशियां तुझ को। पता नहीं थी उस को कोई दुनियादारी, जो सौंप दी इतनी बड़ी जिम्मेदारी। कर दी उसकी शादी, हो गई जिंदगी की बरबादी। परिचय :- रुमा राजपूत निवासी : पटियाला पंजाब घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
पगली
लघुकथा

पगली

माधवी मिश्रा (वली) लखनऊ ******************** मैने उसे स्कूटर पर बैठाया और मुर्गीफार्म का पता पूछते परसुराम मन्दिर पहुच गयी। ये वही जगह थी जहाँ से मै उसे लेकर घर गयी थी। वापस लाते हुए उसकी मूक व्यथा का अनुमान लगाना एक भयावह कल्पना सी लगी वह नही जाना चाह्ती थी मेरा घर छोड़ किन्तु एक क्रूर निर्मम सामाजिक संरचना की अंग होने के कारण मुझे ये अपराध करना ही पडा। कुछ देर तक तो मुझे स्वयं पर ग्लानि की अनुभूति होती रही। सोचती रही की मै उसे ले ही क्यो गयी जब रख पाना कठिन था किन्तु ऐसा नहीं जब मैं अकेले इतने बड़े-बड़े निर्णय लेती हूँ तो ये निर्णय भी किसी के आदेश से थोड़े ही लेना था अतह ले गयी। एक गरीब दुखी भूखी प्यासी माँ के अंदर की चीत्कार ने मुझे हिला के रख दिया था। मैं सोचती गयी, सोचती गयी, पण्डित जी से मैने मन्दिर पर दुर्गा नवमी का हवन कराने के बाद किसी घरेलू नौकरानी दिलाए जाने की बात को कहा...
बाबाओं के चक्कर में…
कविता

बाबाओं के चक्कर में…

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** भगवान बनकर दुनिया हिलाने की बात करते है। आत्मा को परमात्मा से मिलाने की बात करते है। बड़े बड़े आश्रम है जो कई एकड़ में समाया है। आलीशान बंगले जिसमे स्वमिंग पूल बनाया है। कई बड़े शहरों में इनके वीआईपी तो फ्लेट है। जिसमे लगे कैमरे वो लेडीज़ के टॉयलेट है। कुछ अंधभक्त मूर्खता की तो हद पार करते है। खुदका ईश्वर छोड़ बाबाओ पे ऐतबार करते है। पता नही क्या मिलता है वहां क्या लेने जाते है। सत्संग के नाम पर हजारों खर्च करके आते है। ज्ञान लेने के लिए क्या दान भी ज़रूरी होता है। ईश्वर को पाने के लिए केवल ध्यान ज़रूरी होता है। स्वयं के लिए आस्था आपके दिल मे जगा देते है। और धीरे धीरे वो आपके ईश्वर को ही भुला देते है। आप गए तो तो पूरे परिवार को भी बुला लेते है। मनको परिवर्तित करने में ये जगजाहिर होते है। ये मूर्ख बनाने में तो जबरजस्त माहिर हो...
अपना-अपना करता है मन
कविता

अपना-अपना करता है मन

अमित प्रेमशंकर एदला, सिमरिया, चतरा (झारखण्ड) ******************** अपना-अपना करता है मन कुछ नहीं है अपना रे। धन दौलत और गाड़ी बंगला ये सब है एक सपना रे।। समझ रहा तू अपना जिसको होगा कभी ना अपना रे। हो जाए ग़र तेरा तो फिर आकर मुझसे कहना रे।। दो ग़ज कफ़न, दो बांस की डंडी कुछ दुर तक हीं अपना रे। दुश्मन तो दुश्मन हीं ठहरे अपने हुए ना अपना रे।। पिता, पुत्र हो भाई-बंधू कोई नहीं है अपना रे। छोड़ तुझे वो निर्जन थल में लौटेंगे वो दफ़ना रे कहे अमित की कलम हमेशा राम नाम बस अपना रे। अपना-अपना करता है मन कुछ नहीं है अपना रे....।। परिचय :- अमित प्रेमशंकर निवासी : एदला, सिमरिया, चतरा (झारखण्ड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्र...
आओ सब मिलकर बनाएं- “राष्ट्रवादी सरकार”
कविता

आओ सब मिलकर बनाएं- “राष्ट्रवादी सरकार”

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** जब जब होता, झूठ स्वीकार, तब तब होता, सच का शिकार, आम आदमी आज भी लाचार, आम आदमी था कल भी लाचार, मुद्दे से भटकना इनका संस्कार, मुद्दे से भटकाना उनका कारोबार, एक खैरात पाने को बेइंतहा बेकरार, दूजा इसे बांट करता सत्ता पर अधिकार, समस्या जटिल लेकिन सरल उपचार, सबसे पहले आओ बदलें अपना विचार, देश हमारा, हमें किसका इंतजार, जाति धर्म की बेड़ियों पर करना होगा वार, नफरत फैलाने वालों का करना होगा बंटाधार, सबको शिक्षा, हर हाथ में रोजगार, कानून का राज, फले फूले व्यापार, सीमा सुरक्षित, राष्ट्रीय अखंडता रहे बरकरार, तुष्टिकरण का नहीं हो घृणित संस्कार, रिश्वतखोरी पर हो अंकुश, बन्द करे कालाबाजार, सेवा की आड़ में नहीं करे भ्रष्टाचार, आओ सब मिलकर बनाएं, ऐसा राष्ट्रवादी सरकार... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : ...
आखिर क्यों…
लघुकथा

आखिर क्यों…

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** उड़ चली दूर बहुत दूर सपनो के झूले मे, बैठी सूरज की किरनो पर सैर करती, मंद हवा के झोको सी बहती, तितली सी मडराती, ऑखो मे हजारो बसे सपनो को साकार करती, किसी के कोमल स्पर्श को महसूस करती, अपने हर सबाल का सकारात्मक उत्तर पाती, अपने नसीब पर इतराती लहराती बलखाती चलती चली गई, चलती चली गई वह मोहक अहसास एक चुम्बक सा कदमो को जबरन खीचता चला गया, बढ़ते गये कदम। कि अचानक कदम ठिठक गये टकरा गये किसी पत्थर से ..... कहां? कहां है वह स्वप्न संसार? मै तो वही की वही थी, टूटी बिखरी हताश, ओह! तो यह स्वप्न था? पर क्यो? मैने अपने हाथो की लकीरों को ध्यान से देखा वह बदली नहीं थी, फिर यह स्वप्न कैसा?.. फिर? फिर भ्रम, भ्रम था यह सब? ओह रब! क्यो तोड़ता है इतना, क्यो देता है इतनी चुभन? क्या इतना तोड़कर भी तेरा मन नही भरता? या मुझ जैसा कोई और नही मिलता जो बार-बार बहारो का...
तस्वीरें… राजनीति की
कविता

तस्वीरें… राजनीति की

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** सियासत की, ये राहें उलझी हुई है, एक दूसरे से ठीक वैसे ही, जैसे रेलों की पटरियां, एक दूसरे से कश्मकश जैसी उलझी हो दावे किए गए, भर-भर के इतने बड़े-बड़े कि विशाल महासागर उस विशालता से शर्मा जाये पर, हकीकत की, ये बुनियाद उतनी ही कमजोर है जितनी एक गरीब, देख ले अपने छत का ख्वाब आज के वक़्त में.. नवीनीकरण का नशा इतना तेज चढ़ा उन्हें अपने घर, पुराने लगने लगे पुरानी, वो तस्वीरें इस कदर बेकार हो गए अब उनपर डिजिटल, तस्वीरें सजने लगे गुलामी की बेड़ियां जकड़ी थी, इस कदर जैसे लोहे को जंग, जकड़े रहता है पर, वो गुलामी की जंजीरें तोड़ दी गयी आज, हुआ भारत लेकिन, इस आजादी की आड में विषैली, वो नफ़रतें घोल दी गयी आत्मनिर्भरता बहोत चर्चा है, आजकल इसकी असहायों की, लाठी तोड़कर उन्हें, आत्मनिर्भर बनाया जा रहा.... उन लाचार...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

पवन जोशी रामगढ़- महूगांव महू (म. प्र.) ******************** नदी सी है ज़िंदगी, बह रही है बहने दे। मोड़ है चढ़ाव है उतार है, बहाव है तो बहने दे।। आज जी, तु कल को कल पे छोड़ दे। जीतले अतित को, इक नया तु मोड़ दे।। शुन्य हो जरा हां ढीठ बन। तु खुद से खुद का मीत बन।। लोक लाज रहने दे लानते कह रही है कहने दे। नदी सी है ज़िंदगी, बह रही है बहने दे।। है तय जीत हार तो बस जूझना तो है। खुद जवाब है तु हर सवाल का फिर भी बूझना तो है।। व्यर्थ लगे भले, तु कुछ नियति की योजना तो है। दर्पणो सा हो घर तेरा क्या पर खुद मे खुद को खोजना तो है।। कुछ बची राख मे तपन अभी ढक रही है रहने दे। नदी सी है ज़िंदगी, बह रही है बहने दे।। क्या खुद बुना था तन नहीं। मिटा सकूं वो हक पवन नहीं।। स्थिति परिस्थिति सदा सब के संग एक सी रही। बस सुरतें सीरतों के सगं वक्त पे बदलती रही। हुआ सिकंदर वही जो उससा उसमे ढला। मनो जीत के रगंम...
ऐसा हिंदुस्तान बनाओ
कविता

ऐसा हिंदुस्तान बनाओ

मोहम्मद मुमताज़ हसन रिकाबगंज, (बिहार) ******************** आपस में न कोई भेदभाव रहे सबसे सबका यहां लगाव रहे जात पात की दीवारें गिर जाएं प्रेम का ऐसा गीत सुनाओ ऐसा हिंदुस्तान बनाओ हिन्दू-मुस्लिम का न झगड़ा होवे हर हिंदुस्तानी यहां तगड़ा होवे सदियों से रहें हैं मिलकर यह- जन-जन को सन्देश सुनाओ ऐसा हिंदुस्तान बनाओ अमीर गरीब की खाई पट जाए गरीबी की लम्बी रेखाएं घट जाए प्रगति की बड़ी लकीरें तुम- खूब श्रम से आज बनाओ ऐसा हिंदुस्तान बनाओ!! परिचय : मोहम्मद मुमताज़ हसन सम्प्रति : लेखन, अध्ययन निवासी : रिकाबगंज, टिकारी, गया, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
बाकी रह गया…
कविता

बाकी रह गया…

अंशिता दुबे लंदन ******************** इश्क़ में भिगोना बाकी रह गया, तेरी रातों को जगाना बाकी रह गया। गजलें तो हो गयी मुक्कमल, पर तेरे लिये गुनगुना बाकी रह गया। फिजाओं को साथ लेकर आयें, पर तेरा सूनापन बाकी रह गया। तस्वीरों से ख्वाब सजाकर लाये, पर तेरे संग मुस्कुराना बाकी रह गया। खेल तो आए तेरे संग बाजियां, पर तुझको सताना बाकी रह गया। भीग तो आए रिमझिम सी बूदों में, पर तेरे सावन का पहरा बाकी रह गया। अपनों से मिल के तो आ गये, इक तुम से ही मिलना बाकी रह गया। खुद को तुम्हारी महफिल से आजाद कर लाएं, पर तेरे यादों का सेहरा बाकी रह गया। परिचय :- अंशिता दुबे निवासी :- लंदन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...
अक्षत रहो मीत
कविता

अक्षत रहो मीत

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** अखण्ड सौभाग्य व्रत तीज पर विशेष साँसों की डोरी को ताने मांगूं तेरी लंबी सांसे खुद पर लूँ मैं तिरी बलाएँ तुझ पर कोई आँच न आए बनी मैं तो सावित्री जैसी यमराजों की ऐसी तैसी सुख साज त्याग चली सिय सी जीवन क विष खींचूँ अमिय सी ईश्वर से नित माँगूँ मीत तुझ संग निबहें राग के रीत प्रार्थना सदा यही करूँ मैं तेरी अँखि आगे निबटूँ मैं जब तक रहूँ जीवन में संग कोई तुझे कर पाए न तंग तेरे सारे दुख चुन लूँ मैं खुशियाँ राहों में बुन दूँ मैं अक्षत रहे तू जीवनसाथी तू मेरे जीवन की बाती परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच प...
चींटी
कविता

चींटी

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** एक नन्ही सी चींटी एक नन्ही सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। जैसे ये कतार में चलती है सिखा जाती है अनुशासन में रहना। एक नन्ही सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। मुंह में लेकर दाना जब चढ़ती है दीवारों पर, सिखा जाती है परिश्रम करना। एक नन्ही सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। जब गिरती है दीवार से तब उठकर संभलना फिर चल देना और दीवार पर चढ जाना, सिखा जाती है कैसे संघर्ष करना। एक नन्ही सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। काम जब कोई हो बड़ा तब कई चींटियों को इकट्ठा करना, तब सिखा जाती है मिलकर बोझ उठाना। एक नन्ही-सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। मौसम विज्ञान की होती है बड़ी ज्ञाता, जब होती है कोई भूगर्भीय हलचल, या कोई और हो प्राकृतिक आपदा, तब कैसे ये अपने अंडो को लेकर सुरक्षित स्थान पर दौड़ी चली ...
भारत थाम लिया
कविता

भारत थाम लिया

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** चक्रवात तूफान, कोरोना कहर, और बदमिजाजों की भाषा देखकर सृजित हुई कविता। जज़्बों ने एहसासों से लड़ना सीख लिया देश ने भी तूफानों से लड़ना सीख लिया। कभी बेगाने अपनों से ज्यादा अच्छे होते फिर चलित कथन है अपने तो अपने होते बेगानों का निःस्वार्थ समर्पण देख लिया जज़्बों ने एहसासों से लड़ना सीख लिया। शानो शौकत चकमक गाथा शाहों की सहयोगी योद्धा व्यथा है उन बाहों की मजदूर कृषक गरीब आहों को परख लिया जज़्बों ने एहसासों से लड़ना सीख लिया। धरातल सागर चोटी पर सेवा की बरसातें नियम तोड़ते जाहिलों की कुत्सित सौगातें कड़े कानून से अब बहुतों ने सबक लिया जज़्बों ने एहसासों से लड़ना सीख लिया। जन्म मृत्यु वाली माटी का यही अफसाना कुछ तो ऐसा हो भविष्य याद में रह जाना माटी पे छाया प्रकोप विध्वंस जान लिया जज़्बों ने एहसासों से लड़ना सीख लिया। घर रहकर जीवन आनंद बहुत अनोखा था व...
बिरहिन के दरदि
कविता

बिरहिन के दरदि

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** उमड़ि घुमड़ि बदरा हरसत हैं मेघनीर अमरित बरसत हैं कुलकित अबनि हरियर दरसत हैं अब आबा पिया मोर मन तरसत हैं कारी बदरिया मोहि डर लागय कहु अंगना कहूं भीतरेय भागै जब ते गयै मोरि सुधि नहि लीन्हि अमाबसि चंद सम दरसन दीन्हें दादुरि टेर कूक पपीहा कै ककरी कस हैय हाल हिरदय कै बूंद मघा हायगोली कस लागै पपीहा बैन सरसिज उपजाबै केसे कहू सखि बाति न मानै बिरहनि दरदि सहय ऊहै जानैं सुआती कस तकै नयन रहति हैं उमड़ि घुमडि बदरा बरसत हैं परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...