खाली स्थान
राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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गंगा की याद आते ही मन पूरी तरह उचट जाता था। सभी कुछ था मेरे पास। आज तक मैं जीवन में दौड़ ही रहा था। कभी डिग्री पाने के लिए, कभी नौकरी पाने के लिए। मैं तो अपने घर में ही खुश था। अपने गाँव में, अपने खेतों में, बाप-दादा की तरह। मैं भी खेती करना चाहता था। मुझें बचपन से ही खेत-खलिहान अपनी तरफ खीचते थे, लहलहाती फसलें, माटी की भीनी-भीनी सुगंध। ऐसा सादा जीवन ही मुझें पसन्द था। पर उसकी जिद के आगे मै नतमस्तक हो गया था। वही चाहती थी कि मै पढ़-लिख कर बड़ा आदमी बनू। जब भी पीछे मुड़कर उसका बलिदान देखता हूँ, परेशान हो उठता हूँ। हमेशा मेरे पीछे लगी रहती थीं। जब भी मै विदेश जाने की बात पर टाल मटोल करता। उसका प्यार भरा स्पर्श, अपनेपन का अहसास मुझें अन्दर तक सहला जाता। उसके इस प्यार भरे अहसास ने ही मुझें विदेश जाकर डॉक्टरी करने को मजबूर कर दिया था। उसी का प...























