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गरमकोट
लघुकथा

गरमकोट

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** माँ ने दिवंगत पिता के गरम कोट को सहलाकर भारी मन से अलमारी बंद करते हुए पूछा- बेटा सब तैयारी हो गई क्या? सुलभा इंतजार कर रही होगी। हाँ माँ..उसने मामेरा मे देने के सामान पर एक नजर डालते हुए कहा..तभी फोन की घंटी बज उठी...सुलभा का फोन था....कब पहूँचोगे भैया...उधर से सुलभा व्यग्रता से कह रही थी!.... बस निकल ही रहे है.... चलो बेटा आज तुम्हें पिता और भाई की दोहरी जिम्मेदारी निभानी है....माँ की डबडबाई आँखे उससे छुपी न रह सकी। नए कोट को सुटकेस में तह कर रखते हुए...वह उठा और अलमारी से निकाल पिता का कोट पहन लिया। देखते ही माँ बोली..ये क्या? इतना पुराना कोट....शादी में ... हाँ माँ बहन को पापा की कमी महसूस न हो इसलिए मैने आज ये कोट पहन लिया है... शहनाईयाँ बज उठी थी....माँ भावविभोर थी। और आरती की थाली लिए बहन पिता के रूप मे भाई को देखकर फूली नही समा रही थी...
आज का नेता
कविता

आज का नेता

राजेन्द्र यादव सरैंया, नरोसा जनपद- लखनऊ ******************** कुर्सी के ही लिए यहां पर सब हथकंडे होते हैं। नारेबाजी शोर शराबे बैनर झंडे होते हैं। लोकतंत्र की मर्यादा की उनको है परवाह नहीं। जिनकी काली करतूतों से जनता है आगाह नहीं। जनता की नजरों में इनकी लंबी-लंबी खाईं है। बांट बराबर खाने वाले सब मौसेरे भाई हैं। बड़े निराले कर्म है इसके गिरगिट हैं मंडूक यही। परे बुद्धि से जानों इनको गोली हैं बंदूक यही। संघर्ष सदन का नाता है केवल जनता की हमदर्दी। छुट्टे सांड़ राजनीति के करते हैं गुंडागर्दी। जनसेवक हैं बड़े देश के बेतन एक रुपैया है। उपहारों में सोना चांदी धन की आमद गैया है। स्वर्ण पात्र में मदिरा ऊपर पावनता में गंगे हैं। सातों के सम्राट अहाते लुच्चे और लफंगे हैं। जोड़ तोड़ उपकरण सजाते राजनीति की खेती में। मरुस्थल में नीर बहाए भीति उठाए रेती में। भृष्ट आचरण के जनसेवक हैं हमको स्वीका...
तू कहाँ जा चला जा रहा
कविता

तू कहाँ जा चला जा रहा

प्रकाश पटाक सुंद्रैल सतवास (देवास) ******************** सम्मान की खोज में, लालचों के बोझ में, अहंकार को लादकर, अपनो को बिसारकर, तू कहां चला जा रहा?, मैं समझ न पा रहा। अनंत आशाएं लिए हुए, मर-मर कर जिए हुए, भूख-प्यास त्याग कर, भला बुरा न विचार कर, तू कहां चला जा रहा?, मैं समझ न पा रहा। कर्तव्यों की साँझ हुई, भावनाएं बांझ हुई, मुखौटों कों ओढ़कर, स्वयं को कही छोड़कर, तू कहां चला जा रहा?, मैं समझ न पा रहा। कामनाओं को छोड़कर, स्वयं को तू जान ले, आनंद की खोज में भव को बिसार दे, मत भटक संसार में अहं पर तू चोट कर, भौतिकता की चाह में गर्त में क्यों जा रहा। तू कहां चला जा रहा?, मैं समझ न पा रहा। परिचय :- प्रकाश पटाक पिता : श्री गजेंद्र पटाक माता : श्रीमती ललिता पटाक निवासी : ग्राम. सुंद्रैल तहसील- सतवास जिला- देवास घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी...
मेरा वजूद
कविता

मेरा वजूद

दीपमाला पांडेय खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************** सोचती हूं ऐसा वजूद से अनोखा रिश्ता है मेरा आकलन कितना भी कर लूं मां अंत में चेहरा दिखता तेरा.... आज उम्र के उस पड़ाव में हूं जिस में आकर चाह कर भी मैं रुक ना सकी तेरे सिवा दर्द मेरा कोई आंख पढ़ ना सकी.... जीवन रूपी समंदर में हर कोई मजे से डूब रहा अपने वजूद को अनंत गहराइयों में ढूंढ रहा.... तूने ही तो स्वाभिमान से जीना सिखाया अपने वजूद को पाना सिखाया... तो क्यों किसी के सहारे जिऊं लाचारी बेबसी का घूंट पीऊ अब मौन क्यो रहूं अपने अधिकारों के लिए लड़ूं.... क्योंकि आज भी अगर अपना वजूद ढूंढने निकल जाऊं तो खो जाऊंगी दुनिया की भीड़ में.... और ताउम्र जूझती रह जाऊंगी अपने ही वजूद की तलाश में... परिचय :- दीपमाला पांडेय निवासी : खंडवा मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
सावन
कविता

सावन

सौरभ पाण्डेय ओमनगर सुलतानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** सावन आया है, आयी है बरसात नाचों गवों, ये है सावन की रात। देख झूम उठा है, मन सबका इस सावन की, बरसात में भैया। सूखे पेड़ भी हरे हो गए रे भैया, इस सावन की बरसात में। मोर ने भी पंख उठा दिए है, इस बारिश के सावन में। खिल उठे है, किसान के चेहरे, देख कर सावन की बूंदों को। कुछ महीनों का, मौसम है रे भैया, आयो मिलकर, खुशी मनायेंगे। झूमेंगे गये नाचेंगे रे भैया, सावन की खुशी मनायेगी। परिचय :- सौरभ पाण्डेय निवासी : ओमनगर सुलतानपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी...
कविता

सावन का महीना

राज कुमार साव पूर्व बर्धमान (पश्चिम बंगाल) ******************** सावन का पवित्र महीना है आया शिव भक्तों के चेहरों पर मुस्कान है लाया बम-बम भोले और हर -हर महादेव के गूंज चारों दिशाओं में है छाया शिव भक्तगण जोश से भरे कंधे पर कावरिया लेकर गंगा जल से भगवान शिव को जलभिषेक है कराया भोले भंडारी को भाता है सावन सब शिव के भक्तगण मनोवांछित फल पाता।। परिचय :- राज कुमार साव निवासी : पूर्व बर्धमान पश्चिम बंगाल घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीज...
जीवन-शिक्षण
कविता

जीवन-शिक्षण

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मेरे छोटे नौनिहालो- तुम चिरंजीवी रहो। तुम्हे बताता हूं जीवन जीने की कला। श्रम से पसीने से मांशपेशियों को शरीर को मस्तिष्क को स्वस्थ बनाना धमनियों में शुद्ध रक्त की प्रवाह के साथ फेफड़ो में। शुद्ध वायु एवं मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखना कठिन समय से जूझना मै समझता हूं जीवन का। अभी लंबा सफर है कही उचे टीले तो कहि पथरीली सतह है। कही समंदर की लहरें तो भयावनी खण्डहरे। कही सिसकती राते कही मरोडती उदर आते कही चांदनी का मातम कही अंधेरी राते मै समझता हूं साहसी कर्मशील होते है समय की वॉर से झटके या बयार से फिसलते गिरते है मचलते है वे पुनः लक्ष्य की ओर कूच कर जाते है। इसलिए एक नही सैकडो कहानिया उनके जीवन मे बनते है। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इं...
गये उनको ज़माना हो गया
ग़ज़ल

गये उनको ज़माना हो गया

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. गये उनको ज़माना हो गया है। ये तन्हा आशियाना हो गया है। ये आँखे देखती है उस तरफ़ ही, जहाँ उनका ठिकाना होगया है। उसे हम आज तक ओढ़े हुए हैं, जो रिश्ता अब पुराना हो गया है। जो पहले सब हमारी ओर से था, वो अब उनका बहाना हो गया है। वहाँ भी रोशनी कम हो चली है, यहाँ भी टिमटिमाना हो गया है। यूँ चहरे पर ख़ुशी को आज़माना, हमारा मुस्कुराना हो गया है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय ए...
भारत माँ के वीर
कविता

भारत माँ के वीर

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** हे भारत के वीरों तुम भारत की लाज बचाए रखना, जो लाल हुए कुर्बान उनकी यादों के दिये जलाए रखना। इस जग के नीले अम्बर में, तिरंगे को लहराए रखना, भारत माँ के श्री चरणों मे अपना शीष झुकाएं रखना। आप भारत के रखवाले हो, सबसे बड़का दिलवाले हो। कुछ फूल चमन पर डाले हो, वतन की शान संभाले हो। है विनती सीने में अपने, संघर्ष के दीप जलाएं रखना भारत माँ के श्री चरणों मे अपना शीष झुकाएं रखना। जब आप सीमा पर जागते हो, तो पूरी देश चैन से सोती है। जब करते रक्षा हम सबकी, तभी दीप-दशहरा होती है। तुमसे ही है देश मेरा, इस देश को तुम सजाए रखना, भारत माँ के श्री चरणों मे अपना शीष झुकाएं रखना। वीर भगत सिंह को याद करो, संघर्ष भरी फरियाद करो। जो दिखाए आँख अब वतन को, उस दुश्मन को बर्बाद करो। दुश्मन की दिल-दिमाग, तुम अपनी ख़ौफ मचाए रखना, भारत माँ के श्री चरणों मे अपना...
वो कहती है
कविता

वो कहती है

अमरीश कुमार उपाध्याय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** वो कहती है मुझपे भरोसा मत रखना रखना मगर जमी पर पाव मत रखना, मैंने पूछा तो किधर जाऊ सारा समंदर तुम्हारा है..... पर समंदर के किनारे पाव मत रखना वो कहती है मुझपे भरोसा मत रखना.....। वो आयी ही थी चली जाने को मुझको मुझसे अलग कर जाने को, लड़ने लगा हूं खुद से कि बिछड़ने लगा हूं इसका भी भरोसा मत करना वो कहती है मुझपे भरोसा मत करना....।। परिचय :- अमरीश कुमार उपाध्याय निवासी - रीवा म.प्र. पिता - श्री सुरेन्द्र प्रसाद उपाध्याय माता - श्रीमती चंद्रशीला उपाध्याय शिक्षा - एम. ए. हिंदी साहित्य, डी. सी. ए. कम्प्यूटर, पी.एच. डी. अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानि...
छतरी
कविता

छतरी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आज आँख भर आईं पिता की जब याद आई बारिश की बूंदों ने दरवाजे के पीछे टंगी पिता की छतरी की याद दिलाई. संभाल कर रखी थी माँ ने छतरी नए जमाने के रेन कोट में बेचारी छतरी की क्या बिसात. मगर ये यादों के दर्द को वो ही महसूस कर सकता जिनके पिता अब नही है बेजान छतरी बोल नही सकती यादों में सम्मलित होकर आंखों से आँसू छलकाने का दम जरूर रखती है जीवन की आपाधापी से परे हटकर दो पल अपनो को जरा याद कर देखे क्योकि ये बेजान बाते नही है यकीन ना होतो फोटो एलबम के पन्ने उलट कर देखे आंखों से आँसू ना झलकें तो दुनिया और रिश्तों से विश्वास उठ ही जाएगा इसलिये अपनो की यादें औऱ उनकी चीजो को संभाल कर रखें ये ही जीवन मे उनके न होने पर उनके होने का अहसास ता उम्र तक कराती रहेगी जैसे पिता की छतरी. परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि...
उपन्यास : मैं था मैं नहीं था : भाग- २५
उपन्यास

उपन्यास : मैं था मैं नहीं था : भाग- २५

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** यह सब बातचीत सुन कर मैं तो बहुत ज्यादा बेचैन हो गया। मुझे तो यहां रहना ही नहीं था और दादा मुझे यहां बुरहानपुर में सुशीलाबाई के चुंगल में रखने का निर्णय लेकर अलग हो चुके थे। क्या करना चाहिये यह समझ में ही नहीं आ रहा था। यहाँ से निकल कर ग्वालियर में नानाजी के पास कैसे पहुंचा जाय इसका कोई मार्ग दिखाई नहीं दे रहा था। माँजी और अण्णा दोनों रसोई में भोजन की तयारी कर रहे थे और दादा और सुशीलाबाई दोनों कमरें में थोड़ी देर बातचीत करते रहे। सबका भोजन निपटने के बाद दादा उज्जैन जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने मुझे और सुरेश को अपने पास बुलाया और बोले, ‘बाळ-सुरेश, मैं अब उज्जैन के लिए निकल रहां हूं। तुम दोनों यहां ठीक से रहना। ठीक से अपनी पढ़ाई करना। माँजी को और ताई को परेशान नहीं करना। वें जैसा कहें वैसा करना। दोनों का कहा मानना। रहोगे ना ठीक से?‘ दादा न...
गांव में घर को बसाना है
कविता

गांव में घर को बसाना है

राशिका शर्मा इंदौर मध्य प्रदेश ******************** शहर हुए पराए अब तो गांव में घर को बसाना है अपनी संस्कृति को फिर एक बार अपनाना है अपनेपन का जहां ठिकाना है किसी से कलेश किसी से द्वेष रख मन को नहीं सताना है अबकी बार तो सीधे प्रेम युक्त नगरी को जाना है जहां डंड, दर्द, कष्ट का प्रवेश निषेध है दया भाव का परिवेश जहां पर शेष है अपनेपन की परिभाषा जहां दिखाई जाती है जहां मां बेटी को संस्कार संस्कृति का मोल सिखाती है जहां वेश भूषा साधारण मां अपनी बेटी को पहनाती है जहां बड़ों का आदर ना करने पर छोटों को लज्जा आ जाती है जहां जात पात का भेद नहीं हर एक को इज्जत से फरमाया जाता है हर भाई अपनी बहनों को सच्ची झूठी बातों का ज्ञान कराता है जहां बड़ी बहन को मात मानते भाई पिता बन जाता है परिचय :- राशिका शर्मा पिता : सुदामा शर्मा माता : मंजुला शर्मा निवासी : इंदौर म.प्र घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि र...
मत्स्य न्याय
कविता

मत्स्य न्याय

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कमसिन भेड़ो का गोश्त चाव से खा रहे है भेड़िए आजकल रोज बेख़ौफ़ दावतें उड़ा रहे है भेड़िए डर लगे भी उन्हें तो किसका रखवाला दोस्त बना रहे है भेड़िए भेड़ें किस पर करे भरोसा उनकी खाले ओढ़ रहे है भेड़िए गड़रिया है गफलत में ये जान रहे है भेड़िए शहर में भी है जंगल का कानून भलीभांति समझ रहे है भेड़िए परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ ...
योग आसन…स्वास्थ्य साधन
कविता, योगा, स्वास्थय

योग आसन…स्वास्थ्य साधन

लेखक- अज्ञात ********************   सुन लो सुन लो काम की बात योगासन के बहुत हैं लाभ। तन मन रख्खे निर्विकार करें रोज सूर्य नमस्कार अंतर्मन मे हो अनुशासन जब करते हम पद्मासन भोजन का हो अच्छा पाचन करें नित्य हम वज्रासन करें फेफड़े अच्छा काम रोज करेंगे प्राणायाम ओज से मस्तक दमकाती बड़े काम की कपालभाति स्नायुओं मेरहे तरी जब हो गुंजित "भ्रामरी लंबाई का पाता धन नित्य करें जो ताड़ासन रीढ़ मे आए लचीलापन करलो भैय्या हल आसन सर्व अंग पुष्टि का साधन होता है सर्वांगासन जोड़ों का अच्छा संचालन करते जब हम गरुड़ासन उदर अंगो का हो नियमन जब हम करें मयूरासन याद दाश्त होती अनुपम जो नित करता शीर्षासन कमर लचीली का कारण बनता है त्रिकोणासन चौड़ी छाती का साधन रोज लगाओ दण्डासन मन का होता शुद्धि करण जब लगता है सिद्धासन हो थकान का पूर्ण शमन अंत मे कर लो शवासन और अंत मे रख लो याद यम नियमबिन बने...
यादे माँ की
कविता

यादे माँ की

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** यूं ही पडे है चावल के दाने छत पर जेसे डाल दिया करती थी माँ आंगन पर जब झुंड मे आकर चहक- चहकर चुग जाती सारे दाने वो प्यारी-सी मैना और गौरेय्या देख सुकून मिलता था माँ को जब नाचती थी चिड़ियाँ आँगन आकर। अब तो बस यादे बनकर रह गई वो सारी बाते जब माँ पाबंदी लगाती थी उनकी घोंसलो को छूने पर। दिखती नहीं अब वो चिड़ियाँ जो आया करती थी आँगन पर। अब तो किताबो के पन्नो मे कैद हो गई मैना और गौरेय्या की कहानी। कहा जाता है लुप्त हो गई सारी चिड़ियाँ इस मानव जीवन से। कभी-कभी लगता माँ के साथ चली गई सारी चिडियाँ आस्माँ की सेर पर भुल गई मुझे मेरी माँ चली गयी मुझे अकेला छोड़ कर। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिच...
वादा करके निभाया करो
गीत

वादा करके निभाया करो

रवि कुमार मौर्य जमोलिया, बाराबंकी (उ.प्र.) ******************** इस तरह से न हमको बुलाया करो। कम से कम वादा करके निभाया करो।। जब हुई शब तो दिल ये धड़कने लगा। रुखसती देख कर क्यूँ तड़फने लगा।। कसमकश में न रखकर सताया करो, कम से कम वादा.....................।। दिल को मेरे ये एहसास होने लगा। जाने क्यूँ तू मेरा खास होने लगा।। आस दे सांस तुम न ले जाया करो, कम से कम वादा...................।। हम तुम्हारे बने तुम हमारे बने। दिल मिले खूबसूरत नजारे बने।। दूर रहकर न अब दिल दुखाया करो, कम से कम वादा....................।।   परिचय :- रवि कुमार मौर्य पिता : एडवोकेट मनोज कुमार मौर्य निवासी : ग्राम- जमोलिया, बाराबंकी (उ.प्र.) उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंद...
अदायें
कविता

अदायें

अवधेश कुमार 'कोमल' जमोलिया, बाराबंकी (उ.प्र.) ******************** तेरे दर्शन के प्यासे नैना, तेरे बिन मिले ना चैना तेरी सूरत इतनी भोली मदहोश हो जाए टोली तेरी ये ऑख मिचोली बन्द कर देती मेरी बोली मुश्किल कर देती मेरा जीना तेरे बिन मिले नाही चैना तू है बड़ी सुहानी लगती मेरे लिए खुद को सवांरती मिलने पर तुम बहुत नखरती तू दिन-रात हमें निहारती दिल घायल करते तेरे दो नैना तेरे बिन मिले ना चैना मिलकर यूँ तेरा शरमाना शरमा के यूं नयन झुकाना फिर नयनों से तीर चलाना अधरो से फिर जाम पिलाना अब तेरे बिन सूने दिन-रैना तेरे बिन मिले ना चैना   परिचय :- अवधेश कुमार 'कोमल' पिता : शिव बालक यादव निवासी : जमोलिया, बाराबंकी (उ.प्र.) उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ...
जल की पाती
कविता

जल की पाती

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जल कहता है इंसान व्यर्थ क्यों ढोलता है मुझे प्यास लगने पर तभी तो खोजने लगता है मुझे। बादलों से छनकर मै जब बरस जाता सहेजना ना जानता इंसान इसलिए तरस जाता। ये माहौल देख के नदियाँ रुदन करने लगती उनका पानी आँसुओं के रूप में इंसानों की आँखों में भरने लगती। कैसे कहे मुझे व्यर्थ न बहाओ जल ही जीवन है ये बातें इंसानो को कहाँ से समझाओ। अब इंसानो करना इतनी मेहरबानी जल सेवा कर बन जाना तुम दानी।   परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्...
खो न जाँऊ कही
गीत

खो न जाँऊ कही

संजय जैन मुंबई ******************** खो न जाँऊ कही, अपने के बीच से। इसलिए लिखता हूँ, गीत कविता आपके लिए। ताकि बना रहे संवाद, हमारा आप के साथ। और मिलता रहे सदा, आप सभी का आशीर्वाद।। दिल में जो आता है, मैं वो लिख देता हूँ। अपनी भावनाओं को, आपके सामने रखता हूँ। कुछ को पसंद आती है, कुछ का विरोध सहता हूँ। पर अपनी लेखनी को, मैं निरंतर रखता हूँ।। शिकायते है कुछ लोगों की, तुम विषय पर नहीं लिखते हो। कृपा विषय पर लिखे, और ग्रुप में प्रेषित करें। पर बनावटी विचारों को, मैं नहीं लिख पाता हूँ। और उनकी आलोचनाओ का, शिकार हो जाता हूँ।। उम्र बीत जाती है, अपनी छवि बनाने में। यदि कदम डगमगा जाए, तो रूठ अपने जाते है। इसलिए मन की सुनकर, मैं गीत कविताएं लिखता हूँ। तभी तो यहां तक, आज पहुंच पाया हूँ।।   परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष स...
मैं किसी साम्प्रदाय में विभक्त क्यूं हूं?
कविता

मैं किसी साम्प्रदाय में विभक्त क्यूं हूं?

पायल ‌पान्डेय कांदिवली, पूर्व- मुंबई ******************** मैं किसी साम्प्रदाय में विभक्त क्यूं हूं? जब मैं ही गीता के श्लोकों में हूं, जब मैं ही तीनों लोको में हूं, जब मैं ही कुरान की आयतों में हूं, जब मैं ही पैगम्बर की हर बातों मै हूं, जब मैं ही आरतियां मंदिर की हूं, जब मैं ही सारथी अर्जुन की हूं, जब मैं ही मस्जिद की अज़ान में हूं, जब मैं ही नमाज की हर शान में हूं, जब मैं ही ब्राम्हण जनैव धारी हूं, जब मैं ही बुरखे में छिपी कोई नारी हूं। जब मैं ही सार हूं और मैं ही सारांश हूं, जब मैं ही वाक्य हूं और मैं ही वाक्यांश हूं, जब मैं ही उसकी सुन्नत हूं और मैं ही उसकी जन्नत हूं, तो क्यों मुझे विभक्त करने की क्रिया जारी है, मुझे किसी सम्प्रदाय में विभक्त करती ये दुनिया सारी है..??   परिचय :-  पायल ‌पान्डेय निवासी : कांदिवली, पूर्व- मुंबई घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौल...
अटल बिहारी
कविता

अटल बिहारी

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** वाराणसी के प्रसिद्ध सितारवादक पण्डित शिवनाथ मिश्र नए राग "राग अटल" पर एलबम बनाने जा रहे हैं। उक्त एलबम में मेरी इस कविता को भी स्थान मिला है ... जिसका विमोचन २५ दिसंबर को बनारस में होगा। अटल बिहारी। सप्त सुरों में हम गाएं यशगान सदा। अटल-अमर-अक्षय होवे सम्मान सदा । बचपन से ही होनहार थे अटल बिहारी। रखते थे अद्भुत अनुपम प्रतिभाएं सारी। छुटपन से ही नित नूतन प्रतिमान गढ़े। निज गौरव के नवल प्रखर सोपान चढ़े। निस्पृह, निर्मल नहीं रखा अभिमान सदा। सरल, सहज, साहसी, सदा ही सुफल सफल थे। राजनीति के दलदल के वे नीलकमल थे। थे सरस्वती के वरद पुत्र, ओजस्वी वाणी। दृढ़ प्रतिज्ञ, साहसी, कर्म उज्ज्वल परिमाणी। था व्यक्तित्व निराला देव समान सदा। जब पंतप्रधान हुए भारत का मान बढ़ाया। भारत भू की कीर्ति ध्वजा को गगन दिखाया। उनकी महि...
सर उठाकर वो चला
ग़ज़ल

सर उठाकर वो चला

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** सर उठाकर वो चला जो वक्त के सांचे ढला है, और जो उठ उठ गिरा वो तो कोई बावला है। आज के इस दौर में, वह शख्स कहलाता भला है, मयकदे से लौट कर जो दो कदम सीधा चला है। किस ग़ुरूर में हैं हुज़ूर, क्या इतना भी नहीं जानते जो भी था उरूज़ पर वह एक ना इक दिन ढला है। गुरबत-ओ-अफलास में क्या मुस्कुराना जुर्म था, शहर में दंगे हुये तो पहला घर उसका जला है। जी भर जीने का मौका एक बार ही मिले विवेक, सफ-ए-मंज़र पे ज़िंदगी का नाम ही हर्फे बला है।   परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों ...
बहिष्कार
कविता

बहिष्कार

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सत्य, अहिंसा और प्रेम का परिष्कार करना है सब को। नकारात्मक दृष्टिकोण का बहिष्कार करना है सब को। जीवन शैली सरस सरल हो। सुधा सुलभ हो लुप्त गरल हो। नहीं विकल हो मानव कोई। स्नेह-शान्ति धारा अविरल हो। कुटिल तामसिकता का जग में तिरस्कार करना है सब को। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। रोटी, कपड़ा और निकेतन। प्राप्त करें जगती पर जन-जन। न हों अभावों की बाधाएँ, सुख-सुविधा पूरित हों जीवन। छोड़ स्वार्थ सब परहित पर भी अब विचार करना है सबको। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। निर्मित करने हैं विद्यालय। अधिक बढ़ाने हैं सेवालय। जहाँ विषमता की खाई है, वहाँ बनें उपकार हिमालय। मानव हितकारी शुभ उपक्रम बार-बार करना है सबको। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। जन-जन का उत्थान ज़रूरी। जन हित के अभियान ज़रूरी। हो व्य...
वाह रे ठाकुर जी
कविता

वाह रे ठाकुर जी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** तुम ने गज़ब रचा संसार, चहुंओर मचा है हाहाकार, वाह रे ठाकुर जी...........! बेबसी का लगा हुआ अंबार, खोया अपनापन और प्यार, वाह रे ठाकुर जी............! छद्मश्री को पद्मश्री उपहार, सच्ची कला हो रही भंगार, वाह रे ठाकुर जी............! खूब बढ़ा काला कारोबार, मौन देख रही है सरकार, वाह रे ठाकुर जी............! नारियों पे जुल्मों, अत्याचार, दिख रही खाखी भी लाचार, वाह रे ठाकुर जी............! अपराधी घूमें खुले बाजार, शरीफों के लिए कारागार, वाह रे ठाकुर जी............! मोबाइल की है कृपा अपार, टूट रहे हैं, रिश्ते, घर, परिवार वाह रे ठाकुर जी.............! . परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन...