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रंगों से रंगी दुनिया
गीत

रंगों से रंगी दुनिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने देखी ही नहीं रंगों से रंगी दुनिया को मेरी आँखें ही नहीं ख्वाबों के रंग सजाने को। कोंन आएगा, आखों मे समाएगा रंगों के रूप को जब दिखायेगा रंगों पे इठलाने वालों डगर मुझे दिखावो जरा चल संकू मै भी अपने पग से रोशनी मुझे दिलाओं जरा ये हकीकत है कि, क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं ........................... याद आएगा, दिलों मे समाएगा मन के मित को पास पायेगा आँखों से देखने वालों नयन मुझे दिलाओं जरा देख संकू मै भी भेदकर इन्द्रधनुष के तीर दिलाओं जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .............................. जान जाएगा, वो दिन आएगा आँखों से बोल के कोई समझाएगा रंगों को खेलने वालों रोशनी मुझे दिलावों जरा देख संकू मै भी खुशियों को आखों मे रोशनी दे जाओ जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने...
मेरी माँ
कविता

मेरी माँ

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** अपनी जन्म दात्री माँ को कायनात के हर एक रंग में उतरते देखा है,, गाँव की पहाडियों पे दिन का सूरज रात चांदनी की तरह गुजरते देखा है। हमारी खुशियों की खातिर ब्रम्ह मुहूर्त में पीपल को जल चढ़ाते देखा है, वो स्कूल तो नहीं गई थी कभी मगर जीवन का पाठ बच्चों को पढ़ाते देखा है। लय, तुक, ताल, सा, रे, गा, मा, का ज्ञान नहीं था बिलकुल भी मेरी जननी को, बोझिल जिंदगी के आंगन में मैंने उसे थिरकते संग सुर में सुर से गाते देखा है। माँ मेरी थी सैनिक की जीवन संगिनी रंजो गम सभी उसे छिपाते देखा है, पल्लू में ढककर दर्द सभी जीवन के आंखों से माँ को मुस्काते देखा है। तिनका-तिनका सहेज कर नीड़ बना के सफेद, लाल मिट्टी से दीवार लीपते देखा है, जंगल, खेत, खलिहान संग गृहस्थी की बगिया को पसीने से सींचते देखा है। . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्य...
उसकी चिंता
लघुकथा

उसकी चिंता

कुणाल शर्मा अम्बाला सिटी (हरियाणा) ******************** (मौलिक एवं स्वरचित) फेसबुक पर प्रकाशित “क्या जरुरत थी इतनी ठंड में इस फ्रिज पर पैसे फूंकने की…पर यहाँ मेरी सुनता ही कौन है !" माँ चारपाई पर बैठी बड़बड़ा रही थी। माँ की बड़बड़ाहट सुनकर मँझला बेटा कमरें से बाहर निकल आया, "माँ, अब तुझे कौन समझाये, ऑफ-सीजन में बहुत कम दाम में मिला है।” "मुखत में तो नहीं मिलता। पढ़ी-लिखी नहीं हूँ, पर इतना तो जानती हूँ।” "तुझे तो दिहाड़े भुगतने की आदत हो गई है माँ, कम से कम हमें तो सुख से रहने दे।” इस बार वह तल्खी से बोला। "पहले सिर पर जो कर्ज चढ़ा है वो उतर जाता। घर में क्या खा रहे हैं, कौन देखता है? पर मांगने वाले चौखट पर आये तो तमाशा बन जाता है।” माँ अधबुने स्वेटर पर सिलाइयां चलाती हुई बोली। "तमाशा तो मेरा बन गया है, छुट्टी के दिन भी चैन नहीं…तुम्हारी तो आदत हो गई है हर बात पर बड़बड़ाने की।" "चलो भई, मैंने...
जाने है ये सफ़र कैसा
ग़ज़ल, गीत

जाने है ये सफ़र कैसा

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** सूनी माँग सी राहों जैसा जाने है ये सफ़र कैसा, हर बस्ती वीरान मिली, नहीं खुशी का शहर देखा। नींद कुचलकर सुबह हुई और शाम ने भी पहलू बदले, कितनों की ही मौत हुई शमशान मगर बेखबर देखा। जहाँ पर खींचते हैं लोग जब तब लक्ष्मण रेखा, उसी दुनिया में हमने ज़िन्दगी को दर बदर देखा। रहते थे जो शीशमहल में घर उन्होंने बदल लिया, जब जब झाँका सीने में वहाँ फ़क़त पत्थर देखा। 'विवेक' झील के दरपन में लिखी प्रेम की इबारतें, मन कस्तूरी महक उठा जब उनको भर नज़र देखा। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में ...
माँ
लघुकथा

माँ

सतीश राठी इंदौर मध्य प्रदेश ********** बच्चा सुबह विद्यालय के लिए निकला और पढ़ाई के बाद खेल के पीरियड में ऐसा रमा कि दोपहर के तीन बज गए। मां डाटेगी डरता- डरता घर आया। मां चौके में बैठी थी। उसके लिए खाना लेकर। देरी पर नाराजगी जताई पर तुरंत थाली लगा कर भोजन कराया। भूखा बच्चा जब पेट भर भोजन कर तृप्त हो गया तो मां ने अपने लिए भी दो रोटी और सब्जी उसी थाली में लगा ली। "यह क्या माँ तू भूखी थी अब तक !" "तो क्या तेरे पहले ही खा लेती तेरी राह तकते तो बैठी थी।" अपराध बोध से ग्रस्त बच्चे ने पहली बार जाना कि माँ सबसे आखरी में ही भोजन करती है। . परिचय :-  सतीश राठी जन्म : २३ फरवरी १९५६ इंदौर शिक्षा : एम काम, एल.एल.बी लेखन : लघुकथा, कविता, हाइकु, तांका, व्यंग्य, कहानी, निबंध आदि विधाओं में समान रूप से निरंतर लेखन। देशभर की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन। सम्पादन : क्षितिज संस्था इंदौर के लिए ...
मां
कविता

मां

गीतांजलि ठाकुर सोलन (हिमाचल) ******************** मुश्किल राहों में सफर आसान लगता है। ये मेरी मां की दुआओं का असर लगता है। मेरी हर मुश्किल को यूं ही पहचान लेती हो, ये मुझे कोई और नहीं भगवान का रूप लगता है माँ तू रूठ जाए तो सब सूना सा लगता है, तेरी एक मुस्कान से घर स्वर्ग सा लगता है। मुश्किल राहों में सफर आसान लगता है। ये मेरी मां की दुआओं का असर लगता है। हमें किसी और के प्यार की क्या जरूरत हमें तेरा प्यार ही जन्नत लगता है। मतलब की दुनिया तो सिर्फ मतलब के लिए प्यार करती है, मां तेरे प्यार मे कोई मतलब नहीं होता, इसलिए तो हमें तु इतनी प्यारी लगती है। मुश्किल में सफर आसान लगता है। यह मेरी मां की दुआओं का असर लगता है....।। . परिचय :-गीतांजलि ठाकुर निवासी : बहा जिला सोलन तह. नालागढ़ हिमाचल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्...
माँ
कविता

माँ

जनार्दन शर्मा इंदौर (म.प्र.) ******************** राम लिखा कीसी ने, कीसी ने गीता लिखा किसी ने बाईबल, तो गुरुग्रंथ और क़ुरान लिखा, जब बात हुई पूरी दुनियाँ को, एक शब्द में लिखने की तब मैंने हे"माँ" तेरा ही नाम लिखा, माँ तेरा ही नाम लिखा,,,, कैसे कहूँ कि माँ तुम्हारी याद नहीं आती चोट मुझे लगती थी, आंखें तेरी भर जाती मेरे घर न आने तक, तेरी साँसे गले में ही अटकी सी रह जाती थी। कैसे कहूँ कि माँ तेरी याद नहीं आती, कैसे कहूँ कि माँ तेरी याद नहीं रुलाती आज भी ठोकर लगतीहैं, तो ओ,माँ,,, कहकर मुझे तेरा ही अहसास दिलाती है, कैसे कहूँ माँ मुझे तेरी याद नही आती। तुमने ही जन्म देकर, इस दुनियामें लाया। जीवन यह मां, मैने तुमसे उपहार मेंपाया। मेरे जीवन का, हर पाठ मुझे तू ही पढ़ाती कैसे कह दूं माँ मुझे तेरी याद नही आती। शायद इसलिए सब कहते है... कि माँ कबीर की साखी जैसी तुलसी की चौपाई-सी माँ मीरा की पदाव...
माँ
कविता

माँ

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** माँ, देखा है हर सुबह तुम्हें तुलसी के चौरे पर मस्तक झुकाए हुए जब भी हथेलियां उठीं दुआओं के लिए तुम्हारी पलकों पर हमारे ही सपने सजे होते हैं जब भी आँचल फैलाया मन्नतों के लिए तुम्हारे होंठों पर हमारी ही खुशियों के फूल खिले होते हैं जब जिंदगी अंधेरों में घिरने लगती है खामिशियों से भरी रातें मंझधार में डुबोने लगती हैं माँ, तुम रोशन करती हो अंधेरों को चाँद का दीपक जलाए हुए माँ, देखा है हर सुबह तुम्हें तुलसी के चौरे पर मस्तक झुकाए हुए . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान सहित ४७ सम्मान पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित दे...
वृद्धाश्रम नही होता
कविता

वृद्धाश्रम नही होता

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सबसे पहले माँ के श्री चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ, उसके ही आशीषों से मैं थोड़ा बहुत जो लिख पाता हूँ। मेरे खातिर प्रथम देव है माँ मेरी, प्रथम गुरु है माँ मेरी नौ माह कोख में रख, मुझे दुनिया में ले आई है माँ मेरी। धर्म ग्रंथ और वेद पुराणों ने भी माँ की महिमा गाई है, माँ की ममता अनमोल धरोहर, माँ बच्चों की परछाई है। माँ पर कितना लिख पाऊँ मैं माँ ने मुझे आकार दिया है दुनिया में लेकर आई माँ सपनों से सुंदर संसार दिया है। तपिश में याद आती माँ के आंचल के शीतल छाया की, माँ मानवती है, माँ अरुणा है, माँ शिल्पी है इस काया की। खुद की भी परवाह नहीं, बच्चों के लिए समर्पित होती है ईश्वर ने भी है माना, माँ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कृति होती है। दुख सभी सहकर माँ बच्चों का जीवन सुखद बनाती है सिलबट्टे में पिस-पिस कर मानो हिना रंग दे जाती है। ...
मेरे लिए माँ
कविता

मेरे लिए माँ

पवन मकवाना (हिन्दी रक्षक)  इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे लिए माँ सदा अनूठी ही रही माँ तो बस माँ होती है यह बात सदा झूठी ही रही कहते हैं माँ के साये से बड़ा कुछ और नहीं इस संदर्भ में किस्मत मेरी फूटी थी, फूटी ही रही प्रतीक्षा थी मिलेगा माँ का प्यार मुझे पर माँ जो मुझसे रूठी थी रूठी ही रही मेरे लिए माँ सदा अनूठी ही रही.... . परिचय : पवन मकवाना जन्म : ६ नवम्बर १९६९ निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश सम्प्रति : संस्थापक- हिन्दी रक्षक मंच सम्पादक : hindirakshak.Com हिन्दीरक्षकडॉटकाम सम्पादक : divyotthan.Com (DNN) सचिव : दिव्योत्थान एजुकेशन एन्ड वेलफेयर सोसाइटी सम्प्रति : स्वतंत्र पत्रकार व व्यावसाइक छाया चित्रकार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय ...
है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ
गीत

है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सावधान रहना है प्रेमी प्रेम-यात्रा नियम कड़े। है कंटक से पूर्ण प्रेम पथ ज़रा संभल कर पाँव पड़े पथ पर पाहन पड़े नुकीले धधक रहे अंगारे हैं। तिमिर अमा का दिशा-दिशा में, ओझल चाँद-सितारे हैं। गहरी दुविधा की सरिता है, कठिनाई के अचल खड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े। मन विचलित तन में पीड़ा है, ज्वर से तापित अंग सभी। अंधकार आँखों के सम्मुख, धुंधले-धुंधले रंग सभी। पग घायल, छाले फूटे हैं, अवरोधक हैं बड़े-बड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े। नयनों में है फिर भी आशा, अद्भुत है विश्वास बसा। संकल्पित हैं तन-मन दोनों, व्रत है कोई पर्वत-सा। जगत साक्षी है चरणों ने, कितने ही इतिहास घड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मति...
मां
कविता

मां

राम शर्मा "परिंदा" मनावर (धार) ******************** बहन-बेटी और वही सास है मां हर रिश्ते का अहसास है हर रिश्ता हो सकता है गौण मां का रिश्ता बहुत खास है करले परिक्रमा मां की मानव मां में हर देवता का वास है उजाले से कर मां की तुलना मां अंधियारे में भी प्रकाश है मां के बिना सूना-सूना जहां मां हर त्यौहार का उल्लास है मां दरिया है प्रेम का परिंदा मां के बिना अधूरी प्यास है परिचय :- राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व. जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम.कॉम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १- परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है, दूरदर्शन पर काव्य पाठ के साथ-साथ आप मंचीय कवि सम्मेलन में संचालन भी करते हैं। आपके साहित्य चुनने का ...
ऑनलाइन मदर्स डे
लघुकथा

ऑनलाइन मदर्स डे

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** तीन दिन से ठीक जो को मां खड़ी नहीं हो पा रही थी आज वह जल्दी-जल्दी खाना बनाने में लगी थी। आज काफी लंबे समय के बाद उसका बेटा जो आ रहा था, अब इतने समय के बाद जब आ रहा है तो वह बिस्तर पर कैसे लेटी रहती बेटा क्या सोचेगा माॅ को बेटे की कोई चिंता नहीं है.... अपनी ही तबीयत लेकर बैठी है, यही ना....नहीं वह कैसे लेटी रह सकती है उसके लिए खाना बनाना है भूखा होगा, बड़बड़ाती हुई माॅ खाना बना रही थी, वह अपनी पूरी शक्ति अंदर एकत्रित कर के काम में लगी थी। दाल चावल सब्जी रायता सलाद सब तैयार हो गया आटा भी गूंध लिया बस अब रोटी बनानी है... जब आयेगा गरम गरम रोटी बना देंगे वह खुद से ही बात कर रही थी। वह बेटे की प्रतीक्षा करने लगी कभी बाहर आती कभी अंदर जाती वह अंदर जा रही थी कि पड़ोस की राधा पूछ बैठी अब कैसी तबीयत है बुखार कम हुआ? नहीं कम तो नहीं हुआ है हो जाएगा...
श्रम-साधक को विश्राम कहा
कविता

श्रम-साधक को विश्राम कहा

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** श्रम-साधक को विश्राम नहीं। कैसे ये विश्राम करें, क्षण-भर भी आराम न करें। लक्ष्य नहीं खुद अपना, बस कङी धुप में तपना। अनवरत,ही ये चल रहे, औरन के खातिर ये धुप में तपना रहे। सब कुछ अपना समझ कर, ये द्रुतगति से चल रहें। नयी किरण और नया जोश, रंग खुशी के भर रहें। साधक को विश्राम कहा, जो श्रम के पथ पर चल पङे। दिन समझे न रात, हर बार ये काम करें। श्रम साधकों को विश्राम कहा, जो श्रम के पथ पर चल पङे। श्रम इनका अविराम हैं, बस कर्म ही सुनिश्चित हैं। . परिचय :- नाम : गोरधन भटनागर निवासी : खारडा जिला-पाली (राजस्थान) जन्म तारीख : १५/०९/१९९७ पिता : खेतारामजी माता : सीता देवी स्नातक : जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करव...
माँ की ममता
कविता

माँ की ममता

अनन्तराम चौबे "अनन्त" जबलपुर (म.प्र.) ******************** माँ की ममता बच्चों में होती है। माँ स्नेह प्यार दुलार की मूरत होती है। बहू आने पर क्यों ये रूप बदल जाता है। क्या सास द्वारा दिये गये वो दर्द याद आ जाते है। सास-बहू के झगड़े तो वैसे ही जग जाहिर हैं। कभी सास पर कभी बहू पर अत्याचार होते रहते हैं। कोई बहू दहेज न लाई जो माता-पिता की मजबूरी थी। भाई-बहिनों की पढाई और भी परिवार के खर्चो की मजबूरी थी। पति, सास, ससुर सभी से ऐसी बहू सताई जाती है। पहले तो प्रताणित होती है फिर तेल डाल जलाई जाती है। एक बहू वो भी होती है जो पति, सास, ससुर को पैसे देकर खरीद लेती है और सत्ता वही चलाती है। पूरे घर में फूट डालती है मनमानी हर पल करती है। बदला लेने सास ससुर को बृद्धाश्रम भिजवा देती है। माँ की ममता बहू भी चाहती जो माँ की ममता बच्चो में होती है। सास ब...
मौत का जो ख़ौफ़
कविता

मौत का जो ख़ौफ़

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल - २१२२ २१२२ २१२२ २१२ अरकान - फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन हर तरफ़ ये मौत का जो ख़ौफ़ है छाया यहाँ। ऐसा लगता है ख़ुदा नाराज़ है भाया यहाँ।। तेरा मुजरिम हूँ मगर अब माफ करदे ऐ ख़ुदा। ज़िंदगी में जीते जी धोका बहुत खाया यहाँ।। नाज़ था हमको बहुत विज्ञान पर अपने मगर। चाँद पर जाकर भी मरने से न बच पाया यहाँ।। कोई ऐसा है नहीं जो बच सके इस खेल से। मौत का सबको मज़ा चखना है जो आया यहाँ।। तेरा जो था छोड़ कर वो भी चला तुझको गया। रोता क्यों है अब तो खाली रह गई काया यहाँ।। जो नहीं डरते थे दुनिया मे किसी से भी कभी। आज अपना डर रहे वो देख कर साया यहाँ।। इस जहाँ का है निज़ाम आया है जो वो जाएगा। तेरा मेरा कुछ नहीं झूठी है सब माया यहाँ।। . परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कव...
माँ को नमन
कविता

माँ को नमन

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** धन्य-धन्य मेरी प्यारी माँ, तू कितनी महान है... जन्म-पूर्व से मेरा वजूद, तुझ से अविराम है। सोते-जगते, हँसते-रोते, हर पल मेरा ध्यान है। धन्य-धन्य......... उज्ज्वल, अविरल छबि घर मे तेरी बसती है, जिससे हम सब बच्चों की, जगत में सारी हस्ती है। धन्य-धन्य........ सूरज सी अनवरत कर्मरत, सदा ही तू रहती है। धरती माँ के सारे सद्गुणों की, तुझमे जैसे बस्ती है। धन्य-धन्य....... मन्दिर-मस्जिद, काशी-काबा, माँ तू चारो धाम है, क्रोध में भी आशीष लुटाना, तेरा अनोखा काम है। धन्य-धन्य...... क्या लिखूं? दुआ से तेरी माँ! सब कितने सुखी है, इतना लिखकर अब मेरी, कलम अदब से झुकी है। धन्य-धन्य...... . परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड ,बी.एड, एम.फील (इतिहास...
मै भारत माँ का बेटा हूँ
कविता

मै भारत माँ का बेटा हूँ

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** मै भारत माँ का बेटा हूँ, भारत माँ मेरी माता है, भारत माँ का लाल हूँ , भारत माँ का सोना हूँ, मै भारत माँ का बेटा हूँ, भारत माँ मेरी आँशु है , भारत माँ की छांव में, हर दिन सुकून पाता हूँ, मै माँ का बेटा हूँ, भारती की मै आशियाने मे, हर दिन-रात भटकता हूँ, भारत माँ आन-बान-शान है मेरी, मै भारत माँ का बेटा हूँ, भारत माँ को पुजता हु मै, भारत माँ की राह चलता हूँ मै, भारत माँ आरजू है मेरी, मै भारत माँ का बेटा हूँ, मेरी भारत माँ विश्व की सिरमौर है, जिसे सारी दुनिया मे पूजा जाता, जहाँ राम की पूजा होती, सभी अल्लाह को पुकारते है, गुरुनानक देव जन्म लिए, मै भारत माँ का बेटा हूँ, जहाँ जैन धर्म की उत्पति हुई, महावीर यहाँ पैदा हुये, बुद्ध ये जन्म भूमि हुई, मै भारत माँ का बेटा हूँ, जहाँ रफी साहब राम का गीत सुनाते, प्रेमचंद्र बच्चो को ईदगाह सुनाते,...
जीवन और कठिनाई
कविता

जीवन और कठिनाई

डॉ. विभाषा मिश्र कोटा, रायपुर (छ.ग.) ******************** जीवन और कठिनाइयों के बीच झूलती मेरी ज़िंदगी अब थक-सी गई है अल्पविराम लग जाये उस पर ऐसा कोई विकल्प चाहिए जिससे कुछ तो हल निकले इस जटिल समस्या का उलझती हुई मेरी ज़िंदगी हमेशा यह सोचकर सम्हल जाती है समय है अभी बहुत जीना है आगे और नित नए संघर्षों के बीच अपने आप को निखारना भी है फिर एक दिन ज़रूर आएगा जब मेरे सामने स्वर्णिम भविष्य के निर्माण के द्वार भी अपने आप खुलते जाएंगे। . परिचय :-  नाम - डॉ. विभाषा मिश्र जन्मतिथि : २३.०३.१९८२ पिता : डॉ.चित्तरंजन कर माता : श्रीमती माधुरी कर पति : श्री बजरंग मिश्र शिक्षा : एम.ए.(हिंदी),एम.एड., पी.जी.डिप्लोमा योग एवं दर्शनशास्त्र, पी-एच.डी. (हिंदी), राज्य पात्रता परीक्षा (सेट), पी.जी.डिप्लोमा छत्तीसगढ़ी भाषा एवं साहित्य (अध्ययनरत) सम्प्रति : अतिथि व्याख्याता (हिंदी/छत्तीसगढ़ी) पंडित रविशंक...
फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी
गीत

फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** बड़ी बड़ी बातें करलें पर, यह कड़वी सच्चाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी, एक यहाँ मिल पाई है।। जन कल्याण के खातिर हमने, बनती सरकारें देखी। वोट के खातिर नेताओं की, चलती मनुहारें देखी।। वादों से फिरते नेताओं, को देखा उसके पश्चात। और कभी देखा है उनको, करते जनता पर ही घात।। प्रश्न यही क्या आज करें हम, सम्मुख गहरी खाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपडी, एक यहाँ मिल पाई है।। माना हमने, देश बड़ा है, और हजारों मसले हैं। हर मसले का हल हो ऐसी, उगा रहे वो फसले हैं । लेकिन लोगों की सब माया, खाली पेट रहें कैसे। हमीं न होंगे तो क्या होगा, बोलो दर्द सहें कैसे।। इतसी जो बात न समझे, समझो वो हरजाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी, एक यहाँ मिल पाई है।। "अनन्त" तन भी नंगा है और, गरमी सरदी सहता है। गांधी का है देश देर तक, सदमें सहता रहता है।। आसमान को छत कहकर वो, ...
रफ़्तार और मां की ममता
लघुकथा

रफ़्तार और मां की ममता

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** जिंदगी बहुत ही तेज़ रफ़्तार से दौड़ रही थी। मार्च माह का अंतिम सप्ताह अपनी इस दौड़ में तीव्रता से अपनी शक्ति दिखा रहा था। तब ही अचानक २४मार्च को यह पता लगा कि इस दौड़ को यहीं थम जाना है। भारत और विश्व में एक महामारी ने अपने कदम पसार लिए हैं जिसका नाम कोरोना है। भारत में लाक डाउन का निर्णय लिया गया। अब क्या था जो जहां था वो वहीं पर रुक गया। पर धीरे-धीरे लोगों ने अपने अंदाज में अपने आप को घरों में रहकर सुरक्षित रखने का निर्णय लिया। हां इस लाक डाउन का सबसे सकारात्मक पल माताओं ने महसूस किया, मेरी एक सहेली है जिसकी दो बेटियां हैं दोनों ही नौकरी में व्यस्त थी अचानक इस दौड़ को लाक डॉउन ने रोक दिया था। दोनों की शादी जून में होने वाली थी। पर यह भी रुक गई। मां जो बेटियों की शादी की हर समय चिंता में रहती थी उसे आज सुख महसूस हुआ। क्योंकि उसे अपनी बेटियों...
दामोदर विरमाल को “कलमकार” साहित्य सम्मान
साहित्य समाचार

दामोदर विरमाल को “कलमकार” साहित्य सम्मान

महू (इंदौर)। मध्यप्रदेश के उभरते युवा कवि दामोदर विरमाल की नवमान पब्लिकेशन अलीगढ़ उप्र द्वारा प्रकाशित "चमकते कलमकार" (साहित्य आकाश के ध्रुव तारे) साझा संग्रह भाग १ पुस्तक में दो रचनाओं को स्थान मिला है। इनके द्वारा काव्यरचना के उत्कृष्ट सृजन करने पर नवमान साहित्यिक समूह के मुख्य संपादक श्री ललित उपाध्याय, सह संपादिका रश्मिलता मिश्रा, एवं प्रकाशक विजय प्रकाश नवमान द्वारा "कलमकार" साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया। प्रकाशित पुस्तक में देश के १८ राज्यों से १६० रचनाकारों का साझा संग्रह है। उक्त पुस्तक में कवि विरमाल की रचना "दिल्लगी तुम मेरी भुला दोगे" एवं "मां से बड़ी कोई जन्नत नही" को पेज नम्बर १०७ व १०८ पर स्थान दिया गया है। पुस्तक आईएसबीएन नम्बर के साथ ऐमेज़ॉन व फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है। इस उपलब्धि पर परिवार सहित इष्टमित्रों ने बधाई व शुभकामनाएं प्रेषित की है।...
नयन
कविता

नयन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नीर भरे नयन पलकों पर टिके रिश्तों का सच बिन बोले कहते यादों की बातें ठहर जाते है पग सुकून पाने को थके उम्र के पड़ाव निढाल हुए मन पूछ परख रास्ता भूलने अब लगी राहें इंतजार की रौशनी चकाचोंध धुंधलाए से नयन कहाँ खोजे आकृति जो हो गई अब दूरियों के बादलों में तारों के आँचल में निगाह से बहुत दूर जिसे लोग देखकर कहते-वो रहा चाँद . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से...
आज नहीं तो कल संभव
कविता

आज नहीं तो कल संभव

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** थाली, लोटे, शंख बजाये, और खुशी में नाचे हम। यज्ञ, हवन भी कर डाले, देव ऋचायें वांचे हम।। राम नाम के दीपक भी घर-घर सभी उजारे थे। देवों जैसे वो क्षण पाकर, सारे दुख विसारे थे।। विनाश काल विपरीते बुद्धि, मति कैसी बौराई है। अर्थतंत्र को पटरी लाने, व्यर्थ की सोच बनाई है। किसने तुमको रोका-टोका, वेतन हिस्सा दान किया। देश समूचा साथ तुम्हारे, किसने यहाँ अभिमान किया।। महिलाओं का छिपा हुआ धन, बच्चों ने गुल्लक फोड़ी है। आपदा के इस संकट में, नहीं कसर कोई छोड़ी है।। गर और जरूरत थी तुमको, आदेश का ढोल पिटा देते। खुद को गिरवी रख करके, ढेरों अर्थ जुटा देते।। किंतु नहीं ये करना था मंदिर भूले, मदिरा खोले। पवित्र घंटियां मूक रहीं, प्यालों के कातिल स्वर बोले।। मदिरालय सब खोल दिये। देवालय सारे बंद पड़े। कोरोना को आज हराने बुलंद हुए स्वर मंद पड़े।। बोतल और प्...
उपन्यास : मैं था मैं नहीं था : भाग १०
उपन्यास

उपन्यास : मैं था मैं नहीं था : भाग १०

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** 'क्यों आवडे, इसे लिया क्या? 'काकी ने नानी से पूछा। 'नहीं,लेने के लिए ही आयी थी।पर ये आगए थे इसलिए ठहर गयी।' 'तो फिर अब लेले।' नानी ने मुझे ले लिया। 'और क्यों री आवडे, दामादजी को कौन सा दिन याद आ रहा था? कौन सी घटना थी मुझे भी बता। 'काकी ने सहज ही नानी से पूछ लिया। -'कुछ नहीं माँ, वो समधीजी के बुरे बर्ताव के बारे में बता रहे थे।' अब क्या किया तुम्हारे समधी ने?' 'किया कुछ नहीं पर ससुरजी इनके साथ अच्छा बर्ताव नहीं करते, इनकों कुछ भी महत्व नहीं देते और समधीजी ससुरजी के ख़ास बालसखा इसलिए वें भी इन्हें नहीं पूछते। समधी होकर भी कुछ महत्व नहीं देते।' 'ये तो हमेशा का ही है। फिर आज कौन सी नयी बात याद आयी?' 'बताती हूँ।' नानी ने बताना शुरू किया, 'क्या हुआ अक्का की शादी तय होने के पहले की बात है। एक दिन दोपहर के समय ये छत्रीबाजार से घर आ रहे थे। सर्...