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केरोना
कविता

केरोना

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** यह कैसी असहनीय पीड़ा, अब तू जारे केरोना। कैसा तेरा प्रहार, प्रकृति भी मौन रही निहार, सबका मन अशांत, कब होगा कहर शान्त। घर में खाने के लाले, बच्चों को कैसे पाले। गृह मे है जिन्दगी कैद, सब हो रहें पस्त, मानव जीवन हो रहा अस्त व्यस्त। सेवा भावी पुलिस डाक्टर, उनका भी है अपना परिवार, इस पर करों विचार, कब तक थमेगा अत्याचार, है प्रभु अब आप ही पालनहार, बरसादों करूण रस की धार, सुनलो सबकी पुकार। . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्र...
यूँ निकल कर
कविता

यूँ निकल कर

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** यूँ निकल कर न बाहर आया करो। लॉकडाउन है सबको बताया करो। हुक्म देने की आदत---बुरी बात है, रूठ जाये वो ग़र, तो मनाया करो। रोगप्रतिशोधक क्षमता घटे न कभी, खाओ कुछ भी मग़र, चबाया करो। चाँद पहलू में है क्यों ख़बर न तुझे, चाँदनी रात हो, छत पर जाया करो। झाडू पोछा सफाई कार्य कोई भी हों, हाथ पत्नी का थोड़ा, बटाया करो। कोरोना कोरोना..... करो न पूरे दिन, अन्य अच्छे भी चैनल लगाया करो। मैं अर्जुन बना.....वह बनी है सुभद्रा, स्वयं बनो पात्र उम्दा,दिखाया करो। देव दूतों से बढ़कर हैं, पी एम हमारे, उनसे वायदा किया, वो निभाया करो। राम बन न सको, तो मांगो न सीता, बन कर लंकेश, हलचल मचाया करो। बिजू होना है जो.....वो होकर रहेगा, प्रीति नूतन रहे.....गीत गाया करो।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कान...
मजबूरियां
ग़ज़ल

मजबूरियां

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** माना आपकी सल्तनत बड़ी है पर हमारे दम से ही तो खड़ी है आप,आप है, बराबरी कैसे किसकी ऊँचाई वक़्त से बड़ी है कई मजबूरियों से घिरा इंसान है खा ले चुपके से डांट जो पड़ी है कट रही है जिंदगी समझौतों पर खुद्दारी से घर की जरूरतें बड़ी है दिल दरक गया है कोई बात नही जज्बात से, पेट की आग बड़ी है क्यों नही लढ् लेता तू, धैर्यशील, जिंदगी रब के भरोसे पे खड़ी है . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
धरती मां करें पुकार
कविता

धरती मां करें पुकार

सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" इंदौर म.प्र. ****************** धरती माता की करुण पुकार, वृक्ष लगाओ तुम इस बार। जर्जर हो गई हूं बच्चों मैं, सुन लो मेरी तुम चित्कार।। हरा भरा कर दो मुझको तुम। यही विनती तुमसे बारम्बार।। अन्न उगाया मैंने,पाला पोसा। छाती शीतल करदो इसबार।। मत लो परीक्षा अब मेरी तुम, यही विनती तुमसे कर्णधार। हरित वस्त्र पहना दो मुझको। करदो मेरा मनभावन श्रृंगार।। . परिचय :-  सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश जन्म तिथि : १९ दिसम्बर १९७७ जन्मस्थान आगर-मालवा शिक्षा : स्नातकोत्तर, पी.एच.डी.चल रही है कार्यक्षेत्र : वर्तमान में लेखिका सहायक संचालक, वित्त, संयुक्त संचालक, कोष एवं लेखा, इंदौर में द्धितीय श्रेणी राजपत्रित अधिकारी के रूप में कार्यरत है। इससे पूर्व पी.आर.ओ. के रूप में जनसम्पर्क विभाग में कार्य कर चुकी है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती ह...
गौरंया
कविता

गौरंया

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** तुम फिर से लौट आ जाओ गौरंया, तुम बिन दिल का आंगन सूना है, महका तो चहका दो गौरंया। रोज सुबह तुम चू चू करती, मीठे गीतों से मन बहलाती, सबेरा होने का एहसास कराती, फुदक फुदक कर आती थी। मुझे याद है माँ सकोरे, दाना पानी रखती थी, तुम संग सखी के झुम झुम कर खाती थी। आंगन मे पेड़ जाम का, छत की मुंडेर का कोना सूना सूना, रासायनिक खाद और कांकरेट के घर ने, तुम्हारा आशियाना तोड़ा, तभी से तुम रुठ कर चली गयीं, फिर से आशियानें को बसायगें, तुम फिर से लौट आओ गौरंया, लौट आऔ। . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। ...
मां की मासूम यादें
कविता

मां की मासूम यादें

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** वह यादें वह रातें पुनः एक बार दोहरा दो उस गुजरे नजारे को पुनः एक बार दोहरा दो देख कर मुख मेरा जब लिया होगा चुम्बन मां ने देकर हौले से थपकी जब अंक में भरा होगा उसने रोयी थी में जब जब रोई तो वह भी होगी जब सोई नहीं जिद में, लोरियां गाई तो होंगी वह लम्हे वह मंजर पुनः एक बार दोहरा दो। मेरी टूटी हुई भाषा को संभाला तो होगा , पकड़ कर मेरी उंगली चलना सिखाया तो होगा, मेरी नादानियों पर पर्दा भी गिराया तो होगा, बहे होंगे जब आंसू आंचल में छुपाया तो होगा, उन खट्टी मीठी यादों को पुनः एक बार दोहरा दो। जिंदगी के अजब प्रश्न सुनकर, मन मलिन हुआ तो होगा, निकला ना होगा कोई हल, तो मन द्रवित हुआ तो होगा, उन रोते होठों को पुनः एक बार हंसा दो न जाने किस विवशता में, ठुकराया होगा उसने, ना जाने कैसे अपना दिल, पत्थर बनाया होगा उसने, पर बैठकर अकेले रातों को, अश्रु साग...
हाय! विधाता
कविता

हाय! विधाता

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** हाय! विधाता तू, कहां पर सो रहा। तेरी रचना का अंत, अब हो रहा।।.... प्यासे हैँ नैनों के सपने। दूर हुये हैं हमसे अपने। किसने ये सब खेल रचा है। धरती पर श्मशान बसा है।। आज हवायें जहरीली हैं। सबकी आंखें नम गीली है।। किसी ने बेटे को खोया हैं। पिता भी मृत शैया सोया है।। हँसती बहारों में कांटे, कोई बो रहा। तेरी रचना का अंत, अब हो रहा।।.... बिलख रही है मां की ममता, शून्य हो चली मानव क्षमता।। सूरज पर है तम का साया। चारों ओर अंधेरा छाया।। चाँद पूर्णिमा भूल चुका है। मावस के हाथों में बिका है।। नागिन रातें डोल रहीं हैं। घर की कुंडी खोल रहीं हैं।। हाय! पुजारी धैर्य, तेरा अब खो रहा। तेरी रचना का अंत, अब हो रहा।।.... कैसी अजब ये महामारी है। दुनिया सारी बेचारी है।। बीती रातें, दिन ढलता है। नहीं पता कुछ भी चलता है।। पिंजरे में खुशियां रोतीं ह...
उपन्यास : मैं था मैं नहीं था  भाग – ०६
उपन्यास

उपन्यास : मैं था मैं नहीं था भाग – ०६

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** रात आठ बजे से कर्फ्यू फिर से लगने वाला था। सब अपने अपने घरों की ओर जल्दी ही निकले गए। सांझ की दिया बाती भी हो गयी। सब का खाना भी हो गया। माँ को होश आया ही नहीं था। सब काम निपटा कर नानी कमरे में आयी। काकी तो मुझे लेकर ही बैठी थी। उनका क्या, वह थी गंगाभागीरथी (विधवा-केश वपन किये हुई)। एक ही समय खाना खाती थी। रात को कुछ भी नहीं लेती थी। नानी आकर माँ के सिरहाने बैठ गयी। माँ की हालत देख रह रह कर नानी की आँखे भर आ रही थी। काकी नानी से बोली, 'आवडे, ऐसी खामोश क्यों है तू?' 'माँ मुझे खूब रोने की इच्छा हो रही है।' 'फिर जी भर के रो ले। आ, मेरे पास में आ कर बैठ। मुझे तेरे मन की हालत समझ रही है। तुझे तेरी बिटिया की चिंता है पर मुझसे भी तो अपनी बिटियाँ की हालत नहीं देखी जाती। तू बता मै क्या करू? और रो कर क्या होगा?' 'क्यों क्या हुआ?' नानी ने प...
धरा की अनंत पीड़ा
कविता

धरा की अनंत पीड़ा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। जीवन दिया, पोषण किया। पालक होकर भी, पतित रही। अपनी ही संतानों का, संताप हर, अनंत संताप सहती रही। विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। स्वर्णनित उपजाऊ शक्ति देकर, भूख मिटाई दुनिया की, पर अपनी संतानों की लालसा से, उनके लालच से बच ना सकी। विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। अपनी सारी सुंदरता देती रही। और अपनी ही संतानों से, करूपित होती रही। गंदगी के ढेरों को सहती रही। अमूल्य धरोहरों को देकर, प्रदूषण से सांसे घुटवाती रही। विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। इंसानो की गलतियों से, जब रुौद्र रूप लेती। सबकी गलतियों की सजा, खुद ही सह लेती। आज विश्व धरा दिवस पर, संकल्प ले...... धरा के सरंक्षण की, कोरोना की आपदा जो कुछ लालची इंसानों ने थी बनाई। किस तरह धरा प...
मानव रूपी प्रभु
कविता

मानव रूपी प्रभु

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है, देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। कोरेना ने देखो कैसा आज कहर मचाया है। मंदिरों में लगे ताले, सबको घर मे बिठाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। देवी दुर्गा चली घर-घर लेकर आशा को, रोगी ढूंढ-ढूंढ फिर अस्पताल पठाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। भूखों का दुःख हरने देवी अन्नपूर्णा चली , कई भोजनशाला में उसने भोजन बनाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। शाला से निकलकर शारदे अदृश्य चली , दुर्मति की बुद्धि को ठिकाने पर लगाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। विपदा में प्रभु को अब दो ही रंग भाया है, खाकी वरदी पहन सही रास्ता दिखाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। श्वेत रंग प्रभु ने कैसे मौन होकर पाया है, चिकित्सक के रूप में उपचार कर पाया है। देखो...
अनैतिकता
कविता

अनैतिकता

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** अनैतिकता का बोल-बाला है जहां भी- आसुरी शक्तियां वहां पर है चरम पर! खोद चुका है पूर्व में मानव- कब्र अपना गगनचुंबी इमारतों में! झांक रहा है पतन का गुब्बार अपना- बहुत दूषित कर चुके तुम इस धरा को! कराह रही है धरती मां और अंबर अपना- स्वप्न बन गई है कि कल कल निर्मल! बहती रही सदा संसार की नदियां- प्राण दायिनी वायु भी अब बन गई जान लेवा! चारों तरफ हाहाकार है रो रही है यह धरा- संत भी सुरक्षित नहीं है यह है मानवी वेदना! वोट बैंक के लिए स्वार्थी फरेबी बन गए हैं नेता- देशहित से बढ़कर इनका सुनहला स्वप्न अपना! नित सीमाओं पर शहीद हो रहे देशभक्त अपना! कैसे सुरक्षित रहेगा मां भारती का भविष्य अपना- श्रेष्ठताओ को भूलकर हम चले जा रहे कहाँ? मां भारती की चरणों में है-इस अकिंचन का- करुण क्रंदन रुदन बंदन शत शत नमन! . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य व...
अक्षर ज्ञान
कविता

अक्षर ज्ञान

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** लेकर चल कोयल मुझे भी तू गाँव के द्ववारे, छोड़ आई जहाँ बचपन के गुड्डी गुड़िया सारे! वह सेमल का पेड़ और जमीं से उपजा पानी, चैत्र माह मिलने आती उजले रंगत वाली नानी! खेतों की मेंड़ो पर मैं चलती रहती थी तीरे-तीरे, वहीं बूढ़ी सी गौ माता चरती रहती थी धीरे धीरे! ऐसे-ऐसे दिन भी देखे जीवन की परवाह नहीं है, अनगिन पीड़ा दबी हृदयतल में पर आह नही है! पता नहीं था अक्षर ज्ञान इतना बेबस कर देगा, ऊंची उड़ान की लालसा, बंद पिजरे में भर देगा! सबको सब वहीं जो मिलता होता न अलगाव, यूँ कोई दौड़ा शहर ना आता सबको भाता गाँव! . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
जुआं
कविता

जुआं

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** धर्मराज मत कहो उन्हें, जो हार गए निज पत्नी को। द्वापर युग बेहतर कब था, याद करो हठ धर्मी को। दिखे नपुंसक पाँच पांडव, द्रोण गुरू भयभीत दिखे। अर्जुन जैसे राजकुँवर..क्यों तुमको जगजीत दिखे? जुआं बुरी है बात पता था, धर्म विरुद्ध आचरण था। फिर क्यों खेले धर्मराज, पता नहीं क्या कारण था? सूदपुत्र कहते-कहते अर्जुन नहीं थका करते थे। जाति सूचक शब्दों को, क्यों हर बार बका करते थे? पाँच पति के जिंदा होते, चीर हरण क्या सम्भव था? देव कुंड से जन्मी कन्या, हो लज्जित असम्भव था। पुत्रमोह के बशीभूत, हर युग में पिता दिखाई देता। भीष्म प्रतिज्ञा ये कैसी, क्या नहीं सुनाई देता था? पौरुष भी कायर होता है, धन का लोभ छोड़ नहीं पाये। द्रोण सरीखे महापुरुष, धर्म नीति को जोड़ न पाये? रही चीखती भरी सभा में, द्रोपदि की पीड़ा सुन लेते। भीम सेन की गदा बोलती, दुर्योधन ...
पृथ्वी
कविता

पृथ्वी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** जो है, मेरे घर की छत वही है ,दीवारें मेरे घर की इसे कहते है, आकाश, यही तो मेरा घर है। ये वृक्ष, पशु, पक्षी निर्भय हो विचरते है निकलते है नवांकुर मेरी कोख से भर देती हूँ उसमे मैं रंग, स्वाद, रस, और गंध सब कुछ है, लयबद्ध मुझे इससे प्यार है यही तो मेरा घर है। धवल शिखरों से मंडित सागरो से सुशोभित गगन चुम्बी देवदार विशाल बांहे मखमली दूब का गुदगुदाना ओंस की बूंदे मेरी पलको पर रुकती कहा है सभी की शरारतें बरकरार है, यही तो मेरा घर है। बस थोड़ा उद्दंड हो गया है मानव मनमानी पर उतरा है उसे अपनी भूल का भान करा कर मैंने उसका पंख कुतरा है। बेसुरा कैसे गाने दूंगी मिलाना उसे भी सुर है यही तो मेरा घर है। सूर्य, चंद्रमा, तारे मैंने छत पर सज़ा रखे है कभी उजले कभी गहरे होते मेरे परिधान है जन्म, मृत्यु का भी फेर है यही तो मेरा घर है। . परिचय :- नाम : धै...
पुस्तक
दोहा

पुस्तक

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** पुस्तक अनुभव-कोष है, पुस्तक ज्ञानागार। जग में किस पर है नहीं,पुस्तक का उपकार। पुस्तक में इतिहास है, पुस्तक में भूगोल। पुस्तक में है सभ्यता, पुस्तक है अनमोल। पुस्तक में गुर ज्ञान है, पुस्तक में निर्देश। पुस्तक में है सम्मिलित, जीवन के संदेश। मानव के पथ-प्रदर्शक, पुस्तक हों या ग्रंथ। लाभ ग्रहण इनसे करें, जगती के सब पंथ। संस्मरण-अनुभूतियाँ, लेतीं पुस्तक रूप। सकुचातीं इस रूप से, मार्तण्ड की धूप। पुस्तक से है संस्कृति, है आचार-विचार। पुस्तक से बढ़ता सदा, जीवन-शिष्टाचार। पुस्तक है तो ज्ञान है, पुस्तक है तो शान। पुस्तक से मिलता हमें, जीवन में सम्मान। युगों-युगों से पुस्तकें, हमें दिखाएँ राह। अच्छी पुस्तक-पठन की, किसे नहीं है चाह। पुस्तक साथी है परम, परामर्श दे नित्य। जब छाए भ्रम का तिमिर, बने ज्ञान-आदित्य। शब्दों में ढलने लगें, सुन...
पृथ्वी दिवस
कविता

पृथ्वी दिवस

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** लगता है बहुत खुश हैं, धरा और गगन। प्रदूषण का स्तर हुआ निम्नतम। पक्षी भी उन्मुक्त, कर रहे हैं भ्रमण। गुलों की बहार है, खिले हैं चमन। वक्त को समझें, अवसाद में न उलझें। धरा दिवस पर कुछ लिखें, जो कहे आपका मन। सभी का अभिनन्दन, सभी रहें स्वस्थ यही कह रहा, मेरा अन्तर्मन। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा सामाजिक पत्रिकाओं में आलेख, ललित निबंध, कविताएं, व्यंग्य, लघुकथाएं संस्मरण आदि प्रकाशित। लगभग १९८५ से सतत लेखन जारी है । १९९७ से इन्दौर में निवास वर्तमान में ल...
ज़ख़्म से पीड़ित मनुजता
कविता

ज़ख़्म से पीड़ित मनुजता

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ********************   भेड़िया भी आदमी को देखकर फ़रमा रहा मांद से देखो निकल ये कौन बंदा आ रहा देख इनकीं हरकतो को बाघ चीते दंग है इनकी करतूतों से भस्मासुर भी है शरमा रहा दिन दहाड़े मॉब लिंचिंग हो गया जैसे चलन ख़ौफ़ नफ़रत ग़म का बादल है वतन में छा रहा शांति भाईचारा मृग मरीचिका सा लगने लगा आदमी को देखकर अब आदमी घबरा रहा पीड़ितों को देखकर मुँह मोड़ लेता आदमी विडियो लेकिन बनाकर ख़ुद का मन बहला रहा ज़ख़्म से पीड़ित मनुजता घाव कैसे भर सके वक़्त का मारा ये साहिल ज़ख़्म ख़ुद सहला रहा . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशित, ११ क...
वीरों की शहादत
कविता

वीरों की शहादत

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** सलामत शान वीरों कीऐ हिन्दुस्तान तुम रखना..., कफन बांधे खड़े हैं जो उन्हे बस याद तुम रखना। बन कर देश के प्रहरी..., अपना फर्ज निभाने को अपनी जान दे बैठे सब की जान बचाने को। खुद के परिवार को छोड़ा....., देश को ही घर समझ कर के नाते तोड़े अपनो से अपना फर्ज समझ कर के। भुला देना न उनकी कुर्बानी......, पियें जो खून के आँसू गंगाजल समझ कर के। सलामत शान वीरों की ऐ हिन्दुस्तान तुम रखना, कफन बांधे खड़े हैं जो उन्हे बस याद तुम रखना। . परिचय :- रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्...
मां
कविता

मां

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मां पूरे कुनबे को, प्रेम सूत्र में बांधे रखती है, निःस्वार्थ भाव से बच्चों का, लालन-पालन करती है, अपने आंचल की छांव में सुरक्षित रखती है, खुद पतझड़ सहकर, सबको बहार देती है। मां से ही रंगीन सुबह, सुहानी शाम है, मां से ही जीवन में उत्थान है, ऋषि-मुनि भी उनके आगे, सिर झुकाते हैं, क्योंकि इस धरती पर, मां सबसे महान है। लक्ष्य को चुनौती बनाकर, आगे बढ़ती जाती है, परिवार के नींव का, पत्थर होती है मां, टूटे हुए मनोबल का, विश्वास है धड़कते हुए दिलों का, श्वास है मां। मां के चरणों में जन्नत, चारों धाम हैं, हसीन हैं सपने, सुहानी शाम है , मां शब्द में सारा ब्रह्माण्ड है मां के चरणों में, बारम्बार प्रणाम है। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ शिक्षा - एम.ए समाज...
मैंने भी
कविता

मैंने भी

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** सींच कर अपनी चाहत से, प्यार का पौधा लगाया मैंने भी, खिली धूप में फुलवारी सा, शाख़ पे फूल खिलाया मैंने भी, प्यार की लता और चाहत से, तुझ पर रंग चढ़ाया मैंने भी, सींच कर अपनी चाहत से, प्यार का पौधा लगाया मैंने भी, फूलों का रस पीकर जैसे, तितली मदहोश होने लगी, फिर देखो तुम्हारी यादों से, अपनी सेज सजाई मैंने भी, फिजाएं मस्त मस्त थी, बेखौफ सारा मंजर था, तेरे आगोश में आने को, मन जो इतना चंचल था, सींच कर अपनी चाहत को, प्यार का पौधा लगाया मैंने। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,ह...
संवाद
कविता

संवाद

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** पाटल कहे अलि से........... मुस्कुराता था मैं अपनी, खुबसूरती पे इतराता था। मधुर गुंजार पर मैं तेरी, झूम-झूम फिर जाता था। रे अलि ये क्या किया? आस-पासआकर जो तू, जब इतना मुझे रिझाता था। प्रेम भरी धुन पर मैं तेरी, मचल-मचल जाता था। रे अलि ये क्या किया? ओ! भ्रमर तूने मुझे फिर, चेत में रहने ना दिया। चित्त-चैन चुराकर तूने, विचलित, उद्विग्न फिर मुझे किया। रे अलि ये क्या किया? मधुर गीत गा-गाकर तेरे, पास आने के प्रयास ने। सुंदर-कोमल पंखुड़ियों को, मेरी भेद-भेद विदीर्ण कर दिया। रे अलि ये क्या किया? अंतर में उमड़े प्रेम को, प्राप्त तूने भी ना किया। शांत सरोवर के भीतर तूने, तरंगों-सा कंपन दे दिया। रे अलि ये क्या किया? अब अलि पाटल से कहे..... तुझ पर सम्मोहित हो मैने, घावों का परिणाम सहा। चेतनता को जब पाया तो, मन को घायल मैने किया। रे पाटल ये...
सजदे में सर झुकाओ
कविता

सजदे में सर झुकाओ

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** सजदे में सर झुकाओ या मैक़दे से आओ, कुछ तो पता बताओ कि ईमान कहाँ है? रात का एहसास तो हर सुबह हुआ है, वक्त की करवट से यूँ अनजान जहाँ है। उस धुयें के ढेर से निकला अंधेरा पूछता, वह रौशनी को ढूंढता इन्सान कहाँ है? तनहाईयों से प्यार किया हमने टूटकर, फिर भी मन हमारा बियाबान कहाँ है? जलना पड़ेगा हमको उनके लिये विवेक, देखो तो चराग़ों में अब जान कहाँ है? . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मं...
एक टुकड़ा डबल रोटी का
लघुकथा

एक टुकड़ा डबल रोटी का

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** उन मासूम सी आंखों में दर्द के कतरे स्पष्ट झलक रहे थे। हाथों की हथेलियों में नीली लाल लकीरों का जाल बना था। चाय के दुकान के मालिक के हाथ की लपलपाती छड़ी अभी भी उसकी हथेली चूमने को बेताब थी। किंतु लोगों के जमघट ने उसे रोक रखा था। उस मासूम की दस साल की तजुर्बेकार आंखों में एक संबाल तैर गया।क्या भूख से निढाल हुई बीमार कराहती मां के एक निवाले की खातिर, ग्राहक की प्लेट में बचा डबलरोटी का एक टुकड़ा उठाकर जेब में रख लेना जघन्य अपराध है....? शायद हां....। . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्...
प्रकृति का सौंदर्य
कविता

प्रकृति का सौंदर्य

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज हर्षित नीर नलीन हैं, दृश्य विमोहक, वास हैं, हो प्रमुदित, कर्णिकार पुष्पित, देख कामिनी रास हैं... पात पात कुहूकिनी झूमें, कुहू कुहू के राग पे, मधुप भी मचले हुए हैं, गुन गुन करते नाँद पे... स्वांग रचता मयुर अरण्य में, रमनी को रिझाने में, देख प्रतिबिम्ब, ज्यो लजाई, अंशु निर्मल दरपन में... निर्झरिणी आवेग प्रबल है, तोड़ बाँध, उर सारे, मिलन पि को बह निकली, भाव घुँघरु, बांध न्यारे... सुवास बिखरी हर दिशा में, मन उत्फुल्ल, बोधशून्य हैं, ढूंढ़ते सब, अपनी कस्तूरी, विराजे उर, ज्ञान शून्य हैं... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक ...
सहलाया नहीं गया
कविता

सहलाया नहीं गया

मदनलाल गर्ग  फरीदाबाद ******************** तुमसे दस्ते कर्म बढाया नहीं गया। हमसे जख्म अपना सहलाया नहीं गया। जाहिर होने ना दी दिल की कभी तुमने, और राज़ कोई हमसे छुपाया नहीं गया। खोई रहीं तू तो गोरों में ही बस, हमसे दिल और कहीं लगाया नहीं गया। जाहिर तो थी जफ़ा सब तेरी ही बातों से, पर दिल दीवाने समझाया नहीं गया। हम ढूढते ही रहे अपनत्व तेरी बातों में, तुमसे अपनत्व ही दिखलाया नहीं गया। एक इशारे की चाह में बीती जिन्दगी, पर तुमसे दुपट्टा लहराया नहीं गया। हारा उल्फत की गर्मी दे दे बहुत में, पर दिल तेरा कभी पिघलाया नहीं गया। दर्द मेरे जख्मों का बढता ही रहा बहुत, अश्क एक भी तुमसे बहाया नही गया। उलझाया जीवन तुमने है ऐसा मेरा, ता उमर ही मुझसे सुलझाया नहीं गया। . परिचय :- मदनलाल गर्ग निवासी : फरीदाबाद शिक्षा : मैकेनिकल इंजीनियर निर्देशक : आभा मचिनेस प्राइवेट लि. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...