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एक सोच
कविता

एक सोच

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** एक डर ..........का ? संपूर्ण विश्व पर मानवीय दिमागों पर हावी होना।। जिस का नाम है.......कोरोना सोचता हूँ.......? एक सभ्यता एक समाज को, हर दिमाग की सोच को, जब रोकना हो ....! आगे बढ़ने से ......? तब अफवाह और आधे सच से, जब लोग रू-ब-रू हो जाते हैं। तब कोरोना...... नहीं मारेगा। हम अपने डर से ही मर जाते हैं। तरक्कीयों-उचाईयों को, बढ़ते हुए कदमों को, एक बीमार, डरी सोच मार जाती है। कोरोना से तो, बच सकता था .........विश्व लेकिन मौत के डर से, जिंदगी बे-मौत मारी जाती है। कोरोना का रोना, हर सोच को, डराकर हावी हुई जाती है। जिंदगी इंसानी दौड़ की पहुंच, क्यों .......समझ नहीं पाती है? अपने डर से, जब तक नहीं लड़ेंगे। जब तक विश्व के, पर्यावरण की, सुध हम ही नहीं करेंगे। संपूर्ण विश्व के लिए, सबके ....... जीने की जिद्द नही करेंगे।...
जीवन प्रयोजन
कविता

जीवन प्रयोजन

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** जीवन का प्रयोजन क्या है? यह क्यों है मानव शरीर, जीवन में जन्म से दुख है, मृत्यु दुख- प्रिय सी संयोग बियोग दुख है। यह जगत दुख है फिर भी प्राणी इस दुख मंदिर को- ढोता इसे फेंकता नहीं इसकी विनाश की कल्पना से- सिहर, कांप उठता है फिर नवीन कल्पना करता है! सृष्टि की प्रारंभ से इस गूढ़ रहस्य को- जानने समझने यत्न किया है! करते अभी जा रहे हैं इसमें ज्ञान विज्ञान अभी लगाहै! फिर भी सूर्य उदित होते हैं शशि कलाये में घटती बढ़ती है! महासागर गरजता है आंधी फुफकारती है! तुसारापात हमें ढंढा करता है, आपत जलाता हैं! यह खेल गजब है जीवन का- यह खेल नियति क्यों खेलता है? उसकी गहरी वंदना में-उसे क्या रस मिलता है? फिर उसे बंधनों में जकडने में क्या आनंद मिलता है? प्राणियों के करुण क्रंदन से उसका मन नहीं पसीजता है! शून्यवाद से लेकर अब तक मानव चिंतन जारी है- ज...
सियासी दौर
कविता

सियासी दौर

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** आज देश की हालत देखकर किस पर आरोप लगाऊँ मैं कोरोना जैसे वायरस पर या देश के सियासत दारों पर। ये वायरस तो फिर भी अल्पायु है खतरा तो उनसे है तो दीर्घजीवी बन बैठे। आज सियासत इनकी तो कल किसी और के घर की शोहरत है मन चाहे ढंग से राज किया न प्रेम देश से,न त्याग किया गध्दावर नेता बनकर फिर भी लम्बे समय तक राज किया। कभी मुगलो की हस्ती थी तो कभी अंग्रेजो की बस्ती थी। पर अब तो अपने ही भाई लूट रहे इनसे कौन बचाएगा। आज देश की हालत देखकर अब किस पर आरोप लगाऊँ मैं। . परिचय :- नाम - रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
माहौल
कविता

माहौल

नरपत परिहार 'विद्रोही' उसरवास (राजस्थान) ******************** ग़र कुछ बदलने की चाह हो मन में, तो हर शख्स को नींव की ईंट बनना होगा। करना हो अपने समाज का नव निर्माण, तो हम सबको घर से निकलना होगा।। नव निर्माण होगा समाज का, नशामुक्ति का अभियान छेड़ना होगा। जगेगी शिक्षा की अलख, तभी तो समाज का निर्माण होगा।। सिर्फ हंगामा खडा़ करना मेरा मकसद नहीं हैं बस हर गली-मौहल्ले में शिक्षा की शहनाई बजनी चाहिए। कंगूरा बनने की चाह नहीं हैं मेरी मुझे नींव की ईंट ही रहने दो। भले ही बन जाओं तुम सुघड़ इमारत। पर ये माहौल बदलना चाहिए।।   परिचय :- नरपत परिहार 'विद्रोही' निवासी : उसरवास, तहसील खमनौर, राजसमन्द, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेत...
गुरुवर
दोहा

गुरुवर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** गुरुवर ज्ञानप्रकाश है, गुरुवर अनुभव-खान। और धरा पर कौन है, कहिए मनुज महान। कृपा हुई गुरु की बड़ी, मिला ज्ञान का कोष। मेरे मन में बस गया, सुखदाई संतोष। गुरुवर ने अद्भुत किया, तन-मन पर उपकार। मैने सबकुछ पा लिया, विस्मित है संसार। गुरुवर की महिमा बड़ी, कैसे हो गुणगान। अर्जित विद्या से हुए, शिष्य महा धनवान। पथ-प्रदर्श निज शिष्य का, करते रहते नित्य। गुरुवर धुंधली राह में, बन जाते आदित्य। . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कवित...
बढ़ती उम्र में दोस्त
कविता

बढ़ती उम्र में दोस्त

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** थोड़ी थोड़ी मस्तियां, थोड़ा मान-गुमान। आओ मिलकर रखें, सब ही सबका ध्यान। बढ़ती उम्र कहती है, थोड़ा सीरियस हुआ जाए। किन्तु वक्त का किसे मालूम, कुछ हास-परिहास किया जाए। जब दो हस्ती मिलती है, तो दोस्ती होती है। समुन्दर न हो तो, कश्ती किस काम की। मज़ाक न करें तो, दोस्ती किस काम की। दोस्त ही न हों तो ज़िन्दगी किस काम की। मर्ज तो सताते हैं, बढ़ती उम्र में। हर मर्ज का इलाज, नहीं है अस्पताल में। कुछ दर्द तो यूं ही चले जाते हैं, दोस्तों के साथ मुस्कुराने में। किसका साथ कहां तक होगा, कौन भला कह सकता है। मिलने के नित नए बहाने, रचते बुनते रहा करो। फ़ुरसत की सबको कमी है, आंखों में अजीब सी नमी है। शान से कहते हैं, वक्त नहीं है, यह भी सोचो, वक्त की डोर, किसी के हाथ में नहीं है। कब थम जाए, पता नहीं है। हौसले नहीं होंगे पस्त, साथ हों जब, बढ़ती उम्र में द...
सहर होने दो
कविता

सहर होने दो

श्वेता सक्सेना मालवीय नगर जयपुर (राजस्थान) ******************** मौन को मुखर होने दो, शब्द को शिखर होने दो। त्रास दे रही जो अंतर को, वेदना को प्रखर होने दो। बहने दो पीड़ा बूँद-बूँद होकर, मत रोको, अश्रुओं का समर होने दो। उलझी बहुत है जीवन डोरी, उलझनों को सरल होने दो। क्यों उठा रखा है मनों बोझ मन पर ? दुःख की बदली को विरल होने दो। बीत जाएगी निशा, टूटेगा तिमिर भी, नव स्वप्नों की सहर होने दो। . परिचय :- श्वेता सक्सेना निवासी :- मालवीय नगर जयपुर राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचि...
चट्टानों के नीचे भी
कविता

चट्टानों के नीचे भी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** चट्टानों के नीचे भी होता है पानी हो कितना भी कोई संगदिल दो मीठे बोल ला देते है उसकी भी आंखों में पानी। जो है आनेवाला वो ही है जानेवाला कुछ पल का है ये तमाशा सभी को निभाना है अपने अपने किरदार चंद घड़ियों में गिर जाएगा पर्दा हो जाएगा सब कुछ फ़ानी हो सके तो कर कुछ ऐसा जो भर दे किसी की आँख में पानी जीने को तो सब जी लेते है याद वही रह जाते है जो देते है कुर्बानी। शाहों का शाह है वो वक़्त भी जिसका गुलाम तू तो खिलौना है उसका वो लेता है इम्तहान वो सब देखता है वो सब जानता है मत कर कोई चालाकी मत कर कोई बेईमानी। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान - हिंद...
मेरा स्वाभिमान मेरे पापा
कविता

मेरा स्वाभिमान मेरे पापा

जितेन्द्र रावत मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** हाथ में उनकी डोर। मैं उड़ता गगन की ओर। मेरे सिर पर पापा आपका हाथ रहे। मेरा जीवन सदा आपके साथ रहे। हाथ में उँगली लेकर, सामाजिक दुनिया देखी। अपने स्नेह भाव से, मेरी तक़दीर लिखी। मैं अक्षर, आप कितना बनके साथ रहे। मेरे सिर पर पापा आपका हाथ रहे। मेरा जीवन सदा आपके साथ रहे। बन जाते मेरी ढाल, कसता कोई तंज। ह्रदय इतना कोमल, शरमा जाए पंकज। मेरे स्वाभिमान में, आपकी ठाट रहे। मेरे सिर पर पापा आपका हाथ रहे। मेरा जीवन सदा आपके साथ रहे। प्यारी सी मुस्कान, लचीला है अंदाज। कोयल से भी मोहक, लगती है आवाज़। मेरी बातों में, आपकी ही बात रहे। मेरे सिर पर पापा आपका हाथ रहे। मेरा जीवन सदा आपके साथ रहे। . परिचय :- जितेन्द्र रावत साहित्यिक नाम - हमदर्द पिता - राधेलाल रावत निवासी - ग्राम कसमण्डी कला, मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) शिक्...
स्त्री तुम
कविता

स्त्री तुम

शोभा किरन जमशेदपुर (झारखंड) ******************** स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.... वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.... ज्ञान की तलाश क्या सिर्फ बुद्ध को थी ? क्या तुम नहीं पाना चाहती वो ज्ञान ? किन्तु जा पाओगी, अपने पति परमेश्वर और नवजात शिशु को छोड़कर.... तुम तो उनपर जान लुटाओगी.... उनके लिये अपने भविष्य को दाँव पर लगाओगी... उनकी होंठो के एक मुस्कुराहट के लिए अपनी सारी खुशियो की बलि चढ़ाओगी.... स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.... वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.... क्या राम बन पाओगी ???? क्या कर पाओगी अपने पति का परित्याग, उस गलती के लिए जो उसने की ही नहीं ???? ले पाओगी उसकी अग्निपरीक्षा उसके नाज़ायज़ सबंधो के लिए भी ???? क्षमा कर दोगी उसकी गलतियों के लिए, हज़ार गम पीकर भी मुस्काओगी.... स्त्री तुम पुरुष न हो पाओगी.... वो कठोर दिल कहाँ से लाओगी.... क्या कृष्ण बन पाओगी ???? जोड़ पाओगी अपना नाम किसी प...
तू क्या जाने भगवान!
कविता

तू क्या जाने भगवान!

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** विधा - करुण रस तू क्या जाने भगवान! रात भर हर दिन ही खटमल-मच्छर के बीच सुख से सोना क्या होता है। तू क्या जाने भगवान ! हर दिन ठण्ड से ठिठुरना, कैसा हमका लगता है ! तू क्या जाने भगवान! जि-कर मरना, मरकर जीना कितना मुश्किल होता है! रात भर दर्द में रहकर सुबह सब अच्छा ही है, कहना, कैसे? संभव होता है ! तू क्या जाने भगवान ! बेघर होकर दर-दर भटकना, हम किस तरह कर पाते हैं, अो बादलों के आलीशान ! महलों में हमेशा रहने वाले, जीवन-मृत्यु ,खेलने वाले ! आओ एक बार फिर तुम इस धरती पर बनकर के तुम भी वो अबला नारी, कुचली जाती मसली जाती कभी जो और जिसकी इच्छाएं। बन कर आओ वो पिता एकबार। जो अपने जवान बेटी को कंधा, जिसे कभी देना होता है। कारण तुम्हारी बनायी इस... धरती पर जो एक न एक राक्षस हरदम पलता है। बनकर बहुत आ लिए संहारक तुम, बस केवल एक बार शिकार हम ज...
किताबें
कविता

किताबें

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** किताबें भी कहती हैं शब्दों में हमसे कुछ ज्ञान पाते रहो हमें भी अपने घरो में फूलो कि तरह बस यूँ ही तुम सजाते रहो किताबें बूढी कभी न हो तो इश्क कि तरह ये ख्यालात दुनिया को दिखाते रहो कुछ फूल रखे थे किताबों में यादों के सूखे हुए फूलो से भी महक ख्यालो में तुम पाते रहो आँखें हो चली बूढी फिर भी मन तो कहता है पढ़ते रहो दिल आज भी जवाँ किताबों की तरह पढ़कर दिल को सुकून दिलाते रहो बन जाते है किताबों से रिश्ते मुलाकातों को तुम ना गिनाया करों माँग कर ली जानें वाली किताबों को पढ़कर जरा तुम लौटाते रहो . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और ...
बुढ़ापा
लघुकथा

बुढ़ापा

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** वह हाँपता-काँपता-खाँसता झुककर दोहरी झुकी कमर को तनिक सीधा करने का असफल प्रयत्न करता हुआ बुरी तरह से,छटपटा रहा था । अकस्मात मृत्यु ने प्रत्यक्ष होकर कहा, हमारा मिलन तो अटल ही था, फिर तू क्यों भयभीत हो रहा है? अगर तू सोचता हैं, झुककर मेरी नजरों से बच जायगा तो यह तेरा भ्रम है। मैं तुझसे भयभीत नहीं हूँ मैं तो तेरा स्वागत करने को तैयार बैठा हूँ, बुढ़ापे ने बिलखकर जवाब दिया। मेरे झुकने का कारण भी तेरी, नजरों से बचना नहीं बल्कि मेरी कमर तो झुक रही है, संसार से लिये हुए अपार कर्ज और भार से। मुझे हर समय यह ध्यान रहता है कि संसार से जितना मैने लिया, उसका एकांश भी चुका नहीं पाया। इसलिए मेरी कमर कर्ज भार से, और गर्दन ग्लानि से झुकी रहती है। यह सुनकर मृत्यु ने भी अपनी गर्दन झुका ली.... . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इ...
राष्ट्र हित में
कविता

राष्ट्र हित में

दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** चंद पंक्तियाँ राष्ट्र हित में, उन समस्त दंगाइयों के नाम एक संदेश, जो राष्ट्र में दंगे करवाते हैं, चाहे वह महिला हों या पुरुष। हर वादे पूरे करते हैं, बातों के बिल्कुल सच्चे हैं। मूर्ख समझते हैं हमको, अफसोस अभी तक बच्चे हैं।। झूठ अभी तक फितरत में, वो राष्ट्रद्रोह कर जाते हैं। जो राष्ट्र हितैषी होते हैं, वो सरहद पे मर जाते हैं।। वह राष्ट्र हितैषी कभी नहीं, केवल द्रोही कहलाते हैं। जो चंद सियासी लालच बस, घर में दंगे करवाते हैं।। लंम्बे भाषण जो देते हैं, और राष्ट्र धर्म बतलाते हैं। वह राणा की औलाद नहीं, अपनी औकात बतलाते हैं।। वह नहीं लक्ष्मीबाई हैं, जो कल दंगे करवाई हैं। नाहीं प्रताप की पुत्री हैं, जो घास की रोटी खाई हैं।। चंद कौडियो की भूखी, नादान अभी तक बच्ची हैं। परिपक्व नहीं हो पाई हैं, वह अक्ल कि पूरी कच्ची हैं।। . परिचय...
किताबें भी एक दिमाग रखती है
कविता

किताबें भी एक दिमाग रखती है

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** किताबें भी, एक दिमाग रखती हैं। जिंदगी के, अनगिनत हिसाब रखती है। किताबें भी, एक दिमाग रखती हैं। किताबें जिंदगी में, बहुत ऊंचा, मुकाम रखती है। यह उन्मुक्, आकाश में, ऊंची उड़ान रखती है। किताबें भी, एक दिमाग रखती हैं। जिंदगी के, अनगिनत हिसाब रखती हैं। हमारी सोच के, एक-एक शब्द को, हकीकत की, बुनियाद पर रखती है। किताबें जिंदगी को, कभी कहानी, कभी निबंध, कभी उपन्यास, कभी लेख- सी लिखती है। किताबें भी, एक दिमाग रखती है। जिंदगी के, अनगिनत हिसाब रखती है। यह सांस नहीं लेती। लेकिन सांसो में, एक बसर रखती है। जिंदगी की, रूह में बसर करती है। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
उनके तो रूबरू
कविता

उनके तो रूबरू

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म .प्र.) ******************** उनके तो रूबरू जश्न चलते रहे, हम अंधेरों में करवट बदलते रहे। आसमाँ इस ज़मीं से कहाँ दूर था, हम खुद को खयालों से छलते रहे। झिलमिलाते हुए चाँद को देखकर, चाँदनी में पिघलकर बहलते रहे। रहबरों की ज़ुबानी सही मानकर, हम कई बार गिरकर संभलते रहे। हमें क्या पता था धुआँ उठ रहा, हम बेखुद से बेबस सुलगते रहे। बेखबर थे सफ़र में मंज़िल से मगर, रौशनी के लिये हम मचलते रहे। हसरतों के आईने यूँ ही देखो विवेक, मुस्तकबिल के जहाँ ख्वाब पलते रहे। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थान...
सफेद दाग़
कहानी

सफेद दाग़

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ******************** दीपक ने आज भी कुछ नहीं कहा। हमेशा की तरह वह आज भी हंसता और हंसाता रहा। शाम के चार कब बजे पता ही नही चला। स्कूल की छुट्टी का समय हो चूका था। अवन्तिका बुझे मन से अपना सामान समटने लगी। मगर वह निराश नहीं थी। उसे विश्वास था कि दीपक आज अपने दिल की बात बता देगा। वह अवन्तिका से मिला भी किन्तु उसने ज्यादा कुछ नहीं कहा। दीपक ने अभी छः माह पुर्व ही स्कूल ज्वाइन किया था। यहां तीस से अधिक शिक्षकों का स्टाॅफ था। दीपक को अनुभव और पद के अनुरूप अपनी लाॅबी की शिक्षकों में सम्मिलित होने हेतु आमंत्रण मिला। दीपक इसके लिये कतई तैयार नहीं था। वह मिलनसार था। उसकी प्रत्येक गुट में घुसपैठ थी। सभी शिक्षक उसे पसंद करते। उससे किसी शिक्षक का कभी मनमुटाव नहीं हुआ। दीपक सर्वप्रिय था। अवन्तिका के साथ भेदभाव का व्यवहार देखकर दीपक को अप्रसन्नता हुई। अवन्तिका अपने सफेद दाग़ छ...
कोदरिया में रंग-बिरंगी काव्य गोष्ठी संपन्न
साहित्यिक

कोदरिया में रंग-बिरंगी काव्य गोष्ठी संपन्न

महू: नि.प्र. ग्राम कोदरिया में सरदार पटेल नगर स्थित महू अंचल के लोकप्रिय साहित्यकार धीरेन्द्र जोशी के निवास पर साहित्य मित्र मंडल कोदरिया की रंगपंचमी के अवसर एक रंग-बिरंगी काव्य गोष्ठी संपन्न हुई। धार के मंचीय कवि नरेंद्र मांडलिक अध्यक्ष एवं मालवी कवि रमेश आंजना कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। कवि धीरेन्द्र जोशी के संचालन में कवि श्री राधेश्याम गोयल, डॉ संजय श्रीवास्तव, सुलभा जोशी, सुषमा दुबे, ललिता जोशी, कीर्ति श्रीवास्तव, द्रोणाचार्य दुबे ने होली की हास्य रस से भरपूर कविताओं एवं गीतों का देर रात तक रचना पाठ किया। आभार प्रदर्शन शैलेन्द्र जोशी ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ रंग-गुलाल होली से हुआ तथा समापन स्वादिष्ट स्वल्पाहार से हुआ। कार्यक्रम के दौरान स्वर्गीय श्रीधर जोशीजी की साहित्यकार बेटियों सुलभा जोशी एवं सुषमा दुबे का जन्मदिन के अवसरबी पर सम्मान भी किया गया। कवियों की प्रमुख पंक्तियां ....
मीडिया कितना कारगर
आलेख

मीडिया कितना कारगर

डॉ. विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** कोलाहल भरे वातावरण में जहां दूरदर्शन और मोबाइल की वजह से परिवार में वार्ता लाप, दादा-दादी के किस्से और कहानियों के साथ अच्छे-बुरे की सीख और समझ से परे आज की नई पीढ़ी होती जा रही है। बच्चों के लिए तो विभिन्न प्रकार के खेल मोबाइल पर चल रहे है उसमे बच्चे रम रहे है। मोबा इल पर जानलेवा खेल खेलकर पूरे विश्व मे कई बच्चे आत्महत्या कर चुके है या अपराध की ओर उन्मुख हो गए। कई परिवारों की आर्थिक स्थिति ठीक नही होने के बावजूद मोबाइल के लिए लड़के-लड़कियां लालायित रहते है। छोटे से लेकर बड़े बच्चों का मोबाइल आप बन्द नही करवा सकते, मोबाइल की मांग पूरी करना ही पड़ेगी ! आपका मोबाइल बच्चों को देना ही पड़ेगा ! नही तो बच्चे चिढ़-चिढ़े होकर अत्यधिक आक्रोश व्यक्त करने लगते है, खाना नही खाएंगे, आपका कोई काम नही करेंगे, समान उठा-उठाकर फेंकेंगे, यहां तक कि वे गुस्से ...
तू मेरी मैं तेरा रहूँ
कविता

तू मेरी मैं तेरा रहूँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** ख्यालों में पल - पल तुझे सोचता हूँ मैं ख्वाबों में भी अब तुझे ही देखता हूँ मैं। सुकूँ मिलता है अब तुझे महसूस करके इस दिलो जां में समेटे तुझे घूमता हूँ मैं। बस यही आरजू है तू मेरी मैं तेरा ही रहूँ तेरे दिल की हर धड़कन में गूंजता हूँ मैं। लोग कहते हैं मुझको हूँ भुलक्कड़ बड़ा सब भूलकर भी एक तुझे ना भूलता हूँ मैं। पाकर तुझे जन्मों की तलाश हुई पूरी मेरी और पाने की तलाश में नहीं दौड़ता हूँ मैं। ये हाथ जब उठते हैं दुआओं के लिए मेरे तू मेरी हो हर जन्म, खुदा से मांगता हूँ मैं।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आक...
पीकर आंसुओं को
मुक्तक

पीकर आंसुओं को

दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** जो पीकर आंसुओं को भी, स्वयं हीं मुस्कुराती हैं। करें बलिदान इच्छा सब, न जाने सुख, क्या पाती है।। हर एक चौखट की मर्यादा है,जिनके अपने हाथों में। वो रणचंडी, भवानी हीं, यहां नारी कहाती हैं।। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। २) समरसता का भाव लिए, रंगो के पावन छांव तले, होली का यह त्यौहार कहे, जीवन में प्रीत का रंग भरे।। समरसता के पावन पर्व होली की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ। ३) इश्क़ में पागल वो आशिक फिर रहा है आज भी। शाह वो मेरा बना और मैं बनी मुमताज भी।। प्यार बेश़क मैने उससे हीं किया था सच है ये। पर ये कैसे भूल जाती, हूँ पिता की लाज भी।। माता पिता को समर्पित। ४) निद्रा का अब, ढोंग रचाकर, मौन कहां तक साधेंगे। बाधाओं को, पीठ दिखाकर, रण से कब तक, भागेंगे। लक्ष हम अपना, साधेंगे,अब तोड़ तमस की सघन घटा। बहुत हुआ अ...
आज होली खेलें अपने आंगन में
कविता

आज होली खेलें अपने आंगन में

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** आज होली खेलें अपने आंगन में। रंगों का त्योहार मनाएं फागुन में।। टेसू के रंग यूँ बरसाए , तन मन पीला हो जाये। ईर्ष्या-नफरत दूर रहे, मन प्रेम से भर भर जाए। रिश्तो के फूल खिलाए गुलशन में। आज होली खेले अपने आंगन में। हरा रंग हम ऐसे बरसाए , कण-कण हरियाली होजाए । जन-जन की भूख मिटे , घर पर खुशहाली आजाए। मेहनत के फूल खिलाए उपवन में। आज होली खेलें अपने आंगन में। वंशी कीतुम तान सुनाओ, राधा बन हम रंग बरसाएं। रंग पिचकारी भर-भर के , मन का सार संसार लुटाएं। हम तुम दोनों रास रचाए मधुबन में। आज को खेलें अपनी आंगन में। .परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) निवासी - इंदौर म.प्र. व्यवसाय - सेन्ट पाल हा. सेकेंडरी स्कूल इन्दौर से सेवानिवृत्त शिक...
कोरोना
आलेख

कोरोना

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** कोरोना रो_कोना। आने दो स्वागत करो। जी भर भर स्वागत करो। जनता मेरे देश की जनता। स्वदेश का नारा लगा लगा कर स्वदेश को नहीं पहचान पा रही जनता। कितना अपने आप को धोखा देना है। क्या इस शिक्षित युग में अब भी हमारी जनता को अंगुली पकड़कर चलना सिखाना होगा। आजादी के बाद इतने वर्षो में कम से कम हर नागरिक इतना तो शिक्षित हो ही गया होगा की उसे स्वयं के भले बुरे का ज्ञान होने लगा होगा। घर परिवार की परिस्थितियों से निपटने की क्षमता यदि है तो कुछ देश के लिए योगदान भी समझ में आता होगा। हम हर पहलू से सोचे तो सोच यहीं निकल रही है कि हम सब ठीकरे दूसरे के माथे ही फोड़ेंगे। किसी भी दल की सरकार हो। उसमें कितने भी कपट छल वाले लोग भरे हो, हमारी समझ कहां जाती है। यदि हम प्रधानमंत्री के पद तक के दावेदार चुन सकते हैं तो हम इतनी बुद्धि तो रखते ही है कि हम...
ग्राम नेऊ गुराड़िया में विराट कवि सम्मेलन सम्पन्न
साहित्यिक

ग्राम नेऊ गुराड़िया में विराट कवि सम्मेलन सम्पन्न

महू। बीती रात अखिल भारतीय साहित्य परिषद महू इकाई के तत्वाधान में प्रायोजक श्री इन्दरसिंह जी तंवर की वैवाहिक वर्षगांठ पर शानदार विराट कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में मुख्यरूप से नारी को समर्पित कविताओं का पाठ किया गया। आमंत्रित कवियों में धीरेन्द्र जोशी, विनोदसिंह गुर्जर, एस के अस्थाना, भगवानदास तरंग, दामोदर विरमाल, यश कौशल, शिवकुमार शर्मा, डॉ. विमल सक्सेना, देवांशी गुर्जर, विजय पांडे आदि ने अपनी एक से बढ़कर एक कविताएं सुनाई व देर रात तक समां बांधे रखा। इसी बीच प्रायोजक व गांव के वरिष्ठ जनों द्वारा कवियों को सम्माननित किया गया। वरिष्ठ कवि धीरेन्द्र जोशी द्वारा सफल संचालन किया व छायांकन सत्यप्रकाश चौहान द्वारा किया गया। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्...
मेरी रूह हो तुम
कविता

मेरी रूह हो तुम

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मेरा दिल मेरी धड़कन मेरी रूह हो तुम मेरी कलम से निकले अल्फाजों का एहसास हो तुम मैं चुप रहूं या बोल दूं मेरे दिल का जज्बात हो तुम मैं चांद बनूं चांदनी बनकर मुझ पर बिखर जाओ तुम मैं बादल तेरा और मेरी बारिश हो तुम मैं कजरा तेरा कजरे की धार हो तुम एहसास इतना है तो मैं कहता हूं तुम्हें लगता है जैसे आसपास ही हो तुम मेरी हसरत भरी पहली मुलाकात हो तुम जो मैं गुनगुनाता हूं वो प्यारा सा साज हो तुम मेरा प्यार मेरा ईमान मेरा जहां हो तुम हाथ बढ़ाया है तेरी तरफ अब थाम लो तुम आ अब लौट चलें तुझे लेकर अपने घर मेरा दिल मेरी धड़कन मेरा एहसास हो तुम मेरे सीने में उमड़े प्यार का तूफान हो तुम आगोश में समा कर इस तूफान को थाम दो तुम मेरा दिल मेरी धड़कन मेरी रूह हो तुम मेरी कलम से निकले अल्फाजों का एहसास हो तुम।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनी...