एक सोच
प्रीति शर्मा "असीम"
सोलन हिमाचल प्रदेश
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एक डर ..........का ?
संपूर्ण विश्व पर
मानवीय दिमागों पर हावी होना।।
जिस का नाम है.......कोरोना
सोचता हूँ.......?
एक सभ्यता
एक समाज को,
हर दिमाग की सोच को,
जब रोकना हो ....!
आगे बढ़ने से ......?
तब अफवाह
और आधे सच से,
जब लोग रू-ब-रू हो जाते हैं।
तब कोरोना...... नहीं मारेगा।
हम अपने डर से ही मर जाते हैं।
तरक्कीयों-उचाईयों को,
बढ़ते हुए कदमों को,
एक बीमार,
डरी सोच मार जाती है।
कोरोना से तो,
बच सकता था .........विश्व
लेकिन मौत के डर से,
जिंदगी बे-मौत मारी जाती है।
कोरोना का रोना,
हर सोच को,
डराकर हावी हुई जाती है।
जिंदगी इंसानी दौड़ की पहुंच,
क्यों .......समझ नहीं पाती है?
अपने डर से,
जब तक नहीं लड़ेंगे।
जब तक विश्व के,
पर्यावरण की,
सुध हम ही नहीं करेंगे।
संपूर्ण विश्व के लिए,
सबके .......
जीने की जिद्द नही करेंगे।...























