बुजुर्गो की वसीयत
मनीषा व्यास
इंदौर म.प्र.
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प्रयास यही है कि ये उम्मीद बची रहे।
बुजुर्गो की दी वसीयत बची रहे।
तिनका तिनका पिरोकर जो संस्कार रूपी मोती पिरोए थे।
उन मोतियों की माला बची रहे।
बच्चों के बीच दूरियां न हो ......
इसके सिवा एक मां को चाहिए भी नहीं कुछ।
पल पल फूलों की पंखुड़ियों सा संजोकर समेटी है ये छोटी सी दुनिया।
दौलत हो न हो पर ये मोहब्बत बची रहे।
बिखरे फूलों का अस्तित्व
नहीं है।
कहते है परिंदों के झुंड भी बिखरकर खो जाते हैं।
बिना संस्कारों के घर बिखर जाते हैं।
संस्कार न जाने कब गुलाब सी माला पिरो जाते हैं।
बुजुर्गों की दी धरोहर बची रहे।
प्रयास यही है कि ये आस बची रहे।
परिचय :- मनीषा व्यास (लेखिका संघ)
शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत)
रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा ...






















