बासंती गीत
भीमराव झरबड़े 'जीवन'
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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थिरक रहे अधरों पर आकर,
फिर बासंती गीत।
विहँस-विहँस मकरंदित श्वासें,
गाएँ रसिया फाग।
दृग-चकोर भी परख रहे हैं,
विधुवदनी तन राग।।
स्वरलहरी के हाथ लगी है,
स्वर्ण पदक की जीत।।
खिले-खिले महुए के जैसा,
तन हो गया मलंग।
टपक रहा है अंग-अंग से,
जो यौवन का रंग।।
प्यास पपीहे-सी भड़काये,
तन में कामी शीत।।
भाव हुए टेसू-से खिलकर,
जलते हुए अलाव।
प्रेमिल शब्द बने जख्मों का,
करने लगे भराव।।
मन का सारस परिरंभन के,
पाले स्वप्न पुनीत।।
मदिर गंध से आम्र मंजरी,
भरती उर उत्साह।
दिखा रही है हीर जिधर है,
चल राँझा उस राह।।
शब्द-शब्द से प्रेम व्यंजना,
'जीवन' कहे विनीत।।
परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन'
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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