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दीपावली
कविता

दीपावली

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** झिलमिल झिलमिल आई दिवाली, खुशियों की सौगातें लाई। बच्चें बूढे सभी के मुख पर मुस्कुराहट आई। जब जब दिवाली आती, मन के दीपक है जल उठते, स्नेह युक्त दीपक बाती में, दिल से दिल घल मिल जुड़ते। झूठी चमक दमक में दबकर, दम दम जी दम फूल रहा, तेल बिना सूखी हैं बाती, जीवन पल पल झूल रहा, क्या मालुम कब कोन बुझेगा, बहकी बहकी बयार चल रही, दीपक द्धष्टी दिशाहीन हैं, कैसे दीप जलेगा मन का, वातावरण विषाक्त चहूँदिश कंपित दीपक है जनमन का। हालातों पर गौर करों अब कैसे जन का दीप जलें फिर, दानवता का दमन करों अब, मानवता दिनमान फलें फिर। घर समाज देश हित सारे दीपों की रौनक बढ़ जावे। राजी हो लक्ष्मी गणेश, पूजन से पूरन हो काज, दीपों की आभा से निखरें, तन मन घन तीनोँ के साथ। आशा प्रदीप जन मानस का, कल पुनः प्रजित प्रजलित होगा, रात के बाद दिन होता है मंगल प्रभात प्रस्फुटित होगा।...
धन तेरस… हो मन तेरस…
कविता, व्यंग्य

धन तेरस… हो मन तेरस…

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** धनतेरस धनवान बने, धन बरसे, ना मन तरसे। सभी भुभेच्छा यही आज, देता सारा सकल समाज।। किंतु ...! मेरे कवि ह्रदय ने नया पर्व का नाम दिया .... मनतेरस। धन तेरस .. हो..जन तेरस ..हो मन तेरस ..।। मनतेरस का पर्व मनायें हम सब। दुखिया के घर खुशियां लायें हम सब।।.... जिनकी आंखों में सागर तैर रहे। हाय वेदना उनकी हर जायें हम सब।।... जिनके घर दीपक घी के जार रहे, भूखे तक कुछ तेल पहुंचायें हम सब।।... जिन्हें दरिद्रता ने अभिषापित कर डाला, गहरे घावो तक मरहम दे आयें हम सब।।... त्योहारों को जो सीमा पर मना रहे, उनकी यश गाथा को गायें, हम सब।।... धनतेरस का मतलब शायद जान चुके, आओ मिल अभियान चलायें हम सब .... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यका...
समय
कविता

समय

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** दूर सुदूर आकाश के उस छोर को ताकता, या कहे शून्य निहारता मैं, हा मैं साथ होगा भी कौन, मैं तो है ही, शाश्वत अकेला, नितांत अकेला। एक भ्रम होता है, हम, होने का वही बुनता है, भ्रमजाल मायाजाल मै, उलझता है उलझता जाता है, महसूस करता है अपने, चहु और, अपने जागती आंखे दिखती है सपने। खो जाता है, मै, भूल कर मै। दौड़ता है, कस्तूरी मृग सा मरुस्थल में। दौड़ खत्म नही होती, भ्रम सिर्फ भ्रम समय, शिकारी सा बाट जोहता, दिखाई नही देता। और जब तक मैं ये जान जाता मृगतृष्णा, शून्य से ताकता समय त्रुटि नही करता। वो जनता है, वो शिकारी है और हैं सामने शिकार। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर...
चापलूसी नहीं हुई मुझसे
कविता

चापलूसी नहीं हुई मुझसे

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** चापलूसी नहीं हुई मुझसे, सो हूं पीछे मैं इस जमाने में। मयकशी चीज़ है खराब बहुत, तुम न जाना शराबखाने में। कामयाबी नहीं मिली मुझको, आज तक साथ तेरा पाने में। क्या दिखाऊंगा राह में तुझको, मैं तो नाकाम हूं जमाने में। मैंने घर पर बुलाया है उसको, वो है मजबूर आज आने में। जिसकी फुरकत में जान दी मैंने, था वो सबसे अलग ज़माने में। लेखक परिचय :- शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख...
अरे कब समझेंगे ये लोग
कविता

अरे कब समझेंगे ये लोग

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** अरे कब समझेंगे ये लोग। क्यों जानकर हैं लगवा रहे ये अपना काल को भोग।। जब भी अखबार खोली जाती है। एक न एक मौत की खबर दिख जाती है।। मानता हूँ होना है सो होना है । पर थोड़ा तो अपना रक्षा का सोचना है। मुझको है ये नहीं समझ आता। है हेलमेट पहनने से इनका क्या है चला जाता।। आखिर क्यों नहीं समझते ये लोग। घर पर इन्तजार कर रहा है कोई इनका। एक छोटी सी भूल। और बिखर जाता है सब कुछ बनके तिनका -तिनका। क्या कर लेते हैं ये लोग। इतनी तेज रफ्तार का लगाकर यूँ रोग।। अन्त में क्या कहा जा सकता है इनसे। यूँ जान गँवाना है। तो जाकर सरहद पे गँवाओ। अब ऐसे माँ बाप को न तरशाओ।। वैसे जाओगे तो गर्व होगा देश को तुम पर। ऐसे जाओगे तो। सोचेंगे लोग पल भर।। माँ बाप ने बड़े प्यार से है पाला। मत बनो यों मतवाला। कितनी बार बताएंगे तुमको। हेलमेट पहनने पुलिस कहती है। सुरक्षित करने को...
प्यार किया मैने भी
कविता

प्यार किया मैने भी

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** प्यार किया मैने भी सखी, कजरारी आँखो बाले से, घुँघराले बालों बाले से, प्यार किया मैने भी सखी। नित आता मेरे सपनो में, मीठी मीठी बाते करता सपनो में, मै उसके नयनों में खोती हूँ, वह मेरे नयनों मे खोता है, मै आँख मूंद लेती जब जब, वह मुझे निहारा करता है, ऐसे स्नेह सिग्ध मतबाले से, प्यार किया मैने भी सखी। वह सबके दिल को है चुराता, वह चैन लूटता वह नीद चुराता, पल मे आता पल मे जाता, पर प्यार को वह समझ न पाता, ऐसे नटखट और लुटेरे से, प्यार किया मैने भी सखी। कुछ पल रहा वह पास मेरे, फिर दूर देश वह चला गया, वादा करके आउँगा मै जल्दी, वह अब तक लौट नही पाया, ऐसे परदेशी निर्मोही से, प्यार किया मैने भी सखी। पर यादो मे वह हर पल रहता, इस दिल मे बास उसी का है, वह भी उदास होगा मुझ बिन, यह भी अहसास मुझे रहता, उस चितचोर मनभावन से, प्यार किया मैने भी सखी प्यार किया ....
कविता

ये माटी के दीपक धरा रोशन कर दे

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** तिमिर को जीत कर आलोक कर दे। ये माटी के दीपक धरा रोशन कर दे।। तू तूफानों से घबराया न कभी भी रे। तू अज्ञान को अंतर्मन से दूर कर दे।। खिला दे रोशनी में मुरझे चेहरों को। तू खिलखिलाता अब चेहरा कर दे।। उदास है जो युवा खोए खोए से हैं। उनकी ज़िंदगी मे अब उजाले कर दे।। तेरी रोशनी में पतंगें दौड़े चले आते। उन पतंगों के परों में जरा जान भर दें।। उजालों की सबको चाह है यहाँ बेशक। तू अमावस को भी धवल निशा कर दे।। जो बड़ी आस कर हाथों में तुम्हें थामें। उन हाथों की लकीरों को रोशन कर दें।। . लेखक परिचय :- राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्...
दीप बन जाएं
कविता

दीप बन जाएं

श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' इंदौर म. प्र. ******************** आओ हम आज दीप बन जाए आओ हम आज मिलके जल जाएं दीप से दीप हजारों जलते हैं साथ चलने की हम कसम खाएं बनके जुगनू अंधेरी रातों में ज़र्रा ज़र्रा में हम बिखर जाएं हो गए जो पतझड़ में गुमसुम उन चिरागों को रोशन कर डालें टूटकर जो बिखरे 'अवनि' पर उनके पंखों को आसमां दे दें बनकर कुंदन तिलक बन जाएं आओ जल जल के 'जल' बन जाए . लेखिका परिचय :- नाम - श्रीमती मीना गोदरे 'अवनि' शिक्षा - एम.ए.अर्थशास्त्र, डिप्लोमा इन संस्कृत, एन सी सी कैडेट कोर सागर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय दार्शनिक शिक्षा - जैन दर्शन के प्रथम से चतुर्थ भाग सामान्य एवं जयपुर के उत्तीर्ण छहढाला, रत्नकरंड - श्रावकाचार, मोक्ष शास्त्र की विधिवत परीक्षाएं उत्तीर्ण अन्य शास्त्र अध्ययन अन्य प्रशिक्षण - फैशन डिजाइनिंग टेक्सटाइल प्रिंटिंग, हैंडीक्राफ्ट ब्यूटीशियन, बेकरी प्रशिक्षण आद...
मुद्दे ! समस्यांएंऔर उनकी परिणति
आलेख

मुद्दे ! समस्यांएंऔर उनकी परिणति

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र. ****************** यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा कह सकते है। मुद्दों के बारे में यह कि तात्कालिक विषयों को हम जब अल्पावधि में विचार कर तर्क संगत परिणिति तक पहुचाते है तब उन्हें मुद्दे कहना न्याय संगत होता है। मुद्दों को जब हम समय के अभाव में या पसंद नापसंद के धरातल पर तोलकर या अहंकारवश या और किसी कारण से अतार्किक पद्धति से परिणिति तक पहुचाने का प्रयास करते है तब मुद्दा अपना मूल रूप और क्षमता खो देता है। फिर जो बचता है वह मुद्दे को तर्क वितर्क और कुतर्क के साथ एक मजबूत अहंकार में बदल देता है। इसके बाद जो परिणाम होते है वह स्वार्थो का टकराव और अहंकार का शिखर जो स्पष्ट रूप से आचार विचार और व्यवहार में परिलक्षित होता है। मेरा अपना स्पष्ट मानना है कि कितनी भी विपरीत परिस्थितियां हो इनसे अपने आप को बचाए रखना चाहिए। परिस्थितियों पर नियंत्रण नहीं हो सकने के कारण मुद्...
सफाई अभियान
लघुकथा

सफाई अभियान

सुरेश सौरभ निर्मल नगर लखीमपुर खीरी ********************** वह लड़का कंधे पर बोरी लटकाए कूड़ा बीन रहा था, तभी उसके सामने एक लग्जरी गाड़ी आकर रुकी। उसका दिल बैठने लगा। गाड़ी में कुछ सूट-बूट वाले बाबू लोग बैठे थे। उनमें से एक बाबूजी बाहर निकले और लड़के से बोले-ऐ! लड़के इधर आ। लड़का डरता हुआ बाबूजी के करीब आया । उसकी बोरी की ओर इशारा करके थोड़ा ऐंठ कर-ऐ! लड़के, ये बोरी १०० रुपए की देगा। लड़का सकते में आ गया। बीस-तीस रुपए बोरी बिकने वाले कूड़ा को कोई सौ रूपए की मांग रहा है, यह सोच वह हैरत में था, फिर भी थोड़ा हिम्मत जुटा कर बाबू जी से बोला-साहब दो सौ लगेंगे। "ठीक है। ये पकड़ दो सौ, पीछे डिग्गी में डाल दे। "कूड़े की बोरी डिग्गी में पहुंच गई। दो सौ रुपए पाकर उसकी बांछें खिल गईं। बाबू लोग फुर्र से उड़ गए। उन बाबूओं ने अपने कार्यालय पहुंच कर बड़े साहब से कहा-काम हो गया।तब बड़े साहब बहुत खुश ह...
बच्चों को तराशने वाला जौहरी कौन ?
आलेख

बच्चों को तराशने वाला जौहरी कौन ?

विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** जिन पालकों के पास थोड़ा बहुत पैसा आना शुरू होता है, वह अपने बच्चों कोअशासकीय विद्यालयों में प्रवेश करा देता है।       रेत छानने के चलने में से बारीक रेत छन जाती है व अनुपयोगी बंडे अलग रख दिये जाते है, वैसे ही अत्यंत दयनीय आर्थिक स्थिति वाले पालकों के अधिकांश बच्चे शासकीय विद्यालयों में प्रवेश लेते है। उनके प्रवेश के लिए भी शिक्षकों को काफी मशक्कत करना पढ़ती है। देखा जा रहा है झोपड़ पट्टियों,पन्नी-बोतल, लोहा-लंगर बिनने वालों, सस्ता सामान बेचने वालों, भिक्षावृत्ति करने वालों दाड़की, दानी-दस्सी करने वालों के बच्चे लगभग शासकीय विद्यालयों में पढ़ रहे है,कुल मिलाकर कहा जा सकता है यानी क्रीम निकालने के बाद बची छाछ प्रवेशित होती है,ऐसे छात्र चेलेंज के रूप में स्वीकार किये जाकर छाछ में से पुनः मंथन कर क्रीम निकालने का दुष्कर कार्य शिक्षक को करना ...
स्नेह की ज्योति
कविता

स्नेह की ज्योति

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** प्रिये लेकर दिया यूं चले आओ तुम पिय के हिय को पावन बनाना तुम्हें। पिय के हिय से तिमिर कि छाया हटा हिय में स्नेह कि दीपक जलाना तुम्हें। यह दीपो का उत्सव अनोखा प्रिये आओ बाती सा हिय को नाजुक करें। मन में बैठे पतंगें जो द्वेशों के है। आओ मिलकर उन्हें भी भावुक करें। चक्षु दिपे जो डूबी हुई है घृत से बन बाती उजाला है करना प्रिये। इस बार दिवाली मे नये ढंग से हम दोनों को साथ है चलना प्रिये। चलो स्नेह कि ज्योति जलाते है अब तिमिर द्वेश कि छायी है सारे धरा पे। चलो पहले तो अपना ही द्वेश जलाए फिर स्नेह फैलाते है सारे धरा पे। . लेखक परिचय :-  प्रिन्शु लोकेश तिवारी पिता - श्री कमलापति तिवारी स्थान- रीवा (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
आलेख, निबंध

दीपावली मिलन का त्योहार है

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ********************   कार्तिक मास की अमावस्या को हम प्रतिवर्ष दीपावली का त्योहार मनाते हैं। भगवान श्री रामचन्द्र जी चौदह वर्ष के वनवास के बाद वापस इसी दिन अयोध्या लौटे थे। इसी खुशी से अयोध्या की प्रजा ने घी के दीप जला कर रोशनी की थी। भगवान के अवध पधारने के लिए उनका स्वागत सत्कार अगवानी की थी। दीपावली प्रकाश का त्योहार है। व्यक्ति अपने आप मे एक प्रकाश है। लोग इस दिन मिठाइयां बांटते है। खुशी मनाते हैं। नये वस्त्र पहनते हैं।सारे दुख दर्द भूल जाते हैं।पटाखे चलाते हैं। धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजन करते हैं।ऐश्वर्य सुख समृद्धि की कामना करते हैं। इस त्योहार पर बैलों गायों के साथ पशुधन की पूजा भी की जाती है। आज के दिन बुद्धिमत्ता का प्रकाश सबके भीतर होता है।जीवन का उत्सव लोग खुशी से मनाते हैं।धन और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी की पूजा कर लोग समृद्धि ...
प्रेम की रचना
कविता

प्रेम की रचना

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** मुझे हल्के में लेने से, तुम्हारा फ़ायदा ही क्या चलता रेत पर हूँ मैं, तुम्हें अन्दाज़ा है इसका क्या शराफ़त से भरी महफ़िल में, रहना शौक है मेरा वरना है दुनियां से, मुझे लेना ही देना क्या किसी के प्यार के आँसू, किसी के पाप के आँसू बहते आँसुओं से है, तुमने जान पाया क्या हमारी याद में जलकर, उसने खुद को राख कर डाला मुझको न पता था कुछ, इसमें दोष मेरा क्या हजारों की सज़ी महफ़िल में, मेरा कोई दुश्मन है न मैंने खोज पाया है, उसमें दोष उसका क्या मेरे दिल की चौखट पर, प्यार ने दस्तक दे डाली मैंने गेट न खोला, इसमें उससे बुराई क्या ... लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़ल...
नटखट बच्चा
कविता

नटखट बच्चा

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** एक नटखट बच्चा रोज मन के द्वारे आकर बैठ जाता है, यादों की किताबो को उलट पलट देता है, कुछ पन्ने फाड़ देता है, मेरी डांट से उन्हें जैसे तैसे चिपका देता है। आज तो उसने हद कर दी बाहर खेलने का बोला तो आवारा घूमता रहा शाम को लौटा तो कही से सुरमई धूप के टुकड़े, कुछ हवा के रंग धूसर, लाल, पिले, निले महकती रात की कुछ उजली किरणे, कुछ फूलो से झरे मोती, नदी के गजरे के बासी फूल चांद का गर्म दुशाला, एक बड़ी बिंदी चांदनी की चंपा चमेली की चूड़ी के टुकड़े सपनो का टूटा फूटा इत्रदान, सुबह की कान का एक बाला शाम की पायजेब का टूटा घुँघरू और न जाने क्या क्या बिन कर मन की कोठरी में ले आया है, इन चीजों से उसके लिए एक सपनो की झालर बुन दु, इसके लिए मुझ से जिद कर रहा है। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर ...
लोकतन्त्र की मार
लघुकथा

लोकतन्त्र की मार

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** कैसे है मुहम्मद भाई? शर्मा जी ने दूर ही से आवाज लगाई। शुक्र है खुदा का भाई जान मुहम्मद भाई मुस्कुराते हुए बोले। बहुत अरसे से मुहम्मद भाई और शर्मा जी एक ही महौल्ले में रहते थे दोनों में अच्छी जान पहचान थी। गली से गुजरते दुआ सलाम होती ही थी . क्या खबर छपी है ? आज पेपर में शर्मा जी ने पूछा . भाई जान अब कहां कुछ खबर छपती है हर तरफ हाहाकार फैली है मगर मीडिया बिकाऊ हो चला है . सही कह रहे है आप . लोकतन्त्र सिर्फ नाम भर का है . जाने लोग किस ओर जा रहा है . राजनीति का स्तर गिर गया है. उठने वाली हर आवाज को दबा दिया जाता है . ईश्वर नेक राह दिखाए. आमीन मुहम्मद मुस्कुरा उठे. शर्मा जी गली से निकल गए , आज उन्हे अपनी बेटी के ससुराल जाना था शादि का कार्ड देने .शादि की तारिख पास आ चूकी थी , उसी सिलसिले में बाजार से कुछ सामान लेने निकले थे . बैंकों में पैसा होते हु...
कविता

फिर से मोहब्बत का दिया जला दें

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** आओ हम आपसी रंजिश मिटा दे। फिर से मोहब्बत का दिया जला दें।। पाक रहे हम गंगाजल की तरह से। रगों में सिर्फ अपने भारत बसा दें।। सरहदें यूँ ही कायम रहे सदियों से। सारे हिन्दुस्तान को जन्नत बना दें।। गाँधी कलाम का वतन है प्यारा ये। आओ इसे रोशन कर जगमगा दें।। मजहबी फसाद से तबाही है होती। अब इंसानियत को मजहब बना दें।। . लेखक परिचय :- राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०...
वजह तुम ही हो
कविता

वजह तुम ही हो

माधुरी शुक्ला कोटा ******************** जिंदगी तू ही बता, क्यों इस कदर उदास है। तन्हाइयो में भी यूं ही कभी क्यों खुद की तालाश है। आईना जब भी देखुं कभी, खुद का अक्स नज़र आये गमों के बादल भी मुझसे छिटककर दूर चले जाएं।। एक पल को ही सही, मुस्कराने की कोई तो वजह फिर से मिल जाय फिर से तेरा साथ मिल जाये। इतनी बेरुखी सी क्यो हो क्या ख़ता हुई मुझसे, हमारे दर्मिया दूरिया क्यो, फिर से पास आजाओ तेरा साथ मिल जाये।। तन्हाइयों का हर लम्हा, चुभता है मुझे,कब कोई अपना आये ओर फिर से, मुस्कराने की वजह बन जाए।। . लेखीका परिचय :-  नाम - माधुरी शुक्ला पति - योगेश शुक्ला शिक्षा - एम .एस .सी.( गणित) बी .एड. कार्य - शिक्षक निवास - कोटा (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, ...
आता ही नहीं लिखना मुझे
कविता

आता ही नहीं लिखना मुझे

********** भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) आता ही नहीं लिखना मुझे क्या लिखूँ मैं ??? शब्द सौष्ठव का नहीं ज्ञान मुझे कैसे अलंकृत करूँ अब मैं ! दर्द को एक आवाज दे लेना आता नहीं मुझको अपने मनोभाव को कैसे उकेरा जाए इसका भी भान नहीं मुझको . . लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रक...
स्वप्न दीप
कविता

स्वप्न दीप

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** दीप जला एक सपने में, वह सपना चंचल भोला था मृग नयनों ने जब पाला तो, मृदु अधरों ने भी बोला था। पंख ना तो तुम इसको रश्मि, इसे अम्बर तक अभी जाना हैं फिर संध्या हुई साँझ की रंगमयी, साँझ हुई सन्ध्या की करुणा। बना व्योम की पावन बेला, जुगनू से राह सजाना था उड़ते खग– मृग पुलकित होते, अपनी सुध– बुध में थे डूबे। स्नेह बना अम्बर से जब तो, तारों ने भी स्वीकार किया ये थी मेरी स्वप्न व्यथा जिसने उज्जवल अक्षर जीवन पाया। बिखरी थीं जो स्मृती क्षार–क्षार, तब एक दीपक ने मुझको अजर–अमर बनाया, फिर स्नेह–स्नेह हमने पहचाना। लिया संकल्प अब लौं बन जाना हैं, दीप जला एक सपने में।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करव...
चिंतक नियरे राखिए
व्यंग्य

चिंतक नियरे राखिए

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** चिंता सदा से चिता के समान रही है। ऐसा हमारे बुजुर्गों ने कहा, भगवान ही जाने बुजुर्गों ने कहा भी है या लोगों ने खुद ही सब कुछ कह सुन कर बुजुर्गों का नाम लगाकर पल्ला झाड़ लिया। समाज और देश को आगे बढ़ाने के लिए या मुख्य धारा में लाने के लिए चिंता नहीं चिंतन करने की जरूरत है। वैसे आज के इस दौर में चिंतक ढूढ़े नहीं मिल रहे हैं । जिसे देखो वही चिंताग्रस्त है। जब हम छोटे थे तब सुबह-सुबह सड़क के किनारे, और रेल्वे ट्रैक के आसपास लोटा सामने रखकर गूढ़ चिंतन में खोए लोग दिख जाते थे। उनकी भावभंगिमा देखकर लगता था कि राष्ट्र हित में कोई बड़ा चिंतन कर रहे हैं।लेकिन समय-समय पर सरकार ने चिंतकों के प्रति चिंतन करने के पश्चात घर-घर में आत्म चिंतन केंद्र खुलवा दिए। सरकार के इस कठोर निर्णय से ऐसे चिंतक डायनासोर की भांति विलुप्त होने की कगार पर जा चुके...
गुरु वंदना
कविता

गुरु वंदना

शंकर गोयल (छत्तीसगढ़) ******************** गुरुदेव तुम्हारे चरणों में, अभिनंदन है अभिनंदन है।। राग द्वेष के भाव मिटाएं, प्रेम भाव सद्भाव बढ़ाएं। अंतर्मन की गहराई से, करते तुमको वंदन हैं। गुरुदेव तुम्हारे चरणों में, अभिनंदन है अभिनंदन है।। मुश्किलों में राह दिखाएं, संघर्ष पथ को सहज बनायें। दुर्व्यसन की लत छुड़वाए, भक्तों के दुख कष्ट मिटाए। चरण धूलि गुरुदेव आपकी, मेरे लिए तो चंदन हैं। गुरुदेव तुम्हारे चरणों में, अभिनंदन है अभिनंदन है।। मन की बातें किसे सुनाएं, नैया कैसे पार लगाएं। मंजिल तक कैसे पहुंचे हम, गुरुवर हमको राह बताए। अब तो मन में आपके लिए, भक्ति भाव का बंधन है। गुरुदेव तुम्हारे चरणों में, अभिनंदन है अभिनंदन है।। . लेखक परिचय :-  शंकर गोयल, छत्तीसगढ़ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी र...
रोशनी बन जगमगाओ
कविता

रोशनी बन जगमगाओ

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** प्यार का दीपक ज़लाओ इस अंधेरे मे, रुप का जलवा दिखाओ इस अंधेरे मे, दिलो का मिलना दिवाली का ये पैगाम, दुरिया दिल का मीटाओ इस अंधेरे मे ! अजननी है भटक न ज़ाए कही मंजिल, रास्ता उसको सुझाओ इस अंधेरे मे, ज़िन्दगी का सफर है मुश्किल इसलिए, कोई हमसफर हमदम बनाओ इस अंधेरे मे ! हाथ को न हाथ सुझे आज का ये दौर, रोशनी बन जगमगाओ इस अंधेरे मे, अंध विश्वासो के इस मन्दिर मजारो मे, सत्य की शमा ज़लाओ इस अंधेरे मे ! रोशनी बन जगमगाओ इस अंधेरे मे....! लेखक परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास - चैनपुर, सीवान बिहार सचिव - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान प्रकाशि...
जामुन का वृक्ष
कविता

जामुन का वृक्ष

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मेरे घर के आंगन में लगा नन्हा सा जामुन का पौधा बाल अवस्था में तेज बारिश व हवा से डर जाता था तीखी धूप में सहमा सहमा रहता था। धीरे धीरे वो किशोर हुआ कुछ अनाड़ी, अल्हड़ सा हवा के साथ नाचने लगा बारिश के साथ झूमने लगा तपते सूरज का मुंह चिढ़ाने लगा अब तो वो युवा हो कर ढिड सा घर की खिड़कियों से भीतर झांकने लगा है, अपनी शाखों से दरवाज़े पर दस्तक देता है, दरवाज़ा खोलते ही अपनी पत्तियों से गालों को छू कर मंद मंद मुस्कुराता है, अपनी पीठ पीछे रसीले फल व सुन्दर पक्षियों की भेंट छुपा कर। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हि...
जन्मभूमि
कविता

जन्मभूमि

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ******************** जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि से । जन्मभूमि सर्वश्रेष्ठ है स्वर्ग से ।। माँ के गर्भ में कदम ताल से । जन्मभूमि का एहसास हुआ ।। जन्मभूमि पर कदम बढ़ाए । जननी जन्मभूमि मुस्कुराए ।। जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि से । जन्मभूमि सर्वश्रेष्ठ है स्वर्ग से ।। कैसे भूल जाऊ जन्मभूमि । जन्मभूमि पर पला बढ़ा ।। जन्मभूमि तुम्हें देखकर। यादें सजी सपने साकार ।। जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि से । जन्मभूमि सर्वश्रेष्ठ है स्वर्ग से ।। जिंदगी की भाग दौड़ में । दौड़ लगाई कर्मभूमि में ।। कर्मभूमि से पहुचे जन्मभूमि । जननी जन्मभूमि मुस्कुराए ।। जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि से । जन्मभूमि सर्वश्रेष्ठ है स्वर्ग से ।। इंसान भरा स्वार्थ ईर्ष्या से । अश्रु बहने लगे जन्मभूमि से ।। जब उड़ गए प्राण पंखेरू । तन मिल जाए जन्मभूमि में ।। जन्मभूमि श्रेष्ठ है कर्मभूमि स...