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ग़ज़ल
ग़ज़ल

ग़ज़ल

======================== रचयिता : शरद जोशी "शलभ" शम्मे उल्फ़तको हमेशा ही जलाया हमने।। रस्मे उल्फ़त को हमेशा ही निभाया हमने। वो तो राहों में अकेले ही चला करते थे। साथ उनको तो हमेशा ही चलाया हमने।। दूर रहने के बहाने तो उन्हें आते हैं। उनको नज़दीक हमेशा ही बुलाया हमने।। दिल दुखाया है उन्होंने तो हमारा अक्सर। दिल में उनको तो हमेशा ही बसाया हमने।। क्या करें उनसे शिक़ायत वो ग़ैर ही ठहरे। अपना उनको तो हमेशा ही बताया हमने।। अब इरादा है उन्हें उनके हाल पर छोड़ें। उनको पलकों पे हमेंशा ही बिठाया हमने।। क्यूँ "शलभ" को वो मिटाने पे हुए आमादा। उनपे ख़ुद को तो हमेशा ही मिटाया हमने।।   परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म....
मुस्कुरा रहा वतन
कविता

मुस्कुरा रहा वतन

==================== रचयिता : कार्तिकेय त्रिपाठी 'राम' हरी-भरी वसुंधरा को देख कर मेरा वतन, मुस्कुरा रहा है ऐसे फूल का कोई चमन। हर जवान देखता है सीना तानकर यहां, आजाद,भगत,बोस ने जन्म लिया है जहां। जमीं है मेरे प्यार की जमीं है मेरे दुलार की, महक ये बिखेरती प्रेम,पावन,प्यार की। ये धरा भी देखो हमको कैसे यूं लुभा रही, छा रही अमराई है गंगा सुधा बरसा रही। इसका थोडा़ गुणगान करें और इसका मान धरें, गीत भी अर्पण करें और मन दर्पण करें। पा रहें हैं इससे मनभर खुशियों का जहान हम, रक्त रंजित ना धरा हो इसका धरें ध्यान हम। संजीवनी है ये धरा मुस्कानों से भर दें घडा़, इससे बढ़कर कुछ नहीं है इस धरा पर है धरा। पाकर धरा पर हम ये जीवन जीते ही तो जा रहे, शीर्ष पर फहरा तिरंगा हिन्द जन मुस्का रहे। लेखक परिचय :- कार्तिकेय त्रिपाठी 'राम' जन्म - ११.११.१९६५ इन्दौर पिता - श्री सीताराम त्रिपाठी पत्नी - अनिता, पु...
जन्मे कुअँर कन्हाई
कविता

जन्मे कुअँर कन्हाई

==================== रचयिता : मनोरमा जोशी बृज मे बटत बधाई, जन्मे कुअँर कन्हाई। आँधी रात घणी बरसात, जमना खल खल उबराई, जन्मे कुअँर कन्हाई। कारागृह के बंद द्धार, बिन चाबी ताले खुल गये, अदभुत लीला रचाई, जब जन्मे कुअँर कन्हाई। जहाँ जन्म लिया वहां पिया दूध नहीं, जहाँ दूघ पिया वहां लिया जन्म नहीं, दो दो माता ने खुशियां मनाई। ऐसे जन्मे कुअँर कन्हाई। कंस मामा का करने सफाया, रची कान्हा ने ऐसी माया, धन धन प्रभु की चतराई, शोभा बरणी न जाई । बाजत ढोल नगाड़ा घर घर, और बाजे शहनाई। जब जन्मे कुअँर कन्हाई। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्...
तोहफा
लघुकथा

तोहफा

==================== रचयिता : माधुरी शुक्ला राहुल को दादी बहुत प्यार करती है। वह भी दादी का खूब ख्याल रखता है पापा-मम्मी से भी ज्यादा। दादी उसे जब भी अपने जमाने की बातें सुनातीं तो उसमें पक्की सहेली सरला का जिक्र जरूर आता। उनके बारे में बात करते वक्त दादी के चेहरे पर खुशी तैर जाया करती थी। पहले सरला दादी उनके यहां आ जाया करती थी पर अब बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य की खराबी के चलते काफी समय से उनका आना नहीं हुआ। आज दादी का जन्मदिन है। सब उन्हें शुभकामनाएं और तोहफे दे रहे हैं। राहुल ने कुछ अलग करने की ठान रखी है। वह शाम को दादी को पहले मंदिर फिर सरला दादी के घर ले जाता है। दोनों को खूब खुश देखकर उसे लगता है जन्मदिन पर दादी के लिए इससे बड़ा तोहफा शायद ही दूसरा कोई होता। फिर दादी भी तो बार-बार यही कह रही है सरला से मिलकर आज मेरा दिन सार्थक हो गया। लेखीका परिचय :-  नाम - माधुरी शुक्ला पति...
कैसा  है, क्यूँ  है, क्या है?
कविता

कैसा  है, क्यूँ  है, क्या है?

======================== रचयिता : मुनव्वर अली ताज कैसा  है, क्यूँ  है, क्या है? सवालों का हल नहीं ग़म को समझना    दोस्तों   इतना  सरल    नहीं ग़म  गैस  नहीं ,  ठोस  नहीं  और    तरल   नहीं ग़म की   परख   में कोई  अभी तक सफल नहीं जीवन   मिटा दें    ऐसे   कई     ज़ह्र    हैं   मगर ग़म   को  मिटा  सके  कोई   ऐसा  गरल    नहीं जो  दे   खुशी   हमेशा ,  हमें    ग़म  न  दे  कभी आदि  से  आज   तक   कोई   ऐसी  ग़ज़ल नहीं मैं  पी  चुका  हूँ   दर्द के सागर     को   इस लिए ग़म  के    दबाव    से   मेरी   आँखें सजल  नहीं ग़म  से   हरी भरी  हैं  ये   कागज़   की    खेतियाँ जल  है  ये  रोशनाई   का  ,  वर्षा   का जल  नहीं जो  'ताज'  है    उसी  पे  ही  उठती   हैं  उँगलियाँ कीचड़   बिना    खिले   कोई   ऐसा  कमल  नहीं   लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अ...
इश्क और अश्क
कविता

इश्क और अश्क

============================= रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  इश्क और अश्क न नाम लो अश्कों का , इश्क में अश्क तो बहते ही हैं l इश्क किया है इश्क करेंगे , इश्क में अश्क भी मोती से लगेंगे l इश्क में अश्क तो बहते ही है, अश्क भी गम और खुशी की कहानी कहते हैं l लोगों का क्या, लोग तो कुछ भी कहेंगे, वादा करो रो रो के अष्ट नहीं बहेंगे जब भी बहेंगे अश्क तुम्हारे, सोचना दिल मेरा रोया है l नाम न लो अश्कों का, इश्क में इश्क तो बहते ही हैं l इश्क का अश्क से रिश्ता है पुराना इसलिए मेरे अश्कों पर ना जानाl ना नाम लो अश्कों का, इश्क में अश्क तो बहते ही ll लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
ऑन लाइन खरीदी का बहिष्कार 
आलेख

ऑन लाइन खरीदी का बहिष्कार 

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" समसामयिक विषय पर आलेख विदेशों की तर्ज पर भारत में भी ऑन लाइन खरीदी का दौर चल पड़ा है। विदेशों में बच्चे बड़े होकर मम्-डेड से अलग अपनी जिंदगी जीना शुरू कर देते है।कभी-कभी आपस मे कहीं मिल जाये तो दोपहर का खाना(लंच) या रात्रि भोज (डिनर)के लिए एक दूसरे को आमंत्रित करते है,हमारा पड़ोसी कौन ? हमारे रिश्तेदार कौन ये विदेशों में(अपवाद छोड़कर) नही होता। जबकि माता-पिता, भाई-बहन,काका-काकी,भैया-भाभी साथ-साथ रहकर प्रेम और अपनत्व के साथ जीवन जीते है। वहीं मेरे मामा के लड़के की लड़की की सास की भुआ की बेटी की सास की ननंद है,मेरी बेटी की ननद की ननद की भुआ की काकी की जिठानी की बड़ी बहन के बेटे का साला है ये! कितने लम्बे-चौड़े रिश्ते हम भारतीय पालते है। अरे साहब रिश्ते तो रिश्ते पड़ोसी के रिश्तेदारों से भी हम रिश्ते पाल लेते है।शहरों में पूरी कालोनी वाल...
उन को हुई मुहब्बत जब से
ग़ज़ल

उन को हुई मुहब्बत जब से

=========================== रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" उन को हुई मुहब्बत जब से । गले पड़ी है आफत तब से । करते हैं आगाह सभी को, बच कर रहना इसी गजब से । उन को हुई, किसी को न हो केवल यही मांगते, रब से । दिन में तारे, ख्वाब रात भर, दिखें नज़ारे, अजब-अजब से "प्रेम" बता कैसे  छूटकारा ? यही पूछते हैं वे सब से । लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता, कहानी, ...
मतदाता की सांसद से अभिलाषा
कविता

मतदाता की सांसद से अभिलाषा

====================================================== रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस इतना याद रखना जाकर चौखट पर अपना शीश नवाना देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस इतना याद रखना किसी के बहकावे में ना आना देना तून साथ सदैव सत्य का करना समर्थन हमेशा उचित का देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस इतना याद रखना ना डरना ना घबराना रखना अपना पक्ष  हमेशा देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस इतना याद रखना रखना ध्यान संसद की गरिमा का और रखना मान हमारा निभाकर अपना राजधर्म रखना राष्ट्रहित सर्वोपरि पूरे करना अपने किए वादे देखो जा रहे हो संसद की चौखट पर बस हमें भूल न जाना और हां जब हो जाए वहां अवकाश शीघ्र लौट आना जुड़े रहना जमीन से अपनों के बीच लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन...
ग़ज़ल
ग़ज़ल

ग़ज़ल

======================== रचयिता : शरद जोशी "शलभ" झूठे को भी वो हाल मेरा पूछता नहीं। भूले से भी कभी मैं उसे भूलता नहीं।। मैंने कभी किसी को न उसमें किया शरीक। क्या है मेरी नज़र में अगर वो ख़ुदा नहीं।। करने लगे तू उसकी अताओं का गर शुमार। तो ख़ुद ही कह उठेगा मुझे कुछ गिला नहीं।। वो तो वहीं मिलेगा वहीं पर मुक़ीम है। अपने ही दिल में तू उसे क्यूँ ढूँढता नहीं।। लब खोल कर तो हँसता "शलभ" हूँ सभी के साथ। दिल खोल कर ना जाने मैं कब से हँसा नहीं।।   परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद...
दो रास्ते
लघुकथा

दो रास्ते

========================== रचयिता : विजयसिंह चौहान सोलह १७ बरस की उम्र में बंधन और रेखा की नजरें मिली थी। उनदिनों गर्मी की छुट्टियों के मायने , मौज मस्ती और अल्हड़पन के बीच रोटा- पानी खेलते-खेलते बंधन के दिलो-दिमाग में प्यार की रेखा कब उभर आई, पता ही ना चला । आसमानी कलर की फ्रॉक में गहरे फूल रेखा पर खूब जचते थे। प्रेम की कोपल परवान चढ़ रही थी वही इजहार न कर पाने के कारण दोनों का घरोंदा कहीं और बस गया । पुराना समय था इसलिए कुछ इजहार करना दोनों के लिए नामुमकिन सा था । मन मसोसकर सुनहरी यादें दोनों के दिलों में  धड़कती रही। घर गृहस्थी और बच्चों की परवरिश में २० सावन कैसे गुजर गए मालूम ही ना चला मगर आज भी बारिश की बूंद झरते बालों की याद मैं भिगो दिया करती है। सोशल मीडिया ने जैसे-तैसे मुलाकात करा दी। आभासी दुनिया (मोबाइल ) से वास्तविक धरातल परआने में भी दोनों को बरसो लग गए काफी समय बाद दिलों...
मल्टियों के असल मालिक कौन ….?
आलेख

मल्टियों के असल मालिक कौन ….?

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" समसामयिक विषय पर आधारित देश मे मल्टियों पर मल्टियाँ तानी जा रही है। यही स्थिति हमारे मध्यप्रदेश और औद्योगिक राजधानी-इंदौर में भी बनती जा रही है। १ बीएचके, २ बीएचके के अतिरिक्त रो हाउस, बंगलो, अपना घर आदि-आदि नाम से लगा तार सीमेंट कंक्रीट के जंगल तैयार किये जा रहे है जहां मानव निवास करेंगे। प्रतिदिन समाचार पत्रों में विज्ञापन दिए जा रहे है। सोशल मीडिया का उपयोग किया जा रहा है। फोन कॉल के द्वारा भी लोगों को साइट पर बुलाया जाकर उन्हें घुमाया जा रहा है। विभिन्न प्रकार के ऑफर चल रहे है। पुरस्कारों के लालच दिए जा रहे है। फटाफट लोन दिए जाने के लिए अनेकों बैंक के साथ लोन प्रोवाइड करवाने वाली संस्थाएं भी अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से प्रयास को आतुर दिखाई दे रहे है। वर्तमान में लोगों को ऐसा भी लगने लगा है कि भविष्य में पता नही हम मकान य...
छोटे बहर की ताजा ग़ज़ल.
ग़ज़ल

छोटे बहर की ताजा ग़ज़ल.

========================== रचयिता : डॉ. इक़बाल मोदी तीरगी घर मे भले चिराग क़ब्रो पे जले भूखमरी हो जीते जी मरे बाद दावत चले रिश्वत देकर करे काम धन्धे  ऐसे  खूब फले, खाना बदोश जिंदगी, कोई मंज़िल न मरहले, सब  है इंसा के पास, ईमान की कमी खले, भीड़ में   दुनिया की, अब  हम  तन्हा  चले, घूमे फिरे सब जगह, घर  लौटे  शाम   ढले , करते रहो रोशन जहाँ को अंधेरा तो खुद  के तले, आस्तीन हो गई गायब, सांप अब  कहाँ  पले, चिड़िया क्या खेत चुगे, बाढ़ में ही बीज  गले, दूध की क्या बात करे, अब तो छांछ के है जले, ऐसा धरम हम क्यो करे, हवन करते हाथ जले। मन के  मैले  है जो वो, मुझसे   कैसे लगे गले। मौत  हक़  है  "इक़बाल " आये  तो  फिर ना  टले  ।। परिचय :- नाम - डॉ. इक़बाल मोदी निवासी :- देवास (इंदौर) शिक्षा :- स्नातक, (आर.एम्.पी.) वि.वि. उज्जैन विधा :- ललित लेखन, ग़ज़ल, नज्म, मुक्तक विदेश यात्रा :- मिश्र, ...
बरसों बाद  बरसी खुशियाँ
कविता

बरसों बाद बरसी खुशियाँ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** बरसों बाद  बरसी खुशियाँ कश्मीर के आँगन में केशर की क्यारियों में मधुप मधुर राग सुनाए कश्मीर के आँगन में ह्रदय में चुभते थे कभी भय के शूल वीरान पथ पे रोती थी बर्फीली वादियां कश्मीर के आँगन में सत्तर वर्षो से झांकते मासूम चेहरे सूनी पड़ी झीलों में कश्मीर के आँगन में अविरल बहते आँसू पलायन की गाथा सुनाते थे कभी कश्मीर के आँगन में नई इबारत लिखी सुनहरे सपने हुए साकार खिलखिलाने लगी दूब अब कश्मीर के आँगन में जन्नत महकी केशर सी स्वप्न हुए साकार कश्मीर के आँगन में संजय वर्मा "दृष्टि"   परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - ...
हिन्दुस्तान है महान
कविता

हिन्दुस्तान है महान

=================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" शांति का प्रतीक धर्मप्रिय सत्यशील ऐसा देश है हमारा हिन्दुस्तान, सभी मिलजुल के रहे,दिल की बात खुल के कहें, मन में तनिक भी नहीं अभिमान, जात और पात की ना करे कोई बात कद्र करते हम सबके जज्बात की, दुख और सुख में भी खड़े रहते साथ ना करते हम चिंता  दिन और रात की, वीरों के बलिदान का,इस धरा महान का,करते हम सभी मिल सम्मान है, भारत मां के लाल,हाथ में लिये मशाल,दुश्मनों की हर चाल को करते नाकाम है, देश का किसान,जो देश की है शान,उगा अन्न देश को देता जीवनदान है, सिंह सम दहाड़ भर, घाटियां पहाड़ चढ़,खड़ा सीना तान के जवान है, मंदिरों में गीता ज्ञान,मस्जिदों में है कुरान,दोनों धर्मों का अलग-अलग स्थान है, हिंदु मुस्लिमों में प्यार,सदा रहता बरकरार,सबका ईश्वर    सर्वत्र ही समान है, मां-बाप की तालीम,थोड़ी कड़वी जैसे नीम,पर सीख उनकी आ...
बुंदेली ग़ज़ल
ग़ज़ल

बुंदेली ग़ज़ल

================================= रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" आज स्याने जुते बैल से, बोझ तरें मर रए हैं, युवा देस के लै-लै डिग्री, ना-कारा फिर रए हैं । सावन-भादों के जे बदरा फिर-फिर घिर रये है । भुंसारे से भईया-भौजी भींजे ही फिर रये हैं । दद्दा ने जो कर्जा लओ थो, अबै तलक बाकी है, देनदारिएं, कर्जा निकरे, अपने ही सिर  रये हैं । बसकारे ने हमरो जीवन, नरक बना के धर दओ, धरती सें बम्मा फूटत है, झिरना से झिर रये हैं । मोड़ा मोड़ी मानत नईं हैं, गद-बद देत फिरत हैं, जी को तन्नक पांव रिपट गओ, धम्म धम्म गिर रये हैं । लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर ...
अब की कैसी राखी
लघुकथा

अब की कैसी राखी

======================= रचयिता : डॉ. सुरेखा भारती विवेक को राखी बांधते हुए, प्रिया के आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। शादी के ग्यारह साल बाद पहली राखी पर वह अपने भाई के हाथों में, अपने मायके आकर राखी बांध रही थी। राखी का त्यौहार इतना सूना हो जाएगा यह उसने सोचा भी नहीं था। शादी बाद पहली बार, आने के एक महिने पहले से उसने क्या-क्या सोच कर रखा था, माॅ के लिए, छोटे भैया के लिए, पापा के लिए। अपनी बड़ी बहनों से गिप्ट और माॅ के गोदी में सिर रख कर बहुत सारी बातें। कितनी ही यादें ताजा होकर उसके हृदय को सावन की बूँदों की तरह भिगा जाती, वह पुलकित हो जाती। अभी राखी को पन्द्रह दिन ही तो बाकि थे कि भैया का फोन आया पापा की तबीयत ठीक नहीं तुम देखने चली आओ। उसने कहा- ‘आ तो रही हूँ राखी पर, तब मिलना हो ही जाएगा।’ मम्मी, कमर में फेक्चर होने के बाद अब तो उठने-बैठने लगी है, पर मुझे दुःख है कि मैं उन्हें दे...
आजाद हो गये
कविता

आजाद हो गये

=========================== रचयिता :  राम शर्मा "परिंदा" कई धर्म - जातियाँ कई वाद हो गये । हे ! चन्द्रशेखर, हम आजाद हो गये ।। कदर नहीं बलिदान की चिंता धन और मान की भीतर से सब काफिर है बातें कर रहे हैं शान की स्वतंत्रता के नाम पर बरबाद हो गये । हे ! चन्द्रशेखर, हम आजाद हो गये ‌‌।। भूल गये निज संस्कृति हर जगह हो रही अति कहने को है पढ़े-लिखे मति बन रही है कुमति मानव के  नाम पर  अपवाद हो गये । हे ! चन्द्रशेखर, हम आजाद हो गये ।। परिचय :- नाम - राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम काम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १ परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है, दूरदर्शन पर काव्य पाठ के साथ-साथ आप मंचीय कव...
बालगीत
बाल कविताएं

बालगीत

================================= रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" चन्दा मामा अच्छे हैं  । दिल के कितने सच्चे हैं । सूरज मामा बहुत बुरा । सारा पानी लिये चुरा । बादल ताऊ आएंगे, उस को डांट लगाएंगे । और चुराया जितना पानी, धरती को लौटाएंगे । लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता, कहानी, व्यंग्य व बुंदेली ग़ज़लों का प्रकाशन। प्रसारण - आकाशवाणी व दूरदर्शन भोपाल से ...
बेटा लौट आया सुमित्रा का
कहानी

बेटा लौट आया सुमित्रा का

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" मैने ये कहानी सुन रखी थी कि कोई भी छोटी सी दुकान लगाकर बैठा है तो बड़े दुकानदारों से सामान लेने की बजाय नाम मात्र का सामान, सब्जी या फल बेचने वाले से खरीदना चाहिए, क्योंकि छोटी सी दुकान वाले के पेट भरने का साधन ही कुछ सामान, फल या सब्जी बेचना होता है। एक बुढ़िया की यही स्थिति देख एक सज्जन पुरुष रोज उस महिला से फल खरीदता था और फल का एक फल उस बुढ़िया को खाने को देते हुए कहता देखो फल ज्यादा मीठा तो है नही ? बुढ़िया को इसलिए खिलाता था कि ये तो बेचकर पेट की आग बुझाएगी पर इसमे से ये एक भी फल नही खाएगी। जबकि इसके जर्जर शरीर को इस बहाने फल का एक टुकड़ा कुछ तो असर करेगा। वहीं बुढ़िया फल खाकर कहती बाबू शाय ये तो मीठा है ! तो वह नित्य का ग्राहक कहता हां, मीठा ! अरे बहुत ही मीठा है माता राम। रोज इस प्रकार वह बुढ़िया को फल खिलाता, वहीं बुढ़िया भी उक...
रक्षाबंधन ,स्वतंत्रता दिवस,कश्मीर विजय
कविता

रक्षाबंधन ,स्वतंत्रता दिवस,कश्मीर विजय

============================ रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित सज़ी कलाई राखी से, रह रह कर याद दिलाती है। बहनों का प्यार निराला है, आँख आज भर आती है। बहन बड़ी हो या छोटी, ज़ज्बे में सदा बडी होतीं। दुख कैसा भी घनघोर रहे, सन्मुख सदा खड़ी होतीं। रक्षाबंधन के अवसर पर ही क्यों याद करें केवल उनको। ये रिश्ता है अनमोल जगत में, बतलाना होगा जनजन को। है संयोग आज इस दिन का, संगम ख़ास पुनीत हुआ। पन्द्रह अगस्त, रक्षा बंधन, तीजा, कश्मीर स्वतंत्र हुआ। तीन तीन त्योहारों की,,,,,,,,, शान बहुत अलबेली है। नहीं कलाई है सूनी, ,,,,,,,,,,,बहन न कोई अकेली है। भारत माता की जय बोलो तब बस इतना आभास रहे। हो तुम्हें मुबारक़ पर्व तीन,,,,,,,,,हर्ष और सौगात रहे। भारत माँ के मुखमंडल पर,,,नहीं वेदना कोई भी है। बहुत दिनों के बाद आज माँ,शायद खुश होकर सोई है। हो नमन राष्ट्र के नायक को, और लौह पुरुष को नमन करो। जो आँख दिखाये शत्रु ...
सच में कहीं ये देशद्रोही तो नहीं हैं ?
कविता

सच में कहीं ये देशद्रोही तो नहीं हैं ?

============================ रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित तरस बहुत आता है तुम पर,क्यों सोच आपकी ओछी है? धारा हटी तीन सौ सत्तर,क्यों फ़िर भी चाहत खोटी है? यू एन पर होता यकीन,पर देश प्रतिष्ठा नहीं सुहाती। कश्मीर मुक्त,होगा सशक्त सपने में बात नहीं नहीं भाती। सौ साल पुरानी एक पार्टी,निज कर्मों पर ना शर्माती। सिंहासन है अभिशिप्त ,कभी बेटा कभी मम्मी आती। लौह पुरुष से अमित लगें,मोदी की बात निराली है। देश आपके साथ हुआ,,,अब क़िस्मत खुलने वाली है। हम नहीं गुलामों में शामिल,हैं देश प्रेम के अभिलाषी। नहीं कभी स्वीकार हमें वो,हम हैं सच में भारत वासी। अफ़सोस हमें,क्यों है वज़ूद?जो देश द्रोह की बात करें? हम मोदी के दीवाने हैं,सदियों तक वो ही राज़ करें। कुछ पत्रकार हैं भृमित बहुत,,,,,,,,होता स्वभाव विद्रोही मन। केवल विरोध न कोई शोध,कलुषित है उनका तन मन धन। हम मोदी के अनुयायी हैं,,,देश प्रेम सर चढ़ बोले।...
रक्षाबंधन
कविता

रक्षाबंधन

======================= रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर भाई के माथे पर चंदन। बहिना का प्यारा स्पंदन। करूणा का त्यौहार वंदन। रक्षाबंधन ...रक्षाबंधन।। दूर भले हम लेकिन बहिना, तू भाई का प्यारा गहना। तेरी खुशियां मेरी खुशियां, कलाई पर मैंने जो पहना।। नेह अजर और अमर रहेगा, धागा प्रेम अजब गठबंधन।।... रक्षाबंधन ...रक्षाबंधन।।.... परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये...
आज़ादी पर मुक्तक
मुक्तक

आज़ादी पर मुक्तक

=========================== रचयिता : रशीद अहमद शेख युगों-युगों तक ज़ुल्म किया बर्बादी ने। सहा बहुत कुछ भारत की आबादी ने। आ पंहुचा पन्द्रह अगस्त सन् सैंतालीस, तब अपना आशीष दिया आज़ादी ने। ये ज़मीं आज़ाद है अब ये गगन आज़ाद है। हम सभी आज़ाद हैं, अपना चमन आज़ाद है। गुल भी अब आज़ाद है, बुलबुल भी अब आज़ाद है, बाग़बां आज़ाद है, अपना चमन आज़ाद है। धरा अधिक स्वतंत्र अब, गगन अधिक स्वतंत्र है। स्वतंत्र पथ हुए सभी, पथिक-पथिक स्वतंत्र है। स्वतंत्र हैं रहन-सहन, कथन,चलन, निजीकरण, स्वतंत्र राष्ट्र में प्रत्येक नागरिक स्वतंत्र है। लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्...
श्रद्धांजलि
कविता, संस्मरण

श्रद्धांजलि

============================= रचयिता : डॉ. अर्चना राठौर "रचना" देकर श्रद्धाँजलि, दी सु-षमा को शमा धरती माँ है बहुत उदास, पर है आकाश भी उदास | खो दिया है आज उसको , देती थी जो सबको आस | भारत माँ का थी अभिमान, देश की थी आन और बान | सीता चरित्र ,नारी की शान, करते सब जिसका सम्मान | दहाड़ती जब  शेरनी  सी , हो सदन में खलबली सी | वो बोलतीं बेबाक थीं जब , सब देखते अवाक् थे  तब | ज्ञान की  भंडार थी  वो , संस्कृति का मान थी जो | वक्तव्य भिन्न भाषाओं में , करती विदेश जाती थीं तो है नभ रो रहा,धरा भी रो रही , बिटिया तो चिर निद्रा सो रही| अब तो नदियां सी हैं बह रहीं , यहाँ-वहाँ नयनों से हर कहीं | करते हम सलाम उनको , देकर सब सम्मान उनको | ह्रदय से सुमन अर्पित कर, हार्दिक श्रद्धाँजलि उनको | लेखिका परिचय :- नाम - डॉ. अर्चना राठौर "रचना" (अधिवक्ता) निवासी - झाबुआ, (म...