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रायचंद
लघुकथा

रायचंद

रायचंद  =========================================== रचयिता : विजयसिंह चौहान पिछले दिनों मां के पेट में दर्द की शिकायत को लेकर काकू-अन्नू अस्पताल पहुंचे। चिकित्सीय परीक्षण करने के बाद, चिकित्सक ने सलाह दी कि पेट में १ गेंद के बराबर गठान है, हमे भय है कि, कहीं गठान में कैंसर के जीवाणु ना हो! मशीनी परीक्षण की पुष्टि दो अन्य चिकित्सकों में भी कर दी। अब मां की शल्यक्रिया के लिए मन सहमत हो चुका था।  उधर अस्पताल में मां से मिलने वाले लोगों का जमावड़ा लगने लगा। मंजू जीजी कह रही थी कि, अस्पताल वाले लूटते हैं, आप तो अन्य पद्धति से इलाज कराओ! शोभा आंटी ने भौहे चढ़ाते हुए कहा...भला,  यह कोई उम्र है मां की? जो ऑपरेशन झेलेगी? कूना भैया ने राय दी, कि इन गांठो का इलाज लेजर पद्धति से भी हो सकता है! वही राजू बेन ने तो गंडे डोरे और ताबीज का सुझाव दे डाला। जितने लोग उतनी बातें ....  माँ, सभी के सुझाव के ...
रिश्ते
कविता

रिश्ते

रिश्ते ====================================== रचयिता : मित्रा शर्मा बाग के हम फूल अलग अलग एक धागे में पिरोए है गुलशन हुआ चमन और हम कितने सलीके से मुस्कुराएं है। डूबती जा रही थी कस्तियाँ तूफानों में हर इंसान अकेला है रिश्तों के मेले में ज्यादा समझदारियाँ देना नही भगवान घटते अपनापन की अहसास होगा रिश्ते की नूर मासूमियत से ही है सदा अपनों की छांव से सीतलता का अनुभव होगा जीवन के अंधेरे और उजाले में हमने कई रिश्ते टूटते देखा इस उम्मीद पे दुनिया कायम है रात के बाद दिन आएगा परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर कॉ...
बस अपने काम से काम रखों
कविता

बस अपने काम से काम रखों

बस अपने काम से काम रखों ======================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" आँखो में अक्सर अपने तूफान रखों, यहाँ सिर्फ अपने काम से काम रखों, दिल से नफरतें बाहर निकाल फेंको, तुम दिल में प्यार मोहब्बत तमाम रखों, कोशिशें करते रहों आखिरी साँस तक, गिर कर उठना हरबार है ये जान रखों, ये मत सोचों चार लोग क्या सोचेगें, अपनी सोच को खुलकर सरेआम रखों, खुद में खुद को जिंदा रक्खों, दोस्त कम मगर चुनिंदा रक्खों, एक ना एक दिन दुनिया में सबको मरना है, सर पे बांध कफन साथ मौत का सामान रखों, तुम काबिल हो,कर सकते हो हर लक्ष्य फतह, बस खुद पर करके यकीन कायम पहचान रखों,   लेखक परिचय :- शिवांकित तिवारी "शिवा" युवा कवि, लेखक एवं प्रेरक सतना (म.प्र.) शिवांकित तिवारी का उपनाम ‘शिवा’ है। जन्म तारीख १ जनवरी १९९९ और जन्म स्थान-ग्राम-बिधुई खुर्द (जिला-सतना,म...
अमर
कविता

अमर

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" वृक्ष के तले  चौपाल जहाँ बैठकर पायल की रुनझुन बहक जाता था दिल दिल जवां हो जाता था इश्क आज उसी वृक्ष तले चौपाल पर इश्क खोजते विकास के नए आयाम में खुद चुकी चौपाल वृक्ष नदारद धुंधलाई आँखों से घूम हुए का पता पूछते लोग कहते क्या पता? समय बदला घूम हुई पायल की रुनझुन इश्क हुआ घूम पास की टाल में लकड़ी का ढेर कटे  पेड़ की लकड़ी गूंगी हुई लकड़ी निहार रही लकड़ी के टाल से मौत आई उसी इश्क की लकड़ी से जलाया मुझे रूह तृप्त हुई हुआ स्वर्ग नसीब इश्क ऐसे हुआ अमर परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति...
सूने मकान 
कविता

सूने मकान 

सूने मकान  ========================================================= रचयिता : श्रीमती पिंकी तिवारी बड़े-बड़े घर के, रोशनदान हो गए हैं, घर अब घर कहाँ ? "सूने मकान' हो गए हैं । गलीचे हैं, खिलोने हैं, करीने से सजे हुए, घर में रहने वाले भी अब मेहमान हो गए हैं । घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं। न सलवटें हैं बिस्तर पर, न बिछी कोई चटाई है, न रामायण-गीता पढ़ता कोई, न लगी कोई चारपाई है, बाहर से बुलवाये माली ही, अब बगिया के बाग़बान हो गए हैं, घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं । न आती है कोई चिट्ठी अब, न बचा है दौर "बुलावों" का, बहन-बेटियां हो गईं दूर, दर्शन भी दुर्लभ उनके पावों का, हंसी-ठिठोली, गपशप करना, अब केवल अरमान हो गए हैं, घर अब घर कहाँ ? सूने मकान हो गए हैं । बड़ी-बड़ी हैं टेबलें, आसन पर कोई नहीं बैठता, खाने से पहले अब, भगवान् को कोई नहीं पूछता, किसी को नमक हैं ...
ये इश्क है इश्क 
कविता

ये इश्क है इश्क 

ये इश्क है इश्क  =================================== रचयिता : शिवम यादव ''आशा'' साहब!  ये इश्क है इश्क  इसे दिशा निर्देश भी करना होगा,  अब मैं ही गवाही क्या दूँ  या खुद को खाली कमरा कर दूँ   साहब!  खून में जरा उबाल रखा करो √ साथ में जो हो उसका ख्याल रखा करो √ प्रेम का पौधा अक्रिय और सक्रिय दोनों रूप में मिलता है....  साहब!  जब भी पानी डालोगे तब ही वो हरा भरा हो जाएगा    हमने किया है क्या क्या किया है  मत पूछो  मेरे दिल ने क्या क्या सहा है  सोचना होगा मेरे दिल ने क्या  क्या सहा है  अब इसे भी हुकूमत कहोगे क्या जनाब  कि मेरी आँखो ने क्या क्या देखा है    हम गर्जी जिंदगी नहीं जीते है      गर्ज तुम्हारी होगी  हम तो हुकूमत भरी जिंदगी जिएगे  हुकूमत हमारी होगी    इन्शानियत की राह हमे निकालनी होगी  हम तुम्हारे जैसे नहीं हैं  साहब!  जो गर्ज पर गधे को ...
 वोट करो, भाई वोट करो
कविता

 वोट करो, भाई वोट करो

 वोट करो, भाई वोट करो ============================== रचयिता : इंजी. शिवेन्द्र शर्मा फर्ज देश का अदा करो, वोट करो भाई वोट करो। लोकतंत्र का महा पर्व है, महिमा इसकी जानो। सरकार बनेगी तुमसे ही, कीमत अपनी पहचानो। करो,डंके की चोट करो वोट करो भाई.......... है चुनाव यह बड़ा बहुत, दिल्ली सरकार बनानी है। पूरे देश की जनता को, मत की शक्ति लगानी है। देश के संग न खोट करो वोट करो भाई.......... लंबी प्रतीक्षा होने पर ही मिलता है ऐंसा मौका नहीं चूकना है, तुमको इस बार लगाना है,चौका। माहौल अब तुम हॉट करो। वोट करो भाई......... मज़बूरी चाहे जो भी हो, नहीं चूकना है कतई। मतदान है, महादान, रविवार उन्नीस मई। दिल, दिमाक में नोट करो वोट करो भाई, वोट करो।   लेखक परिचय :-  नाम - इंजी. शिवेन्द्र शर्मा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा...
मैं आजाद हूँ
कविता

मैं आजाद हूँ

मैं आजाद हूँ ============================== रचयिता : रीतु देवी पंछी बन मैं डाल-डाल उड़ती हूँ , प्रगति रथ पर चढ अग्रसर होती हूँ, जमाने की बंदिशें रोक न सकती, पिंजरे में कैद हो न सकती, हिन्दुस्तान देश की मैं नाज हूँ , बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ। नील गगन को चूमने चली हूँ , ऊँचे शिखर चढने चली हूँ , अनंत शक्ति है मेरे बाँहों में रोड़ें हटाकर आगे बढूँ राहों में घर-आँगन संगीत की मैं साज हूँ , बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ। करती रहती हूँ नव-क्रांति की आगाज, संग मेरे है अरबों भारतीयों की बुलंद आवाज, शिक्षा की पाठ पढ लौ जलाने चली हूँ , इंसानियत की पाठ पढने -पढाने चली हूँ , मिली है मुझे तीव्र गति मैं बाज हूँ , बाँध सके न कोई मैं आजाद हूँ। विचार अभिव्यक्ति करने की मिली है स्वतंत्रता, फूल से अंगार बन करूँगी दमन सभी परतंत्रता , कार्य करने की है मुझमें असीम उर्जा , बनना है मुझे राष्ट...
आज का  युग 
कविता

आज का  युग 

आज का  युग  ==================================== रचयिता : मनोरमा जोशी हर जनों मे भ्रष्टाचार का वास हो गया है कलियुग मे सत्य बेईमानी का दास हो गया है। कट गई  इंसानियत, की पूरी  फसल, चारों और  स्वार्थ का घास  हो गया है। रिशवत के पैर जमे, न्यालय  मे  भी, न्याय  का  पन्ना  झूठ, का  भंडार  हो गया है। गीता  बाईबल  कुराण पड़े  कोने  मे, कर्म  चलती  फिरती, लाश  हो  गया  हैं। दिन  रैन  के  सांक्षी, चंन्द्र  सूर्य  होने  पर  भी, हैं ऊपर  के  मालिक, अभी  तक न्याय नहीं किया बेहतर  होगा  कि जमीन पर, वीर हनुमान आ जाये, लंका  जैसी  दुष्टों  की, नगरी  जला  जाये। लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा-स्नातकोत्तर और संगीत ...
बेटियां
कविता

बेटियां

बेटियां =========================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका दरिंदों से अगर बचा सको तो, बचा लो बेटियां। बाहर नहीं है, घर में भी कहां सुरक्षित  बेटियां। करते हैं बातें बड़ी बड़ी, जमाने के लोग भली। इनकी ही छाया में देखो, कैसे झुलसती है बेटियां। मां के लिए फूल गुलाब है, पिता के लिए नन्ही कली। दहेज की बली चढ़ गई, उनकी प्यारी प्यारी बेटियां। बाप दादा की दौलत पर, शाही जिनकी जिंदगी चली। ऐसे दहेजी लालचीयों के, हाथों रोज मरती है बेटियां। माता पिता के घर आंगन में, जो बड़े  नाजों से पली। लोभियों के घर दहेज का तांडव, त्रास झेलती  बेटियां। नारी शक्ति है, साहस, है देवी है, गुड़ की मीठी डली। फिर क्यों कड़वे नीम सी, यहां थूक दी जाती बेटियां। भ्रुण हत्या, बलात्कार, दरिंदगी की शिकार गली गली। कैसे महिषासुरों से जग मे, अब बच पायेगी बेटियां। कोई दिन बाकी न बचे हैं अब ऐसे...
घनश्याम
कविता

घनश्याम

घनश्याम रचयिता : शशांक शेखर ============================================================= करूँ कहाँ से पवित्र सुंदर सत्य न्योच्छावर तुमपर घनश्याम जग की थाती में लिपटा मेरा जीवन मलीन घनश्याम । करो स्वीकार इसे के हो जाए चीत लीन तुझमें घनश्याम किस मंदिर जाऊँ मैं पूजूँ कौन से विग्रह रूप घनश्याम । दुखियों के दुःख हरनेवाले को छोड़ सुख कहाँ मैं पाऊँ भगवान करूँ कहाँ से पवित्र सुंदर सत्य न्योछावर तुम पर घनश्याम । तुम्हारे नाम पर धरती पर खड़े मंदिर कितने आलीशान कहो कब भरते है हृदय की पीड़ा किसकी ये, घनश्याम मैं पापी दुर्भागी किस मुँह से माँगूँ मोक्ष प्रभू मैं तो माँगूँ बस सत्य के ही दर्शन प्रभू ना मैं अर्जुन ना हस्तिनापुर का हठी दुर्योधन ना रावण ना विभीषण पाप पुण्य में उलझा मैं हूँ तुच्छ सा इंसान मुझको अंधकार से निकलो घनश्याम करूँ कहाँ से पवित्र   लेखक परिचय :- आपका नाम शशांक ...
ये साँसे उड़ना चाहती है
कविता

ये साँसे उड़ना चाहती है

ये साँसे उड़ना चाहती है। ============================================ रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव ये साँसे उड़ना चाहती है। कोई तो बताए फ़ितूर को ये सफ़र और कितना लंबा है, और क्या-क्या झोंकु इस लड़ाई में जो अब तक जिंदा है, ठिठुर गया हुँ तेरे दहशत से ऐ जिंदगी अब तो मुझे माफ़ कर , ये सांसे उड़ना चाहती है जो तेरे पिंजरे का परिंदा है। एक कहानी इस दरख़्त का जो लब पे आते-आते रेह जाता है, वो यादों का कारवाँ जो गुजरता है उल्फत के राहों से,अब कहाँ मुझे सुलाता है, ये लब जब से सिले हैं कैसे बताऊं तुझे की हम कैसे जिंदा हैं, ये सांसे उड़ना चाहती है जो तेरे पिंजरे का परिन्दा है। ये धर धरा पर शून्य शिथिल जब हो जाता है, मिठी नींदों में कोई दुःस्वप्न बो जाता है, कुछ बातें अब भी बाकी है जो शायद इन बयारों को मालूम है, सदियों से भी लम्बे इन लमहों में न जाने क्यों कोई अब तक जिंदा है, ये ...
रंक से बना दिया राजा
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रंक से बना दिया राजा

रंक से बना दिया राजा =========================================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" ये बात बरसो पुरानी है एक नन्हा बालक 6 माह का था और काल के क्रूर हाथों ने उसकी मां का साया सिर पर से उठा लिया। बड़ी भाभी ने देवर से पूछा- "भइजी अब इना बच्चा को कय होयगो ? (बड़ी मां बच्चे की परवरिश करना चाहती थी) तो उनका कहना था मेरी सास इस बच्चे को रख लेगी। लेकिन सास यानी बच्चे की नानी ने साफ मना कर दिया कि मेरा छोटा सा घर और बच्चा है तो मैं इसको नही रख पाऊंगी। फिर अपनी बड़ सास यानी पत्नी की बड़ी बहन के बारे में कहा, तो उन्होने भी मना कर दिया। तब अपनी भाभी को बच्चा सुपुर्द करने की बजाय कहा 'जी' यानी उनकी मां और राजन यानी भतीजा को ले जाऊंगा। कुछ समय उपरांत दादी और बड़े भैया ने प्रारम्भ में उन बच्चों की देखभाल की। पिता ने गन्धर्व विवाह कर लिया। उनसे एक बेटे और बेटी ने जन्म लिया। फिर जैसा कि होता है सौते...
नदी
कविता

नदी

नदी ============================== रचयिता : रीतु देवी कलकल बहती है निरंतर नदी, पावन नव संदेशा दे होती अग्रसर नदी। स्वार्थहीन दिशा में बहती रहती, अपने तट स्वर्ण फसल दे निहाल करती रहती। कराती रहती पूजनीया मधुर संगीत श्रवण, मनोकामनाएं पूर्ण कर लेते करके तट किनारे अर्चन। सिख लेकर नेक राह बढाए कदम, अपनी जिंदगी सेवाभाव में अर्पित करें हम। रखें पवित्रता का ख्याल इसकी हरदम, हाथ में हाथ मिला न होने दे जीवनदायी अक्षुण्णता कम।   लेखीका परिचय :-  नाम - रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर कॉल करके ...
नदी पर पाँच मुक्तक
कविता

नदी पर पाँच मुक्तक

नदी पर पाँच मुक्तक ================================================================================ रचयिता : रशीद अहमद शेख सरी, लहरी, प्रवाहिनी, सरिता उसके नाम। उपकृत वह सबको करे, नगर, उपनगर, ग्राम। नदी किनारे कीजिए, शीतल नीर-स्नान। पावन सुख यूं दीजिए, तन-मन को श्रीमान। सरिता-तट पर बैठकर, कैसे पंहुचे पार। आवश्यक है आपको, नौका का आधार। नदी प्रदूषित हो गई, हुए प्रदूषित कूल! कहाँ हुई है सोच ले, मानव तुझसे भूल! सरिता नाला बन गई, सूख गए हैं ताल। जलाभाव संसार में, हुआ आज विकराल।   लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्र...
पल पल हर पल
कविता

पल पल हर पल

पल पल हर पल ====================================================== रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल "दीप"  पल पल हर पल पारदर्शी गुलाब सी काया जो महके हर पल झील में धूप सी हंसी जो चहके हर पल चांद के साथ चांदनी सी जो रहे संग हर पल समंदर में नदी सा मिलन                           जो मिले जिंदगी हर पल दामन में हो खुशियां ही खुशियां जो   खुशनुमा हो जाए हर पल काजल सा नैनों में समा जाए जैसे जीवन का हर पल तुम्हारी यादों से मेरी याद जोड़ता जाए जो यादनुमा हो जाए हर पल दीप के प्रकाश से आलोकित होता रहे जीवन का हर पल जीवन का हर पल लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल "दीप" पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं ...
👓दो चश्मे👓
लघुकथा

👓दो चश्मे👓

👓दो चश्मे👓 ================================================================================ रचयिता : रशीद अहमद शेख 'कुंद-कुंद' में हमारी साहित्यिक संस्था की मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया था। मेरे काव्य पाठ की भी वीडियो रिकॉर्डिंग हुई थी। कार्यक्रम के समापन पर अपने एक मित्र के साथ उनकी बाइक पर बैठकर घर लौटा। ज्यों ही मैंने सांध्यकालीन पत्र पढ़ने के लिए चश्मा खोजा तो वह कहीं नहीं मिला। बार-बार सभी जेबों और झोले को टटोला किन्तु व्यर्थ! पत्नी उलाहनापूर्वक कहने लगी, "आप चश्मे का ध्यान कब रखते हैं! "पुत्र ने दिलासा के स्वरों में कहा, " पापा, आपका जन्मदिन दो दिन बाद ही है। मैं अपनी ओर से आपको चश्मा भेंट करूँगा। मेरे साथ चलना कल ही आपकी आँखों की जांच करवाने के बाद चश्मा बनवा दूंगा। "पत्नी के चश्मे से मैंने मोबाइल देखा। वाट्सअप में प्रेषित वीडियो में उसी खोए हुए चश्मे में मेरा काव्य पाठ...
रिश्ते
कविता

रिश्ते

रिश्ते ======================================================= रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित बांध कर रखो तो,, फिसल जाते हैं। बंद मुठ्ठी से अक़्सर निकल जाते हैं। खुशी ग़म दोनों हों तो खिलते हैं रिश्ते। दिल में जगह हो,,,, तो मिलते हैं रिश्ते। जुदाई मिलन ,,,केवल मन का बहम है। होते ख़तम ग़र,,,,,,,,,,,मन में अहम है। कछुए के माफ़िक़ ,,कभी ये सिमटते। कभी दूर तक ये ,,,,,,,बस यूं ही चलते। तेज़ी मंदी भी आती ,,,,,,कभी जोर से। कभी सांझ लगते ये ,,,,,कभी भोर से। धैर्य मन में हो ग़र,, तो फलते हैं रिश्ते। लोभ लालच रहा तो,,,जलते हैं रिश्ते। बिन रिश्तों के जीवन चला कब चलेगा? सूर्य सर पर रहे तो,,,,, इक दिन ढ़लेगा। नाज़ करता है बिजू,फ़क्र रिश्तों पर है। यकीं है खुद पर,,,,,,,न फरिश्तों पर है।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण क...
ॐ सदृश्य माँ
कविता

ॐ सदृश्य माँ

ॐ सदृश्य माँ  ============================================= रचयिता : डॉ सुनीता श्रीवास्तव ॐ का जब जब उच्चारण होता हैं मृत जीवन में प्राणों का संचार होता हैं माँ तो ॐ के समान शाश्वत हैं स्वर्ग सिधार गई पर प्रतीक स्वरूप हम भाई बहनों को छोड़ गई माँ ना होती तो क्या हम होते पता नही किस लोक में होते जब जन्म हुआ तो माँ की कोख से धरती पर पाया पर माँ धरती तो आज भी है पर तू क्षितिज से धरती तक कहा है ..... अंतर्मन "चीत्कारता" हैं माँ तो रोम रोम में "व्याप्त" हैं तेरा वजूद माँ की देन है मन करता है माँ तुझे पर्वत की संज्ञा दे डालू पर तू तो दया का "सागर" है फिर क्या तुझे समुद्र कहूं? नही तू तो उससे भी गहरी है माँ तू तो भगवान है? पर भगवान तो महसूस किये जाते हैं ,माँ तू ईश से बढ़कर हैं? नही माँ केवल तू माँ हैं कोई संज्ञा तेरी नही हो सकती तू तो विशेषण है। रातो में तारों में माँ क...
माँ
कविता

माँ

माँ रचयिता : विजयसिंह चौहान =========================================== जीवन की इस आपाधापी में , "मैं ".कहां खो गया माँ, मैं क्यों बड़ा हो गया काश ! मैं फिर से बच्चा बन जाऊं तेरी गोद में सिर रखकर सो जाऊं भूखा रहता हूं' मैं दिन भर दो निवाले, फिर खिला दो ना मां अपनी गोद में फिर सुला लो ना, मां नहीं चाहिए ये दुनिया, चमक भरी मुझे फिर से अपने "आंचल" में, छुपा लो ना, मां मन का दर्द कह भी नहीं सकता, आंख भर रो भी नहीं सकता, अपनी पनाह में ले लो ना मां तेरी भोली सी मुस्कान से, मैं दुनिया के सारे दर्द भूल जाता हूं एक बार छू कर निहाल कर दो, ना मां। लेखक परिचय : विजयसिंह चौहान की जन्मतिथि ५ दिसम्बर १९७० जन्मस्थान इन्दौर (मध्यप्रदेश) है, इसी शहर से आपने वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ विधि और पत्रकारिता विषय की पढ़ाई की, आप सामाजिक क्षेत्र म...
मेरा सारा जीवन माँ तुम
कविता

मेरा सारा जीवन माँ तुम

मेरा सारा जीवन माँ तुम ======================================== रचयिता : शिवांकित तिवारी "शिवा" तुम मेरे जीवन के नौका की खेवनहार हो, तुम ही मेरा रब हो और जीने का आधार हो, तुम ही मेरा जग हो और तुम ही सच्चा प्यार हो, माँ तुमने जब भी मुझको अपने सीने से लगाया है, अद्भुत,अप्रतिम,वो पल मैनें आज भी नही भुलाया है, उँगली पकड़ के मेरी तुमने मुझको चलना सिखाया था, लोरी गा-गाकर के तूने मुझको रोज सुलाया था, तेरी ममता के आँचल में बेफ़िक्री सो जाता था, तू जब भी पुचकारे मैं झट से चुप हो जाता था, मेरी दुनिया तुमसे तुम ही तो मेरा जहान हो, मेरे जीवन का तुम उपहार तुम्हीं वरदान हो, तुम हो तो मैं हूँ माँ तुमसे मेरी पहचान है, तेरे खातिर मेरा ये सारा जीवन कुर्बान है, क्या कितना मैं लिक्खू तुझ पर अब मेरी माई, शब्दों का सैलाब लिखूँ या तुझ पर रोज किताब लिखूँ, तुझ पर मैं जितना भी लि...
माँ की पिटारी
कविता

माँ की पिटारी

माँ की पिटारी रचयिता : अर्चना मंडलोई ================================================= याद बहुत आती है, माँ की वो पिटारी कहने को माँ का घर पूरा अपना था पर माँ का पूरा संसार उस पिटारी में बसता था जाने कहाँ से, कैसे कभी रूमाल में लिपटे कभी कुचले,मुडे नोट, पिटारी की तह में पडे सिक्के कभी चुडियाँ बिंदी तो कभी दवाईयों की पन्नी और न जाने क्या-क्या मेरे पहूँचते ही वो आतुर हो उठती स्हेह और ममता का वो पिटारा खुल जाता और फिर तह में छुपे नोट तो कभी सुन्दर चुडियाँ मीठी नमकीन मठरी लगता है, जैसे अक्षय पात्र मे हाथ डालती माँ बिना तोल मोल के ना किसी जोड घटाव के सारा हिसाब अपनी ममता से लगा लेती और डाल देती मेरी झोली में माँ तुम दुर्गा और लक्ष्मी ही नहीं अन्नपूर्णा भी थी। माँ तुम बाँटने दुलार फिर आ जाती माँ याद बहुत आती है। लेखिका परिचय : इंदौर निवासी अर्चना मंडलोई शिक्षिका ...
माँ तुम
लघुकथा

माँ तुम

माँ तुम रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर ============================================ चुनाव के प्रचार प्रसार का जुलूस गॉव के कोने से गुजर रहा था। जुलूस की आवाजें सुनकर,काम से लौट रही माँ का हाथ छूटाकर भूरी आवाज़ की दिशा में भागी। सात साल की भूरी देखे ही देखते माँ की आँखों से ओझल हो गई। भूरी जब उस भीड़ में फस गई तो उसकी आँखों मे भय कॉप रहा था। वह बैचेन निगाहों से माँ को ढूंढने लगी। तभी एक व्यक्ति  भूरी को अकेला पा कर उसे फुसलाने की कोशिश करने लगा। इधर माँ चिंतित नज़रो से चारो ओर भूरी को ढूंढ रही थी। उसे भूरी कही भी नजर नही आई। तभी उसकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी वह भूरी का हाथ थामे उसे कुछ कह रहा था। लॉस्पिकर की आवाज में वह कुछ सुन ना सकी। भीड़ को चीरते हुए वह उस व्यक्ति तक पहुँची ओर जोर से उसके गाल पर तमाचा मारा वह उसके मन्तव्य को समझ चुकी थी। डरी सहमी भूरी माँ को देखते ही किसी कोमल फूल की तरह खिल उठी...
मां
कविता

मां

मां =========================================== रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका मां तेरी महक पसरी है जीवन दात्री जीवन दायिनी कोख का तेरा कर्ज कब चुका सका कोई तू जागी  रात मे, में सोई घना अंधकार  जीवन मे  सदा प्रकाश पुंज बन आई गोदी तेरी अद्भुत  देव समाई विलग नही होती बेटियां कभी मां अंतर्मन छबी बसी जननी की नदी की कलकल ध्वनि माता झरनों का मधुर संगीत मन के सुमधुर गीत ईश्वर का उपहार सृष्टि का है आधार जननी नमन करूं वंदन चरणों में प्रणाम तुझे मां। लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद्रावली पान्डेय पति - मालवेन्द्र बधेका जन्म - ५ सितम्बर १९५८ (जन्माष्टमी) इंदौर मध्यप्रदेश शिक्षा - एम• ए• अर्थशास्त्र शौक - संस्कृति, संगीत, लेखन, पठन, लोक संस्कृति लेखन - चौथी कक्षा मे शुरुवात हिंदी, माळवी,गुजर...
काबिलियत
लघुकथा

काबिलियत

काबिलियत ===================================================== रचयिता : संगीता केस्वानी आज ज़ीनत बहुत खुश है, मानो भाव -विभोर है, कि जैसे उसके आखों से आँसू नही थम रहे और होठों पे एक प्यारी सी मुस्कान है। हो भी क्यों न आज उसे अपनी मेहनत और तपस्या का फल जो मिला था। आज "रज़िया" ने दसवीं की परीक्षा में पूरे स्कूल में टॉप किया  है। उसकी सफलता और ट्रॉफी देख अनायास ही रो पड़ी और यादों के गलियारे से होते हुए उसे वो सारे मंज़र याद आगये, जब अहमद ने उसकी काबिलियत पर सीधा-सीधा तंज कसा था और उसे तलाक का जोरदार तमाचा मारा था।जो शारीरिक रूप से ना सही मगर मानसिक रूप से उसे घायल कर गया था।       आज मानो उसका सारा सफर, मेहनत और संघर्ष उसकी आँखों के सामने एक चल -चित्र सा घूम रहा था।जो उसने अपनी बेटी रज़िया को इस काबिल करने में तय किया था। अहमद से अलग होने बाद से लेके उसके  जॉब और जीवन-चक्र को चलाने की जदओ- ...