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तुम्हारी सदा हो जय जयकार
भजन

तुम्हारी सदा हो जय जयकार

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** अम्बे, जगदंबे, जग जननी तुम जग की हो पालनहार। तुम्हारी सदा हो जय जयकार … जय माँ लक्ष्मी, सरस्वती तुम सब के जीवन का आधार। तुम्हारी सदा हो जय जयकार … नौ रुपों की महारानी हो तुम तुम्हारी महिमा अपरंपार। बड़े बड़े असुरों का तुमने कर दिया संहार। तुम्हारी सदा हो जय जयकार … नौ तत्वों की रचना तुम्हारी सुन्दर ये संसार। जलचर, थलचर, नभचर सब मे तुम्हारी शक्ति का संचार। तुम्हारी सदा हो जय जयकार … नौ रात्रि सा प्यारा न जग मे दूजा है त्योहार। भक्ति रस मे डूबे जग सारा ख़ुशियाँ मिले अपार। तुम्हारी सदा हो जय जयकार … जगमग दीप जलाएँ सब बाँधें बंदनवार। मंगल गीत तुम्हारे गाएँ माँ आओ हमारे द्वार। तुम्हारी सदा हो जय जयकार … जय महा काली, शेरावाली सब पर करो उपकार। अपने भक्तों को दर्शन दे दो माँ सुनलो सब की पुकार। त...
दुर्गा दाई
आंचलिक बोली, कविता

दुर्गा दाई

प्रीतम कुमार साहू 'गुरुजी' लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** सगा बरोबर तँय ह दाई आथस चइत कुंवार म चउँक पुरा के दियना जलाएँव गली खोर दुवार म !! नव दिन बर तँय आथस दाई करके बघवा सवारी संझा बिहिनिया तोर सेवा गावंय जम्मों नर-नारी !! कुंवार महीना बड़ मन भावन पाख़ हवय अंजोरी जग-मग जग-मग जोत जलत हे दाई तोर दुवारी !! नाक म सुग्घर नथली सोहे अउ पऊरी पैजनिया माथ म चमकत तोर टिकली, कनिहा म करधनिया !! तँय दुर्गा तँय काली कहावस तही हर खप्पर धारी दानव मन के नास करइया जय हो दुर्गा महतारी !! हाथ जोर के बिनती करत हँव सुन ले मोर महमाई भगतन मन के भाग जगादेय झोली ल भर दे दाई !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू, गुरुजी (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
अलविदा ना कहना
कविता

अलविदा ना कहना

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** सारी दुनिया है फ़िदा, इस आँख में आँसू मेरे है। मत कहो तुम अलविदा, इस आँख में आँसू मेरे हैं॥ काम तेरा नेक था और, नाम तेरा नेक था। सच कहूँ तो लाख में तू ही, अनूठा एक था॥ यह जगत तेरा दीवाना, प्यार तुमसे कर रहा। ज़िंदगी भर साथ रह, इकरार तुझसे कर रहा॥ आपके जाने से सच में, कोई मेरे साथ ना। वो चाय चुस्की न होगी, नाश्ते की बात ना॥ प्रेम दिल से है मेरा, इस प्रेम को झुक जाइए। कह रहे हैं हम आपसे, श्री मान जी रूक जाइए॥ दिल मेरा ख़ुशहाल होगा, हर खुशी आ जाएगी। ज्ञान की सुंदर महक, दिल में हमारे आयेगी॥ मत होइए सबसे विदा, इस आँख में आँसू मेरे। मत कहो तुम अलविदा, इस आँख में आँसू मेरे॥ परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। ...
सबसे बड़ा समाजसेवी
लघुकथा

सबसे बड़ा समाजसेवी

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** एक समय की बात हैं एक गाँव में रघुवीर नाम का व्यक्ति रहता था। रघुवीर बड़ा नेक दिल और हर किसी के दुःख को अपना दुःख समझ कर उसकी मदद करने वाला व्यक्ति था। इस बार रघुवीर के गांव में कुछ अधिक ही बारिश हुई जिससे गांव में बाढ़ की स्थिति बन गई और बाढ़ के कारण गांव के बहुत से घर तबाह हो गए। रघुवीर दिन रात सभी की सेवा करने में लगा रहता। रघुवीर कभी किसी के लिए घर से खाना बनाकर लेकर जाता तो कभी किसी बेघर को अपने घर में शरण देता। बरसात के बाद गांव में एक कार्यक्रम रखा गया जिसमें बाढ़ के दिनों में समाज सेवा करने वाले लोगों को सम्मानित किया जाना था। कार्यक्रम में रघुवीर को भी बुलाया गया। रघुवीर बड़े चाव से अपने मित्र के साथ कार्यक्रम में पहुंचा। कार्यक्रम में गांव के बड़े-बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति भी शामिल हुए। एक-एक करके...
प्रारब्ध, पुरूषार्थ, भाग्य
कविता

प्रारब्ध, पुरूषार्थ, भाग्य

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** मन ने मन से पूछा कौन पैदा होता है अपने साथ कामयाबी ले कर प्रत्युत्तर भी दिया मन ने सही है ... कोई पैदा नहीं होता मगर ... पैदा होता है वो अपने जन्म-जन्मांतरों के शुभ-अशुभ कर्मों का प्रारब्ध लेकर ... मन ने फिर कहा क्यों उलझाते हो शब्दों के मकड़जाल में अनेकों को देखा है शून्य है परिश्रम के नाम पर मगर ... पाते हैं ... सुख-सुविधा अपरंपार अकूत धन भंडार तब ... मन ने समझाया अपने ही मन को यही कहलाता है पूर्व जन्म के शुभ कर्मों का खेल कहा जाता है प्रारब्ध ... मन अशांत व्याप्त थी जटिल कुंठा घूम रहे अनेकों प्रश्न फिर मनु क्यों करे पुरूषार्थ तुरंत उत्तर आया आवश्यक है पुरूषार्थ अन्यथा क्षीण हो जाता है प्रारब्ध सात्विक हो पुरूषार्थ तो सोने पर सुहागा प्रारब्ध गुणित हो जाता है और यदि...
मेरी बूढ़ी अम्माँ
कविता

मेरी बूढ़ी अम्माँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सुघड़ता और संस्कारों की बुलन्द इमारत हैं बूढ़ी अम्मा, भोजन, पापड़ और अचार बनाती, बिना नाप जोख के अद्भुत स्वाद, दिलाती। जो घर के सारे काम, एक साथ करते हुए, सारे प्रबंधन को मात देती उनके हर काम में सुघड़ता दिखती! फिर भी नहीं कही गई कोई कहानी कोई किस्से उनके लिए, जिसने अपने हाथों के स्वाद से, अपने व्यवहार से, पीढ़ी-दर-पीढ़ी को तृप्त किया और सँवारा है ! बल्कि उन बूढ़ी होती काया पर आधुनिक न होने का प्रश्न चिन्ह लगाया है !! सभी को खुश रखना, सदा सबका आभार जताते रहने में सारी उम्र बिता दी ! समय ऐसा भी आया नहीं कोई और अम्मा, उन बूढ़ी अम्मा के पद चिन्हों को ग्रहण करना चाहती, नहीं आत्मसात करना चाहती उनके सद्गुण भरे आचरण को, क्यूँ की इनकी योग्यता की कोई डिग्री, कोई प्रमाणपत्र नही...
जिंदगी इस तरह मुस्काए जरूरी तो नही
ग़ज़ल

जिंदगी इस तरह मुस्काए जरूरी तो नही

मुकेश सिंघानिया चाम्पा (छत्तीसगढ़) ********************         २१२२ २१२२ २१२२ २१२ जिंदगी इस तरह मुस्काए जरूरी तो नही हंसते गाते ही गुजर जाए जरूरी तो नही मुश्किलों के साथ इसका है पुराना राब्ता रात ना हो दिन ही दिन आए जरूरी तो नही उम्र भर का साथ मिल पाना तो मुश्किल है बहुत अब वफा हर वक़्त मिल जाए जरूरी तो नही रात दिन में ही बदल जाते हैं रिश्ते आजकल जिंदगी भर को निभा जाए जरूरी तो नही दर्द अपना दर ब दर गाना नही अच्छा जरा हर समय पर हँस के दिखलाएजरूरी तो नही कब से आंखों में समंदर सा है इक ठहरा हुआ इस वजह भीगी नजर आए जरूरी तो नही कश्मकश जद्दोजहद में कैसे होती है बसर चीख कर ये बात बतलाए जरुरी तो नही आदमी जिंदा है गर तो दर्द भी होगा उसे मुर्दा कुछ अहसास कर पाए जरूरी तो नही परिचय :- मुकेश सिंघानिया निवासी : चाम्पा (छत्तीसगढ़) शपथ : मेरी कविताएँ और गज...
तू है जगत पिता
भजन

तू है जगत पिता

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** तू है जगत पिता तो मैं भी तेरा ही वंशज हूं। तूने करुणा बरसाई तो जीवों में अग्रज हूं। तू है जगत पिता तो मैं भी तेरा ही वंशज हूं। मैं संसारी जग में आया जगमाया में डूबा, मैं मेरा में सीमित रहकर जीवन से था ऊबा। तेरी सेवा जब पाई थोड़ी जीवन में रस आया, सुमिरन का जब जाम पिया तो जग का कुछ ना भाया। तेरे सृजन के रस में डूबा भंवरा हूं, पंकज हूं। तू है जगत पिता तो मैं भी तेरा ही वंशज हूं। तेरी कथा सुनना-सुनवाना ही अब मुझको भाता, तेरा नाम जपता, जपवाता इसमें ही दिन जाता। जितनी सांसे हो खाते में निज सेवा में रखना, तेरे नाम से तृप्त आत्मा अब जग का क्या चखना। राह का एक कंकड़ था, अब तेरे चरणों की रज हूं। तू है जगत पिता तो मैं भी तेरा ही वंशज हूं। तेरे भक्त गाली भी दे तो तेरा प्रसाद ही समझूं , मान और अपमान ...
हिंदी की महिमा
कविता

हिंदी की महिमा

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** हिंदी आन है, हिंदी मान है, हिंदी, हिंद की पहचान है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी शब्द है, हिंदी प्रबंध है, हिंदी वर्ण की व्याख्या है। यह देवनागरी की जान है।। हिंदी प्रीत है, मनमीत है , हिंदी सात सुरों का संगीत है, हिंदी युगों-युगों का गीत है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी धरती है, हिंदी आकाश है, हिंदी चांद है, हिंदी चकोर है, हिंदी सूरज का अखंड प्रकाश है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी गंगा है, हिंदी यमुना है, हिंदी नर्मदा की जलधार है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी प्राण है, हिंदी त्राण है, हिंदी हर जन की पालनहार है, हिंदी रोम-रोम से होता आत्मसार है, यह देवनागरी की जान है।। विष्णु है, हिंदी राम है, हिंदी कृष्ण का भागवत ज्ञान है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी ओम है, हिंदी ओमकार है, ...
खिसियानी बिल्ली
कविता

खिसियानी बिल्ली

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कर नहीं पा रहा कुछ भी छोटा है तो छोटा ही सोचे, हंस-हंस कर लोग बोले खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। बहुत उम्मीद पाल, जल्द बदल सकता है हाल सोच नेताजी ने चुनाव लड़ा, होकर निर्दलीय खड़ा, घोषणाएं बड़ा-बड़ा, सेवा की आस में चुनाव में पड़ा, पर ये क्या किस्मत निकला सड़ा, जमानत जप्त करा शर्म से गड़ा, सात पीढ़ी के लिए तो थे सोचे, पर खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। बड़े साहब से थी मधुर संबंध की चाह, शायद निकल आये तरक्की की राह, चापलूसी में गुजर रही जिंदगी पर किस्मत निकला श्याह, साहब दोस्ती न सका निबाह, असमंजस है अब किस तरीके से साहब का मोर पंख खोंचे, खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** बादलों से आलिंगन करते पर्वतों की श्रृंखला है अपार। ऊंचे ऊंचे पर्वतो के मध्य श्वेत झरनों की धार। ऊँचे पर्वतो से यात्रा करके मिलते हैं धरती से आज। हर पल मे बरसते देखो एक पल मै ओझल हो जाते, अपने आंचल में है समेटे बादलो का बिखर रहा है जाल। हरियाली अपने यौवन पर फल-फूल रहे हैं झाड़। कभी गरजते कभी बरसते कभी मौन हो जाते आप। देख नजारा प्रकृति का टकटकी लगाये अखियां आज। देखो दृश्य ओझल ना हो जाये स्वर्ग उतरा धरती पर आज। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्...
बांके बिहारी
स्तुति

बांके बिहारी

डॉ. राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** किंचित चिंतन चीते मन में प्रभु, राही को त्राहि हुए सब ग्रामा। भय क्लेश सबे दुनिया अरु, जन-जन आश तुम्ही हो श्यामा।। सीस शिखी उर-बाहु प्रलंब, कमल नैन, बंकिम दृग भौंहें। कर मुरली लकुटी धरी लाठी, ग्वाल बाल गौ सुन्दर सोंहैं।। मायापति के माया को न जाने, खरारी नित नव नाच नचावें। आन बसों "राधे" मन मंदिर, ग्वालिन यमुना तट बाट जोरावें।। राह खरो वहशी दरिंदा एक, गोपिन व्याकुल हुए परमात्मा। कहत "राधे" बांके बिहारी को नाम, त्राण मिटाओ वसुधा विश्वात्मा।। परिचय :-  डॉ. राम रतन श्रीवास निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) साहित्य क्षेत्र : कन्नौजिया श्रीवास समाज साहित्यिक मंच छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष सम्मान : कोरबा मितान सम्मान २०२१ (समाजिक चेतना एवं सद्भाव के क्षेत्र में) शिक्षा : हिन्दी साहित्य (स्नातकोत्तर) अतिरिक्त : रेल प...
भारत का कीर्ति नाद
छंद

भारत का कीर्ति नाद

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ऋषि मुनियों का देश यहाँ पर मेघ सुधा बरसाते। स्वर्ग त्याग देवता कुटी में बसने को ललचाते।। कवियों की यह धरा जहाँ भावना अछल उठती है। यहाँ सृजन के लिए स्वयं लेखनी मचल उठती है।। अविनाशी वह ब्रह्म यहाँ नव लीलाएँ रचता है। ले-ले कर अवतार स्वयं माँ की गोदी भरता है।। नदियाँ गातीं गीत यहाँ हर झरना भजन सुनाता। इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत माता।।१।। जिसके बच्चे बचपन से ही रण रचना करते हैं। जबड़े पकड़ बबर सिंहों के दाँत गिना करते हैं।। कच्ची कली खेलती हँसती मर्दानी बन जाती। अबला बाला रण में झाँसी की रानी बन जाती।। मरे हुए पति को जीवित करने को अड़ जातीं हैं। यहाँ नारियाँ सत के बल पर यम से भिड़ जातीं हैं।। यहाँ प्रकृति की हंँसी देखकर मुकुलित मन इतराता। इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत म...
महत्व सिंदूर का
छंद

महत्व सिंदूर का

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** महत्व सिंदूर का समझ वो सके न कभी, सैलानियों का पूछ धर्म चुन-चुन मार रहे। बार बार खाके मार अक्ल न आई कभी, आतंकी ठिकानो में अब ढूंढ ढूंढ मार रहे। प्रहार सिंदूर का वो सह न सके कभी भी, नंगे, भूखे हरकतें अब, कायराना कर रहे। अब तक बच रहे, अब बच न पाएंगे कभी, सिंदूर का बदला "श्याम" सिंदूर से कर रहे। परिचय :- राधेश्याम गोयल "श्याम" निवासी - कोदरिया महू (म.प्र.) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
कल नही आज
कविता

कल नही आज

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कल नही आज आज नही अभी अभी नही इसी क्षण भावो के सागर की लहरे कूल से टकराती स्याही बन लेखनी मे उतरती कागज पर कुछ लिखती लेखनी यही है हाँ यही है कवि की कविता की कहानी। सूरज की किरणो से आगे कवि हेदय भाव भावो के बवन्ङर को नव रसो का स्पर्श कविता को श्रृंगारित करता गाता जाता कवि सरिता के कूल किनारे वीर गान आनन्द गान गाता जाता अपनी मस्ती मे कुछ हंसाता कुछ रूलाता जाता। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवा...
बाढ़ में डूबकर भी कैसे तरें
व्यंग्य

बाढ़ में डूबकर भी कैसे तरें

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** इधर बाढ़ आई और उधर सरकारी महकमों में, सखी, ऐसा उत्सव-सा माहौल बन पड़ा मानो बरसों से पेंडिंग मनौती की फाइल पर अफसर की चिडया बैठ गयी ! जैसे ही नदियाँ उफान पर आईं, वैसे ही कागज़ों में ‘हर घर नल-जल’ योजना बिना कोई पत्ता हिलाए ही पूर्ण घोषित हो गई। देखो तो जरा इन सरकारी नुमाइंदों को-नदी के उफान के साथ इनके चेहरे भी कैसे उल्लास से उफनने लगे हैं! बाढ़ इनके लिए मानो ‘मुँह माँगी मुराद’ बन गई हो, और जो अभागे सच में डूब गए, वे भी सरकारी आँकड़ों में तैरकर चमक बढ़ा रहे हैं। जो बचे, वे ‘राहत लाभार्थी’ कहलाए, और जो न डूबे, न बचे-वे चाय की चुस्कियों के साथ टीवी न्यूज़ चैनलों पर ‘बाढ़-आपदा विशेषज्ञ’ बन बैठे हैं। रहत कर्मचारियों को लगा दिया है काम पर..दूरबीन लगाये देख रहे है, हांक लगा रहे हैं..”तनिक हाथ-प...
हिंद वतन आजादी है
छंद

हिंद वतन आजादी है

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** (ताटंक छंद, देश प्रेम) संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी है। बस देश प्रगति की गाथा ही, हिंद वतन आजादी है। पत्ते, डाली, तना, जड़ यात्रा, हरियाली जता रही है। संकल्प से सिद्धि के प्रकल्प, दीवाली दिखा रही है। आजाद राष्ट्र आवाम को, स्वाभिमान सिखा रही है। दिया तले तम साबित करने, बैठे कुछ जल्लादी है। उनको विरोध द्रोह तर्क की, कड़वी दवा पिला दी है। संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी है। बस देश प्रगति की गाथा ही, हिंद वतन आजादी है। दोनों आंख सलामत फिर भी, विकास गर्व नहीं भाता। पर काने अंधे मानव भी, माटी में पर्व मनाता। पड़ोसी गोद में पलते जो, दंभ शान ही दिखलाता। स्वाभिमान भारत दर्शन से, उनको क्या पाबंदी है। सुनो! विश्व सम्मान से भारत, अव्वल पथ आसंदी है। संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी...
हिंदी
दोहा

हिंदी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कोमल है कमनीय भी, शुभ्र भाव रसखान। यशवर्धक मन मोहिनी, हिन्दी सरल सुजान।। भाग्यविधाता देश की, संस्कृति की पहचान देवनागरी लिपि बनी, सकल विश्व की जान।। अधिशासी भाषा मधुर, दिव्य व्याकरण ज्ञान। सागर सी है भव्यता, निर्मल शीतल जान।। सम्मोहित मन को करे, नित गढ़ती प्रतिमान। पावन है यह गंग-सी, माॅंग रही उत्थान।। आलोकित जग को किया, सुंदर हैं उपमान। अलख जगाती प्रेम का, नित्य बढ़ाती शान।। उच्चारण भी शुद्ध है, वंशी की मृदु तान। सद्भावों का सार है, श्रम का है प्रतिदान।। पुष्पों की मकरन्द है, शुभकर्मों की खान। भारत की है अस्मिता, शुभदा का वरदान।। पुत्री संस्कृत वाग्मयी, लौकिक सुधा समान। स्वर प्रवाह है व्यंजना, माँ का स्वर संधान।। दोहा चौपाई लिखें, तुलसी से विद्वान। इसकी शक्ति अपार पर, करते हम अभिम...
चेतावनी
छंद

चेतावनी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हर ओर धुँआँ ही धुँआँ मात्र संयोग नहीं, परिणाम निकल कर आए हैं आजादी के। चल पड़ी तोड़ कर अनुशासन यह आबादी, जिस पथ पर पसरे राग बड़ी बर्बादी के।। कहने को कुछ भी कहो आपकी मर्जी है, शायद कुछ भाग्य उदित हों अवसरवादी के। पर हम सचेत करते हैं तुम को यह कहकर, ये लक्षण हैं उन्मादी और फसादी के।। यूँ स्वतन्त्रता का अर्थ नहीं स्वच्छन्द रहो, जीवन संयम के साथ बिताना जीवन है। खुद पर कानूनों नियमों का अंकुश न रखा, तो पराधीन बाहों में जाना जीवन है।। सुनने में कड़ुआ लगे-लगे तो लग जाए, जनता के हक का हरण, बहाना जीवन है। चल रहीं चालबाजियाँ उधर अपने हित में, युग के सुधार का नाम निशाना जीवन है।। नीतियाँ अधमरीं पड़ीं स्वार्थ के वशीभूत, इस त्याग भूमि पर क्या जाने क्या हवा चली। भर लिए खजाने लोगों ने कर लूटमार,...
सु आस है हिंदी
कविता

सु आस है हिंदी

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** युग-युग से स्वर्णिम भारत का इतिहास है हिंदी, भारत मां के कण-कण में एक प्यास है हिंदी। हर घर के जन-जन की सु आस है हिंदी।। अखिल विश्व में मां भारती की शान है हिंदी, शहीदों ने गाया वंदे मातरम गान ही हिंदी। जन-जन के अंतर्मन का आभास है हिंदी....हर घर । रिश्तों को निभाने का सच्चा मार्ग है हिंदी, मनोभाव दिखाने का अच्छा मार्ग है हिंदी। कवियों के अंतर्मन मन का आभास है हिंदी...हर घर सभी भाषाओं में उत्कृष्ट लिए भाव है हिंदी, हमारी संस्कृति के सिर पे गहरी छांव है हिंदी। भारत के संविधान का विश्वास है हिंदी....हर घर गीतों, छंदों और कविता का गान है हिंदी, हिंदी के सिर पे बिंदी का सम्मान है हिंदी। गीतों में सार "श्याम" के अब खास है हिंदी, हर घर के जन-जन की सु आस है हिंदी।। परिचय :- राधेश्याम गोयल "श्याम" निवासी - ...
हिन्दी मस्तक की बिंदी
गीत

हिन्दी मस्तक की बिंदी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दी हितकर है सदा, हिन्दी तो अभियान है। हिन्दी है मस्तक की बिंदी, हिंदी तो सम्मान है।। हिन्दी में तो आन है, हिन्दी में तो शान है। हिन्दी नित उत्कृष्ट है, हिन्दी सदा महान है।। हिन्दी अपनायें सभी, यही आज अरमान है। कला और साहित्य है, भरा हुआ यशगान है।। हिन्दी गीत, कुंडलिया, कविता, चौपाई की शान है। हिन्दी है मस्तक की बिंदी, हिंदी तो सम्मान है।। हिन्दी में है उच्चता, मनुज सभी इसको मानें। हिन्दी का उत्थान सदा हो, हिन्दी को सब ही जानें।। हिन्दी पर अभिमान हमें हो, हिन्दी अपनायें सब। हिंदी से हम प्रीति लगा लें, मंगलगीत सुनायें सब।। वह हर हिंदी के पथ में जो सचमुच चतुर सुजान है। हिन्दी है मस्तक की बिंदी, हिंदी तो सम्मान है।। हिन्दी में सामर्थ्य भरा है, हिन्दी में है वेग भरा। हिन्दी में ...
हिन्दी दिवस
आलेख

हिन्दी दिवस

मोहर सिंह मीना "सलावद" मोतीगढ़, बीकानेर (राजस्थान) ******************** हिन्दी दिवस प्रति वर्ष १४ सितम्बर को पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। १४ सितम्बर १९४९ को ही संविधान सभा ने निर्णय लिया था कि हिन्दी केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा होगी क्योंकि भारत के अधिकतर क्षेत्रों में हिन्दी भाषा बोली जाती थी। इसलिए हिन्दी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया गया और इसी निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए वर्ष १९५३ से पूरे भारत देश में १४ सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए काका कालेलकर, हजारी प्रसाद द्विवेदी, सेठ गोविन्द दास आदि साहित्यकारों को साथ लेकर राजेन्द्र सिंह ने अथक प्रयास किए। हिन्दी भाषा और इसमें निहित भारत की सांस्कृत...
मातृभाषा का महोत्सव
कविता

मातृभाषा का महोत्सव

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** हिंदी है दिल की जुबां, हिंदी है जन-गान। भारत माँ की वाणी है, इसका ऊँचा मान।। माटी की खुशबू लिए, बोले हर इंसान। गंगा-जमुनी संस्कृति की, हिंदी पहचान।। तुलसी की चौपाइयों में, सूर की रसधार। कबिरा के दोहों में बसी, जीवन की पुकार।। मीरा के पद झंकारित हों, भक्तिरस का गीत। भारतेंदु का जागरण हो, हिंदी का संगीत।। प्रेमचंद की कहानियों ने, जग में दिया प्रकाश। साहित्य के हर पृष्ठ पे, हिंदी का इतिहास।। महादेवी के भावों में, कोमलता का गीत। दिनकर की गर्जना में है, ओजस्वी संगीत।। रसखान की राधा बानी, रही प्रेम की धुन। हिंदी का उत्सव यही, हिंदी का अभिमान। संविधान की गोद में, राजभाषा का मान। विश्वपटल पर गूंजती, भारत की पहचान।। आज तकनीकी युग में भी, हिंदी लहराए। मोबाइल की स्क्रीन पर भी, हिंदी ही छाए।। कीबोर्ड स...
उड़ान
कविता

उड़ान

डॉ. रागिनी सिंह परिहार रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** सपनों में अगर चाहिए उड़ान तो सुनो गुरु ज्ञान के बिना संभव नहीं सुनो बचपन में मां ने मुझको चलना सिखाया उंगली पकड़ के मेरी सही रास्ता दिखाया जब थोड़ी सी बड़ी हुई विद्यालय पहुंचाया गुरुओं के बीच मुझको नादान बताया फिर गुरुओं ने हमारी हमें मंजिल है दिखाया के से कबूतर ज्ञ से ज्ञानी मुझको सिखाया थोड़ी और बड़ी हुई तो विषय वस्तु बट गए हिंदी,गणित,विज्ञान का मतलब समझ गए पर आज तक अंग्रेजी समझ आई ना हमें A फॉर एप्पल Z फॉर ज़ेबरा समझ आया ना हमें प्रथम गुरु मेरी मां बनी जिसने दिया है जन्म उस जन्म को साकार बनाया है गुरुजन अबोध है अज्ञान है अंधकार में है हम आपके सानिध्य से चीनू बाई, कल्पना चावला बने हम बस आरजू यही कि देश में हर नारी का हो नारित्व हर घर में लक्ष्मीबाई हो हर घर में विवेकानंद सपनों म...
दिल हूं हिंदुस्तान की
कविता

दिल हूं हिंदुस्तान की

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** सरल, सहज, सुमधुर वचन संस्कृत से पाया अपना जीवन सकल जगत् को मोह रही है अंक मेरे अपार शब्द शक्ति सहेज रही बोलियों को बनकर मातृशक्ति नवीन तकनीक के लगाकरपंख मैं तो छूने आकाश चली हिंदी कहते मुझको दिल हूं हिंदुस्तान की राजभाषा बन हिन्द की राष्ट्रभाषा बनने की तमन्ना मैं कर रही परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@g...