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लघुकथा

संयुक्त परिवार
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संयुक्त परिवार

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ******************** सुनैना अभी-अभी छाछ की हाण्डी रखने आयी थी। तीनों भाभीयां ने सुनैना को देख लिया। उसे रोककर वे तीनों उससे बातें करने लगी। तीनों भाभीयां चूपके से अनिल को शरारात भरी आंखों से देख रही थी। अनिल शरमा के यहाँ-वहां हो जाता। सौमती का पुरा परिवार आज उसके साथ था। लाॅकडाउन चल रहा था। दोनों बेटे अपने परिवार सहित विधवा मां सौमती के यहां पैतृक गांव आये थे। उन दोनों बेटों के चार बेटे और तीन बेटों की पत्नीयां तथा इन तीन जोड़ों के कुल पांच बच्चों से सौमती का सुना घर खुशियों से भर उठा था। सौमती का छोटा बेटा रामचंद्र अपनी मां के साथ ही था। उसकी पांच बेटीयां थी। सौमती के मंझले बेटे दयाराम का पुत्र अनिल विवाह योग्य हो चला था। सौमती ने उसी गांव की सुनैना की बात अनिल के लिए चलाई थी। मगर दयाराम अपने पढ़े- लिखे अनिल के लिए वैसी ही बहु चाहते थे ताकी समय आने पर वह नौक...
पतंग
लघुकथा

पतंग

मनीषा शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मुझे आज भी याद है संक्रांति का वह दिन जब मैं और मां छत पर पतंग के देख रहे थे खुले आसमान में उड़ती रंग बिरंगी पतंगों को देखकर मन आनंदित हो गया। मैंने मां से कहा काश मै भी एक पतंग होती नीले आसमान की सैर करती, रंग-बिरंगे चटक रंगों से अपने आप को सजाती संवारती। तब मां ने कहा गुड़िया औरत भी तो एक पतंग ही है जो सजती है, संवरती है और अपने अरमानों से उड़ान भरती है पर पतंग की डोर हमेशा किसी और के हाथ में होती है और डोर थामने वाला पिता, भाई, पति और पुत्र है जो हमेशा अपनी इच्छा से पतंग की उड़ान तय करता है और अपनी उंगलियों पर पतंग को नचाता है पर बिटिया अब जमाना बदल रहा है हर चीज ऑटोमेटिक हो रही है तो तुम भी स्वतंत्र पतंग बनना अपनी उड़ान अपनी शर्तों पर उड़ना। मां की वही बात आज भी जीवन में प्रेरणा देती है....। . परिचय :-  मनीषा शर्मा जन्म ...
हक़ीक़त
लघुकथा

हक़ीक़त

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** गीजर खराब हो जाने से मधु ने रॉड लगाकर बाल्टी में पानी गरम करने रखा, कचरा गाड़ी आ जाने से फ्लेट की सीढ़ियों से उतरकर कचरा डालने नीचे सड़क तक गई। सीमित समय मे बहुत से काम निपटाने की हड़बड़ी से घबराई हुई मधु पुनः सीढ़िया चढ़कर ऊपर पहुँची तो देखती है सीढ़िया विभाजित है। नीचे उतरकर दूसरी तरफ से सीढ़ियां चढ़ती है फिर वही मंजर! तीसरे फ्लेट की तरफ भागती है फिर चौथे फ्लेट.....इसी तरह हर सीढ़ी गन्तव्य तक पहुँचने से पहले टूट चुकी हैं। जहाँ पहुँचना है वो जगह हर बार दिखाई दे रही है पर रास्ता नहीं सूझ रहा। याद आया उसे पानी गरम करने रखा था, बेटा उठकर वॉशरूम में कहीं अनजाने हाथ ना लगा ले! सोच कर रूह काँप गई। मधु पूरी तरह पसीने में लथपथ, ठंडी पड़ गई। धड़कन बढ़ी हुई, बोलने की कोशिश में जबान लड़खड़ाई। बेचैन, उद्विग्न, चीख कर लगभग रोती हुई उठ बैठी। ओ..ह!! ये सपना ...
आत्मविश्वास
लघुकथा

आत्मविश्वास

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** किसान दीनालाल के खेत में रबी की फसल पक गयी है। कोरोनावायरस के कारण पूरे राष्ट्र में लाकडाउन लगा है। एक सच्चे देशभक्त होने के कारण मजदूरों को फसल काटने के लिए नहीं कह रहे हैं। फसल कटाई के लिए बहुत चिंतित है। "दादाजी आप सवेरे-सवेरे क्यों चिंतित हैं? आपके चेहरे पर बारह बज रहे हैं।" उनका बारह वर्ष का पोता रोहन पूछा। "खेत में रबी की फसलें सूख गयी है। अगर इसको यूं ही कुछ दिन छोड़ देंगे तो सारी मेहनत पर पानी फेर जाएगी। क्या करूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा है। मजदूरों से कटवा नहीं सकता। मैंनें कभी फसल काटी नहीं है। "दीनालाल उदासी स्वर में बोले। "ओहो दादा जी! रोहन के रहते हुए आप क्यों चिंतित हो जाते हैं। चलिए खेत, हमलोग स्वयं फसलें काटकर ले आएं। मैंनें मजदूर चाचा जी सबको फसल काटते ध्यान से देखता रहता। "राहुल आत्मविश्वास के साथ बोला। "पर रोहन त...
आत्म-मूल्याँकन
लघुकथा

आत्म-मूल्याँकन

डॉ. कुँवर दिनेश सिंह शिमला, हिमाचल प्रदेश ************************ प्रतिभा ने एक प्रतिष्ठित निजी विश्वविद्यालय में भौतिकी विषय में प्रवक्ता पद के लिए आवेदन किया। उसने पीएच.डी. कर ली थी और कुछ संस्थानों में अतिथि संकाय में शिक्षण का अनुभव भी अर्जित किया था। साथ में कुछ शोधपत्र भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के चर्चित जर्नलों में प्रकाशित करा लिए थे। उक्त पद के लिए प्रतिभा को साक्षात्कार के लिए बुला लिया गया। उसकी प्रस्तुति से प्रसन्न होकर इंटरव्यू बोर्ड की अध्यक्षता कर रहे कुलपति ने पूछा, "आप वेतन कितना चाहते हो?" "जी, आपने नियत किया ही होगा इस पद के लिए ..." "नहीं, हमारे वेतन सरकारी वेतनमान से अधिक भी होते हैं; यह व्यक्ति की योग्यता पर निर्भर करता है। हमें तो आउटपुट अच्छी चाहिए, बस... कहिए आप स्वयं को कितने वेतन के योग्य मानती हैं?" प्रतिभा ने थोड़ा झिझक कर, रुक-रुक कर कह दिया, "जी, स...
आश्चर्य
लघुकथा

आश्चर्य

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ आज सुबह जितेश का फ़ोन आया, हिमांशु ने फ़ोन रिसीव किया बोला: हेल्लो, क्या हालचाल जितेश, कैसे हो? जितेश बोला, क्या भाई तबियत खराब है? "भाई जितेश तुम अब बार-बार बिमार कैसे हो जाते हो?" हिमांशु ने पूछा ! "भाई याद है मुझे आज भी वह दिन जब मै बच्चा था, और गाँव में रहता था। कोई डर नही,कोई गम नही। जो मन में आया खाया, खेला! कभी बिमार नही होता था। पर आज शहर में रहता हूँ, हर पंद्रह दिन पर बिमार हो जाता हूँ। आज भी वही खाना खाता हूँ, जो गाँव में खाता था। गाँव में कुएँ और चापाकल का पानी पीता था आज मिनिरल वॉटर पीता हूँ। फिर भी मैं बिमार हो जाता हूँ। "एक बात समझ नही आता गाँव के मुकाबले शहर में सेहत का ध्यान अच्छे से रखता हूँ, फिर भी यार हर पंद्रह-बीस दिन पर बिमार हो जाता हूँ। जितेश बोला। "हिमांशु उसकी बातों को सुनकर आश्चर्य में पड़ा रह ग...
एक टुकड़ा डबल रोटी का
लघुकथा

एक टुकड़ा डबल रोटी का

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** उन मासूम सी आंखों में दर्द के कतरे स्पष्ट झलक रहे थे। हाथों की हथेलियों में नीली लाल लकीरों का जाल बना था। चाय के दुकान के मालिक के हाथ की लपलपाती छड़ी अभी भी उसकी हथेली चूमने को बेताब थी। किंतु लोगों के जमघट ने उसे रोक रखा था। उस मासूम की दस साल की तजुर्बेकार आंखों में एक संबाल तैर गया।क्या भूख से निढाल हुई बीमार कराहती मां के एक निवाले की खातिर, ग्राहक की प्लेट में बचा डबलरोटी का एक टुकड़ा उठाकर जेब में रख लेना जघन्य अपराध है....? शायद हां....। . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्...
महामारी
लघुकथा

महामारी

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** रमेश अपने परिवार के साथ गांव में रहता था, गांव के सभी लोग रमेश के घर जाने से ग्रहणा करते थे। कुछ लोगों का कहना था, घर से गोबर की बदबू आती है घास पूला भरा हुआ है। हमारे बच्चे या हम जाएंगे तो बीमार पड़ जाएंगे। एक दिन अचानक गांव में महामारी का पूरे गांव में प्रभाव पड़ा पर रमेश का घर सुरक्षित था। लोगों की जिज्ञासा हुई इतनी भयानक महामारी जिसने पूरे गांव को जकड़ा हुआ था। रामेश का घर सुरक्षित कैसे? रिसर्च टीम रमेश के घर आती है, खोज में जुट जाती है, रमेश के घर में ऐसा क्या है.......?? रिसर्च टीम की खोज कुछ समय में पूरी होती है। टीम गांव वालों को कहती है। इस महामारी का इलाज मिल गया है। गांव वाले उत्सुकता और ध्यान पूर्वक सुन रहे थे.... टीम ने कहा "हम लोग अपनी वैदिक पद्धति को भूल गए हैं। आज यदि चोट लगती है तो डॉक्टर के पास भागते हैं क्या हम ऐसा क...
सुख
लघुकथा

सुख

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** भागमभाग की जिंदगी। कभी व्यापार के सिलसिले में दस दिन बाहर तो कभी-कभी शहर में रहकर भी रात, बारह बजे तक घर नहीं आना। जिंदगी बड़ी तेजी से भागी जा रही थी और मुकेश को पल भर भी फुरसत नही थी। मां कहती तो कह देते कि, यही समय है कमाने का। पत्नि कहती तो कभी-कभी गुस्से में पारा चढ़ जाता की,....कमाउंगा नहीं तो यह सब सुविधाएं कहां से मिलेगी। तुमको घर में बैठकर क्या पता चलता है। हर दिन व्यंग सुनकर वीणा ने बोलना ही बंद कर दिया। अचानक परिस्थितियों ने सबको घर में रहने को मजबूर कर दिया। मुकेश को इन दिनों में लगा की कितना भागा में। जरुरत तो परिवार के प्यार की थी, जरूरत तो स्नेह की थी। भौतिक सुखों में आज कुछ काम नहीं आ रहा था। बस एक साथ बैठकर बतियाता परिवार सब सुखों से उपर था। परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ. श्री लक्षमी...
पिंजरा
लघुकथा

पिंजरा

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** लॉकडाउन के दौरान घर की बालकनी में खड़ी मीरा आम के पेड़ पर बैठी चिड़ियां की बाते सुन रही थी। एक गौरैया पास बैठी डॉक्टर चिड़िया से बोली-"क्यो बहन आजकल इतना सन्नाटा क्यों हैं? सारे इंसान कहाँ गायब हो गए? डॉक्टर चिड़िया बोली - "हाँ बहन सुना है कोई कोरेना वायरस आया है, पूरे विश्व मे इंसानों को मार रहा है। लोग एक दूसरे से दूर रहेंगे तो बचेंगे वरना मर जायेंगे।" गौरैया बड़ी दुखी हुई और कुछ सोचने लगी! फिर बोली - "एक बार मैं उड़ती हुई एक घर मे चली गई थी, बहुत बड़ा और सुंदर घर था। वहाँ एक बड़े पिंजरे में तरह-तरह के पंछी थे। खूब सारा दान रखा था पर पीने के पानी के कटोरे औंधे पड़े थे। शहरों में इंसानों के खुद के लिए पानी की किल्लत है तो पंछी भी प्यासे थे। मुझे देख सारे पंछी उड़ने को फड़फड़ाने लगे। आज इंसान भी वैसा ही अनुभव कर रहे होंगे ना!" डॉक्टर चिड़िया ...
चुनौती
लघुकथा

चुनौती

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** अच्छा बच्चों अब हम कल नया पाठ पढ़ेंगे...कहते हुए नीलिमा ने मोबाइल ऑफ कर दिया। नीलिमा हायर सेकेंडरी स्कूल में रसायन शास्त्र व्याख्याता के पद पर पदस्थ है और इस लॉक डाउन के समय में मोबाइल पर ज़ूम एप के माध्यम से बच्चों को विज्ञान, केमिस्ट्री,बायोलॉजी आदि विषयों के पाठ पढ़ा रही है। मम्मी-मम्मी आपका फ़ोन दो ना, मुझे गेम खेलना है कहते हुए मिनी ने नीलिमा के हाथ से मोबाइल ले लिया, मिनी नीलिमा की बिटिया है जिसे अभी नौंवी कक्षा में जनरल प्रमोशन मिला है। ठीक है थोड़ी देर गेम खेलकर कुछ देर साइंस भी पढ़ लेना बेटा, नीलिमा ने मिनी को समझाते हुए कहा। ओके मम्मा,कहते हुए मिनी फ़ोन पर गेम खेलने लगी, नीलिमा किचन में जाकर खाने की तैयारी करने लगी, थोड़ी ही देर में मिनी आकर नीलिमा से बोली मम्मा ये फेस बुक पर चारु आंटी का चैलेंज है आपके लिए साड़ी में फ़ोटो डा...
गौरी मौसी
लघुकथा

गौरी मौसी

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** लोकडाउन के तीसरे दिन पडोसन गौरी मौसी दीन भाव से अध्यापिका डॉ. अर्पिता से कहती हैं : "बहन जी पाँच सौ रूपये की मदद हो सके तो करो न ! तीन दिन से मेरी अगरबत्ती का ठेला बन्द है। जब लोकडाउन पूरा होगा तब आपको लौटा दूँगी।" डॉ. अर्पिता बिना कुछ कहे, पूछे मधुर स्मित के साथ एक हज़ार रूपये उनके हाथ में थमा देती है। "चिंता मत करो, जरुरत पड़े तो माँग लेना, पर अपने घर में ही रहना। "इसके बाद डॉ. अर्पिता रोज जान बूझकर ज्यादा रसोई बना के उसे देती है : मौसी आज मुझसे ज्यादा बन गया है, लीजिए। "गौरी मौसी का चेहरा अहोभाव से खिल उठा....।। . परिचय :- डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ अप्रैल १९७३ निवास : हरमडिया, राजकोट सौराष्ट्र (गुजरात) शिक्षा : एम्.ए, एम्.फील, पीएच...
अफवाह
लघुकथा

अफवाह

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** वह बदहवास सी दौड़ती आई थी। अम्माजी मुझे काम से न हटाइये, अम्माजी मुझ गरीब पर दया कीजिए। क्या हुआ कमली..... अचानक ऐसे क्यों दौड़ी चली आई है। कहा था ना तुझे अभी काम पर नहीं आना है। नहीं-नहीं अम्माजी मुझे कुछ नहीं हुआ है। कुछ लोग बोल रहे थे .... अब काम बंद तो पैसा बंद। महिने की पगार नहीं मिलेगी। अम्माजी बच्चों को क्या खिलाऊंगी। काम पर आती हूं तो सब घर से मुझे थोड़ा बहुत बचा हुआ खाने को मिल जाता है, मुझे भी चाय मिल जाती है। पगार भी नही और बचा-खुचा भोजन भी नहीं? बच्चें बीमारी से नहीं भूख से ...? नही-नही कमली तू इन फालतू की अफवाह पर ध्यान न दे और घर जा। रूलाई आ गई कमली को... बेबस कमली बस आंखों में बोल पड़ी... महामारी का नाश हो। परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ. श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद...
देश राग
लघुकथा

देश राग

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** तेरी मिट्टी में मिल जावां, गुल बनके मैं खिल जावां.. इतनी सी है दिल की आरज़ू.... .. दीदी आज तो आपने सबको भावुक कर दिया, आप कितना मीठा गाती हो, प्रीति का गाना पूरा होते ही पास में खड़े बिट्टू ने प्रीति से कहा और सभी ने अपने अपने घरों से तालियां बजायीं। प्रीति कॉलेज में प्रोफेसर है, गरीब बस्तियों के बच्चों की शिक्षा पर भी काम करती है साथ ही अच्छी गायिका भी है। लॉक डाउन के दौरान आसपास वालों की फरमाइश पर वो रोज शाम को अपने घर के सामने ट्रैक पर माइक और स्पीकर लगाकर सभी को गाने सुनाती है। आज जब उसने ये गीत गाया तो सभी लोग देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत होकर भावुक हो गए। गाते गाते प्रीति की आंखें भी भीग गयीं, दीदी मुझे भी गाना सीखना है, आप मुझे सिखाओगी, बिट्टू ने माइक और स्पीकर उठाते हुए पूछा, हाँ हाँ बिट्टू क्यों नहीं? जरूर, प्रीति ने...
गुल्लक
लघुकथा

गुल्लक

अर्चना मंडलोई इंदौर म.प्र. ******************** माँ आशा आंटी का फोन है... बेटा मुझे फोन देते हुए बोला... मैने पोछा बाल्टी में फेकते हुए दुपट्टे से हाथ पोछे और बेटे के हाथ से फोन झपट लिया। कैसी हो दीदी उधर से आवाज आई ! .ठीक है हम सब तू कैसी है? और तेरे परिवार के लोग.....मैं एक सी सांस मे कह गई? नहीं दीदी...वह रूकती हुई बोली - पर आपको सब काम हाथ से ही करना पड रहा है ना? और आपके पैरो का दर्द कैसा है? उधर से बुझी सी आवाज आई। हम लोग मिलजुल कर मैनेज कर रहे है। बच्चें भी काम मे हाथ बँटा रहे है.... वो सब तो ठीक है पर तू बता तुम लोग गाँव तो नहीं गए ना? और तेरे पति क्या अभी भी सब्जी बेचने जाते है? मै उसकी खैरियत पूछने के लिए एक सांस मे सब कह गई। वो दीदी मालिक मकान किराया मांगने लगा था। और फिर हमारे घर में खाने का सामान भी इन आठ दिनों मे खतम होने लगा था। आटा दाल का इंतजाम तो करना ही था सो जान जोख...
कैलाश यात्रा
लघुकथा

कैलाश यात्रा

डॉ . भावना सावलिया हरमडिया (गुजरात) ******************** गाय दुहने के बाद माँ चिराग को आवाज देती हैं... बेटा, शिव के अभिषेक का दूध तैयार है, अरे हाँ, आज इक्यावन रूपये लेते जाना, शिव के चरणों में अर्पण कर देना। चिराग - जी मम्मी और कुछ ? बस भोलेनाथ सबको कुशल रखें। चिराग रोज मंदिर न जाकर अभिषेक का दूध एक वृद्धा बुढ़िया को पिलाके आशीर्वाद प्राप्त करता था। आज दूध के साथ फल लेकर गया था। पहली बार सोई हुई बुढ़िया को जगाकर फल और दूध का नास्ता खिलाके बहुत खुश था। शायद बुढ़िया का वह आखिर दिन होगा। शाम को वह कैलाश सिधार जाती है। दूसरे दिन माँ चिराग को शिव के अभिषेक के लिए पुकारती है तो वह कहता है... "आज भोलेनाथ मंदिर में नहीं है, कल से कैलास यात्रा के लिए गये हैं।" . परिचय :- डॉ . भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ ...
कुछ लिख रही हूँ
लघुकथा

कुछ लिख रही हूँ

डॉ. अलका पांडेय मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** पति थका हारा आफिस से आता है पत्नि को आवाज़ देता है... सोनम ज़रा एक गिलास पानी और चाय देना आज बहुत थक गया हूँ, सर दर्द कर रहा है, चाय दे कर थोड़ा सा बाम सर में मल दो थोडा सो जाऊँगा तो आराम हो जायेगा। सोनम मैं कुछ लिख रही हूँ। आप पानी लेकर पी लो मैं बस यह लिख कर आप को चाय बना कर लाती हूँ फिर बाम लगा कर सर दबा दूंगी। पति जी पानी लेकर पी लेते हैं और कमरे में आकर कपडे बदल कर हाथ मुँह धोकर भगवान को अगरबत्ती भी जला देते है पर सोनम चाय लेकर नहीं आती। वो फिर आवाज़ देते है क्या हुआ चाय नहीं बनी... अरे बना रही हूँ, ला रही हूँ आप आराम करो ला रही हूँ... काफ़ी देर बात सोनम चाय लेकर आती है तो पति देव पूछ ही बैठते हैं... आप सारा दिन क्या लिंखती रहती है क्या कोई किताब लिख रही है? सोनम नहीं किताब नहीं सारा दिन मुझे फ़ुरसत नहीं मिलती है, फ़ेस बुक, वाट...
अंतर्मन
लघुकथा

अंतर्मन

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** आंटी आंटी हमारी बॉल अंदर आ गई, प्लीज् दे दीजिए ना, दीप्ति ने खिड़की से झांककर देखा तो कॉलोनी में खेलते हुए बच्चे उसके घर के गेट पर खड़े होकर आवाज़ दे रहे थे, दीप्ति एक लेखिका और समाजसेवी है। आज रविवार होने से वह घर पर ही अपने लैपटॉप पर कोई आर्टिकल लिख रही थी। जिसका शीर्षक था "अंतर्मन"। दीप्ति ने बाहर निकलकर बच्चों को बॉल दी और फिर आकर लिखने बैठ गयी। तभी कॉलोनी की सफाईकर्मी मालती भाभी ने दरवाजा खटखटाया, दीप्ति के पूछने पर उसने कहा कि बेटी को कॉपी और पेन की जरूरत है और कल जन्मदिन है तो वो नए कपड़ों की जिद कर रही है। दीप्ति ने उसे कॉपी पेन देते हुए कहा की भाभी ऐसे ही बिटिया की पढ़ाई पर ध्यान देना और जो भी जरूरत हो आकर बात देना। दीदी आपकी बजह से ही तो मेरी बिटिया पढ़ रही है, अगर आप फीस नही भरती, स्कूल में एडमिशन नही दिलाती तो हमारी हैस...
समर्पण
लघुकथा

समर्पण

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** कोरोना वायरस की वजह से सरकार ने २१ दिन की छुट्टी की योजना बनाई। सुमा और उसका परिवार खुशी से झूम उठा। कुछ दिनों से सुमा सोशल मीडिया पर फनी वीडियो देख रही थी, बड़े मजेदार थे, "मैं भी कॉमेडी वीडियो बनाऊंगी।" बैग लेकर सीधा उसके पति के वहां पहुंची, सुमा के पति के ऑफिस के कॉल चल रहे थे। कुछ इस तरह बात चल रही थी - इंप्लॉय को किस तरह काम करने में परेशानी आ रही है, किसी को नेटवर्क ना मिलने के कारण वह नीम के पेड़ के नीचे बैठकर काम कर रहा है, तो कोई छोटे रूम में, तो किसी को संयुक्त परिवार होने के कारण काम में परेशानी आ रही थी। सुमा यह सब दरवाजे के पास खड़ी-खड़ी सुन रही थी, जिस उत्साह से वह बैग लाई थी वीडियो बनाने के लिए, ग्लानि से बैग जमीन पर गिर गया। सुमा ने सभी एंप्लॉय का काम के प्रति समर्पण का भाव देखकर मन ही मन उस ने सभी इंप्लॉय के प्रति सम्म...
कलर
लघुकथा

कलर

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** आशा ने सभी को हिदायत दी की होली के कलर से कोई गंदागी नहीं करेगा, यह कैसा त्यौहार है। आशा के कहते ही घर में सन्नाटा छा गया। दूसरी ओर पड़ोसी ने एक माह पूर्व से ही होली की तैयारी शुरू कर दी थी। शोरगुल की आवाज आते ही आशा अपनी बालकनी में देखने आई की आवाज कैसी है? पड़ोसी के वहां मित्र एवं रिश्तेदार होली का उत्सव मनाने आए। सभी ने धूम मचाई रंग जमाया बच्चों की शोरगुल की आवाज मन को आनंदित कर रही थी। घर में प्रेम और खुशी के रंग बिखरे हुए थे। हर रंग कुछ कह रहा था। यह सब नजारा आशा अपनी बालकनी से देख रही थी, "आशा के अंदर भी रंगो की तरंग दोड़ने लगी" . परिचय :- हिमानी भट्ट ब्रांड एंबेसडर स्वच्छता अभियान, इंदौर निवासी : इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ...
बुढ़ापा
लघुकथा

बुढ़ापा

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** वह हाँपता-काँपता-खाँसता झुककर दोहरी झुकी कमर को तनिक सीधा करने का असफल प्रयत्न करता हुआ बुरी तरह से,छटपटा रहा था । अकस्मात मृत्यु ने प्रत्यक्ष होकर कहा, हमारा मिलन तो अटल ही था, फिर तू क्यों भयभीत हो रहा है? अगर तू सोचता हैं, झुककर मेरी नजरों से बच जायगा तो यह तेरा भ्रम है। मैं तुझसे भयभीत नहीं हूँ मैं तो तेरा स्वागत करने को तैयार बैठा हूँ, बुढ़ापे ने बिलखकर जवाब दिया। मेरे झुकने का कारण भी तेरी, नजरों से बचना नहीं बल्कि मेरी कमर तो झुक रही है, संसार से लिये हुए अपार कर्ज और भार से। मुझे हर समय यह ध्यान रहता है कि संसार से जितना मैने लिया, उसका एकांश भी चुका नहीं पाया। इसलिए मेरी कमर कर्ज भार से, और गर्दन ग्लानि से झुकी रहती है। यह सुनकर मृत्यु ने भी अपनी गर्दन झुका ली.... . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इ...
नसीबो का नसीबा
लघुकथा

नसीबो का नसीबा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** लाला जी, थके हारे घर पहुंचे थे। क्या ....बना नसीबो की शादी का लड़के वालों ने हां कि नहीं। या इस बार भी जन्मपत्री नहीं मिली का बहाना कहकर मना कर दिया है। इससे पहले लाला जी को कितने ही रिश्ते मना कर चुके थे। जब भी रिश्ते की बात चलती तब सिर्फ एक ही बात निकलती कि आप इसी गांव के रहने वाले हो या पाकिस्तान से आए हो। आजादी के बाद कितने ही लोगों की जिंदगी इस एक शब्द पर थम गई थी कि आप यहां के रहने वाले हो या पाकिस्तान से आए हो। घर-बाहर तो छूटा ही, काम धंधा भी छूट गया। ऊपर से जिनकी बेटियां थी उसकी शादी करने के लिए कितने सवालों से गुजरना पड़ता था। कुछ यही हो रहा था। नसीबो के साथ ....जिस किसी रिश्ते की बात चल रही थी वही मना कर देता था कि पाकिस्तान से आए हैं वहां से आने वाली किसी भी लड़की को छोड़ा नहीं था, और यह ऐसी सोच थी जिसके लिए कोई भी...
होली और शर्त
लघुकथा

होली और शर्त

हिमानी भट्ट इंदौर म.प्र. ******************** होली के दिन सभी मित्र होली मिलन के लिए रमेश के घर गए। मित्रों ने सबसे पहले बुजुर्गों के चरणों में गुलाल लगाकर बड़ों का आशीर्वाद लेकर होली का प्रारंभ किया। अब मित्रों ने आपस में गुलाल लगाकर एक दूसरे को गले लगाया इतने में मां होली का स्वादिष्ट पकवान ले आई, क्या बात है हम लोग त्योहारों का इंतजार करते हैं, पकवान के लिए.... बात करते-करते रमेश के मित्र की निगाह सामने वाले बालकनी में पड़ी, वहां सुंदर लड़की खड़ी थी। सभी मित्र रमेश से शर्त लगाते हैं की यदि तुमने उस लड़की को होली खिला दी तो आज तेरे जन्मदिन की पार्टी हमारी तरफ से। रमेश बोलता है, "अरे क्या बात कर रहे हो तुम लोग, मोहल्ले में किसी से बात नहीं करती वह और गुस्से वाली लड़की है। मित्रों ने रमेश को उकसाया कि तू कुछ नहीं कर सकता। रमेश दौड़ता हुआ गया, रमेश की धड़कने तेज थी डर लग रहा था। वह...
प्रेम का अंतिम आभास
लघुकथा

प्रेम का अंतिम आभास

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** भोले और उसके ससुर जी का ३६ का आंकड़ा था। जबसे भोले की शादी हुई थी तब से ही उसकी सास ससुर से नहीं बनी। सास तो फिर भी मान जाती थी किंतु ससुर जी नहीं मानते थे। शायद वह मुंह के बहुत बड़बोले थे। और दिल के साफ भोले इस बात को कभी समझ नहीं पाया। किंतु कभी कबार उनकी अच्छी बातों से भोले को लगता था कि व्यक्ति तो वह अच्छे है। किंतु अपने बहु बेटों का सारा गुस्सा मुझ पर ही निकाल देते थे। कुछ दिन पहले एक शादी के दौरान भोले और ससुर जी का एक बहुत ही अच्छा रिश्ता बन गया पहली बार भोले ने उनके साथ कुछ खाया और अच्छा बोल बोले। पहली बार उन्होंने मुझसे कहा कि बेटा मेरे साथ एक फोटो खिंचवा लो। एक बड़बोले इंसान को गलत समझ लेना भोले कि बहुत बड़ी भूल थी। अभी कुछ दिन पहले ही भोले को पता पड़ा कि ससुर जी किसी प्राइवेट नर्सिंग होम में भर्ती हैं जहां डॉक्टरों ...
कोयल की कॅूक
लघुकथा

कोयल की कॅूक

डॉ. सुरेखा भारती *************** दीदी sss ......ओ दीदी ! आंगन में झाडू लगा रही मुन्नी, आवाज लगी रही थी। अब इसको क्या हो गया..... मैंने झल्लाते हुए अन्दर से ही बोला, क्या है? क्यो चिल्ला रही हो..? दीदी बाहर तो आओ sss ..... मैं बाहर आंगन में पहुंची, देखा मुन्नी दीवार के एक कौने मैं चुपचाप खड़ी है। ‘देखो...देखो कोयल कॅूक रही है.....’। उसे देखकर मैं ने भी सहसा कोयल की बोली सुनने का प्रयत्न किया। दूर कही कोयल बोल रही थी, कुछ पल के लिए मुझे भी अच्छा लगा। थोडी देर मुन्नी उसकी आवाज सुनती रही। कोयल की बोली बंद हो गई। उसने मेरी तरफ देखा और कहने लगी - दीदी, गाँव में हमारे आंगन में बड़ा सा आम का पेड़ था। इन दिनों कोयल उस पर बैठ कर कॅूकती थी, मैं भी उसके जैसी आवाज निकालकर उसे चिढ़ाती थी, फिर वह चूप हो जाती, फिर थोडी बाद कूँकती थी। अब शहर में आ गए हैं, अब कहाँ कोयल की कूक सनाई देती है। मेरा सारा दिन तो इस...