दया भावना
मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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कड़ाके की ठंड में लोग घरों में दुबके बैठे थे गली मोहल्ले में इक्का-दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे। एकाएक सड़क पर भजन गाने की आवाज सुन मेरे नव वर्ष के पोते ने खिड़की से झांक कर देखा उसे भजन गाने वाला एक भिकारी दिखाई दिया जिसके तन पर केवल एक फटा कंबल और कंधे पर एक झोला लटका दिख रहा था।
वह दुनिया से बेखबर अपने में मस्त भजन गाता चला जा रहा था ना किसी से आशा ना ही मन में कोई इच्छा थी। हम सब अपने सुबह के कामों में व्यस्त थे पोते ने उसे अपने घर के आंगन में बुलाया और बिठा कर दो क्या हुआ दादी के पास आकर बोला दादी दादी बाहर एक भिखारी बैठा है क्या मैं उसे अपना छोटा कंबल ओढ़ने के लिए दे दूं।
उसके पास फटा कंबल है थारी बोली तुम्हारा कमल बहुत छोटा है तो मेरा बड़ा कंबल उसे दे दो पोता ध्रुव मां से बोला मां उसे कुछ खाने को दोगी क्या...।
बेचारा ...