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गद्य

दया भावना
लघुकथा

दया भावना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कड़ाके की ठंड में लोग घरों में दुबके बैठे थे गली मोहल्ले में इक्का-दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे। एकाएक सड़क पर भजन गाने की आवाज सुन मेरे नव वर्ष के पोते ने खिड़की से झांक कर देखा उसे भजन गाने वाला एक भिकारी दिखाई दिया जिसके तन पर केवल एक फटा कंबल और कंधे पर एक झोला लटका दिख रहा था। वह दुनिया से बेखबर अपने में मस्त भजन गाता चला जा रहा था ना किसी से आशा ना ही मन में कोई इच्छा थी। हम सब अपने सुबह के कामों में व्यस्त थे पोते ने उसे अपने घर के आंगन में बुलाया और बिठा कर दो क्या हुआ दादी के पास आकर बोला दादी दादी बाहर एक भिखारी बैठा है क्या मैं उसे अपना छोटा कंबल ओढ़ने के लिए दे दूं। उसके पास फटा कंबल है थारी बोली तुम्हारा कमल बहुत छोटा है तो मेरा बड़ा कंबल उसे दे दो पोता ध्रुव मां से बोला मां उसे कुछ खाने को दोगी क्या...। बेचारा ...
नीरू की जिद
लघुकथा

नीरू की जिद

जनक कुमारी सिंह बाघेल शहडोल (मध्य प्रदेश) ******************** इस बार अर्धवार्षिक परीक्षा में नम्बर क्या कम आया कि नीरू पूरी तरह से जिद पर उतारू हो गई। कहने लगी कि मुझे तो दीदी वाला ही रूम चाहिए। दूसरे रूम में बाहर के शोर शराबे में पढ़ाई नहीं हो पाती। मुझे तो यही वाला रूम चाहिए। चारू प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रही है उसे किसी तरह का व्यवधान न हो इसलिए एकान्त कमरा दे दिया गया था। बार-बार समझाने के बाद भी जब नीरू नहीं मान रही थी तो नंदिता को अचानक उसकी और भी पुराने जिदें याद आने लगीं। सोचने लगी- इसे बार-बार हर बार दीदी की ही चीजें क्यों चाहिए? खीझ भरे मन में अनायास ही अतीत के पन्ने पलटने शुरू हो गए। जब अपने जन्म दिन पर उसने फ्राक के लिए जिद कर लिया था। बोलने लगी थी माँ मुझे भी अपने जन्म दिन में दीदी जैसी ही फ्राक चाहिए। नहीं बेटा! तुम्हारे लिए उससे भी अच्छी फ्राक आएगी। दीदी की ...
जो मुझे भा गई
लघुकथा

जो मुझे भा गई

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दो वर्ष पश्चात घर जा रहा हूँ। टेक्सी में बैठे-बैठे पत्रिका के पन्ने पलटने लगा। सौंदर्य प्रतियोगिता पर नज़र पड़ते ही मुझे बहन के ब्याह का नज़ारा याद आ गया। बहन की वह परी सी सहेली मानो आकाश से उतर कर आई हो। सितारों जड़ी झक श्वेत साड़ी व लम्बे लहराते बालों में बिखरी मोगरे की लड़िया। नाम मात्र के गहने कह रहे थे... मोहताज नहीं जेवर का जिसे खूबी ख़ुदा ने दी। उसका पूरी जिम्मेदारी से माँ का हाथ बटाना मैं आज तक नहीं भुला नहीं पाया। इसी बीच माँ पापा ने कई रिश्ते सुझाए। बहन से उस सुंदरी के बारे में कई बार पूछा। विदेश में रह रही बहन उसका पता नहीं लगा पाई। चाय की तलब लगने पर टेक्सी रुकवाई। रेस्तरां में लगा कि मोगरे की खुशबू फैल रही है। सामने टेबल पर श्वेत पौशाक में पीठ किए बैठी एक युवती बैठी है। हाँ, बस लम्बी चोटी ही लहराती दिखी। ज्यों ही वह पलटी म...
विश्वास
लघुकथा

विश्वास

सुधाकर मिश्र "सरस" किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) ******************** रूपल का कॉलेज में ग्रेजुएशन का अंतिम साल था। परीक्षा शुरू होने के पहले सभी सहेलियों ने अंतिम पार्टी रखी थी। ग्रेजुएशन के बाद क्या करना है, फिर कब और कहां मुलाकात होगी, यही वार्तालाप चल रही थी। सीमा बीच में बोल पड़ी...अरे रूपल जी ...रंजन जीजू आई मीन रंजन बाबू का क्या होगा.. हमें भी तो बताओ। रंजन कॉलेज का सबसे होनहार व अनुशासित लड़का था। वह रूपल की सादगी व सुन्दरता पर मरता था। जब पहली बार रूपल कॉलेज ज्वॉइन किया था तो रूपल के पिता महेश बाबू ने रूपल से बस इतना ही कहा था की, बेटा तुम्हारे साथ मेरी लाज भी कॉलेज जा रही है। मेरी लाज अब तुम्हारे हाथों में हैं, यह हमेशा महसूस करना। मुझे पूरा विश्वास है मेरी बेटी मेरा शीश नहीं झुकने देगी। रूपल ने रंजन के बारे में केवल अपनी मां को बताया था। महेश बाबू घर के आंगन में चा...
नजीर
लघुकथा

नजीर

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** चंद्रकांत पांडे, जिसे बबलू पांडे........"भैया जी" कहकर पुकारता था। टीवी के हर चैनल पर सब उसके खूंखार अपराधी हत्यारे होने का सबूत दे रहे थे। जबकि....बार-बार उसकी आंखों के सामने चंद्रकांत पांडे का चेहरा सामने आ रहा था जब उसने आखिरी बार उसे देखा था। उसके चेहरे और आंखों में इतनी मायूसियत थी। वह खूंखार अपराधी जिसे मीडिया आंतकवादी भगोड़े का नाम दे रही थी जिस पर दो लाख का इनाम पुलिस रख चुकी थी। उसकी जिंदगी का सच यह था जिसे हर पार्टी उसे अपने साथ मिलना चाहती थी क्योंकि वह उनके लिए वोट इकट्ठी करने का माध्यम है और हर पार्टी एक से एक लालच देकर उसे अपनी तरफ करना चाहती थी उसको अपने हाथ की कठपुतली बनाने के लिए एक पार्टी से दूसरी पार्टी नें कैसे मोहरा बनाकर आज एक खूंखार अपराधी घोषित कर दिया था। आज वह हार गया था। क्योंकि हर तरफ से ...
बटवारा
लघुकथा

बटवारा

ऋतु गुप्ता खुर्जा बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** घर भर में कोहराम मचा था, तारा जी सीढ़ी से गिर गई थी, सिर पर भारी चोट लगी थी, डाक्टर ने बताया कि शायद दिमाग की कोई नस फट गई थी, जो उन्हें यूं अचानक दुनिया को छोड़ अलविदा कहना पड़ा। यूं तो तारा जी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो चुकी थी, तीन बेटे थे, सभी की शादी हो चुकी थी और सभी अपने अपने परिवार में मस्त थे। लेकिन तारा जी का यूं अचानक जाना उनके पति राधेश्याम जी पर पहाड़ टूटने जैसा था, क्योंकि राधेश्याम जी थोड़े से अस्वस्थ रहते थे, और उन्हें हर पल तारा जी के साथ की जरूरत महसूस होती थी, असल में यही वह उम्र होती है, जिसमें हमें अपने जीवनसाथी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, और जीवन साथी की जैसे आदत सी हो जाती है, इसी समय पर आकर हम जीवनसाथी का सही मायनों में अर्थ समझ पाते हैं, और फिर पूरी ज़िंदगी तो जिम्मेदारियों में निकलती ही है, ...
योग्यता पर भरोसा
लघुकथा

योग्यता पर भरोसा

सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************  रोज की तरह दूर से आती मधुर संगीत की कर्णप्रिय ध्वनि आज माधवी को बिल्कुल नहीं भा रही थी ... पता नहीं लोग २४ घंटे क्यों संगीत सुनते रहते हैं?... उसके बेटे का चयन जो नहीं हुआ था-संगीत प्रतियोगिता में... योग्यता की कोई कद्र ही नहीं है... उसे चुन लिया जिसे संगीत की कोई समझ नहीं... बड़े बाप का बेटा जो ठहरा... एक कड़वाहट-सी उसके भीतर घुलकर उसके शरीर को कसैला बना रही थी... तभी महरी की आवाज ने उसे चौंका दिया- "बीबी जी हमार बचवा का एडमिसन बड़े सकूल में हो गया है ! वो मोहल्ला के सकूल वालों ने तो भरतीच नी किया था...पर मेरे को उसकी योग्यता पे भरोसा था..."कहकर अपने ‌काम में लग गई, लेकिन अनजाने ही माधवी को योग्यता पर भरोसा रखने का संदेश दे गई। अब माधवी का मन हल्का हो गया था। उसे अब वह संगीत की ध्वनि ‌पुनः मधुर लगने ‌‌लगी ...
आ गया है वो मेरी ज़िंदगी में
लघुकथा

आ गया है वो मेरी ज़िंदगी में

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** अपनी पचासवीं लघु कथा पुस्तक के विमोचन की ख़ुशी में मैं प्रकृति की गोद में अपना अकेलापन दूर करने के लिए राजस्थान से कश्मीर गई। सुबह की ठंडी-ठंडी हवाएँ मन को सहला रही थी व तन को रह-रह कर सुकून दे रही थी। हाथ में चाय का कप था। हल्की-हल्की बारिश की बूँदे भी थी जो बरस कर भी दिखाई नहीं दे रही थी। इतना मनोरम दृश्य किसी सूटकेस में भर करके मन सहेजकर रख लेना चाहता था। पलकें अकिंचन भाव से अनिमेष हो चुकी थी मानों पर्वत-शृंखलाएँ चिरनिद्रा में सो रही है बिलकुल शांत। इसी बीच एक कुत्ते के बच्चे की आवाज़ें आई। उसने मेरी मंत्रमुग्ध तंद्रा को भंग कर दिया था इसलिए मैं रौद्र भाव से उसकी ओर गई। मेरे आश्चर्य का ठिकाना तब नहीं रहा जब मैंने उसे एक छोटे से बालक के हाथ में देखा। दोनों में मासूमियत कूट-कूट कर भरी थी उतनी ही उनके चेहरे पर दरिद्रता भ...
अधिकार
लघुकथा

अधिकार

राकेश कुमार तगाला पानीपत (हरियाणा) ******************** गीता का रो-रो कर बुरा हाल था।पति को खो देने की पीड़ा ने उसे तोड़ कर रख दिया था। अभी शादी को कुछ ही साल हुए थे। दो छोटे-छोटे फूल से बच्चे थे। जो रोज पापा का इंतजार कर रहे थे। मम्मी, पापा कब आएंगे? उनके मासूम सवालों के जवाब उसके पास नहीं थे। देखते ही देखते साल गुजर गया था। पर उसकी आँखों के आँसू सूख नहीं रहे थे। वह बुरी तरह से टूट गई थी। उसे अपने बच्चों का भविष्य अन्धकार में लग रहा था। कहने को पति का भरा-पूरा परिवार था। जेठ, देवर सभी थे। पर भाई के मरने के बाद, उसे कोई भी सहारा देने को तैयार नहीं था। उन्हें उसकी चिंता नहीं थी। पूरा परिवार ज़ायदाद के पीछे था। उन्होंने उसका हिस्सा भी हड़प लिया था। उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगा कर, उसे घर से बाहर कर दिया था। वह अपनी माँ के घर पर ही निराशा में दिन तोड़ रही थी। माँ भी अपनी बढ़ती उम्र से परेशान ...
पिता
लघुकथा

पिता

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** एक पुरुष के दो बच्चे थे। वह पुरुष रोजाना अपने बच्चों के उठने से पहले काम पर चला जाता और शाम को बच्चों के सो जाने के बाद घर आता। बच्चों की मां उन बच्चों के पूरा दिन काम करती। उनके लिए खाना बनाती, स्कूल भेजती, उनके वस्त्र बदलवाती और उनको पढ़ाई करवा कर उन्हे सुला देती। बच्चों ने कभी अपने पिता को नहीं देखा था। बच्चों का बचपन बीता। बच्चे बढे होने लगे। एक दिन बच्चों ने अपनी मां से कहा कि मां हम दोनो ने आपको अपने साथ काम करते, समय बिताते देखा है। पिता जी को कभी भी नही देखा। ऐसे में तो उनके बिना भी हम बड़े हो सकते हैं। उनका हमारे जीवन में क्या कोई काम है? मां को उस दिन आश्चर्य हुआ और एहसास हुआ कि बच्चे तो अनजान है पिता के उनके जीवन में योगदान के। मां ने बच्चों को अपने पास बिठाया और समझाने लगी। कि तुम्हारे पिता अपना पूरा समय तुम्हारा जीव...
डोर पतंग की
लघुकथा

डोर पतंग की

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** चेतन गुस्से से भरा, नाश्ते को बिना मुंह से लगाए, लंच बॉक्स छोड़कर ऑफिस के लिए निकल गया। वीणा के दिल पर जैसे कोई हथौड़ा मार गया हो। ऐसा वाकया अक्सर ही होता था, जब चेतन उसके करे काम में कोई-न-कोई नुस्क निकाल, अपना दंभ साकार कर लेता था। वीणा को चेतन के जीवन में आए मात्र छह महीने हुए थे, पर शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो जब वह किसी न किसी बात पर न चिल्लाया हो। वीणा से अब उसका उग्र स्वभाव बर्दाश्त के बाहर हो गया था। अभी तक वह यही सोचकर चुप रही कि शायद चेतन का व्यवहार बदल जाएगा, पर ऐसा कुछ न होने पर उसका धैर्य जवाब देने लगा। अंततः वीणा ने तय कर लिया कि अपनी मां को हर दिन की एक-एक बात बताएगी। वह चेतन को छोड़ने तक का मन बना चुकी थी। मकर संक्रान्ति का पावन पर्व था। वीणा ने देखा कि चेतन हाथ में कई रंगीन पतंगें और चरखी लेकर सीधे छत पर चला ग...
रिटायरमेंट
लघुकथा

रिटायरमेंट

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** रिटायरमेंट के बाद खुद से सम्मुख होने का मौका मिला। जिंदगी बेफिक्री से उनके कंधे पर सर रख कर थकान मिटा रही थी... रिटायरमेंट के बाद मंडवारिया जी एक दम फ्री हो गए थे। बच्चों की शादियां कर दी थीं। बस एक सपना था कि रिटायरमेंट के बाद मिले पैसों से पत्नी को विदेश की सैर करवानी है। सो टिकट ऑनलाइन बुक करवाया। स्विट्ज़रलैंड में होटल बुक करवाया। बच्चों को पहले ही खबर कर दी थी। बच्चे खुश थे कि पापा अब तो अपनी जिंदगी मम्मी के साथ खुल कर जिएं। आखिर वो दिन भी आ गया। पहली बार हवाई जहाज में सफर करने का मौका मिला। नौकरी के दौरान जिम्मेदारी के बोझ ने कभी जिंदगी को खुल के जीने का मौका ही नहीं दिया। कभी होम लोन, कभी बच्चों की पढ़ाई तो कभी बच्चों की शादी की चिंता। पत्नी की दबी हुई आकांक्षाए मन में घुटती रहीं। कभी कोई शिकायत नहीं की। बस पति,...
हिंदी की वैश्विक चमक
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हिंदी की वैश्विक चमक

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक भाषा के रूप में हिंदी हमारी पहचान है हमारे, जीवन मूल्यों संस्कृति संस्कार, का संप्रेषक परिचायक है हिंदी विश्व की सहज सरल वैज्ञानिक, भाषा है हिंदी अधिक बोले जाने वाली ज्ञान प्राचीन सभ्यता आधुनिक प्रगति के बीच सेतु है। वंदेमातरम की शान है। हिंदी, देश का मान है, हिंदी संविधान का गौरव हिंदी है भारत की आत्म-चेतना हिंदी है। राष्ट्रीय भाषा भारत की पहचान हिंदी, आदर्षों की मिसाल है हमारी हिंदी, सूर और मीरा की तान भी हिंदी है। हमारे वक्ताओं की शक्ति है। फूलों के खुशबुओं-सी महक है हमारी हिंदी और संपूर्ण देश में छाई है।हिंदी हमारे साहित्य पुराणों की आत्मा में बसी है। हिंदी देव नागरिक लिपि भी हिंदी है। मां की बोली से प्रथम संवेदना में हिंदी ही है परंन्तु अंग्रेजी पूरे देश में छाई है, हिंदी देश की राष्ट भाषा होने के पश्चात हर जगह अग्रेजी का वर...
विश्व हिंदी दिवस
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विश्व हिंदी दिवस

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  हिंदी की लोकप्रियता को लेकर समूचे विश्व में १० जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। हिंदी प्रेमियों के लिए इस दिवस का विशेष महत्व है। २०१८ की जानकारी के अनुसार विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली तीसरी भाषा हिंदी लगभग ७० करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली जाती है। जबकि १.१२ अरब के साथ अग्रेंजी शीर्ष पर है। चीनी भाषा १.१० अरब, स्पेनिश भाषा ६१.२९ करोड़, अरबी भाषा ४२.२ करोड़ लोगों द्वारा बोले जाने के साथ क्रमशः दूसरे, चौथे और पाँचवें। स्थान पर है। २०१७ में प्रकाशित पुस्तक 'एथनोलाग' के अनुसार दुनिया भर में २८ ऐसी भाषाएँ है, जिन्हें ५ करोड़ से अधिक लोग बोलते हैं। यह पुस्तक दुनिया में मौजूद भाषाओं की जानकारी पर प्रकाशित हुई थी। भारत को बहुभाषाओं का धनी देश मानने के बावजूद भारत की मूल भाषा हिंदी ही मानी जाती है। ...
पप्पू पढ़ लें रे
कहानी

पप्पू पढ़ लें रे

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** नब्बे के दशक में एक गॉंंव में विवाहित जोडा रहता था। दोनों पति-पत्नी बड़े परेशान थे क्योंकि उनके सात लड़कियॉं थी परन्तु कोई भी लडका नहीं था।वे हर समय पुत्र कामना में लीन रहते थे। उन्हें हमेशा यही डर लगा रहता था कि यदि उनके कोई पुत्र नहीं हुआ तो उनका वंश समाप्त हो जाएगा। कुछ समय पश्चात उनके यहॉं एक पुत्र का जन्म हुआ। जिसका नाम उन्होंने सज्जन सिंह रखा। वह धीरे-धीरे पॉंच साल का हो गया। परन्तु वह बहुत ही उद्डं था। पॉंच साल की उम्र से ही उसने औगार लाना शुरू कर दिया। उसके माता-पिता पूरे दिन उसकी औगारे सुनते। किसी ने कहा, इसे पढ़ने बैठा दो, पढाई और अध्यापकों के प्रभाव से सुधर जाएगा। उसका प्रवेश पहली कक्षा में करा दिया गया। जब सज्जन सिंह पहले दिन स्कूल गया तो पहले ही दिन उसने सारी कक्षा के बच्चों की किताबें फाड़ डाली। जब अध्यापिका को यह ...
वक्त का आईना
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वक्त का आईना

ऋतु गुप्ता खुर्जा बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** शारदा जी के पास उनके प्रभाकर भैया का फोन आया था कि तेरी सरोज भाभी सीढ़ियों से गिर गई है, रीड की हड्डी में गंभीर चोट आई है, ना जाने अब बिस्तर से उठ भी पाएगी या नहीं, बच्चे भी पास में नहीं रहते, पता नहीं अब किस तरह बुढ़ापा कटेगा। इतना सुनकर एक बार को तो शारदा जी का मन फिर से अतित की उन गलियों में चला गया, जब उनके भाई प्रभाकर जी का विवाह सरोज भाभी के साथ हुआ था। सरोज भाभी शहर की पढ़ी लिखी थी, और उस समय में भी स्वतंत्र विचारों की थी। आजादी के नाम पर अपनी मनमानी करने वाली थी। वह अपनी सुंदरता के आगे किसी को कुछ ना समझती थी, और बेचारी अम्मा ठहरी सीधे सरल स्वभाव की बस अपने लल्ला (प्रभाकर जी) का ही भला चाहती थी, सोचती मैं ही चुप रहूं तो क्या बिगड़े, ताकि उनके बेटे की गृहस्थी में कोई अलगाव की अंगिठि ना सुलग जाये, और सोचती कि अभी बहू...
हार और जीत
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हार और जीत

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** हारना किसे अच्छा लगता है और जीतना किसे बुरा लगता है किसी को नहीं | तो जीतकर दिखाना यदि कोई वंश हन्ता है उससे | यदि किसी ने तुमसे तुम्हारा स्वजन छीन लिया है तो तुम उसके पराक्रम छीनने का साहस न करके अपनों से ही उलझने में स्वयं को महाक्रमी समझते हैं, तो क्या कहा जा सकता है ? आपको प्रगतिशील तब माना जाता जब अपनी प्रगति के आगे हन्ता को कहीं टिकने नहीं देते | उसी के संबंधियों के आगे नतमस्तक होकर स्वजनों के पराजय की कामना करने का तात्पर्य तो सायद स्वजनहन्ता की पंक्ति में ही खड़ा हुआ माना जाता है, इसमें कितनी बुद्धिमत्ता कही जा सकती है | जीवन में रूखापन तुलनाओं से आता है, और बिना तुलना मजा भी कहाँ आता है ? जरूरी है तुलना करना पर उस तुलना की वजह से हीन भावना या अहंकार नहीं आना चाहिए | प्रेणादायक तुलना करना बहुत अच्छी बात है, परन्तु किसी ...
राष्ट्र के पुनरुत्थान में साहित्य की भूमिका
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राष्ट्र के पुनरुत्थान में साहित्य की भूमिका

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राष्ट्र का तात्पर्य मात्र देश नहीं, देश के साथ उसकी संस्कृति भी है। इसमें वन, पहाड़, नदियाँ व  सामाजिक रीतिरिवाज भी समाविष्ट हैं। राष्ट्र एक प्रवाहमयी इकाई है। साहित्यकार जो अनुभव करता, वही लिखता है। साहित्य, समाज का दर्पण ही है।  आदिकाल, भक्तिकाल व रीतिकाल तक राज्याश्रय, अध्यात्म व श्रृंगार के संदर्भ में लिखा गया। आधुनिककाल में राष्ट्रप्रेम व समाजसुधार की स्वस्थ भावनाओं द्वारा साहित्य, सामान्यजन से जोड़ा जाने लगा। गद्यविधा भारतेंदु युग  इस नवजागरण युग में सदियों से सोए भारत ने अँगड़ाई ली। राष्ट्रवादी-भाव, जनवादी- विचारधारा, संस्कृति- गौरवगान, स्वराज्य- भावना पर भी लेखनी चलने लगी। भारदेन्दु अंग्रेजों की फूट नीति में... "सत्रु सत्रु लड़वाई दूर रहि लखिय तमासा" "उठो हे भारत, हुआ प्रभात" नारी दशा पर  " स्त्रीगण को विद्या देवें " ...
लक्ष्य तो होंगे
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लक्ष्य तो होंगे

आस्था साहू अशोक नगर (मध्य प्रदेश) ******************** लक्ष्य तो होंगे यदि है तो मार्ग तो होंगे यदि मार्ग है तो बाधाएं तो आएगी और इसी पर निर्धारित हैं कि हम जीवन में सफल होंगे या असफल, यश के भागी होंगे या तिरस्कार के। मान लीजिये, आप को एक कार्य करना हैं आपको पर्वत पर चड़ना है, अब मार्ग की फिसलन आपको को कितनी बार गिराएगी। चट्टानें आपको कई बार चोट देंगी, ऐसे में क्या करेंगे। सामान्य व्यक्ति चुनता हैं- प्रतिकार उस पर्वत को ही नष्ट कर देने का विचार करता है उसकी नींव को ही खोद देने का विचार करता है, किन्तु पर्वत को तो कोई नष्ट ना कर पाए तो, असफलता की साथ-साथ अपयश का भागी बन जाता है। दूसरा मार्ग है- परिवर्तन यदि आप उस पर्वत को खोदने के स्थान पर उस पर सीढियाँ बना दे, तो आप भी पर्वत पर चढ़ सकते हैं कोई और भी उस पर्वत पर चड सकता है आने वाली पीढी भी उस पर्वत पर चढ़ सकती हैं और...
दोस्ती की मिसाल
लघुकथा

दोस्ती की मिसाल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** दिनेश के पिता राजीव पिछले कई दिनों से बेटे को कुछ उदास देख रहे थे। आखिर आज पूछ ही लिया। क्या बात है बेटा, तबियत ठीक नहीं है क्या? नहीं पापा। आपको बताया था कि पंकज के एक्सीडेंट के कारण उसकी बहन सोनी की शादी रुक गई। मगर बेटा इसमें हम क्या कर सकते हैं? यही तो मैं सोच नहीं पा रहा हूँ पापा! सोनी के सामने जाता हूँ तो जैसी उसकी राखियां उलाहना देती हैं कि तू कैसा भाई है, तेरा दोस्त बिस्तर में है और तू......। दिनेश रो पड़ा। देखो बेटा। बात गंभीर है। अच्छा होता तुम मुझे ये बात और पहले बताते तो.... मगर अब तुम तीनों को परेशान होने की जरुरत नहीं है। सोनी की शादी मैं कराऊंगा, शादी उसी लगन में ही होगी। तुम मुझे पंकज के घर ले चलो। आज ही हम सोनी की होने वाली ससुराल चलेंगे और बात करेंगे। साथ उन दोनों को यहीं ले आयेंगे,...
मित्रता
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मित्रता

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** आत्मीयता के परस्पर अंतर्वैयक्तिक बंधन से बंधी हुई मित्रता की अवधारणा उसके स्वरूप के पक्ष एवं सिद्धांतों का प्रतिपादन मित्रता को लेकर किया गया है। संसार के मुक्त अध्ययनों व विवेचनों में देखा गया है कि समीपत: आंतरिक संबंध रखने वाले व्यक्ति अधिक प्रसन्न रहते हैं। हिंदी भाषा के प्रसिद्ध आलोचक रामचंद्र शुक्ल मित्रों के चुनाव को सचेत कर्म बताते हुए लिखते हैं कि:- "हमें ऐसे ही मित्रों की खोज में रहना चाहिए जिनमें हम से अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला उसी तरह पकड़ना चाहिए जिस तरह सुग्रीव ने राम का पल्ला पकड़ा था। मित्र हों तो प्रतिष्ठित और शुद्ध हृदय के हों, मृदुल और पुरुषार्थी हों, शिष्ट और सत्य- निष्ठ, जिसमें हम अपने को उनके भरोसे पर छोड़ सकें, और यह विश्वास कर सकें कि उनसे किसी प्रकार का धोखा न होगा। सच्ची मित्रता का ऐसा एक जीवंत उ...
हमर गांव सुघ्घर गांव
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हमर गांव सुघ्घर गांव

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** जिसकी गोद में मेरा बीता है बचपन, जिसकी सेवा के लिए अर्पण है मेरा तन-मन-धन। जिसके नीर का हर एक बूंद अमृत और अन्न का हर एक कण छप्पन भोग है मेरे लिए वही मेरा बैकुंठ और वही देवलोक है। जिसका हर एक चौंक मेरा चार धाम है, मुझे गर्व है कि मेरा जन्म भूमि पावन रमतरा ग्राम है स्वच्छ , सुगंधीत व ताजी हवा गांव की ओर अनायास ही खींच लाती है। ग्राम वासियों का आपसी प्रेम और भाईचारा की भावना की तो बात ही निराली है। जिस प्रकार फूल बगीचे की शोभा पहले है और डालियों की शोभा बाद में है ठीक उसी प्रकार यहां के निवासी जाति, धर्म और ऊंच- नीच की नहीं बल्कि इंसानियत की शोभा पहले है। तीन सौ परिवारों के १६५० लोगों को अपनी गोद में आश्रय दिया हुआ हमारा गांव यहां आजीविका का मुख्य साधन कृषि है, और कुल जनसंख्या के आधे से अधिक लोग कृषि कार्य पर निर्...
गुरुनानक देव
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गुरुनानक देव

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दुनिया के हर समाज में पथ प्रदर्शक के रूप में गुरु का स्थान श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण होता है। वह दिव्य ज्ञान दाता होता है। गुरू नानक देव सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले ऐसे गुरु थे जिनकी शिक्षाऐं धर्म विशेष ही नहीं, पूरी मानव जाति को नया प्रकाश दिखाती है। इसलिए उनके जन्मदिवस को प्रकाश पर्व के रुप में मनाया जाता है। ज्ञान से झोली भरने आये गुरु से सिख समाज "वाहे गुरुजी का खालसा वाहे गुरु जी की फतेह" कहते प्रेम से ज्ञान की समझ लेकर झोली भरते हैं। १५ वी सदी में भारत के पंजाब क्षेत्र में सिख धर्म का आगाज हुआ। इसकी धार्मिक परम्पराओं को गुरु गोविंद सिंह जी ने ३० मार्च १६९९ के दिन अंतिम रूप दिया। विभिन्न जातियों के लोगों ने सिख धर्म की दीक्षा लेकर खालसा धर्म सजाया था। गुरु नानक देव ने समाज में समरसता के लिए प्रयास किए। उन्होंने शोषण, ज़...
बदलता वक्त
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बदलता वक्त

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ********************  बदलाव प्रकृति का शाश्वत नियम है, जिसके परिणाम सकारात्मक/नकारात्मक होते ही हैं। सदियों सदियों से बदलाव होते आ रहे हैं। जीवन के हर हिस्से में अनवरत हो रहे बदलाव का फर्क भी दिखता है। संसार भर में प्राकृतिक, सामाजिक, आर्थिक, भौगौलिक, राजनैतिक, तकनीक, रहन-सहन, विचार, व्यवहार, धरातलीय, आकाशीय, यातायात, संचार, साहित्य, कला, संस्कृति, परंपराएं आदि...आदि के साथ पारिवारिक और निजी तौर पर भी उसका असर साफ देखा, महसूस किया जाता/जा रहा है।कोई भी बदलाव सबको समभाव से प्रभावित करता हो, यह भी आवश्यक नहीं है। मगर हर किसी का प्रभावित होना अपरिहार्य है। यदि आप अपने और अपने पिता जी, बाबा जी के समय पर ही दृष्टि डालें, तो आप खुद बखुद महसूस करेंगे इस बदलाव और उसके प्रभावों को भी। इसी तरह देश दुनिया, समाज का हर हिस्सा किसी न किसी...
बेमौत मरती नदियां, त्रास सहेंगी सदियां।
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बेमौत मरती नदियां, त्रास सहेंगी सदियां।

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** छठ पर्व पर एक भयावह तस्वीर यमुना नदी दिल्ली की सामने आयी, जिसमें सफेद झाग से स्नान वा अर्क देते श्रद्धालु दिखे। यह बात तो जगजाहिर है कि समूचे विश्व में हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जहां नदियों को माँ की उपमा दी गई है, पवित्र माना गया है। लेकिन वर्तमान समय में जितनी दुर्दशा हिन्दुस्तान में नदियों की है शायद ही किसी अन्य राष्ट्र में हो। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अलग-अलग राज्यों की निगरानी एजेंसियों के हालिया विश्लेषण ने इस बात की पुष्टि की है कि हमारे महत्वपूर्ण सतही जल स्त्रोतों का लगभग ९२ प्रतिशत हिस्सा अब इस्तेमाल करने लायक नही बचा है। वहीं रिपोर्ट में देश की अधिकतम नदियों में प्रदूषण की मुख्य वजह कारखानों का अपशिष्ट गंदा जल, घरेलू सीवरेज, सफाई की कमी व अपार्याप्त सुविधाएं, खराब सेप्टेज प्रबंधन तथा साफ-सफाई के...