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कविता

दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए
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दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए

बाल कृष्ण मिश्रा रोहिणी (दिल्ली) ******************** बीते लम्हों का सूनापन तेरी यादों का महकता चंदन आंखें में थमी तेरी परछाई, रोशनी बनकर बूंदों में घुल जाए। दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए। कहां मुमकिन है मोहब्बत को लफ्ज़ों में बयां कर पाना। आसान नहीं भुला, यादें सुकून की नींद में सो जाना। ज़िस्म से रूह तलक, बस सुकून छा जाए। दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए। जीवन के पावन ‘निर्झर’ को, तुम यूँ ही बह जाने दो। एक पल, बस एक पल, नीले अँधेरे में गुम हो जाने दो। तारों की चादर ओढ़, चाँद की रोशनी में खो जाऊं। तेरी मोहब्बत की खुशबू में, खुद को फिर से पा जाऊं। ज़िस्म से रूह तलक, बस सुकून छा जाए। दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाए। तेरे बिना सारा जहाँ, सूना सा लगता है, जैसे एक सिसकी.… जैसे एक सिसकी। ये कैसा अधूरापन? ये कैसा सूनापन? शायद यही है इश्क़...
कैसा वो दिन था
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कैसा वो दिन था

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** कैसा वो दिन था, प्रारम्भ का अंत था, प्रचंड पराक्रम था, कर्म अखंड था। सनातन की रक्षा हेतु चढ़ा वो धर्म की सूली पर प्राण दिए अपने, स्वाभिमानी बलिदानी था! ना स्वयं की चिंता ना घर-बार की खबर कोई, दृढ़ संकल्प लिए गा रहा पवित्र राम नाम था। नमन है, प्रणाम है, कोटि कोटि वंदन है युवक था, बालक था, बुजुर्ग भी पर भगवा था। शौर्य- वीरता, पराक्रम का अद्भुत वो पल था, ना भुला सके इतिहास कभी, वो ज्वलंत क्षण था। ६ दिसंबर १९९२ का दिन था धर्म के दाग को सेवकों ने स्वयं के रक्त से धोया था। नमन तुम्हें हे बालक यशवर्धन तू यज्ञ था, कितनों की आहुतियों से खड़ा हुआ ये आज का मंदिर है। अवध था, अवध है, जय श्री राम का ब्रम्हांड में जय घोष था। भारत के लाल थे कैसा वो जोश था। अमर हुए, इतिहास ब...
न जाने क्या बदला है
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न जाने क्या बदला है

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** वो बदल गये समझ नहीं आया। न जाने क्या बदला है। ******** वक्त के साथ हर चीज बदलती है। पर तुम न बदल जाना वक्त के साथ। ******** कली बदलकर फूल बनती है। बच्चा युवा बन जाता है। ******* बदलना प्रगति की निशानी है। जिंदगी के आगे बढ़ने की कहानी है। ******** मौसम भी बदलता है ख्याल भी बदलते है। चुनाव जीतने के बाद नेता भी बदलता है। ******** बहुत दुख होता है जब अपना कोई बदल जाता है। हमें छोड़कर किसी दूसरे की बाहों में समा जाता है। ********* केवल वक्त को बदलने दीजिए। अपना स्वभाव और संस्कार मत बदलिए। ******** कोई दल बदलता है कोई शहर बदलता है। होता हैं जिसमें फायदा आदमी वह चीज बदलता है। ******** बदलो जरूर बदलो मगर इतना मत बदलो। कि तुमसे बदला लेने की इच्छा हो। ********* परिचय : डॉ. प्रत...
बुरा इंसान
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बुरा इंसान

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** हां मैं बुरा हूं क्योंकि मैं चाहता हूं कि तुम हमेशा खुश रहो। हां मैं बुरा हूं क्योंकि मैं चाहता हूं कि तुम बुरे लोगों से सदा दूर रहो। हां मैं बुरा हूं क्योंकि मैं चाहता हूं कि तुम सदा मुस्कुराते रहो। हां मैं बुरा हूं क्योंकि मैं चाहता हूं कि तुम्हारे जीवन में दुख न आए। हां मैं बुरा हूं क्योंकि मैं चाहता हूं कि तुम मेरे बाद भी खुश रहो। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।  ...
साक्षरता का दीप जलाइए
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साक्षरता का दीप जलाइए

डॉ. राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राजस्थान) ******************** साक्षरता का दीप घर-घर जलाइए अनपढ़ भाई बहनों को पढ़ाइये शिक्षा का उजाला हर झोंपड़ी में हो आप पढ़े लिखे हो अपना फर्ज निभाइए केवल हस्ताक्षर करना ही साक्षर नहीं डिजिटल साक्षरता वित्तीय साक्षरता जीवन मूल्यों की शिक्षा भी अवश्य दीजिए अपने गली मोहल्लों में सबको साक्षर कीजिए बरसों से जो बैठे अनपढ़ अपने घरों में उन असाक्षरों को चिन्हित कर पढ़ाइये एक व्यक्ति दस को साखर करने का काम करे आओ यह पुनीत संकल्प कर आगे बढिए शिक्षा का उजाला अब घर-घर होना चाहिए डिजिटल दुनिया में डिजिटल ज्ञान होना चाहिए मिटे अज्ञान का तिमिर सारा ज्ञान का उजाला फैले हर नागरिक हो पढ़ा लिखा साक्षरता का दीप जले उल्लास ऐप जीवन को रोशन करने आ गई है उल्लास ऐप पर रजिस्ट्रेशन अवश्य करवा लें शिक्षित हो देश विकास में हाथ जरूर बंटाइये ...
डाम
आंचलिक बोली, कविता

डाम

सौ. निशा बुधे झा "निशामन" जयपुर (राजस्थान) ******************** (राजस्थानी बोली) बचपन मै म्हे खेल खेलता रह्या पछाड़ी, देता डाम। पिदतां पिदतां होठ सूखता नरच्यूं न करता आराम। मायड़ कहती खाणो खा ले देख ऊपरां ढळगी शाम। दोस्त बोलता कोनी आसी बिना दियां यो अपणो डाम। आ जातो जद नयो खिलाड़ी म्हारो पिण्ड छुड़ाता राम। सगळा बींकै लूम'र कहता नयी छै घोड़ी नयो नयो डाम। परिचय :- सौ. निशा बुधे झा "निशामन" पति : श्री अमन झा पिता : श्री मधुकर दी बुधे जन्म स्थान : इंदौर जन्म तिथि : १३ मार्च १९७७ निवासी : जयपुर (राजस्थान) शिक्षा : बी. ए. इंदौर/बी. जे. मास कम्यूनिकेशन, भोपाल व्यवसाय : एनलाइन सेलर असेंबली /फ़िलिप कार्ड /अन्य प्रकाशित पुस्तक : स्वयं की मराठी संकलन लघुकथा (मधुआशा 2024) एवं विभिन्न पटल पर पुरस्कार एवं समाचारपत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित स्वरचित कविता/कहा...
इत्तेफाक
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इत्तेफाक

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आज हमारा समाज जिस जगह खड़ा है मैं नहीं समझता कि यह इत्तेफाक है, लाखों करोड़ों जुल्म ज्यादतियां सह कर मुस्कुराने में कोई तो बात है, शांत स्वभाव में हरदम रहना, लेकिन अत्याचार को नहीं कभी सहना, लेकर शांत पड़े रहे दिल में ज्वालामुखी की धधक, जब चाहे प्रतिक्रिया दे दे नहीं ऐसी सनक, भविष्य की स्वाभाविक चिंताएं लेकर, करते हर काम अपनों की बलाएं लेकर, अच्छे कामों की सराहना भी की उज्जवल भविष्य की दुआएं देकर, खौलते खून की उबाल दिखाये हैं शस्त्र से लैस भीमा कोरेगांव में, जब तक अत्याचारियों को समूल नष्ट न कर दिए सुस्ताये नहीं किसी पेड़ की छांव में, हमने लड़े और जीते भी कई युद्ध, मगर हमने जग को दिये भी हैं दैदीप्यमान बुद्ध, अस्पृश्यता की बात कर बैठाया गया समतायुक्त शिक्षालय से निश दिन बाहर, भावना...
कठिन डगर
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कठिन डगर

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन की यह राह कठिन है, जीवन की यह डगर कठिन है, कितनी उलझन कितना भार कितनी चिंता कितना काम। हर उम्र के पड़ाव में बढ़ता जाता है यह भार, मानसिक शारीरिक व्यापारिक सांसारिक, उलझन में फसता जाता इंसान। चिंतन कम चिंता ज्यादा, भक्ति कम बदलाव ज्यादा, स्मरण कम उलझन ज्यादा, दर्शन कम प्रदर्शन ज्यादा। होड़ की इस दौड़ में घानी का सा बेल जुत गया प्यारा, जीवन के इस चक्र में घूमता-घूमता रह गया न्यारा, आओ इस उलझन को हम दूर करें। चिंतन और मनन से, पठन और पाठन से, ज्ञान ध्यान योग और विद्या से, संतो महंतों की वाणी से , दान और पुण्य से, तीर्थो में भ्रमण से, आदर और सत्कार से, सेवा और पूजा से, प्रेम और विश्वास से , इस काया को कंचन करें मेल और मिला से। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय प...
सौदागर
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सौदागर

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** ऐ सौदागर, मतलबपरस्त इस दुनिया में किसी को किसी से प्यार नहीं है। लिए बैठा है कब से मुनाफाखोर बाजार में, दर्द कोई व्यापार नहीं है। होते है सौदे जज्बातों के यहां हर पल, गम का कोई खरीदार नहीं है। बिन पूंजी लाभ की चाहत, स्वर्ग चाहिए सबको मरने को कोई तैयार नहीं है। बिकते है चांद और तारे जमीन पर, आसमान का कोई जमींदार नहीं है। होते है सौदे सूर्यकिरण के, खाली जेब हो जिनकी वो इसका हकदार नहीं है। दाम लगा है खुशियों का भी, न हो भुगतान तो कोई दुख में भागीदार नहीं है। सपनो के बाजार सजे है हर पल, यहां झूठ हैं बिकते जो इनके पहरेदार नहीं हैं। भूख बिके दर्द बिके देह के भी कर जाते सौदे, इज्जत को समझे ऐसे किरदार नहीं है। बिना स्वार्थ न दान भी होता, भक्ति भाव के ऐसे दिलदार नहीं है। खुशियों में सब संग ही होते, दुख में...
रोम-रोम में प्रीत रमी जब
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रोम-रोम में प्रीत रमी जब

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** रोम-रोम में प्रीत रमी जब शब्दों में उतर छंद बन गई बिखरी जो अँधेरों में हंसी तो मोहक सा वो गीत बन गई अलकों से छलकी जब बूँदे बना मीठा मीसरा ग़ज़ल का नेह धार बही मृगनयनन तो आधार बन गई नज़्मों का गुलज़ार हुये साँसों के स्पंदन बिखर गये मुक्तक सपनों के महका जो चंदन बदन दमकता ढेर लग गया दहकते दोहों का पायल की रूनझुन से निकली बन कर झंकृत सी कुडंलियां वाणी से बहे सरिता शब्दों की खिली माँ शारदे की मनकलियां मन मर्ज़ी से लहके बहके कलम मदहोश चली हिरणी की चाल गीत, कवित्त, छंद मधुर मीत के मन करे फक्कड़ शर्म से लाल परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़” निवासी : आनंद विहार, दिल्ली विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, प...
नारी शक्ति
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नारी शक्ति

बाल कृष्ण मिश्रा रोहिणी (दिल्ली) ******************** नारी तू शक्ति है, श्रद्धा सुमन भक्ति है तू गौरी, तू लक्ष्मी, तू सरस्वती है।। तू करुणा है, तू ममता है, तू जननी है, तू माया है तू शक्तिस्वरुपिणी दुर्गा, सत्यस्वरुपिणी राधा है।। तू भाव है, तू भावना है, तू लज्जा है, तू सज्जा है तू नंदिनी, तू कामिनी, तू सद्गुण वैभव शालिनी है।। तू इत्र है, तू मित्र है, तू चित्र है, तू चरित्र है तू दृष्टि, तू चेतना, तू सृष्टि, तू बंदना है।। मीरा की भक्ति तुझमें, मां अहिल्या का धैर्य पद्मावती सी साहस तुम में, लक्ष्मीबाई का शौर्य।। तेरे ज्ञान से है जीवन तेरे कर्मो से है पहचान ऋृणी रहेगी ये धरती तू है हाड़ी रानी का बलिदान।। परिचय :- बाल कृष्ण मिश्रा निवासी : रोहिणी, (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।...
बरगद का पेड़
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बरगद का पेड़

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** वो पुराना बरगद का पेड़, सैंकडों वर्षों से खड़ा है अटल। आंधी-तूफानो से लड़ता, पर जरा भी हुआ नहीं विरल।। गाँव के मुखिया सा है इसका वर्चस्व, चौपाल पर खड़ा है सीना तान के। सबके सुख दुःख की कहानी सुनता, पर न्याय करता है सब जान के।। भरी दुपहरी जेठ की या हो सावन मास, पशु-पक्षी हो या हो बुढे-जवान। अपनी तलहटी में पनाह देता है सबको, ये पुराना बरगद का पेड़ कितना महान।। हजारों कहानियों का गवाह है ये, समाई है इसमें हमारी विरासत। राष्ट्रीय वृक्ष का दर्जा है इसको, यही है हमारे संस्कारों की वसीयत।। परिचय : रतन खंगारोत निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।...
महाकाल की नगरी प्यारी
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महाकाल की नगरी प्यारी

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** महाकाल की नगरी प्यारी, तीनों लोकों से है न्यारी। यहां बसते हे कालों के काल, वह तो है बस महाकाल। सप्तपुरी में उज्जैनी नगरी, शिप्रा निर्मल पावन बहती, पापो का करती नाश। यहाँ ज्योतिर्लिंग महाकाल। वह तो है कालों के काल, दुष्टो का करते नाश। यह नगरी विक्रमादित्य की नगरी, राजा महाराजा न्याय प्रिय की है यहां कृष्ण सुदामा पढ़ने आए, सखा प्रेम की देते मिसाल। साधु सन्यासी बसे ओघड़ी, भक्तों का लगे डेरा द्वार। १२ वर्ष में सिहस्थ है लगता, अमृत बरसे शिप्रा के घाट। तपोभूमि तांत्रिक की भूमि, त्यागी और योगी की भूमि, ओघडी़ और महंतों की भूमि,। कवियों और दार्शनिकों की भूमि, नवरत्नों की देखो खान, उज्जैन नगरी पावन धाम। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ...
चलो बताओ
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चलो बताओ

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** किसी के अथाह संघर्षों से मिला हुआ हर चीज खा रहे हो,खुले आम चिल्ला रहे हो, चलो बताओ उस महामानव को कितना वापस देते जा रहे हो, जब समाज को वापस करने वाला धन कहीं और देकर आते हो, अपने आप को दिखावे में ले जाते हो, बनाकर बैठे रहते हो दस लोगों का संगठन, लालच से भरा हुआ आदमी कभी कर लिया करो अपने अंतस का मंथन, जीने की ललक नहीं जा रही दूसरों के छिलकों पर, अपना ही फसल जा रहे हो कुतर, संख्या ज्यादा होने से कुछ नहीं होता, कोई पत्थरों पर फसल कभी नहीं बोता, चंद संख्या वालों का हुजूम एक मजबूत दबाव गुट बना सकता है, अपनी समूह की चाही गयी लक्षित सोच का सकारात्मक परिणाम ला सकता है, सोचो जरा कि हम क्या कर रहे हैं? केवल गुब्बारों में हवा भर रहे हैं? हमें ये समझना होगा कि गुब्बारे उड़ाने से कोई समाज न ऊपर उड़ेगा न ऊपर...
हाले बया खुद से खुद की जंग
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हाले बया खुद से खुद की जंग

पुष्पा खंगारोत जयपुर (राजस्थान) ******************** अब डर नहीं लगता मौत से, मैंने जिन्दगी को बहुत करीब से देखा है। के डर नही लगता किसी को खोने का, मैंने खुद को करीब से खोते हुए देखा है।। के बिखरी हूँ टूटी हूँ, खुद को बहुत समेटा है। के अब चाहत ही खत्म हो गई खुद से खुद की, मैंने खुद को खोते हुए देखा है।। के लुटे हुए मंदिरों की सूनी दहलीज देखी है, देखा है बिखरना मजारो का, सूनी मांग देखी है।। क्या कहूं अब किसी बात का खोफ मुझे नही सताता, हर रोज बिगडती हूँ , पर अब मुझे खुद का हाल बताना रास नही आता, के नही लगता अब इस दुनिया में कोई अपना सा मुझे, क्यों के इस अपनेपन को मैंने बेगानों के रूप में देखा है।। के अब डर नही लगता मौत से, मैंने जिन्दगी को करीब से जाते देखा है।। परिचय : पुष्पा खंगारोत निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
परंपरा का पक्ष
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परंपरा का पक्ष

सूरज सिंह राजपूत जमशेदपुर, झारखंड ******************** हाँ, मैं परंपरा हूँ। वही परंपरा, जिससे तुम कभी प्रश्न करते हो, कभी संदेह की दृष्टि से देखते हो, कभी मुझे अतीत का बोझ समझकर अपने कंधों से उतार फेंक देना चाहते हो। परंतु क्या तुमने कभी रुककर यह सोचा है कि मेरा अस्तित्व तुम्हें क्यों अखरता है? क्या सचमुच मैं उतनी रूढ़, उतनी संकीर्ण हूँ, जितना तुम्हारी आधुनिक दृष्टि मुझे मान लेती है? आओ, मेरे युवा, मेरे जागरूक, विचारशील और तेजस्वी युवा आज मैं स्वयं अपना परिचय देती हूँ। मैं परंपरा हूँ पर मैं अतीत की जंजीर नहीं तुम मुझे अक्सर बीते समय की निशानी समझते हो, पर क्या तुम जानते हो कि मैं वह चेतना हूँ जो सदियों के अनुभवों, प्रयोगों, संघर्षों और सीखों से निर्मित हुई है? मैं कोई मृत अवशेष नहीं, मैं पीढ़ियों की यात्रा हूँ जिसमें ज्ञान भी है, गलतियाँ भी हैं, शिक...
नदी फिर से बहना
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नदी फिर से बहना

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** कलम बोलती कागज से, आओ मन की कह दूं। झूठे जग के चलचित्रों में, सत् के रंग बतला दूं। सूख गया रिश्तों का सागर, संबंधो में थार मरूस्थल। स्वार्थ के वशीभूत जगत है, बहरूपिया सा अंतस्थल। ज़र जोरू जमीन खास है, रत्तीभर स्नेह कहां सहोदर में। शुष्क लुप्त है आत्मियता, रिसती दरार गहरी आंगन में। बोल चाल बंद अपनों से, कुंठित गैरों से भ्रमित हुए। दूध में तलवार चलती, संस्कार सब धूमिल हुए। वात्सल्य शल्य से ग्रसित, रोये अपनापन संन्यास लिए। मात-पिता में अनबन बडी, बच्चें पढ़ने को वनवास लिए। पति पत्नी के गठबंधन में, निरस गाँठों की भरमार घनी। अलगाव विखंडित मोहब्बत, झूठी शान जिए प्रणय के धनी। कब समरसता को सीखेंगे, अपनेपन में कटे कटे से रहना। यूं विस्तापित जग जीवन में, ममता की नदी फिर से बहना। परिचय :- डॉ...
कर्म का सिद्धांत
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कर्म का सिद्धांत

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** कर्म का उपदेश है गीता कर्म का है यह अटल सिद्धांत कर्म की गति की है यह विशेषता यही है जीवन की विचित्रता कर्म का रखो अपने ध्यान कह रहा गीता का ज्ञान कर्म, गर हो क्रियमण फल भोग कर होता यह शांत फल मिलेगा अवश्य हो गर यह संचित मान संचित जब पक कर देते फल हो जाते यह कर्म प्रारब्ध हो जब सब निष्काम कर्म प्रभु मिलन की राह होती प्रशस्त कर्म का , भक्ति का या हो ज्ञान का मार्ग भगवद् प्राप्ति का है यह अमोघ द्वार‌ है यह कर्म का अटल सिद्धांत परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।...
दिव्य प्रेम
कविता

दिव्य प्रेम

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जब मैं शांत हो जाऊंगा तुम अशांत हो उठोगे हृदय के अंतकरण तक। मेरा मौन सदा के लिए तुम्हारे हृदय में अशांति को विद्यमान कर देगा। मेरे प्रेम की अभिव्यक्ति तुम्हारे लिए करना कठिन से भी कठिन हो जाएगी। नव नासिका का भेदन करता हुआ मैं कभी दशम द्वार के परमानंद के अमृत कलश का अमृत पीता हूँ। तो कभी अनाहत मैं बैठे अपने इष्ट का स्पर्श कर हंसता मुस्कुराता हुआ फिर इस धरा पर चुपचाप लौट आता हूं। अपने अतृप्त हृदय के लिए तुम्हें सहस्रार का भेदन कर दिव्य प्रेम सरिता में डूब कर मुझ में लीन होना ही होगा। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
मेरा अटल मन
कविता

मेरा अटल मन

सुशी सक्सेना इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** एक दिन अचानक जब घर से निकले थे न मंजिलों का पता था, न रास्ता मालूम न कोई साथी सहारा था, न कोई साधन साथ था तो बस, मेरा अटल मन। कदमों से उम्मीदें, खुद में आत्मविश्वास था दूर दूर तक देखा मैंने, कोई भी न पास था। हर तरफ छाया हुआ था, बस अंधेरा सघन साथ था तो बस, मेरा अटल मन। फिर, मुझे कागज़ कलम का सहारा मिल गया शब्दों के पुल बांधने लगी और रास्ता मिल गया मिल गई वो मंजिल, जिसकी थी मुझे लगन साथ था तो बस, मेरा अटल मन। परिचय :- सुशी सक्सेना निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) इंदौर (मध्यप्रदेश) निवासी सुशी सक्सेना वर्तमान में, वेबसाइट द इंडियन आयरस और पोगोसो ऐप के लिए कंटेंट राइटर और ब्लॉग राइटर के रूप में काम करती हैं। आपकी कविताएं और लेख विभिन्न पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए हैं। आपने कई संकलनों में भी ...
तन्हाई के सायें
कविता

तन्हाई के सायें

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** वो मुझे तन्हा कर गयी मुझे छोड़कर किसी और पर फिदा हो गयी। ******** तन्हाई मुझे बहुत सताती है। हर वक्त उसकी याद आती हैं। ******** पता नहीं क्या कमी थी मेरे प्यार में जो मुझे तन्हा छोड़ गयी इस संसार में। ******* अब तो मैने तन्हाई को अपना दोस्त बनाया है। जुदाई के घाव पर यह मरहम लगाया है। ******* वक्त नहीं कटता तन्हाई में बड़े दुख मिले मुझे बेवफाई में। ******** भगवान किसी को तन्हा न करें। किसी को अपने प्यार से जुदा न करें। ******** कोई कभी तो शिकायत करे। बेवफा बनकर तन्हा न करे। ******* परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।...
क्या तब.. क्या अब.. ?
कविता

क्या तब.. क्या अब.. ?

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** मन सोच रहा है कैसे खोल दूँ लब एक अरसे से मूक रहे जो खुलेंगे किस लिए अब…… लबों पर चिन्हित है गहरी मुस्कान मगर जग क्या जाने क्यों सीये थे सुर्ख़ लबों को तब…… आज तलक पनपता रहा आक्रोश गहरी पर्त्तों में रिसता रहा पर्त दर पर्त पीता रहा बूँद बूँद भुलाकर मन की चाहते सब….. पर दबा ही तो रहा,ख़त्म हुआ कहाँ वह आक्रोश मन में सहता रहा,दूसरों की ख़ुशी के लिए होते रहे छेद जिगर में मूक मन उफ़ भी करी कब….. अब होना है अंत यही जब क्या कह दूँ मन की सब जानते हुये भी कि चाहते पूरी नहीं हुई क्या तब….क्या अब…? परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़” निवासी : आनंद विहार, दिल्ली विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पुस्तकों का प्रकाशन, पांच ...
हवाओं को लौट आने दो
कविता

हवाओं को लौट आने दो

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* पीपल पर अपनी प्रार्थनाएँ टाँग सूर्यास्त का पीछा करते हुए जो आत्माएँ आकाश के भी आकाश में गरुड़ों सी चली गई हैं। देखना, अभी वे लौटेंगी क्योंकि पृथ्वी ही सबको अर्थ और संदर्भ देती है यह पृथ्वी ही है। जो शून्य को आकाश की संज्ञा देती है, यह पृथ्वी ही है। जो प्रकाश को धूप की संज्ञा देती है केवल हवाओं को लौट आने दो- ये सारे के सारे वन; कानन और अरण्य जो अभी भाषाहीन लग रहे हैं आकंठ प्रार्थनामय हो जाएँगे। सारी सृष्टि संध्याकालीन प्रार्थना-पुस्तक-सी पवित्र हो जाएगी। एक-एक पत्र संकीर्तन करता हुआ वैष्णव लगेगा केवल हवाओं को लौट आने दो- यही पीपल पत्र-प्रार्थनाएँ करता हुआ चैतन्य लगेगा, सारी वनस्पतियाँ माधव-गान करती हुई प्रभु के वन-विहार के अनुष्ठान-सी लगेंगी। महाभाव और क्या ...
जरूर कोई बात है
कविता

जरूर कोई बात है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** धुरंधर लठैत मुस्कुरा रहा है, विरोधी लठैत भी मुस्कुरा रहा है, पता करो पीछे जा भौंकने वालों दोनों मिलकर कोई खिंचड़ी तो नहीं पका रहा है, हर कोई इन पर भरोसा कर रहा मगर ये भरोसे के काबिल नहीं है, नहीं पता तो चुप रहा कीजिए जनाब सपने में भी मत कहना कि ये हमारी बर्बादी में बिल्कुल शामिल नहीं है, मत ताकते रहो चेहरा और लिबास, खोजो और ढूंढो कहां है कालिख छुपा खास, कहीं ढंक ले तुम्हें वातावरण आभासी, कोई भी बन सकता है अडिग सत्यानाशी, अतीत के अपने अंजाम क्या याद नहीं, उनके पुरखों के कर्म कभी लगे सही? बहुतों के कर्म सही लगते हैं होते नहीं, वे कुकर्म भूल जाते हैं उसे कभी ढोते नहीं, बावरे मन और बावरे चित्त लेकर अब तक कितनों को हम समझ पाये हैं, थोड़े की चाह में सब कुछ तो लुटाये हैं, क्यों नहीं दिख रहा लेकर खड़े व...
पगडंडी
कविता

पगडंडी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पथ पगडंडी पर पडे पतझड के कोलाहल मे किसी की अस्पष्ट आवाज सुनाई दी पीछे मुडकर देखा, कोई नही था। सोचा मुझे भ्रम हुआ आगे चली फिर देखा कोई नयी था फिर कोई बोला पीछे मत देखो आगे चलो, बढो आत्मविश्वास, साहस के साथ सामिप्य मै तुम्हे दुगा, मै मन हू तुम्हारा। अकेलापन, सन्नाटे, तुफान से लङना सिखो, बढो आगे पिछे मुडना कायरता है और तुम, तुम कायर नही हो, मेरे साथी। मजबुत मानव हो पथ चाहे कैसा भी हो उसे सुगम बनाओ, आगे बढो, आगे बढो। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले...