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कविता

आम वृक्ष
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आम वृक्ष

देवकी दर्पण पाटन जिला बूंदी (राजस्थान) ******************** बहुत ही उपयोगी, होता है सघन खूब, दीर्घजीवी हितकारी, वृक्ष बड़ा आम है। भारत के दक्षिण में, कन्या कुमारी से यह, आगे तक फैला हुआ, आम का ही नाम है। उत्तर में हिमालय, की तराई तक यह, तीन हज्जार फुट का, ऊंचा आम धाम है। पश्चिम में पंजाब से, पूरब आसाम तक, भारत वनों में खूब, आम का ही काम है।।१।। अनुकूल जलवायु, साठ फुट तक ऊंचा, तरू शान से हो जाता, स्वाभिमान से खड़ा। छाया भरपूर होती, धूप को देता चुनोती, लकड़ी नरम सोती, तरु होता है बड़ा। होती है टिकाऊ काष्ठ, लेता काम पूरा राष्ट्र, चाय की पेकिंग पाष्ट, बक्सा बनाते कड़ा। आम वृक्ष का कमाल, गोन्द देती रहे छाल, भाई आम लगा पाल, मौज जिन्दगी उड़ा।।२।। गोन्द की बने दवाई, ओषधालयों को भाई, रोगियों को रास आई, आम वृक्ष मान है। पोधा जब चलता है, चार साल पलता है, फिर यह फलता है, भारत...
मैं झील हूँ
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मैं झील हूँ

बृज गोयल मवाना रोड, (मेरठ) ******************** मैं झील हूँ मैं बँधकर रहना नहीं चाहती मैं रास्ते बनाकर स्वतन्त्र बहना चाहती हूँ मैं खामोशियों से घबरा गई हूँ आगे बढ़कर इठलाना चाहती हूँ सागर तक जाकर लहरों में समाना चाहती हूँ मैं झील हूँ। परिचय :- बृज गोयल निवासी : राधा गार्डन, मवाना रोड, (मेरठ) घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३...
प्रभु चित्रगुप्त जी
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प्रभु चित्रगुप्त जी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** कलम-देवता है नमन्, विनती बारम्बार। हर लेना अँधियार सब, देना नित उजियार।। न्याय देवता तुम भले, पाप-पुण्य का लेख। प्राणी की तुम खेंचते, बिल्कुल सच्ची रेख।। ब्रम्हा ने तुमको जना, हो तुम मानस पूत। तुम हो धर्माधर्म के, सबसे सच्चे दूत।। कायस्थों के पूर्वज, सबसे चतुर सुजान। कलम चलाते सत्य की, देते सबको ज्ञान।। धर्मराज के संग में, धारण करके मर्म। मृत को बतलाते सदा, कैसे उसके कर्म।। बता रहे हैं लेखनी, रखती पैनी धार। साँच सदा हो साथ में, तो उजला संसार।। चित्रगुप्त को पूजना, लेकर मंगलभाव। रखना दिल में नीति का, हरदम चोखा ताव।। बारह पूतों ने किया, सदा सुपावन काम। चित्रगुप्त जी! आप तो, लगते तीरथ धाम।। चित्रगुप्त जी!आप तो, करते चोखा न्याय। आप सदा हैं प्रेरणा, यह सबका अभिप्राय।। प्रकट हुए हो देव तुम, ...
संभल जा इंसान
कविता

संभल जा इंसान

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* सारी दुनिया वह कहे जो सम्मत है विज्ञान धरती -चपटी मानते अभी बहुत इंसान। अड़े हुए हैं झूठ पर जान -बूझ अंजान अंध -श्रद्धा के सामने बौना हुआ ईमान। इंसाँ -इंंसाँ फर्क कर मज़हब लीने मान कुछ ही को छोड़कर सब काफिर शैतान। काफ़िर का जायज़ क़तल इनका यही कहता ज्ञान काफ़िर का कर खात्मा हासिल करो जहान। जो धरती पे पैदा हुआ वो सब ही एक समान यहाँ सभी हकदार हैं, जीव - जंतु - इंसान। प्रेम- मुहब्बत- मुरब्बत इंसान की है पहचान जिस मज़हब ये न रहें वो मज़हब मुर्दा जान। लोगों को वहम का है होने लगा गुमान जो जितना जाहिल दिखे वो ही मज़हब की शान। घटिया- सटिया माल की कुछ दिन चले दुकान बेचा सो वापस फिरे करना पड़े चुकान। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : ...
जयकारा तो गूँजेगा
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जयकारा तो गूँजेगा

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** सैनिक का सम्मान बढ़ेगा, हिन्द का नारा गूँजेगा ॥ अखिल विश्व में भारत माँ का, अब जयकारा गूँजेगा ॥ वन्दे मातरम् का जयकारा, राष्ट्र भक्ति विश्वास हो॥ आतंकी आतंकवाद का, इस दुनिया से नास हो॥ भारत माता की जय हो, जय हिन्दू सैनिक की शान॥ सबसे पहले याद रहे दो, अधरों पर यह हिंदुस्तान ॥ मोदी जी के साहस बल का, परम सहारा गूँजेगा॥ सैनिक का सम्मान बढ़ेगा, हिन्द का नारा गूँजेगा ॥ परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। हिन्द रक्षक एवं अन्य मंचों में सहभागिता। शिक्षा : एम एस सी, (वनस्पति शास्त्र), आई.आई.यू से मानद उपाधि प्राप्त। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
नहीं किसी को छलेंगे
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नहीं किसी को छलेंगे

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिनको जो कहना है कहने दीजिये, उन्हें अपनी घमंड में रहने दीजिए, अपनी राहों में कैसे चलना है हम जानते हैं, बेफिक्री वाली मजबूत कदमों के शौकीन हैं हीरों से जड़ित खड़ाऊ कोई पहना दे तो भी किसी का आदेश हम नहीं मानते हैं, ऊंची नीची पहाड़ी में ऊंट न चलाओ, हुनर देखना है तो रेत में दौड़ाओ, कांच में भागने का दम सांप कहां से लाए, खेत की मेढ़ में कोई न छेड़ पाए, जगह परिस्थिति अनुसार सबका महत्व है, किसी का हुनर उनका अपना ही स्वत्व है, केकड़े हैं जो पत्थर की ओर मुड़ जाएंगे, जागरूकता की राह में सदा हमें पाओगे, सफल हुए तो अपना नीला आकाश होगा, मंजिल ले जाने को आदर्शों का प्रकाश होगा, वे अपनी चाल चले हम अपनी चाल चलेंगे, वो डूब सकता है डगर की चकाचौंध में मंजिल दिखलाने वाले नहीं किसी को छलेंगे। परिचय :-  रा...
आपको देश की कसम
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आपको देश की कसम

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** प्रिय देशवासियों आपको देश की कसम अपने बच्चों को देशभक्त बनाएं उन्हें देश से प्रेम करना सिखाएं देशप्रेम है कर्तव्यों को इमानदारी से निभाना मेहनत करके आगे बढ़ना देश के प्रति निष्ठा निभाना अपनी ‌संस्कृति को संभाल कर रखना ईश्वर में विश्वास रखना पड़े जरुरत तो सांसारिकता को ताक पर रखना आध्यात्मिकता ‌की अलख उनमें जगाना अपने देश के बच्चों को पहला प्रेम देश से करना‌ सिखाना देश है सबसे बड़ा देश से बढ़कर नहीं कोई खड़ा देश ही सबको देता है सारे सुख, सुविधाएं देती है देश भक्ति मात-पिता सी शक्ति देश का संबल है धर्म ध्वजाएं देश में सांस्कृतिक चेतना जगाएं आध्यात्म की ध्वजा फहराएं भारत का हर बालक हर बाला स्वयं को देश का सैनिक समझे मन में यह भाव जगाएं तिरंगे से पहला प्यार करना सिखाएं हर मन में बसे तिरंगा हर...
सीता भूमिजा
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सीता भूमिजा

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सीता-जन्म हुआ भूमि पर वह भूमिजा पुत्री कहलाई भूमिजा जन्म की सच्चाई अल्प जन ही तो समझ पाई पुत्री जन्म सुन रावण हर्षाया खुश होकर ज्योतिषी बुलाया भविष्य जानने की इच्छा से उसकी जन्मपत्री बनवाया। यह कन्या है बहुत भाग्यवान बनेगी ये भारत की शान मान पर एक दिन इसका पति ही बनेगा तुम्हारा काल वरदान निज काल सुन रावण थर्राया क्रोध से ज्योतिषी पर गुर्राया अपशकुनी को हटाओ यहां से कलश में रख दूर फिकवाया जनकपुर के नरेश राजा जनक पूजा पाठ निज जीवन बिताते प्रजा को निज संतान समझते सदा उसका हित चिंतन करते जनकपुर में पड़ गया था सूखा वर्षा ने रूठकर ऐसा मुंह मोड़ा जनता त्राहि त्राहि कर रही थी जनकपुर का जन-जन भूखा राजा जनक ज्योतिषी बुलवाए इस समस्या का ये निदान बताए राजा स्वयं स्वर्णहल क्षेत्र चलाए अवश्य वर्षा से पृथ्वी लहलहा...
आशा
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आशा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बही मै भावो की भावुकता लिये सरिता सी तिरस्कारित इस जीवन का अंत कहा भूतल पर। कटु आलोचनाओं के विपरीत कोध, इर्शा नही है मन मे अंतर्मन रोता-रोता हे सिर्फ विचार लिये आशाएं बधंती है सिर्फ जीने के लिए परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३" से सम्मानित व वर्तमान में राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर ...
बोलो प्रियतम! कब आओगे….?
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बोलो प्रियतम! कब आओगे….?

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कब से रस्ता देख रही हूॅं, अब आओगे, तब आओगे । क्षण क्षण जीवन बीत रहा है, बोलो प्रियतम! कब आओगे?? बारहमासा बीता जाए, जीवन, बिरहा गीत सुनाए। कितनी आई गर्मी -सर्दी, कहकर के भी तुम ना आए। ऋतु-चक्र अब घूम के पूछे, कैसे मन तुम बहलाओगे ? क्षण क्षण जीवन बीत रहा है, बोलो प्रियतम! कब आओगे?? जब तुम मुझको छोड़ गए थे, लगन वार का दिन प्यारा था। सब गाँवों में खुशियाँ चहकी, सब शुभमय अरु सब न्यारा था । तब तुम बोले थे पावस के, आने पर ही फिर आओगे ! क्षण क्षण जीवन बीत रहा है, बोलो प्रियतम! कब आओगे?? पुनवासी का मेला आया, शरद काल मन अति हर्षाया। अम्बर से तुम दमक रहे हो, कतकी ने फिर-फिर दुहराया। ऐसे ही सब जाड़ा बीता, भानु-रश्मि तुम कब लाओगे ? क्षण क्षण जीवन बीत रहा है, बोलो प्रियतम! कब आओगे ?? 'कल', परसों क...
मजदूर
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मजदूर

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मजदूरी मजदूर की है मजबूरी, दिन रात वह काम है करता, फिर भी वह भूखा ही सोता। बच्चे देखो नंगे फिरते, नहीं पादुका इनके पैर। हाथ में रोटी यही पकवान। नहीं आशियाना इनके पास, नहीं शिक्षा है इनके पास, काबिला ही इनका परिवार, इसमें रमते दिन और रात। टीवी मोबाइल से नहीं है काम, खेतिहर मजदूरी करते तिल मिलाती धूप में तपते, बारिश हो या ठंड अपार, उद्देश्य इनका एक ही "काम"। भाग्य भरोसे इनका काम, कभी सूखा कभी अति है वृष्टि, सबकी मार इसे है पड़ती, राम भरोसे इनका काम, कहां सुख और कहां आराम। हाथों का सिराना रखकर, चैन की नींद सोता दिन रात। सूर्य उदय हो रोटी सेके, दो मिर्ची ऊपर धर लेवे, जी तोड़ मेहनत है करते, पैदा करते धन और धान्य, फिर भी हाथो नहीं कुछ दाम। रात को नाच गान है करते जीवन में आनंद है करते, नहीं मा...
रचे रचनात्मक जिंदगी
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रचे रचनात्मक जिंदगी

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सोचना समझना फिर करना जिंदगी का सबसे अहम काम, फुर्सत कभी मिलती ही नहीं, मिलता नहीं पलभर आराम ।। जिंदगी पहिये सी, घूम रही है शिकायत कभी करती ही नहीं, मौन भी रहती है हरदम जिंदगी सीख भी बेजोड़ देती जिंदगी ।। कहती है खुद पे खुद ये जिंदगी करो रोज, रचो रचनात्मक काम, समाज जाति देशहित के काम मौन क्यों, रचो रचनात्मक काम ।। प्रगतिशील गतिविधियों से लड़े जिंदगी प्रगति पथ पर खुद बढ़े मुसीबतो का जंजाल सताएगा सोचना समझना, काम आएगा ।। जिंदगी की है भारी भागदौड़ चुनो समाधान के नए नए मोड़ समाधान की तलाशते रहे धैर्य संयम रखो हरदम सांस मिलेंगे सरल स्रोत, मिलेगी राहें ।। परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्ष...
पुरुषों का सशक्तिकरण
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पुरुषों का सशक्तिकरण

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** "अब पुरुषों का दर्द भी सुना जाएगा!" भारत की धरा पर घिरा अंधकार, पुरुषों पर टूटा अन्याय का भार। कभी झूठे इल्ज़ाम, कभी मौत का डर, दबा दिया जाता है हर एक स्वर रोज। "अब चुप्पी नहीं, अधिकार चाहिए!" महिलाओं को सम्मान जरूरी सही, पर पुरुषों की व्यथा भी सुननी चाहिए। झूठ के जाल में न फँसाओ उन्हें, हर बेकसूर को अब बचाना चाहिए। "पुरुष भी इंसान हैं, पत्थर नहीं!" दिल उनका भी धड़कता है यारों, दर्द उनके भी गहरे हैं प्यालों। डर-डर कर जीना कैसा इंसाफ? इंसानियत पर उठने लगे हैं सवाल। "झूठी चीखों का अंत करो!" गलत आरोपों का खेल बंद करो, नारी का सम्मान हैं अनमोल सही। पर सत्य और न्याय की भी अलख जलाओ, हर दिल को बराबरी का हक दिलाओ! "समाज जागे, बराबरी लाए!" अब वक्त है न्याय का बिगुल बजाने का, हर आहत मन को अपनाने ...
पिता दामाद से क्या कहता है…
कविता

पिता दामाद से क्या कहता है…

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** पहला व्यक्ति जिसने इस लाडली को गोद में लिया वो मैं था, तुम नहीं , पहला अधिकार मेरा था जब पहली बार मैंने इसके माथे को चूमा तुम्हारा नहीं ! पहली मुस्कान उसकी, पहले आंसू, उसके मैंने देखे, उसे अपनी नन्ही राजकुमारी कहा, वो मैं ही था, तुम नहीं ! दुनिया की सबसे सुन्दर बेटी की निश्छलता, निर्मलता, कोमलता मैंने देखी, प्यार, नाज़, और दुलार से पाला, सम्मान और कर्तव्य सिखाये सबसे पहला पाठ पढ़ाया, वो मैं ही था! उसे साहस-ताकत का अध्याय सिखाया, पूरे दिल से प्यार देकर पाला !! आज मैं तुम्हें वहीं सम्मान देता हूँ , जिस सम्मान के अधिकारी बने तुम इसके कारण! इसी प्यार-सम्मान, से उसे सवांरना, जो आज तक उसे मैंने दिया है, उसकी रक्षा करना ! दर्द क्या होता है वो नहीं जानती, तुम अब वो पुरुष बनोगे, जि...
रणभेरी को सुनना होगा
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रणभेरी को सुनना होगा

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** लोथ के ये दृश्य वीभत्स मानवता को दहलाते हैं काफ़िर हैं वो हत्यारे जो निर्दोष को मार गिराते हैं। धर्म की बंदिश रखकर ये क्या खेल लहू का खेलेंगे हम अमन पसंद इंसानों का क्या धैर्य खून से तौलेंगे? इतिहास गवाह जयचंदों ने हम पर सदा आघात किया हमने शांति चाही सदा दुष्टों ने नित वज्रपात किया। हम कफ़न बांध लड़ जाएंगे कब तक ही चुप बैठेंगे जब बांध सब्र का टूटेगा घाटी में समर भी खेलेंगे। पुलवामा या पहलगाम कब तक भारत ये झेलेगा ये दंश मौत का दिया तुमने प्रतिशोध हर कतरे का लेगा। भारत भूमि का स्वर्ग कहाँ ये दर्रा निर्दोष रुधिर का है शोणित का बदला शोणित हो मत ये हर सुधीर का है। चंद्र सुभाष सा सौदा फिर हम सबको ही बुनना होगा। अमन की बातें छोड़ अभी रणभेरी को सुनना होगा। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश)...
मिथ्या आवरण
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मिथ्या आवरण

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** ईमान को बेचकर कभी ईमानदार नहीं बना जाता। दर्द देकर कभी किसी का हमदर्द नहीं बना जाता। इंसान को तोड़कर कभी इंसानियत का दावेदार नही बना जाता। बीच राहों में छोड़कर हमसफर को कभी हमराही नहीं बना जाता। कल-कल कर कभी पल-पल का जीवंत जीवन नहीं जिया जाता। देकर औरों को दुख कभी खुद के चेहरे पर खुशियों का झूठा मुखौटा नहीं पहना जाता। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित ...
जन्नत में बहता लहू
कविता

जन्नत में बहता लहू

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** ख़बर आई है- धरती के स्वर्ग में, शबनम की जगह बारूद बरस रहा है। गुलमोहर की टहनियों पर खून टपक रहा है। पहाड़ियों की गोद में सोए अट्ठाईस सपने सिर्फ़ इसलिये तोड़ दिए गए कि उन्होंने काफ़िर होना चुना था। आम आदमी- जिसकी पूरी दुनिया बीबी, बच्चे और रोटी की महक से महफूज़ होती है, उसे नहीं पता- ‘काफ़िर’ कौन होता है? उसे ये भी नहीं पता कि किसी और की जन्नत की लालसा में उसका जीवन नर्क बना दिया जाएगा। वो दरिंदा इंसान- जिसकी आँखों में ७२ हूरों की परछाइयाँ हैं, और शराब की नदी का बुलावा, वो भूल बैठा है- कि जन्नत किसी मासूम की लाश पर नहीं मिलती। किताबें भी कभी रोती होंगी शायद- जब उनके अक्षरों से हत्या के फतवे गढ़े जाते हैं। जब प्रेम की आयतें, नफरत की गोलियों में बदल जाती है...
माँ- एक सुखद अनुभूति
कविता

माँ- एक सुखद अनुभूति

नील मणि मवाना रोड, (मेरठ) ******************** चाँद तारों सा बचपन चाँद तारे हो गया मां जब से दूर हुई बचपन खो गया फ्रॉक से लेकर साड़ी तक खूब सजाया तुमने लाडली के हर आंसू पर स्नेहांचल फैलाया तुमने कुछ बन जाऊं मैं रोज सवेरे जगाया तुमने सफेद कोट बुन डॉ. ख्वाबों में बनाया तुमने कभी मलाई आम तो कभी मालपुए का स्वाद चखाया तुमने हर क्षेत्र में प्रवीण हो लाडली हर दांव चलाया तुमने जब भी उदास मन हुआ शोहदों की शरारतों से 'देखने की चीज हो तुम' कह विश्वास जगाया तुमने अंजाने में दिए मेरे दुख को, कण्ठ भी उतारा तुमने अपनी परी के हर एहसास को गले लगाया तुमने नाज है मां तुम पर.. तुम्हारी स्नेहाशीष सीखों पर आज आश्वस्त हूँ इसीलिए माँ, मैं अपने आप पर। परिचय :- नील मणि निवासी : राधा गार्डन, मवाना रोड, (मेरठ) घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौल...
कर्तव्य बोध
कविता

कर्तव्य बोध

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिसने कभी किया ही नहीं जीवन की तमाम परिस्थितियों पर शोध, उनसे कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि उनके अंदर होगा कर्तव्य बोध, इसके लिए दिमाग के साथ दिल भी चाहिए, सुस्पष्ट सोच और लक्षित मंजिल भी चाहिए, हमारे देश के कर्णधारों में, कुंठित सिपहलसारों में, यदि कर्तव्य बोध होता, तो देश की उन्नति की राह में कोई भी लोकसेवक कांटें क्यों बोता, इस देश में हुए हैं ऐसे भी लोग महान, जिनका दर्जा होना था भगवान, उन सबके योगदान और स्मृतियों को बहुतों ने मिटाना चाहा, कुढ़ता में आ उन सबको भुलाना चाहा, होता कर्म के प्रति लगाव तो भ्रष्टाचार मुंह बांये न खड़ा होता, धन कुबेर और अपराधी नेताओं के दांये बांये न खड़ा होता, कुछ लोगों के खून में बस चुका है देश के साथ भयंकर गद्दारी, प्रगति की राह में जो पड़ रहा भारी, पता ...
निवेश के पहले सितारे
कविता

निवेश के पहले सितारे

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** हम हैं निवेश के पहले सितारे, सपनों के पंखों पर उड़ने वाले नारे। नई राहों के पहले मुसाफिर, ज्ञान की लौ से रौशन ये सफ़र। हम हैं 'निवेश १.०' की पहचान, सपनों से भरी एक नई उड़ान। सतीश चंद्र कॉलेज की शान बनें, ज्ञान के पथ पर हम अभिमान बनें। प्रिंसिपल डॉ. बैकुंठ नाथ पांडेय सर का साथ मिला, हर सोच को उड़ान देने का जज़्बा मिला। हेड डॉ. ओम प्रकाश सर की सादगी में शक्ति है, हर विद्यार्थी की आँखों में उनकी भक्ति है। डॉ. राहुल माथुर सर की शैली है निराली, हर कांसेप्ट में छिपी एक रोशनी मतवाली। डॉ. ओमप्रकाश पाठक सर का मार्गदर्शन मिला, हर विषय जैसे खुद-ब-खुद समझ आ चला। डॉ. अतीफा फलक मैम की बातों में ज्ञान की रौशनी है, उनकी क्लासों में बसी उम्मीदों का बग़ीचा है। पहला सेमेस्टर, 0% अटेंडेंस का सीन, प्रोजेक्ट का डेडलाइन? ...
धर्म का युद्ध
कविता

धर्म का युद्ध

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** धरा पर स्वर्ग देखने चला था, तुने वो क्या दृश्य दिखा दिया, चंद पल खुशी के ढूंढने निकला था, तुने तो गमो का बोझ बांध दिया। तू भी इसी धरा का, मैं भी इसी धरा का, तुने धर्म के नाम पर, मुझे कुचल ही डाला। धर्म का युद्ध तुने रचा, अपनो को हमने खोया, हिन्दुस्तान के हिन्दु को, धर्म के नाम पर तुने ललकारा है। अब धर्म का युद्ध तु भी देखेगा, मैं भी देखूगां, तु भी इसी धरा का, मैं भी इसी धरा का। धरा पर स्वर्ग देखने चला था, तुने वो क्या दृश्य दिखा दिया। परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने प...
रंगमंच
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रंगमंच

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** विश्व रंगमंच की दुनिया देखो कोई अमीर कोई गरीब देखो हंसता-रोता हुआ चेहरा देखो मदद करता लुटता हाथ देखो कोई फैल कोई हुआ पास देखो सूरज देखो चांद को साथ देखो बेवफाई संग प्यार का खेल देखो झूट को कभी सत्य के पास देखो फूलों की खुशबू का साथ देखो रंगमंच के अभिनय को हर बार देखो परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता सम्मान : राष्ट्रीय...
विज्योति
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विज्योति

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** बहुत मुद्दत के बाद उकेरे है कुछ लफ्ज़ हृदय आघात से बचाकर किताब-ऐ- पन्नों पर। बहुत मुद्दत के बाद अंकित किए हैं कुछ किस्से हृदय स्थल से उतार धरातल की मन:स्थली पर। बहुत मुद्दत के बाद छाया है सहस्रार पर आत्मज्ञान का महाप्रकाश मोह की प्रकाष्ठा को लांघकर। बहुत मुद्दत के बाद अनाहत से आया है कोई स्वर विशुद्धा को लांघकर अंतर्दृष्टि को सचेत कर। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाच...
थोड़ा सा प्यार बांटे
कविता

थोड़ा सा प्यार बांटे

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** कहते हैं बांटने से खुशी बढ़ती है और दर्द कम हो जाता है, तो चलो आज कुछ मुस्कराहटें बांटे, रिश्तों में थोड़ी सरसराहट बांटे! पसरा है जिनके जीवन मे सन्नाटा उनमे थोड़ी पवित्रता बातें, जीवों....में मुस्कान बांटे! जीवन जीने का खुशनुमा अंदाज ना जाने कहाँ खो गया द्वेष और दिखावा छोड़ थोड़ा सा प्यार बांटे! सब कुछ पाने की चाह में चैन-शांति कहीं गुम हो गई क्यों ना थोड़ा सा सुख बांटे! नीरस सी हो रही जिंदगी जिनकी उनमे थोड़ी शरारतें थोडा सी शुभकामनाएं बांटे!! प्रकृति ने उपहार दिए हमे, नभ-जल-थल, इन्द्रधनुषी रंगों से सजे पशु-पक्षी, इनमे थोड़ी करुणा-थोड़ी ममता इनको थोड़ा सम्मान बाटें!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्...
हमने ‌क्या सीखा
कविता

हमने ‌क्या सीखा

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** रवि सिखाता ‌अनुशासन नदी सिखाती आगे बढ़ना पर्वत दे सीख‌ अडिगता की वृक्ष सिखाता है देना। सीख लता की, तन्वी कोमल सी ले संबल आगे बढ़ती कुछ देने को तना सहारे पत्ते हिलते प्राणवायु सबको देने को। मानव मानव को सभ्य बताते लड़ते झगड़ते बढ़ते जाते प्रकृति मां की गोद में पलते पर उससे कुछ सीख भी पाते? चींटी पक्षी कीट पतंगे न लड़ते न द्वेष वो करते न लूट न पत्थरबाजी अपने दल में घूमा करते। मानव सीखें इनसे अनुशासन क्यों इतना आतंक‌ मचा है क्यों धरती विव्हल है क्यों धरणी रोती पल पल है? कहां तहजीब और नफासत संस्कार वो लुप्त हुए हैं वो पौरुष के भाव कहां, किसी गुफा में सुप्त पड़ें हैं? प्रभु सृष्टि तुम्हारी है कुछ तो करना भयभीत हिरन सी व्याकुल है कुछ कोमल भाव स्नेह सने से यहां वहां बिखरा देना। परि...