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कविता

पर्व पर आनंद मनाऊं कैसे
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पर्व पर आनंद मनाऊं कैसे

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** देखा था रोशनी जिन अपनों संग, बिछुड़ उनसे दीप जलाऊं कैसे ? रूठे बैठे है जो अपने सगे संबंधी, बिन उनके मैं तिमिर हटाऊं कैसे ? रिश्तों में उपहार साथ मिला था, रस्म निभाने का बात मिला था। फिर उनके बिन पर्व मनाऊं कैसे ? जिनसे जन्मों का साथ मिला था ।। मेरे अपने मुझसे मुख मोड़ बैठे है, फिर गैरों संग दीप जलाऊं कैसे ? त्योहारों पर छूटा यदि साथ अपना, तो इस पर्व पर आनंद मनाऊं कैसे ? परिचय : अंकुर सिंह निवासी : चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां...
बेटियाँ
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बेटियाँ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** माता -पिता के गुजर जाने से घर को संभाल रही बेटियाँ कांधा देकर/अग्निदाह करके संस्कृति निभा रही बेटियाँ। बेटों के बिना बेटा बन के लोगों को दिखला रही बेटियाँ वेशभूषा से पहचान मुश्किल कहते है की बेटे है या बेटियाँ। वाहन चलाने से डरती थी हवाई- जहाज उड़ा रही बेटियाँ प्राकृतिक आपदाओ के समय लोगों की जाने बचा रही है बेटियाँ। देश की सीमा -प्रहरी बन के दुश्मनों को दहाड़ रही है बेटियाँ कुशल राजनीती बन कर ये देश -प्रदेश को संभाल रही बेटियाँ। भ्रूण हत्या ,दहेज़ ,बलात्कार को रोकने का बीड़ा उठा रही है बेटियाँ बेटी बचाओ का संकल्प लो सभी दुनिया को ये संदेश दे रही है बेटियाँ। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश...
भाव भंगिमा
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भाव भंगिमा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मन की मनोदशा दिखलाने, तन मन जो करता है। भाव भंगिमा से औरों का, पल में मन हरता है। भाव भंगिमा देह जनित गुण, मानव दर्शाता है। मनोभाव मानव निज मन के, तभी दिखा पाता है। भावभंगिमा से अंतस का, भाव समझ में आता। हाव-भाव दिखलाकर सबको, सुख-दुख मनुज बताता। मन की दशा दिशा दिखलाने, जो प्रयत्न करता है। भाव भंगिमा दिखला कर ही, मन धीरज धरता है। घृणा-प्यार दिखलाती है यह, अपनापन दिखलाती। भाव भंगिमा मन की पीड़ा, बिना कहे कह जाती। भाव भंगिमा लख राघव की, जनक सुता हरषानी। गौरी पूजन से वर पाया, प्रमुदित हुई भवानी। भाव भंगिमा मोहित करती, पीड़ा भी पहुँचाती। भाव भंगिमा मानव मन को, हर्ष विषाद दिलाती। भाव भंगिमा से हम सब के, मन को मोहित कर लें। सुभाशीष पाकर अपनों का, खुशी हृदय में भर लें। ...
कौन हो चंदा?
कविता

कौन हो चंदा?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** चुप कैसे क्यों मौन हो चंदा, या बतला दो कौन हो चंदा, कभी मामा तुम बन जाते हो, अंधियारा गुस्से में लाते हो, हमें पता है बस इतना ही कभी घटते कभी बढ़ जाते हो, क्यों किसके पीछे पड़ जाते हो, कोई कहते स्त्री और कोई पुरुष, अमावस्या को हो जाते हो खड़ूस, तारे क्या लगते हैं तेरे, कोई कहता बलम हो मेरे, किसी का मुखड़ा तुम्हारे जैसा, कोई लूट रहा तेरे नाम से पैसा, रात भर इतराते रहते हो जब तक न हो जाये भोर, खबर भी है तुमको क्या कुछ भी चाह रहा कोई तुम्हें चकोर, कभी कहलाते हो आफ़लब, कभी दिखते हो सबको लाजवाब, जंजालों से खुद को संभालते हो, खुद को ग्रहण से निकालते हो, जा सकता है कोई तुमसे पार, पूछ रहा था एक दिलदार, औलाद को कहे कोई चंदा सूरज, बतलाओ किस किस की हो जरूरत। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी न...
दीप
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दीप

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** दीप जलते नहीं जलाए जाते है। मोहब्बत की नहीं निभाई जाती है। खुशियां आती नहीं लाई जाती है। अपने बनते नहीं बनाए जाते है। कर्म दिखाए नहीं किए जाते है। हमसफर दिखाया नहीं बनाया जाते है। सत्य समझाया नहीं समझा जाता है। श्री राम बनाए नहीं कर्मो से बना जाता है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ...
अतः स्वर
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अतः स्वर

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** अतः स्वर की वीणा की तान जीवन संघर्ष प्रकृति प्रसन्नता खुशहाली व्यंग त्याग मिलना बिछुड़ना भाव प्रधान हृदय को छूकर फिर रम जाता है मन आत्मा में। अंतर मन जब डूब जाता है जन्मता है एक कवि का विचार, अंत:करण की आवाज हे सुनकर विचारों की लड़ियां बन जाती होता साहित्य कविता का सृजन का हे आज। अतः स्वर अतः मन एक लक्ष्य एक विचार, चिंतन मनन का है भाव, स्फुटित होता है कोई रचना रच जाती चलती रहती अत: स्वर आत्मा की देखो आवाज। कविता को कवि भाव से सजाती, अलंकार छंद रस के गहने पहनाकर, मन के भावों की देखो दुल्हन। शब्द-शब्द से कविता बन जाती। अतः स्वर की गंभीरता शांति एकाग्रचित चिंतन और ध्यान, पहना देती कविता को रचना से, कविता को, सुर ताल से पायल की देखो झंकार। किरण लगा देती प्रकृति की, बेल-बूटो की साड़ी तैयार, ...
दीपोत्सव
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दीपोत्सव

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर घर में दीपोत्सव की धुम मची हैं हर पथ वन्दन वार सजे। पवन सग केसरिया पताका लहराये गीत गाते राग मल्हार। आंगन, द्वारे, चौखट सजे रंग, रंगोली से करते मां लक्ष्मी का सत्कार। रंग रंगीली छटा बिखेरे दिपो की झिलमिल प्यारी ऐसे लगता मानों लक्ष्मीजी के पग पखारती। मिष्ठान्नों से पात्र भरे हैं। मां अन्नपूर्णा लगे न्यारी उत्साह, उमंग से भरी सजधज कर लगती नारी शक्ति गृह लक्ष्मी। सभी लेखक बंधु, भगिनी एवं सम्पादक महोदय को दिपावली पर्व की शुभकामनाएं स्वस्थ रहें, ख़ूब लेखनी चलाएं ...। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के ले...
पाती एक जीव की
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पाती एक जीव की

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** इंसानो ने पत्थर का कलेजा बनाया होगा तभी उसमें इतनी नफरत, क्रोध, हिंसा को समाया होगा, हम हैं एक जीव ये भूल गया होगा हमे भी उसके जैसे ईश्वर ने ही बनाया होगा! भूल गया इंसान हमारे वज़ूद को नहीं होता आभास हमारे दर्द भरी पुकारों का!, हम तरसते रहते थोड़े से प्यार और ममता के लिए, घायल तन, व्यथित मन बोझिल कदम लिए, कभी तो हमारे अस्तित्व का उनको संज्ञान होगा, उनके दिलों में हमारे लिए भी करुणा और प्यार होगा! चोट नहीं, दुत्कार नहीं, स्नेह का दीपक कभी तो जलाया होगा!! हे मानव तुम मे से ही कोई मसीहा कहीं जगा होगा, हमारे दर्द भरी कराहटों को सुना होगा, प्यार के मलहम से हमे संवारा होगा उस मसीहा ने ही धरती पर हम सबके संरक्षण का प्रण लिया होगा, तभी तो बच पाए हैं हम "जानवर" इस धरती पर हम में भी...
मुलाकात अपने आप से
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मुलाकात अपने आप से

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मैं सोचता हूँ, कभी मुलाकात कर लूँ अपने आप से। पकड़ लूँ गिरेबान और मिला लूँ आंखे अपने अहम से। मैं हूं बड़ा बदतमीजी, कूट-कूट कर भरा है अभिमान मुझ में। बस पहचान का फितूर चढ़ा है खाली दिमाग में। ईर्ष्या द्वेष द्वन्द्व जैसे साथी संग खड़े हैं मन के मरुस्थल में। है विडम्बना कैसी, मेरे मन से कम खारापन सागर में। मैं अपनी बतला दूं, नैतिकता कहीं दूर खड़ी भाव-भावना बिखरी सी। गुण पर भारी अवगुण, दग्ध हृदय संताप भरा जीवन लीला घिरणी सी। खंडित आभासी वैभव, मोह माया संलिप्त दम्भ में ऐंठे रहता हूं। लघुतर मानू और को, मैं मगरूर आत्मश्लघा अहं में डूबा रहता हूं। मैं सोचता हूँ, कभी मुलाकात कर लूँ अपने आप से। पकड़ लूँ गिरेबान और मिला लूँ आँखें अपने आप से। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान स...
प्यार की पहली नज़र
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प्यार की पहली नज़र

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** उस नज़र के सदके जाऊं जब तुमसे प्यार हुआ। उस नज़र पर कुर्बान जाऊं जब तुम्हारा दीदार हुआ। ******* जब देखा तुम्हे पहली बार हम सुध-बुध खो बैठे। पहिली नज़र में ही अपना दिल हार बैठे। ******* तुम्हारे कातिल नयनों ने किया था मुझे घायल देख के तुम्हारा सौंदर्य मैं हो गया था पागल। ******* तुम्हारे नयन नक्शे पर मैं फिदा हो गया। खुद से तुमको आज तक जुदा नही कर पाया। ******* मत ऐसे सज-संवर के निकला करो बाजार में। हम अपना सब कुछ लूटा देंगे तुम्हारे प्यार में। ******* प्यार की पहली नज़र का भूत अभी तक मुझपर चढ़ा है। परन्तु उसकी तरफ से एक भी कदम आगे नहीं बढ़ा है। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः ...
तुम अब वापस आओ
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तुम अब वापस आओ

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** (यहां लड्डू एक छोटा बालक है, जो माता-पिता से एक अनुरोध कर रहा है कि उसके खातिर अपने रिश्ते कभी ना तोड़े) मम्मा तुम अब वापस आओ, अपने लड्डू को गले लगाओ। अगर हुई है पप्पा से तू-तू, मैं-मैं, उससे तुम मुझे ना बिसराओं।। पप्पा माफी मांगे तो माफ करना, आंख दिखा उनको सचेत करना। आपसी झगड़े में मम्मा-पप्पा, अपने लड्डू को भूल ना जाना।। पप्पा ने कहा यदि कुछ मम्मा को, या मम्मा ने कुछ कहा पप्पा को। भूल कहासुनी में कही बातों को, प्यार देना अपने इस लड्डू को। मम्मा पप्पा आपसी झगड़ों से, मैं होऊंगा एक प्रेम से वंचित। मां मैं हूं आप दोनों का लड्डू , क्यों रहूं फिर प्रेम से बंधित।। पप्पा-मम्मा रिश्ते तोड़ने के पहले, इस लड्डू का ख्याल कर लेना। सपने देखें थे आपने जो मेरे संग, मिलकर उसे पूरा कर देना। मम्मा मेरे खातिर रि...
ढूँढ रही हैं आँखें किस को
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ढूँढ रही हैं आँखें किस को

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* ढूँढ रही हैं आँखें किस को क्या खोया कुछ खबर नहीं है. भटकन-तड़पन-बेचैनी है सब है लेकिन सबर नहीं है। क्या ऐसा था गुमा दिया जो जिसको ढूँढ रही हैं आँखें ग़लत दिशा में हो बाहर की बाहर कोई डगर नहीं है। खुद में ही खुद मंजिल अपनी खुद में ही खुद रस्ता अपना जो खोया खुद में खोया है किसी शहर किसी नगर नहीं है। कैसी तुम को बेचैनी है पहले खुद में खुद पहचानों कैसी भी आफ़त हो खुद में आखिर खुद से जबर नहीं है। ग़ाफ़िल-सा दौड़े खुद में ही खुद का कोई होश नहीं है ज़रा सुकूँ भी पा नहीं पाओ जो गर खुद में ठहर नहीं है। कुछ न कुछ तो खोया लगता कुछ न कुछ असआर ग़लत हैं या तो ये फिर ग़ज़ल नहीं है या फिर इसमें बहर नहीं है। क्या चाहा क्या पा जाओगे क्या मर्ज़ी का जी जाओगे? मरे-मरे जीना पड़ता है यहाँ हौसल...
सरल ह्रदय छला जाता है
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सरल ह्रदय छला जाता है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** एक दिन बदल जाता है सच्चा मन भी बार-२ दोष दो बदल जाता जीवन भी बदलाव से सहजता ही चला जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है मानस के मति की अब कहनी क्या है जीवन समर की आगे नियति क्या है चंचल मन जो वक़्त पर बदल जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है जीवन बन गया क्या कठपुतली जैसा आरम्भ क्या और इसका अंत ये कैसा जो दूसरों के इशारे कैसे चला जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है छलते है लोग जब तक है आप सरल छलाते हुये अक्सर पी लेते कटु गरल खेला किसी के मन से खेला जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है सरल हृदय जब पत्थर जैसे बन जाता सहजता सारी मानस से निकल जाता अब उसे ही पत्थर दिल कहा जाता है सरलता से युक्त मन ही छला जाता है सच की राह मे चलने से डरते है लोग आडम्बर और दिखावे मे उलझें लोग सच नहीं...
अमूल्य रत्न ..
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अमूल्य रत्न ..

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** अट्ठाईस दिसम्बर सन सैंतीस, अवतरण नवल निकुंज, बिखरा जननी सोनू के दामन, अत्युत्तम प्रकाश पुंज। उद्योग जगत क़े अमूल्य रत्न थे, ये दानवीर रतन टाटा, मानवार्थ रहते थे सदैव समर्पित, भुला व्यापार में घाटा। भारतीय उद्योग जगत का जग ने, लोहा माना था सहर्ष, सूई से लेकर हवाई जहाज तक, भारत ने किया उत्कर्ष। पायी शिक्षा स्नातक रतन ने, कार्नेल विश्वविद्यालय से, पचास मिलियन डालर दान की, रख भाव हिमालय से। कम मूल्य पर "टाटा नैनो" लाए, हो उठे उपभोक्ता मगन कर्मपथ पर चलकर ही बनता, स्वर्णिम सबका जीवन। अविवाहित रहना रतन जी का, हर मन को खल गया, शायद किसी की यादों में ही, जीवन सारा निकल गया। पदम् विभूषण, पद्म भूषण से, अलंकृत थे रतन टाटा, नैस्कॉम ग्लोबल लीडरशिप से, शोभित रहे रतन टाटा। नों अक्ट...
आज के आज
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आज के आज

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** देखता हूं आज का काम आज, बेवजह पाल के नहीं रखा हूं रिवाज, हाड़तोड़ मेहनत दिन भर की करता हूं, देखता हूं आज को कल पर नहीं विचरता हूं, दुनिया के लोग कहते हैं 'कल किसने देखा', मुझे कल को देखने की जरूरत भी नहीं, तभी चैन की नींद सो पाता हूं, ज्यादा लंबा दिमाग नहीं लगाता हूं, यदि नींद ही नहीं होगी, तो बन सकता हूं रोगी, अतः मुझे रोग नहीं पालना, आज का आज कल पर नहीं डालना, कल के बारे में सोचने के लिए दुनिया में भरे हैं और लोग, चिंता से उबर नहीं पाते भले ही खाएं छप्पन भोग, न किसी देवता से आस न किसी काले जादू का डर, क्योंकि हमें फुरसत नहीं दिन भर, काम कर अपनी उमर बढ़ाता हूं, बचत,निवेश और टैक्स चोरी की संभावित झंझट में नहीं आता हूं, मरने का डर नहीं तभी तो जीना आता है, डरपोक दिन में कई कई ब...
धर्मयुद्ध
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धर्मयुद्ध

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** धर्मयुद्ध के महासंग्राम में सत्य सदा अजेय रहा। रणभेरी बजेगी, अब धर्म युद्ध का घोष करो। खुद को तुम निर्दोष करो। जो धर्म के साथ खड़ा रहा वह योद्धा रहा। रण में अब कूद पड़ो। शंखनाद करो, तुम प्राचीरों से धर्म युद्ध अविलंब करो। कौन कहता है, महाभारत का युद्ध था। वह तो सिर्फ धर्मयुद्ध का जयघोष रहा। धर्म युद्ध अब सज रहा, सारथी मार्ग प्रशस्त करो। कारण जो भी हो, सच के साथ कृष्ण सदा खड़ा रहा। इतिहास कहता है, धर्म युद्ध में सत्य का प्रहार रहा। चाहे विजय मिले या हर मिले, सत्य कर्म का युद्ध रहे। चाहे वीरगति मिले या विजय मिले, धर्म रक्षा के लिए तू अब क्यों बैठा है। धर्म के साथ जो न रहा, वह धर्म युद्ध के विरुद्ध रहा। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्व...
आदर्श
कविता

आदर्श

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आदर्श युवा की पहचान जैसे अब कम दिखाई देती बुरे व्यवसनो की बेड़ियों ने शायद जकड़ रखा हो। युवा समाज का उत्थान करना चाहे तो क्या और कैसे करें कोई नही बताता। युवा को तलाश है जागरूकता के तरकश की जिसमे पड़े तीर को भी इंतजार है व्यवसन रूपी राक्षस को मारने का कोई तो आएगा युवाओं को आदर्श का पाठ पढ़ाने जो व्यवसन मुक्त कर समाज के युवाओं का उत्थान कर सकें। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर...
ज्ञान एवं अज्ञानता
कविता

ज्ञान एवं अज्ञानता

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** ज्ञानी-अज्ञानी में केवल एक मात्रा का अन्तर है जो मनुष्य के साथ निरंतर है ज्ञानी मृत्यु की वास्तविकता को सहज रूप मे लेता है अज्ञानी संसारी होता है मृत्यु पर क्रंदन करता है! ज्ञान रोने के कारण को मिटा देता है अज्ञान नित नए रोने के कारणों में उलझता जाता है , ज्ञानी हर परिस्थिति में प्रसन्नचित्त होता है वो जानता है समझता है, जो कुछ भी छूट रहा वो मेरा नहीं इस जनम में कुछ भी "मेरा-तेरा" नहीं एक अखंड सत्य है आत्मा का आना जाना परिवर्तन, शाश्वत सत्य है, समझता है! संसारी रूदन करता है, जो कुछ मिला वो उसे अपना अधिकार समझ, स्वयं के परिणामों के फलस्वरुप प्राप्त किया, यही समझता है, जो कुछ छूट रहा उस पर अपना ही प्रभुत्व मान रुदन करता है, यही ज्ञानी-अज्ञानी में भेद का कारण होता है यही अशांति क...
जब भावों में जीते हो
कविता

जब भावों में जीते हो

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जब भावों में जीते हो तो जीवंत हो, हृदय में हो जब विचार में जीते हो मूर्छा में हो, मस्तिष्क में हो। हृदय और बुद्धि एक नही हृदय आपका स्वभाव है उसका अनुभव सत्य का अनुभव है उसकी सुनना ही वास्तविक धर्म है जब बुद्धि में जीते हो बुद्धि से निर्णय लेते हो तब अस्तित्व की अनंत संभावनाओं से चूक जाते हो बुद्धि का और प्रेम का कोई संबंध ही नहीं. बुद्धिमान, चालाक और चतुर प्रेम कर ही नही सकते वे प्रेमी हो ही नही सकते उनके लिए प्रेम व्यर्थ है वे बुद्धि के तल पे जीते हैं लाभ और हानि के गणित में पड़ते हैं और प्रेम से चूक जाते हैं उनके लिए भावजगत संवेदना का जगत निर्मूल्य है महत्वहीन है। वे एक नीरसता भरे जीवन में अकेली पड़ गई आत्माए हैं जो मृत मुर्दा वस्तुओ के लोभ से ग्रसित हैं वे मरणासन्न हैं, य...
सही मैं हमेशा से हूं
कविता

सही मैं हमेशा से हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मुझे बचपन से छोड़ दिया गया था अपनों से दूर गैरों के घर, मजबूरन हो रहा था मेरा बसर, मेरे ही पिता का दिया वे भी खा रहे थे, पर मुझे हरामखोर कह नित गरिया रहे थे, खैर मुझे सहना ही था, उन्हीं के साये में रहना ही था, दूसरों के घर रहना खाना मेरी गलती नहीं थी, बड़ा हुआ तो देखा हालात बदला हुआ, भावनाएं अभी था मचला हुआ, लगना पड़ा घर को संभालना, सभी सदस्यों को काम कर पालना, विवाह, बच्चे के बाद भी कोई सुख नहीं देखे, नहीं चिंता गांव समाज को लेके, पढ़ा लिखा था तो मिला नौकरी, करने लगा सरकारी चाकरी, न कोई बुराई न कोई लत था, बताओ मैं कहां गलत था, संपूर्ण परिवार को खुद संभाला, सबने अलग कर घर से निकाला, बराबर होती रही बुराई, किसी को याद न रहा मेहनत और कमाई, आई रिश्तों में दरार और गफ़लत था, आप ह...
वाचाल सफर
कविता

वाचाल सफर

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मौन रास्तो का वाचल सफर किनारे झाड़ियों के झुरमुट का अथकार ठिठुरती देह को न अलाव हैं न ठहराव खुली किताब है जिंदगी अपनों के लिये कारवां के ठहराव का प्रश्न नहीं उठता। चलते राहें कदम को रोकना, टोकना नामुमकिन है पर रास्तों के मोड़ चिर निद्रा से जगाकर अतीत की गहराईयों में ले जाते हैं कोई नहीं जानता, न जानना चाहता है न सोचना की सत्य क्या है पुनः समानांतर राह पर आकर झंझावावातो के चकृवातो में फंस जाता है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से ध...
लाठी
कविता

लाठी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** बाल कविता कुत्ता पीछे पड़ा दिखा धरती पर पटक जड़ी लाठी। प्राण बचा कर कुत्ता भागा लेकिन खड़ी पड़ी लाठी।। झुकती नहीं टूट जाती है अक्सर बहुत कड़ी लाठी। टुकड़े-टुकड़े हो जाती है कहते रहो लड़ी लाठी।। जब से टूट गई दादा की लकड़ी की तगड़ी लाठी। दादीजी मोटू से बोली ले आ नई छड़ी लाठी।। छोटू-मोटू दोनों भाई लेने चले बड़ी लाठी। धीरे-धीरे चले देखते कहाँ मिले कुबड़ी-लाठी।। बाँसों का बाजार लगा था,बिकती जहांँ छड़ी लाठी। एक परखने को हाथों में मोटू ने पकड़ी लाठी।। उन्हीं लाठियों में लोहे से देखी मूँठ जड़ी लाठी। छोटू बोला यह खरीद लो मोटू तुम तगड़ी लाठी।। छोटी नहीं मिलेगी मोटू ले लो यही बड़ी लाठी। दादा जी के लिए सहारा होती है कुबड़ी-लाठी। लाठी लेकर घर जब पहुँचे कर दी द्वार खड़ी लाठी। दादा खुश हो गए दे...
ऐ ! चौथ के चांद
कविता

ऐ ! चौथ के चांद

निरूपमा त्रिवेदी "नीर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ऐ ! चौथ के चांद तुम आना हर साल लाना आशीष साथ करूं मैं पूजन उपवास दमके बिंदिया मेरे भाल लगाके मेहंदी अपने हाथ सजा के टीका भी माथ पहन के नथ सुहाग ओढ़कर चुनरिया लाल खनकाऊं चूड़ियां हाथ पहनूं पायल बिछिया पांव मंगलसूत्र रहे सदा साथ नैनन लगा कजरा केश सजाऊं गजरा पिया का पाऊं संग प्रीत का घुले रंग गले में बाहों का हार मिले सजना का प्यार रहे मेरा सुहाग अमर सजाऊं मांग सदा सिंदूर परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी "नीर" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
चांद की टीस
कविता

चांद की टीस

माधवी तारे लंदन ******************** चांद आधा आज गगन में कहता है धरती को मन में क्यों मैं पूरी चमक दिखाऊं जब श्रद्धा ही न हो विश्व में जनता भटके भ्रमण ध्वनि में समय नहीं है उनको घड़ी पल बंद कमरे में वीडियो गेम पर देखा करते कृत्रिम चांद बेदर्द पड़े दिल सर्द पड़े भटक-भटक ये कहां चले मुझ पर न किसी की नज़र पड़े कहता है चांद मायूसी में सत्ता की धुन में खोए कुछ अमर्यादित चाल चले ऐश्वर्य का संचयन करते-करते कुमार्ग का चयन कई लोग करें कैसे चमकूं पूरा मैं फिर भारत की संस्कृति छूटी चलते सब पश्चिमी पथ पर कैसे चमकूं पूरा अब मैं यह सोच रहा है चांद मन में अकूत ऐश्वर्य का था वो मालिक स्वयं रहा सदा सादगी में विकास के उस रतन को आखिरी नमन करने आधा ही आया मैं नभ में परिचय :-  माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) अध्यक्ष : अंतर्राष्ट्रीय ह...
बिखरे ना प्रेम का बंधन
कविता

बिखरे ना प्रेम का बंधन

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** अबकी जो तुमसे बिछड़ा, जीते जी मैं मर जाऊंगा। भले रहूं जग में चलता फिरता, फिर भी लाश कहलाऊंगा।। रह लो मुझ बिन तुम शायद, पर, जहां मेरा तुम बिन सूना। छोड़ तुम्हें अब मैं ना जाऊंगी, भूल गई क्यों ऐसा कहा अपना? एक प्रेम तरु के हम दो डाली, कैसे तुम बिन हवा के टूट गई? जीना चाहा था तुम्हारे वादों संग, फिर तुम मुझसे क्यों रूठ गई? कभी तुम सुना देती थी कभी मैं, लड़ रातें सवेरे एक हो जाते थे। जिस रात तुम्हें पास न पाया, उस रात मेरे नैना नीर बहाते थे।। सात जन्मों का है जो वादा, हर हाल है उसे निभाना। मिलकर हम खोजेंगे युक्ति, जग बना यदि प्रेम में बाधा।। अबकी जो तुमसे बिछड़ा, आहत मन से टूट गया हूं। पढ़ रही हो तो वापस आओ, तुम बिन मैं अधूरा हूं ...।। मांगता हूं गलतियों की क्षमा, हाथ जोड़ कर रहा कर वंदन। गलत...