Thursday, December 4राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

पसंद हैं मुझे भी कुछ खास
कविता

पसंद हैं मुझे भी कुछ खास

सौ. निशा बुधे झा "निशामन" जयपुर (राजस्थान) ******************** किसी क्या 'फर्क' पड़ता है। क्या! पसंद हैं मुझे खास। बोलना पसंद है। पर चुप रहती आजकल। सोचती हूँ सह जाऊँ दर्द वो जमाने के, पर क्या? करू वो भी तो अपने हैं खास पसंद में शामिल है। आज नदी, पर्वत, मंद-मंद हवा ये सब बेचेन है। शोर बस मेरा 'मौन' हैं! लिख देती हूँ। कलम में भी तो आवाज़ हैं। हलचल! अब कुछ कम है। अब यहीं 'मुझे पसंद है। चारों ओर से आ रहीं कुछ अनकही बातें, जो न मैने कहीं और न उसने सुनी वो बातें। फिर फिर! क्यों गरज रहें अपवादों के सायें ये भी क्या? सही बात है। पसंद हैं अपनी फिर क्यों! होती इसी बात पर रोज तकरार हैं। परिचय :- सौ. निशा बुधे झा "निशामन" पति : श्री अमन झा पिता : श्री मधुकर दी बुधे जन्म स्थान : इंदौर जन्म तिथि : १३ मार्च १९७७ निवासी : जयपुर (राजस्थान) ...
बीते पल
कविता

बीते पल

निकिता तिवारी हलद्वानी (उत्तराखंड) ******************** बीते पल याद करने में बेचेन हो उठती हूँ सुख और दुख दोनों से गुजरती हूँ सुख ये कि भाग्यवान होंगी जो उस खुशी के पलों में शामिल थी पर उस खुशी से भी ज़्यादा दुखी तब जब खुशी की बात पर सोचती की मैंने यह क्यों नहीं किया? ठोड़ा समय और क्यों नहीं बीताया? अन्त अफशोश करती क्योंकि पता है मुझें वह समय मेरे लिए दुबारा लौटकर नहीं आएगा परिचय :-  निकिता तिवारी निवासी : जयपुर बीसा, मोटाहल्दू, हलद्वानी (उत्तराखंड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्र...
सपने में स्वप्न देखती हूँ
कविता

सपने में स्वप्न देखती हूँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सपने में स्वप्न देखती हूँ, एक दृश्य जिसमें पीड़ा, घुटन और विरक्ति, कहीं कहीं उन्माद है, गहरी खामोशी है ! मैं मेरे विचारों से टकरा रही हूँ ! सपने में जो भी साथ दे, मैं खुद को उसका आभारी समझूँगी, सपनों का विचारों का द्वंद बढ़ता जा रहा है, फिर भी मैं भयभीत नहीं हूँ, हारी नहीं हूँ ! किसी प्रकाश की चाहत है, मुझे खोने का, टूटने डर नहीं है ! अचानक सपने में उम्मीद की किरन से भर उठती हूँ, एक प्रार्थना के शब्द कानो में फुसफुसा रहे है, क्यूँ स्वयं के अस्तित्व को गले लगाना मोह में उलझना, अचानक जाग जाती हूँ, पुनः विचारों में उलझ जाती हूँ, स्वयं से प्रश्न पूछती हूँ, ये स्वप्न था या कोई दुःस्वप्न क्या है ये स्वयं का अस्तित्व, क्या है मोह?? स्वप्न अधूरा है, या अर्थ? सोच को दृढ़ ...
चंपा का फूल
कविता

चंपा का फूल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** चंपा के फूल जैसी काया तुम्हारी मन को आकर्षित कर देती जब खिल जाती हो चंपा की तरह भोरे .तितलियों के संग जब भेजा हो सुगंध का सन्देश वातावरण हो जाता है सुगंधित और मन हो जाता मंत्र मुग्ध। जब सँवारती हो चंपा के फूलो से अपना तन जुड़े में, माला में और आभूषण में लगता है स्वर्ग से कोई अप्सरा उतरी हो धरा पर। उपवन की सुंदरता बढ़ती जब खिले हो चंपा के फूल लगते हो जैसे धवल वस्त्र पर लगे हो चन्दन की टीके सुंदरता इसी को कहते बोल उठता हूँ - प्रिये तुम चंपा का फूल हो। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार ...
प्रेयसी की पाती
कविता

प्रेयसी की पाती

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* पता है कुछ वक़्त बाद हम साथ नहीं होंगे वक़्त करवट लेगा तो सब बदल जाएगा तुम मेरे न रहोगे और मै शायद रहूंगी ही नहीं. हां मगर मै तुमको तनहा नहीं छोडूंगी तुझ संग सदैव रहेंगी मेरी यादें मेरा वो अटूट प्रेम जो मैंने आजीवन तुमसे किया मेरी श्रद्धा. श्रद्धा जो तुम्हारे प्रेम के लिए थी वो भी सदैव रहेगी मेरी मुस्कुराहट गूंजेगी तुम्हारे अंतर्मन में हमेशा यूं ही मेरी आंखो में तुम्हारा अक्स जो तुम्हे हमेशा दिखाई पड़ता था वो भी तुम्हे आंखे बन्द करके समक्ष दिखाई देगा. जब भी कोई हवा का झौंका तुम्हे छूकर गुजरेगा तुम महसूस करोगे मुझे अपने आस पास हमेशा ही तुम्हारे मन में मेरे गीत हमेशा गुंजायमान रहेंगे माना कि मेरी कोई जायदाद नहीं जो तुमको सौंप जाऊं मै मेरे पास तो बस तुम्हारा प्रेम है ...
आजाद परिंदे
कविता

आजाद परिंदे

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** ख्वाबों के जब आजाद परिंदे हकीकत के आसमानों में उड़ते है। बेखौफ कल्पनाओं को सच करने कदम बड़ा चलो कुछ नया करते हैं। वृक्ष लगा सब हरियाली करते सुबह शाम जल सींचा करते हैं। अनाथ बचपन सींचे खुशियां भरते हैं कदम बड़ा चलो कुछ नया करते हैं। रिश्ते ही चहुंओर खुदगर्ज यहां पर अपने ही खुद अपनों से जलते है। द्वेष भूल अपनो के हम गले मिलते हैं कदम बड़ा चलो कुछ नया करते हैं। वृद्धों की अभिलाषाएं मरती एकाकी जीवन में घड़ियां गिनते हैं। कुछ वक्त गुजार अनुभव सुनते हैं कदम बड़ा चलो कुछ नया करते हैं। परिचय :- सूर्यपाल नामदेव "चंचल" शिक्षा : एम ए अर्थशास्त्र , एम बी ए ( रिटेल मैनेजमेंट) व्यवसाय : उद्यमी, प्रबंधन सलाहकार, कवि, लेखक, वक्ता निवासी : जयपुर (राजस्थान) । घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित...
योग की महिमा
कविता

योग की महिमा

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** उषा की लालिमा छायी किरण की कृपा है आई मनोरम, मनोरम अनुपम, अनुपम सुन्दरम्, सुन्दरम् दिव्यता है भाई ब्रह्म मुहूर्त की सुंदरता है मन में आई ऊर्जा मन -प्राण में हमारी सुगंधता योग की अंतरा में उतराई अधो अंग से ऊर्ध्वाग तक शुचि संस्कार शोभा सरसाई अंग अंग हुआ दुकानदार रग रग हुआ सु उन्नत सुयोग में योग की महिमा सरसायी। परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में गद्य, पद्य विधा में लेखन, प्रकाशित पुस्तक : "अस्माकं संस्कृति," (संस्कृत भाषा में) सम्मान : नव सृजन संस्था द्वारा "हिन्दी रत्न" सम्मान से सम्मानित, मुक्त...
हमें रोजगार चाहिए
कविता

हमें रोजगार चाहिए

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** किताबी कीड़ा और रट्टू तोता बनकर की पढ़ाई। दिन, महीने, साल बीते लेकिन नौकरी नहीं आई।। जाग उठा जमीर, बदनसीबी भी हुंकारने लगी है। दु:ख के बादल छा गए, खुशी पुकारने लगी है।। पिता के ताने, पड़ोसियों की हँसी लगे हैं चुभने। छोटी-छोटी बातों से हमारा दिल लगे हैं दुखने।। जनता के बेटे और बेटियाँ भटक रहे हैं दर-बदर। शक्ति की कुर्सी में बैठी सरकार हो गई है बेखबर।। बेगारों का ना आँसू दिखा, ना दिखा दर्द कभी। आस लगाए देख रहे हैं तेरी ओर गरीब सभी।। तुझे राजनीति मुबारक, हमें पद का सौगात चाहिए। खोलो नौकरी का पिटारा, जल्द ही आगाज चाहिए।। अब ना घोषणा, ना वादा, ना बेरोजगार चाहिए। जीवन जीने के लिए हमें सिर्फ रोजगार चाहिए।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., संस्थापक एवं अध्यक्ष य...
फुर्सत और वादा
कविता

फुर्सत और वादा

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वादा था सात जन्मों तक साथ निभाने का, बिना बताए साथ छोड़ नहीं जाने का सोती पत्नी को देख बूढ़ा डर गया, सांस चेक करने से पहले सिहर गया, मगर बुढ़िया जीवित व सजान थी, पति के लिए मंत्र व अजान थी, बूढ़ा बोला तेरे सिवा दुनिया में मेरा कौन है, हमें भुला सारा रिश्ता मौन है, बेटे-बहू को कमाने से फुर्सत नहीं, मोबाईल वाले पोते पोतियों को अपने दादा दादी की जरूरत नहीं, बुढ़िया बोली बुढ़ऊ तुझे छोडूंगी नहीं, तुझसे कभी मुंह मोडूंगी नहीं, मगर अगले दिन बुढ़ऊ जगाता रह गया, बुढ़िया को आवाज लगाता रह गया, मगर बुढ़िया जा चुकी थी बहुत दूर, साथ लेती गयी साथ न छोड़ने का फितूर, वादा भी टूटा,फुरसतियों का साथ भी टूटा, अपनों के साथ छाया भी रूठा, उस बूढ़े का शक्ल मुझे याद आ रहा है, शायद मेरी कहानी को समय आज पहले दिखा रहा है। ...
छत्तीसगढ़ी भाखा
आंचलिक बोली, कविता

छत्तीसगढ़ी भाखा

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी भाखा छत्तीसगढ़ के तँय रहवईया, छत्तीसगढ़ी नइ गोठियावस अड़बड़ पढ़े लिखें हँव कहिके काबर तँय अटियाथस।। अपन बोली, अउ भाखा बर, काबर मरथस् लाज सरम छत्तीसगढ़िया तँय संगवारी कर ले सुग्घर बने करम।। अपन भाखा ल छोड़ के पर के भाखा गोठियावत हस छत्तीसगढ़ी बोली भाखा के तनिक गुन नइ गावत हस।। अपन राज, अपन भाखा के जम्मों झन राखव मान जी छत्तीसगढ़ी बोली भाखा इहि भाखा हमर पहिचान जी।। हमर भाखा छत्तीसगढ़ी संगी, सबों भाखा ले बढ़िया जी तभे तो कहे जाथे संगी, छत्तीसगड़िया सबले बढ़िया जी।। परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
रास्तों से अपनी यारियां
कविता

रास्तों से अपनी यारियां

साक्षी लोधी नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश) ******************** झूमते हवा से मनचले हम कहीं पे क्यों बसर करें ... रास्तों से अपनी यारियां मंजिलों की क्या फिकर करें ... क्या हे जिंदगी के फैसले.. चाहे गम हो साथ में चले मुस्कुराहटों को ओढ के हम तो अपनी धुन में लो चले ... रास्तों से अपनी यारियां मंजिलों की क्या फिकर करें निकले जब सफर के लिए मुडके आशियाना क्यों तकें हस्ते हस्ते काटना सफर फिर क्यों उदाशियां चुने रास्तों से अपनी यारियां मंजिलों की क्या फिकर करें मस्त हो हवाओं संग बहें बादलों को सरफिरा कहें ऊंची चोटियों पे एक दिन जाके आसमां को चूम लें ... रास्तों से अपनी यारियां मंजिलों की क्या फिकर करें परिचय :-  साक्षी लोधी निवासी : नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।...
पुनःस्मृति
कविता

पुनःस्मृति

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मेरी हर बात में तुमको मेरी हर मुलाकात याद आएगी। मेरी हर मुलाकात में तुमको मेरी हर मुस्कुराहट याद आएगी। मेरी हर मुस्कुराहट में तुमको मेरी हर पुकार याद आएगी। मेरी हर पुकार में तुमको मेरी हर आह याद आएगी। मेरी हर आह में तुमको मेरी हर चाह याद आएगी। मेरी हर चाह में तुमको प्रेम की नई राह याद आएगी। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्री...
आषाड़ी बरखा
कविता

आषाड़ी बरखा

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** आज बगीचे में बरखा की, बूँदों ने जब नृत्य किया। है संवेदनशील प्रकृति इस, मूल तथ्य को सत्य किया।। सौंधी-सौंधी गन्ध धरा की, घर-घर तक ले उड़ी हवा। पंख फड़फड़ा कर खुशियों को, आमन्त्रण दे उठी लवा।। काले-काले मेघ गगन में, सघन और गतिमान हुए। चारों ओर धुन्ध सी छाई, घर-घर के मेहमान हुए।। मन मयूर मतवाले होकर, नाच उठे फिरकी जैसे। चित्त भंग हो गए संयमी बदली कुछ थिरकी ऐसे।। कहीं खनन खन खन्न कहीं पर, गमक छमाछम के स्वर हैं। कहीं छनन-छनन-छन्न टपाटप, तमक झमाझम के स्वर हैं।। एक-एक पाँखुरी पुष्प की, नस-नस में मकरन्द लिए। सुरभित करने लगी मेदिनी , मधुरिम-मन्द सुगन्ध लिए।। गदराई डाली पर मद से सराबोर हर खिली-कली। पर फैला पसरी मादकता, झूम उठी तर गली-गली।। तब रति-पति रसराज झूम कर, तरकश बाण टटोल उठा। बरखा...
छोटू
कविता

छोटू

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** छोटू चाय लाना..!! यह कितनी सामान्य सी पुकार है। थडी, ढाबा, कैफे, रेस्टोरेंट, बस, ट्रेन आदि, सब जगह मौजूद है छोटू। गंदी मैली सी धारीदार कमीज, मोटे धागे से सिली हुई फटी पेंट काली हवाई चप्पल पहने हुए। सिर के रुखे उलझे बिखरे बाल, मुख मलिन आंखों में चमक लिए। सूरज की पहली किरण के साथ दौड पडता है छोटू दूर तक, चाय गर्म, समोसे गर्म लिए। सरकार, मैं और आप नहीं जानते उसका छोटू बनने का कारण ? बनी होगी चक्र व्यूह सी कठोर विपरीत परिस्थितियाँ। मजबूरी ही बनाती हर बालक को अभिमन्यु और छोटू। जहां लडता है वह योद्धा बन, घर परिवार जीवन बचाने के लिए। वो अपना अजीज खोकर आया होगा यहां छोटू बनने। मां, बाबूजी या दोनों को ही, जिंदगी की अनाथ पगडंडियों पर। आती होगी याद उसे अपनों की, सिसकियाँ भरता होगा अकेले में। थक हारकर जब दे...
आएंगे जरूर अच्छे लोग
कविता

आएंगे जरूर अच्छे लोग

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** संभावित निश्चित हार को जानते हुए भी हर हालात मुश्किलात में भी सीना तानकर खड़े हो जाना रही है मेरी फितरत, न लालच, न झोल, न कोई गंदी हरकत, सालों साल से लड़ता आया हूं, न समझना कि फितूर बन छाया हूं, जातिय अन्याय और अत्याचार बर्दाश्त नहीं, दिन अभी चढ़ रहा है हो रहा सूर्यास्त नहीं, मंगल अमंगल की बातें मैं नहीं सोचता, समझता हूं मानव को मानव नहीं उसे नोचता, है ताकत जिनके पास शांति उन्हें स्वीकार नहीं, दूध जब गरम न हो कैसे बन पाएगा दही, प्यार व मोहब्बत उन्हें यदि अंगीकार नहीं, खोखले वादे क्यों सुनें हमें भी स्वीकार नहीं, पीठ पर चलाते गोली सीना क्यों न दागते, संविधान के अनुच्छेदों से दूर क्यों हो भागते, सामने खड़ा मिलूंगा हर युग हर काल, उड़ा देंगे धज्जियां सब लेंगे हम संभाल, लोकतांत्रिक देश मे...
अंतर्मन की पुकार उठी है
कविता

अंतर्मन की पुकार उठी है

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अंतर्मन की पुकार उठी है आज मन में कई सवाल उठी है मन से मन की पुकार उठी है सवालों के जवाब से ही सवाल उठी है। जनता ने सरकार से पूछी है पाँच वर्षों की हिसाब मांगी है जवाब सुनकर जनता उलझी हुई है खुद की बनायी सरकार से ही रुठी हुई है। आज अंतर्मन की पुकार उठी है सरकार भ्रष्टाचार करके मस्त बैठी है इधर जनता अत्याचार से त्रस्त बैठी है राजतंत्र के आला-अधिकारी भी, उसी भ्रष्टता वाली बीमारी से ग्रस्त बैठी है। जनता दिन-रात मेहनत कर रही है सरकार उसका हिसाब ले रही है किस पर कितना टैक्स लगाना है सरकार मन ही मन सोच रही है। जनता को चूसने का मस्त बहाना है टैक्स लगाकर शाही खजाना बढ़ाना है कागज़ में ही सभी काम को निपटाना है अधूरे काम की पूरी जानकारी चिपकाना है। आज अंतर्मन की पुकार उठी है सोयी जनता अब जाग चुकी है ख...
रिश्ते
कविता

रिश्ते

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन की इस कडी़ में रिश्ते है अनमोल, अपनी जगह सब कीमती अपनी जगह सब अनमोल। रिश्ते की कीमत बडी़, बडा भाव ओर प्रेम, मीठी बोली प्रेम की मिट जाये सब कलेश, शत्रु से शत्रुता मिटे, मिटे राग और द्वेष, उन्नति समृद्धी है बडे़, विवेक ज्ञान वर्चस्व। जन-धन हानि से बचे, अर्थ का हो संचय, गरीबी बेरोजगारी है मिटे, उन्नत समृद्ध देश। मेल मिलाप भाईचारा प्रगति का है मार्ग, रोजगार व्यापार का जल्दी हो विकास । एकता मै बडी़ शक्ति है, मान और सम्मान, परिवार की एकजुटता शक्ति की पहचान। दुख सुख में सहभागी बनें, रहे सदा यह ज्ञान, सुख दुख के अनुपात का तभी होता एहसास। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपल...
क्षणिक लालिमा
कविता

क्षणिक लालिमा

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** इतना न फूलो अमल तास माँ धरा तो आनन्दित है पाकर लाल बिछावन लेकिन लेकिन अन्य वृक्ष लजाते है देख तुम्हारी लालिमा। कहीं, कहीं तो हरित पर्ण ने लाल दुशाला औढा है और कहीं पत्तो न फूलों को अंजुरी मे समेटा है। श्पाम वर्ण तितली मंडराती मानो काला टीका लगाया हो प्रकृति ने लाल पुष्पों के गाल पर। मोगरा, चम्पा, चमेली जुही कहते हम श्वेत वर्ण बिखेरते पर पर इतना न ही तुम तो अमलतास लालिमा मे नहाते से लगते हो। पर पन्छी का घोंसला नही घनी छाया के बाद भी क्यों आखिर क्यों हे लालिमा क्पा तुम क्षणिक हो बोलो, कुछ तो संकेत दो। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं ...
पढ़े ला जाबो ना
आंचलिक बोली, कविता

पढ़े ला जाबो ना

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) चलव-चलव संगवारी, पढ़े ला जाबो ना। अपन जिनगी ला अब गढ़े ला जाबो ना।। खुलगे जम्मों स्कूल, हो जा तंय तियार। धरले तंय हा बस्ता, गियान के उजियार।। सिकसा के सीढ़िया मा चढ़े ला जाबो ना। चलव-चलव संगवारी, पढ़े ला जाबो ना।। नवा किरन के संग मा, नवा होही अंजोर। पढ़ईया लईका मन ले, चमकही गली-खोर।। लक्ष्य अउ मंजिल कोती बढ़े ला जाबो ना। चलव-चलव संगवारी, पढ़े ला जाबो ना।। मोरो सपना पूरा होही, तोरो सपना पूरा होही। काबिल बनबो, हमरो बर कुछु अच्छा होही।। अगियान अंधियारी ला मेटे ला जाबो ना। चलव-चलव संगवारी, पढ़े ला जाबो ना।। स्कूल सिकसा के मंदिर, गुरुजी रद्दा देखाही। गुरु गियान के भंडार, बिदया के शंख बजाही।। गियान, भकती के कंठी जपे ला जाबो ना। चलव-चलव संगवारी, पढ़े ला जाबो ना।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी...
पिता कि परछाई
कविता

पिता कि परछाई

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** पिता कोई नाम नहीं, एक एहसास है, जो परछाईं बन हर पल मेरे पास है। बचपन में जब पाँव लड़खड़ाए थे, वो थाम के उँगली चलाते थे। मैं हँसूं यही कामना लेकर, ज़ख़्म अपने मन में छुपाते थे।। कभी सिर पे छत, कभी गीतों में, हर रूप में साया बन जाते थे। मैं न गिरूं, यही सोच-सोचकर, अपने घावों को सह जाते थे।। पढ़ाई की रातों में नींद नहीं थी जब पन्नों संग मैं लड़ता था। चाय की हल्की भाप लिए, हर सवाल में संग मुस्काते थे।। मेरी किताबों में जो उजाला था, उसमें उनकी थकन समाई थी। मैं जो कुछ भी बन पाया आज, वो बस उनकी छांव से आई थी।। जब नौकरी की ओर मैं बढ़ा, वो बैग मेरा खुद उठाते थे। भीड़ में पीछे रहते हुए भी, मुझे सबसे आगे बतलाते थे।। मेरे नए शहर की रौशनी में, उनकी आंखों का पानी था। मैं जो खड़ा था मंचों पर, वो नीचे बैठ...
ज़िंदगी तेरा कोई पता नहीं
कविता

ज़िंदगी तेरा कोई पता नहीं

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** ज़िंदगी तेरा कोई पता नहीं कब आती हो और कब चली जाती हो। लोग सोचते हैं शायद किसी का कसूर होगा मगर आती हो तो हज़ारो बेकसूरों को भी अपने साथ ले जाती हो। कोई तड़फता है अपनों लिए कोई रोता है औरों के लिए पर तुम छोड़ती नहीं किसी को भी अपने साथ ले जाने को। जब मरता है कोई एक तो अफ़सोस-ऐ-आलम कहते है सब पर जब मरते है हज़ारों तो ख़ौफ़-ऐ- क़यामत कहते हैं सब। तू भी कभी तड़फती रूहों को अपने गले लगाए ज़रा रोए कर मरते हुए किसी चेहरें को खिल-खिला कर ज़रा हँसाए कर। मानता हूँ की ख़ौफ़ तेरे रोम-रोम में बसा हैं फिर भी किसी मरते हुए इंसा के माथे को चूम ज़रा-ज़रा सा मुस्काया कर। ज़िंदगी तेरा कोई पता नहीं कब आती हो और कब चली जाती हो। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम...
भूल रहे घरेलू कला कौशलता
कविता

भूल रहे घरेलू कला कौशलता

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** न जाने क्यों किन कारण से दिन प्रतिदिन बदल गये अधुनिकता के रंग में ढल गए नए रंगरूप में उमंग-तरंग में चढ़ गए घरेलू कला कौशलता के नुस्खे भूल गए आधुनिकता में बेसुमार रम गए घर की रसोईघर में भोजन पकाने में मिट्टी के सुंदर टिकाऊ चूल्हे धुंए की लोहे की फुँकनी मिट्टी के बने मनमोहक घड़े तांबे पीतल के बने बर्तन मसाले कूटने के मामजस्ते काठ के बने चकले बेलन कांच के अचार रखने के व्याम अनेकों सामानों को अकारण उन्हें भूल गए पकाने की पद्धति में न जाने कितने पिछड़ गए पौष्टिक आहार बनाने में शिथिल पड़ गए भोजनालय की सारी पद्धति भूल गए घरेलू स्वादिष्ट भोजन छोड़ बाहर के स्वाद चखने में बेधड़क रम गए न जाने क्यों घरेलू कला कौशलता अधुनिकता के चक्कर में भूल रहे आधुनिकता के गहराइयों में बेहिसाब गहरे रम गए परिचय...
पिता हूँ… पिता का दर्द जानता हूँ …
कविता

पिता हूँ… पिता का दर्द जानता हूँ …

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** पिता हूँ, पिता का दर्द जानता हूँ ! गम छिपाकर मुसकुराने का मर्म जानता हूँ..!! छाले हो पांव में कोई गम नहीं ! कंधे पर बैठाकर दुनिया घुमाना जानता हूँ..!! जिम्मेदारियों ने जकड़ लिए है पर मेरे ! वरना ख्वाबों के शहर में उड़ना जानता हूँ..!! अपनों की खुशी और अपनों का प्यार ! यही जिंदगी का मकसद मैं भी जानता हूँ..!! मुफ्त में मिल जाएंगे नसीहते हजार ! अच्छी जिंदगी जीने का हर राज जानता हूँ..!! जी रहे है हम भी बेहतर जिंदगी ! पर पिता हूँ, पिता का हर फर्ज जानता हूँ…!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
माँ को मै पलको पे रख लूँ
कविता

माँ को मै पलको पे रख लूँ

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** माँ को मै पलको पे रख लूँ, उनकी बाते सर पर रख लू, गुढ रहस्य की बाते माँ मै, इतिहास के पन्ने हे माँ में, जीवन के सब सपने माँ में, खाने का भण्डार है (अन्नपूर्णा) माँ में, बीते दिनो की याद है माँ में, संस्कृति और संस्कार है माँ में, मान और सम्मान है माँ में, दुनिया के हर अनुभव माँ में। घर मै एक वर्चस्व ही माँ है, घर की एक रौनक ही तो माँ है, बच्चो का तो सब कुछ माँ है, जीवन का एक पथ ही माँ है, भले बुरे की पहचान है माँ में, मन के भाव की पहचान है माँ में, गम को पीना खुशी से रहना, सबको लेकर साथ है चलना, यही भाव तो माँ रहता, घर मै सदा सजग है रहना, चौकन्ना सदा ही रहना, यह सब तो माँ मै ही रहता, मेरा तो यह अनुभव दिल का, बिन माँ के हम (बच्चा) पथ विहीन है रहता, जीवन का पथ माँ से मिलता, शिखर को छूने का सा...
औरत के अनेकों रूप
कविता

औरत के अनेकों रूप

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** औरत के रूप है अनेक, कोई दुष्ट तो कोई है नेक। कोई धारण करे सीता का रूप, तो कोई है सुपर्णखा का स्वरूप।। कोई है साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप, तो कोई धरे कुलक्षिणी का रूप। कोई बढ़ाये अपने कुल का मान, तो कोई करे पूर्वजों का अपमान।। कोई बनाये अपने घर को ही स्वर्ग, तो कोई गृहनाश करके बनाए नर्क। कुछ औरतें कहलाते हैं मर्यादित, तो कोई है डायन से परिभाषित।। कोई पति का दुःख-दर्द सुलझाए, तो कोई कोर्ट-कचहरी में उलझाए। कोई प्राणनाथ के रहे जीवनभर साथ, तो कोई करे पीठ पीछे ही आघात।। कोई अपने स्वामी को आबाद करे, तो कोई घर-परिवार को बर्बाद करे। कोई पति से बेइंतहा मोहब्बत करे, तो कोई उसके नाम से ही नफ़रत करे।। परिचय :-  हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ - बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्...