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कविता

नव वर्ष
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नव वर्ष

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** हे प्रभु आशाओं का सूरज चमके, बीत गया साल बीस अब न रहें कोई टीस। नव वर्ष का अभिनंदन करते, विगत को भूल नव इतिहास रचायेगें। उत्साह उमंग से करें स्वागत, झूमे नाचे गायेगें। प्राप्त संबल हो सतत, उत्कर्ष का आदर्श का, नव वर्ष की कूख से, जन्म हो नित हर्ष का मातृभाव का वरण, हरण हो प्रेम भाव का, शुभ की दृष्टि सतत हो, सृष्टि बनें उजियारी। कलियों सी खिले, जीवन बगियाँ हमारी, रंगो सी रंगीन हो दुनियां सारी। वर्तमान की मिटे त्रासदी, उर में न् ऊर्जा का संचार हो, यथावत जन जीवन हो। नव वर्ष की नव ज्योति, में प्रभु ऐसी जोत जगा देना। नव वर्ष हो हम सबको, चरण चरण अनुकूल, रहे बरसते रातदिन, सुख वैभव के फूल। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - ...
वो ख़त
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वो ख़त

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** डायरी के पन्नों को पलटते, हमें याद आ गए वो तुम्हारे ख़त कितने महके से हुआ करते थे, वो ख़त, खुशी का खाजाना हुआ करते थे, गहरी नींद से जगा दिया करते थे वो ख़त। जागती आंखों में सुहाने सपने संजोया करते थे वो ख़त!! दिल के हालात और जज़्बात से रूबरू किया करते थे वो ख़त समय की इस दौड़ में ना जाने कहां गुम हो गए वो ख़त, ना वो सपने रहे, ना मीठी नींद भरे सुकून के वो ख़त दूर तक फैली खामोशी, हमसे सवाल करती है कभी-कभी तो बातें हज़ार करती है, कि.. चलो पुराने खतों को फिर से ढूंढते हैं, उन्ही शब्दों को नई पहचान देते हैं, सपने तो अब भी छुपे होंगे उन पन्नों में, कुछ अधूरे, कुछ पूरे, क्या पता फिर से चल पड़ें वो सिलसिलेवार, "वो ख़त"!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म...
२०२० तू जा
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२०२० तू जा

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** पाखंडी, निष्ठुर, निर्दयी जारे बीस बीस अब तू जा कर अपना मुंह श्याम कारागार में चक्की पीस तू जा जारे बीस बीस अब तू जा। तूने अपनो से किया अलग आज भी ह्रदय रहे सुलग जीवन से तूने नाता तोडा किया सभी को अलग थलग गांव क्या स्मृति से भी तू जा जारे बीस बीस अब तू जा। आंखों से आँसू पाव से रक्त बहाया तूने रोजी रोटी को तरसाया भूखा प्यासा सुलाया तूने सुनी मांग व गोद कह रही तू जा जारे बीस बीस अब तू जा। मिलना था जो दंड मिल गया मेरी करनी का फल मिल गया अब रखूंगा तालमेल सृष्टि से अब चौकड़ी भरना भूल गया मैं हूँ अब प्रभु शरण मे तू जा जारे बीस बीस अब तू जा जारे बीस बीस अब तू जा। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के...
नाराज हो मुझसे
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नाराज हो मुझसे

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** खपा-खपा लगते हो, बस शिकायत तुझसे, मुंह चिढ़ा बात करते क्यों नाराज हो मुझसे? बस यूं ही बात करते, फुरसत क्षणों में तुझसे, वादों पर खरा उतरा हूं, क्यों नाराज हो मुझसे? कभी झगड़ा ना हुआ, शिकायत नहीं तुझसे, बातें नहीं कर रहे हो, क्यों नाराज हो मुझसे? कभी दिल दुखाया ना, हँसकर बातें की तुझसे, मुंह फेर लेते मिलने पर, क्यों नाराज हो मुझसे? साथ-साथ चलते आये, दूर ना हुये कभी तुझसे, बातें करना गवारा नहीं, क्यों नाराज हो मुझसे? जब भी कष्ट मिला है, पुकारा बस मैंने तुझको, पर अब वो बात नहीं, क्यों नाराज हो मुझसे? साथ खाना खाया हमें, खपा नहीं कभी तुझसे, तुम अलग राह चलती, क्यों नाराज हो मुझसे? रात दिन तुझे चाहा था, मुहब्बत बड़ी थी तुझसे, दूर-दूर छुपकर रहते हो, क्यों नाराज हो मुझसे? खेल अधूरा छोड़ों ना, यह प्रार्थना बसु तुझसे, अच्छा नहीं लग...
रिश्ते
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रिश्ते

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** अजीब से रिश्ते इस दुनिया के अजीब सी है रिश्तों की दुनिया तरह तरह के किरदार मे लोगों को बहकाती दुनिया कोई सगा, कोई सौतेला, कोई अपना तो कोई पराया तरह-तरह के संबंधों को अपने ढंग से निभाती दुनिया लेकिन सब रिश्तों को पीछे छिपी हुई है स्वार्थ की दुनिया बड़ी मुश्किल से मिलेंगे इस दुनिया मे निस्वार्थ के रिश्ते... ऐसे रिश्तों को ही केवल, दिल से निभाती है दुनिया बाकी तो सब दिखावे के है रिश्ते जो सिर्फ बेमतलब निभाती है दुनिया..... रुचि!!!! मत उलझ इन रिश्तों के भंवर में सबको भटकाती है ये दुनिया चलती जाओ बस कर्म पथ पर सुलझती जाएगी ये रिश्तों की दुनिया अजीब से रिश्ते इस दुनिया के अजीब सी है रिश्तों की दुनिया परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयो...
जा रहा हूँ मैं हूँ साल दो हज़ार बीस
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जा रहा हूँ मैं हूँ साल दो हज़ार बीस

कार्तिक शर्मा मुरडावा, पाली (राजस्थान) ******************** जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस, क्षमा करना, नफ़रत स्वाभाविक है, छीना जो है बहुत कुछ, बच्चों से पिता को, बहन से भाई को, पत्नी से पति को, ना जाने कितने रिश्तों से रिश्तों को, कारोबार, ऐशो आराम, सुख चैन, फ़ेहरिस्त लंबी है, द्वेष है, क्रोध है, नाराज़गी है, इच्छा यह सभी की है, कब जाओगे, कब आएगी चैन की नींद, जा रहा हूँ, मैं हूँ साल दो हज़ार बीस।। लौटाया भी है बहुत कुछ मैंने, नदियों को साफ़ पानी, पेड़ों को हरियाली, पहाड़ों को झरने, बेघर पशु-पक्षियों को घर, धड़कनों को सांसें, जीवन को अर्थ, रिश्तों को प्यार, बागों में फूलों की बहार, सर्दी की बर्फ़, गर्मी को ठंडी हवाएं, सूखे को बरसात, ज़िंदगी को मौसमी सौगात, रखना याद हर हार के बाद है जीत, जा रहा हूँ,मैं हूँ साल दो हज़ार बीस।। दुखों को नहीं खुशियों को याद रखना, मिली है जो सीख, उसे सं...
थोड़ी बहुत पिया करो
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थोड़ी बहुत पिया करो

अलका जैन (इंदौर) ******************** ओ सजनी ना कर शराब बंदी मिन्नतें करे दीवाना दो घूंट में तू भी विश्व सुंदरी नजर आती जान जानी कर मेहरबानी दिवाने आने दे आशियाने में दुनिया से क्या पूछे दिवानै से पूछ शराब क्या है जन्नत में भी शराब मिलती बहुत रानी खुशी हो या गम शराब साथ जिसके जन्नत उसकी दिवाने का बस चले तो शराब राष्ट्रीय पेय घोषित करवा डाले सुन सजनी शराब बांट कहलाये बावले सायाने नेता शराब में नहीं कोई खराबी मान मेहबूबा शराब भरे सरकारी खजाने तो काहे नहीं पिये मयकश मयकशी में है कितने मजा एक घुंट तू पीले जानी घूंघट में तेरी जवानी काहे खराब करे जानी तू भी पी के टन हो जा मे भी जन्नत देखू मजा ज़िंदगी यूं ले हम तुम जानू जिसने नहीं पी शराब उसकी जिंदगी समझो आधी हुई बेवजह खराब जानू शराब से जिंदगी बन जाती मान जानू जिसके साथ हम प्याला हो गया इंसान उसकी यारी दोस्ती कभी नहीं टूटे जानू शराब ऐसे रिश्ते ...
मौन
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मौन

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मौन तो, केवल मन से है। जीवन की आपाधापी में, कलह, क्यों........? मन-मन है। मौन तो, केवल मन से है। कौन जीत गया। कौन हार गया। एक लड़ रहा। एक तैयार खड़ा। यह सारी, क्या........? भागमभागी है। जो चुप न रहा। जो कहता ही रहा। यह शब्द भी, बहुत खुराफाती है। जो समझ गया। और मौन रहा।। मन को मथ, ज्ञान रत्न वो ढूंढ लिया। शोर-शोर में सब गया। मन को तो, कुछ न मिला। जीवन मंथन, जब-जब किया। मौन को, मन में जब धरा। लेश यहीं ही वाकि है। शेष यहीं ही वाकि है।। मौन तो, केवल मन से है। मौन तो केवल मन से है।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्...
प्यार ऐसा ही होता
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प्यार ऐसा ही होता

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** धड़कन की चाल बढ़ सी जाती जाने क्यों जब तुम सामने से गुजरती आँखों में अजीब सा चुम्बकिय प्रभाव छा सा जाता शब्दों को लग जाता कर्प्यू देह की आकर्षणता या प्यार का सम्मोहन कल्पनाएं श्रृंगारित आइना हो जाता जीवित राह निहारते बिना थके नैन पहरेदार बने इंतजार के प्यार के लहजेदार शब्द लगे यू जैसे वर्क लगा हो मिठाई में संदेशों की घंटियां घोल रही कानों में मिश्रिया इंतजार में नाराजगी वृक्षों को गवाह तपती धूप ,बरसता पानी फूलों की खुशबू लुका छुपी का खेल होता है प्यार में विरहता में प्यार छूटता रेलगाड़ी की तरह बीती यादों के सिग्नल तो अपनी जगह ठीक है उम्र की रेलगाड़ी अब किसी स्टेशन पर रूकती नहीं प्यार का स्टेशन उम्र को मुंह चिढ़ा रहा जब उम्र थी तब बैठे नहीं गाड़ी में आखरी डब्बे का गार्ड दिखा रहा झंडी। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी व...
चाहत
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चाहत

सुधाकर मिश्र "सरस" किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) ******************** कहानी गूंजे घर-घर में, कर गुज़र ऐसा कुछ तू भी बदल दे ज़ायका सुनने का, शोरगुल के ज़माने में दुनिया में है दम घुटता, ये कैसा छाया अब मंज़र खरे उतरें ना क्यों हम सब, इंसानियत के पैमाने में ओढ़कर चोला रहबर का, लगे रहबरी ज़ताने में पाप का घड़ा है जब भरता, भटकते हैं ज़माने में सब कुछ पाने की चाहत में, तनहा हो गई ज़िन्दगी परेशां होते हैं जब हम, जवाब ढूंढते हैं मयखाने में लूटने मज़ा जिंदगी का, गिर जाते हैं हद से भी बात जब आती अपने पर, कहते भूल हुई अंजाने में परिचय :-  सुधाकर मिश्र "सरस" निवासी : किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) शिक्षा : स्नातक व्यवसाय : नौकरी पीथमपुर जन्मतिथि : ०२.१०.१९६९ मूल निवासी : रीवा (म.प्र.) रुचि : साहित्य पठन व सृजन, संगीत श्रवण उपलब्धि : आकाशवाणी रीवा से कहानियां प्रसारित, दैनिक जागरण रीवा से ...
पतंग
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पतंग

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आकाश में उड़ती रंगबिरंगी पतंगे करती न कभी किसी से भेद भाव जब उड़ नहीं पाती किसी की पतंगे देते मौन हवाओं को अकारण भरा दोष मायूस होकर बदल देते दूसरी पतंग भरोसा कहा रह गया पतंग क्या चीज बस हवा के भरोसे जिंदगी हो इंसान की आकाश और जमींन के अंतराल को पतंग से अभिमान भरी निगाहों से नापता इंसान और खेलता होड़ के दाव पेज धागों से कटती डोर दुखता मन पतंग किससे कहे उलझे हुए जिंदगी के धागे सुलझने में उम्र बीत जाती निगाहे कमजोर हो जाती कटी पतंग लेती फिर से इम्तहान जो कट के आ जाती पास होंसला देने हवा और तुम से ही मै रहती जीवित उडाओं मुझे? मै पतंग हूँ उड़ना जानती तुम्हारे कापते हाथों से नई उमंग के साथ तुमने मुझे आशाओं की डोर से बाँध रखा दुनिया को उचाईयों का अंतर बताने उड़ रही हूँ खुले आकाश में। क्योकि एक पतंग जो हूँ जो कभी भी कट सकती तुम्हारे हौसला खो...
गीता जयंती विशेष
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गीता जयंती विशेष

डॉ. सर्वेश व्यास इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** इस बार २५ दिसंबर २०२० को मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि है, जिसे मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इस दिन गीता जयंती का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। गीता ऐसा ग्रंथ है जो कि बुद्धि की शरण में जाने के लिए व्यक्ति को प्रेरित करता है। वह पूर्ण वैज्ञानिक तरीके से मन को वश में करने का मार्ग बताता है। इसी संदर्भ में प्रस्तुत है कविता- हे मन हे मन, जो तुझे प्राप्त है उसकी कद्र नहीं और अप्राप्त के पीछे भागता है। जैसे कोई कामि पुरुष सर्वगुण संपन्न पत्नी को छोड़ पड़ोसन को ताकता है।। इन कामनाओं का स्वभाव भी अजीब सा, समझ में नहीं आता है। पेट भरता हूं जितना उनका, उतना खाली रह जाता है।। सुख-चैन की आहुति देकर, मैंने इनको पाला है। सच कहूं तो ऐसा लगता, जैसे आग में घी डाला है।। काम, क्रोध, मद, लोभ से भरा मन, तो गंदा नाला है। मत उलझ मर जाएगा यह तो...
अलविदा २०२० को यारो
कविता

अलविदा २०२० को यारो

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** २०२० ने हमें रूलाया है काफी ज़ख़्मो को पाया है महामारी है ये यारो अपनो से भी बिछुड़ाया है कोरोनो ने सताया भी तो घर मे रहना सीखाया है दो गज रख दूरियां अपनी ऑखो से सब कुछ पाया है गम हो या जश्न अपनो ने हमे आकर भी उठाया है खो गए नाते रिश्ते हमारे मोबाइल ने फिर जगाया है मंज़िल के आगे तूफां हारते मास्क ने हमें सिखाया है गर इरादे पक्के सामने हो मुश्किल को आसां बनाया है अलविदा २०२० को यारो मोहन २०२१ अब आया है परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
कैसा रहा साल २०२०
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कैसा रहा साल २०२०

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** २०२० की पहली रात खौफ आया, रात १२ बजे से पूरे देश को जगाया। जो वर्ष की पहली रात में सो जायेगा, सुबह वो स्वयं को पत्थर बना पायेगा। वर्ष के प्रारंभ में हुदहुद सुनामी आया, पूरे देश में वह अपना दहशत फैलाया। मार्च २०२० को कोरोना देश में आया, पूर्णरूप से विश्व में हाहाकार मचाया। माह बीतने जाने वाले को हैं अब दस, मैने अब तक एक भी बनाये नहीं बस। हम सभी आपस में मिल करते चरचा, धन्य ये कम्पनी जो दे रही हमें खर्चा। समुद्री तुफान भी त्रासदी खूब मचाया, हवाई अड्डे में ज्यादा पानी घुस आया। दिसंबर बीतने वाला है डियूटी के बिन, अभी तक नहीं बना कोरोना वैक्सीन। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां...
आभिलाषा
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आभिलाषा

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज उत्तर प्रदेश **************** नया साल में नए निर्माण में सबको नये संकल्प लेना चाहिये। प्रखरता सूर्य, वचन येशू, वर्षा ज्ञान समर्पण पुष्प जैसा चाहिये। समय, श्रम, भाव अर्पण, विश्वास, मन मधुरता, सुविचार चाहिये। भिन्न चाहे इष्ट हो, या भिन्न पुजा-अर्चना मिलजुल कर रहना चाहिये। राष्ट्र-जागरण की धारा लहराकर भाव-भुमि सबल चाहिये। सुप्रभहरीश्रेष्ठ सजगता, शक्ति, प्रबलता से नया संसार रचना चाहिये। नये-सूरज की किरण से क्रूरतम-दु:स्वप्न तम टूटना चाहिये। बहुत ढोया है मनुजता ने, अँधेरे शाप की पीड़ा से छूटना चाहिये। जनशक्ति को जाग्रत कर नव प्रवाह की दिशा में चलना चाहिए। ले मशाले ज्ञान की लोक-मंगल-पथ, सभी को सुझना चाहिये। लोक सेवा के साथ प्राकृतिक की तन-मन-धन से सेवा करनी चाहिए। "रश्मि" कहती परमेश्वर से नव वर्ष मे मास्क, दोगज दुरी सेनेटाईजर से छुटकारा चाहिये। परिचय :- डॉ. रश्म...
काश! मै प्रधानमंत्री होता
कविता

काश! मै प्रधानमंत्री होता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** काश! मैं देश का प्रधानमंत्री होता तो पाक को आखिरी सबक सिखाता फिर भी न मानता तो इतिहास में रह जाता। जाति धर्म का भेद मिटाता आरक्षण हटाता, हर गरीब को शिक्षा के लिए आर्थिक सुविधा का कानून बनाता मजहब के नाम पर फूट डालने वालों दंगा करने/कराने वालों को आजीवन कैद का कानून बनाता। देश विरोधी बयान या कृत्य वालों का नागरिक अधिकार छीन लेता। हर जन प्रतिनिधि की जवाबदेही तय करता। जनता को चुने जन प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार देता। नाम के साथ जाति लिखना बंद करा देता। एक देश, एक विधान, एक संविधान सख्ती से लागू करता। बहन बेटियों से जो भी करता अनाचार/अत्याचार उसको जीवनभर जेल में रखने का प्रावधान करता। नकसलियों, आतंकवादियों, उपद्रवियों को सीधे गोली मारने का फरमान सुनाता। पूरे देश में गौहत्या पर रोक का कानून बनाता। समान ना...
हमें मोहब्बत सिखा रहे हैं
कविता

हमें मोहब्बत सिखा रहे हैं

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** पानी में कागज का घर बना रहे हैं लोग सूरज को ही अब रोशनी दिखा रहे हैं लोग। हमीं से सीखकर मोहब्बत का ककहरा आज हमें ही मोहब्बत सिखा रहे हैं लोग। है पता जबकि की टांग की टूटेंगी हड्डियां फिर भी हर बात पर टांग अड़ा रहे हैं लोग। थी मांगी दुआएं जिनके लिए मैंने कभी बददुवावों से मुझको नवाजे जा रहे हैं लोग। जग हंसाई की चिंता को कर दरकिनार खून के रिश्ते से ही सींग लड़ा रहे हैं लोग। सियासी शैतान हवाओं को बिना समझे ही मजहब के नाम पे खून बहा रहे हैं लोग। कलम से कायम,दिलों पे बादशाहत अपनी पर जानबूझ के मेरा दिल दुखा रहे हैं लोग। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प...
मोक्ष
कविता

मोक्ष

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** न लिखने की इच्छा है न छपास की मन खाली हो गया है वाह प्रयास की न मिलने की इच्छा है न बिछड़ने की प्रेम के साथ जाती रही इच्छा लड़ने की न कुछ पाने की इच्छा है न ही खोने की पूर्णता, विराम है मरने जीने की न आगमन है न गमन है नही बात शंका की मुमुक्षु नही रहा अब मैं जय हो मोक्ष की। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्ष...
वर्ष का पारा
कविता

वर्ष का पारा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** उतरता जा रहा है वर्ष का पारा दिसम्बर में। सिमट कर रह गया है वक़्त अब सारा दिसम्बर में। अभी से विश्व में 'इक्कीस' के स्वागत की चर्चा है बिछड़कर जा रहा सन् 'बीस' है प्यारा दिसम्बर में। नए में जोश कितना था, पुराने में उदासी है जो जीता जनवरी में था वही हारा दिसम्बर में। निरन्तर रात-दिन ही जगत में रहता समय अविरल नहीं थमती समय की अनोखी धारा दिसम्बर में। गया शैशव तथा अब ढली है तरुणाई भी उसकी हुआ बूढ़ा है लगता वर्ष बेचारा दिसम्बर में। विविध संगीत स्वर स्वागत में गुंजित जनवरी में थे सुनाता है बिदाई गीत इकतारा दिसम्बर में। "कहाँ रुकता समय संसार में मेरी तरह लोगो" कह रहा 'रशीद' अनमन एक बंजारा दिसम्बर में। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, ...
बंधन
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बंधन

रेखा दवे "विशाखा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बंधन तो बंधन होते है। संबंधों का वंदन है। माँ का मान बढाती है। उस वीर वधू का वंदन है। संस्कारों कि पहनकर माला, जोड़ा दो परिवारों को। अपने स्नेह से सिंचित कर, सुरभित किया घर आँगन को। मेहंदी हाथों में सजी है, नयन स्वप्न लीन है। स्वयं को श्रंगारित करती, वीर की प्रतीक्षारत रहती। वीर वधू का वंदन है। उस वीर वधू का वंदन है। माँ का मान बढाती है। उस वीर वधू का वंदन है। परिचय :- श्रीमती रेखा दवे "विशाखा" शिक्षा : एम.कॉम. (लेखांकन) एम.ए. (प्राचीन इतिहास एवं अर्थ शास्त्र) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान में : श्री माधव पुष्प सेवा समिति कि सामाजिक कार्यकर्ता एवं श्री अरविन्द सोसायटी कि सदस्य व श्री अरविन्द समग्र शिक्षा अनुसन्धान केंद्र के अन्तर्गत नव विहान शिक्षा अकादमी कि पूर्व संचालिका। रूचि : अध्ययन, सृजन, श्री अरविन्द शिक्षा क...
सोच बदलो
कविता

सोच बदलो

सपना दिल्ली ******************** आगे निकलने की होड़ छोड़ मिलकर कदम बढ़ाओ बदलो न रास्ता मुश्किल में देख बन दुख में साथी दूसरों की हिम्मत बँधाओ घर, बाहर बहू -बेटी, महसूस सुरक्षित करें हो न शोषण मिले सम्मान ऐसा तुम संसार बसाओ। हो न कन्या भ्रूण हत्या केवल पढ़ाओ नहीं उसे सपनों की उड़ान की आज़ादी दिलवाओ भ्रष्टाचार, अत्याचार का मिटे निशान भाईचारे की रीति हो ऐसा प्रेम का तुम संसार रचाओ। सबको मिले न्याय ठोकर न खाए आम जन दर दर की ऐसा न्यायतंत्र बनाओ। सबको  मिले रोज़गार भूखा न सोए कोई मजबूर सिर पर सबके हो छ्त बेसहारा को सहारा मिले सम्मान बड़ों का हो दुश्मन भी बढ़ाए दोस्ती का हाथ... ऐसी दुनिया का निर्माण कराओ! परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी) साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अध...
नया साल नया दौर
कविता

नया साल नया दौर

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** जीवन के रंग मे खुशियों के संग मे, सुबह की लाली, घटा शाम की तन्हाई मे, हरे-भरे पेड़ों पर, चिड़िया चहकती रहें, खेत-खलिहानों में, फसल लहलहाती रहे, नयी रोशनी में, नये जीवन की शुरुआत हो, सबको जीने की नई दिशा, नयी राह मिले। गाँव मे खुशियों की, नयी सौगात हो , सबको अपनी अभिव्यक्तियों का नया संसार मिले। मन मस्तिक मे नव दुनिया की स्वागत की आशायें हो, जीवन मे नये उद्देश्यों की लौ जले, प्रेम की ज्योति जले खुशबुओं की महक उठे, विज्ञान, तकनीकी, साहित्य की ज्वाला और जले, दुनिया में कला, नृत्य, लोक नृत्य का विकास हो, सभ्यता और संस्कृति का नया आयाम मिले, दुनियाँ में सभी का सभी से भाईचारे का संबंध हो, ना झगड़ा ना झंझट, न हाथापाई का वास हो, राहों-राहों मे दिल और प्यार का मिलन हो, जाति धर्म को मिटाकर सबकी धड़कनो की आवाज़ बनों, ऐसी हो नये साल की शुरुआत ...
रस्मो रिवाज
कविता

रस्मो रिवाज

श्रीमती आभा चौहान अहमदाबाद (गुजरात) ******************** यह रस्मो के बंधन है प्यार के धागे न जाने क्यों लोग इससे है दूर भागे ये रस्में कोई बेड़िया नहीं यह तो अपनी संस्कृति अपनी पहचान है पाश्चात्य संस्कृति को छोड़ो अपने देश का यह अभिमान है प्रेम से अपनाओगे गर इन्हें तो अपनों का मिलेगा प्यार रस्में निभा लोगे हंसते हुए तो खुश होगा सारा परिवार हां कभी-कभी इन को निभाने में शायद होता है थोड़ा मुश्किल पर है तो यह संस्कार हमारे हम सबकी रगो में हैं शामिल यह एक रस्म ही तो है , भाई के सर पर बंधा हुआ सेहरा कलाई पर बंधी राखी भाई के प्यार हो जाता है इससे और गहरा कितनी सुंदर है यह रस्मे दिल से इन्हें अपना लो दूर मत भागो इनसे गले से अपने लगा लो। परिचय :- श्रीमती आभा चौहान निवासी :- अहमदाबाद गुजरात घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
याद है
कविता

याद है

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** सिहर उठता बदन खिल उठती सांसे कि उनका आगोश में आना याद है। सर्द हवाओं का धुंध सा पर्द मौसम मानो छिपा रहा हो फिजा के रुखसार छिपते सूरज सी तेरी; मुस्कान याद है... गुनगुनी धूप, मद्दम पैरों के थाप सरीखे दबे पाँव बिखेरने आती हो खुशरंग, गुलों का मुड़कर उस ओर तेरी तरह इतराना; याद है। होले से रेशमी दुपट्टे का; नाजुक डालियों की तरह लहराना पंखुडियों जैंसे गुलाब की अधरों का खिल जाना फिर कहीं छिप जाती रश्मि; जाने कहाँ? कलियों की धीमी ढ़िढ़ुरन जैसा; तेरा वो शर्माना, याद है। परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम साहित्यिक उपनाम - अर्चना अनुपम मूल निवासी - जिला कटनी, मध्य प्रदेश वर्तमान निवास - जबलपुर मध्यप्रदेश पद - स.उ.नि.(अ), पदस्थ - पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय जबलपुर जोन जबलपुर, मध्य प्रदेश शिक्षा - समाजशास्त्र विषय से स्नात्कोत्तर सम्मान - जे.एम.डी. प...
मासूम चेहरे का राज
कविता

मासूम चेहरे का राज

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** बड़ा कातिल चेहरा है, होता है जन को नाज, लो तुम्हें मैं बतलाता, मासूम चेहरे का राज। प्यारी सी सूरत लगती, सिर पर रखा है ताज, बहुत छुपा रखा जन, मासूम चेहरे का राज। धर्म कर्म की बात पर, हो जिस पर हमें नाज, कृति के पन्नों में छुपा, मासूम चेहरे का राज। देेश सीमा पर जा रहे, सुरक्षा उनके सरताज, कहीं पैर न डगमगाएं, मासूम चेहरे का राज। हसरतें छुपा प्यार की, दफन हैं दिल में राज, भेद अब न खुल जाये, मासूम चेहरे का राज। मां का साया उठ गया, पिता नहीं रहे हैं आज, दर्द भरा दिल पुकारता, मासूम चेहरे का राज। राज्य भर में टाप रहा, हर मानव को है नाज, मन ही मन छुपा रहा, मासूम चेहरे का राज। गणेश जी ध्यान धरा, संपूर्ण हुये सब काज, सारी खुशियां छुपाई, मासूम चेहरे का राज। सूदखोर लो खा रहा, गरीब जन का ब्याज, आगे की सोच बताए, मासूम चेहरे का राज। चरव...