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कविता

मुझे अफसौस रहेगा
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मुझे अफसौस रहेगा

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** वक़्त कभी रूकता नहीं, समय के चक्र को खुद आदमी ने अवरूद्ध कर दिया साथ ही मौत का जिम्मेदार हैं, मौत के सौदागर बन गये हवाओं में ज़हर नहीं घुला, पत्थरों के जंगल आज की समस्या है, वन उपवन, जल-थल उजाड़कर अब आंसू बहा रहा है। फिर उसने आकर कहा मौत हूं मैं पहचाना हमदम हूं तेरी, तेरी जिज्ञासा को जानकर आई हूं करीब तेरे आदमी आदमी का दुश्मन है, ज़िन्दगी का उसके लिए कोई मायने नहीं वहां ईश्वर को झुठलाने लगा है, उसकी बनाई सृष्टि को अणु परमाणु हथियारों से तबाही मचाने वाला है। अगर समय रहते नहीं जागा तो महाप्रलय आयेगा सब नष्ट हो जायेगा। मौत हमेशा समय के चक्र साथ होगी परन्तु जिन्दगी नहीं फिर कई युगों तक मुझे जिंदगी के आने का इंतजार रहेगा मुझे कभी दोष न देना मुझे दुःख है पत्थर दिल नहीं गगन इंसानौं की तबाही याद रहेगी हम दर्द साथी में आंसू बहाती रह...
वक्त का ये दौर
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वक्त का ये दौर

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** वक्त का ये दौर भी गुजर जायेगा, बारिशों का मौसम, फिर आयेगा, गर, महफूज़ रहे, अपने घर में हम, खुशियों की, सौगात, फिर लायेगा, मायूसी को दर किनार कर ए दोस्त, फिज़ा की रौनक, को, लौटा लायेगा, न रहो आप किसी भी कशमकश में, जहां, ये फिर जिन्दादिल ही कहलायेगा, फिक्र न कर तू, बेबुनियाद खबरों की, कल का सूरज, फूलों की खुशबू लायेगा परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति...
हुनर
कविता

हुनर

रीतु देवी "प्रज्ञा" दरभंगा (बिहार) ******************** हुनर के बाजार में मेरे सीखने की चाह की उड़ायी जाती है हंसी। रहूं खुश रख सकूं दूसरों को खुश चाहे जितनी जतन करनी पड़े मुझे। देख मेरी लगनशीलता टीका टिप्पणी होती बहुत पर परवाह करती न कभी। न बननी मुझे कठपुतली बनना है सच्चा नागरिक हुनर के बाजार में उड़ायी जाती है हंसी। कहती हूं दिल की बातें चाहे माध्यम हो कोई खेलती हूं मिट्टी से भी सीखना चाहती कला हिम्मत की डरू नहीं,लड़खड़ाऊं नहीं। बस चलती रहूं अनवरत हुनर के बाजार में उड़ायी जाती है हंसी। हो मुझमें देशप्रेम न करूं धोखा सीख कर कोई हुनर हुनर के इस बाजार में उड़ायी जाती है हंसी। परिचय  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्र...
मन की विवेचना
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मन की विवेचना

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** अनुराग अनुभूति मिला आज आनुषंगिक, निरूपम अद्वितीय शून्यता हुआ! देख अपकर्ष अपरिहार्य के साथ। यदा-कदा अनुकंपा, अनुकृति अहितकर असमयोचित इंद्रियबोध रहित! अक्षम अनभिज्ञ बता रहे पारायण ज्ञान। अदायगी अविराम ले रहा तंद्रालु बन गया में, क्लेश अग्रवर्ती पूर्वाभास से अचवना कर रहा में, अचल मन पर अज्ञ तन अशिष्ट बेतहाशा बढ़ रहा में। मीठा कथन सबसे बड़ा, होता भेषज प्रतीक हरती विपदा सब जहाँ, मनुज ये तू है तीक्ष्ण! मुकुर निरर्थक बन जा पहली बार, वृत्ति की मुक्ति अन्वेषण सुरभोग सुधा बन बैठा में। सिमरसी वैराग्य सर्वस्व अर्पण सारथी मन टूट रहा अपरिग्रह कर गया में! पुलकित आलोक अत्युच्च उत्सर्ग अनुग्रह आज, स्मरणीय दायित्व निर्वहन नवीन नवोन्मेष के संग। बड़भागी पुरईन बोरयौ परागी प्रीति में, बिहसी कालबस मंद करनी काज,...
औरत ही औरत की शिकारी
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औरत ही औरत की शिकारी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** औरत ही औरत की शिकारी सबसे भयानक रूढिवादिता की बीमारी न दे उचित योग्यता को महत्व स्त्री ही स्त्री पर जमाए उच्च पद का प्रभुत्व स्वाधिकार मे अधीन स्त्री का क्षीण करे अस्तित्व कभी सास रूप में बंधिश बहु पर, हो जैसै बंधुआ मजदूर कुछ गलती होने पर ओरो से तुलना और कर दे मशहूर स्वैच्छिकता पर रोक, बस ताने सुनने को करे मजबूर पराए घर से आई सास, पराए घर से ही आई बहु स्वनिर्मित प्रथाओ को, सास की जैसे बहू निभाए हूबहू सास-बहू दोनो का ही है समान अधिकार उच्च पद के रौब में, उत्पन्न होता मानसिक विकार जरा सी सोच कि, स्वयं को मुझसे ज्यादा न समझ ले हमने जो जो सहा तो वही सब, ये क्यों ना सह ले मानसिक तौर पर वही औरत, दूसरी औरत का करती शिकार जिसमें अयोग्यता और आत्मविश्वास की कमी का हो विकार समान कार्यस्थल पर नए योग्य सहकर्मी से ऐसा विद्वेष जैसे स्त्री ही स्त्र...
कण कण में भगवान
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कण कण में भगवान

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** मन को बनाकर मंदिर अपने, प्रभु की मूरत को बैठाना। सबके अंदर वास प्रभु का, बात कभी तुम भूल न जाना।। प्रभु का कोई स्थान नही है, और नही है कोई आकार। खोजो तो प्रभु नित्य मिलेंगे, लेकर भिन्न भिन्न रूप साकार।। जिस क्षण तुमको मदद चाहिए, तब बन प्रभु आते मददगार। और देकर अपना कोमल स्पर्श, वे ही लुटाते तुम पर प्यार।। कभी वे आते मातृत्व रूप में, देते हमको लाड़ दुलार। माँ की आँखों में झाँको तो, दिखेगा ईश्वर का संसार।। कभी किसी कृतज्ञ को देखो, दिखेंगे उसकी आँख में भगवन। उसके भावों को गर पढ़ लो, तब हो जायेगा प्रभु का दर्शन।। देखो एक नन्हें से बच्चे को, गौर से देखो भोलापन। जहाँ नही छल ,कपट ,द्वेष, हो ऐसे मन में प्रभु का वंदन।। देखो हरे भरे खेतो को, लहलहाती गेहूं,,चना की बाली। क्षुधा उदर की शांत हो जिससे, यही है प्रभु की मुस्...
आँसुओं की कहानी
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आँसुओं की कहानी

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** अश्रु हमेशा कहते कहानी। कभी नई तो कभी पुरानी। अश्रु हमेशा कहते कहानी। खुशी के पल में भी आंँखों से ढुलक आते। दुख में भी पलकों का बाँध तोड़ बह जाते। हमेशा चुगली करते दुखों की। प्रेम की कहानियाँ भी सुनाते। नैनों में झिलमिलाते आँसुओं की है ये रीत पुरानी। अश्रु हमेशा कहते कहानी। कोई अपना हो या पराया, दर्द का समंदर हो या नन्हा-सा साया। आंँखों की ढकनों से छलक ही जाते। इनकी कथा जानी-पहचानी। अश्रु हमेशा कहते कहानी। इन्हें चाहो या तिरस्कार करो, इकरार करो या इंकार करो। कहाँ ये सुनते किसी की। जब भी भाव से भरे मन, बहने लगता आँखों से पानी। अश्रु हमेशा कहते कहानी। कभी नई तो कभी पुरानी, अश्रु हमेशा कहते कहानी। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड. जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी निवासी : पुणे, (महारा...
पंथी अभी चलना है
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पंथी अभी चलना है

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पंथी तुझको पंथ पर चलना है, तुझको चलता देख दिवाकर, नभ से अनल झरेगा। तेरे पाँवों को टकराने, सांसे पवन भरेगा, पंथी ये बांधायें तुझे, कुचलना है। पंथी तुझे पंथ पर चलना है। तुझको पथ पर देख चँन्दमा, मेघों मे छुप जायेगा, पूनम की उजली रात दूधिया, काजल सी कर जायेगा। दीपक बन कर तुझे रात में चलना है। यदि राह पर चलें निरंन्तर आशा बगियां फूलेगी, सपनों की कोयल सच्चाई के सुघर हिडोलें झूलेगी। दिनकर बनकर तुझे, भोर में पलना है। तुझे पंथ पर चलना है। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखन...
भारत मां के वीर जवान
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भारत मां के वीर जवान

अनन्या राय पराशर संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) ******************** हम दिल से करते हैं बस एक ही काम भारत मां के वीर जवानों तुमको सलाम चट्टानों से डट के अड़े हैं मां के वीर सरहद पे तैयार खड़े हैं मां के वीर इस मिट्टी के कण कण में है तेरा नाम हम दिल से करते हैं बस एक ही काम भारत मां के वीर जवानों तुमको सलाम सारी कली का बाग़ यहीं है दुनिया में देश हमारा सबसे हसीं है दुनिया में देश ये अपना ईश्वर का है इक इनाम हम दिल से करते हैं बस एक ही काम भारत मां के वीर जवानों तुमको सलाम मीठी मीठी बोली में है देश का हुस्न रंगो की रंगोली में है देश का हुस्न इसकी छाया में ही मिलता है आराम हम दिल से करते हैं बस एक ही काम भारत मां के वीर जवानों तुमको सलाम संदल की खुशबू वतन का वातावरण गंगा जी से शुद्ध हुआ हर अंतःकरण चारो दिशाओं में है यहां पाकीज़ा मक़ाम हम दिल से करते...
यह कैसा …… वैशाख
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यह कैसा …… वैशाख

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी की बैसाखियों पर, चलकर ..............यह आज, कैसा ..........वैशाख आया। न आज भांगड़े हैं। न मेले सजे हैं। फसल कटने -काटने का, किसे ख्याल आया।। ज़िंदगी की बैसाखियों पर, चलकर आज, कितना मजबूर वैशाख आया। गेहूँ की फसल का, घर के, आंगन में आज न ढेर आया। कोरोना विस्फोटक हुआ। मेलों की रौनक का, न किसी को चाव रहा। जिंदगी को, पिछले साल से, कहीं ज्यादा मजबूर पाया। दिहाड़ी -दार अपना दर्द, ढोल की तान पर ना भूल पाया। जिंदगी की बैसाखियों पर, चलकर यह कैसा वैशाख आया। वह हल्की गर्म हवाओं के साथ, न तेरी धानी चुनर का, पैगाम आया । यह कैसा ......!!! उदास ...........???? ऊबा हुआ वैशाख आया। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक...
प्यार की ठंडी फुहार
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प्यार की ठंडी फुहार

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** प्यार में, जब होता है, इंतजार, खुशियों के, गुब्बारे ऊडते हजार, दिन रात चैन कभी पडता नहीं, सफर भी, ये लगता है, फिर बेजार, कभी न की हमनें उनसे बदज़ुबानी, जाने, किस बात की, है उन्हें तकरार, बारिशों में जब भीग गई सारी कायनात, हमनें, फिर मोहब्बत का, किया इज़हार, दिलवर की, नज़र-ए-इनायत, क्या हुई, तन्हा दिल पर पडी, प्यार की ठंडी फुहार परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये ह...
कोई कह दो की ये सब खत्म होगा
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कोई कह दो की ये सब खत्म होगा

माधवी मिश्रा (वली) लखनऊ ******************** जिधर भी देखती हूँ रात्रि का पहरा जड़ा है पराजित हो तिमिर से भाष्कर जड़वत खडा है उजालो का कोई साथी यहाँ का तम हरेगा कोई कह दो की ये सब खत्म होगा समय के सामने रख कर करारी हार का शव अगर तू पूछता है क्यूँ हुआ इतना पराभव नहीं ये सच नही कह कर हमारा भ्रम हरेगा कोई कह दे की ये सब खत्म होगा कहाँ से आ गया भटका हुआ मनहूस साया जहाँ जो भी मिला इससे वही है मात खाया मिलेगा कौन जो अभिमान इसका कम करेगा कोई कह दो की ये सब खत्म होगा हमारी वत्सला धरती कभी क्या फिर हरी होगी विविध आभूषणो से युक्त मुक्ता की लड़ी होगी कौन फिर आ सकेगा जो की इसका क्रम बनेगा कोई कह दो की ये सब खत्म होगा। परिचय :- माधवी मिश्रा (वली) जन्म : ०२ मार्च पिता : चन्द्रशेखर मिश्रा पति : संजीव वली निवासी : लखनऊ शिक्षा : एम.ए, बीएड, एलएल बी, पीजी डी एलएल,...
सामना करुँ
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सामना करुँ

अभय चौरे हरदा (मध्य प्रदेश) ******************** कैसे जाउँ मै पास उसके कैसे मैं सामना करू। कल तक जो खिल्ती थी सुहाग के जोड़े में कैसे मैं उसका वैधव्य का सामना करुँ।। छोटी थी जबसे दुलार किया उसके दुख को कैसे सहारा मैं दूँ। हस्ता खेलता परिवार बिखर गया काटों की तरह कैसे मै उसका संबल बनू।। करीब जाने की हिम्मत नही मुझमें कैसे मैं खुद्को इस योग्य करुँ। कल तक जो सुहाग थे उसके जाने का उनके कैसे ढाढस बँधु।। छोटे-छोटे हैं दो बालक उनके कैसे मैं उनका सहारा बनू। कैसे गुजर बसर होगा उनका अब कैसे मैं उनकी मदद करू।। परिचय :- अभय चौरे निवासी - हरदा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मं...
तुम्हारे लिये
कविता

तुम्हारे लिये

रश्मि लता मिश्रा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** तुम्हारे लिये ही सजी ये डगर है। कहाँ हो बिछाई अजी ये नज़र है। कहा था तुम्ही ने हमे चाहते हो। करें याद तुमको सुबह दोपहर है। सजे ख्वाब आँखों तुम्हारे सनम जी। रहे ध्यान अब देख शामो सहर है। मनाते तुम्हे हम चले आ रहे हैं अजी देख होता न तुझपे असर है। कभी तो नजर तुम मिला लो सितमगर। अजी यूँ नहीं आप डालो कहर है। सुनो बात मेरी कहूँ मैं तुम्ही से। भरोसा मुझे देखिये आप पर है। परिचय :- रश्मि लता मिश्रा निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी...
वैक्सीन
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वैक्सीन

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** वैक्सीन लगाना किसी इंसान की शारीरिक मृत्यु पर मुझे उतना दुःख नहीं होता जितना इंसानियत की मृत्यु पर किसी देह की मृत्यु कुछ पल कुछ घंटे, कुछ दिन या कुछ सालों का मृत्यु है पर इंसानियत की मृत्यु एक युग, एक सभ्यता या हजारों वर्षों की मृत्यु है, किसी इंसान के मृत्यु शाश्वत व सत्य है पर इंसानियत की मृत्यु सत्य की मृत्यु है, मां की कोख में कन्या भ्रूण का कत्ल करना हजारों वर्षों का मानवीय सभ्यता का कत्ल है, बूढ़े मां बाप को वृद्धाश्रम भेजना हजारों लाखों वर्षों के रिश्तों की बुनियादों का ध्वस्त हो जाना, अमृता प्रीतम, निर्मल वर्मा, नेमीचंद कमलेश्वर, सुनिल गंगोपाध्याय आदि साहित्यकार व वुद्धिजीवियों की मृत्यु की खबरों से फिल्मि नायक-नायिकाओं के जन्मदिन की खबर महत्वपूर्ण हो जाना हजारों वर्षों के वौद्धिक विचारों को दरकिनार कर पंगु बना देना, हवश...
तेरे झूठे मन से
कविता

तेरे झूठे मन से

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुझसे तेरे झूठे मन से मैंने कर ली कुट्टी मैं नहीं बोलती। जब देखो तब मुझे सताए बात बात में रूठ जाए मुझसे हर एक राज छुपाए मैं मन का हर भेद खोलती, नहीं बोलती। गली मोहल्ले नाच नचाए आमराई में मुझे बुलाए कान्हा बनकर बंसी की हर ताल ताल पर मुझे नचाए कह दो इस गांव की राधा ऐसे वैसे नहीं डोलती, नहीं बोलती। खींचकर प्यार की लक्ष्मण रेखा वह अपने अधिकार जताए छू ले मेरी कंघी टिकुली आंखों से दर्पण दिखलाएं मेरी क्वारी नजरें शर्म से झुकती टटोलती, नहीं बोलती। कसमें वादों की नींव पर सपनों का इंद्रधनुषी महल बनाए रहेगा प्यार कयामत तक हर पल एहसास कराएं खुशी-खुशी मैं प्रीत के आंगन दिन दोपहरी रात डोलती, नहीं बोलती। उसकी कसमें टूट गई टूट गए कितने वादे लादे फिरते हैं फिर भी जर्जर आस को साधे मैं हूं उससे रूठी रूठी व...
अल्प जरूरतें सागर सी
कविता

अल्प जरूरतें सागर सी

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अल्प जरूरतें सागर सी, इतनी भी आसान नहीं राई को परबत सा मान, भ्रम का समाधान नहीं। बच्चों को खेल-खेल में, चंदा ख्वाहिश होती है चाँद सितारे पाने में, काया-कल्प ही होती है जटिल राह के राही को, समझो तुम नादान नही अल्प जरूरतें सागर सी, इतनी भी आसान नहीं राई को परबत सा मान, भ्रम का समाधान नहीं। भाव शब्द भंडार से, जीवन शैली अति सरल है कब कहाँ कैसे क्या, परख होती नहीं गरल है आनेवाली हर विपदा, खुद की है मेहमान नहीं अल्प जरूरतें सागर सी, इतनी भी आसान नहीं राई को परबत सा मान, भ्रम का समाधान नहीं। गणित सदा है सूत्रधार, समीकरण तो बराबर हो जीव भौतिकी रसायन, कुछ भी नहीं सरासर हो परिवार समाजलाभ तो, पुरुष से है परिधान नहीं अल्प जरूरतें सागर सी, इतनी भी आसान नहीं राई को परबत सा मान, भ्रम का समाधान नहीं। परिवर्तन नाम प्रकृति है, मानव भी ये ख्याल रखे य...
ये कैसा तूफान
कविता

ये कैसा तूफान

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** ये कैसी विवशता है, ये कैसा तूफान है, कैसे दाँव पर लगा रहा, इन्साँ को इँसान है। सोचो जरा समझो जरा, संयम से कुछ काम लो, सब धरा रह जायेगा, वो मान हो अपमान है। कर्मपथ जटिल सही, उसको अंगीकार कर, भुजायें बलिष्ट है, बेकसूर पर न वार कर! लक्ष्मीबाई बनो मगर, उनसा कार्य भी करों. उनको नमन मै करू, उन्है नमन तुम भी करो। ऐसी कोई न जिद करो, अहंकार को बढने न दो" जैसी हटेगी धुँध वो, शायद न नजर उठा सको! क्षमा से बढकर, सृष्टि मे कुछ भी बडा है न होगा कभी" कुछ पल के बदले के लिऐं, खुद लिऐ दुआ करो.!!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फ...
प्यार
कविता

प्यार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** कोरोना संक्रमण प्रेम की दूरियां बढ़ाता प्रेम की परिभाषा को लील गया। दूरियां से रिश्ते के समीकरण डगमगा गए और आना शब्द रिश्तों की किताब से जैसे हट गया हो। प्रेम पत्र के कबूतर मर चुके आँखों से ख्वाब का पर्दा उम्र के मध्यांतर पर गिर गया। कुछ गीत बचे वो जब भी बजे दिलों के तार छेड़ गए प्यार के हंसी पल वापस रेत मुठ्ठी में भर गए। दिल से ख्वाब हटते नहीं शायद रूहें भटकती इसलिए की उनसे कभी प्यार खुमार लिपटा हो। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्र...
सूक्ष्म दानव
कविता

सूक्ष्म दानव

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचाया! काल के विकराल गाल में, बन कोरोना ग्रास आया। प्रचंड रूप से उसने फिर, मौत का ताण्डव दिखाया। एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचाया! भय व्याप्त चहुँ दिशा में, करुण रुदन मन ने छुपाया। इसके विभत्स रूप ने फिर, मानव शक्ति को लाचार बनाया। एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचाया! चाँद आग उगलता गगन में, तारों ने हो अंगार बरसाया। हरेक के मन का कोना-कोना, झुलस उठा बेचैन सिसकाया। एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचाया! मृतबन्धु,वत्स, माता-बहनों से चिर- विरह का दुख दिखाया, करुण- चीत्कारों से इसने फिर, हाय! प्रभु कैसा दिल दहलाया। प्रवेश किया जब इसने तन में, निकट को विकट बनाया। सबसे पास था उसको फिर, खुद से दूर बहुत दूर हटाया। एक सूक्ष्म से दानव ने, फिर से है- हाहाकार मचा...
पापा
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पापा

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) ******************** कोरोंना ने रास्ता है नापा बहुत ही प्यारे थे मेरे श्री पापा बारिश बिना हे ये धरती प्यासी मेरे पापा का नाम था नरसी खेत किनारे चमक रहा है रेती मेरे पापा करते थे खेत में खेती होली के त्यौहार मे उभरे हैं रंग उतरायन में वो उड़ाते थे पतंग घर हमारा था झुग्गि झो्‍पड़े दीपावली मे वो दिलाते कपड़े खेत में वो बहुत ही काम करते भगवान शिवा न किसी से डरते कपड़े मिलमे वो करते थे काम रख दिया उन्होने गुलाब मेरा नाम पढ़ने न आता था उन्हे बाइबल लेकिन वो चलाते थे सायकिल गांव में मुखिया फूला भाई नामदार मेरे पापा थे एक मिल कामदार हमारे घर में निकला था एक चिता पापा ने कहा कि तुम सिगरेट मत पीना पढ़ना चाहे तुम गीता और रामायण श्री गुलाब कहे तुम करना पापा का पूजन परिचय :-  डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) घोषणा पत्र : मैं य...
जिन्दगी  की धूप
कविता

जिन्दगी की धूप

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** जिन्दगी में धूप कभी आई नहीं, जिंदगी हमेशा कुहरे से ढकी रही कितना चाहा, कोहरा चीर निकल जाऊँ ऊपर जा सूरज को ही पकड़ लाऊँ, पर चाहने भर से क्या होता है, चाहने भर से क्या सब मिलता है? तेरी यादें परछाई बन चलती है कोहरे के कारण छिपी रहती हैं, कुछ पत्थर बन अडिग रही, कुछ नश्तर बन दिल गड़ती रही न जाने कब ये कुहरा छूटेगा, धूप का एक टुकड़ा मुझे मिलेगा परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाश...
रंग जोगिया
कविता

रंग जोगिया

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जोग रंग में तरबतर, मलंग हैं बीच बाज़ार, चढ़े ना रंग दूजा कोई, जग डालें रंग हजार.. लाल, हरा हो या पीला, ग़ुलाल रंगों या अबीर, रंग जोगिया में जो रंगा, वो ही खरा पीर फ़क़ीर... मोह में चाहें तन रंगे, करे मलयज भाल बसर, अतरंगी मति पर ना होवे, सतही सतरंगी असर... नित्य भिगोये देह नीर से, कब डालें चित्त नीर, चित्त ढाह जो ढह गया, उबर जायेगा भव तीर... तन रँगे वो रंगरेज हैं, मन का रंगरेज तो पीर, तन मन दोनों ही रंग लिया, वो ही 'निर्मल' फ़क़ीर... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
लड़कियां
कविता

लड़कियां

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छोटी हमउम्र लड़कियां खेल रही है आंगन में खेल में उनकी मसरूफियत किरदार में उनका डूब जाना आसपास फुदकती गिलहरियों को भाता है लड़कियों के फ्रॉक पर बने फूल महकने लगे है और उन पर बनी तितलियों ने भर ली है उड़ान खुले खुले नीले आसमान में। लडकिया कुछ नही जानती वे तो मसरूफ है अपने किरदार में। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय...
बंधन सारे टूट रहे हैं
कविता

बंधन सारे टूट रहे हैं

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** बंधन सारे टूट रहे हैं साथी सारे छूट रहे हैं कैसे पहुँचे मंज़िल डोली जब कहार ही लूट रहे हैं गेह प्रेम के सूखे है अब धन वैभव के भूखे है सब अहं सातवें आसमान पर देख पसीने छूट रहे हैं रंगहीन संसार लग रहा इंसां का अरमान जल रहा कश्ती बिन पतवार चल रही नाविक भी अब रूठ रहे हैं शुचिता टंगी हुई खूँटी पर सच को चढ़ा दिया सूली पर ख़ुशी के ग़ुब्बारे सारे ही एक एक करके फूट रहे हैं संबंधी का टोटा है अब बहुरैंग़े ख़ुशियों के दिन कब साहिल जिए भरोसे किसके मालिक तुमसे पूँछ रहे हैं परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशित, ११...