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कविता

नारी तू नारायणी
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नारी तू नारायणी

नेहा शर्मा "स्नेह" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" उत्कृष्ट सृजन पुरस्कार प्राप्त रचना जीवन तुम ही देती हो जीवन सवाँरना भी तुम्हे ही आता है प्रेम तुमसे ही प्रकाशित हो निभाना भी तुम ही सिखलाती हो रिश्तो की बागडोर हो या ऑफिस में कोई पद भार हो जाने कैसे सब संभाल लेती हो जैसे तुम दैवीय अवतार हो लोग प्रशंसा नहीं कर पाते तुम्हारे पराक्रम से घबराते है और ये समाज तुम्हे दबाने जाने कितने षडयंत्र रचाते है पर तुम न डरना न दबना किसी से जीना अपने सिद्धांतो से तुम आयी विपदा टल जाएगी मन में हौसला रखो ज़रा तुम प्रिय मेरी बात ध्यान से ये समझ लो नारी हो तो नारी के भरोसे को कभी न तोड़ना जो तुम चाहती हो आगे बढ़ना हाथ किसी सखी का अपने साथ में लेते चलना न किसी को उलाहना देना न किसी की कमज़ोरी प...
देवी स्वरूपा नारी हो तुम
कविता

देवी स्वरूपा नारी हो तुम

राजेन्द्र सिंह झाला बाग जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" उत्कृष्ट सृजन पुरस्कार प्राप्त रचना ममता की मूरत, भोली सी सूरत, देवीस्वरूपा नारी हो तुम, अबला नहीं हो मातृशक्ति हो, सृष्टि की रचना सहायक हो तुम आई, जब भी कोई मुसीबत, खड़ग को लहराया तुमने, स्वराज नहीं जाने दिया, जब तक सांस रही तन में, झांसी की रानी, दुर्गावती सी अहिल्या का साहस हो तुम आज रूप बदला हुआ है फायटर प्लैन तुम्ही उडाती परिवार का पालन करने को टैक्सी, रिक्शा भी तुम्ही चलाती बिछेंद्री, कल्पना, मेरीकाम उडनपरी, मनु भाकर हो तुम। सीता, मीरा और सावित्री राधा का मौन श्रृंगार हो तुम यशोदा सा स्नेह बहाती गंगा यमुना सी पावन हो तुम परिचय :-  राजेन्द्र सिंह झाला निवासी : बाग, कुक्षि जिला धार (मध्य प्रदेश) घोषणा ...
ऐ नारी, तू नर से भारी
कविता

ऐ नारी, तू नर से भारी

संजू "गौरीश" पाठक इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" उत्कृष्ट सृजन पुरस्कार प्राप्त रचना ऐ नारी ! सच में तू नर पर भारी कहां रही अब बेचारी? क्षेत्र नहीं है कोई अछूते थामी डोर स्वयं बलबूते बन जाती है रणचंडी भी जहां मिले व्यभिचारी। सच में तू नर पर भारी।। तोड़ बेड़ियां आगे आई। शिक्षा पाकर अलख जगाई।। सकल जगत की जन्म दात्री, तू ही जग की पालनहारी।। अब आया है समझ सभी के बदल दिए हैं तौर तरीके भरी उड़ान गगन छूने की बनी बड़ी अधिकारी।। सारे तेरे रूप है सुंदर मिल जाए गर कोई पुरंदर सीमा में अपनी रहकर तुम देना दंड दुराचारी।। मत बनना तुम बेचारी!! परिचय :- संजू "गौरीश" पाठक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलि...
नारी की उड़ान: स्वतंत्रता की ओर
कविता

नारी की उड़ान: स्वतंत्रता की ओर

डॉ. सोनल मेहता भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" तृतीय पुरस्कार प्राप्त रचना सीता-सावित्री की भूमि में, नारी ने इतिहास रचाया, और झाँसी की रानी बन, पराक्रम का दीप भी सजाया। मीरा का भक्ति प्रेम और अहिल्या की शक्ति महान, हर युग में नारी ने किया नेतृत्व सभी तरह का स्वतंत्रता अभियान। गांधी संग कस्तूरबा चलीं, सत्याग्रह की राह, सरोजिनी, कमला, विजयलक्ष्मी ने बढ़ाया देश का प्रवाह। आज की नारी तकनीक में, विज्ञान में दे रही योगदान, चंद्रयान से मंगल तक, पहुँचा रही अपनी पहचान। पर मनमानी, स्वतंत्रता का सही अर्थ नहीं, इसका का करो प्रस्थान, स्वतंत्रता तो है आत्म-सम्मान, और कर्तव्यों का ज्ञान। अपने अधिकारों संग, न भूलें कर्म- धर्म महान, मन के संतुलन से ही संभव है, समाज का उत्थान। बेहतर भविष्य की ओर ...
नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान
कविता

नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" द्वितीय पुरस्कार प्राप्त रचना नारी जग गौरव बने, नारी से पहचान। हर क्षेत्र में वह आगे, चमका हिन्दुस्तान।। नारी की महिमा बड़ी, ‌बनी देश की शान। उर में दु:ख समेटती, कुल का रखें ध्यान।। दया-ममता की देवी, निज सुख की ना चाह। देश के लिए मर मिटै, कभी न करती आह।। बेटी और बहन बनी, फिर पत्नी अरु मात फर्ज की दीवार चढ़े, चाहे अंधड रात।। नारी शक्ति स्वरूपा, कभी न माने हार। कसौटी खरी उतरती, करती प्राण निसार।। झांसी की रानी बनी, देश हुई कुर्बान। पद्मिनी जौहर करती, कुल की‌‌ रखी आन नारी है नारायणी, करती जग कल्याण। सृजन की सृष्टि करता, प्रकृति का वरदान।। आंँखों में आंँसू भरे, होठों पर मुस्कान। तूफान में डटी रहे, पार करें चट्टान।। अवनि से अम्बर पहुंँच...
नारी भरे उड़ान
कविता

नारी भरे उड़ान

संगीता चौबे "पंखुड़ी" अबू हलीफा (कुवैत) ******************** अखिल भारतीय कविता लिखो प्रतियोगिता विषय :- "नारी और स्वतन्त्रता की उड़ान" प्रथम पुरस्कार प्राप्त रचना सकल विश्व में अंकित करती, निजता की पहचान। मुक्त गगन में पंख पसारे, नारी भरे उड़ान।। कल तक थी जो सहमी-सहमी, बंद कक्ष दीवारों में। आज गूँजता है स्वर उसका, सच्चाई के नारों में।। नहीं डूबने देती नैया, विपदा के मँझधारों में। है उसको विश्वास स्वयं की, भुजा रूप पतवारों में।। चलती सर ऊँचा रख उर में, स्वाभिमान का भान। मुक्त गगन में पंख पसारे, नारी भरे उड़ान।। नूतन प्रतिमानों को गढ़ कर, करती आविष्कार नवल। नहीं हिचक निर्णय लेने में, करती है वह सार पहल।। लाख चुनौती पथ पर आएँ, कर देती चुटकी में हल। संघर्षों से हार न माने, प्रण पर रहती सदा अटल।। स्वर्णिम छवि नारी की चमके, ज्यों नभ में दिनमान। मुक्त गगन में पंख प...
प्रेम-तरंगिणी:
कविता

प्रेम-तरंगिणी:

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** तुम शिला बन अरुणाचल पर, मैं निर्झर बहता जल हूँ। तपते तव मौन-तप में, मेरा स्वर सागर-सा ढल हूँ॥ तुम वेदों के अग्नि-सूत्र हो, मैं हवि बन जलता धुआँ। प्रेम यज्ञ की ज्वाला में, दोनों एकाकार हुए आँ॥ तुम्हारी आँखों के तारों ने, नभ का मौन तोड़ा है। मेरी पृथ्वी की गोद में, उनकी ज्योति बिखरा दी है। तुम्हारे स्पर्श की लहरें, वसंत की पुष्प-वृष्टि लायीं। मेरे विरह के शरद में, पत्ते सूखकर राख बन गयीं॥ तुम वटवृक्ष, मैं उसकी छाया, जड़ों में गूँथा सन्नाटा। तुम नभ के गगन-गायक, मैं धरती का अधूरा गाथा॥ तुम सिन्धु हो, मैं तट बन बैठा, लहरों से गूँथे बंधन। बंधन में स्वतंत्रता का रस, यही प्रेम का महामंत्र॥ तुम मेरे नभ के चन्द्रमा, मैं तुम्हारी रात का सन्नाट। मिलन में अमावस्या बनी, विराट व्रत की यह बात॥ तुम्हारे हृदय की गुफा म...
घाम पियास के दिन आगे
आंचलिक बोली, कविता

घाम पियास के दिन आगे

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) लकलक-लकलक घाम करत हे। घाम पियास म मनखे मरत हे। काटें काबर रुख-राई ल संगी, ताते-तात आज हवा चलत हे..!! बर पिपर के छईयाँ नंदागे । बिन छईयाँ के चिरई भगागे। आगी अँगरा कस भुइयाँ लागे, भोंमरा जरई म गोड़ भुंजागे.!! रुख राई के लगईया सिरागे। डारा पाना सबो हवा म उड़ागे। घाम पियास ले सबला बचइया, हरियर धरती घाम म सुखागे…!! जंगल झाड़ी रुख राई कटागे। तरिया डबरी के पानी अटागे। पसीना चुचवाय के दिन आगे, खोधरा छोड़ के चिरई भगागे। परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
जीवन क्रीड़ा
कविता

जीवन क्रीड़ा

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सोच न बंदे गंदगी तु कर ले ईश्वर की बंदगी। यही तो जीवन की मर्यादा है तु खुद का ही भाग्य विधाता है। अजर अमरता को रहने दें जीवन को विभिन्न सुर में बहने दें। जीवन में जो भी आता है उसको उल्लास से आने दें। जीवन से जो भी जाता है उसको भी मुस्कुराते हुए जाने दें। मस्ती को अपनी हस्ती में रहने दें जीवन को सस्ती बस्ती में बहने दें। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्...
कैसे बनेगा हिंदू राष्ट्र
कविता

कैसे बनेगा हिंदू राष्ट्र

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** हर घर में भारत पाकिस्तान कैसे बनेगा हिंदू राष्ट्र। भाई, भाई का नहीं है प्यार, पडोसी बन गये रिश्तेदार,। नही शर्म नही कोई लाज, बैठ के खाये ये पकवान । भाई, भाई को नही जानते, रावण विभीषण बर्ताव जानते, शत्रु एक दिन करेगा राज, गुलामी की जंजीरे हाथ। आपस में प्यार मोहब्बत को लो, शत्रु को ना घर मे भर लो, नही तो लंका ध्वस्त हो जाएगी आज, ताल बजायेगा दुश्मन यार। बन्द मुट्ठी एकता का पाठ, खुल जाये तो पत्ता साफ, जीवन जियो सीना तान साथ, दुश्मन बैठा है दर पर आज। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जै...
मैं पुरुष हूं
कविता

मैं पुरुष हूं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं पुरुष हूं मर्दानगी की सूली पर चढ़ा हूं कठोर हूं, निर्मम हूं ,निर्भय हूं इस तरह ही मैं गढ़ा गया हूं. मैं पुरुष हूं खारिज भी किया गया हूं कभी बेटा नालायक कभी पति नामर्द कभी पिता नाकाबिल बताया गया हूं. मैं पुरुष हूं मुझे यह भी बताया गया है : बस जिस्म तक सोचता हूं मैं हवस की दलदल में धंसा हवस का पुजारी कहा गया हूं. मैं पुरुष हूं दर्द से मेरा क्या रिश्ता मैं पत्थर हूं आंसुओं से मेरा क्या वास्ता मगर सच तो ये है कि मैं भी रूलाया गया हूं. जब भी किसी गलत को गलत कहता हूं अपने ही घर में जालिम करार दिया जाता हूं मैं पुरुष हूं, ऐसे ही दबा दिया जाता हूं. मैं पुरुष हूं, लेकिन~ मुझमें भी हैं परतें मुझमें भी पानी बहता है खोल सकोगे जो परतें मेरी तो देखोगे : मुझमें भी सैलाब रहता है....
खुद से रूठा बैठा हूं
कविता

खुद से रूठा बैठा हूं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** खुद ही खुद से रूठा बैठा हूं, जाने क्यों इस कदर ऐंठा हूं, जिंदगी में कभी निखर नहीं पाया, सौंपा गया कार्य कर नहीं पाया, सामान्य तालीम मिली थी तलवे चाटने वाली, इंसानों को इंसानों से बांटने वाली, खुराफाती सोहबत में रहकर भी, मानसिक गुलामी वाली परिस्थितियां सहकर भी, उगा था मन में एक कोमल फूल, उठा लूं मैं भी सामाजिकता का धूल, चल पड़ा था उस कठिन राह में, डूबकर रहना था समाज के पनाह में, यह राह जितना समझता था था नहीं उतना आसान, जनजागृति पर रखा पूरा ध्यान, लोग मिलते गए हृदय में समाते गए, अपने कार्य से मनमस्तिष्क में छाते गए, पर देख न पाया कइयों का दूसरा रूप, विद्रोह हो रहा था समाज से खामोशी से रह चुप, एक से एक नई खेप मिशनरियों के आ रहे थे, कुछ सच्चे चुपचाप लगे तो काम में तो कुछ धुर विरोधियों में गोद ...
खेली थी कभी होरी
कविता

खेली थी कभी होरी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तुम भी क्या याद रखोगी गोरी! खेली थी कभी होरी । खेली खूब है होरी सखी री! खेली खूब है होरी।। बजने लगा जब मृदंग मजीर, तुम घर में छुपी थी गोरी! पर मनवा न माने, प्रेम डोर खिचे ताने, आयी विवश हुई तू चकोरी! प्रिय से नजर मिलाते छुपाते भागी थी गलियों में गोरी! अंग अंग प्रस्वेद-प्रकम्पन, लज्जा ने मारी पिचकारी बन्द आंँख जब खोली तो देखी, थी भीगी चुनरिया सारी... खिसक गई तेरी सर से चुनरिया, भीग गयी तेरी चोली। खेली खूब है होरी सखी री, खेली खूब है होरी।। अंग-अंग में मस्ती छायी, नशा था चितवन का आंँखों से मारी पिचकारी, रंग था यौवन का भीगी पिया संग गोरी, मले गालों से गालों पे रोरी मन में प्रेम रस फूटा, मुस्कुराई, दिया गारी कैसे नखरे दिखाए, कैसे करे सीनाजोरी बोलो हे गोरी! बोलो हे गोरी! बोलो हे गोरी! खेली...
हमने ‌क्या सीखा
कविता

हमने ‌क्या सीखा

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** रवि सिखाता ‌अनुशासन नदी सिखाती आगे बढ़ना पर्वत दे सीख‌ अडिगता की वृक्ष सिखाता है देना। सीख लता की, तन्वी कोमल सी ले संबल आगे बढ़ती कुछ देने को तना सहारे पत्ते हिलते प्राणवायु सबको देने को। मानव मानव को सभ्य बताते लड़ते-झगड़ते बढ़ते जाते प्रकृति मां की गोद में पलते पर उससे कुछ सीख भी पाते? चींटी पक्षी कीट पतंगे न लड़ते न द्वेष वो करते न लूट न पत्थरबाजी अपने दल में घूमा करते। मानव सीखें इनसे अनुशासन क्यों इतना आतंक‌ मचा है क्यों धरती विव्हल है क्यों धरणी रोती पल-पल है? कहां तहजीब और नफासत संस्कार वो लुप्त हुए हैं वो पौरुष के भाव कहां, किसी गुफा में सुप्त पड़ें हैं? प्रभु सृष्टि तुम्हारी है कुछ तो करना भयभीत हिरन सी व्याकुल है कुछ कोमल भाव स्नेह सने से यहां वहां बिखरा देना। परि...
मन का मैदान
कविता

मन का मैदान

शकुन्तला दुबे देवास (मध्य प्रदेश) ******************** मैदान तो मैदान होता है धरा का हो या मन का। मार लिया जिसने मनका मैदान। जीत लिया उसने सारा जहान। मन का मैदान नहीं औरसे चौरस वो तो निरा गोल है। कोना नहीं है कोई, ना कोई छोर। इसलिए नहीं पकड़ पाते मन की डोर। विचारों का अंधड़ कोई बीज बो जाता है वो मानस के पावस से हरा हो जाता है। तब मन का मैदान बनता है बगीचा। जैसे सुन्दर फूलों का गलीचा। किन्तु जब होती है ईर्ष्या, द्वेष, छल, कपट की अतिवृष्टि। दल-दल में बदल जाती समुची सृष्टि। मानस मैदान को कीच से बचाना है। मन को दोष रहित, विमल बनाना है। तो बोते रहिए बीज विश्वास के, गाते रहिए प्रेम के गान। अखिल सृष्टि खिल उठे, हरियाता रहे। मन का मैदान। परिचय :- शकुन्तला दुबे निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए. हिन्दी, समाज शास्त्र, दर्शन शास्त्र। सम्प...
वो बंद कमरें
कविता

वो बंद कमरें

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** (१) जी हाँ! जेहन में आज भी जीवित हैं, वो बंद कमरें जहाँ दीवारों के कान, इंसानों के कानों से ज्यादा समर्थ हैं, सुनने में वो ख़ामोश आवाज, ह्रदय को विचलित कर देने वाला असहनीय शोर इन यादों को आज भी संजोये रखें हैं, वो बंद कमरें (२) परिस्थितियों को अपने अनुकूल मोड़ देने कि उम्मीद लिए, आज भी वो लड़के खूब लड़ते हैं, खुद से, इस समाज से अपने वर्तमान से अपने वर्तमान के लिए लेकिन इन हालातों को जब वो, कुछ पल संभाल न पाते हैं तो फिर इन लड़कों को, संभालते हैं, वो बंद कमरें (३) दरअसल मैं एक बात स्पष्ट कर दूं वो बंद कमरें, कोई साधारण कमरें नहीं हैं, वो इस जीवन कि प्रयोगशाला हैं जहाँ टूटने व बिखरने से लेकर सम्भलने व संवरने तक के अध्याय, इनमें समाहित हैं (४) मुझे संकोच नहीं हैं कहने में वो बंद कमरें भी एक, विश्वविद्यालय हैं...
जिद्दी व्यक्तित्व
कविता

जिद्दी व्यक्तित्व

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** तुम कितनी भी कोशिश करो बिखराने की हमें हम बिखर कर भी फिर से जुड़ जाएगे। तुम कितनी भी कोशिश करो जलाने की हमें हम जली राख़ से भी अपना मका बना लेंगे। तुम कितनी भी कोशिश करो राहों मे गिराने की हमें हम गिर कर भी फिर उठ चल पड़ेगे। तुम कितनी भी कोशिश करो हमें हराने की हम हार कर भी फिर अपना मुकाम जीत जाएंगे। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...
जंगल हमर जिनगानी आय…
आंचलिक बोली, कविता

जंगल हमर जिनगानी आय…

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) जंगल के महत्तम ल जम्मों झन जानत हव। फेर जंगल ल काटे बर लाहो काबर लेवत हव।। बेंदरा, भालू, हिरन के घर ल काबर उजारत हव। घर म गुस के, घर ले बाहिर काबर करत हव।। काकर बुध म आके तुमन जहर ल बाँटत हव। हरियर हरियर रुख राई ल काबर काटत हव।। जीव-जन्तु के पीरा तुमन काबर नइ सुनत हव। अपने मन के तुमन काबर मनमानी करत हव।। छानी म चड के तुमन काबर होरा भुंजत हव। जंगल काटे के उदिम तुमन काबर करत हव।। आवँव संगी मिल जुर के वनजीव ल बचाबोन। जिनगी के आधार जंगल के मान बड़हाबोन।। परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
प्यारे वचन बड़े अनमोल होते जगत में
कविता

प्यारे वचन बड़े अनमोल होते जगत में

सुनील कुमार "खुराना" नकुड़ सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वचन ही होते सबके जीवन का सार सबका प्यारे जीवन नदियां की धार प्यारे होते वचन बड़े अनमोल जगत में यहां हर पल लगता जग में दुनिया का मेला कोई आ रहा जग में कोई जा रहा जग से कुछ के गीत गाए ये दुनियां सारी बखत में वचन की खातिर मिट देश पर वीर शिवाजी कितने वीरों ने लगाई जान की अपनी बाजी नाम अमर गए वीर अपना अपने भारत में वचन से ही है ये प्यारी धरती और आसमान मिटा गए भीम अपने जीवन के सारे अरमान भीम की गूंज गूंजे आज इस सारे गगन में परिचय :-  सुनील कुमार "खुराना" निवासी : नकुड़ सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) भारत घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
चक्रव्यूह
कविता

चक्रव्यूह

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जागृत है सारे सहोदर, दिमाग में भरा है पूरा गोबर, रहते रचते रात दिन वक्रव्यूह, बड़े शान से कह रहे उसे चक्रव्यूह, माना कि चक्रव्यूह भेदना सबके बस की बात नहीं, पर कैसे कहें कि रचने वाला खुद भी है पूरा सही सही, करना नवनिर्माण जायज है, पर विध्वंसक रचना नाजायज है, खुद का बनाया हथियार हो सकता है खुद के लिए घातक, असलहा धरे रह जाते हैं जब सामने आती दिमागी ताकत, दिमाग होता झुंड बराबर नहीं अकेली टूटती लकड़ी, अपने बनाये शानदार जाल में फंस मर जाती है एक दिन मकड़ी। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी...
आयु अपनी शेष हो गई
कविता

आयु अपनी शेष हो गई

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* आयु अपनी शेष हो गई पीड़ा की पहनाई में अब भी सपने सुलग रहे देखे जो तरुणाई में काजल सी काली अंधियारी यह रात ढलेगी संभव आशाएं मुस्काए पूरब की अरुणाई में चैता की वो विरह गीतिका कब तक सिसके कभी संदेशा आने का मिल जाए पुरवाई में इन सांसों की उलझन में क्यों जीवन उलझे हरियाए उपवन भी, कलियों की अंगड़ाई में क्यों ना पाए समझ, झुकी दृष्टि की लाचारी क्यों नहीं डूबकर देखा चुप्पी की गहराई में सहमे-सहमे गलियारे हैं दरकी-दरकी दीवारें पहले कैसी चहलपहल होती थी अंगनाई में जब स्वयं को भूल गए हम, अपने ही भीतर कितना बेगानापन लगे अपनी ही परछाई में मन की सारी व्यथा लिखी, इन गीतों छंदों में पूरे सफर की कथा लिखी पांव की बिवाई में परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फ...
कलियुग में राम
कविता

कलियुग में राम

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** धनुष बाण कर उर में धारे, धरती से प्रभु भार उतारे, विप्र धेनु सुर संत के हित, अवतारे श्री राम, निशाचर हीन प्रभु करि भूमि को, यज्ञ के रखवाले श्रीराम धनुषबाण पर चाप चढ़ाते, दुष्टो को प्रभु मार गिराते, यज्ञ की रक्षा करते राम। कलियुग में प्रभु हे आजावो, अति दुष्ट आत-ताई जग में, नारी असुरक्षित, संत प्रताड़ित, धर्म गर्त में हे प्रभु आज, धनुषबाण कर उर मे धारो। सनातनियो को शक्ति दो प्रभु, राम-कृष्ण सी भक्ति दो प्रभु, धरती भी करती है पुकार, धनुषबाण ले आओ राम, दुष्टो को संहारो राम। विधर्मीयो को मार गिराओ राम। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जब...
अकेला हूँ मैं
कविता

अकेला हूँ मैं

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सासों का सिलसिला हूँ मैं माया के झन्झावातो मे आवा जाही मे साजो की माटी का पुतला हूँ मैं। पल-पल आथात होता दिल पर पल-पल मे पलक पर अश्रु बटौरता हूँ मैं कहने को कांरवा है कहाँ तक साथ चले। पत्ते उलचती पगडन्डी पर अकेला हूँ मैं। पल मे पीछे पथिक था जाने कहां खो गया उस साथी के वियोग मे अकेला हूँ मैं रवि, चन्द्र भी साथ नही चलते इसी तरह विधी के बन्धन मे बन्धा हूँ मैं अकेला हूँ मैं, अकेला हूँ मैं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ ...
आदमी पत्थर हो गया है
कविता

आदमी पत्थर हो गया है

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** आदमी पत्थर हो गया है ये कहती हैं पत्थर की दीवारें हृदयहीन कंम्प्यूटर की तरह सदैव चलता रहता है घर में घर तबाह हो गया है... प्लास्टिक, फर्नीचर या स्टील है आदमी... रोबोट की तरह सदा- दौड़ता रहता है आदमी... मानवता बर्बाद हो गयी है...! दानवता आबाद हो गयी है...! अब मानवता के लिए- पैसे की जरुरत है... दानवता को भी उस पैसे की जरूरत है... सब कुछ तबाह हो गया है रिश्तों से घर बनता है ईट, पत्थर, गाटर, पटिया सबकी सब छोटी बड़ी चीजें हैं जिनसे घर बनता है इनको जोड़ने के लिए सिक्कों के सीमेंट की जरूरत है प्लास्टर के बिना सीमेंट के बिना सब गाटर, पटिया, ईट-पत्थर टुकड़े-टुकड़े हो बिखर रहे हैं...! परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र.द्वारा शिक्षा शिर...
स्त्री कमजोर नहीं
कविता

स्त्री कमजोर नहीं

डॉ. मनीषा ठाकरे नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** स्त्री कमजोर नहीं होती, बस संवेदनशील होती है, दुनिया की ठोकरें खाकर भी, मुस्कान में शामिल होती है। जो आँसू तुम कमजोरी समझ बैठे हो, वो उसकी सहनशक्ति की पहचान होती है। हर दर्द को सहेज कर भी, वो किसी का संबल बनती है, मुस्कान होती है। वो अगर खुलकर बोले तुमसे, तो यह उसकी सरलता है, साहस है, हर किसी के सामने दिल खोलना, हर किसी की आदत नहीं होती है। तुम समझ बैठे शायद, उसके शब्दों में कोई इशारा होगा, पर वो तो बस मन की उलझनें, किसी अपने से साझा कर रही होगी। उसकी चुप्पी में तूफान छुपे होते हैं, उसकी बातें भी कभी दवा होती हैं। वो रोती है तो मत समझो कमज़ोर है, उसके आँसू भी आग के जैसे होते है। वो लड़ती है अपने भीतर के डर से हर रोज़, संघर्षों की आग में तपकर कुंदन होती है। उसके विश्वास की क़ीम...