राही और मंजिल
होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ हरियाणा
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राह पर चलते कई बटोही
वो मंजिल अपनी भटके हैं,
कभी राहें मंजिल बनती हैं,
कभी लगते घातक झटके हैं।
राही वहीं जो मंजिल पहुंचे,
मन मंजिल कहीं नहीं भटके,
इस पार-उस पार की सोचे,
चलता जाए कभी ना अटके।
मुसाफिरखाना जगत कहाये,
कुछ दिन ठहरकर जाना है,
मंजिल पर चलकर जाना हैं,
अंतिम लक्ष्य को ही पाना है।
सफल सफर उनका ही हो,
सहज सरलता पाये मंजिल,
रातें अंधियारी, खत्म जहां,
करते नहीं, तारें झिलमिल।
जीवन में खुशहाली हो तो,
बटोही हँसता झूमता जाता,
दुख, दर्द जब राही मिलते,
कदम कदम पर रोता पाता।
आसान नहीं मंजिल पाना,
सदियां बीतानी पड़ती हैं,
कभी खुशी फुहार पड़ेगी,
कहीं मार कसूती पड़ती है।
मंजिल चले, दो राही तो,
राह आसान बन जाती है,
राह में कांटे बिखरे पड़े,
शोणित पग पग आती है।
हौसला जनून दिल में हो,
बढ़ते ही जाना राही को,
डरना न कांटे और खाई,
प...
























