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कविता

राही और मंजिल
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राही और मंजिल

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** राह पर चलते कई बटोही वो मंजिल अपनी भटके हैं, कभी राहें मंजिल बनती हैं, कभी लगते घातक झटके हैं। राही वहीं जो मंजिल पहुंचे, मन मंजिल कहीं नहीं भटके, इस पार-उस पार की सोचे, चलता जाए कभी ना अटके। मुसाफिरखाना जगत कहाये, कुछ दिन ठहरकर जाना है, मंजिल पर चलकर जाना हैं, अंतिम लक्ष्य को ही पाना है। सफल सफर उनका ही हो, सहज सरलता पाये मंजिल, रातें अंधियारी, खत्म जहां, करते नहीं, तारें झिलमिल। जीवन में खुशहाली हो तो, बटोही हँसता झूमता जाता, दुख, दर्द जब राही मिलते, कदम कदम पर रोता पाता। आसान नहीं मंजिल पाना, सदियां बीतानी पड़ती हैं, कभी खुशी फुहार पड़ेगी, कहीं मार कसूती पड़ती है। मंजिल चले, दो राही तो, राह आसान बन जाती है, राह में कांटे बिखरे पड़े, शोणित पग पग आती है। हौसला जनून दिल में हो, बढ़ते ही जाना राही को, डरना न कांटे और खाई, प...
मां पर कविता लिख सकूं
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मां पर कविता लिख सकूं

रमेश चौधरी पाली (राजस्थान) ******************** में कवि हूं मेरी कलम में इतनी ताकत है कि, में दुनियां का बखान कर सकूं। परंतु मेरी कलम में इतनी ताकत नहीं है की में मां का बखान कर सकूं। में कर्जदार हूं मां के उस अमृत का, में कर्जदार हूं मां के उस आंचल का में अपनी कलम से भी नहीं उतार सकता हूं उस कर्ज को। में नमन करता हूं उस मां सुभद्रांगी को, में नमन करता हूं उस मां जेवंताबाई को , में नमन करता हूं उस मां हीराबेन को, जिसने ऐसे शूरवीरों को, जन्म दिया हो। मेरी कलम में इतनी ताकत नहीं है कि में मां पर कविता लिख सकूं। ...... मां पर कविता लिख सकूं।। परिचय :- रमेश चौधरी निवासी : पाली (राजस्थान) शिक्षा : बी.एड, एम.ए (इतिहास) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फ...
जय जवान जय किसान
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जय जवान जय किसान

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** जय जवान जय किसान हरा भरा जो करे खेत और खलिहान, यही है देश के सच्चे किसान की पहि चान। देश में नहीं है पानी की कमी, फिर भी क्यों सूखी रहती देश की जमी। जिसे जानना है वो जाने, जिसे पहचानना हो वो पहिचाने। किसान ही उपलब्ध कराये देश को खाने के दाने, जो खेती-बारी हैं देखे, वही किसान को पहिचाने। किसान देश का है अन्न-दाता, लेकिन खुद भूखा है रह जाता। कर्ज के बोझ के तले वह है दब जाता, फिर भी किसान का देश व परिवार से है अटूट नाता। किसान धरती माँ का बेटा कहलाता, किसान का ही बेटा देश की सीमा पर सैनिक बनके है जाता। वह सहर्ष देश की रक्षा में अपने को कर देता कुर्बान, गर्मी हो या सर्दी आधी हो या तुफान। करते देश की सेवा देकर अपनी जान, क्या देश उनको दे पाता पूरा इज्जत व सम्मान। जो दे देते हंसते-हंसते अपने देश के लिए जान।। कहाँ है वे देश के लाल...
चाहतों का नशा
कविता

चाहतों का नशा

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** बहुत से नशे है इस दुनिया में, किसी को दौलत का, तो किसी को शोहरत का नशा है। किसी को मंदिर का, तो किसी को मदिरा का नशा है। किसी को प्रेम का, तो किसी को सफलता का नशा है। हर किसी को किसी न किसी बात का नशा है, लेकिन सच मे तो यह चाहतों का नशा है। कि हर किसी को कुछ न कुछ पाना है, लेकिन मिलने की बाद भी शांति नही मिलती है, हर ख्वाईश जब पूरी हो जाती है, तो अधूरी सी लगती है। और फिर नई ख्वाईश जाग उठती है, फिर भागने लगते है हम उस मृगमरीचिका के पीछे उस अनजान को पाने के नशे में, जो भागकर कभी भी न मिल पायेगा। हर बार मिला भी सबकुछ, लेकिन ये वो न निकला की जिसके बाद कुछ पाने की ख्वाईश न बची हो। ये नशा ही ऐसा है, जो चढ़ गया तो उतरता ही नहीं, और हम भागते ही चले गए, कभी इधर तो कभी उधर। अब जब थक कर, रुककर देखती हूं तो लगता है कि, ऐसा क्या पाना था मुझको जो मैंने...
अखण्ड ज्योति
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अखण्ड ज्योति

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अमावस्या की रात में जब हजारों दिये जलते हैं तो अन्धेरा मालूम नहीं कहाँ खो जाता है व्यक्ति चाह कर भी अन्धेरे से दो चार नहीं हो पाता है उस अंधेरी रात में भी पूर्णमासी की झलक मिलती है दीया और बाती के जलने मे भी बर्फ की ठंडक मिलती हैं व्यक्ति चाहे तो.... जिन्दगी की अमावास की रात में दीवाली की जगमग ला सकता है निराशा की अँधेरी रात में आशा के दीप जला सकता है बस हमें.... जिन्दगी के इस दीये में इंसानियत की तेल और शराफत की बाती चाहिए फिर जिंदगी की लौ शायद ही कभी झिलमिलाये और जिन्दगी एक अखंड ज्योति बन जाए परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अप...
चुनावी हवा
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चुनावी हवा

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** शरद हवा के संग-संग चुनावी हवा ने भी पकड़ा रंग सूरज की धूप सदृश नेताओं के चेहरे पे लाली आने लगी है। घोषणा चुनावों की होते ही, हर गांव, हर गली हर मुहल्ले में रवानगी आने लगी है। भाग्य अपना आजमाने टोली नेताओं की घर-घर जाने लगी है। चिकनी-चूपड़ी बातों से, मतदाताओं को रिझाने लगी है। आश्वासनों की कर बौछार नवीन वायदों से भरमाने लगी है। ठण्डी हवा के संग-संग, चुनावी हवा भी रंग पकड़ने लगी है। लोकतंत्र है देश का आधार ये बात जनता की समझ में आने लगी है। निस्वार्थ, निष्पक्ष, निर्भय शतप्रतिशत मतदान करने की अब जनता में होड़ सी लगी है। मतदाताओं का देख उत्साह नेताओं की हृदय कली खिलने लगी है। परिचय :-  राम प्यारा गौड़ निवासी : गांव वडा, नण्ड तह. रामशहर जिला सोलन (सोलन हिमाचल प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
मेरे मन को भाती मां
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मेरे मन को भाती मां

बुद्धि सागर गौतम नौसढ़, गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरी मां दुलारी मां, सचमुच नाम दुलारी मां। सारे जग से प्यारी मां, मेरे मन को भाती मां। जन्म मुझे दिया है मां, आकार मुझे दिया है मां। प्यार मुझे करती है मां, मेरे मन को भाती मां। मुझको खिला पिलाकर मां, बड़ा किया है मुझको मां। जीवन कौशल सिखलायी मां, मेरे मन को भाती मां। हर दुख से मुझे बचाती मां, खुशियां मुझे लुटाती मां। मेरा भला चाहती मां, मेरे मन को भाती मां। याद तुम्हें करता हूं मां, प्यार तुम्हें करता हूं मां। मुझ में हिम्मत भरती मां, मेरे मन को भाती मां। चलना मुझे सिखायी मां, शिक्षक मुझे बनाई मां। खुश मुझको रखती है मां, मेरे मन को भाती मां। कहीं नहीं गई हो मां, मेरे पास सदा हो मां। मेरे दिल में बसती मां, मेरे मन को भाती मां। धन्य धन्य हो, धन्य धन्य हो, धन्य धन्य हो मेरी मां। नमन है तुमको, नमन है तुमको, नमन है तुम...
मुझे बनारस कर दो
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मुझे बनारस कर दो

श्वेता सक्सेना मालवीय नगर (जयपुर) ******************** हे भगीरथी, उतर आओ मन की मरूधरा पर कल्याण कर दो जन्मों की तृष्णा का उद्धार कर दो हे देवांशी, बहा दो संग स्मृतियों की भस्म सब पावन कर दो हे मोक्षदायिनी, मेरी मुक्ति का साधन कर दो हे गंगे, मैं अधीर हूँ तुम्हें छूने को,, मुझे बनारस कर दो परिचय :- श्वेता सक्सेना निवासी : मालवीय नगर जयपुर घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित...
फुलवारियां
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फुलवारियां

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** निज बगिया में छटा बिखेरती फुलवारियां बहुत सहेजी घर उपवन की वो क्यारियां। कोर कोर में रची-बसी थी किलकारियां होश जोश दौड़ में देखी सबकी यारियां। अफवाह बाजार में पनपा करती भ्रांतियां निर्भय पथ-संचालन की नई-नई अनुभूतियां एकाकी विवश जन की साहसपूर्ण चुनौतियां दुर्गम दुर्लभ पथ की बड़ी अजीब बेचैनियां। बड़े बड़े आयोजन में आसमयिक दुश्वारियां काम रुका, ना धाम हटा, रहती हैं तैयारियां। देखी समझी राहत ताकत की कई मजबूरियां विस्मृत हो सहयोगी बनने, हो जाती हैं दूरियां कर्मवान को आभास दिलाती हैं नाकामियां ईश्वर क्षमा करें उन्हें, जिनकी नाफरमानियां। साथ चार जनों से भी रह जाती हैं खामियां पर अकेले दायित्व वहन की गहन हैरानियाँ। सामान्य रिवाजों में दिखती रहें नजदीकियां कोई समझ ना पाए रिश्तों की बारीकियां। बालपन से चौथेपन वाली सब जिम्मेदारियां खेल यही जीवन क...
अ-कारण
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अ-कारण

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** अ-कारण कोई आत्महत्या नहीं करता, जनाब ख़ुश होकर कोई नहीं मरता। आपनो के ही आघात ले बैठते है, बैगानो की बातों से कोई नहीं डरता। अ-कारण कोई आत्महत्या नहीं करता, ज़िन्दगी के बोझ से कोई नहीं दबता। तनाव बना देते है दिल मे रहने वाले, वैसे बाहर वालों से कोई फर्क नहीं पड़ता। अ-कारण कोई आत्महत्या नहीं करता, चेहरों से असलियत का पता नहीं चलता। लाज से ही कदम उठाना पड़ता है, यूँ ही जहर का घूंट अच्छा नहीं लगता। अ-कारण कोई आत्महत्या नहीं करता, जो टूट जाता वो अंदर से नहीं हँसता। मानसिक पीर भयंकर होती है, शारीरिक पीड़ा से कोई फंदा नहीं लटकता। परिचय :- विकाश बैनीवाल पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल निवासी : गांव-मुन्सरी, तहसील-भादरा जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक पास, बी.एड जारी है घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्...
साथ हर कोई नहीं देता
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साथ हर कोई नहीं देता

श्वेतल नितिन बेथारिया अमरावती (महाराष्ट्र) ******************** हकीकत को छिपा जाते हो हजार किस्से सुना जाते हो! कभी गुस्सा तो कभी प्यार यूँ नाज,नखरे उठा जाते हो! साथ हर कोई नहीं देता यहाँ उम्मीद सबसे लगा जाते हो! जो दिल ने चाहा हुआ कब फ़ज़ूल सपने सजा जाते हो! साथ जिसके हंसे जी भर के अब उसी को रुला जाते हो! परिचय :- श्वेतल नितिन बेथारिया निवासी- अमरावती (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३...
जीवन उत्सव
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जीवन उत्सव

सपना दिल्ली ******************** जीवन उत्सव है सुख-दुःख का संगम.... दुश्मनी, जलन ऊंच-नीच की बात अकड़, जाति-पाति बन्धन से ऊपर उठकर प्रेम करके देखो जीवन उत्सव है। छोड़ कल की चिंता आज में जी बड़ी खुशियों के पीछे न भाग छोटी-छोटी खुशियां बटोर कर तो देखो जीवन उत्सव है। बड़ों का आदर छोटों से प्रेम सहारा बेसहारा का ज़रूरतमंद की मदद करके तो देखो जीवन उत्सव है। छोड़ मोबाइल, लेपटॉप चंद लम्हे अपनों के साथ कुछ अपनी सुनाएं कुछ उनकी सुनो जीवन उत्सव है। उगते सूरज की पहली किरण चांदनी रात चिड़ियों की चहचहाहट... सप्तरंगी दुनिया क़ुदरत की खोकर तो देखो... जीवन उत्सव है। परिचय :- सपना पिता- बान गंगा नेगी माता- लता कुमारी शैक्षणिक योग्यता- एम.ए.(हिंदी), सेट, नेट, जेआर. एफ. अनुवाद में डिप्लोमा ( अंग्रेज़ी से हिंदी), पी.एचडी. (ज़ारी) साहित्यिक उपलब्धियां- १५ से अधिक राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में सहभ...
मंगल प्रभात
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मंगल प्रभात

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** प्राची का पथ लीप सहेली घर घर मे मंगल प्रभात हो। दीन दुखी नंगे भूखों के, खुशहाली मय दिवस रात हो। अरुण थाल रोली भर लावे, आंगन मे सब के बिखरावें रहे न कोई इस वसुधा पर हर घूघट में मुस्कुराहट हो। जन मे मंगल घर घर मंगल, मंगल मय जंगल मे मंगल प्रांची तुम से एक अर्चना? अरुणोदय खुशियां लुटात हो। घर घर मंगल प्रभात हो। जन मन मे उल्लास भरा हो, खिल खिल करती धाम घरा हो। अश्व जुते रथ भरा आ रहा, हर्ष हर्ष गम को मिटात हो घर घर मे मंगल प्रभात हो। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का ...
छठ व्रत करते है।
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छठ व्रत करते है।

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** हे! सूर्य देव प्राणों के वेग हम प्रणाम करते है। छठ व्रत करते है। जीवन को तुम ही, प्रकाशित करते हो। चर-अचर जीवन का, तुम ही संचालन करते हो। जीवन को, ज्ञान और आशा से, परिभाषित करते हो। नित उठ हम आपका वंदन करते है। आभार व्यक्त करते है। तुम्हें प्रणाम करते है। छठ व्रत करते है। उर्जा का तुम स्रोत किरणों से, जगत को करते ओतप्रोत। नित-नित हम वंदन करते है। हम छठ व्रत करते है। रहे तुम्हारा आशीर्वाद यहीं शुभ मंगल गान करते है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करक...
रहना मीत जहाँ, खुश रहना
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रहना मीत जहाँ, खुश रहना

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** मजबूरी से बँधा हुआ मैं बस इतना ही कह सकता हूँ, मेरी याद सँजोये मन में, रहना मीत जहाँ, खुश रहना।। कहना तो आसान बहुत पर क्या ऐसा कुछ हो पायेगा, जब कोई मुसकान चिकोटी काटे, कोई सो पायेगा; पावन अधरों के संगमतट पर जो किया आचमन हमने, मीता उसकी कसम तुम्हें है, रहना जहाँ, वहाँ खुश रहना!! मेरी याद सँजोये मन में रहना मीत जहाँ, खुश रहना!! माना इस समाज ने बाँधे अनगिन सम्बन्धों के बन्धन, जिनमें बँध कर, हृदय तड़पता, उन्मन रहता, करता क्रन्दन; पर सुधियों के चन्दन से मन के नन्दन वन को महकाये, हँसते-मुसकाते ओ मीता रहना जहाँ, वहाँ खुश रहना!! मेरी याद सँजोये मन में रहना मीत जहाँ, खुश रहना!! साथ तुम्हारे बीता हर पल, मेरे जीवन की थाती है, शेष बचे जो,ऐसे जैसे नेह बिना जलती बाती है; लोकलाज से बँधे हुये तुम भी ऐसा ही कुछ बोलोगे, मन में सौ तूफान ...
बचपन की शरारतें
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बचपन की शरारतें

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** अल्हड़ बचपन याद आता, जब करते थे कुछ शरारतें। भूल नहीं पाते उनको अब, वो बन चुकी हैं वो इबारतें।२। नंगे पैर, अर्ध नग्र बदन था, पतंग की पकड़ते थे डोर। देख देखके मात पिता का, मच जाता था जमकर शोर।४। कंचे खेलते, ताश खेलते, कभी भागते चिडिय़ा पीछे। कभी किसी से झगड़ा करे, गुरुजन पकड़ कान खींचे।६। झीरनी, खुलिया, टेम था, शरारत भरे सारे थे काम। उलहाना आता गन्ने तोड़े, कभी होता नाम बदनाम।८। खिलौने से खेला करते थे, दिनभर हंसते थे गली गली। क्या मनमोहक, बचपन था, लगती थी ज्यों फूल कली।१०। किसी की चोटी पकड़ते, कभी बहुत अकड़ते थे। कभी किसी बात लेकर, आपस में ही झगड़ते थे।१२। कभी घूसंड मारते देखे, कभी झूठ बोलते आगे। कभी किसी चीज उठा, कभी शरारत कर भागे।१४। नहीं डर था मारपीट में, झगड़ा करते पल में हम। कभी बेर तोड़ लाते थे, बातों में होता एक दम।१६...
चरैवेति चरैवेति
कविता

चरैवेति चरैवेति

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मत फड़फड़ा पंछी मर्जी उसकी ही चलेगी कर कोशिश भले ही थकहार हाथ ही मलेगी। तेज बहती हवा से तिनके बुलंदी पा जाते है थमते ही हवा का शोर जमीन पर आ ही जाते है। भरम में मत रह नादान कोई सम्बल दे जाएगा सिर पर रख पाव तेरे वो ऊपर चढ़ जाएगा। लेकर फूल अपने हाथ मे उससे मिलने क्यो जाएगा ऐसी क्या मजबूरी है तेरी जो बारम्बार मिलने जाएगा। तू तब तक ही मीठा है जब तक तुझ में रस है जब हो जाएगा खाली कहेंगे सब ये तो नीरस है। तेरे साथ सिर्फ तू है बात कड़वी पर सच है उतार फेंक फालतू बोझ यही रिश्तों का सच है। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindi...
दीपावली
कविता

दीपावली

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** आजकल चहुँ ओर है चर्चा चली! आगई फिर प्रतीक्षित दीपावली! गृह सजे,आँगन हैं सज्जित सारे पथ-परिसर सुशोभित देख मन सबके प्रफुल्लित सज गए हैं सब मुहल्ले हर गली! आ गई फिर प्रतीक्षित दीपावली! हुए हैं दीपक प्रकाशित पूर्णतः तम है विलोपित व्याप्त है आलोक असीमित लग रही नगरी दुल्हनिया-सी भली! आ गई फिर प्रतीक्षित दीपावली! किसी ने क्रय की है वाहन किसी ने गृह लिया नूतन कोई लाया है सुसाधन वस्त्र सुन्दर क्रय करेगी श्यामली! आ गई फिर प्रतीक्षित दीपावली! दीप चमकेंगे क्षितिज तक प्रभा देगी नभ में दस्तक यत्न होंगे तम विनाशक जगमगाएगी अमावस साँवली! आ गई फिर प्रतीक्षित दीपावली! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (ह...
जीत आसान और कठिन है हारना
कविता

जीत आसान और कठिन है हारना

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** जीत आसान और कठिन है हारना गिर कर उठना फिर संभल कर चलना खाकर ठोकरे भी तुम ना विचलना मुसीबतों में गिर कर भी तुम ना पिघलना। हालातों में इस कदर खुद को ढालना दृढ़ संकल्प आत्मविश्वास अटूट पालना बीच राह आए काटे तो तुम हटाते बढ़ना साथ ना देगा कोई भी खराब है जमाना। गर मिले हार तो भी तुम ना घबराना सोच सकारात्मक अपनी हमेशा रखना महत्वपूर्ण जितना है जहां में जीत जाना जरूरी है उससे भी अधिक कुछ सीख पाना। मिले ना जब तलक मंजिल चलते रहना कमजोरियां अपनी किसी से ना कहना शिक्षा ही जीवन का अनमोल है गहना रोशन कर जीवन,यह देगी हमें हार पहना। पसीने की बूंदों से अपने तुम खुद को सींचना रिवाज है यहां बढ़ते हुए को पीछे खींचना मंजिल भी मिलेगी "दिवान" पूरा होगा हर सपना लंबा सफर नापना,मगर कभी शॉर्टकट ना अपनाना। परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े निवासी : बड़वा...
दीप जलायें
कविता

दीप जलायें

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** दीप जलाने का दिन आया, घर घर दीप जले ऐसा। दीप मालिका सजे सभी की, प्यार हिलोरें ले ऐसा। आओ ऐसा दीप जलायें, तम मिटे हमारे तन मन का, दीपशिखा की हर बाती से, जगमग हो मन हम सब का। राग द्वेष का कलुषित साया, छाये नहीं किसी जन में, ऐसा दीप जले मन प्रांगण, आलोक भरे हर जीवन में। तिमिर अमावस का छट जाये। दीपों की ऐसी ज्योति जले, बैर भाव को त्याग सभी के मन में करुणा का भाव पले। मन मंदिर रोशन हो जाये, आओ एक दीप जलायें हम, राह सुगम हो जीवन की, इक दूजे के हो जायें हम। परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप ...
मजबूरी या मंजूरी
कविता

मजबूरी या मंजूरी

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** तुझसे मिलना मिल के बिछुड़ना तेरे मेरे बीच की दूरी मजबूरी या मंजूरी हाथ थामना साथ निभाना फिर यूँ अचानक अकेला करना अपनापन पाने की तेरी मेरी ख़्वाहिश अधूरी मजबूरी या मंजूरी विचारों के जब मतभेद पनपते एक - दूसरे को है हम खटकते फिर भी आँखों में एक आस भरी मजबूरी या मंजूरी तू वह चाहे जो मैं ना चाहूँ तू ना चाहे जो मैं चाहूँ जीवन के इस कठिन सफर में कैसे होगी चाहत पूरी क्या कहूँ इसे निज स्वार्थ हेतु स्वयंनिर्मित संस्कारो की मजबूरी या मंजूरी? परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी र...
दीपो का त्योहार
कविता

दीपो का त्योहार

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** दीपो का मेरा त्योहार है रोशनी तेरी देख कर दीप जलते देख कर चेहरो पर मुस्कान है कितना प्यारा अपना त्योहार है दीपो का मेरा त्योहार है रोशनी तेरी देख कर चेहरो पर मुस्कान है रूप लक्ष्मी का देख कर कुदरत भी हैरान है सोने के जैसी चमक, हिरानी के जैसी चाल है अंधेरे घरो को करे जो रोशन खुद दीपक भी हैरान है भिन्न भिन्न रंग के टिमटिमाते दीपो को देख कर चेहरो पर मुस्कान है फूलो सी महक तेरी मधुर मुस्कान है दीपो का मेरा त्योहार रोशनी तेरी देख के दीप जलते देख के चहुँ ओर खीलते गुलदान है सारे जहा मे दीप के जैसा कोई त्योहार नही जिसने दिया है सब कुछ है तुझको मा लक्ष्मी का वो रूप है करते है यारो लक्ष्मीकी पूजा जीवन मे उसके कांटे नही दीपो का मेरा त्योहार है रोशनी तेरी देख कर दोप जलते देख कर 'मोहन' भी हेरान है परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नाराय...
पहाड़
कविता

पहाड़

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पेड़ों की पत्तियां झड़ रही मद्धम हवा के झोकों से चिड़िया विस्मित चहक रही मद्धम खुशबू से हो रहे पहाड़ के गाल सुर्ख पहाड़ अपनी वेदना किसे बताए वो बता नहीं पा रहा एक पेड़ का दर्द लोग समझेंगे बेवजह राइ का पर्वत पहाड़ ने पेड़ो की पत्तियों को समझाया मै हूँ तो तुम हो तुम ही तो कर रही मौसम का अभिवादन गिरी नहीं तुम बिछ गई हो और आने वाली नव कोपलें जो है तुम्हारी वंशज कर रही आने इंतजार कोयल मीठी राग अलाप लग रहा वादन शहनाई का गुंजायमान हो रही वादियाँ में गुम हुआ पहाड़ का दर्द जो खुद अपने सूनेपन को फूलों की चादर से ढाक रहा कुछ समय के लिए अपना तन... परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व...
दीपावली आयी है
कविता

दीपावली आयी है

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** दीपो का दिवाली आयी है, दीप जगमगाते दिवाली आयी है, मीठे मीठे मिष्ठान लेकर आयी है, लाल, पीले, हरे, नारंगी लेकर आयी है, धरती के मिट्टी से दीप जलाएंगे, दुनिया मे प्रेम का मिलन कराएंगे, चक-मक दीपों का त्यौहार आयी है, दीपों का पर्व दीपावली आयी है, फुलझड़ी, अनार, चिटपुटीया का पर्व आयी है, मोमबत्ती, रंग बिरंगे मिठाइयों का पर्व आयी है, आपस मे मिलकर धर्म-जाति का पर्व आयी है, दीपो से दुनिया का उजाले करने का पर्व आयी है, बम-बारूद पटाखे से, विषाणुओं को समाप्त करने का त्यौहार आयी है, मनुष्यों का अस्तित्व बचाने का त्यौहार आयी है, दुनिया मे रोशनी, उजाले करने का पर्व आयी है, हिंसा पे अहिंसा से, विजय दिवस मनाने का त्यौहार आयी है, अशांति पे शांतिपूर्ण तरीके से जीतने का पर्व आयी है, दीपों का पर्व दीपावली आयी है! परिचय :- रूपेश कुमार शिक्षा - स्न...
कुछ कहना है
कविता

कुछ कहना है

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** दीप! तुम रोशन करो उन घरों को जहां तुम्हे जलाने को रुई भी न हो, तेल खरीदने को पैसे न हो तुम्हे जलाने को दिये न हो। तुम वहां दैदीप्यमान रहो, जहां तमस हो अंधियारा हो अज्ञानता का वास हो। बढ़ा दो ज्योति की लौ मन का उजियारा शिक्षा मिले बेटियों को चमके चमन । बदल दो दुनियां को तुम जो आपसी रंजिश में मानवीय मूल्य की आपसी भाईचारे की भुल रहा इंसान दंभ में। तुम सुगन्ध फैला दो सामंजस्य की नैतिक मूल्य की प्यार भावना की परोपकार की। ऐसे आ दीवाली ! जहां राधा और सलमा खुशियों के मिठाई बांटे आफताब और सूरज देश के लिए मर मिटे। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्...