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कविता

उम्र का दौर
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उम्र का दौर

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** गुजरते देखा आज उम्र को, जब पड़ी स्वयं पर नजर। उम्र खुद को खुद से जुदा कर, चेहरा-चेहरे से बिछुड़ गया किस कदर। बढ़ती उम्र जीवन के साथ ही, बीत चला जीवन का सफर। उम्र का हर इक दौर, धरता चला अपने समय पर। उम्र का नजरिया भी देखो, स्वयं से रुबरु होने में बीत जाती उम्र।   परिचय :- उषा शर्मा "मन" शिक्षा : एम.ए. व बी.एड़. निवासी : बाड़ा पदमपुरा, तह.चाकसू (जयपुर) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, ले...
कलमकार की ख्वाहिश
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कलमकार की ख्वाहिश

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** कलमकार की ख्वाहिश नहीं आह की कोई चिंता, नहीं वाह की है ख्वाहिश, निष्पाप मां करूं तेरी साधना, मेरे मस्तिष्क को रखना पवित्र... विवेक रखना मेरा शुद्ध, साहस से करना नहीं वंचित, मानवीय पीड़ाओं का मैं, वर्णन कर सकूं बेबाक सचित्र... शब्द मेरे हो इतने अनमोल, छलियों को करे अचंभित, वेदनाओं का करूं ऐसा वर्णन, पल में पत्थर हो जाये द्रवित, माया की तराजू तोले नहीं, बदले कभी नहीं मेरा चरित्र, कलम बंधन में बंधे सके, मुझे बनाना नहीं इतना दरिद्र, निश्चिंत रहूं मैं इतना, निर्बल का कर सकूं जिक्र, हक की लड़ाई का हो मामला, किसी तीस मार खां का ना करूं फिक्र, मजबूर कर सके कोई नहीं, लालसाएं हो इतना सीमित, गलतियां ख़ुद की स्वीकार करूं, मेरे दिल को रखना पवित्र... कपटियों का भय कम नहीं हो, विचारधारा हो नहीं मेरा दूषित, मेहरबानी तेरी मुझपर इतनी रहे, नई ...
मत ढूढ़ना मुझको
कविता

मत ढूढ़ना मुझको

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सुबह का सूरज हूँ मैं, रात के तारों में मत ढूढ़ना मुझको मुस्कुराता ही मिलूँगा मैं, गम के मारों में मत ढूढ़ना मुझको। मिल जाऊंगा किसी मंदिर मे होते भजन, कीर्तन के जैसे यूँ सड़कों से गुजरते जुलूस के नारों में मत ढूढ़ना मुझको। अपनी एक अलग ही दुनिया बसा रखी है सबसे दूर मैं ने ढूढ़ना तो अपने दिल में, भीड़ हजारों में मत ढूढ़ना मुझको। होंगे कोई और वो जो मर मिटते हैं तेरी हर एक अदा पर अपने ऐसे बिगड़े, लफंगे, लुच्चे, यारों में मत ढूढ़ना मुझको। खुश्बू बिखेरता फिरता है यह निर्मल जमाने में चहुंओर जब भी ढूढ़ना गुलों में ढूढ़ना, खारों में मत ढूढ़ना मुझको। इंसान हूँ सिर्फ इंसानियत की बात करता हूँ सदा से ही मैं जातिवादी, ब्राम्हण, क्षत्रिय, डोम, चमारों में मत ढूढ़ना मुझको। . परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले...
नाटककार
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नाटककार

प्रेमचन्द ठाकुर बोकारो (झारखण्ड) ******************** सिमट जाती हैं हमारी आत्माएँ कहीं कोने में वेदना की प्रहार से, निशब्द हो जाते हैं हमारे चेहरे पितृसत्ता के समक्ष, सजल हो जाते हैं हमारे नयन परिजनो की निश्छलता के कारण। कभी हम अभिमान बन जाते हैं तो कभी अपमान, हमारी न कोई पहचान। दहलीज़ हमारे बदल जाते हैं माथे पर सिन्दुर लगते ही, प्रथा है शायद हम अबलाओं के लिए। हमें हर क्षण सहिष्णुता का स्वयंसेवक बनाया जाता है और यही हमारी पहचान। हमें किस-किस रूप में और दिखाएँ जाएंगे कभी रावण की कैद में "सीता", तो कभी कौरवों के अपशब्दों की झोली में "द्रोपदी", तो कभी प्रणय पावन की अभिशाप में "शकुन्तला" और आज दरिन्दो की बुरी निगाहों में "कठपुतली"।   परिचय :- प्रेमचन्द ठाकुर निवासी :  बिरनी, जिला-बोकारो, झारखण्ड घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
हमने खुद की भुला दिया है
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हमने खुद की भुला दिया है

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** भुला के हमने यादें उनकी मानो की गंगा नहा लिया है झुका के पलके चुरा के नजरे पराया तुमने बना दिया है भूल के हमने यादे उनकी मानो की गंगा नहा लिया है ओ तेरा मिलना गले से लगना कसम ए वादे भूल दिया है जा रहा हु मायूस होकर मैंने भेष फकीराना बना लिया है भुला के यादे हमने उनकी मानो की गंगा नहा लिया है हैं ये मुहब्बत बड़ी अभागन पल में उसने ठुकरा दिया है न वो आये न ही याद आये खुद को हमने भुला दिया है भुला के यादे हमने उनकी मानो की गंगा नह लिया है . परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्र...
सीधे से जीवन में उलझा इंसान
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सीधे से जीवन में उलझा इंसान

राहुल शर्मा जयपुर, (राजस्थान) ******************** ईश्वर की है देन सीधा, सरल, सौम्य, मधुर जीवन। यूं ही ऐसा ही सोच अपने मन में रच दिया ये भुवन।। प्रकृति से अनजान मानुष आकर इस नरवेश में । धुंधली-सी नजर हकलाती सी आवाज इस परिवेश में।। देख मोहक रचना इस मनुष्य वासी ग्रह की। धीरे-धीरे बुनने लगा है इक कथा अपने मन ।। ये आकाश, पृथ्वी, अग्नि, हवा, जल पंचतत्व। मानव ने सुर्लभ प्रयोग यूं नाम दिये मनगढ़ंत।। प्यास व भूख मिटाने को, तन को रंगों से ढकने को। पांव की दूरियां मिटाने को, नभघर को छूने को।। इन सब को पूरा करने के लिए किये कई सृजन । प्रगति की अभिलाषा में दूर होते जा रहे सारे जन।। मनमोहक-सी धरा के सुंदर नजारे देख प्रेम-विश्वास में। दया, हित, करुणा भावों को रचा इन शब्दों में।। चलता रहा वह प्रकृति के रंगों को बदरंग करते। रंग बदला तो बदला मानव कुछ ये गहरा धरते।। धर लिए औजार नफरत, ईर्ष्या, घ...
फरियाद
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फरियाद

प्रवीण कुमार बहल गुरुग्राम (हरियाणा) ******************** हम दास्तान फरमाते रखें... पर सुनने वाला कोई ना था शायद यही कारण रहा... कि हम जिंदगी जीत ना सके तनहाइयां हर तरफ घेरे रही और हम किसी के हो ना सके... फरियाद क्या करते किसी से हर गम दिल में छुपाते रहे... अपने दर्द किसी को- सुना ना सके दिल तो दर्द से भरा रहा... दिल के चिराग जला ना सके... मोहब्बत का इजहार कैसे करते हैं... दिल ने कभी करने ना दिया... फरियाद क्या करते सुनने वाला कोई ना था शौक बहुत है जिंदगी में कमबख्त वक्त नहीं कभी.. पूरे होने ना दिया-क्या करता जिंदगी की हसरतों को... कभी दिल का सहारा ना मिला दिल भी जलता तो रहा... पर खामोश आग की तरह जिंदगी के चिराग तो... हर पल बुझते रहे-दिल के घाव बढ़ते रहे हर पल चरागों के जलने की गर्मी... जिंदगी के चारों ओर सिमट कर रह गई इलाज ढूंढता रहा- इलाज हो ना सका पर सभी ने इसे लाइलाज कह दिया मेरी...
सावन आयो रे
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सावन आयो रे

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** सावन आयो रे, सावन आयो रे, उमड़ घुमड़ कर आई बदरिया, आसमान में छाई बदरिया, चम-चम चम-चम बिजुरिया चमके, तन-मन को हर्षाए बदरिया, पशु-पक्षी नर-नारी सभी की, प्यास बुझायो रे, सावन आयो रे। छम-छम-छम पानी की बूंदे, घुंघरू की तान सुनाएं, पुरवइया के मस्त झकोरे, कानों में बंसी बजाए, भर गए सारे ताल-तलैया, बच्चे कागज की नाव चलाए, बरखा की ठंडी फुहार, तन-मन को हर्षाए, रंग उमंग और मस्ती के संग, गीत मल्हार गायो रे, सावन आयो रे। इठलाती बरखा की बूंदे, जब धरती पर आती है, महक जाती है, सौंधी खुशबू से, हरियाली छा जाती है, कल-कल स्वर में बहती नदियां, मधुर संगीत सुनाती है, हरित वर्णों में लिपटी वसुंधरा, दुल्हन सी शर्माती है, वृक्ष लताएं झूम-झूम आनंद मनायो रे, सावन आयो रे, सावन आयो रे। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्...
बरसात की बूंदें
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बरसात की बूंदें

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** छत की टीन पर पड़ती बरसात की बूंदें.. टप टप करती ज्यो गिरती हो जज्बात पर बूंदें... अमराई की छाव मे मिट्टी से खेलती यह बूंदें... अन्तर के धुए को मिटाती सहलाती यह बूंदें.. कहते है सब कुछ हंसीन बना देती ह यह बूंदें... फिर क्यो मेरे नयनो से खेलती है यह बूंदें... ऐ आसमा गिरती है क्या तेरी आंख से यह बूंदें... तेरे भी किसी दर्द को वयां करती है यह बूंदें .... परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अप...
स्वतंत्रता
कविता

स्वतंत्रता

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** हम सोचे थे हमारे आहूत महान आत्मा सोचे थे। हमारा राष्ट्र कितना प्यारा होगा वह क्षन जब सभी स्वतंत्र होंगे। वे सभी लक्षय उनकी चिर अभिलाषाओ को बेधकर जोक और मच्छरों के बेसुमार। झुंड सा बेगुनाह निरीह बेसहारा भारतीयों का नर पिसाच सा चतुर बहुरूपिया। रक्त चूस रहा है राष्ट्र का युवा मौन इन प्रताडनओ का दंश झेल रहा है। क्या यही स्वतंत्रता है जहा इनसानीयत नही हो भेद भाव की सिर्फ स्वार्थ भरी कूटनीति हो। जो हैम सभी का प्रतिनिधित्व करते है। इनसानीयत को भूल जातिवाद अलगाववाद की कुचक्र रचते है। सजग होना होगा हम सभी भारतीयों को बेरोजगारी भुखमरी स्थाई समाधान ढूंढना होगा। डपोरशंखी घोसणाओ को समझना होगा माँ भारती की बाली वेदी पर जो सपूत आहूत होगए उन्हें नमन करना होगा। रोजगार परक शिक्षा को सत प्रतिशत लाना होगा हर भारतीयों के घर मे खुशियाली हो ऐसा हमारा नीतिन...
जय किसान
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जय किसान

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** जग निर्माता, भाग्य विधाता मतृ भूमि का लाल है वो वीर किसान। जिसकी छमता का गुण गाता सारा हिन्दुस्तान है वो वीर किसान। बंजर धरती को उपजाउ, लोहे को भी सोना करदे है माने ये विज्ञान ऐसा वीर किसान। उसके घर में चक्की रोती भूखी बूढ़ी औरत सोती फिर भी करता अन्नदान ऐसा वीर किसान। चाहे हो सतयुग, द्वापर या हो त्रेता, कलयुग धरती का प्राणी चाहे पहुँचे बादल पार पर भूख मिटाता बस वो इन्सान जो है वीर किसान जय किसान, जय हिन्दुस्तान परिचय :- रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मं...
बचपन
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बचपन

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** सबसे अनोखी ये अवस्था ना कुछ करना ना कुछ पड़ना गलियोंमें गुमते ग्याला बनते खेल -खेल में जो लेते मजा कभी ना हम दिल में चुभाते दोस्ती में ना भेदभाव का चलन........ ऐसा था हम सब का बचपन... माँ -पिता के साथ जो रहते बारिश का हमको खुभ लुभाना, मिट्टी से जो घर बनाना दादी से कहानियां सुनते ननिहाल के लिए हम तो रोते, छोटी सी मुस्कान से आंगन मेरा भर जाता गलती जब हम करते, माँ के आँचल मे जा छिपते माँ की ममता का तब होता मिलन..... ऐसा था हम सब का बचपन... पता नहीं ये कोनसा युग है छुपा है बचपन को लेकर आई एक तकनीक एसी सपनों में होते जेसे घूम, हो गयें उस तकनीक में बूम चलो कुछ एसा करते, जिसका कभी ना आदि-अन्त करना हमको ऐसा प्रचलन.... ऐसा था हम सब का बचपन.. परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी( राजसमंद)...
वक्त के साथ
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वक्त के साथ

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** वो गलिया, वो दरवाज़े बदल जाते है। बचपन के चाव, जवानी आते-आते ठहर जाते है। कहाँ ढूँढे कोई, यादों के घरों को, यह तो चेहरे -दर-चेहरे वक्त के साथ बदल जाते है। हर एक का, हर एक से, निश्चित है समय। बीते वक्त में, अब जा के कही कोई मिलता है कहाँ वो दोस्त मेरे, वो भाई मेरा, वो छोटी बहनें एक छोटा -सा घर मेरा। एक सपना था मेरा। मां-बाप तक ही, यहाँ सारी, दुनिया सिमट जाती थी। मेरे घर से छोटी -सी सड़क शहर तक भी जाती थी। वक्त गुजरा, सब बदल गया। कोई मोल न था, जिन लम्हों का आज लगता है कि, सब वे-मोल गया। मैं बदला, सब बदल गया। मैं हूँ वही, पर अब वो सब। वो नहीं कहीं। वो गलिया, वो दरवाज़े, अब बुलाते नही। वक्त के साथ, उन से मैं, मुझसे वो अनजान सही। क्योंकि वो चेहरे पुराने अब कहीं नज़र आते नही। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन...
भूली बिसरी यादें
कविता

भूली बिसरी यादें

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** जब हम सब शाला जाते थे, तब पानी बाबा भी आते थे। वो जुलाई की पहली तारीख, तब झूम-झूम होती बारिश। पानी बाबा आया रे और ककड़ी भुट्टा फिर लाया रे। छप-छप चलते जाते थे, हम जोर-जोर से गाते थे। तब पानी बाबा आते थे। जब हम सब शाला जाते थे। वो नई-नई कॉपी किताब, वो नया-नया होता लिबाज़। वो प्रार्थना सभा की पंक्ति में, वंदेमातरम का छिड़ता राग। फिर निश्चिन्त हो जाते थे, हम गा-गाकर इतराते थे। तब पानी बाबा आते थे। जब हम सब शाला जाते थे। रोशनी शिक्षा की आ जाती, वह गाँव-गाँव मे छा जाती। खुली दीवारों सी पुस्तक पर फिर सुंदर चित्र सजाते थे। जब कागज की नाव बनकर, पोखर में चला कर आते थे। तब पानी बाबा आते थे। जब हम सब शाला जाते थे। ना वो सावन के झूले न्यारे, न कजरी-तान, न अमिया-डारे। बदल गए परिवेश, पढ़ाई से, अब बदल गई सब शालाएँ। खेल-खेल में गुरुजी पढ़ते थे, ह...
प्रीत की पाती
कविता

प्रीत की पाती

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) लिखती हूँ पाती नैनन से, आ जाओ अब मेरे मोहन। बहुत बर्ष बीत गए हैं अब, याद बहुत सताती हैं। दो दिन तक कह कर गये थे तुम, अब तक सावरे तुम नही आये। ये प्रीत की पाती लिख लिख कर, नैनन से अश्क बहाती हूँ मोहन। आ जाओ अब मेरे दिलवर, तेरी याद बहुत तडपाती है। जब चिड़िया करलव करती है, नदिया जब कल कल बहती है। तब याद तुम्हारी आती मोहन। आ जाओ अब मेरे मोहन, तेरी याद बहुत तडपाती है। मैं प्रीत की पाती लिख लिख कर, मनमीत तुम्हे भेजवाती हूँ। हृदय वेदना लिख कर, नाथ तुम्हे बुलाती हूँ। नैनन से नीर बरसता हैं, आ जाओ अब मेरे मोहन। परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्ष...
गाँव में
कविता

गाँव में

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** झेलता हूँ गाँव को। खेलता हूँ गाँव को। खेलना सरल नहीं। गाँव है तरल नहीं। उलझनों की बाढ़ है। संकट बड़ा ही गाढ़ है। मित्र शत्रु बन रहे। षड़्यंत्र में मगन रहे। रहा न गाँव गाँव है। स्नेहहीन छाँव है। चलता रहा मैं धूप में। जलता रहा मैं धूप में। छाले पड़े हैं पाँव में। रहना कठिन है गाँव में। रहना कठिन है गाँव में। परिचय :- मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' पिता - रामनन्दन मिश्र जन्म - ०२ जनवरी १९६० छतियाना जहानाबाद (बिहार) निवास - मुज्जफरपुर शिक्षा - एम.एस.सी. (गणित), बी.एड., एल.एल.बी. उपलब्धियां - कवि एवं कथा सम्मेलन में भागीदारी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन अप्रकाशित रचनाएं - यज्ञ सैनी (प्रबंध काव्य), भारत की बेटी (गीति नाटिका), आग है उसमें (कविता संग्रह), श्रवण कुमार (उपन्यास), परानपुर (उपन्यास), अथ मोबाइल कथा (व्यंग-रचना) आप भी ...
अभिमान क्यों करूँ मैं
कविता

अभिमान क्यों करूँ मैं

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** तत्वों के संगठन पर अभिमान क्यों करूँ मै? माटी के तन-बदन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? थम जाएँ कब, कहाँ पर मुझको ख़बर नहीं है गिनती के कुछ श्वसन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? बिजली है, आंधियाँ हैं, तूफ़ान है, ख़िज़ा है हंसते हुए चमन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? कल के महल-हवेली अब हो गए हैं खंडहर अपने किसी भवन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? आएगी जब क़यामत, हो जाएंगे फ़ना सब नश्वर धरा-गगन पर अभिमान क्यों करूँ मै? ओढ़े हुए कफ़न जब रहना है क़ब्र में तो अपने रहन-सहन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? मुरझाएगा कभी तो, उड़ जाएगा कहीं पर सुन्दर सुखद सुमन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? टिकता नहीं है जो भी आता है इस जगत में ख़ुशियों के आगमन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? जाना 'रशीद' जग से है ख़ाली हाथ आख़िर फिर माल और धन पर अभिमान क्यों करूँ मैं? परिचय -  रशीद अहमद शेख ...
सन ६२ का काल नही
कविता

सन ६२ का काल नही

राकेश कुमार साह अण्डाल, (पश्चिम बंगाल) ******************** भारत-चीन ना कभी हो सकता भाई-भाई, सरकार हमारी, करे अब इसपर कड़ी करवाई। सन ६२ का काल नही अब, सरकार हमारी बेकार नही अब। आँख झुकाना बहुत हुआ, आँख मिला कर बात करो अब। वक़्त बुरा था, कमजोड़ थें हम, फिर भी हिम्मत ना हारे थें। अब तो है देश समृद्ध हमारा, मातृभूमि हमे है सबसे प्यारा। विश्व पटल पर हिन्दूस्तान के वीर गाथाओं की धूम मची है। देश की रक्षा में, बेटे क्या, बेटियाँ भी सीमा पर खड़ी है। हम कसम लें खुद से, चीन के सामानो का बहिष्कार करेंगे। मिल कर पुरे देश में स्वदेशी का प्रचार और प्रसार करेंगे। भले हमारी संसकृति की पहचान सौहार्द्र और शान्ति है। परन्तु देश के सम्प्रभुता की माँग, फिर एक स्वदेशी क्रांति है। परिचय :-राकेश कुमार साह निवासी : अण्डाल, पश्चिम बंगाल घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी...
आती जाती रहेगी बाधा
कविता

आती जाती रहेगी बाधा

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** बाधाओं पर आती बाधा, इधर उधर से आती बाधा। हुआ थकन से चूर चूर तन, शूल डगर में और भी ज्यादा। अँधियारी घनघोर घटायें, कितना भी लहराकर आयें। बहलायें या फिर धमकायें, फुसलायें, पथ से भटकायें। लक्ष्य के पथ पर सजग रहो, खुद मंज़िल परवान चढ़ेगी। अम्बर को छूकर आने की पंछी को वही उड़ान मिलेगी। इच्छाशक्ति विश्वास प्रबल हो, सफल ही होगा अटल इरादा। ओढ़, छोड़कर सभी लबादा, आती जाती रहेगी बाधा। परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
खटखटाने दो
कविता

खटखटाने दो

डाॅ. राज सेन भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** खटखटाने दो द्वार दुःखो को हम खुशियों में चूर रहे। व्यस्त रहकर सदा सद् कर्मों में हम बुराइयों से दूर रहे।। ईश्वर देखकर लिख रहा हरपल कर्मों का खाता हमारा जरूरी नहीं कि हम दुनिया के दिलों में भी मशहूर रहे। चल रहे हैं यदि सबसे अलग हटकर सद् मार्ग में हम तो मिलेगा कम औरों से पर होगा सुखद याद ये जरूर रहे। सौंप दिया जब स्वयं को प्यारे प्रभु के हाथों में विश्वास कर तो उसके दिये फूल और हमारे उगाऎ काँटें मंजूर रहे। बदला न लें बदल कर दिखाऎं‌ अंश मात्र भी जो बुरा है किसी का किरदार ही बुरा हैं तो हम भी क्यों क्रूर रहे। ना रख उम्मीद जमीं के रहने वालों से स्वर्गिक सुख लेने की उड़े हल्का होकर दिव्य गुणों की खुशबू से भरपूर रहे। रहना हैं तो 'राज़' खुशियाँ बाँटे बस यही राह श्रेष्ठ है दुःख देने वाले को भी दे दुआ हमारा तो यही दस्तूर रहे।। परिचय : डाॅ. राज...
मेरे पापा
कविता

मेरे पापा

डॉ. मिनाक्षी अनुराग डालके मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** मेरे पापा मैं मुस्कुराऊ तो खुद मुस्कुराते, मैं रोऊ तो खुद भी रोने लग जाते, मेरी खुशी में खुश होते, मेरे गमों में मुझे समझाते ऐसे मेरे पापा..... अभी तो मैंने पापा बोलना भी नहीं सीखा, लेकिन जब बोलूंगी, तो जो खुशी से झूमेंगे और मुझे अपनी बाहों में ले लेंगे ऐसे मेरे पापा... जिनकी उंगली पकड़कर में चलना सिंखुगी जिनके आवाज लगाते दौड़ी चली आऊंगी बिना मेरे कुछ मांगे जो मुझे दिला दे जो मेरी हर इच्छा पूरी करवा दे ऐसे मेरे पापा... मैं ही उनकी दुनिया उनकी दुजी ना कोई इच्छा बस हमेशा मेरे लिए प्यार ऐसे मेरे पापा.... परिचय : डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके निवासी : मनावर जिला धार मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
उनकी इस महफ़िल में
कविता

उनकी इस महफ़िल में

मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव बिजनौर, लखनऊ ******************** रौनक भरी उनकी इस महफ़िल में, उनके लिए मेरा मन क्यों उदास है? खड़ें हैं सामने उनके सभी भीड़ में, नहीं वो क्यों मेरे पास हैं? चारों ओर शोर ठहाका नजारों में, पर होंठ क्यों मेरे चुपचाप हैं? सभी व्यस्त इधर उधर की बातों में, हम बतियाते क्यों अपने आप हैं? मुंह फेर कोई बात ना करे हमसे, हमें फिर क्यों उनका इंतजार है? हर कोई दोस्तों से घिरा, मगर अकलेपन में हमें क्यों उनकी तलाश है? न बात करते हों मुझसे वो अब, फिर मुझे क्यों उनसे ये आस है? उनके बेरुखे व्यवहार में किस्सा कोई जरूर है, मगर कसूर क्या मेरा, मसरूफियत क्यों मुझसे है? बेशक रूठकर मुझसे दूर वो चलें जायें, दूर होकर भी मुझे क्यों उनसे हीं फरियाद है? उनके लिए मेरा मन क्यों उदास है? . परिचय :-  मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव निवासी : बिजनौर, लखनऊ, उत्तर प्रदेश घो...
वर्षा आई
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वर्षा आई

राम शर्मा "परिंदा" मनावर (धार) ******************** रिमझिम-रिमझिम वर्षा आई चिड़िया रानी खूब नहाई। कभी धूल में लोट लगाती फिर पानी में लौट आती शेम्पू--साबुन नहीं लगाई चिड़िया रानी खूब नहाई। चीं-चीं कर चिड़िया गाती गाती जैसे प्रेम की पाती मौसम आया बड़ा सुखदाई चिड़िया रानी खूब नहाई। पानी में ही दौड़ लगाती दाना भी पानी में खाती आज खुशी उसने है पाई चिड़िया रानी खूब नहाई। परिचय :- राम शर्मा "परिंदा" (रामेश्वर शर्मा) पिता स्व. जगदीश शर्मा आपका मूल निवास ग्राम अछोदा पुनर्वास तहसील मनावर है। आपने एम.कॉम बी एड किया है वर्तमान में आप शिक्षक हैं आपके तीन काव्य संग्रह १- परिंदा, २- उड़ान, ३- पाठशाला प्रकाशित हो चुके हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है, दूरदर्शन पर काव्य पाठ के साथ-साथ आप मंचीय कवि सम्मेलन में संचालन भी करते हैं। आपके साहित्य चुनने का कारण - भ...
हमारी पहचान
कविता

हमारी पहचान

प्रेमचन्द ठाकुर बोकारो (झारखण्ड) ******************** सिमट जाती हैं हमारी आत्माएँ कहीं कोने में वेदना की प्रहार से, निशब्द हो जाते हैं हमारे चेहरे पितृसत्ता के समक्ष, सजल हो जाते हैं हमारे नयन परिजनो की निश्छलता के कारण। कभी हम अभिमान बन जाते हैं तो कभी अपमान, हमारी न कोई पहचान। दहलीज़ हमारे बदल जाते हैं माथे पर सिन्दुर लगते ही, प्रथा है शायद हम अबलाओं के लिए। हमें हर क्षण सहिष्णुता का स्वयंसेवक बनाया जाता है और यही हमारी पहचान। हमें किस-किस रूप में और दिखाएँ जाएंगे कभी रावण की कैद में "सीता", तो कभी कौरवों के अपशब्दों की झोली में "द्रोपदी", तो कभी प्रणय पावन की अभिशाप में "शकुन्तला" और आज दरिन्दो की बुरी निगाहों में "कठपुतली"। परिचय :- प्रेमचन्द ठाकुर निवासी :  बिरनी, जिला-बोकारो, झारखण्ड घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां...
जिंदगी एक बार तो बता देती
कविता

जिंदगी एक बार तो बता देती

प्रवीण कुमार बहल ******************** वह कौन है जो मुझसे नफरत करता है क्यों मेरे बगीचे में उसका हल्ला चलता रहता है उसे ना तो कयामत का डर को नफरत थी मुझसे मैं तो उसकी तमन्ना पूरी करता रहता तकल्लुफ.. क्यों करते मैं तो रोज ही आकर कह देता अपने दरबार में रोज बुला लेता ताकि तुम चंद लोगों के आगे मेरी हसरतों का जनाजा ना पीटते मुझे देखना था.. वह कौन है जो मेरे से नफरत करता है मेरे पास आता.. मैं तुम्हें खुद आंखों पर बिठा लेता मैं तो सामने आने वालों से प्यार करता हूं जिंदगी एक बार तो बता दे..वह कौन है जो मुझसे नफरत करता है परिचय :- प्रवीण कुमार बहल जन्म : ११-१०-१९४९ पिता : डॉ. मदनलाल बहल व्यवसाय : सेवानिवृत- मैनेजर, इंडियन ओविसीज बैंक निवासी : गुरुग्राम (हरियाणा) उपन्मास : रिश्ता, ठुकराती राहें काव्य संकलन : खामोशी, दिशा, चिराग जलते रहें, आंसू बहते रहे, आदि १० पुस्तकों का प्रकाशन। पुरस्कार ...