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कविता

असंगत
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असंगत

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** जो संगत नहीं होता वही 'असंगत' है, यह संसार दोनों में ही बहुत पारंगत है। 'असंगत' दैनिक जीवन का‌‌ ही एक अङ्ग है, बदलता‌ प्रतिदिन जीवन का जैसे रङ्ग है। असंगत हैं सभी के शरीर के कुछ अङ्ग भी, असंगत हैं चाल-चलन असंगत हैं ढङ्ग भी। शरीर की सभी अंगुलियाॅं होती असंगत हैं, किन्तु सभी कार्यों में ‌वे होती पारंगत हैं। असंगत सदैव ही नकारात्मक नहीं होता, ‌बुराइयों से असंगत होना ही सही होता। असंगत है संसार के सभी व्यक्तियों का रुप, मिलता नहीं कभी भी किसी का स्वरूप। कोई यहाॅं श्याम वर्ण तो कोई पूरा श्वेत है, कहीं है धरा उर्वर तो कहीं बिलकुल रेत‌ है। कोई अकिंचन तो कोई‌ धनपति कुबेर है, कहीं गेंदा, गुलाब तो कहीं केवल कनेर है। असंगत हैं बोली-भाषा असंगत हैं देश, असंगत हैं रहन-सहन असंगत हैं वेश। असंगत को संगत का मिले जब...
प्रेम किया नहीं जाता
कविता

प्रेम किया नहीं जाता

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रेम में मांगा नहीं जाता प्रेम में दिया जाता है प्रेम किया नहीं जाता प्रेम जीया जाता है प्रेम में स्वार्थ नहीं होता प्रेम में परमार्थ होता है प्रेम को मापा नहीं जाता प्रेम को साधा जाता है प्रेम एक तरफा भी होता है प्रेम दूर से भी निभाया जाता है अखंड प्रेम बार-बार नहीं होता प्रेम एक ही बार में संपूर्ण होता है प्रेम पागल नहीं होता प्रेम तो चैतन्य संक्रिया है प्रेम को सोचा नहीं जाता प्रेम एक सतत प्रक्रिया है प्रेम में किसी बांधा नही जाता प्रेम में इंसान खुद बंध जाता है प्रेम में सतत प्रवाह होता है प्रेम को कहीं रोका नहीं जाता प्रेम में गमगीन नहीं होना पड़ता प्रेम में पूर्णत: लीन होना होता है 'तू नहीं तो कोई और' अ-प्रेम है प्रेम का कोई विकल्प नहीं होता परिचय :- शिवदत्त डोंगरे...
मत  हो  दुःखी…मेरे  देश
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मत हो दुःखी…मेरे देश

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** आयेगा लौट तेरा यश पावन मत हो दुःखी मेरे देश ....!! छट जाएगा छल-छद्म धरा से, जायेगी थम नफ़रत की आंधी। आयेगी बसंत-बहार चमन में, प्रगटेगा फिर एक अटल गांधी। शोलों पे होगी बर्षा शबनम की, कांटें कलियां बन जाएंगे महक। सरिता भर नेह अगाध बहेगी, शाँखें पंखुड़ी बन जाएंगी चहक। उन्मुक्त गगन में उड़ते पंक्षी, देते जायेंगे अनुपम सन्देश ! आयेगा लौट तेरा यश-बैभव मत हो दुःखी मेरे देश !!१!! उगलेगी धरा मोती-माणिक्य, खलिहान धान से विपुल भरेंगे। कल-कल बहेंगे निर्झर हरदम, पतझड़ में पुनीत मुकुल खिलेंगे। हर अधर गीत गायेगा मिलन के हर अल्फ़ाज़ राग बन जायेगा। सदभावों की शुभ घड़ी लगेगी, स्वार्थ का कलंक धूल जाएगा। हर ख़्वाब समर्पित होगा तुझ पर हर ख़ुशी होगी तेरा उद्देश्य। आयेगा लौट तेरा यश पावन मत हो दुःखी मेरे देश ...
जल बिन सब सून
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जल बिन सब सून

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** पंच तत्व में है अनमोल जीवन आधार जल करते जो बर्बाद आज उसे पछताओगे तुम कल। जल बिन होगा सूना सागर नदियाँ होंगी सूखी जो न सहेजा इस अमृत को धरती होगी भूखी। पीयूष रूपी गंगा जल का कर न सकोगे वंदन प्यासे कंठ से गूंजेगा चहुँ क्षुधित जीवन का क्रंदन अंधाधुंध जो करते रहोगे भूमि जल का दोहन न देख सकोगे अंबर में तुम वारिद का आरोहण। जल से ही तो जीवन हुआ धरती पर साकार जो मोल न समझे इसका तुम यह जीवन है बेकार। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिच...
जीवन बचाव केंद्र
कविता

जीवन बचाव केंद्र

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिंदगी बचाने और देखभाल करने की ग्यारंटी देने वाले मशहूर चिकित्सकीय संस्थान के द्वारा जैसे ही स्पेशल वार्ड से जनरल वार्ड में मरीज की शिफ्टिंग हुई व्यवहार बदला बदला सा दिखाया जाने लगा, मरीज के परिजनों को इस बदले व्यवहार से झटका आने लगा, कहां रात व दिन भर मिटने को तैयार संस्थान के स्टॉफ वालों को अटेंडरों में बित्ते भर भर कांटे नजर आने लगे, महानुभव लोग गरियाने झुंझलाने लगे, छत्तीस घंटों से नींद से दूर मरीजों के रिश्तेदारों से चिकित्सालय को खतरा नजर आने लगे, इधर मरीज परेशान, उधर चौकीदार सुजान, पेशेंट की चिंता कि अब मुझे रात में कहीं जरूरत की जगह पकड़कर ले जायेगा कौन? पहरेदार का गुरूर कैसे रहे मौन? मरीज और उसके घरवाले सोच रहे कि कल तक गूगल में सकारात्मक फ़ीडबैक लिखाने वाले आज कौन सा ...
विकल्प
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विकल्प

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** समय कभी तय नहीं होता होता भी तो मेरे हाथ मे नही है किन्तु विकल्प क्या है! चाँद और सूरज ने अकेले ही मजबूत बनने के बहाने दे दिए बारिश की बूँदों ने हथेलियों पर कुछ ख्वाहिशे रख दी जिनसे हथेलियाँ तो भीगी किन्तु रेखाएं भरी नहीं, ऊँचाई ने चलते चलते पर्वत के शिखर पर पहुचा दिया आनंदित हूँ क्युकी विदा का पल निकट आता जा रहा है उस हवा की तरह जाना चाहती हूँ कि गुजरूं करीब से तो सरसराहट की भनक भी ना हो, शिकन नहीं मुस्कराहट छोड़ जाना चाहती हूँ जीवन पर्यंत प्रयासशील रही सबकी झोली खुशियों से भरना चाहती थी जीना कोई मजबूरी नहीं, बस शिवमय होना चाहती हूँ!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्...
न्याय
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न्याय

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** कलयुग है कलयुग आज का रावण एक नहीं हर जगह दिखाई देने लगे खूनी खेल, बलात्कार, पाखंड, दबाव डालना आदि क्रियाएं प्राचीन रावण को भी पीछे छोड़ती दिखाई देने लगी आकाशवाणी मौन सब बने हो जैसे धृतराष्ट्र जवाब नहीं पता किसी को जैसे इंसान को सॉँप सूंघ गया आवाज उठाने की हिम्मत होगई हो परास्त शर्मो हया रास्ता भूल गई पहले के रावण का अंत नाभि में एक बाण मार कर किया आज के रावणों का अंत कानून के तरकश में न्याय के तीर ने कर डाला जो उनको मानते /चाहते अब वो ही उनसे मुँह छुपाने लगे कतारे लगी जेलों में उनकी अशोभनीय हरकतों से आज के रावणों ने आस्था के साथ खिलवाड़ करके मासूमों का हरण करके कई चीखों को दफ़न कर दिया आज के इन रावणों ने पूरी दुनिया इनकी हरकतों को देख थू- थू कर रही आवाज उठाने वालों और न्याय ने मिलकर किया शंखनाद उ...
जीवन अनंत संघर्ष हुआ
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जीवन अनंत संघर्ष हुआ

लक्ष्मीनारायण धिरहे हसौद, जिला सक्ति, (छत्तीसगढ़) ******************** कभी चंचल ये तन हुआ कभी विचलित ये मन हुआ ... कभी निराशा सा गट्ठर लिए कभी हर्ष का संगम लिए ... ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी आंखों में अश्रु सा छलका, कभी दुख में कभी सुख में झलका, आंखों में ये असार लिए, ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी पहाड़ों सा चलना हुआ, कभी ढलानों सा उतरना हुआ ... चल रही ज़िंदगी, यही कश्मकश लिए, यह जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी बढ़ना हुआ, कभी रुकना हुआ, गिर कर उठना, उठ कर चलना हुआ ... न रुकने, न झुकने का आव्हान लिए, ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी इनकार हुआ, कभी स्वीकार हुआ, कभी बना काम का, कभी बेकार हुआ, साहस, धैर्य का प्रमाण लिए ... फिर मन में ये नित प्राण लिए, ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... परिचय :- लक्ष्मीनारायण धिरहे छात्र : दिल्ली विश्वविद्यालय निवासी : ह...
चलो मिटा दें घृणित दायरे
कविता

चलो मिटा दें घृणित दायरे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** चलो मिटा दें घृणित दायरे, सभी एक हो जाएँ। छुआछूत का घृणित दायरा, मिलकर सभी मिटाएँ। ऊँच-नीच का भेद मिटा दें, समरसता आएगी। होगी तब समाज में समता, सबके मन भाएगी। पनप रहा है एक दायरा, ऊँच-नीच का भारी। निर्धन और धनी का अंतर, बहुत बड़ी बीमारी। कुछ दायरे सदा दुखदाई, हमें कलंकित करते। भाईचारा सदा मिटाते, जीवन में दुख भरते। करें विनष्ट दायरे मिलकर, बंधन दूर हटा दें। पड़े जरूरत घर, समाज को, अपना शीश कटा दें। नहीं दायरे कामयाब हों, जो संघर्ष बढ़ाते। मीलों दूर रहे हम उनसे, जो पीड़ा पहुँचाते। जीवन के दायरे मिटा लें, रहें सदा हिल मिलकर। मन की बगिया, महके ऐसे, सुमन सुगंधित खिलकर। भाईचारा रहे पल्लवित, प्रमुदित दुनिया सारी। सुरभित सुषमा रहे हिंद की, ज्यों केसर की क्यारी। परिचय ...
फकीर तुम्हारे गाँव में
कविता

फकीर तुम्हारे गाँव में

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** आओं लेकर चलें तुम्हें एक ऐसे गाँव में.... जहाँ आज भी खटिया बिछीं रहतीं है नीम की छाँव में... क्या तुम्हारे गाँव की धरा को भी पुजा जाता है ऐसे ही बिन पहने चप्पल पाँव में... क्या फकीर तुम्हारे गाँव में भी ऐसा होता है... रातें के अंधेरे में मौन रहकर कोई बालक रोता है... जैसे पुकारते है... मुझे मेरे दादाजी के नाम से... क्या तुम्हें भी तुम्हारा गाँव तुम्हारे दादाजी के नाम से पुकारता है... क्या फकीर तुम्हारे गाँव में भी ऐसा होता है... दादी की परीयों वाली कहानी और पेडों पर तोता है... जहाँ गाती है नदियाँ... आज भी घोसला बनाती है पेडों पर गौरय्या... क्या तुम्हारे गाँव की गलियों में भी बाँसुरी बजाता है कोई कन्हैया... क्या फकीर तुम्हारे गाँव में भी ऐसा होता है... पंछी आजाद है और कहां जाता नदियों को...
लेखनी मुझसे रूठ जाती है
कविता

लेखनी मुझसे रूठ जाती है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जब मैं लिखने बैठता कविता, लेखनी मुझसे रूठ जाती है, वह कहती मेरा पीछा छोड़ दो, मुझसे अपना नाता तोड़ दो, क्या तुम मुझे सौंदर्य में ढाल सकोगे, इस घुटन भरे माहौल से निकाल सकोगे, क्या तुम कुछ अलग लिख सकोगे, या तुम भी दुनिया की बुराइयों को, अपनी रचना में दोहराओगें ? दहेज, भूख, बेकारी के शब्द में अब ना मुझको जकड़ना, हिंसा दंगों या अलगाव के चक्कर में ना पड़ना, नेताओं को बेनकाब करने में मेरा सहारा अब ना लेना, बुराइयां ना गिनाना अब बीड़ी सिगरेट या शराब की, उकता गई हूं अब मैं, बलात्कार हत्या या हो अपहरण, इन्हीं शब्दों ने किया है जैसे मेरे अस्तित्व का हरण। लेखनी बोलती रही, मुझे मालूम है तुम इंसानियत की दुहाई दोगे, इसलिए मैं पास होकर भी हूं पराई। अगर लिखना हो तो लिखो, प्रकृति की गोद में बैठ कर, ...
प्रहार
कविता

प्रहार

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भावना क्यों शून्य हुईं, शब्द कहां गुम हुए हे मनु मन भंवर तुम कहां खो गये खनक चूड़ियों की गुम हुईं इस लिप्त से संसार में हर जगह इज्जत लुटती है यहां बाज़ार में वजृ सा प्रहार होता शब्द झ झंझावातों का। वक्त की पुकार में गुम गये ख्याल सभी वक्त की धार में सुप्त हो गये ख्याल सभी यादों के झुरमुट से झांकती रवि किरण ख्यालों की चाल में दफन हुईं सहम, सहम। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर स...
नववर्ष
कविता

नववर्ष

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** नया वर्ष शुभ मंगल मय हो, चहु दिशा सब आनंद मय हो, विक्रम संवत का शुभारंभ आज से नवरात्रि का मंगल पर्व है, चेटीचंड का पर्व आज है, राज्य तिलक प्रभु राम का आज है, सब मिल आज नया वर्ष मनाए, पूरन पूरी सब मिलकर खाएं, सभी रोग अब कोसो दूर, मुख पर सदा मुस्कान बनी हो, सावन सी हरियाली आये, आमो पर छाये हे मोड, नई कोपले पेड़ पर आई, हरियाली चहुँ दिशा है छाई, वन मै नाचे देखो मोर, जीवन हराभरा हो जावे, आपस मै सब प्रेम लुटावे, मन मै कोई राग द्वेष ना, निर्बल सबका मन बन जाये, दुख सुख मै सब साथ रहे हम, ऐसा नववर्ष मंगलमय बन जाए, किरण विजय शुभ कर्म करे हम, जीवन सार्थक अपना हो जाये, नववर्ष मंगल बन जाये। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व...
ऐ वक्त तेरी अदाओं को देख …
कविता

ऐ वक्त तेरी अदाओं को देख …

शोभा रानी खूंटी, रांची (झारखंड) ******************** ऐ वक्त तेरी अदाओं को देख ... बिखर सा गया हूं मैं.... बहुत याद आती है मुझे.... खुद की.... मुनासिब होगा अगर तू मुझे पहले जैसा कर दे..!! बहुत याद आती है मुझे... वो बचपन के ख्याली पुलाव... वो लड़कपन के हजारों खिलौने... वो अल्हड़ आजादी... वो निश्चल हृदय... वो बेख्याल सा मन... वो सुकून भरी नींद... वो सुनहरी खुशनुमा सुबह... भरी दोपहरी में दोस्तों संग... कच्ची अंबिया चुराना... यारों संग बर्फ के गोलो को... मां से छुपा कर खाना.. वो बारिश के पानी मे... कागज की कश्ती चलाना... वो पूस की ठिठरन में .... अपनो संग आग सेकना... वो सावन के झूले मे... गूंजती हंसी और ठिठोलियां.... वो ख्वाबो का जहँ।... और मुट्ठी भर आसमा... वो बचपन के दिन.... वो इंद्रधनुषी सा सतरंगी समा.... बदलते वक्त के साथ .... खोता हुआ झिलमिलाता सा.... ...
माँ से बोली आयु
कविता

माँ से बोली आयु

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** बोली माँ से नन्ही आयु रख लो वापस पूरी-आलू लो खिचड़ी भी तुम ही खा लो रखो यहाँ मत दाल उठा लो सेब न मुझको कुछ भाता है यह सब कौन है जो खाता है बनो न मेरी नानी मम्मी ले जाओ बिरयानी मम्मी कहाँ पुलाव मैं खा पाती हूँ बस भूखी ही रह जाती हूँ सुन कर बोली मम्मी प्यारी गलत है बिटिया रानी बात तुम्हारी बच्चे सब कुछ जो खाते है वे सेहतमंद रह पाते है बड़ी हो तुम यह बात पता है नहीं दूध में सारी गिजा है। परिचय :- नितेश मंडवारिया निवासी : नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय ह...
स्वास्थ्य ही सब कुछ है
कविता

स्वास्थ्य ही सब कुछ है

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** अच्छा स्वास्थ्य ही हमारे जीवन का आधार है। बिना अच्छे स्वास्थ्य के जीना बेकार है। ******** धन चला गया तो वो दोबारा वापस आ जायेगा। परन्तु स्वास्थ्य की कमी को कोई दूर नही जब कर पायेगा। ******* जब आदमी स्वास्थ्य होता है। तभी हर चीज का आनंद लेता है। ******* करोड़ों रुपये भी बेकार है। यदि आप बीमार है। ******** पहले अच्छा स्वास्थ्य बाद में सारे बाकी काम। खुद भी पालन करें और जमाने को दे ये पैगाम। ******* समय पर खाना, समय पे सोना यदि यह कर लिया। तो जिंदगी में कभी नहीं पड़ेगा रोना। ******* स्वास्थ्य व्यक्ति से ही स्वास्थ्य राष्ट्र बनेगा। यदि होंगे हम बलशाली तो सारा विश्व हमसे डरेगा। ******* परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्व...
घी रोटी
कविता

घी रोटी

सूरज सिंह राजपूत जमशेदपुर, झारखंड ******************** मां, मेरे हिस्से की क्या हुई ? क्या वह सच में बहुत अच्छी होती है ? स्कूल में, हर दिन कोई ना कोई लाता है घी रोटी ! मैं ..., मां मैं कभी क्यों नहीं ले जाता ? तुम तो हमेशा कहती हो .... कल ले जाना ! कल ... कल ये कल कब आएगा? अब तो, मां अब तो सब मुझे चिढ़ाते हैं ... प्याज रोटी ! मां, पापा कब लायेंगे? धी रोटी ! वो कहां गए? कब आयेंगे? कब लायेंगे? धी रोटी ! मुझे याद है पापा लाए थे ... बहोत पहले सब्जी और घी रोटी, पापा अपने हाथों से खिलाए थे ! अब इतने दिनों से नहीं आए, सब लोग बुरे हैं ... उनके शरीर घी मल दिया और न जानें कहां ले गए? पापा को कंधे पर झूला झुलाते ... मां, क्या पापा घी लेकर गए हैं लाने को रोटी? सब लोग खाए थे तब हमारे घर पूरी पकवान और दही भी ! अब कोई नहीं आता हमारे घर, मां, तब ...
बुरा न मानो होली है …
आंचलिक बोली, कविता

बुरा न मानो होली है …

ग्वाला प्रसाद यादव 'नटखट' जोशी लमती, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) गरीबहा मनके घर फुटे परे, चोरहा मन महल में ढ़लगे हे घुसखोर के दिन-बादर चलत हे अऊ नेता मनके बात अलगे हे इहां दान-धरम के गोठे गोठ में कोढ़िया मनके भरे झोली हे अऊ तभो कहत हम छत्तीसगढ़िया बुरा न मानो होली हे.... नौकरी वाले घर अऊ नौकरी आथे फेर गरीब के लैइका बेरोजगार हे ब्यवहार कुशल जऊन जाने नहीं तेखर तीर डिग्री के भरमार हे ये लोकसभा चुनाव में नेता मन देथे भांग के मीठ मीठ गोली हे अऊ तभो कहत हम छत्तीसगढ़िया बुरा न मानो होली हे.... विकास के धुआं म हाय-हाय मनखे के जिनगी जरत हवय धरती के रंग बेरंग होथे इंहा कतको जीव जंतु मरत हवय सब्बो ल जानके मनखे करथे पेलहा कस हंसी ठिठोली हे अऊ तभो कहत हम छत्तीसगढ़िया बुरा न मानो होली हे.... परिचय :-  ग्वाला प्रसाद यादव 'नटखट' निवासी ...
जल जीवन का आधार
कविता

जल जीवन का आधार

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** करें सुरक्षित बूंद-बूंद जल, है जीवन का एक आधार।। धधक उठेगी पावक चहुंदिश, धरणी जाएगी हो वीरान। नही करेंगे खग-मृग विचरण नही होंगे सौम्य-सुरभित मैदान। नही होंगे जन-जंगल-जीवन, क्षिति-क्षितिज व घर-द्वार। करें सुरक्षित बूंद-बून्द जल, है जीवन का एक आधार।। थम जाएंगी लहरें सिंधु की, जायेंगे तट नदियों के सूख। डावर-खाई ज्वाला उगलेंगे निर्झरी कंठ जाएंगे हो मूक। छम-छम पावसी-पायल की, मिट जाएगी सरस् झंकार। करें सुरक्षित बून्द-बून्द जल, है जीवन का एक आधार।। नही खिलेंगे गुल गुलशन में मधुवन नीरस हो जायेगा। कहो! कृष्ण किस कदम, बैठ मुरली सुमधुर फिर बजायेगा। मिट जाएगी सभ्यता-संस्कृति, बच न पायेंगे सु-संस्कार। करें सुरक्षित बून्द-बून्द जल, है जीवन का एक आधार।। स्वर्ण-रजत से हिंम बिन्दु नई प्रातः...
गौरैया की वाणी
कविता

गौरैया की वाणी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सोचती हूँ स्वयं के अस्तित्वहीन होने के पहले अपना परिचय याद दिला दूँ इसी बहाने मानव की संवेदनहीनता का परिचय दे दूँ इस स्मृति दिवस पर सबकी यादों को ताजा कर सकूं सबको बता सकूं, कभी हर घर के मुंडेर और झुरमुट में होता था घोंसला हम नन्ही परियो का फुदकते-चहचहाहते कभी इत आंगन कभी उत आँगन छोटा सा अपना जीवन गुहार लगाती, कराहती नष्ट होती जा रही हैं हम गौरैया ज्ञान विज्ञान ने ऐसा हाहाकार मचाया सुख रहे नदी गाँव और ताल बसेरा होता था हरी-भरी वृक्षों की डालियाँ, छज्जा बनती थी टहनियां, कभी किसी रोशनदान, कभी किसी आँगन में झूमा करती थी हम सब अनवरत विकास ने उजाड़ दिए वो हरियाली वो घर आंगन, कहां जाए दाना चुगने, संग अपने सखी सहेलियों के फुदकने, हम सब तो हैं पर्यावरण की सहेलियाँ घरो...
नदियों की परिभाषा
कविता

नदियों की परिभाषा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नदियों का अमृत घुला नीर कर देता मन को अमर नदियों की परिभाषा आती है समझ डुबकी लगाने आचमन करने से। देव, साधु संतों श्रद्धालुओं से बन जाती नदी स्वर्ग हो जाते शीश नतमस्तक और दुर्लभ दर्शन हो जाते सरल नदियाँ पूजनीय जिसमें स्नान से हो जाते लोग अमर। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता सम्मान : हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मा...
घबराहट क्यों …?
कविता

घबराहट क्यों …?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** माना कि हम दुनिया में जीने आए हैं, जिंदगी का हर रस पीने आए हैं, पर हम भूल क्यों जाते हैं, कि हर परीक्षा, हर तकलीफ, हमें मजबूत करने आते हैं, बिना संघर्ष का जीवन हम कैसे सम्पूर्ण मान लें, खुशियों को ही जीवन का हिस्सा क्यों जान लें, संघर्षों से लड़ना, पल पल भिड़ना, और फतह हासिल कर एक कदम आगे बढ़ना, यही तो हमारे जीवटता का प्रतीक है, मौत की ओर बढ़ते जीवन का हर कदम होता ही सटीक है, फिर जीवन के विभिन्न पायदानों से हम रह रह घबराएं क्यों, इसे अपनी मंजिल की सीढ़ी कैसे और किस कारण न बनाएं क्यों, पानी में उतर कर यदि वे घबराते, फिर कैसे वो गोताखोर कहलाते, अदम्य साहस और शक्ति ही हमें सफल बनाते हैं, तभी तो ये जज्बा हमें काफी आगे तक लेके जाते हैं, घबराहट सिर्फ ठिठकाता है, पर इरादे खत्म नह...
मैं एक सिपाही हूं
कविता

मैं एक सिपाही हूं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं एक सिपाही हूं सिपाही जो जीता है देश के लिए, सिपाही जो मरता है देश के लिए, सिपाही फिर भी गुमनाम हैं। मैं एक सिपाही हूं सिपाही जो एक शिक्षा हैं, सिपाही जो एक प्रेरणा हैं, देश पर न्यौछावर होने के लिए, फिर भी उसे स्थान नहीं मिलता दिलों में, इतिहास के पन्नों में भी सिपाही का नाम नहीं, रंगीन हो जीवन में ऐसी कोई शाम नहीं। मैं एक सिपाही हूं मेरा नाम मिलेगा सरहद पर दूर कहीं रेगिस्तानों में, पहाड़ों में, बर्फीले तूफानों में, अनजानी सी बारुद गोली में, और मिलेगा नाम देश के सुनहरे भविष्य की नींव में, फिर भी सिपाही गुमनाम हैं ... मैं एक सिपाही हूं जिसकी कल तक जय-जयकार थी, तब देश को मेरी जरूरत थी, आज मुझे भुला दिया है, जब मुझे देश की जरूरत है, कल तक कंधों पर मेरे देश की सुरक्षा का भार...
गीत प्यार के गाने वाले
कविता

गीत प्यार के गाने वाले

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** गीत प्यार के गाने वाले प्यार पे जान लुटाने वाले जाकर क्यों न आते हैं। रह जाती हैं बातें उनकी रह जाती हैं यादें उनकी साथ बिताए मीठे पल और आँखों में खारा जल। कुछ सपने अंजाने से कुछ जाने पहचाने से आँखों को स्वप्न दिखाने वाले सपने सच कर जाने वाले जाकर क्यों न आते हैं। हाथ से निकले जैसे पल यादें भी हो जाती ओझल हृदय प्रश्नों के घेरे में मिलता नही कोई भी हल। उलझ के बस रह जाता मन लगता सब नीरस यौवन प्रश्नों को सुलझाने वाले सच्ची राह दिखाने वाले जाकर क्यों न आते हैं। लगता कोई खता हो जैसे जीना एक सजा हो जैसे एकाकीपन साथ में होना रब की कोई रजा हो जैसे अधरों पर मुस्कान नही है खुद की भी पहचान नही है रोते दिल को हँसाने वाले गम को दूर भगाने वाले जाकर क्यों न आते हैं। पेड़ों के सू...
जीवन अनंत संघर्ष हुआ
कविता

जीवन अनंत संघर्ष हुआ

लक्ष्मीनारायण धिरहे हसौद, जिला सक्ति, (छत्तीसगढ़) ******************** कभी चंचल ये तन हुआ, कभी विचलित ये मन हुआ ... कभी निराशा सा गट्ठर लिए, कभी हर्ष का संगम लिए.. ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी आंखों में अश्रु सा छलका, कभी दुख में कभी सुख में झलका, आंखों में ये असार लिए, ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी पहाड़ों सा चलना हुआ, कभी ढलानों सा उतरना हुआ ... चल रही ज़िंदगी, यही कश्मकश लिए, ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी बढ़ना हुआ, कभी रुकना हुआ, गिर कर उठना, उठ कर चलना हुआ.. न रुकने, न झुकने का आव्हान लिए , ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी इनकार हुआ, कभी स्वीकार हुआ कभी बना काम का, कभी बेकार हुआ.. साहस, धैर्य का प्रमाण लिए, फिर मन में ये नित प्राण लिए, ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... परिचय :- लक्ष्मीनारायण धिरहे छात्र : दिल्ली विश्वविद्यालय निवा...