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कविता

तुम चांद में नजर आए
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तुम चांद में नजर आए

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** तुम मुझे चांद में नजर आए मेरे जज्बात में नजर आए तेरे मेरे दरमियां हुई जो मुलाकातें हर मुलाकात में नजदीकियां नजर आए जब भी मेरे तुम नजदीक आए मैंने हर लम्हा अपने आप से चुराए धड़कन ए रफ्तार पकड़ लेती है तुम्हारे छूने से तुम्हारा हाथ लगते ही तुम मुझ में समाते नजर आए कशिश है जो तेरी आंखों में तेरी बातों में तेरी उन आंखों में डूबती नजर आई तू मुझे चांद में नजर आए मेरे जज्बात में नजर आए।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्...
देश प्रेम दिवस
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देश प्रेम दिवस

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** आधुनिकता की होड़ में। वैलेंटाइन डे .........नहीं। देश प्रेम दिवस मनाएंगे। आज के दिन देश की खातिर। जिन शहीदों को हुई फांसी। उन्हीं देशभक्त भगत सिंह-राजगुरु- सुखदेव की याद में देश प्रेम दिवस मनाएंगे। आधुनिकता की होड़ में , वैलेंटाइन डे .........नहीं। देश प्रेम दिवस मनाएंगे। आज के दिन...... देश की खातिर। पुलवामा में ... जो शहीद हुए। उन शहीदों की शहीदी पर। नतमस्तक हो जाएंगे। वैलेंटाइन डे ........नहीं। देश प्रेम दिवस मनाएंगे। मत खोने दो मूल्य प्रेम का। प्रेम को एक दिन में, नहीं समा पाओगे....? यह तो अनंत..... हर दिन का आधार है। हम हर दिन को, मूल्यवान बनाएंगे। आधुनिकता की होड़ में , वैलेंटाइन डे ..........नहीं। देश प्रेम दिवस मनाएंगे।। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं,...
प्रेम
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प्रेम

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** प्रेम से भरी चान्दिनी रात प्रेमान्जली सी ओश की बुंदे प्रेमहरित दरख्त के पत्ते प्रेम व्यार की मदहोशी प्रेम सुधा से भरी ये नदियाँ प्रेम कुसुम हर डाल खिले प्रेम गीत पंछी की गुंजन प्रेम रंग सा इन्द्रधनुष प्रेम एक है ऐसा भी प्रेम जो तेरा मुझसे है प्रेम प्रभा से चमकीला प्रेमान्जली से निर्मल प्रेम हरित से हरा है जो प्रेम व्यार से स्वच्छ है वो प्रेम सुधा से ज्यादा अमृत प्रेम कुसुम से ज्यादा कोमल प्रेम गीत से मीठा ज्यादा प्रेम रंग से रंगीला है प्रेम जिसका कोई नाम नही प्रेम अनोखा तेरा मेरा प्रेम दिवस के इस प्रेम भरे उत्सव में प्रेमोपाशक मैं कंचन प्रेम हृदय अपने विकास को प्रेमोपहार यह अपनी प्रेम कविता सौहार्द्र्पूर्ण प्रेम भेंट करती हूँ . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hind...
घने कोहरे
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घने कोहरे

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** घने कोहरे की बीरानंगी में- छिपी दुबकी जिन्दगी । सूर्य की प्रखर किरणों की ताप से- उल्लसित, सुवासित, मुखरित हो उठी है। विद्यालय में आज में देखता हूं- छात्र-छात्राओं की संख्या में बेतहासा- बृद्धि समृद्धि सी हो गयी है। खिले धूप में ही पढ़न-पढ़ान कार्य आरंभ हो गई है नामांकन से उत्साहित- छात्र-छात्राएं एक नई जीवन की- उम्मीद बाद एक नई स्फूर्ति के साथ। नए वर्ग में मां सरस्वती की आराधना में- अपने आप को संलग्न जिंदगी की ओर स्नेह और करुणामई याचना से- ओत-प्रोत मां की कर कमलों में समर्पित। अर्पित कर रही है अपनी सब कुछ ..... . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
प्रेमदिवस विशेष
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प्रेमदिवस विशेष

सरिता कटियार लखनऊ उत्तर प्रदेश ******************** तू प्यार है हमारा इकरार कर लिया है तेरे इश्क के ही रंग में मैने खुद को रंग लिया है अब ज़िन्दगी का मेरी तू ही बने पिया है ये सपना मैंने तुझसे साकार कर लिया है जज़्बात ए मोहब्बत का इज़हार कर दिया है दुनिया के सारे रिश्तों से तकरार कर लिया है लाइलाज है बीमारी पर बीमार कर लिया अब दवा या तू ज़हर दे स्वीकार कर लिया है अपनाये या तू मेटे ग़म ए दर्द सर लिया है मैनें तो अपना जीवन बर्बाद कर लिया है उलफ़त में दिल बेकाबू कर कर तड़प लिया है सकते ना कर कभी हम वो गुनाह कर लिया है ये जानती न सरिता क्या इसने कर लिया है राहे इश्क़ में ही खुदको रुसवा कर लिया है . परिचय :-  सरिता कटियार  लखनऊ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
दर्द लिखती हूं
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दर्द लिखती हूं

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** दर्द लिखती हूं, मनन करती हूं। दुआ मिलती रहे, ऐसी इबादत करती हूं। शब्द गढ़ती हूं, भाव पढ़ती हूं। मन कांच सा हो पारदर्शी, ईश्वर से विनती, करती हूं। बैर हो न किसी का किसी से। आत्म विश्वास इतना संजो दे, प्रभु से यही प्रार्थना करती हूं।   परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐंकर, लेख, लघुकथा, लेखन आदि का पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान एवं विधालय पत्रिकाओं की सम्पादकीय और संशोधन कार्य  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के ...
चाँद खामोश है
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चाँद खामोश है

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** चाँद खामोश है चांदनी उदास है यादों को तरसती हर सांस को किसी आहट का इंतज़ार है लम्हों को थामकर जो चिराग रोशन किये उस रोशनी को किसी मुलाकात का इन्तज़ार है रात की तनहाइयों में फ़िज़ा भी उदास है भीगी पलकों से बहते सैलाब को सुहाने ख्वाबों का इन्तज़ार है अरमानों की राह पर जिस मोड़ पर ठहर गए उस मोड़ पर किसी हमसफर का इंतज़ार है . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान सहित ४७ सम्मान पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएं प्रकाशित अध्यक्ष रंजन कलश, इंदौर  पूर्व उपाध्यक्ष वामा साहित्य मंच, इंदौर ...
ना जाने क्यों ?
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ना जाने क्यों ?

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी उदयपुर (राजस्थान) ****************** ना जाने क्यों? धरती का अक्ष मेरे घर को कुछ डिग्री झुका देता है। ना जाने क्यों? मेरे हिस्से का चाँद किसी और की छत से दिखाई देता है। ना जाने क्यों? सातों घोड़े सूरज के मेरे निवास की खिड़की में हिनहिनाते नहीं। ना जाने क्यों? ब्रह्मांड के चेहरे की झुर्रियां मेरे मकां की नींव को कंपकंपाने लगती हैं। ना जाने क्यों? अनगिनत सितारों की अपरिमित ऊर्जा मेरे छप्पर पर बिजली बन कर गिरती है। ना जाने क्यों? अनन्तता में स्थित तिमिर मेरे गृह-प्रकाश को लील लेता है। ना जाने क्यों फिर भी! मानस में जलता उम्मीद का दीपक मेरे घरौंदे में इक लौ पैदा कर देता है। ना जाने क्यों... सब-कुछ मिलकर भी यह दीपक बुझा नहीं पाए..... . परिचय :-  नाम : डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी शिक्षा : पीएच.डी. (कंप्यूटर विज्ञान) सम्प्रति : सहायक आचार्य (कंप्यूटर विज्ञान) साहीत्...
नाम की चाह नहीं मुझे
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नाम की चाह नहीं मुझे

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** नाम नहीं बस वह अनुभव चाहता हूँ जिससे नाम बनाई जाती है यहाँ सीखता रहूँ बस मात्र ये आशीर्वाद चाहता हूँ वो महाविद्या चाहता हूँ मैं जो मुर्दों में भी प्राण फूँक जाए वो विलक्षण शक्ति परमात्मा की वह असली भक्ति चाहता हूँ मैं जो निर्जीव में भी प्राण ढूँढ ले बस वही जादूगरी सीख लेना चाहता हूँ मैं सम्मान अपमान का ध्यान नहीं मुझ को बस केवल बस इस छोटी उम्र में ही सब सीख लेना चाहता हूँ मैं . परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है...
मेरी इबादत
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मेरी इबादत

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** आज भी तेरे दिल में अगर सबके लिये मुहब्बत है जो छलकते है किसी के दर्द में तेरे आँसू, तो यही इबादत है जरूरत नही तुझे कहि जाकर सजदा करने की तेरा दिल ही मंदिर, मस्जिद और चर्च की इमारत है मत घबरा इन धर्मों के दिखावों से, झूठे आडम्बरो से, बड़े बड़े तीर्थों और दिखावे के अनुष्ठानों से, अगर तेरा मन साफ है, तो यही सबसे बड़ा धर्म और सबसे पवित्र तेरी काया है.... मिलता नहीं है खुदा कभी, किसी को सताने से, किसी को नीचा दिखाने से अगर वो मिलता है, तो सबको अपनाने से सबमें उसकी झलक पाने से इतिहास गवाह है, कहि भी देख लो राम, कृष्ण, बुध्द, महावीर, नानक हो या क्राइस्ट इन सबने भी यही समझाया है, कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म और प्रेम ही परमात्मा की प्रतिछाया है.... . परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी ...
बाल विवाह
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बाल विवाह

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** बाल विवाह करना अब तो बन्द करो जल्दी विवाह को रोकने का प्रबंध करो नादान कली को पूर्ण रूप से खिलने दो शिक्षा में ऊँचा अस्तित्व उन्हे मिलने दो सही उम्र पर विवाह का प्रबंध करो बाल विवाह करना अब तो बन्द करो बच्चों के बचपन को ना छीनो तुम मत अन्धविश्वास का ताना बाना बीनो तुम जन जन को जागरूकता का प्रबंध करो बाल विवाह करना अब तो बन्द करो जल्दी विवाह को रोकने का प्रबंध करो . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहान...
हमारे विवाहोत्सव
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हमारे विवाहोत्सव

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** जीवन भर के इस उत्सव को, आओ हम समृद्ध बनाएं। दिखावे के पर्याय बने जो, ऐसे विवाह पर रोक लगाएं। बनें किसी जरूरतमंद के मददगार, नि:सहाय के लिए खोलें शिक्षा द्वार। यूं पवित्र बंधन बने यादगार, जरूरी तो नहीं है वैभव प्रचार। स्वागत में हो आत्मीयता, नहीं केवल औपचारिकता। अतिथि भी जब हों समुचित, तभी दे पाते सम्मान उचित। बड़ी बारातें, सड़क पर व्यवधान, राहगीरों का नहीं है ध्यान। बोझिल-सा यदि हो आभास, फिर कैसा उत्सव ये खास। छोड़ें अनावश्यक रूढ़ी-रिवाज, हम ही तो करेंगे बदलाव आज़। समयानुसार परिवर्तन होगा, तभी तो समाज सुधरेगा। सच, पाणिग्रहण की पवित्रता को रुढियों दिखावों में मत जकडो़। जितना हो अति आवश्यक, वही करो, नई राह पकड़ो। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म ...
फाल्गुनी हवा
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फाल्गुनी हवा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** फाल्गुनी हवा के झोंकों से- उड़ रहे हैं झर झर पत्ते। उड़ रही है मिट्टी की धूल- कण- जन जीवन में उमस जागे। नस-नस मे फिर पौरूषता की- आज महा प्रलय जागे । नवयुगल सब प्रेम गीत में- सराबोर होकर सब नाचे। ढोल, झाल, मंजीरे लेकर- ठुमक-ठुमक कर सब नाचे। पीते हैं कोई भंग-गंग-संग झूम-झूम कर सब नाचे। लिए हाथ में पिचकारी को- घोल रंग को सब पर डालें। लाल-पीली हरी रंगों में- अंग-अंग रंग डाले। फाल्गुनी हवा के झोंकों से- उड़ रहे हैं झर-झर पत्ते। आज न कोई राजा-रानी सभी मस्ती में झूमे नाचे। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
अजीब लगता हैं
कविता

अजीब लगता हैं

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** वो इक शख्स जो उसके करीब लगता है, जहां में सबसे ज्यादा खुशनसीब लगता है। दुआ है मेरी कि दुआ उसकी कुबूल ना हो, वो शख्स रिश्ते में मेरा रकीब लगता है। नजरों से नाप लेता है अरमाओ के खेत को, पटवारघर की मुझे वो कोई जरीब लगता है। हमने नहीं देखा उनको पास रहकर भी पूरा, कौन कहता है कि वस्ले इश्क़ हबीब लगता है। सुना है माल चाइना का ज्यादा नहीं टिकता, कोरोना मिट न रहा मसला ये अजीब लगता है। . परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक ...
मौन रहकर भी
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मौन रहकर भी

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मौन रहकर भी गमों को सहकर भी देखा है हमने। जीवन के सुंदर सपनों को बिखरते हुए देखा है हमने। बिखरे सपनों को समेटने की कोशिश में अपने आप को तिल-तिल मरते देखा है हमने। मौन रहकर भी गमों को सहकर भी देखा है हमने। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेपर मुंबई,  कहानी संग्रह, काव्य संग्रह सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी र...
मधुमास
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मधुमास

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** गुनगुनाती धूप मुस्कराते पुष्प यह तेरा साथ, लिये हाथों में हाथ लो आ पहुंचा मधुमास ..... यह कोकिल उपहास और भ्रमर उल्लास लो आ पहुंचा मधुमास ..... यह नदियां की जल धार, चली करने सागर से प्यार जल कुक्कुट करें विहार। यूं रखकर नव नव रूप लो आ पहुंचा मधुमास ..... चले मन्द मस्त बयार सुरभित पुष्पों की बहार उन पर भंवरों की गुंजार नव किसलय का धर रूप लो आ पहुंचा मधुमास ..... खेतों में बिछा के पीली सेज, मानिनी चली सजा निज केश पा कृष्ण मिलन सन्देश, आतुर हो आ पहुंचा मधुमास ..... हरित मृदुल मखमली ग्रास बिछा अबनि में चहुंओर चुराकर गोरी का मन मोर लो आ पहुंचा मधुमास ..... . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ह...
हूआ नीड़ सूना
कविता

हूआ नीड़ सूना

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** लुट गया मधुवन, हुआं वो नीड़ सूना। अब ना माली के, हर्दय का घाव छूना। मधुप कलियों को, चले जाकर रुलाकर, उड़ गई कोकिला अधूरा गीत गाकर ..... जब ना होगा नीर, सरिता क्या बहेगीं मीन जल से बिछुड़कर, कैसे रहेगीं। लहरियां तट को, जाती झुलाकर, उड़ गयीँ कोकिला, अधूरा गीत गाकर ..... कौन तुम अंजान, बन मेहमान आयें, स्वपन मे दो गीत, जीवन के सुनायें। चल दिये क्यों नींद, मेरी अब चुराकर, उड़ गयी कोकिला, अधूरा गीत गाकर ..... लुट गया उपवन, हुआं वो नीड़ सूना। अब ना माली के, हर्दय का घाव छूना। . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता...
कागज़ और कलम
कविता

कागज़ और कलम

ऋषभ गुप्ता तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाब) ******************** कुछ गहरे राज़ छुपे थे दिल में कागज़ और कलम उठाया तो निकल कर बाहर आए बातों में कुछ दर्द ऐसा छुपा था जिस अकेलेपन का एहसास कागज़ की महक और कलम की खुशबू में भी हो रहा था जो कागज़ और कलम के भी आँसू ले आए कोई साथ ना था मेरे जब कोई पास ना था मेरे जब हर रास्ते पर अकेला चला मैं था जब सोचता था कौन है मेरा यहाँ तो कागज़ और कलम मेरा हाथ थाम उन राहों पर साथ चलने आए रास्ता मुश्किल था मंजिल भी दूर थी दूर.दूर तक सन्नाटा था लेकिन कागज़ और कलम ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा सोचता था कैसे उतारूँगा इन का कर्ज़ जो हर समय साथ देने आए थे मेरा सुख से भी ज्यादा मेरी परेशानी के समय दिल के दरिया में ख्वाबों का इक महल कागज़ पर लफ़्ज़ो की माला में सजा कर लिखा था जो हर बार उनको पूरा करने के लिए मुझे नींद से जगाने आई हवाओं के रुख बदलने ...
प्रेम
कविता

प्रेम

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** प्रेम संस्कार है, प्रेम एक विचार है, अतिथियों का सत्कार, अपनों का प्यार है, जीवन का सार है, प्रेम ऊंकार है, वीणा के सरगम में, खुशियों की झंकार है। प्रेम संस्कार है। प्रेम वृंदावन, कृष्ण की भक्ति है, मन के भावों की, सुंदर अभिव्यक्ति है, सृष्टि के कण-कण में, प्रेम विद्यमान है, वशीकरण मंत्र है, जीवन की शक्ति है, प्रेम के कारण, जूठे बेर स्वीकार है। प्रेम संस्कार है, प्रेम एक विचार है। प्रेम ईश्वर है, प्रेम शुद्ध साधना, प्रेमसुख का मंत्र है, प्रेम है आराधना दिल के क्यारियों में, खुशबुओं का खजाना, प्रेम है समर्पण, प्रेम सच्ची भावना, हर रंग के फूल यहां, बसंत बहार है, प्रेम संस्कार है, प्रेम एक विचार है। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ शिक्षा - एम.ए सम...
जिंदगी का सफर
कविता

जिंदगी का सफर

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** जिंदगी के सफर में हर रोज दर्द मिला है। पल-पल आगे बढ़ी हूं मंजिल का फासला है। क्या बताऊं तुमको कितने दर्द मिले हैं। हमसे ना पूछो हमें दिल में जख्म मिले हैं। हर बार जिंदगी से नया तजुर्बा मिला है। क्या व्यथा सुनाऊं अपनी मुझे क्या-क्या मिला है। जिंदगी के सफर में हर शख्स मतलबी है। बातों में उलझा कर मुझे लूट लिया है। ये जिंदगी है ऐसी इससे नहीं गिला है। जो था ख्वाब सजाया और रेत में मिला है। जिंदगी की किताब में एक ऐसा पाठ पढ़ा है। छोटी सी जिंदगी में बेशुमार दर्द पला है। चांद छूने को मैंने हर बार हाथ बढ़ाया। ना जाने कितनी बार चोट खाकर खड़ी हूं। जिंदगी के सफर में इतना दर्द मिला है। लबों की मुस्कुराहट हर बार फीकी पड़ी है। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ सा...
जब जब बादल आता है
कविता

जब जब बादल आता है

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** बादल की एक टोली जो घूम रही थी नभ में गाँव के बच्चे झूम रहे थे खुशी मनाई सब ने फैलाये अपने पंख मोर ने वर्षा की दस्तक दी भोर ने आज जब बरसेगा पानी तब आयेगी बरखा रानी हम सब भींगने जायेंगे खेत सींचने जाएंगे सोच रहे थे रामू काका कुदाल भी लाये शामू दादा मीरा दीदी छत पर दौड़ी उठा लाई वो पसरे अदौड़ी सोनु की माँ भी ले कर आई रखे थे बाहर जो उसने रजाई पेड़ से फँसा पतंग का फंदा आज रात नही दिखेगा चंदा पानी टप टप खूब बरसाया गगन घटा घनघोर है छाया बादल चाचा तुम रोज आना खुशियाँ ढेरों संग अपने लाना . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
आम कुजं
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आम कुजं

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मेरे घर के पूरब-आम् कुजं से कोयल की कूक वेदना ने मुझे जगायी। मंजर से लद गयीं है ये उपवन सारे इस "बंसतोत्सव "मे सो गया तू। निष्ठुरता है इस जीवन मे ढेर सारे। तू सजग रह मेरे साथ ये लिख अनंत वेदना के गीत सारे। कूकना है तो कूक भी अपनी वेदना मे मेरी भी असीम वेदना मिला। गाना है तो गा मेरे साथ प्राण-पण से तेरी वेदना पर लिख रहा हूँ देर गीत सारे अपने घर के पूरब आम् कुजं। कोयल की वेदना ने मुझे जगायी बीते अनुराग को तू याद रखना। उठती हृदय की ये ज्वार तू स्वीकार करना। सदियों तक 'कवि' का उद्गगार आभार तू अपनी कूक मे याद रखना। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी ...
इंतजार
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इंतजार

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** मैने, वर्षो से तुम्हारे इंतजार मे, क्या से क्या हो गया, लेकिन तुमको मालुम नही, तुम जो हो, मेरी मासूमियत का, मेरी समझ से, परे नही हो, मै जनता था, तुम मेरी हो नही सकती हो, मगर तुम्हरा इंतजार, मुझे वर्षो से, था और रहेगा, तुम जानती हो, मै तुम्हे मानता हो, मेरी साँसों, मेरी याद्दो मे, सिर्फ तुम ही तुम हो, मगर तुम्हारी याद मुझे, हमेशा तड़पाती है, काश ये दुनिया, इतना खुशनसीब ना होती, ना मै होता ना तुम होती, ना तड़प होती, ना आरजू होती, और ना गुस्तजु होती, जो ख्वाब दिल मे है, वो दिल ही मे दफन हो जाती, ना जमी होता, ना आसमां होता, ना रात होता, ना दिन होता, होता तो सिर्फ, हमारी-तुम्हारी दिलो का, बेजुबान रिश्ता! . परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड...
कहो वो कैसे भक्त हो?
कविता

कहो वो कैसे भक्त हो?

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित - श्री रामकृष्ण परमहंस जी की निर्मल सरल आनंदित कर देने वाली प्रेमायुक्त भक्ति को.. जो वास्तविक प्रेम से परमात्मा की प्राप्ति का सर्वोत्तम उदाहरण है... भावनाओं के व्यापारियों को समझना होगा प्रेम कितना पावन है... जिसे औचित्यविहीन अंधी आधुनिकता ने कलिकाल के विकराल दलदल में सराबोर कर रखा है... प्रेम वही जिसमें ज्ञान अप्रासंगिक हो जावे फिर भक्ति इससे अछूती भला रहे तो कैसे? स्वलिखित पंक्तियों में प्रस्तुत :- भाषा - तत्सम हिन्दी शब्द संयोजन रस - शांत, भाव-भक्ति, अलंकार - अनुप्रास, श्लेष. नाथ के विचार से अनाथ हो विरक्त हो; भावना विहीन जो, कहो वो कैसे भक्त हो? प्रेम बिंदु भाव का; आधार ही है अर्चना, प्रीत की विजय तभी; आराधना असक्त हो। भावना विहीन जो, कहो वो कैसे भक्त हो? ज्ञान के प्रसंग में; दंभमय कुसंग में, तो! मोक्ष ही विषक्त हो...
सुकून की ज़िंदगी
कविता

सुकून की ज़िंदगी

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** सुकून की ज़िंदगी हर किसी को नसीब नही, चलो आज किसी गरीब को गले लगाया जाए। तरसते रहते है जो एक निवाले को जहाँ में, चलो आज किसी भूखे को खाना खिलाया जाए। बदलते हालात और बदलते हुए इस दौर में, चलो आज किसी गैर को अपना बनाया जाए। बहुत मुश्किलों से मिली है हमे जिंदगी यारो, चलो आज एक दूसरे को फिर हंसाया जाए। हर किसी की चाहत होती है कुछ करने की, चलो आज उनके सपनो को पंख लगाया जाए। जो खुश रहते है गैरो के आशियाने देखकर, चलो आज उनके रहने का घर बनाया जाए। रक्तदान, नैत्रजांच, भागवत कथा बुरी नही, हप्ते में एक शिविर अन्न-वस्त्र का लगाया जाए। जो करता है जीवहत्या वो होता है जानवर, चलो आज समाज को शाकाहारी बनाया जाए। प्रकृति भी नाराज़ है नियमो के उलंघन से, चलो आज अपने घर एक वृक्ष लगाया जाए। बदली दुनिया के दस्तूर भी बदल गए देखो, घर है तो बा...