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कविता

कोरोना से जंग
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कोरोना से जंग

सीमा रानी मिश्रा हिसार, (हरियाणा) ******************** परदेश से आई है ऐसी महामारी, जिसने सर्वत्र फैला दी है तबाही। समस्त विश्व को आतंकित किया, भारत भी इससे अछूता न रहा। पर विश्व-गुरु भारत नहीं हारेगा, यह देश पुनः इतिहास रचेगा। मोदी जी के कुशल नेतृत्व का, संपूर्ण विश्व भी लोहा मानेगा। जन-जन थोड़ा कष्ट सहकर भी, कभी साथ न उनका छोड़ेगा। घर में और सिर्फ घर में ही रहेंगे, बाधाओं को हँसकर हम सहेंगे। हाथों की सफाई का ध्यान रखेंगे, इस नामुराद बीमारी से नहीं डरेंगे। रामायण-महाभारत भारत देख रहा, सुसंस्कार नवीन पीढ़ी में भर रहा। धैर्यवान व सहनशील हमें बनना है, घर में रहकर देश की रक्षा करना है। चिकित्सक देश की सेवा में रत हैं, देश को स्वस्थ रखने हेतु प्रतिबद्ध हैं। पुलिस अवांछित भीड़ हटाने में लगी है, बीमारी को फैलने से रोकने की कसम ली है। शिक्षक ऑनलाइन कक्षाएँ ले रहे हैं, घर बैठकर ही बच्चे शिक्षा पा...
कर्मफल
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कर्मफल

हिमांशु कलन्त्री इंदौर (म.प्र.) ******************** कट, कट, कट, कट कटेंगे सारे,,, बच न सकेंगे मानवता के हत्यारे,,, जिनके लोभ ने मारे कई बेचारे,,, छीन गये कितनो के सहारे,,, हर एक कर्म का भुगतान होगा,,, पूरा उसका हर हिसाब होगा,,, अकाल मौत वो ही मरेगा,,, जो काम चांडाल का करेगा,,, काल का जब भी वक्त होगा,,, वो चांडाल को खड़ा करेगा,,, भयाक्रांत महाकाल का अट्टाहस होगा,,, त्रिनेत्र खुलते ही हर दानव भस्म होगा,,, ऊँ शिव,,, . परिचय :- हिमांशु कलन्त्री जन्म दिनांक - २६-०५-७४ निवासी - इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक कर...
बस हकीकत बयां किया
कविता

बस हकीकत बयां किया

वीणा वैष्णव "रागिनी"  कांकरोली ******************** दुनिया हकीकत उजागर, कलम सदा मैंने किया। अल्फाज बहुत चूभे सबको, पर ठहराव ना दिया। बेजुबान जुबा बन कर सदा, सब बयां मैने किया। द्वेष का सैलाब उमड़ा, उसे प्रेम से समझा दिया। ख्वाब ना टूटे किसी के, ना गलत कुछ भी किया। गलत जहां मुझे लगा, बस साफ-साफ कह दिया। नकाबपोश चेहरा, बेनकाब सदा ही मैंने किया। खामोश रही सदा, बस कलम कहर ही ढा दिया। सच्चाई पाठ ऐसे, सब को सदा मैने पढ़ा दिया। सद्भावना लाती कलम, इतिहास यूं दोहरा दिया। कभी वक्त गलत मान, खुद खामोश मैने किया। बड़ों के सम्मान में सदा, सर अपना झुका दिया। अपनी मन वेदना को, कलम अंजाम मैंने दिया। ना किया आहत किसी को, अपना काम किया। कहती वीणा, लेखनी फर्क मैने कभी ना किया। सच झूठ का फर्क, बस हौंसला दम मैंने किया। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फर...
मुसीबत के मारे
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मुसीबत के मारे

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** मुसीबत के मारे शराबी हुए। परेशां बहुत सब क़बाबी हुए। पान गुटका भी देखो ग़ायब हुआ। सुधरा ज़माना नायाब हुआ। तेल की धार पर, सबकी नजरें टिकीं। चना दाल तक खूब महंगी बिकीं। बंगला गाड़ी और गहने धरे रह गये। किसानों के घर वो भरे रह गये। एक अदना सा शत्रु, भयानक हुआ। रोग फैला है जिसने जिसको छुआ। सब्जी वाला भगवान दिखने लगा। माल कैसा भी हो, सब बिकने लगा। अचकन पहने न दिखते नेता कहीं। जो हारे थे वो, या फिर विजेता यहीं। पंजा कमल की नदारत है छाया। कंधे झुके हैं, और शिथिल है काया। पुलिस डॉक्टर नर्स योद्धा हमारे। नमन है इन्हीं को हुए ये सहारे। नगर कर्मचारी, हैं ग़ज़ब के हितैषी। दुष्ट करोना तेरी होगी ऐसी कि तैसी।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर म...
मेरा हक़
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मेरा हक़

वैष्णो खत्री 'वेदिका' अधारताल, जबलपुर (म.प्र.) ******************** तुम पर हक़ है मेरा, इसलिए तुम मेरी ही अमानत हो। हमारे दिल से दूर न जाना, चाहें कितनी भी क़यामत हो। इस रिश्ते को मेरी नज़र से देखो, तभी तो समझ पाओगे। तुम तो हो बेवफ़ा, इस कारण, तुम इसे जान नहीं पाओगे। किनारा न करो हमसे, हम तुमसे न कोई शिक़वा करेंगे। तुम्हें दिल से न दूर कर पाएँगे, इतना तो हम दावा करेंगे। मेरी रूह में समाई तेरी सूरत, उसे कैसे निकाल पाओगे। तुम तो रग-रग में समा चुके हो, उससे निकल न पाओगे। तुम मेरी आँखों में बसे हो तुम, मेरे दिल में बसे हो जी । अगर हिम्मत है तो मेरे दिल से, निकल के दिखाओ जी। मेरे प्यार ने बँटना न सीखा, वो तेरे बिन हो जाता बेचैन। तुझे मन में छुपा लूँ, बिन तेरे, दिल को आता नहीं चैन। प्यार की बाज़ी तुम क्या जानो, तुमने निभाया है कभी। जो कभी न डूबा प्यार में, वह क्या समझ पाया है कभी। तुम...
अंतिम मंजिल
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अंतिम मंजिल

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** कांटों भरी थी जीवन की राहें, चलना उन्हीं में सीखा था हमने। छलनी हुआ दामन जब हमारा, कर के जतन ,सिलना सीखा था हमने फूलों से कांटे मिले हैं सदा ही, नर्तन उन्हीं पर सीखा था हमने। जीवन की बगिया में पतझड़ रहा है, सूखे ही पत्ते बटोरे थे हमने। जब भी मिले थे दो पल सुकूं के, सोचा था भरलें दामन हम अपना। सुकूं में भी मिला न सुकूं जिंदगी का हर दर्द सबसे छुपाया था हमने। लाख जतन से रुक न सके जब , डबडबाई आंखों से बिखरे जो मोती , लगे न नजर जमाने की उनको, आंचल में भरकर सुखाया था हमने। चले राह में एक आशा को पकड़े, होगी कहीं तो हमारी भी दुनिया, मिल न सकीं कोई राहें सुगम सी, थे कांटों के पथ ,पग बढाये थे हमने जीवन की राहै तलाशी थी जब जब। साये बहुत से मिले राह में थे, जीवन का अंतिम पाया जहां था, अपना ही साया तलाशा था हमने। . परिचय :- बरेली के साधारण पर...
कुछ देर ठहर जा
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कुछ देर ठहर जा

धीरेन्द्र कुमार जोशी कोदरिया, महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** आई है यह बहार, कुछ देर ठहर जा। बढ़ने लगा है प्यार, कुछ देर ठहर जा। हर रात तेरी राह में, दीए जलाए थे, कितना था इंतजार, कुछ देर ठहर जा। एक दिन तुम्हारे साथ मुझे एक पल लगे, उठता है बार बार, कुछ देर ठहर जा। तेरी खबर सुनी तो यह रंगत निखर गई, ये रूप ये सिंगार, कुछ देर ठहर जा। हर डाल ने पहने हैं फूलों के पैरहन, क्यों बो रहा है खार, कुछ देर ठहर जा। परदेसिया तू जाएगा, कब आए क्या पता, जीवन का है उतार, कुछ देर ठहर जा। . परिचय :- धीरेन्द्र कुमार जोशी जन्मतिथि ~ १५/०७/१९६२ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म.प्र.) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम. एससी.एम. एड. कार्यक्षेत्र ~ व्याख्याता सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा, सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वास के प्रति जन जागरण। वैज्ञान...
वर्षाऋतु
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वर्षाऋतु

मुकुल सांखला पाली (राजस्थान) ******************** प्रचंड गर्मी में झुलसने के बाद पृथ्वी को ठंडक की आवश्यकता पडने पर सुनकर पुकार अपनी भगिनी की और उसकी असंख्य संतान की प्रकृति देती है आदेश षट्ऋतु में से एक उस ऋतु को जो है मनभावन, मनहरषावन, दिलजीत जिसकी कृषक देखते है वर्ष पर्यन्त राह उस वर्षा ऋतु के आने पर धरती करती है सोलह श्रृंगार और होता है स्वागत मिट्टी की सौंधी-सौंधी सुगंध से नदीयों के कलरव अउर पक्षियों के नृतन-गान से फैल जाती है हरीतिमा की चादर चऊँऔर खेतों में सुन मधुर आवाज हल की नाच उठता है मन मयूर हलधर का जैसे गूँज उठी हो आंगन में शहनाई गलियों में जाग जाता है सुनहरा बचपन कागज की नाव में होती है स्वप्निल यात्रा अउर प्रथम बरखा का वह आत्मीय स्नान मंत्रमुग्ध करता वह सतरंगी इंद्रधनुष देखना है फिर इन दृश्यों को इस बार मन के चक्षु खोल देखे, आनंद है अपरंपार . परिचय :- मुकुल सांखल...
मैं भारत का वासी हूँ
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मैं भारत का वासी हूँ

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** मैं भारत का वासी हूँ............मै राम नाम का रखवाला। में जगतजननी का बेटा हूँ......मैं एक कवि हूँ मतवाला। मैं लिखता हूँ गीत ग़ज़ल....श्रृंगार में लिखता सुरमाला। कोई बैर ना करता है मुझसे...मैं हूँ एक ऐसा दिलवाला। मैं शायर हूँ एक नशीला..........मेरी ग़ज़ल है मधुशाला। मैं निडर जागता जीता हूँ..........मेरा भोला है रखवाला। मैं पीकर कड़वे घूट सदा......सबको दिखता हँसनेवाला। वो कलम को ताक़त देता जो.....है साथ मेरे ऊपरवाला। क्या करता हूँ क्या लिखता...कोई खबर नही लेनेवाला। मेरा स्वयं आईना दर्शक है......कोई नही दाद देनेवाला। मैं भारत का वासी हूँ...........मै राम नाम का रखवाला। में जगतजननी का बेटा हूँ.....मैं एक कवि हूँ मतवाला। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्य...
चेतना का अंकुरण
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चेतना का अंकुरण

दिलीप कुमार पोरवाल (दीप) जावरा म.प्र. ******************** आओ मिल बैठ कर करे विचार कौन थे हम क्या थे हम क्या हो गए क्यों हो गए आओ मिल बैठ कर करे विचार बीज कोई ऐसा बोए कि जिसके अंकुरण से हो जाए जन जन का उद्धार आओ मिल बैठ कर करे विचार करे अतीत की व्याख्या करे वर्तमान का समाधान और करे भविष्य का आकलन आओ मिल बैठ कर करे विचार करे कुछ ऐसा कि कुमति छोड़ पाए सुमति हो जाएं चहुं ओर शांति और खोले प्रगति के द्वार आओ मिल बैठ कर करे विचार बीज कोई ऐसा बोए नवयुग का हो आरम्भ और प्राणी मात्र बने आशावान आपस में हो भाई चारा बना रहे विश्वास और खत्म हो नफरत की दीवार आओ मिल बैठ कर करे विचार बीज कोई ऐसा बोए कि हो जाएं राजनीति विदूर धर्म युधिष्ठिर और खांडवप्रस्थ हो जाएं इंद्रप्रस्थ दीप कोई ऐसा प्रज्जवलित करे दूर हो जाए सारा तिमिर और भर जाए जन जन में ज्योतिर्गमय भाव आओ मिल बैठ कर करे विचार मोह माया सारी तजकर कर्म ...
संविधान की ऋषि
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संविधान की ऋषि

दीपक अनंत राव "अंशुमान" केरला ******************** विश्व संस्कृति में भारत देश अपना विशेष स्थान बरकरार रखते सदा युग युगों से हमारी परंपराएँ भी देश के बडप्पन को अमल करा देती। चाहे वो पुराने जमाने का हो या आज के ज़माने का, फ़र्क नहीं पडने ज्ञान परोसने के लिए महान ऋषि गण हमारे भारत देश का ही विशेषता विश्व के किसी अन्य देश को न मिलेगा कभी यह मान्यता हमारे बुजुर्गे की यही हाजियत॥ आज के ज़माने में भी कई संत लोग भारत वर्ष में जन्मे उनमें से एक नाम रोशन जैसे दिखते भारत के इतिहास के गगन में सदा चमके वे ओर कोई नहीं एक जीता जागता परिकल्पना देश का पुत्र, संस्कृति का दिखावनकार डाक्टर बाबा साहिब आंबेडकर । ज्ञान पिपासु, चरित्र का निर्माता शिक्षा की पुजारी, पैने विचारों का सितारा ऐसे एक इंसान कैसे भगवान का रूप धारण कर धरती की सेवा कर सकते यह बात का सबूत देने वाले...
अम्मा मोहे पईसा दे दे
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अम्मा मोहे पईसा दे दे

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** अम्मा मोहे पईसा दे दे जा रहा भूरा खायवेको! झगड़ा वगरा नहीं करूंगा जा रहा बहुए लायवेको! ससुरो मेरो इतना खराब पव्वा बोतल पीवत है! साली मेरी इतनी सुंदर बोली सी वा की सूरत है! अम्मा मोहे पईसा दे दे जा रहा भूरा खायवेको! झगड़ा वगरा नहीं करूंगा जा रहा बहुए लायवेको! सालों मेरा इतनो अच्छा हाथ पैर सर जाते ही दबाबत है! सासु मां भी सेवा भाव से हलवा पूरी भर भर खिलावत है! अम्मा मोहे पईसा दे दे जा रहा भूरा खायवेको! झगड़ा वगरा नहीं करूंगा जा रहा बहुए लायवेको! चचिया ससुर जी के क्या कहने नोट १००० विदाई में देवत है! ससुराल से मिले इतना सम्मान देख मन मेरा प्रसन्न होवत है! अम्मा मोहे पईसा दे दे जा रहा भूरा खायवेको! झगड़ा वगरा नहीं करूंगा जा रहा बहुए लायवेको! . परिचय :- अमित राजपूत उत्तर प्रदेश गाजियाबाद आप भी अपनी कवि...
आज फिर जन्म जाओ ना राम
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आज फिर जन्म जाओ ना राम

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** सुना है, त्रेता जब तुम जन्मे थे, पुलकित हो उठा था, पूरा राज्य! आज कोई नया करिश्मा करके, संताप को मिटा जाओ ना राम। तो आज फिर जन्म जाओ ना राम! यहाँ कैसा भय व्याप्त है, देखो!हर तरफ हा हाकर है। हर इंसान शंका से जार है, भव-भय हरण करो ना राम। तो आज फिर जन्म जाओ ना राम! दुष्टों की दुर्मति पुष्ट हुई है, निज स्वार्थ की लूट-मार मची है। संवेदना क्षत-विक्षत हो रही है, आओ सुकून दे जाओ ना राम। तो आज फिर जन्म जाओ ना राम! समाज की समरसता पिटी है, आज वह कैसी विषाक्त हुई है। अवसाद से देखो भक्त दुखी है, मनुज के विषाद मिटाओ ना राम। तो आज फिर जन्म जाओ ना राम! . परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड ,बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य) आप भी अपनी...
दूरिया : तुम्हारी फिक्र होती  हैं
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दूरिया : तुम्हारी फिक्र होती हैं

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हैं दूरी चंद कदमों की, हवा का रुख सहमा हैं, जी लू मन भर संग तेरे, फिज़ाओ में जहर सा है... तबियत अब नही लगती, महकते इन नजारों संग, छू पाये ना कोई साया, अजब कैसी बेबसी हैं... सुहानी भोर की मधुरता, अब तो रास नहीं आती सरेशाम हैं सिमट जाते, तुम्हारी फिक्र होती हैं... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) की...
खुश्बू में डूब जाना
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खुश्बू में डूब जाना

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** खुश्बू में डूब जाना तो बस एक बहाना होगा, दरअसल खुश्बू से तर वो मेरा तराना होगा। मत करो यकीन भले आज मेरी बातों का, कल हाथ मेरे नूर से लबरेज़ पैमाना होगा। शाम के ढलते ही बज़्म शमा की चहकेगी, क्या वहाँ का हश्र हमें रोज़ सुनाना होगा। यूँ तो मैंने रोज़ ही दिल से पुकारा है तुम्हें, सुन लो यदि आवाज़ फिर तुम्हें आना होगा। नाशाद ज़िन्दगी में ये गुमाँ है अभी बाकी, निकलेगी वहाँ जान जो कूचा ए जानाँ होगा। मैं तो रह गया फ़क़त अश्कों का रहगुज़र, लेकिन तुम्हें हर हाल में मुस्कुराना होगा। दर्दों,ग़मों का नाम ही है ज़िन्दगी 'विवेक', इसलिये जिगर में अब दर्दों को बसाना होगा। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ...
कालिनेम के वेष में
कविता

कालिनेम के वेष में

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** राजनीति इस कदर हो गई क्षुद्र हमारे देश में हर पल ही विष घोल रहे हैं मानवीय परिवेश में जाति पाँति मज़हब भाषा हथियार बनाया जाते हैं विषधर के भी विष से घातक विष रहता संदेश में बुद्धिहीन भेंडों जैसे कुछ लोग यहाँ पर दिखते हैं हाँक रहे चालाक गड़ेरिया शुभ चिंतक के भेष में गुजरे कितने साल साथ में फिर भी मन में दूरी है देश हो गया ग़ौण आज भी रुचि है वर्ग विशेष में मुट्ठी भर ताक़त वालों का संसाधन पर क़ब्ज़ा है आम आदमी शोषित वंचित काट रहा दिन क्लेश में बापू का दिल रोता होगा देख सियासी चालों को हत्या लूट डकैती निसदिन राम कृष्ण के देश में दुर्योधन हिरणाकश्यप रावण भी पीछे छूट गये टहल रहे साहिल है अगणित कालिनेम के वेष में . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी ...
कलयुग
कविता

कलयुग

कु. हर्षिता राव चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. ******************** जब जन्मे थे धरती पर हम, ईश्वर ने यह सिखलाया था, चोरी, बेईमानी और हिंसा, मरते दम तक तुम मत करना, हृदय को जो आघात करे, ऐसा भ्रष्ट आचरण मत करना। युगों-युगों तक भगवन अपना, रूप बदलकर आते गए, इस बिगड़े संसार को सुधारने, वे ज्ञान का दीपक जला गए। पर युग बदले,बदला जीवन, मानव भी तो अब बदल गया, इस कलयुग के माया दानव का, जाल सब पर बिखर गया। आज इस संसार में, लूटपात निरंतर बढ़ रहा, खुद की यह तस्वीर देखकर, मानव फिर भी बिगड़ रहा। भगवान भी यह देखकर, सबके विषय में सोचकर, आज भी परेशान है, भ्रष्टता ही इस जगत की, बन चुकी पहचान है। . परिचय : कु. हर्षिता राव पिता - श्री रमेश राव पेंटर (प्रेरणा स्त्रोत) निवासी - चंदू खेड़ी भोपाल म.प्र. शिक्षा - एम.ए.हिंदी साहित्य में अध्ययनरत, राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस) की स्वयं सेविका एवं सामाजिक कार्यकर्ता...
नारी हूं
कविता

नारी हूं

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** अद्भुत रचना हूँ मैं ईश्वर की, जीवंत चेतन इक नारी हूँ। रुप मिला है दुर्गा, सीता, रति-सा, पंचतत्व रचित, मैं भी नारी हूँ। अपूर्व दया, प्रेम, करुणा है मुझमें, मातृत्व का है मुझे वरदान मिला। नन्हा - सा अंकुर खिला कोख में, है प्रकृतिमयी नश्वर संसार मिला। नतमस्तक है सचराचर प्रेम में, देव - दनुज सारे नर-नारी। थे कन्हैया भी यशोदा कीअंक में, सती अनुसुइया भी थी इक नारी। नारी से है जन जीवन सारा, मै भी प्रतिनिधित्व करती नारी हूँ। प्रेमभाव निभाती हूँ सदा, समता समरसता रखती नारी हूँ।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्य...
कोयल
कविता

कोयल

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** सुबह-सुबह ही कोयल क्यों जगा रही हो? सो रहा है जहाँ तुम मीठी तान सुना रही हो! आठों पहर आजकल यूँ कुहुकने लगी हो माँ के आंगन की याद सी चहकने लगी हो! अब मेरी खामोशियों में मुझे अश्रु बहाने दे अपनों की यादों के सावन में मुझको नहाने दे! खूबसूरत लम्हों को कुछ पल मुझको जीने दे, हो रही है चाय ठंडी अब तो मुझको पीने दे! मैं लेकर बैठूंगी जब भी अपनी कलम दवात, लिख डालूंगी अपने सभी अनकहे जज्बात! . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीज...
परोपकार
कविता

परोपकार

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** परोपकार दिखावा हर जन ने सदा किया। किया बहुत कम, और ज्यादा दिखा दिया। अखबार में छाने का, जुनून ऐसा सर चढ़ा, सचे परोपकारी को, सबने पर्दे पीछे छुपा दिया। वृक्ष नदियों को, कैसे सब ने बिसरा दिया। गाय माता बन पाला, कभी कुछ ना लिया। सब कुछ किया, यूं इन्होंने अपना समर्पित, कितने स्वार्थी है हम, हमने उनको भी भूला दिया। परोपकारी पीठ थप थपाना, कभी न किया। परोपकारीता का, बस उपहास उड़ा दिया। लोभ मोह अंधा, बस जीवन को गवाँ दिया। मनु धर्म का सार परोपकार, यह समझ ना पाया। पर दु:ख देख जो, द्रवित कभी भी हुआ। दीन दुखी मदद,जीवन सार्थक वो किया। मानव है मानवता दिखा, तू परोपकार कर, प्रभु श्रेष्ठ रचना को, कुछ बिरला ने सार्थक किया। ऋषि दधीचि को, हर जन ने भुला दिया। मृत्यु नहीं डरा, कर्ण कवच कुंडल दिया। परोपकार से, देखो इतिहास है पूरा भरा, अब सोचो जरा, हमने मातृभूमि हित...
नमन सदा कुर्बानी को
कविता

नमन सदा कुर्बानी को

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित - वीर देशभक्त बलिदानियों हेतु भाव - देशभक्ति नमन सदा कुर्बानी को। उनकी ही नहीं, उन अपनों की, जिनने खोए कुल के चिराग, जिनका सेंदुर लेकर वैराग, माटी का मूल्य चुकाया है। भारत का मान बढ़ाया है।। माटी का मूल्य चुकाया है। भारत का मान बढ़ाया है।। वो शीश देख भगनी बोले, तेरी राखी आज तरसती है; रोती है बहुत बिलखती है। हम तो दो दिन ही याद रखें, वह मां; की आंखों से छिपकर बाबुल को कुछ हिम्मत देकर। धीमे से कहीं से सिसकती है। गर्मी में छत तपते होंगे। सर्दी ठिठुरन सहते होंगे। बारिश में हर कोने कोने, परिवार सहित रोते होंगे। आंचल जननी का प्यारा है, अश्रु का एक सहारा है। ग़म हम भी उनका भूल चले, अपने ही में मशगूल चले। वो फिर शहीद हो जाएंगे, हम फिर अफसोस मनाएंगे। किसलिए किया बलिदान दिव्य? यह कब खुद को समझाएँगे? हम भी इस प्रण को अब जी लें, भारत न...
समंदर और नदी
कविता

समंदर और नदी

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** किनारों में बंधकर...सहा बहुत होगा। प्यार मेरे लिए ...सच,रहा बहुत होगा। ज़िंदगी के वो जंगल...कटीले भी होंगे। मिले होंगे टापू ......कई टीले भी होंगे। तुम किनारों में बंधकर अकुलाई होगी। जान, दो न बता अब, कैसी अँगड़ाई होगी? उठतीं गिरती हिलोरों का, सीना दिखा दो। मैं ठहरा समंदर हूँ, मुझे जीना सिखा दो। थीं मुरादें हमारीं...एक दिन हम मिलेंगे। दूरियाँ थी बहुत..... फूल कैसे खिलेंगे? मैं खारा मग़र....हैं मोती माणिक मुझी में। प्यार लहरों में ढूंढूँ...या ख़ुद की ख़ुशी में? ग़र तुझसे कहूँ..यूँ कि..तीव्र तूफ़ान हूँ मैं। जबसे ज़लबे दिखाये तू,.....परेशान हूँ मैं। मैं समंदर हूँ.....लेकिन, प्यासा रहा हूँ। मैं मोहब्बत का मारा...तमाशा रहा हूँ। इतराकर इठलाकर....तू घर से चली थी। जान, मालूम मुझे....तू बहुत मनचली थी। यार, आजा समा जा, मेरा आग़ोश ले ले। अब ठहर...
सुनी सड़को पे
कविता

सुनी सड़को पे

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** सुनी सड़को पे घूमती आवारा बिल्लियों को कुत्तों का डर नही रहा वे जान गई है, कुत्ते अब जगह से नही हिलते, उनका सारा कसबल न रहा। परिंदे जरूर शोख हो गए है उनकी उड़ान में किसीका दखलंदाज न रहा। झूमने लगते है दरख्तों के पत्ते हवाके साथ साथ धूल की मिलावट का डर न रहा। आसमान साफ है है सितारे रौशन न चाँद पे बदली है रौशन इस कदर समा है सूरज से कमतरी का भाव न रहा। इंसानों की दुनिया है वीरान जो मिला मुँह छुपा कर मिला इसे कहते है जैसी करनी वैसी भरनी सारे मुग़ालते हो गए दूर हो गया घमंड चूर चूर अपनो का कंधा भी मयस्सर न रहा। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान ...
सबकुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने
कविता

सबकुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** कमी दृष्टिगत हुई मुझे कुछ ही क्षण में! सब कुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने! कहाँ लगी है कालिख मुख पर! किधर मृदा बैठी है सिर पर! कैसे हैं उलझे से केश, कैसा है नयनों में काजर! कान खड़े कर दिए अनसुने भाषण ने! सब कुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने! प्रश्न पूछता मुखमंडल है! जाने क्यों माथे पर बल है! लज्जावश छाई है लाली, गिरने को आतुर दृग-जल है! निन्दा की है मेरी भू के कण-कण ने! सबकुछ बता दिया है मुझको दर्पण ने! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेर...
भूखमरी
कविता

भूखमरी

जितेन्द्र रावत मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा। भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा। जो उमीदें थी उसकी खत्म हो गयी। चाहत उसकी ही,अब जख़्म हो गयी बेबस भूखे पेट रोज सोता रहा। वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा। भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा। ख़ुदा कैसे लिखा मेरी किस्मत को। अब कुछ ना रहा,तेरी ख़िदमत को। परिवार की ख़ातिर खुद को बोता रहा। वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा। भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा। धूप कड़ी थी मेहनत करता गया। भूखे बच्चें ना सोये पाई जोड़ता गया। दो जून की रोटी को तरसता रहा। वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा। भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा कैसे गुजरते है ये दिन ना पूछो खुदा। लाचारी से अच्छा दुनिया से कर दे जुदा। राह दिखा दे मुझे विनती करता रहा। वो मासूम सा, खुद पर रोता रहा। भूखे पेट ही खुद से लड़ता रहा। . परिचय :- जितेन्द्र रावत साहित्यि...