शहिदो की प्रिया
ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)
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आँचल में स्नेह आँखों में विशवास।
धैर्य रखो प्राण प्रिय न करो मन उदास
मैं सरहदों से जरूर वापस आऊंगा
मेरे बढ़ते कदमो को न रोको मेरे हम दम
मुझेको मातृभूमि ने पुकारा है
तुम कृपा कर मुझे विदा करो।
दीर्घ समय न लगेगा मुझ रण बाँकुरे को
सरहदो पर दुश्मनों को मार भगाने में
गौरव से अपनी हृदय दृढ कर।
अपनी कोमल हथेलीयो को उठाकर
जरा मुझे अलविदा कहो।
धृत दीपक पुष्प रोली चंदन से
थाल सजा कर
नई दुल्हन सी श्रृंगार किए धीरे।
मुस्कुराकर दरवाजे पर मिल जाना
निश्चय ही युद्ध स्थल से विजय वरण कर आऊंगा
नीचे निज प्रेम भरी सांसो से तुझे पिघलाउगा
मैं सरहदों से जरूर वापस आऊंगा
तोपचीओ के फटते गोलों के धुए से
केवल तुम्हारी स्नेह मुझे राह दिखाएगा
दुश्मनों की असंख्य गोलियां मेरी ओर चलेगी
विश्वास तेरी हृदय का मेरे काम आएगा
मेरी भी असंग की गोलियां अचूक बन जाएगी रण में
तेर...