अंतर्मन में ज्योति जलाएँ
संतोष नेमा "संतोष"
आलोक नगर जबलपुर
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अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।
आओ तम को दूर भगाएँ।।
पग पग पर अवरोध बहुत हैं।
लोगों में प्रतिशोध बहुत है।।
आओ मिलकर द्वेष हटाएँ।
अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।।
छल, प्रपंच, पाखंड ने घेरा।
लोभ, मोह का सघन अंधेरा।।
मन से तृष्णा दूर भगाएँ।
अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।।
असल सत्य को जान न पाये।
स्वयं अहंता से इतराये।।
क्षमा, दया, करुणा अपनाएँ।
अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।।
चिंतन और चरित्र की सुचिता।
परोपकार आचार संहिता।।
अंतर से हँसे मुस्काएँ।
अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।।
अनीति का तिरस्कार करें हम
साहस का संचार करें हम
"संतोष" यह कौशल अपनाएँ।
अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।।
सब मिल ऐसे कदम बढ़ायें।
दिव्य गुणों को गले लगायें।।
आओ तम को दूर भगाएँ।
अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।।
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परिचय :- संतोष नेमा "संतोष"
निवासी : आलोक नगर जबलपुर
आप भी अपनी कवित...