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कविता

बेखबरी का आलम
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बेखबरी का आलम

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** ये मेरी बेखबरी ही है कि लुटता जा रहा है मेरा सब कुछ, बढ़ता जा रहा मेरा दुख पर दुख, पर्दे डाले गए मेरे सुनहरे इतिहास पर, विरोधी इतना घातक है कि तुला हुआ है करने मेरे सत्यानाश पर, है उनके पास अजीब हथियार जो है रासायनिक अस्त्रों से भी घातक, जिससे हो जाते हैं मदहोश सब देख उनके निश दिन का नाटक, गिरवी पड़ा है मेरे अपनों का मष्तिष्क किसी नापाक इरादों वाले के चरणों में, हम पूरी तरह फंसे हुए हैं उन्हीं विरोधियों के विभिन्न धारणों में, ऊपर से हमारी पेट की आग, दिन भर इसी में उलझे रहते हैं और अपनों के प्रति कर्तव्य नहीं पाता जाग, अपने कर्तव्यों के प्रति मेरी सोच व समझ आखिर बेखबरी ही कहा जाएगा, मेरा यह रुख आगामी पीढ़ी से नहीं सहा जाएगा, मेरे जैसे लाखों करोड़ों लोग कब जाग पाएंगे, जोश, जुनून, जज्बे की कब आग जला...
बदलता परिवार
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बदलता परिवार

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** एक-एक सदस्य से कहलाता परिवार परिवार की सदस्यता बिना, सुना संसार कहीं भी रहे, कहीं भी बसे, भुलाये भूल नहीं सकते, परिवारजनों को, अक्सर उनके संग ही लगता है, अपना प्यारा कितना अनूठा है परिवार।।१।। कभी किसी जमाने में आन बान शान में संयुक्त परिवार एक जगह सोते रहते खाते पीते मिल-जुलकर हाथ बंटाते सारे काम कर लेते आसान दुःख सुख की नैया चलाने लेते सबजन आपस में हाथ थाम।।२।। संयुक परिवार की असली शक्ति लुटाते उस परिवार पर अपनी जान बदलती दुनिया में बदलते गए है विचार कहीं भी देखो, दिखलाई नहीं देता खुशहाल संयुक्त परिवार, युगपरिवर्तन में सब, अब दीखता एकल परिवार।।३।। परिवार से मिलती खुशियां परिवार से मिलता प्यार एकता का सूत्र बंधा रखता भरापूरा स्नेहभरा परिवार।।४।। परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खल...
ऐसी हवा चली कि …
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ऐसी हवा चली कि …

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** ऐसी हवा चली कि रिश्ते बिगड़ गाये जो कुछ बचा था दुनिया की आँखों में गाड़ गाये हमने तो उनको अपना बनाया था जिगर से वो देखते ही देखते पत्ते से झड़ गाये माँ बाप किसके साथ रहेंगे सवाल पर दो भाई इस विरोध में आपस में लड़ गाये क्या दोष अहिल्या का था जो शपित हुई भला गौतम ने उसको नारी से पत्थर में जड़ गए द्रोपदी की एक गलती से क्या क्या न झेली वो सारे ही कौरव पाण्डेवों के पीछे ही पड़ गए परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ए...
कृष्ण-कर्ण संवाद
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कृष्ण-कर्ण संवाद

शशि चन्दन "निर्झर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चाहे तुम, केशव कवच कुण्डल उतार लो। कर्ण को मंजूर नहीं, कि प्राण उधार दो।। देकर वचन विचलित नहीं होते सुरमा... चलो कुरुक्षेत्र में, और सुन मेरी हुंकार लो। मित्रता निभाना सीखा है तुमसे माधव। अश्रु से पग धो तीन लोक वारे तुमने माधव।। धर्म क्या?? अधर्म क्या?? नर्क ही भला.... जाओ नहीं मानता कर्ण तुम्हारी सलाह।। रहेंगें माँ कुन्ती के, पुत्र पांच ही जीवित। कि शीश उसका रहेगा, सदा ही गर्वित।। पाषाण हुआ हृदय, उपहार में मिले आघातों से, प्रेम है अस्त्र-शस्त्रों से, रहा मोह नहीं श्वासों से।। तुम रचयिता जग के बड़े ही छलिया हो। देखो, जन्म से छला है अब न छलो....। जाओ पार्थ, तुम अर्जुन का रथ हांको, और निश्चिंत रहो, मुझ शुद्र पुत्र से न डरो।। कि हाहाकार तो होगा रण भूमि में। भस्म होगा इक निरपराध धुनि में।। वीर बलिदान...
अनुभव
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अनुभव

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** कहा गया है चलती का नाम है जिंदगी इंसान चलता है ता-उम्र पर... क्या सब को मिलती है मंजिल.... इंसान चलता है कदम दर कदम पर... मंज़िल दूर रहती है खिसकती रहती है राहें सिसकती रहती है डगर न जाने कितने चाहे-अनचाहे आते हैं उतार-चढाव जिंदगी की दुर्गम राहों में..... कहीं उपस्थित है उन्नत श्रृंग शिखर सी विकट समस्यायें कहीं उछल रहे हैं दंश मारने को आतुर फुँफकारते विपदा नाग कभी रजनी का स्याह तमस कभी आंनद ओतप्रोत उर्जावान दीप्त दिवाकर कहीं खुशियों के लहराते सागर..... समेटे है अपने आप में ये सर्पीली राहें पग पग कटींली राहें कभी मिलते हैं सुरभित उपवन तो कहीं उगे हैं सरल,गरल, तरल सलिल सींचित कैक्टस मिश्रित अहसास लिए साथ साथ दौड़ती राहें मगर... मंजिल से पहले बहुत कुछ समझाती है ये...
विकसित भारत की दिवाली
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विकसित भारत की दिवाली

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** न मैं दिवाली मनाता, न ये धूम धड़ाम मुझे भाता है, मेरा मन तो उस कर्ज़ को गिनता, जो गरीब चुकाता है। न ये मेरा उत्सव है, न आतिशबाजी का शृंगार, मैं तो देखता हूँ, धन की चिता पर, चढ़ता बाज़ार। जिस लक्ष्मी को घर बुलाने, लाखों का व्यापार हुआ, चंद मिनटों की आतिशबाजी में, उसका सर्वनाश हुआ। जिस पूँजी से संवर सकता, किसी का पूरा संसार, तुम उसी को धूल बनाते, ये कैसा अंध-अधिकार? पूंजी का यह प्रदर्शन, यह कैसा व्यंग्य रचता है? जब फुटपाथ पर बैठा मानव, आज भी अन्न को तरसता है। दीवारों के भीतर दीप जले, पर द्वार अँधेरा बोल रहा, पत्थर की मूरत के लिए, तू लक्ष्मी को ही तोल रहा। लाखों के रॉकेट से ऊँचा, वह गरीब का घर भी हो, जो इस आस में बैठा है, कि 'आज वह भी ख़ुश हो।' हज़ार जलाओ तुम दीप भवन में, पर एक दीया क्यों नहीं? जहाँ भूख से सूख गए ह...
स्नेहपाश
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स्नेहपाश

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** आओ तुमको अपनी कहानी का पात्र बनाऊ करे लोग सजदा तुमको भी मेरे नाम से ऐसा मुकाम बनाऊ। कहते हैं लोग कि मोहब्बत में बड़ी गहराई होती है आओ तुम्हें दोस्ती के समुद्र में डूबाकर भी तैरना सिखाऊ। सुना है तुमको लोगों पर ऐतबार नहीं है आओ तुमको स्नेहपाश में बांधकर अपनेपान का ज़रा एहसास करवाऊ। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
दिप जलाएं
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दिप जलाएं

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** राम घर आये हैं, सब मिलकर दिप जलाएं। सज गई पुरी नगरी, आओ मिलकर खुशियाँ मनाएं।। राम है मर्यादा पुरुषोत्तम, वचन के लिए वन को चुना। हसते- हसते महलों को छोड़ा, अयोध्या का हो गया हर कोना सुना।। सीता भी पतिव्रता नारी, महल सुख छोड़, हरी संग चली। फूलों पर चलने वाली, अब पानी भी पिये भर-भर अंजलि।। लक्ष्मण जैसा जग में भाई नहीं, राज छोड़ भाई के चरण शरण ली। कहीं नहीं लक्ष्मण जैसा और भाई, चौदह वर्ष में नींद की झपकी न ली।। ऐसे युगों-युगों के पैहरी, आज घर आये है। रौशन करें अपना घर, और मंगल गीत गाये हैं।। परिचय : रतन खंगारोत निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
पति परमेश्वर
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पति परमेश्वर

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** सात फेरों के सातों वचन निभाऊँगी। माथे पर तेरे नाम की सिंदूर लगाऊँगी।। पति तुम मेरे लिए देवता, परमेश्वर हो, हाथों पर तेरे नाम की मेहंदी रचाऊँगी।। माँगी थी तुझे वरदान में भोलेनाथ से। मुझको अच्छा पति मिले विश्वास से।। सोलह सोमवार करके जल अभिषेक, अखंड सौभाग्यवती रहूँ यही आश से।। मैं सोलह सिंगार करके रहूँगी उपवास। छूटे न दोनों का जन्मो जनम तक साथ।। मिले हो तुम मुझको पुण्य फल समान, पतिव्रता बनके हमेशा संग रहूँगी नाथ।। चंद्रदेव से माँग लूँगी तुम्हारी लंबी उमर। घर की लक्ष्मी बन सेवा करूँगी जीवन भर।। खिला देना मुझको प्रेम की मीठी-मिठाई, पिला देना जल अमृत मेरे पिया हमसफर।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., संस्थापक एवं अध्यक्ष यादव समाज सेवा, कला, संस्कृति एवं साहित्य ...
जिंदगी के दिये
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जिंदगी के दिये

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** लंबा होता जा रहा है सफर, काम का भी और जिंदगी का भी, आकलन करने पर परिणाम दिखता है सिफर, जब जब जिस-जिस जगह से हुआ लगाव, जल्द ही मिला बिछड़ाव, क्या करे बंधे हुए हैं कुछ नियम तो कुछ परिपाटी से, दूर हो गए बचपन में खेली सोंधी माटी से, जनाब ये जीवन की गाड़ी है, चलना-चलाना नहीं आता अनाड़ी हैं, बस छोड़ दिए हैं खुद को प्रकृति और कुदरत के हाथों, हर आदेश को लगाए सर माथों, पर मैं इन स्थितियों से उदास नहीं हूं, उमंगों से भरा हूं हताश नहीं हूं, हां कर नहीं पाया अपने मन की, कभी परवाह नहीं कर पाया धन की, अपनी आवश्यकताओं को रखा हूं सीमित, पर अपनों की चाहत है असीमित, अपनी पहुंच तक हाथ-पांव मार रहा हूं, मगर अभी भी चादर जितनी पांव पसार रहा हूं, भले आशाएं आकांक्षाएं नहीं मारता उछाल, जिसके लिए रखा हूं ...
करवा चौथ
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करवा चौथ

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** सजकर सौलह श्रृंगार प्रियतम के नाम का, प्रीत की डोर सदा बँधी रहे तेरे मेरे प्यार की। प्रकृति सी हरियाली रहे मेरे घर अँगना, चंदा सा चादोल्यो रहे मेरे सिर पर धरा। लाल पीली चुदड़ मै बूटा लाल गुलाब, अमर चाँद का दीदार करू मै सौ-सौ बार, अमर रहे सुहाग मेरा चन्दा से प्यार का। सुन्दर रूप चन्दा मै देखु मै मेरे प्रीतम का, नजर ना लग जाये सुन्दर जोडी पे काला दाग है चन्दा में। सदा सुहाग का वर मांगू मै, अमर शिवत्व सी जोडी़ रहे, ये शिव बन जाये, मै गवरा बनी रहू चरणन मै। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्री...
दीप से दीप जलाऐ
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दीप से दीप जलाऐ

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** दीप से दीप जलाऐ, मन से हर भेद मिटाएं। प्रेम के दीप हर मन में जलाकर, राग द्वेष का भेद मिटाएं। प्रेम का दीपक ज्ञान की बाती, हर मन मे यह भाव जगाऐ। मन कंचन सा दीप ह्रदय में, रजत सा उज्जवल प्रेम बढ़ाएं। एक दूसरे का मान रखे हम, जैसे दीप से दीप जलाएं। द्वेष का दीप ना जले इस मन में, हर मन में यह भाव जगाऐ। छोटा दीप उज्ज्वल है प्रकाश, जैसे सूर्य उदय अंधकार का नाश। तेज पुन्ज दीपक का प्रकाश, राग द्वेष का कर दे नाश। दीपों का यह उत्सव प्यारा, हर मन में आशा के भाव। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्र...
काज़िब
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काज़िब

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कितने मंत्रमुग्ध हो औरों के लिए अपने लिए थोड़ा होते तो क्या बात थीं। कितने मंत्रमुग्ध हो झूठ अहम के लिए किसी पर रहम के लिए होता तो क्या बात थीं। कितने मंत्रमुग्ध हो मतलबी हंसी के लिए मासूम मुस्कराहट के लिए होता तो क्या बात थीं। कितने मंत्रमुग्ध हो दूसरों को नीचा दिखाने के लिए खुद के व्यक्तित्व को ऊंचा उठाने के लिए होते तो क्या बात थी। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छ...
आने वाली पीढ़ी के नाम
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आने वाली पीढ़ी के नाम

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हमारी सन्तानों! याद रखना अपने बेहतर दिनों में और अचानक टूट पड़ने वाली विपत्तियों के समयों में भी कि बीसवीं सदी के अन्त में जब लगभग सारा कुछ नष्ट हो गया था एक ज़लज़ले में, हमने तम्बू गाड़े थे दिन को आग उगलते, रात को हड्डी कँपाते निचाट रेगिस्तानों में। हम बहुत थोड़े ही बचे थे और जो भी थे, बिखरे हुए थे। हाँ, लगभग सब कुछ खो दिया था हमने। बस, अपने साथ बचाकर ले आ पाये थे जीने की ज़रूरत और कुछ उम्मीदें, थोड़ी आग और रोशनी। ख़ून और पसीना अपना था ही, बची हुई उम्र थी, विचार और अनुभव थे अपनी पिछली पीढ़ियों से और अपने ख़ुद के प्रयोगों से अर्जित। याद रखना कि इतनी सी, बस इतनी ही सी चीजों से हमने एक नयी शुरुआत की थी एक बेहद कठिन समय और बेहद ख़राब मौसम में तमाम-तमाम विभ्रमों, तटस्थताओं और रहस...
संघर्ष
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संघर्ष

सौरभ डोरवाल जयपुर (राजस्थान) ******************** संघर्ष उसी को चुनता है, जो लायक इसके होता है। जो चलना भी ना शुरू करे, वो अनंत आकाश को खोता है।। राज-पुत्र होकर भी, संघर्ष राम ने चुना था। चौदह वर्ष वनवास काटकर, राज-पाठ का मौका भुना था।। संघर्ष राजा हरिश्चंद्र ने किया जीवन भर, तब संघर्षों के आदि कहलाए। राज खोया, पुत्र खोया, तब हरिश्चंद्र सत्यवादी कहलाए।। संघर्षों को बिना चुने, ना कोई मंजिल को पाता है। बिना संघर्ष जीवन क्षण भंगुर, केवल आता और जाता है।। संघर्ष के ही कारण गोताखोर, नदी पार कर जाता है। सौरभ केवल किताबों को पढ़कर, कोई तैरना नहीं सीख पाता है।। परिचय : सौरभ डोरवाल निवासी : भोजपुरा, जिला- जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।...
रावण ही रावण
कविता

रावण ही रावण

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जिस रावण को मारा था श्रीराम ने, लोगों के मन में अभी भी जिंदा है। हर दिन रावण लीला हो रहा है यहाँ, असत्य, अज्ञान, बुराई की निंदा है।। कोई नर हवस के पुजारी बन बैठा है, मासूम स्त्रियों का कर रहा बलात्कार। बार-बार रावण का रूप धारण कर, फिर क्यों कर रहा उन पर अत्याचार।। घर के आँगन में बैठी रोती है नारी, माथे का सिंदूर बन जाता है अंगार। घड़ी-घड़ी होती उनकी अग्नि परीक्षा, देश की बेटी हैं घरेलू हिंसा का शिकार।। पराई स्त्री पर नजर रखते हैं मनचले, प्रेम झाँसा देकर बहलाते, फूसलाते हैं। जीवन भर रानी बनाकर रखूँगा कहकर, अंत में घर से भगाकर कहीं ले जाते हैं।। बुरे मानव के अंदर रावण-ही-रावण है, मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम कहाँ से लाऊँ। रावण राज में अधर्मी, पापी, दुराचारी हैं, अच्छाई का राम राज फिर से कैसे बनाऊँ।। परिचय...
करिया अउ वोखर रूख
आंचलिक बोली, कविता

करिया अउ वोखर रूख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) करिया ल बनेच रिस आगे, ओखर तत घलो छरियागे, मोर लगाय रूख ल काट के कोन लेगे, मोर हिरदे ल बड़ दुख देगे, मोर कइ पीड़ही बर छैंहा बनाय रहेंव, सुखी रही संहंस लिही तेखर जोगाड़ जमाय रहेंव, लइका ह इसकुल ले घर आके बताइस, के गुरूजी कहे हे एक ठन रूख अपन दाई के नांव म लगाबे, पानी पलो के वोला बड़का बनाबे, करिया अकचका गे, सुन के झंवुहागे, खटिया म बइठे रहिस त नइ गिरीस, पानी ठोंके म संहंस हर फिरिस, अब आन संग अपन आप ल कइसे समझावां, अपन पीरा ल काला बतावां, जब पइसा वाला मन दोगलाई म उतर जाथें, त हमर अस गरीब के जंगल ल कटवाथें, हमर पुरखा मन अपन महतारी भुंइया के हरियर रूख ल कभु नइ काटिन, ए जंगल ह हमर दुख दरद ल बांटिन, फेर कथनी करनी के फेर ल देखव तमनार अउ हसदेव जइसन जंगल के हजारों लाखों पे...
दीप बनो, जो जग को जगाए
कविता

दीप बनो, जो जग को जगाए

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** दीप बनो जो राह दिखाए, जो अंधियारा दूर भगाए। जलो मगर सेवा के लिए, ना कि केवल मेवा लिए। दीप बनो जो सत्य जलाए, झूठ और भय सब मिट जाए। जग में जो अन्याय हुआ है, उस पर सच्चा नाद सुनाए। दीप बनो जो ज्ञान बढ़ाए, हर मन में उजियारा लाए। बिन शिक्षा सब सूना सूना, दीप बनो जो बुद्धि जगाए। दीप बनो जो मानवता दे, भूले को फिर सजगता दे। हाथ में दीप अगर जलाओ, तो मन में भी गरमाहट दे। दीप बनो जो धर्म बताए, राष्ट्र प्रेम का गीत सुनाए। अपने भीतर आग जगा लो, फिर भारत जग में चमकाए। दीप बनो जो द्वेष बुझाए, प्रेम का सागर लहराए। जात, पंथ की दीवारें तोड़ो, मानवता का दीप जलाए। दीप बनो जो कर्म बताए, स्वार्थ नहीं, सद्भाव सिखाए। भूखे के हिस्से की रोटी दो, यही असली दीवाली आए। दीप बनो जो दिल को छू ले, सत्य की राह में तन झ...
प्रकाश का पर्व: दीपावली
कविता

प्रकाश का पर्व: दीपावली

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** दीपों का ये पर्व है निराला, हर घर में छाए उजियाला। अमावस की रात में चमके दीया, हर मन गाए प्रेम का जिया। रामचंद्र जब लौटे वन से, चौदह बरस बिताए बन से। अयोध्या वासी ने दीप जलाए, राम-सीता का स्वागत पाए। यही है दीपावली की बात, सदियों से चलती परंपराओं की बात। अंधकार पर जब होती जीत, तभी मनाते दीपों की रीत। लक्ष्मी माता आतीं द्वार, संग में लातीं सुख-सम्पार। धन, समृद्धि, शांति का वास, हर मन में हो प्रेम प्रकाश। गणेश जी का हो पूजन, बिना उनके नहीं शुभ आरंभन। वो देते हैं बुद्धि-विवेक, सच्चे पथ पर चलना नेक। धनतेरस से मेला छाए, हर गली, हर घर मुस्काए। नरक चतुर्दशी लाए शुद्ध विचार, दीप जलाएं, करें संहार। फिर आती अमावस रात, हर कोना रोशन, हर बात खास। पटाखों से न हो शोर बड़ा, प्रकृति बचाना भी है सदा। ...
चीज
कविता

चीज

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** "हर चीज जरूरी है पर अति, हर चीज की बुरी है समय पर ना मिले तो अधूरी है बस इसी मेल-मिलाप की दूरी है वरना, हर चीज जरूरी है पर अति, हर चीज की बुरी है " परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) ...
पश्चाताप क्या हैं?
कविता

पश्चाताप क्या हैं?

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* पश्चाताप स्मृति रंध्रों से पीड़ा का रिसाव है पश्चाताप हमारी समझ और विवेक का अधूरापन है और हमारे बेहतर मनुष्य होते जाने का प्रमाण भी। पश्चाताप हमारी वस्तुपरकता को ठण्डी निर्ममता से बचाता है और सारी गतिविधियों के केन्द्र में मनुष्य को रखना सिखाता है। पश्चाताप इतिहास का संवेदनामूलक समाहार है और संवेदना का इतिहास लिखने की सबसे अच्छी भाषा है। हम बार-बार पीछे मुड़कर देखते हैं और जीवित रहने के लिए पश्चाताप करने लायक कुछ न कुछ ढूँढ लाते हैं। पश्चाताप प्रेरणा की विकल आत्मा है। पश्चाताप यदि देवता के सामने पाप स्वीकृति या क्षमायाचना बन जाये तो हम कमज़ोर, स्वार्थी और घुटे हुए पापी बन जाते हैं पश्चाताप आत्मकथा का विवेक और कविता की प्राणवायु है। पश्चाताप हमें तानाशाह बनने और त...
मुँडेर-मुँडेर बिखरी ख़ुशियाँ
कविता

मुँडेर-मुँडेर बिखरी ख़ुशियाँ

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** मुँडेर-मुँडेर बिखरी ख़ुशियाँ टिमटिमाये दीप क़तारों में मन प्रफुल्लित हुआ है आनंदित लक्ष्मी के आकार प्रकारों में झिलमिलाये दीपशिखा की लौ प्रीत जुड़ी प्रीत के तारों से रजनीगंधा सुमन सौरभ ले मुस्काये मधुर बहारों से महक उठे घर आँगन सारे ऋंगार, मिष्ठान, उपहारों से छिप-छिप चिहुंकै नव युगल बजे सरगम गुम सितारों से मन से मन कब मिलते हैं यहाँ स्वार्थ के स्वार्थी अभिसारों से भुल सभी गिले शिकवे पुराने गले मिलो अब निज प्यारों से जीवन दीप जले कोटि कोटि दिवाली मने दूर विकारों से ऋद्धि-सिद्धि बढ़े हो शुभ सब का वरदान मिले ईश अवतारों से परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़” निवासी : आनंद विहार, दिल्ली विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन, अब तक पंद्रह पु...
पता नहीं क्यों?
कविता

पता नहीं क्यों?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जब तक निःस्वार्थ भाव से कोई जुड़ा रहता है समाज सेवा में, तब तक उनका ध्यान रत्ती भर नहीं जाता मलाई व मेवा में, तब मन में चलता रहता है कि मेरा समाज कहीं दुखी तो नहीं है, नजर आ जाता है कमी यही कही है, लोगों को हर उस नियम को बताता है, जिसे अपना कुछ मुस्कान लाया जाता है, संविधान की एक एक अनुच्छेद रह रह याद आने लगता है, भ्रष्ट लोगों को चमकाते नहीं थकता है, वो भूल जाता है अपना दुख, लोगों से की हंसी में खोजता है अपना सुख, मगर जैसे ही वो सामाजिक कार्यकर्ता से एक कदम आगे बढ़ नेता बन जाता है, बदलाव नजर आने लगता है सीना तन जाता है, उनके पिछले कार्य उन्हें दिलाता है कुर्सी, यहीं से शुरू हो जाता है मनमर्जी, अब वो बहाने बनाना जान जाता है, झूठ बोलने की बहुत बड़ी दुकान लगाता है, अब उन्हें लोग प्यारे नहीं लगते प...
जीवन का सार
कविता

जीवन का सार

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** अपनी अंतर आत्मा से पूछो? "क्या खोया क्या पाया है" क्या जग से है लिया है हमने, क्या जग को लौट आया है। कितना प्रेम दिया है हमने, कितना प्यार लुटाया है, कितना दिन दुखीयो को हमने, अपने गले लगाया है। कितना दान दिया जीवन मै, कितना छिना दुनिया से, कितना राग द्वेष किया है, जग में जीने वालों से। भला किया या बुरा किया, हिसाब लगा लो आत्मा से, कितने दिलों को तोडा़ हमने, कितना सेतू जोड़ा है। "एक पल हम मर कर है देखे", कौन रोये कोन हंँसता है, कौन हमें अच्छा है कहता, कौन बुरा आज कहता है। यदि अश्रुधार भये जन जन की, तो जग मै नाम है कमाया है, पीछे से अपशब्द जो बोले, जीवन में नाम डुबाया है। यही आनंद दिवाली का जीवन, यही होली का रंग लगाया है, यही दशहरे की जीत है पाई, राखी का प्रेम कमाया है। जीवन का हिसाब...
तुम कुछ कहो … हम कुछ कहें
कविता

तुम कुछ कहो … हम कुछ कहें

मित्रा शर्मा महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रिश्ते की डोर जो एक दूसरे को बांधे रखती है निभाने के लिए भी तो कुछ कहना पड़ता है। चुप रहने से दूरियां बढ़ जाती हैं पहल करो तो राह मिल जाती है इसलिए आओ ... तुम कुछ कहो ... हम कुछ कहें ...। जीवन के इस आपाधापी में वक्त के पहिए के साथ चलने में वास्तविक मुस्कान छिन रही है होठों से आओ, जीवन को असली मुस्कान दें तुम कुछ बोलो ... कुछ हम बोलें ...। जिंदगी बहुत छोटी है, यह हम जानते हैं तो फिर क्यों ना, टूटते रिश्ते जोड़ने की पहल करें आपस की गलत फहमी मिटाएँ तुम कुछ कहो ... हम कुछ कहें ...। आओ, इस वसुधा के आंचल को संवारे नदियाँ बचाने के लिए कार्य करें नया इतिहास रचने, आगे बढ़ें महापुरुषों से प्रेरणा लें नई पीढ़ी को जागरूक करें आओ, तुम कुछ बदलो ... हम कुछ बदलें ... तुम कुछ कहो ... हम कुछ कहें ...। ...