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कविता

नादान है इंसान
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नादान है इंसान

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* अभी तक नादान है इंसान उसी डाल को काटे जिस पर खुद बैठा नादान। अपने पैर कुल्हाड़ी मारे दिखा दंभ अभिमान। जानबूझ सच भूल गया सब मन के माने-मान, उलटी पढ़ी ज्ञान की पाठी उल्टा हो गया ज्ञान। सदा नकारे सच को मूरख होश करे न भान स्वार्थ में हो अंधा ऐसा बेचा सब ईमान। खुद की करनी छुपे न खुद से झूठी -धरता शान, अंदर-अंदर रहता हरदम परेशान -हलकान। तन को खाना-पीना सबको हासिल सभी जहान मन की भूख अपूर सदा ही मन की माँग अजान। मन मूरख खुद भी नहीं जाने क्या उसका अरमान पगलाया फ़िरता दुनिया में चढ़ गई मुफ्त थकान। मन के संग-संग मूरख लागे ज़रा करे न ध्यान मन के संग-संग घायल होकर घर लौटे नादान। मन नहीं जाना जब तक अपना सच न हो संज्ञान मन नहीं जाना तब तक अपना बोध हुआ न ज्ञान. अभी तक नादान है इ...
प्रेम करना सीखें
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प्रेम करना सीखें

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रेम निभाना सीखें प्रेम तो हर कोई कर लेता है, प्रेम का अर्थ समझे बिना प्रेम व्यर्थ है ! इस जीवन के सफर में सब कुछ पीछे छूटता जाता है, केवल स्मृतियाँ ही शेष रह जाती हैं , समय के साथ ये स्मृतियां भी धुंधली पड़ने लगती हैं , मानो रेत की गहराई में दब कर कहीं गुम हो जाती हैं ! बाकी बच जाता है, रिक्तता-मौन, जो बचा खुचा प्रेम भी सोख लेती है ! मौन का अर्थ अहंकार नहीं होता, कभी-कभी भावनाओं की थकान होती है, टूटते विश्वास और थकते दिल की गवाही होती है, निःशब्द अन्तराल के बाद वेदनाओं की बहती कहानी होती है!! मौन इतना गहरा हो जाता है, जहां से शब्द टकरा कर वापस लौट आते हैं एक प्रतीकात्मक प्रतीक्षा रह जाती है, अंतहीन प्रतीक्षा, जहां प्रेम के लौटने की कोई आहट नहीं आती!! परिचय ...
शिक्षा
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शिक्षा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षा से कल्याण है, सहज बढ़ाती ज्ञान। शिक्षा तो वरदान है, देती है सम्मान।। देती है सम्मान, करे जीवन उजियारा। करती है उद्धार, भगाती है अँधियारा।। अज्ञानी नादान, पढ़ो लो गुरु से दीक्षा। करे सदा उपकार, निखारे जीवन शिक्षा।। ज्ञानी शिष्ट सुशील हो, सतत् पढ़ो विज्ञान। जीवन होगा फिर सफल, अध्ययन हो सुजान।। अध्ययन हो सुजान, बने ज्ञानी हर पीढ़ी। वृद्धि होगी विवेक, चढ़ोगे नित नव सीढ़ी।। होंगे फिर विद्वान, अगर महिमा पहचानी। करो नित्य अभ्यास, मिलेगी विद्या ज्ञानी।। करती पूजन शारदे, दो शिक्षा वरदान। माता विद्या दो हमें, ले लो अब संज्ञान।। ले लो अब संज्ञान, पढें हम जाकर शाला। नित्य बढ़ेगा ज्ञान, मिले साहस मतवाला।। विद्या है रस खान, कष्ट सारे ही हरती। शिक्षा दे पहचान, स्वप्न सब पूरे करती।। ...
मेरे आदर्श
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मेरे आदर्श

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** क्या अर्पण करूं तुझे हे! माधव, जो मानव जीवन तुमने दिया। मेरे पापों की मैली चुनरिया पर, कुछ सितारे शायद पुण्य के होंगे।। यह जीवन है कितना अनमोल, मैं निमूर्ख यह समझ ना पाई। तब मेरे पिता का रूप धरकर, गोविंद, तुमने ही तो राह दिखाई।। जब जीवन की उलझने बढ़ने लगी, मैं दिन- दुखी और चित्त उलझाया। तब मेरे गुरु के रूप में ही, माधव तुमने तो दिया जलाया।। मेरे आदर्श मेरे गुरुवर की वाणी, मेरे उसूल मेरे पिता के वचन। किसी का दिल न दुखे और न राह भटकू, तभी सार्थक होगा मेरा यह जीवन।। परिचय : रतन खंगारोत निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
परिवर्तन लाना पड़ता है
कविता

परिवर्तन लाना पड़ता है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अपने आप आती है बारिश, थमने नहीं स्वीकारती कोई गुजारिश, आंधी के आने का कोई काल नहीं है, जिसे रोकने के लिए कोई जाल नहीं है, खुद-बखुद आ जाती है तूफान, क्या पता ले ले कितनों की जान, मगर किसी की जान लिए बिना महापुरुष गण परिवर्तन लाते हैं, तात्कालिक अवरोधों से बेफिक्र टकराते हैं, भले ही सड़े गले लेकिन तत्कालीन समय के सशक्त प्रचलित व्यवस्था से टकराना, कोई बांये हाथ वाला खेल नहीं है, जहां विचारों का होता मेल नहीं है, अवैज्ञानिक, अमानुषिक नियम हर किसी के लिए समान नहीं होते, विभेदों से भरे ग्रंथवाणी में ज्ञान नहीं होते, इंसान होकर भी इंसान इंसान नहीं होते, ऐसी प्रथाओं के लिए खपना बलिदान नहीं होते, इस दुनिया में अंधविश्वास, पाखंड और भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं है, नैतिकता, सत्य, दया से बड़ा भगवान नहीं है...
स्वच्छंदता
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स्वच्छंदता

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* कितनी उन्मुक्तता है स्वतंत्र विचरण करते हैं। सम्पूर्ण धरा और गगन के बीच ना आने का व्यय ना ही वाहन शुल्क देना है आय व्यय का ब्यौरा. पर क्या इनके ह्रदय में शांति की अनुभूति है ? संभवत: नहीं क्योंकि शांति होती तो इधर उधर विचरण करने की आवश्यकता नहीं होती। तो फिर इस स्वच्छंदता रूपी स्वतन्त्रता का परिणाम क्या है ? फिर भी सभी उन्मुक्त सभी स्वछंद रहने को आतुर रहते हैं पंछी की तरह। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४" से सम्मानित घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
ये कहानियाँ
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ये कहानियाँ

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** कुछ हैरानियाँ कुछ परेशानियाँ वक्त से मिले आघातों की निशानियाँ जीवन से जुड़ी अतीत की अनगिन कहानियाँ मैं चाहता हूँ उन्हें भुलाना मगर कदम कदम अनेकों तथाकथित शुभचिंतक तैयार रहते हैं स्मरण कराने को फिर से वो कहानियाँ..... इतिहास भरा है छोटे बड़े भांति भांति के जख्मों से मैं तो भुलाना चाहता हूँ मगर वो अपने कहाँ चाहते हैं कि ...मैं भूल जाऊँ जिन्होंने दिये ये घाव बना कर कहानियाँ... और वो चाहेंगे भी क्यों क्योंकि कितना सुख मिलता है उन्हें इन घावों से उठती टीस से कितना मजा मिलता होगा मेरे दिल में व्याप्त कसक से सुना कर वो कहानियाँ.... वे अपने आत्मिक सुख के फेर में सहला सहला कर सूखते घावों को मुस्कुरा मुस्कुरा कर कुरेदते रहतें हैं सहानुभूति के शाल नीचे वे निशानियाँ सुना सुना ...
साकार रूप लेता सपना
कविता

साकार रूप लेता सपना

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक दिन मैं यूँ ही सड़क पर गुजर रहा था, रास्ते पर कुछ गिरा पड़ा था, बीमार, भूख-प्यास, से निढाल, सड़क के आध बीच लगा जैसे मेरा स्वप्न पड़ा हो !! एक श्वान था, जीवित किन्तु मरणासन्न स्थिति में! आत्मा सहित अपनी श्वास की तरह समेत लिया स्वयं में!! उस दिन बहुत कुछ गिरा मेरे अस्तित्व से मोह- माया, राग-द्वेष, क्रोध- अहंकार, तमाम संपत्तियां भी मेरे जेब से गिरी थी, मेरी गृहस्थी भी गिरी थी उस दिन!! मेरे पास था नन्हा जीवन जिसकी आंखों में मुझे मेरे सपने दिखाई दे रहे थे, ममता- करुणा, स्नेह से भरे जीवन जीने का स्वप्न! उसी दिन मैंने ईश्वर से ऋग्वेद के चरवाहों की करुणा-स्नेह और संरक्षण मांगा जीवों के जीवन के लिए ! धरती से बस अपने शरीर जितनी जगह मांगी, प्रकृति माँ से हल जितनी शक्ति से जुट स...
विजया दशमी
कविता

विजया दशमी

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** सनातन-संस्कृति की रक्षक, यह अखंड धर्म की कहानी है। यह अधर्म पर धर्म की विजय गाथा, यह विजयदशमी पर्व की कहानी है।। नारी का मान है अनमोल, रावण के अहंकार का क्या है तोल। मान-मर्यादा से है जीवन, तभी तो मारा गया दुष्ट रावण।। यह बुराई पर अच्छाई की है जीत, यह अज्ञान पर ज्ञान की है जीत। श्री राम ने अहंकारी रावण को मारा, जैसे सत्य ने असत्य को मारा।। शौर्य-साहस का है गुंजन, युद्ध भूमि में होता है क्रूंदन। नाभि में भी अमृत छुप ना सका, शक्ति से दानव बच न सका।। है रघुवर के वंदन का दिवस, शौर्य-तिलक और शस्त्र पूजन का दिवस। निश्चल प्रीत और सेवा का है दिवस, विजयदशमी है, रावण दहन का दिवस।। परिचय : रतन खंगारोत निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
अजनबी तन्हाई
कविता

अजनबी तन्हाई

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कौन सा दर्द अपने सीने में छुपाए रखते हो? मुस्कुराहट के पीछे कौन सा गम अपने ह्रदय में दबाए रखते हो? कहते हो तुम लोगों से अक्सर कि मुझे कोई गम नहीं ? फिर इस तन्हाई के आलम में किस से गुफ्तगू का माहौल बनाए रखते हो? सुना है लोगों से कि तुम बहुत बातें करते हो पर आता है नाम मेरा तो क्यों अपने लबों पर खामोशी और आंखों में मुस्कुराहट रखते हो? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाया...
ददा के कदर कर लव
आंचलिक बोली, कविता

ददा के कदर कर लव

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी रचना) जइसे मैं हर थोरकुन रिसहा गोठ कहेंव मोर लइका फुस ले रिसागे, ओखर अक्कल के कोनो तिर घिसागे, दिन भर घर म आबे नइ करय, घर के चुरे भात साग खाबे नइ करय, दिन भर ऐती ओती छुछवावय, मोला देख मुंह अंइठ रिस देखावय, मैं अड़बड़ परेसान, का होही सोच सोच हलकान, के ए हर कब तक बइठ के खाही, अपन जिनगी चलाय बर कब कमाही, अभी के संगी संगवारी ल देखत हे, आघु चल के का होही नइ सरेखत हे, ओखर कइ झन संगी मन घर चलात हे, बिहान होत बुता म लग जात हे, रात दिन के पइसा उड़ाइ ओ दिन सटक गे, जब दु सौ रूपिया कमाय खातिर दिन भर के मेहनत म संहस अटक गे, एके दिन के बुता म कुछु समझ नइ आही, पइसा बचाय अउ उड़ाय के फरक चार महीना कमाय के बाद जान पाही, ददा के जिंयत ले सगरो सुख संसार हे, बाप के सीख ल मान लौ बेटा होव...
अपभ्रंश…
कविता

अपभ्रंश…

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रेम- अद्भुत भ्रम है हम दूर रहकर भी साथ रहते हैं और हम साथ रहते हुए भी अलग रहते हैं। तुम्हारे साथ रहकर भी मैंने अपने भीतर एक अज्ञात शून्य पाया। स्मृतियों की परतों में न जाने कितनी बार हमने संग-साथ रचा- पर समय की कलम ने हर अध्याय को अधूरा ही छोड़ा।। तुम मेरे समीप थे, फिर भी मेरे स्पर्श तक कभी नहीं पहुँचे।। मानो एक पारदर्शी दीवार हमारे मध्य खड़ी थी, जो किसी अक्षर की तरह देखी जाती रही, पढ़ी कभी नहीं। विचित्र है- जीवन की व्याख्या हमने मिलकर लिखी, पर अर्थ अलग- अलग निकाले। और मैं आज सोचता हूँ- क्या प्रेम सचमुच दो आत्माओं का एकाकार होना है? या फिर अलग-अलग आत्माओं का अपने-अपने एकांत को जी भरकर जीने का अवसर? क्योंकि मैंने जाना है, तुम्हारे साथ रहकर भी मैं अप...
जगत पालनहार माँ
कविता

जगत पालनहार माँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** शक्ति का स्वरूप हैं माँ हम सब की भक्ति का रूप हैं माँ मुक्ति का धाम हैं माँ हर जीव के जीवन का आधार है माँ !! माँ के नौ रूप निराले करुणा, ममता, मिले अपार दया-प्रेम से सुशोभित है रूप सभी रूप अद्भुत साकार!! विध्वंस किया सब असुरों का ज़न-ज़न का कल्याण किया धरा, गगन, नदियां, उपवन अद्भुत अनुपम उपहार दिया, निज स्वार्थ वश अंधे होकर हमने इनका तिरस्कार किया!! माता की सवारी है सिंह, मयूर, गर्दभ, गजराज, हंस और मृग गजराज, वृषभ और गौ माता सारे जीवो से सजा स्वरूप!! सारे जीवों में जब वास है इनका तब क्यों होता इनका दोहन, इनका भक्षण इनका शोषण?? कैसे हम भक्त कहलाते हैं, कैसी भक्ति, कैसा पूजन??? चहुँ ओर मचा है हाहाकार हर घर मे आया है काल हे माँ तुम ही हो पालनहार करो दया दृ...
इंतजार
कविता

इंतजार

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** अंधेरों को जैसे रोशनी का इंतजार है। नफरत को जैसे मोहब्बत का इंतजार है। बादलों को जैसे बरसने का इंतजार है। राहों को जैसे हमराही का इंतजार है। वृक्षों को जैसे खिलते हुए पत्तों का इंतजार है। सूखी भूमि को जैसे वर्षा का इंतजार है। सावन को जैसे बहारों का इंतजार है। वैसे मुझे तुम्हारा मेरे जीवन में इंतजार है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...
जान कर भी क्या कर लोगे
कविता

जान कर भी क्या कर लोगे

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हकीकत जान कर भी क्या कर लोगे, उन्हें ही गरियाओगे और उन्हीं को सेवा दोगे, यह वो तबका है जो गाली सुन सकता है, मालिक कभी भी धुन सकता है, ताज्जुब की बात यह है कि मार खाने वाला इस पर नहीं गुन सकता है, सेवा स्वीकार है सत्ता के बदले, उन्हें याद नहीं सब कुछ निहत्थों ने बदले, सेवा स्वीकार है दरी बिछाने के एवज, असंवैधानिक शब्दों से पुकारे जाने के एवज, सेवा स्वीकार है चंद सिक्कों के बदले सामाजिक दलाल कहलाना, अपमानों को सह-सह खुद को बहलाना, मगर अपने समाज को दे क्या रहे हो? उसी घिसी पिटी व्यवस्था की परिपाटी, अपनों से ऊंचा दिखने की चाह संग ख्याति? कुछ मेहनतकशों के बनाये रास्ते मिल जाने से दे सकते हो मूछों को ताव, बढ़ सकते हो आगे अपनों को देकर घाव, तुम्हारे जैसे चंद चमचे देंगे तुम्हें भाव, ...
दशकंधर
कविता

दशकंधर

डॉ. राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** प्रश्न खड़ा था दशकंधर पर, मान और अभिमान का। रक्ष संस्कृति शान से जिए, झुके न आत्म सम्मान का। आशुतोष का भक्त निराला, कालो के महाकाल का। शिव तांडव स्त्रोत सृजन , और वेदों के शृंगार का।। शीश चढ़ाया शिव शंभू को, और वरदान विजय का। रक्ष संस्कृति के मुक्ति को, श्री हरि से द्वेष का।। आत्मज्ञान द्वीज कुल भूषण, और रावण संहिता का। सागर की लहरों से खेले, युद्ध रण हर कौशल का।। अस्त्र शस्त्र से हुए सुसज्जित, वरदानों के भंडार का। दृढ़ संकल्पित हो जीवन में, संभव हर काम का।। गंगाधर को शीश उठाया, लै भुज स्कन्ध हाथों से। सिगिरिया के कनक महल, लै कुबेर के हाथों से।। तीन लोक चौदह भुवन, प्रबल प्रताप प्रकंपित से। एक छत्र अंबर सम हो, दशग्रीव के शासन से।। माना दंभी मैं रावण हूँ, सम्राज्य के विस्तार का। कौन नहीं चा...
अनमोल भाव
कविता

अनमोल भाव

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** कवि की कविता को जाने, कवि की भावना पहचाने, चिन्तन की गहराई जाने, मनन की एक सोच पहचाने। आकाश सी ऊँचाई जाने, पंछी सी उडा़न है उसकी। एकाग्रता का ध्यान है उसमे, ज्ञान और विज्ञान है उसमें, धर्म और समाज का बोध है उसमे, ज्वालामुखी सा विस्फोट है उसमें। नदी सा बहाव है उसमें, चक्रव्यू सी रचना है उसमें। तोलमोल के तराजू मे तोल, आग मै तपकर सोना बनता अनमोल। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट...
द्वेष
कविता

द्वेष

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** देवता बनकर हमारे आँगनों में द्वेष बैठा। ले विकारों की कलाएँ गृद्ध सा अनिमेष बैठा।। नित्य होती अर्चनाएँ आरती के थाल सजते, दीप जलते पुष्प चढ़ते किन्तु दोष विशेष बैठा।। द्वेष के कारण समस्या राग की ज्यादा बड़ी है। चाहते हैं शान्ति लेकिन भ्रान्ति कुछ ऐसी जड़ी है।। चैन से सोने न देती साथ बेचैनी पड़ी है। भाव मय थी भावना दुर्भावना लेकर खड़ी है।। अट्टहासों की जगह पर हैं अधर पर रुष्ट ताले। छीन कर मुस्कान तक को कर दिया मद के हवाले।। क्लेश थमता ही नहीं है शान्ति के हैं आज लाले। शत्रुता तक आ गए हैं हो रहे सम्बन्ध काले।। लोग कुण्ठाग्रस्त होकर मन मसोसे चल रहे हैं। लग रहे मौनी तपस्वी किन्तु सबको छल रहे हैं।। हम दुखी हैं वह सुखी है इस जलन में जल रहे हैं। इस जलन की डाह पर हम दूसरों को खल रहे हैं।...
प्रणाम है मां भारती
कविता

प्रणाम है मां भारती

डॉ. रीना सिंह गहरवार रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** नव पुष्पित, नव पल्लवित नवज्योति पुंज, जगतसुखदायनी पूजित रघुराज कर, तम विनाशिनी पूजित अखंड दीप, जौ, पुष्प से शक्ति संचारक नवनिधि दायिनी कर प्रयोग संपूर्ण शक्ति का हो तम को विनाशती दसशीष धारी को धूल-धूसरित धारती। कर क्षत-विक्षत दसानन मारती हे जगत देवी प्रणाम है मां भारती। परिचय :- डॉ. रीना सिंह पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर, रीवा (मध्य प्रदेश) शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रक...
गाँधी जी
कविता

गाँधी जी

प्रीतम कुमार साहू 'गुरुजी' लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** सत्य अहिंसा के पुजारी हिंसा के वो खिलाफ थे अपनी बात मनवाने का उनका अलग अंदाज थे..!! वकालत की नौकरी छोड़ विदेश से वतन को आए गुलामी की जंजीर तोड़ने संघर्ष का मार्ग अपनाए..!! तन मन धन,समर्पण कर, जीवन अपना,अर्पण कर.. नमक कानून तोड़ दिए, गाँधी जी नमक बनाकर…!! विदेशी वस्त्र को जलाकर, खादी वस्त्र को अपनाकर. अंग्रेजों को विवश कर दिया, आमरण अनशन चलाकर.!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू, गुरुजी (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, रा...
खुद से एक मुलाकात  करो
कविता

खुद से एक मुलाकात करो

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** सफर तो बस ऐसे ही चलते रहता है हवाओं का रुख भी बदलते रहता है कभी अपनों की अपनों से बात करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो खुद को भूले है केवल जगत के लिए जी रहे हैं केवल अब अपनों के लिए कभी खुद की भी बयाने हालत करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो वक्त कट न जाए केवल लाचारी में जैसे कट ही रहा है दुनियादारी में कभी खुद की बयाने जज्बात करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो ख्वाब तोड़े हैं हमने स्वयं के कितने जुल्म सहे है जहां के हमने कितने टूटे ख्वाबों की भी तो ख्यालात करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो आज मे ही जीवन को खुशहाल करो भविष्य खातिर,आज ना बदहाल करो बदलते वक्त से वक्त की भी बात करो कभी खुद से भी एक मुलाकात करो परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पिता : श्री लीलूदास मानिकपुरी जन्म : २५/११/१९७८ निवासी : आमाचा...
मैं और मेरा “मैं”
कविता

मैं और मेरा “मैं”

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** मैं और सामने अडिग खड़ी सुदृढ़ लाल किले की सी तनी प्राचीर मेरी "मैं" की बैठे हैं इस पर अनेकों उल्लू भांति भांति के रूप धरे क्रोध... मान... माया... लोभ... विकसित हैं गहरे काम तंतु सोने पे सुहागा पालती है इन सब को शक्तिमान ये "मैं".... अनचाहे इन उल्लूओं की जमी है गिद्ध दृष्टि मेरी इस " मैं " पर उलझ कर भ्रमित करती हवाओं से मन उड़ने लगता है पवन वेग से चढ कर लिप्सा के हवाई घोड़े पर बढती जाती है असीमित कामनाएँ उद्वेग उठता महत्वाकांक्षाओं का मन गिरने लगता है वासना के अंधकूप में और सच्चाई घुल बह गई नयनों के काजल में अच्छाई दब गई दर्प की झीनी चादर में मति भ्रष्ट हो गई विषय विकार के दलदल में गुम गया मन भौतिकता की चकाचौंध में फिर हो गया लौटना नामुमकिन वापस मन का कल्याण कहाँ पथभ्...
किसने कब सोचा था
कविता

किसने कब सोचा था

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था। घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था। कितनी शिद्दत चाहत से नव-पीढ़ी आती है सड़कों पर। करते अरमान सुरक्षित भविष्य भी अति सुंदर चलकर। घर शाला से सत्ता शासन सब नियम से लेता लोहा था। सुनने सीखने मिली उमर में जीवन से मानो सौदा था। फजीहत राह घटित आंसू हरेक छोटे बड़े ने पोंछा था। नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था। घर से लेकर शाला तक सड़क नियम बताना लोचा था। ये भारत देश यहां बाएं से ही चलना प्रथम जरूरी हो। उल्टे चलते बूढों बच्चों बड़ों की लत क्यों मजबूरी हो। खुद की जान मिटेगी और बेकसूर अकारण खोना था। राष्ट्र विकास की राह चले मगर गलतियों का रोना था। वाहन चालन वक्त भटके प्रसंग में दिमाग ही ढोना था। नियमों की अनदेखी से वज्रपात किसने कब सोचा था। घर से लेकर शाल...
चिड़िया
कविता

चिड़िया

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** उड़ती चिड़िया आसमान में दोनों पंख फैलाए। छोटी सी अपनी चोंच से दाना-दाना चुग खाएं। अपने पंख फैलाए उड़ती पूर्व से पश्चिम उत्तर से दक्षिण हर कोने पर अपना हक़ जमाती। डाल-डाल पर पात-पात पर बैठ अपना मधुर गीत सबको सुनाती। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी क...
आंख मूंद न अपना कहो
कविता

आंख मूंद न अपना कहो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कौन हितैषी, दुश्मन कौन ये हम को पहचानना होगा, किसी की झूठी बातों को आंख मूंद नहीं मानना होगा, बनके आएंगे बहुत हितैषी, मंशा पाले वो कैसी कैसी, हो सकता है वो बड़ा दलाल, कहेंगे खुद को बहुजन लाल, चढ़ा लोगे जब उसे नजर में, निकल पड़ेगा सौदे की सफर में, अच्छे से पहचानो उसको, मान रहे हो अपना जिसको, जो करता है संग रह अय्यारी, पड़ेगा समाज पर वो तो भारी, सरल राह यूं ही न मिलेंगे, छुप रिपुओं से गले मिलेंगे, बढ़ जाता जब प्रभाव व दौलत, फिर दुश्मन से मिलेगा उसी बदौलत, महापुरुषों का पहले लेगा नाम, गड्ढे खोदने खातिर समाज में करेगा वो हर काम तमाम, एन वक्त पर धोखा देकर बन सकता है वो दरीबाज, बहुतों में हम देख चुके हैं दलाली वाला ये अंदाज, तर्क करो व सतर्क रहो, बारीकी से पहचानो सबको आंख मूंद न अपना कहो। ...