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कविता

मैं जब भी जाऊंगी
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मैं जब भी जाऊंगी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जब भी जाऊंगी, कोई प्रश्न अधूरा नहीं छोड़ूगीं, पूर्ण विराम लगा कर जाऊँगी! अर्धविराम रिश्तों को जीवित नहीं रहने देता है, जीवन मे समर्पण होना चाहिए! प्रेम जीवन का आदि और अंत दोनों होता है! प्रेम में अधूरेपन की कोई जगह नहीं होती उसमे पूर्ण समर्पण होना चाहिए, अपने आराध्य के प्रति संपूर्ण समर्पण! दिल मे कोई दुविधा नहीं, मन मे कोई प्रश्न नहीं, प्रेम स्पष्ट निर्णय होना चाहिए! शांत भाव से भीतर ही मिट जाना, फिर शब्दों मे कोई ठहराव नहीं होता! कोई अपूर्णता नहीं छोड़कर जाऊँगी, प्रेम की परिभाषा पूर्ण करके विदा होऊँगी!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवा...
तर्पण की हकीकत
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तर्पण की हकीकत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मात-पिता प्यासे मरे, अब कर रहे हैं तर्पण। यह तो ढोंग ही दिखता है, दिखावा है अर्पण।। जब जीवित थे मात-पिता तब ही सब ज़रूरत थी। आज तो यह सारी दिखावे से भरी हुई वसीयत है।। जीवित की सेवा का ही तो होता सच्चा मोल है। बाद में दिखती कर्मों में लम्बी, गहरी पोल है।। अब मात-पिता जल कैसे पी सकेंगे, सोचो। अब मात-पिता कैसे भोजन कर सकेंगे, बाल नोचो।। अब तो श्राद्ध करना पूरी तरह से मिथ्या, बेमानी है। यह तो पाखंड भरी हुई एक निरर्थक कहानी है।। सेवा, सु‌श्रूषा जीवित अवस्था की ही बस सच्ची है। नहीं तो सब कुछ बेकार, झूठी और कच्ची है।। जीवन में तो मात-पिता होते हैं देव समान। इसलिए उनके जीवित रहते में ही करो उनकी सेवा-सम्मान।। मात-पिता प्यासे मरे, अब कर रहे तर्पण। ज़रा देखो संतानो तुम आज तो सच का दर्पण।। परिचय :- प्...
सवाल
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सवाल

माधवी तारे लंदन ******************** आज जागृत मंच ने किया खड़ा एक सत् सवाल साहित्य जगत में क्या जल सकेगी कृत्रिम बुद्धिमत्ता की मशाल स्मरण रहे इसे मत भूलना जहां सच्चाई ही खपाना नहीं होता इतना आसान वहां कैसे चमक सकेगी कृत्रिम बुद्धिमत्ता की शान भूल गए क्या गीत पुराना खुशबू आ नहीं सकती है कागज के फूलों से सिखा गए हैं राजेश खन्ना अद्भुतता से भरा रहता है विज्ञान क्षेत्र का सदा खजाना फिर भी असंभव सा होता है दैवी आपदाएं रोकना साहित्य जगत के प्रांगण में अनिवार्य है मानव संवेदना कैसे बाधित कर सकती उसे फिर कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भावना परिचय :-  माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) अध्यक्ष : अंतर्राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (लन्दन शाखा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
मिथ्या गर्व
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मिथ्या गर्व

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सरिता के सगंमो से सिखो मिलजुल कर आगे बढना सागर की उतुग उठती लहरो से सिखो उचे उठना। निर्झर के जल से सिखो नम्रता से नीचे झुकना आमर् वृक्ष से सिखो कोई प्रहार करे, पत्थर मारे फिर भी फल देना, फल गिराना। झुक कर पथिक को छाया देती वृक्ष की टहनी से कुछ सिखो गुनगुनाते भवंरे, पाखी से सिखो धैर्य धारण करना ह। पर्वत पर खडे वृक्षो से सिखो जल मे अपने प्रतिबिम्ब का निरन्तर अन्वेषण करना प्रकृति यह सब मौन मे करती है मानव के लिये और मानव हाँ मानव ऊंची आवाज कर कहता है मैने दान दिया, मैने दान किया यह मिथ्या गर्व है मानव का मिथ्या गर्व है मानव का। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ वि...
मेरे अनकहे अल्फ़ाज़
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मेरे अनकहे अल्फ़ाज़

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** एक ख़त जो मैंने कभी नहीं लिखा, पर दिल ने उसे हर रोज़ पढ़ा। हर पन्ना मेरे दिल की धड़कनों का आईना था, हर लफ़्ज़ मेरी अधूरी चाहत की गूँज। कितनी बार मैंने उसे अपने दिल में संभाला, कितनी बार अपनी साँसों में छुपा लिया। हर मुस्कान तुम्हारे लिए थी, हर आँसू मेरे भीतर दबा रहा। कभी सपनों में तुम्हें पाया, कभी यादों में तुम्हें खोया। मेरे शब्द अधूरे, मेरे ख्वाब अधूरे, पर इन खामोशियों में मेरा प्यार पूरा था। गुज़रती हवाओं में तुम्हारी खुशबू थी, गुज़रते पलों में तुम्हारी मुस्कान थी। फिर भी मैं लिख न पाया, क्योंकि डर था- शायद तुम नहीं समझ पाओ। कितनी रातें जागकर तुम्हें सोचता रहा, कितनी सुबहें तुम्हारे बिना टूटी। मेरे हाथों में अधूरे खत, मेरे दिल में अधूरी बातें, मेरी आत्मा में अधूरा प्यार। कितन...
हिंदी से लगाव
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हिंदी से लगाव

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मैं रोज हिंदी में बोलता हूँ रोज हिंदी के नए शब्द ही लिखता हूँ रोज में हिंदी ही रुचि से पढ़ता हूँ अनुवाद सिर्फ हिंदी में करता हूँ गद्य पद्य हिंदी में रोज लिखता हूँ हिंदी भाषा का ज्ञान लिखने पढ़ने में रोज व्यवहारित करता हूँ लेखकों कवियों रचनाकारो की रोज नवीन पुरानी अनमोल पुस्तकें सुबह से शाम फुर्सत में रोज संग्रह करता हूँ फुर्सत में रुचिकर रचित ज्ञान अन्तर्मन से पढ़ लेता हूँ रोज नए नए रोचक ज्ञान की खुराक पढ़कर लिखकर अनमोल ज्ञान से तृप्त हो लेता हूँ हिंदी की पुस्तकों का भरपूर खजाना उनका एक-एक पन्ना मन मस्तिष्क में भर लेता हूँ हिंदी की पुस्तकों से रोज असीमित ज्ञान के भंडार को रोज प्रेम से भर लेता हूँ यही है पूंजी सँजोकर रोज सुरक्षित रखता हूँ हिंदी की गहराई में खुशियों को ही नहीं सबके बीच हिंदी ज...
नवरात्रि कलश स्थापना
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नवरात्रि कलश स्थापना

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सबसे पहले साफ स्थान से मिट्टी लायें, अब गंगाजल छिड़कर उसे पवित्र बनायें। मिट्टी को चौड़े मुंह वाले बर्तन में रखें, तत्पश्चात उसमें जौ या सप्तधान्य बोएं। उसके ऊपर कलश में जल भरकर रखें, कलश के ऊपरी भाग में कलावा बांधें। कलश जल में लौंग, हल्दी व सुपारी डालें, दूर्वा और रुपए का सिक्का डालना न भूलें। कलश के ऊपर आम या अशोक के पल्लव को रखें, अब एक नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर रखें। नारियल को कलश के ऊपर श्रद्धाभाव से रखें, इस पर माता की चुन्नी और कलावा जरूर बांधे। मातारानी की कृपा से कलश स्थापना सफलतापूर्वक हो गई, फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पूजा की बारी आ गई। नौ दिनों तक मां दुर्गा से संबंधित मंत्रों का जाप करना है, श्रध्दा-भक्ति के साथ उनकी विधि-विधान से पूजा करना है।...
विजयादशमी
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विजयादशमी

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मेरे लंका रूपी मन के, विषय विकारी रावण को। आप जीतने आना प्रभु, आश्विन शुक्ल दशमी को। अन्तर्मन में दीप जला, सत्य विजयभव कहने को। आना सद् चरित्र करने, मैं आहुत करूं दशहरे को। असुरों सा संहार करें, काम,क्रोध,मद, लोभ को। वंचक कपटी मन से, प्रभु दूर करें मनोरोग को। धर्म पथिक रहूं सदा, नमन सीता के सम्मान को। कलयुग का केवट करता, नित वंदन श्रीराम को। असत्य पर सत्य की जीत, दोहराना इतिहास को। कलयुग कर दो त्रेता को, अवध मेरे हिंदुस्तान को। हर घर याद दिला दो, इंसा भूल गए भगवान को। मन मंदिर में मानव देखो, क्यूं पूजता लंकेश को। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
ईश्वर स्वयं सृष्टि संचालक
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ईश्वर स्वयं सृष्टि संचालक

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जो सर्वज्ञ सर्वव्यापी है, स्वयं सृष्टि निर्माता। पालक संहारक दुनिया का, ईश्वर है कहलाता। दिव्य अलौकिक शक्तिपुंज जो, जग का पालन करता। ईश्वर स्वयं सृष्टि संचालक, सुख करता दुख हरता। करते हैं उद्धार आप ही, आप कर्म फल दाता। खेबनहार आप भक्तों के, सब जग शीश झुकाता। तारक ज्ञान प्रदाता ईश्वर, सबका दुख हैं हरते। सकल जगत के दुख विदीर्ण कर, सुखमय जीवन करते। ईश्वर अंश जीव अविनाशी, तुलसीदास बताते। सभी जीव निज देह त्याग कर, धाम उन्हीं के जाते। अपनी सृष्टि देखकर ईश्वर, मन ही मन मुस्काते। कर्मों में रत देख मनुज पर, कृपा दृष्टि बरसाते। निर्मल मन वाले मानव से, प्रभु प्रसीद रहते हैं। स्वयं जगत के ईश्वर ऐसा, श्री मुख से कहते हैं। विनती परमपिता ईश्वर से, चरण शरण पा जाऊँ। शुभाशीष पाकर ईश्वर ...
किस कीमत पर
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किस कीमत पर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** उसने कहा कि देखो अवाम को उनसे कितना प्यार है, जरा उनकी कड़ी मेहनत तो देखो चारों तरफ बहार ही बहार है, दरअसल ठाठ था राजसी राजाओं का, जबकि जोर था हर ओर फिजाओं का, खाने को तरसते लोग, औरों पर बरसते लोग, गुजर रही थी जिंदगी दान के दाने पर, पहुंच जा रहे कई लोग मौत के मुहाने पर, छा गई है भुखमरी की घटा घनघोर, बढ़ गए हैं गरीब कई कई करोड़, बाहर ढिंढोरची पीट रहा था ढिंढोरा कर दी है हमने गरीबी दूर, नहीं नजर आएगा कोई भूखा मजबूर, कोई पास आने को तैयार नहीं, परिस्थितियां उन्हें स्वीकार नहीं, पर है हल्ला सब तरफ कि जोर शोर से बज रहा है डंका, मत रखो मन में कोई सुबहा शंका, धड़ल्ले से चल रहा रोज स्तुति गान, बांट रहे देशभक्ति पर रोज रोज ज्ञान, नजरों को बांध दिखा रहा जादू जादूगर, बो रहे हो जहर बताओ क...
स्वछंद पंछी की तरह
कविता

स्वछंद पंछी की तरह

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* कितनी उन्मुक्तता है स्वतंत्र विचरण करते हैं। सम्पूर्ण धरा और गगन के बीच ना आने का व्यय ना ही वाहन शुल्क देना है आय व्यय का ब्यौरा पर क्या इनके ह्रदय में शांति की अनुभूति है ? संभवत: नहीं क्योंकि शांति होती तो इधर उधर विचरण करने की आवश्यकता नहीं होती। तो फिर इस स्वच्छंदता रूपी स्वतन्त्रता का परिणाम क्या है ? फिर भी सभी उन्मुक्त सभी स्वछंद रहने को आतुर रहते हैं पंछी की तरह परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४" से सम्मानित घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
दुर्गा दाई
आंचलिक बोली, कविता

दुर्गा दाई

प्रीतम कुमार साहू 'गुरुजी' लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** सगा बरोबर तँय ह दाई आथस चइत कुंवार म चउँक पुरा के दियना जलाएँव गली खोर दुवार म !! नव दिन बर तँय आथस दाई करके बघवा सवारी संझा बिहिनिया तोर सेवा गावंय जम्मों नर-नारी !! कुंवार महीना बड़ मन भावन पाख़ हवय अंजोरी जग-मग जग-मग जोत जलत हे दाई तोर दुवारी !! नाक म सुग्घर नथली सोहे अउ पऊरी पैजनिया माथ म चमकत तोर टिकली, कनिहा म करधनिया !! तँय दुर्गा तँय काली कहावस तही हर खप्पर धारी दानव मन के नास करइया जय हो दुर्गा महतारी !! हाथ जोर के बिनती करत हँव सुन ले मोर महमाई भगतन मन के भाग जगादेय झोली ल भर दे दाई !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू, गुरुजी (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
अलविदा ना कहना
कविता

अलविदा ना कहना

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** सारी दुनिया है फ़िदा, इस आँख में आँसू मेरे है। मत कहो तुम अलविदा, इस आँख में आँसू मेरे हैं॥ काम तेरा नेक था और, नाम तेरा नेक था। सच कहूँ तो लाख में तू ही, अनूठा एक था॥ यह जगत तेरा दीवाना, प्यार तुमसे कर रहा। ज़िंदगी भर साथ रह, इकरार तुझसे कर रहा॥ आपके जाने से सच में, कोई मेरे साथ ना। वो चाय चुस्की न होगी, नाश्ते की बात ना॥ प्रेम दिल से है मेरा, इस प्रेम को झुक जाइए। कह रहे हैं हम आपसे, श्री मान जी रूक जाइए॥ दिल मेरा ख़ुशहाल होगा, हर खुशी आ जाएगी। ज्ञान की सुंदर महक, दिल में हमारे आयेगी॥ मत होइए सबसे विदा, इस आँख में आँसू मेरे। मत कहो तुम अलविदा, इस आँख में आँसू मेरे॥ परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। ...
प्रारब्ध, पुरूषार्थ, भाग्य
कविता

प्रारब्ध, पुरूषार्थ, भाग्य

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** मन ने मन से पूछा कौन पैदा होता है अपने साथ कामयाबी ले कर प्रत्युत्तर भी दिया मन ने सही है ... कोई पैदा नहीं होता मगर ... पैदा होता है वो अपने जन्म-जन्मांतरों के शुभ-अशुभ कर्मों का प्रारब्ध लेकर ... मन ने फिर कहा क्यों उलझाते हो शब्दों के मकड़जाल में अनेकों को देखा है शून्य है परिश्रम के नाम पर मगर ... पाते हैं ... सुख-सुविधा अपरंपार अकूत धन भंडार तब ... मन ने समझाया अपने ही मन को यही कहलाता है पूर्व जन्म के शुभ कर्मों का खेल कहा जाता है प्रारब्ध ... मन अशांत व्याप्त थी जटिल कुंठा घूम रहे अनेकों प्रश्न फिर मनु क्यों करे पुरूषार्थ तुरंत उत्तर आया आवश्यक है पुरूषार्थ अन्यथा क्षीण हो जाता है प्रारब्ध सात्विक हो पुरूषार्थ तो सोने पर सुहागा प्रारब्ध गुणित हो जाता है और यदि...
मेरी बूढ़ी अम्माँ
कविता

मेरी बूढ़ी अम्माँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सुघड़ता और संस्कारों की बुलन्द इमारत हैं बूढ़ी अम्मा, भोजन, पापड़ और अचार बनाती, बिना नाप जोख के अद्भुत स्वाद, दिलाती। जो घर के सारे काम, एक साथ करते हुए, सारे प्रबंधन को मात देती उनके हर काम में सुघड़ता दिखती! फिर भी नहीं कही गई कोई कहानी कोई किस्से उनके लिए, जिसने अपने हाथों के स्वाद से, अपने व्यवहार से, पीढ़ी-दर-पीढ़ी को तृप्त किया और सँवारा है ! बल्कि उन बूढ़ी होती काया पर आधुनिक न होने का प्रश्न चिन्ह लगाया है !! सभी को खुश रखना, सदा सबका आभार जताते रहने में सारी उम्र बिता दी ! समय ऐसा भी आया नहीं कोई और अम्मा, उन बूढ़ी अम्मा के पद चिन्हों को ग्रहण करना चाहती, नहीं आत्मसात करना चाहती उनके सद्गुण भरे आचरण को, क्यूँ की इनकी योग्यता की कोई डिग्री, कोई प्रमाणपत्र नही...
हिंदी की महिमा
कविता

हिंदी की महिमा

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** हिंदी आन है, हिंदी मान है, हिंदी, हिंद की पहचान है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी शब्द है, हिंदी प्रबंध है, हिंदी वर्ण की व्याख्या है। यह देवनागरी की जान है।। हिंदी प्रीत है, मनमीत है , हिंदी सात सुरों का संगीत है, हिंदी युगों-युगों का गीत है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी धरती है, हिंदी आकाश है, हिंदी चांद है, हिंदी चकोर है, हिंदी सूरज का अखंड प्रकाश है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी गंगा है, हिंदी यमुना है, हिंदी नर्मदा की जलधार है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी प्राण है, हिंदी त्राण है, हिंदी हर जन की पालनहार है, हिंदी रोम-रोम से होता आत्मसार है, यह देवनागरी की जान है।। विष्णु है, हिंदी राम है, हिंदी कृष्ण का भागवत ज्ञान है, यह देवनागरी की जान है।। हिंदी ओम है, हिंदी ओमकार है, ...
खिसियानी बिल्ली
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खिसियानी बिल्ली

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कर नहीं पा रहा कुछ भी छोटा है तो छोटा ही सोचे, हंस-हंस कर लोग बोले खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। बहुत उम्मीद पाल, जल्द बदल सकता है हाल सोच नेताजी ने चुनाव लड़ा, होकर निर्दलीय खड़ा, घोषणाएं बड़ा-बड़ा, सेवा की आस में चुनाव में पड़ा, पर ये क्या किस्मत निकला सड़ा, जमानत जप्त करा शर्म से गड़ा, सात पीढ़ी के लिए तो थे सोचे, पर खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। बड़े साहब से थी मधुर संबंध की चाह, शायद निकल आये तरक्की की राह, चापलूसी में गुजर रही जिंदगी पर किस्मत निकला श्याह, साहब दोस्ती न सका निबाह, असमंजस है अब किस तरीके से साहब का मोर पंख खोंचे, खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** बादलों से आलिंगन करते पर्वतों की श्रृंखला है अपार। ऊंचे ऊंचे पर्वतो के मध्य श्वेत झरनों की धार। ऊँचे पर्वतो से यात्रा करके मिलते हैं धरती से आज। हर पल मे बरसते देखो एक पल मै ओझल हो जाते, अपने आंचल में है समेटे बादलो का बिखर रहा है जाल। हरियाली अपने यौवन पर फल-फूल रहे हैं झाड़। कभी गरजते कभी बरसते कभी मौन हो जाते आप। देख नजारा प्रकृति का टकटकी लगाये अखियां आज। देखो दृश्य ओझल ना हो जाये स्वर्ग उतरा धरती पर आज। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्...
कल नही आज
कविता

कल नही आज

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कल नही आज आज नही अभी अभी नही इसी क्षण भावो के सागर की लहरे कूल से टकराती स्याही बन लेखनी मे उतरती कागज पर कुछ लिखती लेखनी यही है हाँ यही है कवि की कविता की कहानी। सूरज की किरणो से आगे कवि हेदय भाव भावो के बवन्ङर को नव रसो का स्पर्श कविता को श्रृंगारित करता गाता जाता कवि सरिता के कूल किनारे वीर गान आनन्द गान गाता जाता अपनी मस्ती मे कुछ हंसाता कुछ रूलाता जाता। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवा...
सु आस है हिंदी
कविता

सु आस है हिंदी

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** युग-युग से स्वर्णिम भारत का इतिहास है हिंदी, भारत मां के कण-कण में एक प्यास है हिंदी। हर घर के जन-जन की सु आस है हिंदी।। अखिल विश्व में मां भारती की शान है हिंदी, शहीदों ने गाया वंदे मातरम गान ही हिंदी। जन-जन के अंतर्मन का आभास है हिंदी....हर घर । रिश्तों को निभाने का सच्चा मार्ग है हिंदी, मनोभाव दिखाने का अच्छा मार्ग है हिंदी। कवियों के अंतर्मन मन का आभास है हिंदी...हर घर सभी भाषाओं में उत्कृष्ट लिए भाव है हिंदी, हमारी संस्कृति के सिर पे गहरी छांव है हिंदी। भारत के संविधान का विश्वास है हिंदी....हर घर गीतों, छंदों और कविता का गान है हिंदी, हिंदी के सिर पे बिंदी का सम्मान है हिंदी। गीतों में सार "श्याम" के अब खास है हिंदी, हर घर के जन-जन की सु आस है हिंदी।। परिचय :- राधेश्याम गोयल "श्याम" निवासी - ...
मातृभाषा का महोत्सव
कविता

मातृभाषा का महोत्सव

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** हिंदी है दिल की जुबां, हिंदी है जन-गान। भारत माँ की वाणी है, इसका ऊँचा मान।। माटी की खुशबू लिए, बोले हर इंसान। गंगा-जमुनी संस्कृति की, हिंदी पहचान।। तुलसी की चौपाइयों में, सूर की रसधार। कबिरा के दोहों में बसी, जीवन की पुकार।। मीरा के पद झंकारित हों, भक्तिरस का गीत। भारतेंदु का जागरण हो, हिंदी का संगीत।। प्रेमचंद की कहानियों ने, जग में दिया प्रकाश। साहित्य के हर पृष्ठ पे, हिंदी का इतिहास।। महादेवी के भावों में, कोमलता का गीत। दिनकर की गर्जना में है, ओजस्वी संगीत।। रसखान की राधा बानी, रही प्रेम की धुन। हिंदी का उत्सव यही, हिंदी का अभिमान। संविधान की गोद में, राजभाषा का मान। विश्वपटल पर गूंजती, भारत की पहचान।। आज तकनीकी युग में भी, हिंदी लहराए। मोबाइल की स्क्रीन पर भी, हिंदी ही छाए।। कीबोर्ड स...
उड़ान
कविता

उड़ान

डॉ. रागिनी सिंह परिहार रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** सपनों में अगर चाहिए उड़ान तो सुनो गुरु ज्ञान के बिना संभव नहीं सुनो बचपन में मां ने मुझको चलना सिखाया उंगली पकड़ के मेरी सही रास्ता दिखाया जब थोड़ी सी बड़ी हुई विद्यालय पहुंचाया गुरुओं के बीच मुझको नादान बताया फिर गुरुओं ने हमारी हमें मंजिल है दिखाया के से कबूतर ज्ञ से ज्ञानी मुझको सिखाया थोड़ी और बड़ी हुई तो विषय वस्तु बट गए हिंदी,गणित,विज्ञान का मतलब समझ गए पर आज तक अंग्रेजी समझ आई ना हमें A फॉर एप्पल Z फॉर ज़ेबरा समझ आया ना हमें प्रथम गुरु मेरी मां बनी जिसने दिया है जन्म उस जन्म को साकार बनाया है गुरुजन अबोध है अज्ञान है अंधकार में है हम आपके सानिध्य से चीनू बाई, कल्पना चावला बने हम बस आरजू यही कि देश में हर नारी का हो नारित्व हर घर में लक्ष्मीबाई हो हर घर में विवेकानंद सपनों म...
दिल हूं हिंदुस्तान की
कविता

दिल हूं हिंदुस्तान की

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** सरल, सहज, सुमधुर वचन संस्कृत से पाया अपना जीवन सकल जगत् को मोह रही है अंक मेरे अपार शब्द शक्ति सहेज रही बोलियों को बनकर मातृशक्ति नवीन तकनीक के लगाकरपंख मैं तो छूने आकाश चली हिंदी कहते मुझको दिल हूं हिंदुस्तान की राजभाषा बन हिन्द की राष्ट्रभाषा बनने की तमन्ना मैं कर रही परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@g...
आधुनिक व्यक्तित्व
कविता

आधुनिक व्यक्तित्व

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** बहुत कुछ लिखते हैं लिखने वाले मगर लिख नहीं पाते अपने गुनाहों को कभी। बहुत कुछ कहते हैं कहने वाले मगर कह नहीं पाते अपने जुर्मो को कभी। बहुत कुछ सुनाते हैं सुनाने वाले मगर सुना नहीं पाते अपनी कमियों को कभी। बहुत कुछ दिखाते है दिखाने वाले मगर दिखा नहीं पाते दबे हुए जज्बातों को कभी। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
हिंदी
कविता

हिंदी

शशि चन्दन "निर्झर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत मां के माथे की बिंदिया है हिंदी। कलकल करती पावन सरिता है हिंदी। सूर की अमृत वाणी, कबीर की साखी है हिंदी, तुलसी की माला मीरा के पदों की झांकी है हिंदी।। उर्दू की प्रिय बहना, संस्कृत की बिटिया है हिंदी, वेद पुराणों में वर्णित गंगाजल की लुटिया है हिंदी।। हम सबका अभिमान, खुसरो ने गढ़ी है हिन्दी, काली ने मढ़ा जिससे वो, कौस्तुभ मणि है हिंदी।। सरल,सहज,सुरमयी, धवल वीणावादनि शारदा है हिंदी, मनका मनका रची अक्षय, ज्ञान की वर्णमाला है हिंदी।। धरा से नीलाभ तक, स्वच्छंद विचरती पवन है हिंदी , मधुकर सा सुशोभित, पुष्पित हराभरा उपवन है हिंदी।। चंदन सी महकती अमिट, राजभाषा, राष्ट्रभाषा है हिंदी, कि "शशि" सभी भाषाओं की एकमात्र परिभाषा है हिंदी।। परिचय :- इंदौर (मध्य प्रदेश) की निवासी अपने शब्दों की निर्झर बरखा...