एक बार फ़िर से पापा के लिए
सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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एक बार फ़िर से पापा के लिए
नन्हीं गुड़िया बन जाऊँ
चाह मुझे फ़िर एक बार बन जाऊँ
सात साल की वह नन्हीं गुड़िया
घर आँगन में खूब फिरू नाचती
पैरों में पायल रुनझुन छनकाऊँ
छोटा लाल बस्ता बगल दबाए
सखियों संग पढने को जाऊँ
सुनाऊँ पहाड़े मटक मटक कर
बाल गीत भी सारे मैं गुनगुनाऊँ
सावन में झूला पीपल पर डालूँ
संजा गीत मौज में गाकर सुनाऊँ
राखी भैया के हाथ में बाँधूँ मैं
गुलाबी चूनर ओढ़कर इतराऊँ मैं
मम्मा जैसी मीठी लोरी गाकर
छोटे भैया को प्यार से सुलाऊँ मैं
पापा थके जब आते ऑफिस से
कड़क गरम चाय पिलाऊँ मैं
गुड्डा गुड्डी खेलते सीख ही जाऊँ
गोल गोल रोटी बनाना माँ जैसी
घर बाहर के सारे काम मैं करके
राजा बेटी बनकर तारीफ़ पाऊँ
कुश्ती कराटे लड़कों वाले मैं सीखूँ
बाइक पापा की भी चला पाऊँ मैं
माँ जब भी चिंता में हो गमगीन
भैया को ...