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कविता

मेरा है सम्मान तिरंगा
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मेरा है सम्मान तिरंगा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** आन लिए फहराता नित ही, मेरा है सम्मान तिरंगा। शान सजा शुभ-मंगल लाता, सच में नवल विहान तिरंगा।। बलिदानों ने रंग दिखाए, तब हमने आज़ादी पाई। जला-जलाकर वस्त्र विदेशी, सबके तन पर खादी आई। सम्प्रभुता को धारण करता, मेरा है अरमान तिरंगा। शान सजा शुभ-मंगल लाता, सच में नवल विहान तिरंगा।। शौर्य सिखाता रंग केसरी, श्वेत सादगी की बातें। हरा हमें देता हरियाली, वैभव की नित सौगातें।। चक्र भारती की जय करता, हरदम है गुणगान तिरंगा।। शान सजा शुभ-मंगल लाता, सच में नवल विहान तिरंगा।। जय जवान का नारा लब पर, जय किसान का गान हो। लोकतंत्र का मान रहे नित, सद्भावों की आन हो।। तीन रंग की शोभा न्यारी, जाने सकल जहान तिरंगा। शान सजा शुभ-मंगल लाता, सच में नवल विहान तिरंगा।। सीमाओं की शान बढ़ाता, जन-गण-मन की आन निभाता...
मैं भारत कहलाता हूँ
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मैं भारत कहलाता हूँ

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मैं धर्म गुरु मैं ज्ञान गुरु मैं आध्यात्म का भी गुरु कहलाता हूँ मैं भारत कहलाता हूँ। मै सूत्रधार मैं मार्गदर्शक मैं नीति न्याय का ध्वजा फहराता हूँ मैं भारत कहलाता हूँ। मैं वेद गीता मैं ही भागवत मैं रामायण, पुराण ग्रंथों का सिरजनहारा हूँ मैं ही भारत कहलाता हूँ। मैं समृद्धि मैं ही वैभव मैं कुबेर सोने की चिड़िया कहलाता हूँ मैं ही भारत कहलाता हूँ। मैं शक्तिशाली मैं सैन्य सामरिक मैं ज्ञान विज्ञान योग का परचम फहराता हूँ मैं ही भारत कहलाता हूँ। मैं स्वतंत्र मैं गणतंत्र मै जनता,जनार्दन लोकतंत्र कहलाता हूँ मैं ही भारत कहलाता हूँ। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरच...
सिमटते परिवार
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सिमटते परिवार

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सभ्य होते समाज में, सिमट रहे हैं परिवार रीनी टिंकू मम्मा पापा, छोटा सा रह गया संसार क्या इसको कहते हैं विस्तार? चाचू का वो घोड़ा बनना, दादा संग सैर पे जाना दादी ताई की कहानी, भुआ का वो लोरी गाना कहाँ गम हुए ये किरदार? पापा जाते हैं काम पर, किटी पार्टी मम्मी की है बच्चे घर स्कूल से आते, टी वी संग मौज मनाते हैं कहाँ गए सारे संस्कार? नूडल्स पिज्जा पास्ता खाकर सेहत का हो गया कल्याण ताज़े सब्ज़ी दाल चांवल, चूल्हे की रोटी गरम-गरम भूले क्यों पापड़ अचार? जब सब साथ में रहते थे, हर दिन उत्सव होता था त्यौहार मनाते मिलजुल कर खुशियों का वो जमघट था ये कैसे गुमसुम परिवार? बुजुर्ग हो या कोई बीमार, सेवा सबकी होती थी एक कमाता सब खातेथे, गुजर बसर हो जाता था क्यों टूट गए रिश्ते सारे? परिचय : सरला मेहता निवा...
शिक्षक
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शिक्षक

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** शिक्षक, जो हौसला बढ़ाये, शिक्षक, जो सही राह दिखाये, शिक्षक, जो हिम्मत न हारे, शिक्षक, जो धैर्यवान हो, शिक्षक, जो ऊर्जावान हो, शिक्षक, जो क्षमाशील हो, शिक्षक, जो रचनात्मक सोच रखे, शिक्षक, जो निरंतर सीखता जाये, शिक्षक, जो बच्चों को समझे, शिक्षक, जो बच्चों की सुने, शिक्षक, जो प्रोत्साहित करे, शिक्षक, जो खुशियाँ बाँटे, शिक्षक, जो सपने देखना सिखाये, शिक्षक, जो सपने पूरा करना सिखाये, शिक्षक, जो जीवन जीने की कला सिखाये, शिक्षक, जो बच्चों के साथ बच्चा हो जाए, शिक्षक, जो बच्चों के मन में उतर जाये, शिक्षक, जिसे हर बच्चा चाहे। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
मां की ममता मिलती हैं सबको
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मां की ममता मिलती हैं सबको

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** मां की ममता मिलती हैं सबको कोई अच्छूता नहीं कद्र करने की बात है कोई करता कोई नहीं मां वात्सल्य प्रेमामई ममता मिलती हैं सबको कोई अच्छूता नहीं कद्र करने की बात है, कोई करता कोई नहीं मां का आंचल अपने सपूतों के लिए हरदम खुला बंद नहीं अपनी तकलीफों दुखों से घिरी पर ममता की छांव हटाई नहीं चार बातें कड़वी भी सुनीं तुम्हारी पर ममता की छांव हटाई नहीं तुमने कद्र भले की हो या नहीं पर मां ने ममता घटाई नहीं हैं ऐसे भी कुछ लोग मां की ममता का आंकलन करते नहीं बस दिखावे में जीतें हैं मां की ममता का सम्मान करते नहीं समझ लो ऐसे लोगों, मां की ममता नसीब करेगा भगवान भी नहीं बस मां की ममता आंचल में समाए रहो फिर पूजा पाठ की जरूरत नहीं मां का वात्सल्य प्रेमा मई ममता मिलती हैं सबको कोई अच्छूता नहीं कद्र करन...
सब मिलेगा
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सब मिलेगा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** बहुत पावन और पवित्र दिन आज कल चल रहे है। कही श्रीगणेशजी का जयकारा तो कही पर्यूषण महापर्व राज। चारों तरफ का वातावरण है बहुत ही भक्तिमय। जो देखते ही ह्रदय में धर्म ज्योत को जला रहा है।। तेरे द्वार से गया न खाली कोई भी मांगने वाला। रखते हो सब पर अपना हाथ उनकी खुशाली के लिए। बस मन में श्रध्दा और सुबरी आप में होना चाहिए। तभी परिणाम अनुकूल ही आपको निश्चित मिलेंगे।। बहुत कुछ खोकर भी आप विचलित न हो। न चिंता करे और न ही खुदको गमों डूबोये। बस लक्ष्य को देखे और आगे बढ़ते रहे। सफलता तुम्हें निश्चित ही एक दिन मिल जायेगी।। मन को निर्मल और शांत रखे। अपने भावों को शुध्द करे। और भावनाओं को आप समझे। फिर उसी अनुसार कार्य करें।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं।...
तुम्हारे जाने के बाद
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तुम्हारे जाने के बाद

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** चाह है मेरी तुम्हें पाने की, तुम आती हो बहुत याद। मन लगता नहीं कहीं मेरा, तुम्हारे चले जाने के बाद।। भूल जाता हूं कि मैं कौन हूं, खुद का पता है ना ठिकाना। प्यार में तेरे बन कर पागल, गली में घूमता प्रेम दीवाना।। गूंज रहा है तेरा नाम फिजा में, हर जगह दिखता तेरी तस्वीर। छोड़ कर अकेले चली गई हो, मेरी प्रेरणा तू है मेरी तकदीर।। अब ना देर करो जीवन साथी, लौट आओ तुम बिन मैं अधूरा। तुम अमूल्य हो मणींद्र से ज्यादा, तेरा प्यार मेरे लिए है पूरा-पूरा।। मेरे मनमीत, प्रेयसी, अर्धांगिनी, सुन लो निशब्द दिल की पुकार। तड़प रहा हूं तुम्हें पाने के लिए, तुमसे ही है प्रिय मेरा घर संसार।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पु...
मेरे गुरु
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मेरे गुरु

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** विद्या और ज्ञान सागर सा मेरे गुरु चुन चुन मोती देते जब भी राह भटक मैं जाती अपने हाथ पतवार थामते ईश्वर को कब जाना मैंने गुरु में उनकी छवि देखा कभीं सख्त कभी सरल हैं जग का बोध गुरु कराते हैं गलतियों को सदा सुधारते सत् पथ पर लेकर चलते हैं भ्रम के जालों को मिटाकर मन में ज्ञान ज्योति जलाते हैं जीवन में उत्कर्ष हमारा होता अनुशासन जीवन में वो लाते हर मुश्किल से लड़ने को हमें गुरु ही हमको तैयार करते हैं परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्री...
शिक्षक का ज्ञान
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शिक्षक का ज्ञान

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** ज्ञान का सागर हैं शिक्षक, महासागर हैं शिक्षक, जीवन का मान हैं शिक्षक, सृष्टि का अवतार हैं शिक्षक। हमें ज्ञान की ज्योति देते हैं, हमें नवज्योति दिखाते हैं, विज्ञान प्रौद्योगिकी कला को सिखाते हैं, हमें माता-पिता से ऊंचा पद प्रतिष्ठा देते हैं। सृजन के सृजन से, हमें चलना सिखाते हैं, हमें अंधेरों से, रोशनी की राह दिखाते है । ब्रह्मा का रूप तुम-कों मैं, हमेशा दिल से देते हैं, शिक्षक सृजन है सृष्टि का, पूरा विश्व मानता हैं। परिचय :- रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा : स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास : चैनपुर, सीवान बिहार सचिव : राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य स...
जब-जब मेरी कलम ने…
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जब-जब मेरी कलम ने…

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा हैवानियत छटपटाने लगी दरिंदगी का दम घुटने लगा। ईर्ष्या स्वयं से जलने लगी नफरतों का नाश होने लगा। जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा रुढियाँ रोने लगी घृणा स्वयं से घृणित होने लगी पाखंड पांव पीटने लगा। जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा रूहें सिसकियाँ भरने लगीं आंसुओं की बारिश होने लगी हर पत्थरदिल पिघलने लगा जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा वैमनस्य की कालिमा छंँटने लगी मानो गंदगियाँ दिलों की धुलने लगी अंधकार अमावस्या की रात्रि का लुप्त होने लगा नभ-जल-थल में सूर्य का प्रकाश प्रकाशित होने लगा हर हृदय पटल पर प्रेम और विश्वास का आह्लाद होने लगा। जब-जब मैंने दर्द ए इंसानियत लिखा। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शि...
किसी का हमदर्द बने
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किसी का हमदर्द बने

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** दर्द बढ़ जाता है तो सीने मे हूक सी उठती है | तन्हाई का आलम भी तब नागिन सी डसती है || दर्द की अहसास भी अजीब सुकून देता है | जो पास ना हो उसका भी अहसास देता है || दर्द को महसूस कर उसे बाँटने से घटती है | दुख के बादल फिर तो धीरे-धीरे छटकती है || आओ दर्द बाँट कर एक दूजे का सहारा बने | दर्द संग जीने मरने के नये नये अफ़साने बने || एक दूजे को सम्बल दे जीने का अधिकार दे | दर्द मिटा कर एक दूजे को आदर एवं प्यार दे || दर्द का नाम अमर है इश्क के हर इम्तिहान मे | दर्द तो मिलेगा ही दिल जला हो अगर प्यार मे || दर्द मे जीना,दर्द मे मरना,दर्द भी अहसास है | दर्द का जीवन से रिश्ता गहरा और खास है || दर्द मे किसी का हमदर्द बने भुलाकर क्लेश | अब दर्द मे जीवन जीना सीखना पड़ेगा प्रमेश || परिचय :- प्रमेशदीप मानिकपुरी पित...
सुनहरी शाम
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सुनहरी शाम

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सुनहरी शाम के बादल भी झुक आऐ। तुम ना आए प्रिय तुम ना आए। बही बयार शीतल और मेघ नीर लाए तुम ना आए प्रिय तुम ना आए। पोखरों के पास का किट स्वर प्रिय रवि चले अंतर तल में संबल क्षितिज का लिए तुमन आए प्रिय तुम ना आए। एक बार फिर बादल घिर आए याद के कोकिला का मधुर स्वर छू गया शाम मधु पा मधु गुंजन भी कर रहे भौर से मेरे उपवन के आंगन में काग बोले देर से फिर भी तुम ना आए प्रिय तुम ना आए।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आ...
प्राण
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प्राण

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवन की वास्तविकता है प्राण, पंछी सा उड़ जाएगा एक दिन यह प्राण जीवन की हंसने-रोने की ध्वनि ना सुन पाएगा सुख-दुख के संवाद कभी ना सह पाएगा, जब जीवन से मुक्त हो जाएगा यह प्राण ! पग-पग ये जीवन उलझी हुई किताब आदि अंत ना सुलझा पाया ये इंसान, समय के चक्षु में शुष्क नीर जैसा थम जाता है यह प्राण, उत्कृष्ट पाने की अभिलाषा, हर पल खुश रह कर जीने की ललक, असंतुष्ट इच्छाओं को पूर्ण करने की पराकाष्ठा, समझते समझाते क्षण भंगुर सा सृष्टि में विलीन हो जाता है यह प्राण ! मोहपाश में ना बाँध सका इसे कोइ, स्वतंत्र विचरण करने को व्याकुल, कोलाहल की ध्वनि से दूर, शांत वन में लुप्त होने को आतुर है यह प्राण ! नित नए जीवन का ग्रंथ बनाते, आशा को विश्वास का संगीत सुनाते, धीरज धर परमात्मा का संदेश सुनाते, जीवन का अखंड सत्य...
जीवन का सफर
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जीवन का सफर

निधि गुप्ता (निधि भारतीय) बुलन्दशहर (उत्तरप्रदेश) ******************** जिंदगी का सफर जहां है, रहस्यमई, वहीं है रोमांचकारी भी, कभी है गम, इसमें तो, कभी है असीम खुशी... एक गुत्थी है यह, जो कभी किसी से ना सुलझी, किस पल में क्या होगा? है पहेली उलझी उलझी... जिंदगी का सफर, अनवरत चलता रहता है, क्या है?, उद्देश्य इसका, कभी पता नहीं चलता है... अनुभव जीवन के सफर में, कुछ खट्टे, कुछ मीठे होते हैं, सुख-दुख, लाभ-हानि, आशा-निराशा सभी साथ होते हैं... किसी के लिए, बुरा होना कर्मफल है, किसी के लिए, बुरा करना राजनीति.... किसी के लिए, क्षमा करना मानव धर्म है, किसी के लिए, अपराध करना, अपनी नीति.... कोई पैसे के लालच में ईमान बेच दे, कोई सेवाभाव में समर्पण कर दे, किसी के लिए सबका, भला सोचना मानव धर्म है, किसी के लिए, सबको नीचा दिखाना राजधर्म है.... कभी-कभी, सफर में जीवन के, अ...
नादान जीवन
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नादान जीवन

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** कुछ नादानियां कुछ अठखेलियां बाकी है मुझ में। क्षण-क्षण घूमती मृत्यु के बीच में जीवांत जीवन बाकी है मुझ में। झूठ के चलते बवंडर में सत्य का जलता हुआ दीपक बाकी है मुझ में। जीवन मृत्यु के बोध में हे! ईश्वर तेरा ध्यान बाकी है मुझ में। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहा...
शराब एक सामाजिक बुराई
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शराब एक सामाजिक बुराई

महेन्द्र साहू "खलारीवाला" गुण्डरदेही बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** शराब पीना है बहुत खराब, टूटे हैं इनसे बहुतों के ख़्वाब। शराब उन्हें पी जाते हैं, जो पीते हैं बहुत शराब।। शराब से जिन्दगियां हुई बर्बाद, घर परिवार में होती है रूसवाई। अनेक वारदातों का जड़ है शराब शराब है एक सामाजिक बुराई। गर शराब छूट जाए भाई, दाम्पत्य जीवन हो सुखदाई। जो नित शराब की लत लगाई, घर में नित कलह,आफ़त आई।। शराब नैतिकता का करता पतन है, शराबी तो अपने में रहता मगन है। दारा,वत्स का हो रहा जीवन स्याह, शराबी को नहीं किसी की परवाह।। बच्चों के क़िस्मत फूटे हैं, माताओं के सुहाग लूटे हैं। अपनों से अपने छूटे हैं, शराब से कितने घर टूटे हैं।। शराब कभी न पीना तुम, सादा जीवन जीना तुम। शराबियों से सदा रहना दूर, सुसंगत सर्वदा करना तुम।। परिचय :-  महेन्द्र साहू "खलारीवाला" ...
भारत अभिलाषित हिंदी
कविता

भारत अभिलाषित हिंदी

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी भाषा से मिली, हिंद देश पहचान। तनया संस्कृत की कहे, बढ़े जगत में शान।। बढ़े जगत में शान, मनुज मुख सदा विराजे। मिले विश्व सम्मान, हिंद का डंका बाजे।। कुमुद कहे ज्यों होत, सुसज्जित माथे बिंदी। भारत का अभिमान, सरल अभिलाषित हिंदी।। हिंदी भाषा है सरल, कठिन इसे मत मान। मौखिक वाचिक व्याकरण, कथन करें आसान।। कथन करें आसान, छंद साधित अभिलाषा। अलंकार रस छंद, विशेषण युत परिभाषा।। कहे कुमुद शुचि श्रेष्ठ, स्वच्छ तटिनी कालिंदी। जग जीवन आधार, कहे निज भाषा हिंदी।। हिंदी व्यापक रूप में, धरे विश्व में पाँव। अनुपम स्थापित कूप है, विद्वानों की छाँव।। विद्वानों की छाँव, वृहद शाखा विन्यासित। विविध सुत्र आधार, बनें साहित्य सुशासित।। कुमुद लिखे शुभ ग्रंथ, करें शोभित नित बिंदी। सुखद राष्ट्र अभिमान, हृदय में बसती ...
मेडिटेशन
कविता

मेडिटेशन

प्रभजोत कौर "जोत" मोहाली (पंजाब) ******************** अगर कोई पूछे तुझसे मेडिटेशन करते हो क्या खुद को वक्त देते हो क्या बङे फख्र से कहना तुम साहिबा, हाँ, खुद का बहुत ध्यान रखता हूँ खुद से बातें भी करता हूँ सुकून बहुत मिलता है जब उस पगली की बकबक सुनता हूँ लफ्ज़ों में पिरो देती है खामोशी मेरी सुन लेती है मीलों से धङकन मेरी पल भर रूठ भी नही सकती मुहब्बत करती है हर खता को मेरी वो है तो मेडिटेशन भी हो जाती है इश्क में उसके रब से मुलाकात हो जाती है सबसे ज्यादा प्यार किया है उससे वो भी मीरा सी मग्न हो जाती है परिचय :- प्रभजोत कौर "जोत" निवासी : मोहाली (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...
चला आऊं शहर में तेरे
कविता

चला आऊं शहर में तेरे

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** तु कह दे तो मैं चला आऊं शहर में तेरे, बुला तो सही एक बार मुझे शहर में तेरे, मैं भी देखूं शान-ओ-शौकत शहर की तेरे, मैं भी घुमू लूं गली-गली शहर की तेरे, छोटा सा गांँव है मेरा बसता है दिल में मेरे, निकल कर गांँव से अपने देख लूं शहर को तेरे, चकाचौंध की जिंदगी सुनी है मैंने शहर की, वो सब देख लूं आकर एक बार शहर में तेरे, डर मुझे है लगता कहीं खो ना जाऊं भीड़ में, तूं भी कहीं ना पहचाने मुझ को शहर में तेरे, है रोशनाई मेरे गांँव के प्यार में ज्यादा, देख लूं आकर आबोहवा शहर में तेरे, यों ना कहना आया नहीं गांँव को छोड़ कर, मिलने तुम से आ रहा हूंँ अब शहर मेेंं तेरे, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है...
उस हसीं को मरते हजार बार देखता हूँ
कविता

उस हसीं को मरते हजार बार देखता हूँ

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** कभी खुशियों की बौछार देखा था आज उन आँखों में आंसुओं की अम्बार देखता हूँ। न जाने कितनी ठोकरे खाई है, आज उस हसीं को मरते हजार बार देखता हूँ।। पूछा-वो तुम्हारा मुस्कराता चेहरा कहाँ गया? हँसता-खेलता और हरा-भरा घर कहाँ गया? छन-छन करती पायल की झनकार कहाँ गई? वो मीठी नोक-झोंक वाला प्यार कहाँ गया? वो खिलखिलाती हँसी, जीने की नए अंदाज को आज गुमसुम और उदास देखता हूँ। न जाने कितनी ठोकरे खाई है, आज उस हसीं को मरते हजार बार देखता हूँ।। पलकें झुकाए सुना गौर से फिर बोली यार। क्या कहें इश्क़बाजी का छाया था खुमार।। पाल रखी थी उम्मीदें एक छोटी सी दुनियां बसाने की। हमदम साथ मिल कर एक नई पहचान बनाने की।। वो हरदम जुल्म ढाता रहा मैं सहती रही। वो धोखे का और मैं प्रेम का बीज बोती रही। उनके हर सितम का घूंट पीती रही। ...
वक्त सीखा रहा है
कविता

वक्त सीखा रहा है

गरिमा खंडेलवाल उदयपुर (राजस्थान) ******************** एक सुकून है जो मुझे तबाह कर रहा है तू मुझे कितनों से बेवफा कर रहा है। कर रहा हूं मैं मुहब्बत हर पल जिससे वो मुझसे कतरा कतरा छल कर रहा है। कभी मैंने पाने की कोशिश न की तुझे क्यों दूर हो जाने के जतन कर रहा है। मुझसे ज्यादा प्यार वो करते है मुझे दूर हो कर क्यूं मेरी फिकर कर रहा है। इश्क में रुलाया जिन्होंने हमें , मुहब्बत मुझे उन्हीं से फिर करने को जी चाह रहा है । रहता हूं जब प्यार में बिना यार के साथ मैं प्यार के साथ रहना प्यार से वक्त सीखा रहा है। परिचय :- गरिमा खंडेलवाल निवासी : उदयपुर (राजस्थान) संप्रति : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
कलमकार
कविता

कलमकार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** मृत हुए जन दिल को जिंदा कर देता, लौकिक जीवन रंगमंच का जादूगर हूं। प्रबल निराशा में मैं आशा की किरण, प्रेरक और मार्गदर्शक कलमकार हूं।। जननी की आंसुओं को लेकर हथेली, चंदन तिलक बना लगा लेता मस्तक। जब-जब पुकारती है नारी दुःखी स्वर, रक्षक वीर योद्धा बन देता हूं दस्तक।। सरहद पर डटे सिपाहियों के हृदय में, राष्ट्रप्रेम और विजय का भाव जगाता। मातृभूमि के लिए प्राण न्यौछावर करो, उनके नस-नस में लोहित लहू दौड़ाता।। किसान की दशा, मजदूर की मजबूरी, बदन से निकलता रात-दिन ज्वालाएं। मन की पीड़ा सुनता नहीं सत्ता राजन, मेहनत का हक देकर दूर करो बाधाएं।। देख दीन-हीन बेगार की करुणा दशा, खून के आंसू पी लेता समझ गंगाजल। दिवस जगाता मुक बधिर को बैगा रुप, पाठ पढ़ाता अधिकार का करने मंगल।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली,...
तीज त्योहार
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तीज त्योहार

संगीता पाठक धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हस्तनक्षत्र की बेला में भाद्रपद की तीज आयी है, भाई को बहन के मायके आने की प्रतीक्षा है, बहन भी डेहरी पर खड़ी हो बाट जोह रही है। उदास घर की रौनक बरस बाद लौट आयी है। सखी संग बहनों की खिलखिलाहट गूँज रही है, हँसती खिलखिलाती सखियाँ कुशल पूछ रही हैं। अपने हाथों में हरी-हरी मेंहदी से बेल बूटे बनायेंगी, ठेठरी, खुरमी, गुझिया पकवान मिल जुल कर बनायेंगी। सोलह श्रृंगार करके बहनें सारी फूली ना समायेंगी, एक दूसरे को अपनी-अपनी साड़ी गर्व से दिखायेंगी। पति के आयुष्य की मंगल कामना में निर्जल व्रत रखेंगी, सखी सहेलियों संग शिव पूजन करके रतजगा करेंगी। ढोलक की थाप पर सभी बहनें भजन गीत गायेंगी, शिव पूजन करके अखंड सौभाग्य का वरदान पायेंगी। परिचय :  संगीता पाठक निवासी : धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
दीवार
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दीवार

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** ईंट और चूने की दीवार घरों को बनाती दीवार रिश्तों को जोड़ती दीवार सजावट का केंद्र दीवार, अनेक रंगों की दीवार आधुनिक समय की पहचान कभी लाल कभी नीली दीवार फोटो फ्रेमों से सज्जित दीवार, पर ये ही दीवार जकड़ लेती है हमें, कुंठित कर लेती है चहारदीवारी में बंध जाते हैं, कैद हो जाते हैं दीवार में, उससे आजाद होने के लिए तरसते हैं उहापोह में फंसे, मात्र एक सूर्य की किरण के लिए होते हैं व्याकुल। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित्य में योगदान के लिए लोकमत द्वारा पुरस्कृत हैं। आप "मैं हूं भोपाल' के खिताब से भी सुशोभित हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द...
नमन गजानन देवा
कविता

नमन गजानन देवा

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** प्रथम पूज्य मंगल करते हैं, श्री गणपति महाराज। गौरी पुत्र गजानन स्वामी, देवों के सरताज। महादेव के पुत्र कहाते, और षडानन भ्राता। जो भी शरण तुम्हारी आता, जन्म सफल हो जाता। ऋद्धि सिद्धि प्राणों से प्यारीं, मंगल ही करतीं हैं। दीन दुखी सबके जीवन में, खुशियाँ ही भरतीं हैं। मूषक पर तुम सदा विराजित, सदा सुमंगल करते। ऋद्धि सिद्धि सबके जीवन में, श्री गणेश जी भरते। विद्या के सागर गणेश जी, बुद्धि प्रदाता स्वामी। सबके, मन की आप जानते, तुम हो अंतर्यामी। दूब फूल मेवा चढ़ता है, रोली अक्षत न्यारा। पार्वती, शिव, कार्तिकेय सँग, है दरबार प्यारा। मोदक का प्रसाद चढ़ता है, चढ़े देव को मेवा। सारे काम सफल होते हैं, जो जन करते सेवा। मोदक से मधुमेह उपजता, श्री गणेश जी जानें। चढ़ता है कपित्थ अरु जंबू, है ...