जीवन मूल्य
सुरेश चन्द्र जोशी
विनोद नगर (दिल्ली)
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छद्मी-कपटी नांच नचायैंं,
स्व मूल्य गिराकर तू नाचता है |
प्रतिफल इसका संतान लेगी,
ऐसा कभी नहीं तू सोचता है ||
पतित मूल्य ब्यवहार का तो,
परिणाम अतिभयंकर होता है |
देख सृष्टि के तो संज्ञान को,
फिर भी तू विचलित नहीं होता है ||
जिनके जीवन मूल्य नहीं,
वह मानव नहीं कहलाता है |
जीवन मूल्य जो त्याग दे,
वह दानव ही कहलाता है ||
कुटुंब समाज या राष्ट्र हो ,
सबके तो अपने मूल्य हैं |
सभी क्षेत्रों की उन्नति के लिए,
उपयोग करते अपने मूल्य हैं ||
गिराए मूल्य परिवारों ने तो,
परिवार सारे बिखर गए |
जो मूल्य गिराए समाज ने ,
समाज विघटित हो गए ||
गिराकर शिक्षा मूल्य तुम,
शिक्षा इस राज्य की गिरा गए |
बने थे शिक्षा मूल्य जो ,
सारे सुमूल्य कुछ गिरा गए ||
कर आलोचना मूल्यवानों की,
तुम अपना स्तर गिरा गए |
बनाया मूल्य विहीन को मेंटौ...























