ज़ुल्म और दर्द
शशि चन्दन
इंदौर (मध्य प्रदेश)
********************
होती जब-जब अस्मिता की हानि,
उठती ज़ुल्म और दर्द की आंधी,
पौरुष तो रहता जन्मजात अंधा,
स्त्रियाँ भी नेत्रों पर पट्टियां बांध लेती हैं।।
भीष्म प्रतिज्ञा लेने वाले गंगा पुत्र भी
भरी सभा बीच मौन हो पछताते हैं..,
गुरुजन और नीति श्रेष्ठ विदुर भी,,
हाथ पे हाथ धरे फफकते रह जाते हैं।।
झूठी दुनिया के संगी साथी देव पुत्र,
हर कर अपना सब कुछ हाय कैसे,
ये दांव अपनी ही स्त्री को लगाते हैं,
बाजुओं के बल पर धिक्कारे जातें हैं।।
खींचता है जब साड़ी दुर्शासन.,
झूठे रिश्तों से भीख मांग हरती अस्मिता,
तब कृष्णा को फिर कृष्ण ही याद आते हैं,
और अम्बर से चीर बढ़ा वो...,
रेशम के एक धागे का मोल चुकाते हैं..।।
कटी थी जब ऊंगली केशव की..,
कृष्णा ने अपने आंचल का चीर फाड़,
कृष्ण की ऊंगली पर बांधा था...,
कृष्ण एक भाई का फर्ज निभाने आते हैं...





















