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कविता

माँ की दुआ
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माँ की दुआ

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** उस आँगन में रहे ना कभी सुख-समृद्धि का अभाव। फलीभूत रहता है जबतक माँ की दुआओं का प्रभाव। जन्मदात्री की आज्ञा का जिस घर अँगना में हो अनुपालन। नव पीढ़ी में वहाँ होता सदा संस्कारित गुणों का परिपालन। मातृशक्ति हमारी होती सदा कुटुंब समुदाय की आन। बढ़ाती मांगलिक कार्यों में खानदानी विरासत की शान। राह भटकते बच्चों को बीच जीवन में है टोकती। जो कर्तव्य पथ हो अडिग उन्हें बढ़ने से नहीं रोकती। देवें सदैव उन्हें सम्मान जीओं चाहे अपने उसूल। हृदय विह्वल हो उनका करें न कभी ऐसी भूल। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ...
शब्द श्रद्धांजलि
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शब्द श्रद्धांजलि

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मौत भी रोई होगी ऐसा मंज़र देखकर। उसे दरिंदे मिलें इंसानी नक़ाब पहनकर। अनजान पहुंची होगी भेड़ियों की मांद में, वो भोली निश्छल उन्हें अपना मानकर। टूटकर बिखरी थीं इक मां, बहन बेटी, सिसकी घबराई होगी वो खतरा भांपकर। दुराचारियों ने नोंचा मासूम रूह तन को, बचने की लाख कोशिश की हैवान जानकर। पशु भी नहीं करते इतने घृणित कर्म, वो किया दरिंदों ने उसे लाश समझकर। दुःख, वेदना, पीड़ा, आंसू, ख़ून, कत्ल सब, बौने नज़र आये बहन तेरा दर्द जानकर। आंखों पर पट्टी बांधकर गांधारी मत बनो, उठा लो खंजर करोगे क्या हाथ बांधकर। जी कर भी क्या करोगे ऐसी जिंदगी का, कायर डरपोक मरी मानवता साधकर। खोखले कानून और गूंगी बहरी सरकार, रोज रौंधी जाती है नारी नारायणी कहकर। अब सरेराह कत्ल करों, इन दानवों का। इन्हें फांसी पर लटकाओ रस्स...
माता तुलसी पतित पावनी
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माता तुलसी पतित पावनी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** हर घर पूजित होती तुलसी, वेद पुराणों सी पावन। यत्र, तत्र, सर्वत्र विराजित, तुलसी है प्रिय मनभावन। विष्णुप्रिया, प्रिय सालिग्राम की, ठाकुर भोग लगाते। तुलसी घर में रोपण करके, सुख सौभाग्य जगाते। जनमानस में पूजी जाती, हर गुण से संपन्न। जिस घर होती भाग्य जगाती, जो धनहीन विपन्न। पूर्व जन्म में वृंदा थी यह, जालंधर को ब्याही। परम भक्त थी हरि विष्णु की, भगवत पथ की राही। अत्याचारी जालंधर से, सभी देव जब हारे। विष्णुधाम जाकर तब सब ने, अति प्रिय बचन उचारे। छद्म रूप धारण कर प्रभु ने, वृंदा करी अपावन। जालंधर को मार दिया तब, भोले शिव मनभावन। श्राप दिया वृंदा ने हरि को, सालिग्राम बनाया। जड़बत हुई समूची सृष्टि, अंधकार सा छाया। सब देवों ने करी प्रार्थना, तब वृंदा थी मानी। काला मुख कर श्राप हटाया, ...
महात्मा गौतम बुद्ध
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महात्मा गौतम बुद्ध

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** जन्म – ५६३ ई.पू., लुम्बिनी (नेपाल) ; कपिलवस्तु के पास मृत्यु - ४८३ ई.पू., कुशीनगर (भारत) ; माता – महामाया(मायादेवी), पिता – शुद्धोधन जीवनसाथी – राजकुमारी यशोधरा, पुत्र – राहुल, विमाता – महाप्रजापती गौतमी -------------------------------------------------------------------- :::::::::::गौतम बुद्ध के जीवन दर्शन:::::::::: ######################### भारत की पवित्र भूमि पर कई देव तुल्य महापुरुषों ने जन्म लिया | अपने कृत्य व कृति के बल पर मानव समाज का कल्याण किया || ऐसे असाधारण विभूति महात्मा बुद्ध का मानव रूप में अवतरित हुए | अध्यात्म की ऊँचाइयों को छूकर विश्व - पटल पर नाम रोशन किये || ________भाग - १________ ------------------------------------------------------------------- ::::::::: शिक्षा व विवा...
पिता की वेदना
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पिता की वेदना

रावल सिंह राजपुरोहित जोधपुर (राजस्थान) ******************** चला था घुटनों के बल घोड़ा बनकर, ले बेटो को उस पर बैठाकर। घिस-घिस पांवो को खूब कमाया था, तन-मन से उसे बेटे पर, खूब लुटाया था। खुद ने तो पहनी थी फ़टी अंगरखी, ब्रांडेड कपडा दिलाया था बेटे ने। खुद ने तो काम चलाया चप्पलो से, बूट दिलाया था बेटे ने। खूब लिखाया खूब पढ़ाया, समाज में बड़ा नाम कराया। फिर चढ़ाया था उसे घोड़ी पर, न जाने कितने नोट अवारे थे, बेटे बहू की नई जोड़ी पर। कुछ दिन तो अच्छे से थे बीते, बेटा बहू भी आदर से संग जीते। फिर शुरू होने लगी खटपट, सास बहू में अनबन होती झटपट। फिर भी था विश्वास पिता को, अपने खून के जाए पर। पर वह विश्वास भी जल्दी टूट गया, जब बेटा भी रण में कूद गया। छाती से जिसको रखा लगा था, वो अब छाती पर दलने मूंग लगा था। आप-आप से तू-तू पर वो आ गया, हिस्सा करने की जिद पर व...
जमाने का चलन देखा
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जमाने का चलन देखा

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कभी मायूस देखा, कभी हँसते हुए देखा। खुद के बनाये जालों में कभी, फँसते हुए देखा।। कभी ना नजरें मिलाते जो, सलाम आज करते हैं। मतलब बिना जमाने को, ना कभी,झुकते हुए देखा।। उनको मिली है जिंदगी जीने की तहज़ीब फिर भी। बर्बादी की राह पर आदमी को आगे, बढ़ते हुए देखा।। ना मिला सुकून ना चैनो-अमन खुद से जिन्हे। दूसरों की जिन्दगी में खलल, करते हुए देखा।। ढेरों लोग हैं छोड़ी नहीं जाती जिनसे आदतें बुरी। भरी महफ़िल में उनको नसीहतें, पढ़ते हुए देखा।। सिधा सा रास्ता है दिल में उतर जाने का 'इंद्र' जान ले। तुझे प्यार से गले इंसान के, ना कभी, मिलते हुए देखा।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र...
विश्व परिवार दिवस
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विश्व परिवार दिवस

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नया भारत परीक्षा देता, भय साजिशें महामारी है। भारत बना विश्व प्रणेता, सर्वमान्य नेतृत्व जारी है। खूब पढ़ाया संतानों को, बढ़ता क्रम भी जारी है दादा दादी नाना नानी की बढ़ती अब लाचारी है घर परिवार दायरे में रहना सबकी जिम्मेदारी है। भारत बना विश्व प्रणेता, सर्वमान्य नेतृत्व जारी है। नया भारत परीक्षा देता, भय साजिशें महामारी है रुचि लगाव रखने में परिवारों की पूरी हिस्सेदारी है नारी सशक्तिकरण के युग में अहम भूमिका नारी है संस्कार समन्वय और मातृत्व गुण सभी पर भारी है भारत बना विश्व प्रणेता, सर्वमान्य नेतृत्व जारी है। नया भारत परीक्षा देता, भय साजिशें महामारी है। सतर्क और संस्कार नियम से यदि बढाई यारी है गुमराह वजह कुछ लोगों की बनी चिंता हमारी है कुतर्क चलन अहम तुष्टि में कुछ की मति मारी है। भारत बना विश्व प्रणेता, सर्वमान...
माटी मांगे संज्ञान
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माटी मांगे संज्ञान

संदीप पाटीदार कोदरिया महू (मध्य प्रदेश) ******************** जय माँ भारती अटल, अखंण्ड, अद्वितीय, अबोध जय माँ भारती बहुत हो गया अब न सहूगी, अब संभालनी तुम्हे कमान है, हर घर मे क्यों माया रूपी दानव बैठा... फिर क्यों कहते हैं कि देश महान है... देती आई मैं धन्य धान्य सभी को... और सहा मैंने अपमान है... क्यों जाति धर्म के नाम पर मुझको... क्यों किया लहूलुहान है... क्यों हनन हो रहा अब मानवता का... क्या यही मेरी पहचान है... क्या यही सब धर्मों का ज्ञान है... क्यों नहीं लेता कोई इस पर अब संज्ञान है... अब मिटे मेरे पद निशान हे... जय मां भारती परिचय :- संदीप पाटीदार निवासी : कोदरिया महू जिला इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
सूखा पत्ता
कविता

सूखा पत्ता

दिति सिंह कुशवाहा मैहर जिला सतना (मध्य प्रदेश) ******************** सूखा गिरता पत्ता पैरों से मसला जाता, मंद हवा के झोंकों से फिजाओं में इठलाता। मैं सूखा पत्ता फिरता दर-दर, पेड़ों की टहनियों से झरता झर-झर, प्रसन्न हूँ मैं वजूद मेरा पतझड़। उड़ता बिखरता रंगों में रंग भरता, सूखी डाली तरुओं, नीड़ों में आशियाना मेरा, आता जाता कारगर-कतवारों में, तपती भूमि निर्जन वनों गलियों चौबारों में, निकलता हूँ हर घर के द्वारों से। लेकर आता खाद रूप खेत खलिहानों में सूखा गिरता पत्ता फिर नई आशाओं से, नया रूप प्राप्त कर लेता शाखाओं में। परिचय : दिति सिंह कुशवाहा जन्मतिथि : ०१/०७/१९८७ शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य पिता : रामविशाल कुशवाहा पति : सत्य प्रकाश कुशवाहा निवासी : मैहर जिला सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह र...
बिरवा हम लगाबो
आंचलिक बोली, कविता

बिरवा हम लगाबो

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** आवव संगी आवव, बिरवा हम लगाबो आवव संगी साथी, भुइया हम सजाबो गांव के गली पारा म चउक-चउक हटवारा म धरती म बिरवा जगाबो आवव संगी आवव.... खेत-खार सुन्ना होंगे, मेड़ घलो सुन्ना बनिस नावा डाहर त, कटगे पेड़ जुन्ना छइहा ह नोहर होंगे, कहां सुख पाबो आवव संगी आवव.... चिरई-मन खोजत हावे, रुखुवा के थइहा तरसत हे छइहा बर, गांव के हे गंवतरिहा झिलरी अउ झाड़ी छईहा रद्दा ल बनाबो आवव संगी आवव.. घर-अंगना खोर गली, अउ जमो मोहाटी खेत-खार, मेड़-पार अउ घलो चौपाटी गोकुल के धाम सही चला अब सुघराबो आवव संगी आवव.... नरवा के तीर घलो, पारे-पार तरिया फुलवारी लागे कलिन्दी कछार नदिया गाँव-गाँव शहर-नगर ल मधुबन बनाबो आवव संगी आवव.... धरती के तापमान तभे तो सुधरही झमाझम रुखुवा म धरती सवँरही आही बादर करिया अउ पानी बरसाबो आवव संगी आवव.... ...
कविता

कर लो इरादों को अटल

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आत्म निर्भरता से हीं तेरा मनोरथ हो सफल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। विश्व में अपना पताका तुमको लहराना हीं होगा। जिंदगी की दौड़ में अव्वल तुम्हें आना हीं होगा। एक हो निर्णय तुम्हारा देश तब होगा प्रबल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। खुद बनों मालिक तु अपना कह रही माँ भारती। अपने जीवन रथ का खुद हीं बनना होगा सारथी।। सोंचने में मत बिताओ अपना सुनहरा आज-कल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। बेवजह की बात में अपना समय बर्बाद मत कर। कौन क्या कहता है इन बातों में घूंट-घूंट के न तु मर।। मेरी इन बातों को तु अपने जीवन में कर अमल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। कश्मकश जीवन में है इस कश्मकश से तु उबर। जिंदगी की राह में तुझको तो चलना है निडर।। कौन है अपना-पराया इस मुसीबत से निकल। बांध लो कस...
मिलने से होती है
कविता

मिलने से होती है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** न हम उनको समझ सके न वो हमको समझ पाये। पर हम फिर भी निरंतर आपस में मिलते जुलते रहे। और एक दूसरे से अपने दुख दर्द बाटते रहे। इसलिए लोगों ने इसे अलग ही रंग दे दिया।। हमारी इस मित्रता का उन्होंने अलग ही नाम दे दिया। करे तो क्या करे हम अब इस हवा को रोकने के लिए। जो दिखता है जमाने को वो सच भी नहीं होता। और हालातों के शिकार बहुत लोग हो जाते।। माना की मोहब्बत का रंग चढ़ते देर नहीं लगती। निगाहों से निगाहों का मिलन भी जल्दी होता है। दिलो की चाहत भी जल्दी बढ़ने लगती है। और मोहब्बत का भूत दिल पर छा जाता है।। समय के साथ साथ फिर सब कुछ बदलने लगता है। समझने और जानने की समझ भी फिर आ जाती है। दिलो में फिर प्यार का रंग ही रंग दिखता है। और मिलने जुलने से ही मोहब्बत का उदय होता है।। परिचय :- बीना (मध्यप्र...
इंदौर नगरी आलीशान
कविता

इंदौर नगरी आलीशान

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** इंद्रावती से बनी नगरी इंदौर होलकरों ने इसे सजाया है शबे मालवा की रौनक यहां अहिल्या माता की छत्रछाया है राजवाड़ा में बिखरी राजसी शान गांधी हाॅल ने समय को जाना है शीशमहल की कारीगरी यहां भारत माता मंदिर पाया खजराना गणेश इसकी पहचान बड़ा गणेश आलीशान कैट और शिक्षालयों से शिक्षित औद्योगिक राजधानी भी कहलाती महाकाल बाबा है एक ओर दूसरी ओर ममलेश्वर का छोर रुपमती को आवाज देती नर्मदा मैया की यह आभारी है सामाजिक कार्यकलापों की भरमार धार्मिकता का भी है कारोबार लता, किशोर की यह नगरी हुकुमचंद सेठ को भाई थी स्वच्छता का पंच परचम लहराया अहिल्या माता इसकी शान इंदौर नगरी बन गयी आलीशान। परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
अमृतपान करातीं हैं मां
कविता

अमृतपान करातीं हैं मां

  गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन देने वाली मां मर-मर कर तुम्हें जन्म देकर अपने खून अमृत बनाकर अमृतपान करातीं हैं मां। अपनी भूख प्यास मिटाकर हर परिस्थितियों में आत्मनिर्भरता और संघर्षपूर्ण जीवन में तुम्हें अमृतपान करातीं हैं मां। खूबसूरत विशालकाय इस सुंदर दुनिया में लाकर, अनमोल इस धरा पर जीना सिखाती हैं मां। ज्ञान का वह सागर जिसमें ढुबकर ईश्वर भी जन्म लेते हैं सांसारिक मर्यादा रहकर मां ने निसंकोच उन्हें भी गुणवान बनाया अमृतपान कराया मां ने। प्राकृतिक सौंदर्य की जननी भी हैं मां सृष्टिकर्ता ने अद्भुत प्रकाशमान बनाया मां को सूर्य का प्रकाश भी फिका ऐसा व्यक्तित्व से गगन रोशन किया हैं तभी तो मां ईश्वरीय शक्ति का प्रतीक है हमें जीवन दान दिया है अमृतपान कराया है मां ने। परिचय :- गगन खरे क्...
निर्गुण ब्रह्म धरूँ
कविता

निर्गुण ब्रह्म धरूँ

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** गोपी-उद्धव संवाद संदेश है मोहन का निर्गुण ब्रह्म धरूँ अनुनय है मोहन का मथुरा से आए हैं बनि के इक योगी उद्धव कहलाएँ हैं कान्हा रस में डूबी ना जानूँ कुछ भी क्या खूबी मधुकर की उड़-उड़ के है बूमे गुन-गुन-गुन करते रस चूसे औ झूमे हम सगुण उपासक हैं हम तो ना माने यदुनंदन बाधक हैं वो नैनों का तारा कैसे हम भूलें? है वो ही उजियारा वाकी बंकिम चितवन चित को भरमाए है याही तो उलझन ये कैसे हम कह दें ? बैठा जो भीतर बाहर कैसे कर दें ? आती जब भी यादें रास रचाने की हैं करतीं फरियादें हे निष्ठुर आ जाते भूल गिले शिकवे करतीं जी भर बातें उद्धव का ज्ञान धरा कुछ भी ना समझे उनका सब राग हरा परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" निवासी : अमेठी (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र :...
माँ की दुआ
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माँ की दुआ

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** उस आँगन में रहे ना कभी सुख-समृद्धि का अभाव। फलीभूत रहता है जबतक माँ की दुआओं का प्रभाव। जन्मदात्री की आज्ञा का जिस घर अँगना में हो अनुपालन। नव पीढ़ी में वहाँ होता सदा संस्कारित गुणों का परिपालन। मातृशक्ति हमारी होती सदा कुटुंब समुदाय की आन। बढ़ाती मांगलिक कार्यों में खानदानी विरासत की शान। राह भटकते बच्चों को बीच जीवन में है टोकती। जो कर्तव्य पथ हो अडिग उन्हें बढ़ने से नहीं रोकती। देवें सदैव उन्हें सम्मान जीओं चाहे अपने उसूल। हृदय विह्वल हो उनका करें न कभी ऐसी भूल। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ...
जिंदादिल इंसान
कविता

जिंदादिल इंसान

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** खुशनसीब है वो लोग जो खुशियां बांटते हैं। मोहब्बत का राग और मोहब्बत के गीत सब को सुनाते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता उनको कि लोग उनको हँसाते हैं या फिर रुलाते हैं। वो बस चेहरे पर हल्की-हल्की मुस्कान लिए जिंदगी बिताते हैं। वो नहीं देखते कि राह में फूल पड़े हैं या फिर चुभते कांटे, वो बस मस्ती के आलम में खोए, कांटों को भी फूल समझ निकल जाते हैं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित कर...
कविता

ये काश्मीर हमारा है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** माँ वैष्णों का धाम यहाँ की शोभा और बढ़ाता है, खड़ा हिमालय इसकी महिमा, मूक स्वर में हीं गाता है। मैं कितना गुणगान करूँ प्रकृति ने रूप सँवारा है, बोले हिन्द के रखवाले ये काश्मीर हमारा है।। सोने की चिड़ियाँ कहते हैं, ये भी क्या कुछ कम है। जो आँख दिखाये इसको उसका, काल बन खड़े हम हैं।। इसी हिमालय से निकली गंगा की निर्मल धारा है। बोले हिन्द के रखवाले ये काश्मीर हमारा है।। हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई, चारो धर्म समान यहाँ। अनेकता में भी एकता है, होता नित है गान यहाँ।। धूल चटाया वीरों ने जिसने इसको ललकारा है। बोले हिन्द के रखवाले ये काश्मीर हमारा है।। संजीवनी सी कितनी जड़ी, बूटियों का ये संगम है। हिंदुस्तान से बाहर भी इसकी, महिमा का वर्णन है।। गीतकार आनंद ने अपना तनमन इसको वारा है। बोले हिन्द के रखवाले ...
पंख
कविता

पंख

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** दिए है जिसने पंख, उसने आस्मां बख्शा होगा। आज को देख मनुज, कल किसने देखा होगा। व्यर्थ न कर चिंता, चिंता! चिता का स्वरूप है, चिता जलाती मुर्दे को, चिंता जलाती जिंदा होगा। पंख फैलाए उन्मुक्त गगन में, उड़ान भरकर देख, आसमां के तारे तेरे, तू सितारों का आसमां होगा। कोशिश अगर करेगा, जमीं कदमों से नाप लेगा, हसरतों के शहर में, खुशियों का बाजार होगा। ख्वाहिशों के घोड़ों को, लगाम देना सीखिए, दुनिया उसी की है, बुलंद जिसका हौसला होगा। हर आंगन में दरार, यह स्वार्थ का रिवाज है, अपने हो गए पराएं, बस गैरों से परिवार होगा। पंख कतरनें को बैठे हैं, गगन की दहलीज पर, जीत उसी की होगी, जो अपनों से सावधान होगा। बेगैरत है दुनिया, दूध में चलती तलवार देखी है, खंजर पीठ में उतारने वाला, कोई अपना होगा। परिचय :- डॉ. भगवान सहा...
युद्ध की विभीषिका
कविता

युद्ध की विभीषिका

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** युद्ध की विभीषिका का साक्षी इतिहास है क्या समर से हुआ कभी मानव का विकास है? वसुंधरा पर जब-जब गूंजा रणभेरी का नाद है मिटी सभ्यता, समूल नाश का हुआ शंखनाद है। क्या शक्ति से जीतकर बनता कोई महान है? युद्ध शोक से रोता हर पल मानव का अंतर प्राण है। अब तक इतने युद्ध हुए क्या भला किसी का होता है? बल हिंसा और शस्त्र प्रयोग से धरती का मन भी रोता है। अहं भाव जब मानव मन पर हावी होता जाएगा पर पीड़ा को भूल सदा वह रण में डूबा जाएगा। कब तक युद्ध सहेगी धरती सोचो और विचार करो विश्व बंधुत्व और शांति, अहिंसा का मिलकर सभी प्रचार करो। मन का द्वेष मिटाकर ही तो होगा नित सबका उत्थान युद्ध रोक कर लाना होगा फिर से नवजीवन का विहान।। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम....
नर्स दिवस
कविता

नर्स दिवस

किशनू झा “तूफान” ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती। देखभाल को सदा मरीजों के, घर -घर तक जाती है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती। उपयोग सदा ही करती है, वह शारीरिक विज्ञान का। देखभाल में ध्यान रखे वह, रोगी के सम्मान का। कितनी मेहनत संघर्षो से, एक नर्स बन पाती है फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है सदा बचाती है रोगी को, दुख, दर्दो, बीमारी से । भेदभाव को नहीं करे वह, नर रोगी और नारी से। देख बुलंदी को नर्सों की, बीमारी डर जाती है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है। देती शिक्षा और सुरक्षा, बीमारी से बचने की। कला नर्स को आती है, रोगी का जीवन रचने की। असहाय मरीजों की केवल, परिचायक ही तो साथी है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है। देखभाल का जिसके अंदर, एक अनोखा ग्यान ...
माँ
कविता

माँ

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** सबने कहा माँ कि तू चली गई है, कभी ना लौटने के लिए। इस जहांँ से दूर उस दीनबंधु के पास तू चली गई है । पर मैं कैसे मान लूँ ? तू ही बता माँ इन बातों पर विश्वास मैं कैसे करूँ? जबकि मुझे पता है कि तू यहीं है। सामने जो तुमने पौधे लगाए थे, जो कभी तेरी ममता पाकर मुस्कुराए थे, वे अब लहलहा रहे हैं। जैसे तेरा स्नेहिल स्पर्श उन्हें आज भी मिल रहा है। फिर कैसे मान लूँ कि तू चली गई है? तेरे आँचल में जो स्नेह, दुलार और संस्कार मैंने भर-भर के पाए थे, मुझसे होते हुए वे बच्चों तक पहुंँच रहे हैं । तेरी दी हुई उन्हीं सीखों को अपनाकर वे पुष्पित, पल्लवित हो रहे हैं। ये सत्य दिख रहा हर पल मुझे। फिर कैसे स्वीकार लूँ कि तू चली गई है? मायके की हर एक दीवार को छूने से तेरे मृदुल स्पर्श का अहसास होता है। और वहा...
गीत तुम्हारे स्वर मेरे
कविता

गीत तुम्हारे स्वर मेरे

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** कभी गमो का साया भी नहीं पड़े तुम पर। खुशी की गीत गाओ उदासियों की महफ़िल में। बहुत सुकून मिलेगा मायूसो के चेहरे पर। महफ़िल में रोनक आ जायेगी तुम्हारे गीतों को सुनकर।। मिले गमो का साया भी, उसको भी गीत बना लेंगे। तेरी जुल्फों की साया में हम सारी रात बिता देंगे। क्योंकि सुनकर तुम्हारे गीत मै मोहित हो गया हूँ। भूल गया सारे गमो को और दिवाना हो गया हूँ। दिलकी धड़कनो में अब तुम ही तुम धड़क रही हो।। अब मुझे न नींद आ रही न ही मन मेरा लग रहा है। अब तेरी याद सता रही है और बेचैनी बड़ा रही है। मुझे अपना मीत बना लो होठों से मेरे गीत सजा लो। तुम्हारी बेचैनी मिट जायेगी जब दिलमें शमा जाओगी।। अब तुम्हें देखकर लिखता हूँ। और बस तुम्हें ही गाता हूँ। आवाज़ मेरी होती है पर दिलसे तुम गवाते हो। और मेरी वाह-२ करवाते हो।। ...
मातृ दिवस
कविता

मातृ दिवस

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मां की छवि ईश्वर सम, मत खोजो तुम तोड़। सपने सच करती चले, व्यर्थ मां से होड़।। प्रेम हिफाजत ध्यान में, गुजरे सालों साल। बाल न बांका हो सके, हरदम ठोके ताल ।। रोटी टुकड़े चार जब, खाने वाले पांच। भूख नहीं है मां कहे, चरम स्नेह की आंच।। कष्टों में मां घिरी रहे, दब जाती है हूक। मुंह खुले आशीष में, अकसर दिखती मूक।। करे बच्चों की पैरवी , बनती रहती ढाल। बरसो बरस राज रहे, ये ममता की चाल।। मातृ दिवस याद सिर्फ, चल न सके परिवार। ममत्व छांव पले सदा, जल थल नभ संसार।। जनम जनम न उतर सके, मां का ऐसा कर्ज। भाग्य यदि मां देखती, कोख पले का फर्ज।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा ...
कविता क्या है
कविता

कविता क्या है

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** कविताएं तो होती हैं एहसास मन के उड़ान दी गई हो जिन्हें पंछियों की जैसी चुन-चुन के कलियां बागों से पिरोया गया हो जिन्हे शब्दों के हार जैसे सुरों की मधुर सरगम देकर एक लय में डाला गया हो संगीत जैसे हृदय के कोमल स्पर्श से छू कर पानी की ठंडी छींटो से नहलाया हो जैसे कविताएं तो है दास्तां प्यार भरी नव विवाहित जोड़े की हंसी हो जैसे दिल के किसी कोने में पड़ी राह तलाशती हो मंजिल जैसे सकून मिलता हो जहां जीवन का प्रफुल्लित हो जाते बाग बगीचे जैसे लोरी सुनाकर कोई बचपन की मां ने गोदी में सुलाया हो जैसे परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी...