अगर प्रधानमंत्री मैं होता
अख्तर अली शाह "अनन्त"
नीमच
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जरूरतें सब पूरी करता,
नहीं भीख को कर फैलाता।
अगर प्रधानमंत्री मैं होता,
सबको अपने हक दिलवाता।।
लक्ष्य आर्थिक आजादी का,
रखते मेरे साथी रहबर।
पक्के भवन खड़े इठलाते,
नहीं दीखते कच्चे छप्पर।।
शहरों की निर्भरता होती,
कमतो कृषक सभी सुख पाते।
नहीं पलायन होता मिलकर,
गांवों को ही स्वर्ग बनाते।।
दूध दही की नदियां बहती,
भारत जग में गौरव पाता।
अगर प्रधानमंत्री मैं होता,
सबको अपने हक दिलवाता।।
घर-घर में उद्योग चलाता,
गांव-गांव कलपुर्जे ढलते।
विकेंद्रित करता उत्पादन,
कम पूंजी में काम निकलते।।
श्रमको मिलता पूरा प्रतिफल,
बेकारी का नाम ना होता।
साहूकारों के चक्कर में,
घर आंगन नीलाम ना होता।।
धन पर पूरा अंकुश होता,
खुदपर निर्भर देश बनाता।
अगर प्रधानमंत्री मैं होता,
सबको अपने हक दिलवाता।।
हर तरह की स्वतंत्रता का,
भोग यहां पर जनता करती।
समानता जन-जन मे...