अभी अधूरा अभिनन्दन है
महेश चंद जैन 'ज्योति'
महोली रोड़, मथुरा
********************
दीपक अभी नहीं जल पाया, माँ के मन की आशा का।
अभी अधूरा अभिनन्दन है, अपनी प्यारी भाषा का।।
यों तो सिंहासन पर हमने, लाकर इसे बिठाया है,
पर अपने ही हाथों से, विष प्याला इसे पिलाया है,
टूट गया है कच्चा धागा, इसकी मन अभिलाषा का।
अभी अधूरा अभिनंदन है, अपनी प्यारी भाषा का।।(१)
बड़े अनूठे अक्षर अनुपम, अद्भुत शक्ति भरे प्यारे,
अनुस्वार लगते ही करते, ब्रह्मनाद मिलकर सारे,
हर अक्षर है एक योगिनी, अंत न ज्ञान पिपासा का।
अभी अधूरा अभिनंदन है, अपनी प्यारी भाषा का।।(२)
अब तक मान दिया है थोथा, फिर भी तो मुस्काते हैं,
देख रहे दुर्दशा मौन हम, मन में नहीं लजाते हैं,
दूर करो अँधियार आवरण, तोड़ो धुंध कुहासा का।
अभी अधूरा अभिनंदन है, अपनी प्यारी भाषा का।।(३)
छंद गीत कविता मल्हार का, नीर अमिय सम पिलवायें,
रसिया राग रागिनी के फल, मेवा व्यंजन खिलवायें,...