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महारानी लक्ष्मीबाई
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महारानी लक्ष्मीबाई

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** लक्ष्मीबाई नाम था, वीरों की थी वीर। राज्यहरण उसका हुआ, तो चमकी शमशीर।। ब्रिटिश हुक़ूमत से भिड़ी, रक्षित करने राज। नमन आज तो कर रहा, देखो सकल समाज।। शौर्यवान रानी प्रखर, जिसका मनु था नाम। उसके कारण ही बना, झाँसी पावनधाम।। स्वाभिमान को धारकर, छेड़ दिया संग्राम। झाँसी दे सकती नहीं, हो कुछ भी अंज़ाम।। रानी-साहस देखकर, घबराये अंग्रेज़। यहाँ-वहाँ भागे सभी, लखकर रानी तेज।। घोड़े पर चढ़ भिड़ गई, चली प्रखर तलवार। दुश्मन मारे अनगिनत, किए वार पर वार।। पर दुश्मन बहुसंख्य था, कैसे पाती पार। गति वीरों वाली हुई, करो सभी जयकार।। मर्दानी थी लौहसम, अमर हुआ इतिहास। लक्ष्मीबाई को मिली, जगह दिलों में ख़ास।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास...
मर्यादा की महत्ता
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मर्यादा की महत्ता

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मर्यादा से मान है, मिलता है उत्थान। मिले सफलता हर कदम, हों पूरे अरमान।। मर्यादा से शान है, रहे सुरक्षित आन। मर्यादा को जो रखें, वे बनते बलवान।। मर्यादा से गति मिले, फैले नित उजियार। मर्यादा रहती सदा, बनकर जीवनसार।। मर्यादा है चेतना, जाग्रत करे विवेक। मर्यादा से पल्लवित, सदा इरादे नेक।। मर्यादा को साधता, वह हो जाता ख़ास। कभी न उसकी टूटती, पलने वाली आस।। मर्यादा में रीति है, जिससे निभती लाज। कर सकते इससे सदा, सबके दिल पर राज।। मर्यादा में देव हैं, बसे हुए भगवान। मर्यादा का विश्व में, होता है यशगान।। मर्यादा संस्कार है, अनुशासन का रूप। जिससे मिलती ताज़गी, और सुहानी धूप।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), ए...
सत्य की राह
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सत्य की राह

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सत्य साधकर गति करो, तब ही बनो महान। केवल सच से ही बने, इंसाँ नित बलवान।। सत्य चेतना को रखे, जिसमें रहे विवेक। रीति-नीति को साध ले, रखकर इच्छा नेक।। सत्य बड़ा गुण जान ले, इसका हो विस्तार। जीवन में खिलते सुमन, बनकर के उपहार।। सत्य सदा ही जीतता, गाता मंगल गीत। इसको हम अब लें बना, अपने मन का गीत।। सत्य सदा हित साधता, लाता है उत्थान। जो चलता सद राह पर, सदा पूर्ण अरमान।। सत्य धर्म का रूप है, जिसमें हैं भगवान। सच के पथ पर जो चले, उसका हो यशगान।। सत्य दमकता सूर्य-सा, देता जो आलोक। जिससे होता दूर नित, जीवन का हर शोक।। सत्य सुहाता है जिसे, उसकी हो जयकार। कभी सत्य हारे नहीं, होकर के लाचार।। सत्य एक है साधना, साधक हरदम वीर। वक़्त संग परिणाम है, देखो बनकर धीर।। सत्य सनातन मान्यता, सत्य बड़ा इक युद्...
प्रकृति का मौन संदेश
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प्रकृति का मौन संदेश

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** बहुत हुई इस बार तो, मानसून की मार। इंसानों की बस्तियाँ, गईं आज हैं हार।। दिया प्रकृति ने देश को, चोखा इक संदेश। छेड़-छाड़ हो प्रकृति से, तो भोगो आवेश।। बिगड़े किंचित संतुलन, तो होगा आघात। मौन संदेशा प्रकृति का, सौंप रहा जज़्बात।। मानसून की मार का, रहा न कोई छोर। घबराये इंसान सब, पीड़ित हैं घनघोर।। मानसून की मार से, देखो हाहाकार। मेघों ने बेहद किया, हम पर अत्याचार।। मानसून की मार का, व्यापक है आवेग। क्रोधित होकर काल ने, मारी तीखी तेग।। कौन करेगा आज तो, हम सब पर उपकार। मानसून की मार ने, किया हमें लाचार।। हे!ईश्वर तुम रुष्ट हो, हम सबका अपराध। मौन आपकी बात को, किंचित सके न साध।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल...
हिंदी
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मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कोमल है कमनीय भी, शुभ्र भाव रसखान। यशवर्धक मन मोहिनी, हिन्दी सरल सुजान।। भाग्यविधाता देश की, संस्कृति की पहचान देवनागरी लिपि बनी, सकल विश्व की जान।। अधिशासी भाषा मधुर, दिव्य व्याकरण ज्ञान। सागर सी है भव्यता, निर्मल शीतल जान।। सम्मोहित मन को करे, नित गढ़ती प्रतिमान। पावन है यह गंग-सी, माॅंग रही उत्थान।। आलोकित जग को किया, सुंदर हैं उपमान। अलख जगाती प्रेम का, नित्य बढ़ाती शान।। उच्चारण भी शुद्ध है, वंशी की मृदु तान। सद्भावों का सार है, श्रम का है प्रतिदान।। पुष्पों की मकरन्द है, शुभकर्मों की खान। भारत की है अस्मिता, शुभदा का वरदान।। पुत्री संस्कृत वाग्मयी, लौकिक सुधा समान। स्वर प्रवाह है व्यंजना, माँ का स्वर संधान।। दोहा चौपाई लिखें, तुलसी से विद्वान। इसकी शक्ति अपार पर, करते हम अभिम...
गुरु महिमा (दोहे)
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गुरु महिमा (दोहे)

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** गुरु ओजस्वी दीप है, तेज है चहुं ओर। अपने अनगढ़ शिष्य का, सृजन करें हर छौर। विद्यास्थली मंदिर है, गुरु मेरे भगवान। करता नित मैं वंदना, हृदय बसे सम्मान। अभिनन्दन गुरु देव का, है सादर सत्कार। अनुग्रह मिलें शिष्य को, करते नित उपकार। नित गुरु शिष्य भला करे, नव चरित्र सृजनकार। संस्कार की विशेषता, नव वृत्तिक मूर्तिकार। गुरु विशेष की खान है, गुरु कोमल अहसास। गुरु अज्ञान विनाशक है, गुरु नायक विश्वास। गुरु संस्कृति की रोशनी, गुरु विशेषण विशाल। सद् गुरु सा सगा नहीं, गुरु अनमोल मिशाल। गुरु सहज सरल जीवनी, गुरु जग तारणहार। गुरु संबल है शिष्य के, गुरु नव पालनहार। गुरु वितान नव ज्ञान के, गुरु पावन परिवेश। गुरु ओज चरित्र भव्य है, आप मूर्ति अनिमेश। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार...
भाई-बहन का प्यार
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भाई-बहन का प्यार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी की फैली महक, बँध जाने के बाद। रक्षा की थी बात जो, फिर से वह आबाद।। नेहभाव पुलकित हुए, पुष्पित है अनुराग। टीका, रोली, आरती, सचमुच में बेदाग।। मीलों चलकर आ गया, इक पल में तो पर्व। संस्कार मुस्का रहे, मूल्य कर रहे गर्व।। अनुबंधों में हैं बँधे, रिश्तों के आयाम। मानो तो बस हैं यहीं, पूरे चारों धाम।। सावन तो रिमझिम झरे, बाँट रहा अहसास। बहना आ पाई नहीं, भैया हुआ उदास।। एक लिफाफा बन गया, आज हर्ष-उल्लास। आएगा कब डाकिया, टूट रही है आस।। भागदौड़ बस है बची, केवल सुबहोशाम। धागे ने सबको दिया, नवल एक पैग़ाम।। खुशियों के पर्चे बँटे, ले धागों का नाम। बचपन है अब तो युवा, यादें करें सलाम।। दीप जला अपनत्व का, सम्बंधों के नेग। भावों का अर्पण "शरद", आशीषों का वेग।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म...
श्रीकृष्णावतार
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श्रीकृष्णावतार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** कृष्ण जन्मदिन मांगलिक, एक सुखद उपहार। बिखरा सारे विश्व में, गहन सत्य का सार।। कृष्ण जन्म दिन दे खुशी, सौंपे हमको धर्म। देवपुरुष सिखला गए, करना सबको कर्म।। कृष्ण जन्मदिन रच रहा, गोकुल में उल्लास। जिसने सबको सीख दी, रखना हर पल आस।। कृष्ण जन्मदिन सत्य का, बना एक उद्घोष। कंस हनन कर हर लिया, कान्हा ने सब दोष।। कृष्ण जन्मदिन कह रहा, चलो सत्य की राह। नहीं धर्मच्युत हो कभी, तभी बनोगे शाह।। कृष्ण जन्मदिन मति रचे, देता व्यापक न्याय। है दुष्टों पर वार जो, रचे नवल अध्याय।। कृष्ण जन्मदिन पूज्य है, वंदन का है पाठ। बालरूप में चेतना, निश्छल मन का ठाठ।। कृष्ण जन्मदिन रच रहा, राधाजी से नेह। अंतर का आवेग बस, दूर सदा ही देह।। कृष्ण जन्मदिन सदफलित, गीता का नव सार। उजियारे की वंदना, अँधियारे की हार।। कृष्ण ...
सावन
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सावन

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** सावन उमड़ी बादली, बरस रही घनघोर। कोयल कजरी गा रही, नाच रहे वन मोर। रिमझिम पड़ी फुहार से, हुई सुनहरी भोर। खुशियों की बरसात में, हलधर करता शोर। तीज त्यौहार बादली, सावन की बरसात। मेघ चमकती बीजुरी, हरित अमावस रात। काली घटा गगन चढ़ी, गरज गरज कर घोर। सतरंगी सा लहरिया, इंद्र धनुष का छोर। मेघ मल्लिका रूपसी, सजती सौ सौ बार। हरी चुनरिया ओढ़कर, धरा करे श्रृंगार। चातक श्यामा झूलते, मदन तरु की शाख। मीठी टेर दादुर की, पपिया प्यारी वाख। मादक यौवन हरितिमा, निर्मल बहता नीर। हुआ सुगंधित मलयगिरि, शीतल मंद समीर। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
नागपंचमी
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नागपंचमी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नागपंचमी पर्व का, सुंदर बहुत विधान। संस्कारों की देह में, नैतिकता के प्रान।। नाग पूजकर पुण्य ले, खुश होते हैं ईश। मिले प्रकृति का साथ नित, मिलता है आशीष।। नाग जीव सादा-सरल, जीने का अधिकार। जब तक छेड़ो मत उसे, देता नहिं फुंफकार।। दूध पिला पूजन करो, वंदित हो अब नाग। सब जीवों से हम रखें, नित चोखा अनुराग।। पान-बेल का मान कर, चौरसिया दिन ख़ास। गहो पान उपयोगिता, ले चोखे अहसास।। बीन बजे मौसम बने, खुश होता परिवेश। नाग-कृपा से नित रहे, परे सतत् ग़म, क्लेश।। हलुआ-पूरी कर ग्रहण, गाओ मंगल गीत। नागपंचमी आपको, देती है नित जीत।। हिन्दू का तो पर्व यह, रखता बहुत विवेक। पूजन को अब साधकर, बने मनुज तुम नेक।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिह...
दुर्योधन का हास
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दुर्योधन का हास

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हुआ महाभारत तभी, वजह बहुत थी खास। द्रुपदसुता ने था किया, दुर्योधन का हास।। कभी न करना और का, तुम किंचित उपहास। वजह बनेगी हो कलह, टूटेगा विश्वास।। दुर्योधन का अति कपट, झगड़ा लाया ख़ूब। वजह यही थी युद्ध की, सूखी नेहिल दूब।। पाप वजह बनता सदा, रच देता संताप। अन्यायी आवेग को, कौन सकेगा माप।। रीति, नीति से गति मिले, बनते ये शुभ नेग। झूठ बने नित ही वजह, चले युद्ध की तेग।। किया शकुनि ने छल बहुत, हुआ इसलिए युद्ध। यही वजह टकराव की, हुए कृष्ण भी क्रुद्ध।। झूठ वजह अवसान की, अपनाओ नित साँच। जो सत् के पथ नित चलें, उन पर कभी न आँच।। नित अधर्म बनकर वजह, रच देता है शोक। इसीलिए तो धर्म नित, देता हमको देता रोक।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए ...
हरदम पिता महान
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हरदम पिता महान

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिमगिरि जैसे भव्य हैं, रहते सीना तान। वेदों ने भी तो कहा, हरदम पिता महान।। पिता उच्च आकाश से, संतानों के ईश। जब तक जीवित हैं पिता, कभी न झुकता शीश।। सुख-दुख में अविचल रहें, आँसू का है त्याग। जेब भरी खाली रहे, पर हाँ से अनुराग।। पिता रूप संघर्ष का, संरक्षक का वेग। कैसे भी हालात हों, पिता मांगलिक नेग।। बुरी नज़र पर मार हैं, हर संकट पर वार। पिता दिवाकर से लगें, फैलाते उजियार।। नेह भरे रहते पिता, दिखते सदा कठोर। संतानों का भाग्य है, नाचे मन का मोर।। पिता सुरीला राग हैं, भजन, आरती गान। जब तक जीवित हैं पिता, संतानों में जान।। एक दिवस केवल नहीं, युगों-युगों सम्मान। पिता करें संतान के, पूरे सब अरमान।। पिता प्रेम का नाम है, पिता नाम कर्तव्य। सकल जगत में आज तो, पितु गाथा है श्रव्य।। पितु को खोना...
ससुराल के बीते दिन
दोहा, हास्य

ससुराल के बीते दिन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** स्वर्णिम युग ससुराल का, याद करे दामाद। पर अब कुछ भी है नहीं, केवल है अवसाद।। ख़ातिरदारी है नहीं, अब सूना मैदान। बिलख रहे दामाद जी, रुतबे का अवसान।। स्वर्णिम युग पहले रहा, खाते थे पकवान। अब तो सारे मिटे गए, ससुराली अरमान।। कितना प्यारी थी कभी, जिनको तो ससुराल। उनको दुख अब सालता, अब वह गुज़रा काल।। अब ख़ातिरदारी नहीं, शेष बची है याद। अब मुरझाने लगे गया, पौधा तो बिन खाद।। स्वर्णिम युग ससुराल का, केवल है इतिहास। दर्द घिरे दामाद जी, जीते अब बिन आस।। पहले हलुआ, पूड़ियाँ, रबड़ी, काजू, खीर। अब तो केवल हाथ है, कसक, कष्ट सँग पीर।। स्वर्णिम युग ससुराल का, शायद आता लौट। जैसा पहले दौर था, वैसा हो फिर हौट।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए ...
आतंक और विनाश
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आतंक और विनाश

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** आतंक मिटाता ज़िन्दगी, करता सदा विनाश, यह समझें हैवान यदि, तो बदलेगा मौसम। ख़ूनखराबा कब तक होगा, बतलाओ तुम मुझको, पहलगाम जैसी जगहों पर होगा कब तक मातम।। जिसने तुमको भड़काया है, समझो उनकी करनी, मूर्ख बनाकर वे यूँ सबको, करें मौत का खेला। नहीं जान लेने में हिचकें, चिंतन है शैतानी, बरबादी भाती है जिनको, करते रोज़ झमेला।। लानत है आतंक कर्म पर, मौत का जो उत्सव है, कब तक लाशें और गिरेगीं, कब तक सब रोएंगे। असुर मनुज की बस्ती में हों, तो कैसे सुख-चैना, कैसे हम सब शांत चित्त हो, फिर तो सो पाएंगे।। यही चेतना, संदेशा है, अविलम्ब जागना होगा, अब तो इस आतंक को हमको, अभी रोकना होगा। यही जागरण, वक़्त कह रहा, आतंक की अब इतिश्री हो, नगर-गांव में हर्ष पले अब, शौर्य रोपना होगा।। आतंक मानसिकता हैवानी, म...
शब्दों का मेला
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शब्दों का मेला

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** शब्द-शब्द है चेतना, शब्द-शब्द झंकार। मिले सृष्टि को जागरण, शब्द रचें आकार।। शब्द विश्व का रूप है, शब्द बने उजियार। शब्द उच्च उर्जा लिए, मेटे हर अँधियार।। शब्द ब्रम्ह हैं, ईश हैं, शब्द सकल ब्रम्हांड। शब्द रचें अध्याय नित, मानस के सब कांड।। शब्द तत्व हैं, सार हैं, शब्द सृजन अभिराम। शब्द सतत गतिशील हैं, सचमुच हैं अविराम।। शब्द नाद, सुर, ताल हैं, शब्द प्रीति, अनुराग। शब्द गान, पूजन-भजन, शब्द दाह हैं, आग।। शब्द नेह हैं, प्यार हैं, शब्द गहन अभिसार। शब्द युगों तक गूँजते, बनकर के आसार।। शब्द भाव, अभिव्यक्ति हैं, शब्द नवल आयाम। सरिता के आवेग हैं, शब्द देवता-धाम।। शब्द मनुजता, वंदना, शब्द गीत, नवगीत। शब्द वाक्य के संग में, बन जाते मनमीत।। शब्द खगों के स्वर बनें, हर अधरों के राग शब्दों में संवाद है,...
मन
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मन

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मन ही मन में जोड़ ली, मन से मन का तार। मनका कान्हा नाम का, मन में जपूँ हजार।।१।। मन-मंदिर में श्याम है, मन मे है विश्वास। दूजा अब आये नही, मेरे मन के पास।।२।। मन को मेरे भा गया, मनमोहन की प्रीत। मधुर-मधुर मुस्कान से, मन मोहे मनमीत।।३।। मन जीती मन हार के, मिली प्रेम सौगात। कहे कृष्ण से राधिका, समझो मन की बात।।४।। मन मेरा माने नही, समझाऊँ हर बार। मन अपने मन की करे, मानी मैं तो हार।।५।। मन चंचल होवे सदा, दौड़े पवन समान। जल थल नभ में घूमता, बैठ एक ही स्थान।।६।। मन मैला मत कीजिए, घटता निज सम्मान। काँटे बोये आप तो, मिले वही फिर जान।।७।। परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक ह...
हनुमत-वंदना
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हनुमत-वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** संकटमोचन देव हैं, कहते हम हनुमान। असुर मारते, धर्म हित, जय हो दयानिधान।। सदा राममय ही रहें, पावन हैं हनुमान। जो उनके चरणों पड़े, उसकी रखते आन।। रुद्र अंश धारण किया, राम हितैषी तात। जय-जय हो हनुमान जी, देव सदा सौगात।। भूत-पिशाचों पर कहर, हर संकट पर मार। जहाँ रहें हनुमानजी, वहाँ पले उजियार।। वायु पुत्र शत्-शत् नमन्, विनती बारम्बार। करना मुझ पर तुम दया, करो मुझे भव पार।। लाल अंजना तुम सदा, रखना सिर पर हाथ। कैसी भी विपदा पड़े, नहीं छोड़ना साथ।। हनुमत तुम बलधाम हो, पावन और महान। सारा जग तुम पर करे, हे भगवन् अभिमान।। राम काज करके बने, रामदुलारे आप। वेग, शौर्य, प्रतिभा, समझ, कौन सकेगा माप।। कलियुग के तुम आसरे, परमबली वरदान। ला दो इस युग में सुखद, फिर से नया विहान।। "शरद" करे विनती सतत्, वंदन ...
महावीर स्वामी
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महावीर स्वामी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** वर्धमान महावीर को, सौ-सौ बार प्रणाम। जैन धर्म का कर सृजन, रचे नवल आयाम।। तीर्थंकर भगवान ने, फैलाया आलोक। परे कर दिया विश्व से, पल में सारा शोक।। महावीर ने जीतकर, मन के सारे भाव। जीत इंद्रियाँ पा लिया, संयम का नव ताव।। कुंडग्राम का वह युवा, बना धर्म दिनमान। रीति-नीति को दे गया, वह इक चोखी आन।। वर्धमान साधक बने, और जगत का मान। जैनधर्म के ज्ञान से, किया मनुज-कल्याण।। पंच महाव्रत धारकर, दिया जगत को सार। करुणा, शुचिता भेंटकर, हमको सौंपा प्यार।। जैन धर्म तो दिव्य है, सिखा रहा सत्कर्म। धार अहिंसा हम रखें, कोमलता का मर्म।। तीर्थंकर चोखे सदा, धर्म प्रवर्तक संत। अपने युग से कर गए, अधम काम का अंत।। मातु त्रिशला धन्य हैं, दिया अनोखा लाल। जो करके ही गया, सच में बहुत कमाल।। आओ ! हम सत् मार्ग के, बने...
सरहद पर होली
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सरहद पर होली

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सरहद पर होली हुई, रक्षा की हुंकार। बहे ख़ून पर देश की, करते हैं जयकार।। खेलें सारे देश के, लोग आज तो रंग। सरहद पर है शौर्य बस, घुसपैठी से जंग।। सरहद पर सैनिक डटे, लेकर शौर्य अबीर। रँग-गुलाल बलिदान का, खेलें सारे वीर।। वतनपरस्ती हँस रही, सम्मानित है तेज। सरहद पर हर वीर है, क़ुर्बानी लबरेज।। याद आ रहे दोस्त सब, यादों में है गाँव। होली पर सरहद डटे, बंकर की है छाँव।। भेजो मंगलकामना, हर सैनिक की ओर। दूरी है परिवार से, होली है बिन शोर।। बंदूकों की है गरज, शौर्य गा रहा फाग। बम्म-धमाके, टेंक ही, होली का अनुराग।। इक-दूजे के माथे पर, मल दी नेह-गुलाल। सरहद पर सैनिक सदा, करते शौर।यह कमाल।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट ...
युवा दिवस
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युवा दिवस

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** स्वामी जी थे युगपुरुष, संस्कारों की शान। जो कायम करके गए, गति-मति के सँग आन।। विश्व सभा में छा गए, फैलाया आलोक। मूल्य सनातन की चमक, कौन सकेगा रोक।। युवा चेतना की दमक, युगों रहे बन इत्र। समझ रहे हैं हम सभी, बनकर मानव मित्र।। आज जयंती पर दिखा, फिर से नवल विवेक। आओ! हम निश्चित बनें, अब से मानव नेक।। सकल विश्व में गूँजता, स्वामी जी का नाम। बने चेतना के पुरुष, मौलिकता के धाम।। मूल्य सनातन श्रेष्ठतम, हुआ वेग में सत्य। स्वामी जी का यश हुआ, मानो हो आदित्य।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास) सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय प्रका...
नव वर्ष
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नव वर्ष

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** केसर रोली अक्षत से, सजा लिया है थाल। तिलक करूं में हर्ष से, नये साल के भाल। अभिनंदन नव वर्ष का, नव उमंग के साथ। ले नया संकल्प सभी, आज उठा कर हाथ। स्वर्णिम उषा की किरणें, चमक रही है लाल। मंगल गायन हो रहे, देख शुभ घड़ी शुभ साल। नव किरण नव उजास से, पोषित हो नव भोर। जीव जगत आनंद मय, हर्षित हो चहुंओर। जीवन में यश खुब मिलें, मंगल मय अति हर्ष। मन आंगन में सब करें, अभिनंदन नव वर्ष। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के सा...
पत्थर की महिमा
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पत्थर की महिमा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** रहना पत्थर बन नहीं, बन जाना तुम मोम। मानवता को धारकर, पुलकित कर हर रोम।। पत्थर दिल होते जटिल, खो देते हैं भाव। उनमें बचता ही नहीं, मानवता प्रति ताव।। पत्थर की तासीर है, रहना नित्य कठोर। करुणा बिन मौसम सदा, हो जाता घनघोर।। पत्थर जब सिर पर पड़े, बहने लगता ख़ून। दर्द बढ़ाता नित्य ही, पीड़ा देता दून।। पर पत्थर हो राह में, लतियाते सब रोज़। पत्थर की अवमानना, का उपाय लो खोज।। पर पत्थर पर छैनियों, के होते हैं वार। बन प्रतिमा वह पूज्य हो, फैलाता उजियार।। सीमा पर प्रहरी बनो, पत्थर बनकर आज। करो शहादत शान से, हर उर पर हो राज।। पत्थर से बनते भवन, योगदान का मान। पत्थर से बनते किले, रखती चोखी आन।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (म...
प्रेम मधुर अहसास है
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प्रेम मधुर अहसास है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम मधुर अहसास है, प्रेम प्रखर विश्वास। प्रेम मधुर इक भावना, प्रेम लबों पर हास।। प्रेम ह्रदय की चेतना, प्रेम लगे आलोक। प्रेम रचे नित हर्ष को, बना प्रेम से लोक।। प्रेम राधिका-कृष्ण है, राँझा है,अरु हीर। प्रेम मिलन है, प्रीति है, प्रेम हरे सब पीर।। प्रेम गीत, लय, ताल है, प्रेम सदा अनुराग। प्रेम नहीं हो एक का, प्रेम सदा सहभाग।। खिली धूप है प्रेम तो, प्रेम सुहानी छाँव। पावन करता प्रेम नित, नगर, बस्तियाँ,गाँव।। प्रेम दिलों का भाव है, प्रेम खिलाते फूल। मिले प्रेम तो राह के, हट जाते सब शूल।। प्रेम साँस है, आस है, प्रेम लगे आलोक। प्रेम बिना सूना सदा, सचमुच में यह लोक।। प्रेम खुशी है, हर्ष है, प्रेम सदा शुभगान। प्रेम बिना नीरस लगे, निश्चित आज जहान।। प्रेम ईश, अल्लाह है, गीता और कुरान। प्रेम बिना...
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उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मन में चिंतन कीजिए, इसका कितना मोल। व्यर्थ न जानें दीजिए, समय बड़ा अनमोल।। आगत को सिर धारिए, सुख-दुख जो भी होय। समय-समय का फेर है, आज हँसे कल रोय ।। समय आज का कल बनें, कल बन जाये आज। पहिया इसका चल रहा, यही काल सरताज।। वापस ये आये नहीं, एक बार बित जाय। मुठ्ठी रेत फिसल रही, हाथ मले रह जाय।। अविरल ये धारा बहे, कोई रोक न पाय। अगर समय ठहरा रहे, तो सब कुछ बह जाय।। समय को गुरू जानिए, देता जीवन सीख। कभी नीम सा स्वाद है, कभी मिठाये ईख।। राजा रंक बना दिये, रंक बने धनवान। मान समय का कीजिए, कहते संत-सुजान।। परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
विराम
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विराम

हेमलता भारद्वाज "डाली" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जो विराम करते नहीं, योगी वही महान। नित विकास के दिन वही, होते स्वर्ण समान।। मन उदास हो तो कभी, करना नहीं विराम। मन पसंद धुन को सुने, देख नयनाभिराम।। जो पथिक लेता कभी, पथ में नहीं विराम। तो सुलक्ष्य के साथ ही, मिले सफलता धाम।। जो विराम कर लिया कभी, होता वहीं प्रमाद। फिर विकास होता नहीं, मिलता नहीं प्रसाद।। परिचय : हेमलता भारद्वाज "डाली" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) सम्प्रति : योग प्रशिक्षिका, कवियित्री एवं लेखिका रुचि : संगीत, नृत्य, खेल, चित्रकारी और लेख कविताएँ लिखना। साहित्यिक : "वर्णावली छंदमय ग्रंथ"- (साझा संकलन), आगामी साझा संकलन- "छंदमय वृहद व्याकरण", आलेख एवं कविताएँ अखबारों तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...