मेरा गाँव
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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गाँव बहुत नेहिल लगे, लगता नित अभिराम।
सब कुछ प्यारा है वहाँ, सृष्टि-चक्र अविराम।।
सुंदरता है गाँव में, फलता है मधुमास।
जी भर देखो जो इसे, तो हर ग़म का नाश।।
सुंदर हैं नदियाँ सभी, भाता पर्वतराज।
वन-उपवन मोहित करें, दिल खुश होता आज।।
हरियाली है गाँव में, गूँजें मंगलगान।
प्रकृति सदा ही कर रही, गाँवों का यशगान।।
खेतों में धन-धान्य है, लगते मस्त किसान।
हैं लहरातीं बालियाँ, करें सुरक्षित शान।।
कभी शीत, आतप कभी, पावस का है दौर।
नयन खोल देखो ज़रा, करो प्रकृति पर गौर।।
खग चहकें, दौड़ें हिरण, कूके कोयल, मोर।
प्रकृति-शिल्प मन-मोहता, किंचित भी ना शोर।।
जीवन हर्षाने लगा, पा मीठा अहसास।
प्रकृति-प्रांगण में सदा, स्वर्गिक सुख-आभास।।
जीवन को नित दे रही, प्रकृति सतत उल्लास।
हर पल ऐसा लग रहा, गाँव सदा ही ख़...