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ग़ज़ल

साथ अपने …
ग़ज़ल

साथ अपने …

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ अपने क़िताब रखते हो। फ़लसफ़ा लाज़वाब रखते हो। रोशनी की तुम्हें कमी कैसी, पास जब माहताब रखते हो । है यहाँ और है वहाँ कितना, सब जुबाँ पर हिसाब रखते हो। हो जहाँ तुम समाँ महक जाए, साँस अपनी गुलाब रखते हो। हम इसी बात के रहे क़ाइल, दोस्ती बेहिसाब रखते हो। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
समंदर को खल गई
ग़ज़ल

समंदर को खल गई

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** इतनी सी बात थी जो समंदर को खल गई। काग़ज़ की कश्ती कैसे भँवर से निकल गई।। पहले ये पीलापन तो नहीं था गुलाब में। लगता है अब ज़मीन की मिट्टी बदल गई।। अब पूरे तीस दिन की रियायत मिली उसे। फिर मेरी बात अगले महीने पे टल गई।। अशआर में बचे हैं मुहब्बत के हादसे। वरना मेरी कहानी मेरे साथ जल गई।। कल तक तो बेगुनाह समझते थे सब मुझे। क्यों राय आज सारे जहाँ की बदल गई।। मयख़ाने की डगर से जो मेरा गुज़र हुआ। वाइज़ की बात रह गई साक़ी की चल गई।। रंजो अलम हैं साथ ज़माने हुए "शलभ"। अब तो ये ज़िन्दगी इसी साँचे में ढल गई।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहि...
तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा
ग़ज़ल

तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ********************           २१२ २१२ २१२ २१२ तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा दिल तुझे ही न पाए तो क्या फायदा बाग़बाँ के लिए लाख कलियाँ खिलीं लूट भँवरा ले जाए तो क्या फायदा आपने प्रेम से मुझको देखा नहीं सारी दुनिया बुलाए तो क्या फायदा मैं तो .मसरूर तेरी मुहब्बत में हूँ तू न रग़बत दिखाए तो क्या फायदा देश बरबाद करते रहे लोग जो उन पे हीरे लुटाए तो क्या फायदा आज कातिब ही ग़ालिब हुआ है यहाँ सत्य लिखना न आए तो क्या फायदा ख़ूब साक़िब ने देखा मुझे ग़ौर से फिर भी रजनी न भाए तो क्या फायदा शब्दार्थ मसरूर- प्रसन्न रग़बत- दिलचस्पी कातिब- लिखने वाला ग़ालिब- छाया हुआ साक़िब- चमकता तारा परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व...
थोड़ा ख़ुद पर भी इठलाना बाकी है।
ग़ज़ल

थोड़ा ख़ुद पर भी इठलाना बाकी है।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** रस्ते - रस्ते दीप जलाना बाकी है। अँधियारों का डर झुठलाना बाकी है। सुनकर जो भी सपनों जैसी लगती है, उन बातों से मन बहलाना बाकी है। नए दौर की चढ़ती -बढ़ती शिक्षा में, सच्चाई का गुर सिखलाना बाकी है। बूझ रहें हैं लोग यहाँ सबके के चेहरे, उनको अपना घर दिखलाना बाकी है। सबकी शान, बढ़ाई वाले मौकों पर थोड़ा ख़ुद पर भी इठलाना बाकी है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि...
हमें भी वही राह दिखला रही है।
ग़ज़ल

हमें भी वही राह दिखला रही है।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हमें भी वही राह दिखला रही है। हवा जिस दिशा में चली जा रही है। जो आदत नहीं है निभाने की हममें, रिवायत वही बात समझा रही है। पता ही नहीं है किसी को हक़ीक़त, भुलाओं में दुनियाँ पली आ रही है। रखें मान किसका, रहें साथ किसके, सदाएँ, सदाओं को भरमा रही है। करे पार कैसे वो दरिया-समुन्दर, जो कश्ती हवाओं से टकरा रही है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
घिरी मझधार में नैया
ग़ज़ल

घिरी मझधार में नैया

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ घिरी मझधार में नैया मुसीबत ने भी मारा है सुनो हे मातु नवदुर्गा तुम्हें मैंने पुकारा है सजाऊँ माँग में बेंदी दमकती नाक में नथुनी चुनर है लाल तेरी माँ सितारों से सँवारा है गले में हार है शोभित लिए हो हाथ में खप्पर बजे जब पाँव में पायल लगे सुंदर नज़ारा है बड़ा हूँ पातकी बालक सदा करता हूँ नादानी करो उद्धार माँ अब आपका ही इक सहारा है तुम्हारे ही सहारे है भवानी अब मेरी कश्ती करो अब पार रजनी को नहीं दिखता किनारा है परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाश...
दर्दे-ऐ-दिल
ग़ज़ल

दर्दे-ऐ-दिल

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** दर्दे-ऐ-दिल, किस को सुनाऊँ मैं गुजर रहे है दिन, कैसे बताऊँ मैं, तन्हाइयों से तंग आ गया जनाब, हर बात, अब कैसे समझाऊँ मैं। मजे लोग लेगे ये सोच चुप रहता, खुद का दिल खुद से बहलाऊँ मैं। दुनिया मे मुझे गम, सभी ने दिऐ है इल्जाम अब ये किस पे लगाऊँ मैं। कुरेद रहे है जख़्म जो बारबार मेरे बेरहम जख्मो को कैसे दिखाऊँ मैं। खुश है देख मुसीबत मे रक़ीब मेरे उनसे बताऐं कैसे प्यार निभाऊँ मैं। शब्दार्थ :- रक़ीब :- प्रतिद्वंद्वी परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) कार्य : राजकीय सेवा, पद : वरिष्ठ तकनीक सहायक, सरदार पटेल मेडिकल कोलेज, बीकानेर। रुचि : लेखन, आकाशवाणी वार्ताकार, सम्मान :...
वक्त का इम्तिहान
ग़ज़ल

वक्त का इम्तिहान

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वक्त का इम्तिहान होता है कितना गहरा निशान होता है आंधियों में बचा कहां है कुछ वाकया ए बयान होता है मुद्दतों बाद इतनी शोहरत हो कोई इक खानदान होता है मुफलिसी में न छत न दरवाजा ना कोई आसमान होता है अपनें बच्चों की परवरिश खातिर बाप तो बागवान होता है परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में अभिरुचि विशेष : आध्यात्मिक प्रवक्ता एस्ट्रोलॉजर। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्...
बैठती है
ग़ज़ल

बैठती है

डॉ. जियाउर रहमान जाफरी गया, (बिहार) ******************** न यों फूलों पे सुर्खी बैठती है तुम्हारे लब पे तितली बैठती है फिराया था कभी जो उंगलियां मैं ना अब बालों में कंघी बैठती है जो तुम पैवस्त हमे में हो गए हो दिसंबर की भी सर्दी बैठती है मुझे बाहर से मुश्किल है समझना बहुत अंदर से हल्दी बैठती है ना उस कॉलेज में पढ़ना मुझे है जहां बाहर से लड़की बैठती है परिचय :-  डॉ. जियाउर रहमान जाफरी निवासी : गया, (बिहार) वर्तमान में : सहायक प्रोफेसर हिन्दी- स्नातकोत्तर हिंदी विभाग, मिर्जा गालिब कॉलेज गया, बिहार सम्प्रति : हिन्दी से पीएचडी, नेट और पत्रकारिता, आलोचना, बाल कविता और ग़ज़ल की कुल आठ किताबें प्रकाशित, हिन्दी ग़ज़ल के जाने माने आलोचक, देश भर से सम्मान। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
चुप-चुप सी शहनाई क्यों है?
ग़ज़ल

चुप-चुप सी शहनाई क्यों है?

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चुप-चुप सी शहनाई क्यों है? महफ़िल में तन्हाई क्यों है? रात से पहले ही जिस्मों में, नींद चढ़ी अँगड़ाई क्यों है ? सोच हमारी एक सही पर, बात कहीं टकराई क्यों है? झूठों को आसानी सारी, मुश्किल में सच्चाई क्यों है? जो है अपने मन के मौजी, फ़िर उनकी रुसवाई क्यों है? अच्छे दिन वालों पर भारी, आख़िर ये महँगाई क्यों है? दावे दारी है असली की, नकली से भरपाई क्यों है? कुछ तो हो नम रहने वाली, सब आँखें पथराई क्यों है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : ...
दरिया से गहराई पूछी
ग़ज़ल

दरिया से गहराई पूछी

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** दरिया से गहराई पूछी। कश्ती से उतराई पूछी। मन में दर्द जगाने वाले, गीतों से तन्हाई पूछी। बूंदे जब बरसी आहिस्ता, बादल से ऊँचाई पूछी। दूर जो चहरा पढ़ न पाई, आँखों से बीनाई पूछी। जाल बिछाती मकड़ी से फ़न, क़ुदरत से दानाई पूछी। हीर से सब उसकी रानाई, राँझे से शैदाई पूछी। अक़बर ने हर बूझे हल पर, बीरबल से चतुराई पूछी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
निज उदर की सुवास खोजने
ग़ज़ल

निज उदर की सुवास खोजने

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** निज उदर की सुवास खोजने जाने कितने मृग तड़पे होंगे सुरीली सी ग़ज़ल कहने वाले दर्द से कितनी बार मरे होंगे जो चिराग हवाओं से ना डरे हैं निस्सन्देह उन्ही से दूर अंधेरे होंगे वो जो तूफानों में कश्ती डाले हैं या हैं मजबूर या सिरफिरे होंगे टिके हैं अंधेरों के सामने दीपक सूरज तलक उन्हीं के चर्चे होंगे तमस ने बेशक खुदकुशी की होगी जहां जुगनू चमकते दिखे होंगे!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां...
बन्द आँखों में ख़्वाब जैसा है
ग़ज़ल

बन्द आँखों में ख़्वाब जैसा है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** बन्द आँखों में ख़्वाब जैसा है। जो नज़ारा सराब जैसा है। भाव चेहरे के बूझने वालों, क़ायदा ये क़िताब जैसा है। नाम उसका बड़ा नहीं लेक़िन, काम उसका नवाब जैसा है। शर्म से हाथ मुँह पे रख लेना, ये तरीक़ा नक़ाब जैसा है । दूर होकर भी हमको भाता है, शख़्श वो माहताब जैसा है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्र...
सबसे अपनापन तो होली
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सबसे अपनापन तो होली

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सबसे अपनापन तो होली। तन से अच्छा मन तो होली। आज हमारे पास सभी वो, सम्बन्धों का धन तो होली। सबके चहरे छाएं खुशियाँ, जीने का हो फ़न तो होली। खेलें रंग, चले पिचकारी, भीगे सबके तन तो होली। नाम, बड़प्पन, भेद भुलाकर, मिल जाए जन-जन तो होली। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...
उनकी तो कहने भर की
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उनकी तो कहने भर की

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** उनकी तो कहने भर की। है रखवाली ऊपर की। बाहर का सब दिखलावा, है सच्चाई भीतर की। अगला, अगले पर भारी, जीत यहाँ है अवसर की। आँखों से समझी हमनें, सब गहराई सागर की। ग़म में भी वो न पिघली, आँखें जो है पत्थर की। आपस के रगड़े - झगड़े, राम-कहानी घर-घर की। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करव...
वफ़ा को आजमाना चाहिए था।
ग़ज़ल

वफ़ा को आजमाना चाहिए था।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** अग़र रिश्ता निभाना चाहिए था। वफ़ा को आजमाना चाहिए था। हमेशा जो तुम्हारे दरमियाँ था, उसे अपना बनाना चाहिए था। चहकते पंछियों से सुर मिलाने, हवा को गुनगुनाना चाहिए था। छुपाने हाल फ़िर अपने सभी से, तुम्हें कोई बहाना चाहिए था। नई बातों को लिख पाने से पहले, गई बातें मिटाना चाहिए था। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...
तबाही का मंजर
ग़ज़ल

तबाही का मंजर

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** तबाही का सारा मंजर, देख रहे हो ना, तुम बिखरते हुऐ ये घर, देख रहे हो ना। कितने अरमां देखे होंगें यहां की जहाँ ने बारुद का ऐसा होता डर, देख रहे हो ना। जिन्हें शौख नही है, चैन-ओ-अमन का, उन्हे कहो युद्ध का असर, देख रहे हो ना। कैसे जिंदगी की भीख मांग रहे है लोग, क्या हो रहा है ये खबर, देख रहे हो ना। यही होता है गुमां बढ़ती हुई ताकत का, गुमां मे दहर रही है मर, देख रहे हो ना। इंसानियत बची है कहीं तो कहो "जैदि" मत करो जंग गिरे ये सर, देख रहे हो ना। शब्दार्थ :- दहर :- दुनिया परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) कार्य : राजकीय सेवा, पद : वरिष्ठ तकनीक सहायक, सरदार पटेल मेडिकल...
हम हाल हमारे हैं।
ग़ज़ल

हम हाल हमारे हैं।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सब लोग समझते हैं हम हाल हमारे हैं। हालात मग़र सबके कुदरत के सहारे हैं। मिलते हैं अपनों में कुछ गैर यहाँ लेक़िन, गैरों में वहाँ उतने कुछ लोग हमारे हैं । कश्ती की हिदायत है मझधार से डर रखना, दरिया से गुजरने को काफ़ी ये किनारे हैं । लगते हैं सुहाने सब दिखते हैं जो दूरी से, आँखों के लिए कितने धोखें वो नज़ारे हैं । है राह अग़र मुश्किल चलकर तो ज़रा देखो, हर राह पे मंज़िल को पाने के इशारे हैं । परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रच...
चुनावी दीवाने
ग़ज़ल, गीतिका

चुनावी दीवाने

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** देखा जिसको, वो चुनावी दीवाने लगे, वे छोड़ धन्धा, गालों को बजाने लगे। देश-दुनिया का जिनको पता ही नहीं परिणाम, हार-जीत का, सुनाने लगे। घोषणाएं क्या रिश्वत का ऑफर नहीं एक हम हैं, लार अपनी टपकाने लगे। व्यवस्था में ये दल भी विवश हैं सभी झुन-झुने, अपने-अपने, दिखाने लगे। हम देश-राष्ट्र का, अन्तर भूले सभी दादा के संग संस्कृति भी जलाने लगे। सत्य को पुस्तकों में किया है दफन झूँठ को ही, कुतर्कों से सजाने लगे। जैसे पशु, मैं धरा पर, विचरता रहा, छोड़ डंडा, मुझको ग्वाले मनाने लगे। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -व...
डर हमारा ठहर नहीं जाता
ग़ज़ल

डर हमारा ठहर नहीं जाता

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** डर हमारा ठहर नहीं जाता। रास्ता जब गुज़र नहीं जाता। राह के बीच में रखा पत्थर, कतरा-कतरा बिखर नहीं जाता। भूख से कुछ निज़ात पा जाएं, जब निवाला उतर नहीं जाता। हम पे अपना असर जताने को, कोई चेहरा सँवर नहीं जाता। मंजिलों का पता लगा लें पर, राह कोई उधर नहीं जाता। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्र...
दिखलाऊँ हर बार तुम्हें
ग़ज़ल

दिखलाऊँ हर बार तुम्हें

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** दिखलाऊँ हर बार तुम्हें। सपनों का संसार तुम्हें। दिल की दौलत वाला हूँ, न्यौछावर सब प्यार तुम्हें। जीत भले ही हो मेरी, हासिल हो उपहार तुम्हें। मुश्किल दरिया, धारों का, आसाँ हो मझधार तुम्हें। खुशियाँ हक में हो उतनी, जितनी हो दरकार तुम्हें। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
वतन बदनाम करने पर हैं
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वतन बदनाम करने पर हैं

जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी अहमदाबाद (गुजरात) ******************** वतन बदनाम करने पर हैं आमादा वतन वाले। बहुत देखा मगर मिलते नहीं हैं अब जतन वाले। बहुत बेबाक अल्फ़ाजो से अब हमको नवाजा है, यही उनका बचा है फ़न जो आजमाते हैं फ़न वाले। जमाना क्या कहेगा हमको, इसकी फ़िक्र है किसको, ये वतन सोने की चिड़िया थी, कभी सोचा पतन वाले। मिटा दो आशियां अपना, जला दो हर शहर अपना, कफ़न बिक जायेंगे उनके, जो बैठे हैं कफ़न वाले। बेजार, अब देखा नहीं जाता है, बर्बादी का ये मंज़र, तुम क्यों वीरान करते हो चमन अपना चमन वाले। परिचय :- जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी निवासी : अहमदाबाद (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपन...
आदमी को आदमी की अब जरुरत नही है
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आदमी को आदमी की अब जरुरत नही है

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** आदमी को आदमी की, अब जरुरत नही है, मिलने की जरा सी किसी को फुरसत नही है। कितनी सीमित सी हो गई है, दुनिया हमारी, सोचे हम जितना उतनी तो खूबसूरत नही है। काम से काम,दिखावा, बस यही सब शेष है, बेजान रिश्तो मे चाह की अब हसरत नही है। पास से गुजर के भी लोग नज़र नही मिलाते, मौकापरस्त लोगो की अच्छी शरारत नही है। बदलना तो हमको ही होगा मुहब्बत के लिऐ, बदलना चाहे अगर तो बड़ी ये कसरत नही है। कोई लाख हम से अदावत रखे "जैदि" मगर, हम चोट पंहुचाऐ ऐसी हमारी फितरत नही है। शब्दार्थ :- हसरत :- इच्छा मौकापरस्त :- मतलबी शरारत :- धृष्टता, पाजीपन अदावत :- दुश्मनी फितरत :- स्वभाव परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : ए...
आन ऊँची
ग़ज़ल

आन ऊँची

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सदा उसकी रही है आन ऊँची। सुनाती है जो बुलबुल तान ऊँची। ज़माना मानता है फ़न उसी का, बना रख्खी है जिसने शान ऊँची। वो पंछी आसमाँ को छू लेगा, रखेगा जो वहाँ उड़ान ऊँची। खरीदी में लगी है भीड़ भारी, खुली है जिस तरफ़ दुकान ऊँची। लगे मुश्किल उसे आसानियों सी, जो रखता है सफ़र में जान ऊँची। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं ...
मुझको आदत नही ठगने की जमाने को
ग़ज़ल

मुझको आदत नही ठगने की जमाने को

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** मुझको आदत नही ठगने की जमाने को, हर रोज निकलता कमर कस कमाने को। साफगोई ने दुश्मन बना लिऐ, चारो ओर, जुबां जब बोले बचता न कुछ छुपाने को। तुम भी कभी कर के देखो मेरी तरहा से, तुमको भी मजा आऐगा सच दिखाने को। माना कि मुश्किल है मगर पिछे न हठना, बढ़ाऐं कदम जब कहे कोई आजमाने को। करते रहे यूं ही गर हम हर बार नादानियां, रहेगा न इक पल पास हमारे पछताने को। दौर-ऐ-गर्दिश आते जरुर सभी के "जैदि" थोड़ा कहीं ज्यादा,छोड़ो न इस पैमाने को। अर्थ :- साफगोई :- स्पष्ट वादिता दौर-ऐ-गर्दिश :- बुरा समय परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) कार्य : राजकीय सेवा, पद : वरिष्ठ तकनीक सहायक, सरदार पटेल...