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ग़ज़ल

सबने टोका हमको
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सबने टोका हमको

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** अक्सर सबने टोका हमको अपने हर हालातों में। आ जाते हैं हम लोगों की चिकनी-चुपड़ी बातों में। बात नहीं है ऐसी कोई जो हमको कमजोर करे, लेकिन हमने मात उठाई आकर कुछ जज्बातों में। तूफ़ानों की चर्चाएँ की समझा मेघों का गर्जन, छतरी ताने निकले फिर भी सावन की बरसातों में। इक जुगनू का पीछा करते रस्ता इतना पार किया, आख़िर भटके फिर भी हम तो चाँद खिली इन रातों में। सबका मज़ा-मज़ा था उसमें ,जाने जिस पर बीत रहीं, हाल हमारा वैसा जैसे दूल्हों का बारातों में। रोज़ यहाँ के लोग हमारी बेबाक़ी पर हँसते हैं, जीभ हमेशा कट जाती है रहकर बत्तीस दाँतों में। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक...
दिखाकर वो छुपाना चाहता है
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दिखाकर वो छुपाना चाहता है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** दिखाकर वो छुपाना चाहता है। मुझे फिर आज़माना चाहता है। निशाने पर सभी के आज में हूँ, कि किस-किस से बचाना चाहता है। घड़ी भर दिल्लगी में साथ रहकर, वो मुझपे हक जताना चाहता है। जताया है मुझे उसने सितमग़र, मुझे फिर से मनाना चाहता है। जो ग़ज़लें पहले गाकर छोड़ दी है, उन्हें फिर गुनगुनाना चाहता है। हवा और मौज के इस इम्तिहाँ में, परिंदा पर उठाना चाहता है। निभाता है जिन्हें वो दूसरों से, उन्हें मुझसे निभाना चाहता है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचन...
तुमईं न्यारे हो गए
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तुमईं न्यारे हो गए

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** बेटा, तुमईं न्यारे हो गए। कैसे भाग, हमारे हो गए। भई सुसरार प्यारी तुम खों, हम तो, बिना सहारे हो गए। हम जानत्ते, सूरज बनहौ, तुम तो, बदरा कारे हो गए। चीर कलेजो मां को डारौ, बेटा, तुम तो आरे हो गए। पाल-पोस कै, बड्डे कर दये, मोड़ा-मोडिन वारे हो गए। पिता तुम्हारे, हते सहारे, बे ई "राम खों प्यारे" हो गए। "प्रेम" खौं बंद, गैर खौं खुल रये, ऐसे कैंसे द्वारे हो गए? परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना,...
साथ मेरी जो राह कर लेता
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साथ मेरी जो राह कर लेता

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ मेरी जो राह कर लेता। मैंभी उससे निभाह कर लेता। मानता मैं नहीं भले अपनी, साथ उसके सलाह कर लेता। गीत कोई जो गुनगुनाता वो, मैं उसे अपनी आह कर लेता। देखकर पास से कहीं उसको, रोज़ कोई गुनाह कर लेता। चाँद जो हाथ में नहीं आता, मैं सितारों की चाह कर लेता। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्...
बीच राह में छोड़कर
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बीच राह में छोड़कर

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** बीच राह में छोड़कर जाने के लिए शुक्रिया दर्द दे दे के मुझको रुलाने के लिए शुक्रिया। मंजिल मुझे मिल ही गई जैसे-तैसे ही सही मेरी राह में कांटे बिछाने के लिए शुक्रिया। समय से सीख रखी थी तैराकी मैंने कभी साजिशन मेरी नाव डुबाने के लिए शुक्रिया। मेरा सबकुछ लुटा हुआ है पहले से ही यहां मेरे घरौंदे में आग लगाने के लिए शुक्रिया। दुख दर्द तुम न देते तो कलम चलती नहीं ग़म-ए-घूँट मुझको पिलाने के लिए शुक्रिया। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि...
बेवजह रोने की वजह बता
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बेवजह रोने की वजह बता

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बेवजह रोने की वजह बता मत छुपा घुटन बता बता जुल्म सहता ही चला गया कोई है जो इसकी खता बता वो जिया सिर्फ तेरी आस में वादा पूरा किया तूने बता बता नाजुक होती है यकीन की डोर तुझ पर किया यकीन खता बता किसी से इतना न खेलिए जनाब मौत पूछने लगे उसका पता बता टूट टूट के बिखरा, धैर्यशील, वो पूछे क्या बचा है बता बता परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
दरदर का बना दिया जिसको
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दरदर का बना दिया जिसको

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** दरदर का बना दिया जिसको, बेघर वो मजा चखाएगा। धरने पर बैठा अब तक जो, हलधर वो मजा चखाएगा।। सर्दी की ठिठुरन से खेला, मौसम का कहर बहुत झेला। टप-टप टपका जो दर्दों का, छप्पर वो मजा चखाएगा।। खुरदरे वक्त के पत्थर ने, नादानो धार जिसे दी है। मिलते ही मौका देखोगे, खंजर वो मजा चखाएगा।। तूफान समेटे रहता है, मत खेलो गहरे दिल से तुम। उफना तो मातम पसरेगा, सागर वो मजा चखाएगा।। बच्चों की खुशियों के आगे, हर बाधा बोनी होती है। जो शपथ उठाई है उसका, हर अक्षर मजा चखाएगा।। जिद की सत्ता ने सड़कों पे, इतिहास लिखा खूँ से अक्सर। घायल दिल को जो चीरगया, नश्तर वो मजा चखाएगा।। अभिमान नहीं अच्छा होता, उड़ने वालों ना भूलो ये। पगड़ी जब जूतों में होगी, मंजर वो मजा चखाएगा।। कमजर्फ जिसे तुमने समझा, पर काट अपाहिज कर डाला। "अनंत" देखना तुम्हें कभी, बेपर वो मजा चखाएगा।...
माँ की दुआएं
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माँ की दुआएं

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** घर से सफर करने निकलना हो। माँ को जहन में रख निकला करो। विघ्न कभी ना आएंगे जिंदगी में। माँ की दुआएं ले विदा हुआ करो।। किस्मत से अगर माँ हम को है नसीब। सोते उठते माँ की जियारत किया करो।। माँ को धन-दौलत की नहीं है तलब। माँ खुश है, माँ को माँ कह पुकारा करो। जन्नत खुद-बा-खुद माँ के कदमों में है। ये मौका "नाचीज" कभी छोड़ा ना करो।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी मे...
जब हमारे नज़र आ गए
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जब हमारे नज़र आ गए

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** जब हमारे नज़र आ गए। हम उधर से इधर आ गए। चोंकना उनका वाज़िब है, हम यहाँ बेख़बर आ गए। आसमाँ को भी झुकना पड़ा, जब इरादों को पर आ गए। फूल खिलते रहे राह में, हाथ में वो हुनर आ गए। एक आहट मिली गाँव की, हम शहर छोड़कर आ गए। राह तो दिख रही थी मगर, मन में डर इस क़दर आ गए। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्...
मन होता है चंचल
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मन होता है चंचल

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मन होता है चंचल अतः लगाम ज़रूरी है मधा से लो काम सुखद परिणाम ज़रूरी है दास मलूक की बातें छोड़ो मानो मेरी बात जीवन चलता रहे निरंतर काम ज़रूरी है नहीं रही सच्चाई मेहनत निष्ठा प्रासंगिक चरण पादुका पूजो तामो झाम ज़रूरी है धन दौलत हासिल करिए पर ये भी ध्यान रहे जीवन में कुछ काम मगर निष्काम ज़रूरी है क़ायम रहे विवेक हमेशा जीवन कठिन डगर जी भर करो प्रयास अभीष्ट अंजाम ज़रूरी है धर्म अर्थ औ काम नही बस लक्ष्य ज़िंदगी के हर विकृति से मोक्ष हेतु संग्राम ज़रूरी है तन तो तन है याद रहें ये पत्थर या स्पात नहीं नि:शेषण से बचने को विश्राम ज़रूरी है परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी :जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता,...
झूठ जब अपना सिला देता है
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झूठ जब अपना सिला देता है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** झूठ जब अपना सिला देता है। आईना सच से मिला देता है। आदतन मैं नहीं पीता उतनी, ग़म मुझे उतनी पिला देता है। लाख कोशिश थी भुलाने की, नाम वो याद दिला देता है। बागबाँ जानता है कि अक़्सर, वक़्त हर गुल को खिला देता है। ताप भीतर कोई पलने वाला, ख़ुद जमीं तक को हिला देता है। हाल ये है मिरी वफ़ाई का, वो मुझे शिक़वा-गिला देता है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अप...
आईना अब संभल के देख लिया
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आईना अब संभल के देख लिया

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आईना अब संभल के देख लिया। हमने चेहरा बदल के देख लिया। अपनी हालत पे जब यकीं न हुआ, हमनें थोड़ा मचल के देख लिया। रास्ता जो यहाँ नया पाया, दूर थोड़ा टहल के देख लिया । ये ज़बानों को खेल था इसमें, हमनें थोड़ा फ़िसल के देख लिया। यूँ दीवारों से दोस्ती रखकर, घर से बाहर निकल के देख लिया। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा ...
तुम संग रिश्ते में पतंग मैं
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तुम संग रिश्ते में पतंग मैं

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** तुम संग रिश्ते में पतंग मैं औ तुम डोर हमारी हो कटी पतंग न बन जाऊँ मैं ऐसी दुआ तुम्हारी हो तुम बिन ख़ुशियाँ नामुमकिन हैं इतना तो एहसास रहे फंसी नाव जब कभी भँवर में तुम ही मुझे उबारी हो तुम काशी मम तुम मथुरा हो तुम ही हो गंगा सागर पावन संगम की अभिलाषा रखता तेरा पुजारी हो कंकरीली राहों पर चलकर तेरे दर पर पहुँचा हूँ मैं एक फ़क़ीर की झोली भर दो दिल से राजकुमारी हो तुमसे रौनक़ बढ़ जाती है फ़िज़ा चहकने लगती है नेह पे तेरे हक़ हो जिसका कैसे भला दुखारी हो पड़ जाते त्योहार हैं फीके अगर तुम्हारा साथ नहीं हर कोशिश कर हार के बैठा जैसे कोई मदारी हो ग़म के सागर में है कश्ती राह तुम्हारी देख रहा मैं आ जाओ तुम बन के साहिल जैसी भी दुश्वारी हो परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी :जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञा...
लेकर निगाह-ए-नाज़ के ख़ंजर
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लेकर निगाह-ए-नाज़ के ख़ंजर

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************************** लेकर निगाह-ए-नाज़ के ख़ंजर नए-नए। मिलते हैं शहरे ग़ैर में दिलवर नए-नए।। तहज़ीबे नौ का दौर है हर बात है नई। औरत भी अब बदल रही शौहर नए-नए।। आएगी जैसे-जैसे क़यामत करीब जब। देखोगे और भी यहाँ मंज़र नए-नए।। कुर्सी पे हमने जिनको बिठाया था शान से। ढाते हैं अब सितम वही हम पर नए-नए।। जो रास्ता बता रहे खादी लिबास में। रहज़न से कम नहीं हैं ये रहबर नए-नए।। मिलती है बेकसूर को अक्सर सजा यहाँ। डरते नहीं गुनाह से अफसर नए-नए।। हमदर्द बन के लोगों ने लूटा निज़ाम को। मिलते रहे हमेशा सितमगर नए-नए।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
कितने रहमो करम हो लिये
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कितने रहमो करम हो लिये

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** आपके कितने रहमो करम हो लिये जितने गम हो लिए, उतने कम हो लिए अपना दीवानापन रोज बढ़ता गया जितने तुम हो लिए उतने हम हो लिए चाहतों की जमीं गुनगुनाती रही ख्वाब कितने तुम्हारी कसम हो लिये तन पे यादों की चूनर लपेटे हुये मन कहे यूँ ही सौ-सौ जनम हो लिए राह में जिन्दगी की अकेला हमें देखके हमसफर लाख गम हो लिये परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmai...
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है हथेली की लकीरों

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** है हथेली की लकीरों में इशारा कोई। जो है गर्दिश में लगे मेरा सितारा कोई।। यूँ तो हैं अपने हज़ारों ही तअर्रुफ़ लेकिन सारी दुनिया में नहीं तुमसा हमारा कोई।। रोकती है मिरी कश्ती को किसी की आवाज़ ऐसा लगता है यहाँ पर है किनारा कोई।। है इमारत में न गुंबद नहीं कोई दीवार ढूँढते फिरते कबूतर हैं सहारा कोई।। है हवाओं में कसक और फ़ज़ा भी नासाज़ मुन्तज़िर झील में रहता है शिकारा कोई।। हम कहें अपना किसे और करें किस पे यक़ीं। जान लेता है सदा जान से प्यारा कोई।। आग तो बुझ गई बाक़ी है "शलभ" फिर भीै धुआँ ग़ालिबन राख में बैठा है शरारा कोई।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्...
वो हमारी ज़िन्दगी में
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वो हमारी ज़िन्दगी में

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** वो हमारी ज़िन्दगी में इस तरह छाने लगे। दिल किया उनके हवाले वो हमें भाने लगे।। हमने मिलने के लिए उनको बुलाया था यहाँ। हम यहाँ आए अभी हैं और वो जाने लगे।। हो गई वाबस्तगी कुछ ऐसी है उनसे हमें वो तसव्वुर में हमारे हर घड़ी आने लगे।। भूल बैठे हैं हमें वो इक ज़रासी बात पर। एक हम हैं जो उन्हीं के गीत बस गाने लगे।। होसले जिनके कभी होते नहीं मज़बूत हैं। सिर्फ़ आहट से ही ऐसे लोग घबराने लगे।। शायरी का इल्म जिनको है नहीं कुछ भी मगर। वो ग़ज़ल पढ़ने के ख़ातिर मंच पर जाने लगे।। बढ़ गए आगे 'शलभ' कुछ लोग झूठी चाल से। बेइमानी से वो अब सम्मान भी पाने लगे।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान ...
पास होकर भी आशकार नहीं
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पास होकर भी आशकार नहीं

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** पास होकर भी आशकार नहीं। जिंदगी तुझ सा राज़दार नहीं। तेरा वुजूद है सब यहाँ लेक़िन, ख़ास तेरा किसी से प्यार नहीं। जितनी मर्जी तेरी, सफ़र तेरा, तुझपे साँसों का इख़्तियार नहीं। जिस जगह तू शुमार रहती है, कोई उस हद के आर-पार नहीं। वक़्त के साथ ही रज़ा तेरी, इसलिए तेरा एतबार नहीं। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
जिसे हमने कभी देखा नहीं है
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जिसे हमने कभी देखा नहीं है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कभी उसका पता पूछा नहीं है। जिसे हमने कभी देखा नहीं है। कभी तुम चाँद पर जाकर तो देखो, वो दिखता है, वहाँ वैसा नहीं है। थके राही सफ़र छोड़ेंगे फिर भी, गुज़रता कारवाँ रुकता नहीं है। ख़िलेंगे फूल उतने ही चमन में, बहारों से जिन्हें धोखा नहीं है। किनारें कब, कहाँ जाकर रुकेंगे, ये दरिया ने कभी सोचा नहीं है। कही ,जो बात थी कहने सरीखी, ये झूठी बात की चर्चा नहीं है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
चले थे सोचकर उस इम्तिहाँ तक
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चले थे सोचकर उस इम्तिहाँ तक

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चले थे सोचकर उस इम्तिहाँ तक। न पहुँचे आज तक हम आसमाँ तक। पता हम पूछकर निकले थे लेक़िन, हुए गुमराह ही उनके मकाँ तक। कि थोड़ी देर सुस्ताने के बदले, उठाया फासला फिर कारवाँ तक। वो दिल के हाल से गुजरा हुआ था, जो रिश्ता था किसी के दरमियाँ तक। निगाहें दूर तक पहुँची तो लेक़िन, वहाँ भी था वही जो था यहाँ तक। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
रग-रग के लहू से लिख्खी है
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रग-रग के लहू से लिख्खी है

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** रग-रग के लहू से लिख्खी है हम अपनी कहानी क्यों बेचें। हर लफ़्ज़ अमानत है उनकी वो अहद-ए-जवानी क्यों बेचें।। ये गीत ही तो बस अपने हैं हमको जो किसी ने बक्से हैं। तुम दाम लगाने आए हो हम उनकी निशानी क्यों बेचें।। फ़नकार को जो कुछ देकर खुद नोटों से तिजोरी भरते हैं। हम ऐसे दलालों के हाथों वो याद पुरानी क्यों बेचें।। लफ़्ज़ो में पिरोयी हैं यादें जो जान से हमको प्यारी हैं। क़ीमत ही नहीं जिनकी कोई घड़ियां वो सुहानी क्यों बेचें।। शोहरत के लिए बिकने से तो गुमनाम निज़ाम अच्छा यारों। बेबाक क़लम है अपनी ये हम इसकी रवानी क्यों बेचें। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा
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क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा। वो हवाओं की तरह छुप के गुज़र जाएगा। फूल की तरहाँ रहेगा अगर जहाँ में वो, हाथ लगते ही यहाँ पल में बिखर जाएगा। ये शरारत है सभी उसकी की गई लेकिन, इसका इल्ज़ाम किसी और के सर जाएगा। रास आ जायेगी जब फिर से हर खुशी उसको, तब से दिल उसका सभी ग़म से उभर जाएगा। जितनी यादों को बसा रखा है उसने दिल में, उनका चेहरा उसकी आँखों मे उतर जाएगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
दोस्तों की महफ़िल
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दोस्तों की महफ़िल

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** अरसों बाद आज सजी दोस्तों की महफ़िल, मस्ती के गुबार फूटने लगे ख़ुश हुए दिल। ग़म-ए-हयात मिटाने बिच की खीज़ मिटाने, यार मेरे जो ख़फ़ा थे वो भी हुए शामिल। ज़िंदगी की हर चीज़ मना सकते चुटकी में, मगर रूठें अपने यार मनाने बड़े मुश्किल। आई उसकी याद चार चाँद लगा दिए ग़मों ने, इश्क़ की तर्ज़ छिड़ी तो भूल गए मंज़िल। शेरो-शायरी की भरमार ग़ज़लों की हुज़ूम, 'विकाश' उलझे ख़ुशी की या ग़म की महफ़िल। परिचय :- विकाश बैनीवाल पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल निवासी : गांव-मुन्सरी, तहसील-भादरा जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक पास, बी.एड जारी है घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा ...
ठोकरें खा के भी
ग़ज़ल

ठोकरें खा के भी

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** ठोकरें खा के भी जो लोग संभल जाते हैं। मुश्किलों से कई वो लोग निकल जाते हैं।। नूर की बूँद ज़माने में बही जाती है। उसके जलवों से ज़माने भी बदल जाते हैं।। प्यार मिल जाए मुकद्दर से किसी का जिनको। उनके दिल में कई अरमान मचल जाते हैं।। बादलों पर सवार होके ना आया करना। परी समझते हैं बच्चे भी बहल जाते हैं।। हौसले और इरादे नहीं पक्के जिनके। आहटें होते ही वो लोग दहल जाते हैं।। शाख पर पत्तियां निकली नया मौसम आया। अब तो मौसम की तरह लोग बदल जाते हैं।। दूर पर्वत पे "शलभ" देवता का डेरा है। उसके आगोश में पत्थर भी पिघल जाते हैं।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहित्य...
अजब है जलसा ये मुल्क में
ग़ज़ल

अजब है जलसा ये मुल्क में

मुकेश सिंघानिया चाम्पा (छत्तीसगढ़) ********************                        १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ अजब है जलसा ये मुल्क में सब तरफ ही जगमग सा हो रहा है मगर वो माटी के घर में माटी का दीप हालत पे रो रहा है/१ नसीब इन बिजलियों की देखो लिबास है कांच के बदन पर उधार की जगमगाती रौनक में डूब कर मन भी खो रहा है/२ ये झिलमिलाती सी दीप माला में एक दीपक जला अकेला चुनौतियां दे रहा अंधेरों को अपनी धुन का ही वो रहा है/३ मगन है दुनिया तो मस्तियों में किसे है परवाह कहाँ हुआ क्या खबर पड़ोसी को भी हुई ना बगल वो भूखा क्यूँ सो रहा है/४ वो बेसहारा यतीम हसरत भरी निगाहों से है निहारे सजा है बाजार हसरतों का बेचारा सपने संजो रहा है/५ रवायतें है गरीब खातिर अमीर के मौज का है जरिया ये तीज त्योहार बन के आफत ही झुग्गियों को भिगो रहा है/६ जरूरतें कौन सी निभाए किसे वो छोड़े किसे भुलाए उध...