वक्त के साये
सूर्यपाल नामदेव "चंचल"
जयपुर (राजस्थान)
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क्या जीत है क्या हार है,
कहीं वक्त की मार तो
कभी वक्त ही उपकार है।
वक्त की तिजोरी
नसीब में सबके,
बेकद्र जो वक्त है
टूटते सपने बेशुमार है।।
जीवन मिला है सबको
वक्त भी मिला वहीं है।
भावना जुदा-जुदा है
जिंदगी सबकी वही है।।
खुद को पका तपा ले
सूरज की तपन वही है।
रोशन है तुझसे दुनिया
तेरी लगन फिर सही है।।
समृद्ध हो तब रत्नजड़ित
लिबास तन पर सही है।
बिन मांगे ही सहयोग करने
खजाने बेशूमार वहीं है।।
वक्त बदलने दो लिबास
उतरने दो, फैली हथेली ही रही है।
लाख मुंह तकना अपनों के
लोग वही बहाने हजार सही है।।
मुकद्दर की रोटी मेरे हिस्से
नहीं हर वक्त रही है।
चोरों की बस्ती से मेरा
निवाला चुराना सही है।।
लिबास की चमक में कहां
मुफलिसी मेरी दिख रही है।
कुरेद कर देख जरा वक्त
नया ज़ख्म पुराना वही है।।
इबादत एक तेरी...



















