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पद्य

वक्त के साये
कविता

वक्त के साये

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** क्या जीत है क्या हार है, कहीं वक्त की मार तो कभी वक्त ही उपकार है। वक्त की तिजोरी नसीब में सबके, बेकद्र जो वक्त है टूटते सपने बेशुमार है।। जीवन मिला है सबको वक्त भी मिला वहीं है। भावना जुदा-जुदा है जिंदगी सबकी वही है।। खुद को पका तपा ले सूरज की तपन वही है। रोशन है तुझसे दुनिया तेरी लगन फिर सही है।। समृद्ध हो तब रत्नजड़ित लिबास तन पर सही है। बिन मांगे ही सहयोग करने खजाने बेशूमार वहीं है।। वक्त बदलने दो लिबास उतरने दो, फैली हथेली ही रही है। लाख मुंह तकना अपनों के लोग वही बहाने हजार सही है।। मुकद्दर की रोटी मेरे हिस्से नहीं हर वक्त रही है। चोरों की बस्ती से मेरा निवाला चुराना सही है।। लिबास की चमक में कहां मुफलिसी मेरी दिख रही है। कुरेद कर देख जरा वक्त नया ज़ख्म पुराना वही है।। इबादत एक तेरी...
अपनोंं से निष्कासित
कविता

अपनोंं से निष्कासित

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* एक टुकड़ा बादल का छोटा सा आंँखों के काजल- सा भटक रहा था यतीम- सा मगर मुझे लगा इसमें कोई बात है मौसम बरसात ‌का हुजूम बादलों का उमड़-घुमड़ बरस रहा फिर क्या वज़ह कि सूखी आंखों से गीली धरती ताक रहा. बस पूछ लिया मैंने अकेला अनमना है क्यों उसने देखा देर तक देखा फिर उदास- सा होके हमसे कहा अपनोंं से निष्कासित हूँ कहा गया था आज बरसना है झुग्गी पर शहर‌ के दांएंँ कोने की तराई पर नीचे देखा कुछ बच्चे खेल रहे थे लगा ये बच्चे डूब जाएंगे मैंने ना कर दी समझाया औरों ने पर मन माना नहीं तब मुझे फिर ये सज़ा मिली जा धूप में मर कल चुपके से जाके हल्की फुहार- सा बरसूंगा आज भय से दुबके बच्चे कल रिमझिम में उछलेगें खेलेगें पर आज मुझे सारा दिन यूँ‌ ही जलना होगा और तब से सोच रहा हूंँ मैं ...
दोहरा मापदंड क्यों…?
कविता

दोहरा मापदंड क्यों…?

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** मैं बेटी हूँ सिर्फ इसलिए ही जन्म से पहले कोख में मार दी जाती हूँ कहाँ चली जाती है ममतामयी माँ की ममता क्यों आँखे मूंद लेते हैं सरंक्षक कहलाने वाले पिता क्यों उत्प्रेरक बन सहयोगी बन जाता है समाज कैसी विडम्बना है सब कुछ होता है मर्यादा की ओट में ... खैर ..., ईश्वर कृपा से जन्म ले लेती है धरा पर अधिकांश बेटियाँ पर ... हर कदम दोहरापन थाली बजाई जाता है बेटे के जन्म पर लड्डू बाँटे जाते हैं बेटे के जन्म पर और.... बेटियाँ डूबो दी जाती है मायूसी के समंदर में ... युवा होती बेटियाँ मगर... कहाँ अवसर मिलता पंख फैलाने को इसी धर्म धरा पर पैदा हुई थी मैत्री, गार्गी ... यहीं पूजी जाती है लक्ष्मी, दुर्गा, काली, सरस्वती देश की आँख का नूर रही लक्ष्मी बाई, इंदिरा, सुनिता विलियम मर्दो के कंधे स...
सहचर
कविता

सहचर

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं चाहूँ और कोई आ जाए, बिना कुछ पूछे, बिना कोई सवाल किए मात्र इसलिए कि हमने चाहा है! जब कि सच्चाई है कि हमने खुद को कभी वक़्त नहीं दिया, खुद से खुद की कोई बात नहीं की! जीवन के अकेलेपन में मेरी आत्मा में मेरा अस्तित्व बिखर रहा होता है बिना कोई शोर बिना कोई आवाज किए!! क्या कोई स्नेह से मुझे सहला सकता है क्या कोई मेरे सिरहाने बैठ कर मुझमे मेरा विश्वास जगा सकता है?? मुझे सूकून से अपने सानिध्य में सुला सके ये आभास करा कर कि सब अच्छा होगा! क्या कोई ऐसा कर सकता है? हैं, मेरे चार पंजों वाले सहचर, हमारी गतिविधियों से हमारा सुख-दुख समझ सकते हैं, बिना स्वार्थ हमारी पीड़ा, मन का शोर बांट लेते हैं, उनके साथ उनके निस्स्वार्थ प्रेम में हम सूकून से सो सकते हैं!! परिचय :- श...
किस्मत के मारे मेरे शहर के कुंवारे
हास्य

किस्मत के मारे मेरे शहर के कुंवारे

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** उम्र कट रही है उनकी बस इस मलाल में दूल्हा बन सके न वो चालीस साल में। रो रहे हैं वो कुछ इस क़दर अब तलक जैसे आए हुए हों किसी के इंतिक़ाल में। हो न पाएगी शादी जानतें हैं पर मानते नहीं दिन कट रहे हैं उनके लुगाई के ही ख्याल में। होने पाए उनकी शादी यदि अब भी तो दर्जनों बच्चों के बाप बनेंगे वो एक ही साल में। शादी कब कर रहे हो? यह सुनते ही सुन्न पड़ जाते हैं वो लोगों के ऐसे सवाल में। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम...
बेचना है जल्द
कविता

बेचना है जल्द

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आस, उम्मीद, आकांक्षा सबको अपने से दूर हटाना चाहता हूं, क्योंकि ये पूरे होते नहीं, या फिर दिल में दबी रह जाती है, कहने को तो लोग कहते हैं इसे खूबसूरत और खांटी, पर सबसे ज्यादा तकलीफ देने का ठेका इन्ही के पास होता है, थोड़ा सा मोह देकर लूट लेते हैं सब रिश्तेदार, मन में बसी हुई एक उम्मीद, और बिखेर देते हैं सारे सपने, बने हुए सारे लालची अपने, जो कुछ भी हासिल किया जा सकता है वो सब सिर्फ अपने दम पर, क्योंकि टांग खींचेंगे सारे अपने ईर्ष्या और घमंड लेकर, खड़ा हूं बीच राह स्वच्छंद, दिखता हुआ निरीह, पर मुझे अब आवश्यकता नहीं नोचने को तैयार बैठे किसी रिश्तेदार की, आज वक्त ने सीखा दिया किसी पर भरोसा न करना, अब बेचना है जल्द भरोसे को और रिश्ते को भी। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी ...
दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) ।।स।। (अन्तिम भाग)
कविता

दुविधा और चुनाव (ये, वे और जनता) ।।स।। (अन्तिम भाग)

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** अर्थ-बाण चढ़ गए धनुष पर, खुलने लगे खजाने जी। खुलने लगे खजाने फिर तो ,लगने लगे निशाने जी।।१।। लगने लगे पराए अपने, जुटने लगे पटाने में। ऐसी दरियादिली कि अब तक, देखी नहीं ज़माने में।।२।। बकरी से कह उठे भेड़िए, चल नाले के पार चलें। हरी-हरी है घास वहीं पर, जमकर खेलें खूब चरें।।३।। जमने लगे चिलमची तनकर , फूँक छपाके लेती है। दम भरकर दम मार रहे दम, चिलम लपाके लेती है।।४।। बँटी रेवड़ी अपने खुश हैं, अन्धों की दिलदारी पर। कौए तक ले उड़े कमीशन, कोयल की किलकारी पर।।५।। जब से माँग बढ़ी ककड़ी की, तरबूजों को बुरा लगा। तरबूजों के भाव सुने तो, खरबूजों को बुरा लगा।।६।। बिना बुलाये घेर रहे घर, वोटर की है लाचारी। थोड़ा सा कुंकू चावल है, भीड़ परीतों की भारी।।७।। माँग रहे सब अपनी पूजा, यूँ खुलकर मत दान करो। ...
ऑपरेशन सिंदूर २०२५
कविता

ऑपरेशन सिंदूर २०२५

माधवी तारे लंदन ******************** ऑपरेशन सिंदूर की लाली देखो फैली रणभूमि पर रक्त-रंजित लाली छाई शत्रु पटल पर। शल्यक्रिया में लाल होती मेज भी इस सिंदूर की लाली है पर कुछ हटकर। शौर्य गाथा देश के जवानों की सब की जुबान पर सिंदूर तो दूर दुश्मनों की आँख नहीं उठेगी अब देश पर। भागे हुए जंगलों, गुफाओं की छाँह में, क्या जाने महत्ता सिंदूर की धर्म पूछ मारने वाले कायर, नहीं जानते ताकत सिंदूर की। खैर, अब उनकी जान की कोई खैर नहीं खड़े हैं सब अर्जुन सज्ज गांडीव पर हाथ धर। श्रीकृष्ण बन रहे हैं देश के पालनहार सीमा पर पर चक्र सुदर्शन सज्ज कर। परिचय :-  माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) अध्यक्ष : अंतर्राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (लन्दन शाखा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
भारत माता
कविता

भारत माता

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गाती रहेगी युगो, युगो तक गीत तेरे मां धरा फूलो की घाटी से होगी पुष्पो की बरखा मां। कन्या कुमारी के सागर की लहरे करेगी तुम्हारे चरण प्रक्षालन पाहन-पाहन गान गाएंगे जनगण मन। वीर करेगे कशरिया फूलो से स्वागत साधना रत साधक सुनाएंगे ओम शान्ती का मन्त्र हरियाली की पगडी बान्ध किसान करेगे जय, जयकार यही भारत के तिरंगे की शान है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप रा...
चलते रहना ही जीवन है
कविता

चलते रहना ही जीवन है

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** चलते रहना ही जीवन है, चाहे सुख आए या दुख आए, चाहे काँटे भाटे रोडे आए, इन सबको पार करते चलना, चलते रहना ही जीवन है। चाहे ओलावृष्टि आती हो, चाहे गर्मी कितनी सताती हो, जीवन में लक्ष्य लेकर चलना, चलते रहना ही जीवन है। मंजिल की आस रहे दिल में, चाहे कितनी कठिनाई सामने हो, हो चट्टान का सामना भी, चलते रहना ही जीवन है। कुछ पाना है तो चलते रहना, बढ़ते रहना हो लक्ष्य सदा, ना हार कभी मन में लाना, ना नर्वस होकर तुम रहना। उठो चलो ! चलते रहना चलते रहना ही जीवन है। कभी नही उदास हो जीवन मै, नहीं कभी हतोत्साहित हो जीवन मै, खुश होकर चलते ही रहना, चलते रहना ही जीवन है। नदियों की तरह बढ़ते रहना, नाचते गाते उत्साह भरे, मंजिल तो एक दिन पाना है, चलते रहना ही जीवन है। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : वि...
सीखें हम रामायण से
कविता

सीखें हम रामायण से

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** जय बोलो श्रीराम की कथा राम हनुमान की पत्नी रत्नावली की संगति तुलसीदास ने पाई अतुल ज्ञान की दुर्लभ संपति पाई राजा राम की महिमा गाई। सत्संगति ------------- मुदमंगदमय संत समाजू जिमि जगजंगम तीरथराजू। सत्पुरुषों, ज्ञानीजन की संगति ऐसे तीर्थराज प्रयाग की अतुलित महिमा जैसे सत्संगति से मिलते पुरुषार्थ चार धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का खुलता द्वार औषधीय गुणों से भरपूर गंगा-यमुना का निर्मल नीर सकल ताप, कलुष कर भंजन प्रयागराज को देता मान तीर्थराज का दैवी नाम। गुणीजनों की संगति से सभी पाप धुल जाते है मन होकर निष्पाप ईर्ष्या द्वेष न रह पाते हैं क्लेश ताप मिट जाते हैं सत्संगति का लाभ उठाएं अपने लक्ष्यों पर संधान करें सदाचार, सद्विचार से जीवन का कल्याण करें। मर्यादा ---------- मर्यादा पुरुषोत्तम क...
गजानंद स्वामी
आंचलिक बोली, भजन

गजानंद स्वामी

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी रिद्धी सिद्धि के तै स्वामी, तोरेच गुन ल गावत हँव ! सजे सिहासन आके बइठो,पँवरी म माथ नवावंत हँव !! हे गणपति, गणनायक स्वामी, महिमा तोर बड़ भारी हे ! माथ म मोर मुकुट सजत हे, मुसवा तोर सवारी हे !! साँझा बिहिनिया करँव आरती, लडवन भोग लगावंत हँव ! सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! माता हवय तोर पारबती अउ पिता हवय बम भोला ! दिन दुखियन के लाज रखौ, बिनती करत हँव तोला !! पान-फूल अउ नरियर भेला, मै हर तोला चघावंत हँव ! सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! अंधरा ल अखीयन देथस अउ बाँझन ल पुत देवइयाँ बल,बुद्धी के तै हर दाता, सबके बिगड़े काम बनइयाँ !! हे गणराज, गजानंद स्वामी मै हर तोला मनावंत हव ! सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! परिचय :- प्रीतम कुमार साह...
जागना-चेतना-मरना
कविता

जागना-चेतना-मरना

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जागना संगीत छन रहा हो अँधेरे की जाली से रोशनी के मानिन्द राग. तुम हो जाओ विराग. संगति को रहने दो निर्लिप्त. नादब्रह्म मौन पोर-पोर से अनुभव करो जागने का आनंद I चेतना जिज्ञासा मरती है मायूसी छोड़कर. प्रेम मरता है उदासी छोड़कर. मनुष्य मरता है राख छोड़कर और स्मृतियाँ शून्य. हाँ, तारीखें मरती हैं तारीखें छोड़कर यूँ रिसता है कालपात्र और सबकुछ समा जाता है धरती के रहस्यमय हृदय में. मरना घराना अलग आलापचारी अलग लयकारी अलग आघात की गति और वज़न अलग. फिर भी यह एक ही बंदिश आ रही है अलग-अलग रागों में नए-नए रूप धरकर. अलग भावस्थिति अलग स्वर-रचना शब्दार्थ-गायन का अलग स्वर-विलास अलग विस्तार. मुक्त करो, मुक्त करो खुद को इस बंदिश से अन्यथा मैं मर जाओगे जन्मों तक यूँ ही मरने क...
वोट बैंक के खाते से
गीत

वोट बैंक के खाते से

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** वोट बैंक के खाते से बस, खेलें नेता होली है। अवसरवादी राजनीति में, रोज़ पदों की डोली है।। धुत्त नशे में अब नेता हैं, कालिख मुख गद्दारी की। हुड़दंगी दल बदलू नाचें, हद होती मक्कारी की।। ढोल -मजीरे स्वयं बजाती, बड़ी प्रजा यह भोली है। घर-घर राजदुलारे जाते, भूल गये सब मर्यादा। दीप-तले ख़ुद अँधियारा है, कुचल गया चलता प्यादा।। फिरती झाड़ू उम्मीदों पर, लगे जिगर में गोली है। दल्लों की भरमार हुई है, आप जान लो सच्चाई । पिचकारी ई डी की चलती, रँगें जेल की अँगनाई।। मुखिया आँख बँधीं पट्टी है, शैतानों की टोली है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति...
गणेश-वंदना
स्तुति

गणेश-वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे! विघ्नविनाशक, बुद्धिप्रदायक, नीति-ज्ञान बरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। कदम-कदम पर अनाचार है, झूठों की है महफिल। आज चरम पर पापकर्म है, बढ़े निराशा प्रतिफल।। एकदंत हे ! कपिल-गजानन, अग्नि-ज्वाल बरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। मोह, लोभ में मानव भटका, भ्रम के गड्ढे गहरे। लोभी, कपटी, दम्भी हंसते हैं विवेक पर पहरे।। रिद्धि-सिद्दि तुम संग में लेकर, नवल सृजन सरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। जीवन तो अब बोझ हो गया, तुम वरदान बनाओ। नारी की होती उपेक्षा, आकर मान बढ़ाओ।। मंगलदायी, हे ! शुभकारी, अमिय आज बरसाओ। गहन तिमिर अज्ञान का फैला, नव किरणें बिखराओ।। भटक रहा मानव राहों में, गहन तिमिर का आलम। आया है पतझड़ जोरों पर, पीड़ा का है मौसम।। प्रथम पूज...
वर्षा की बूंदे
कविता

वर्षा की बूंदे

रतन खंगारोत कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) ******************** काले-काले मतवाले बादल, वर्षा का पैगाम है लाये। उमड़-घूमड़ और इठलाकर, प्रेम का यह संदेश सुनाये।।१।। आते-जाते जब बादल गरजे, बिजली भी अपना रूप दिखाए। गरज और चमक जब मिले साथ में, मानव-जन और हर जीव घबराए।।२।। अद्भुत, छटा निराली इसकी, कभी प्रेम तो कभी डर लग जाए। छमक-छमक कर मोर नाचे, बूंदें ऐसी की हीरे और मोती बिखराए।।३।। वर्षा की बूंदे जब धरा से मिली, कण-कण उसका महका गया । ऐसी छटा बिखरी नभ में, कोयल, पपिहा गीत है, गाये।।४।। हरियाली की चुनर ओढ़े, प्रकृति ने सोलह शृंगार किये। अदभुत, अनोखा रूप इसका, वर्षा के संग-संग जिए ।।५।। परिचय : रतन खंगारोत निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
जंगल हर दिन रोता है
कविता

जंगल हर दिन रोता है

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** एक दिन मैं गुजर रहा था, शाहाबाद के जंगल से। पहाड़ों को काटकर बनाई गई, खुबसूरत डामर की सड़क पर। अद्भुत मनोहर कांतार, पर्वत के शिखर से तलहटी तक सघन आच्छादित सुरम्य। नदी, झरने, घाटी, जलाशय से भरा पूरा परिवार। असंख्य जीव,जन्तु,पशु,पक्षी, भ्रमर, तितलियाँ, फूल,फल, चारों दिशाओं में व्यापक विस्तार। मुझे देखकर सिसकने लगे पेड़, महुआ, पलास, शीशम, छिला। दहाड़े मारने लगे शमी,नीम और कानन के सब पहरेदार। असीम अरण्य रुदन सुनकर मैं भयग्रस्त कम्पित हृदय से विनीत स्वर में पूछा.. हे! विपिन क्या, कोई प्रलय का आभास हुआ या दावानल कही जल उठी। बियाबान में क्रंदन कैसा..? क्यों कोमल किसलय रो उठी। यह सुनकर मेरी मीठी बात, कुछ धीरज धरकर चुप हो फिर अटवी बोला मेरे से, ना प्रलय का आभास हुआ ना दावानल से डरता मैं। मेरे कंद,मूल,...
अब स्वीकर करो हमको
कविता

अब स्वीकर करो हमको

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अब स्वीकर करो हमको जीने का अधिकार मिला है, हम करते हैं स्नेह तुमसे ... आक्रमक नहीं है हम, असीम ... अनंत प्रेम, मानव से फिर क्यूँ प्रहार होता हम पर!! सदा निवेदन रहा हमारा हमे आजादी से जीने दो! खुली हवा में हम सबको स्वच्छंद किलोल करने दो!! शीतल मलय बन समा पाए तुम्हारे हृदय स्थल में, इतनी सी अभिलाषा है मन मे हमको भी थोड़ा स्नेह दे दो!! हम हैं निश्छल-कोमल, पावन मृदुलता से भरे हुए, बस एक बार अपने दिल मे थोड़ी सी जगह देदो!! यह क्रोध नफरत का सैलाब जो तुमसे होकर हम पर गुजरता है, उसको स्नेह के बंधन मे अब तो बंध जाने दो !! स्नेह-करुणा पाकर तुमसे जी उठें हम इस जग में, माणिक्य मोतियों की भाँति हमको भी समाज मे सजने दोl मैं ऋणी रहूँगा आजीवन, अविराम, तुम्हारा कर्म बनकर, दुआ ही दुआ दे...
श्री विघ्न हर्ता गणेश
भजन

श्री विघ्न हर्ता गणेश

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** गणपति मंगल दायक हो तुम, सब के विघ्न हरो। शरणागत है शरण तुम्हारी, जीवन सुलभ करो। गणपति मंगल…. दीनबंधु, दीनानाथ, दयानिधी सब पर दया करो। सिध्द विनायक, जन गण नायक चिन्ता हरण करो। अनन्त भुवन के अधिपति हो तुम, मंछा पूरण करो। देकर वांछित फल सब को, मन हर्षित करो। गणपति मंगल… निर्मल मन हो, कपट न छल हो, भावना ऐसी भरो। मधुर हो वाणी, हस्त हो दानी, सक्षम ऐसा करो। राग द्वेष, मद निकट न आवे ऐसी दृष्टि करो। जन जन हो सुखी धरा पर, ऐसी वृष्टि करो। गणपति मंगल…. परिचय :- कमल किशोर नीमा पिता : मोतीलाल जी नीमा जन्म दिनांक :१४ नवम्बर १९४६ शिक्षा : एम.कॉम, एल.एल.बी. निवासी : उज्जैन (मध्य प्रदेश) रुचि : आपकी बचपन में व्यायाम शाला में व्यायाम, क्षिप्रा नदी में तैराकी और शिक्षा अध्ययन के साथ कविता, गीत, नाटक लेखन मंचन आदि म...
पारदर्शिता गर चाहते हो
कविता

पारदर्शिता गर चाहते हो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** पतिव्रता मशीन की नीयत पर संदेह रखना बेमानी है, जरा याद करो अपने समय पर तुमने भी की बहुत सारी मनमानी है, मानाकि आप फूंक-फूंक कर कदम रखते थे, आपकी करतूतें लोगों को पता न होती थी तो सबका स्वाद शनैः शनैः चखते थे, अपना गुनाह स्वीकार नहीं रहे हो, गर्वोक्ति पल पाकर कितनों को क्या क्या नहीं किये और कहे हो, आप अपनी करतूतें भूल सकते हो पर समय का पहिया सब याद रखता है, आप ऐसे भी नहीं रहे जो गुनाह करने से कभी भी झिझकता है, मैं यह भी जानता हूं कि ये जो आपके भाई बंधु है जिसे अपना घोर विरोधी बताते हो, संवैधानिक तरीके वालों के हाथ चला न जाए सारी व्यवस्थागत जिम्मेदारियां तो दिन में कोस रात में क्यों गले लगाते हो, अपराध या ज्यादतियां करने वाला भले ही भूल सकता है अपना कर्म, मगर समय संजोये रहती सार...
बेरहम
कविता

बेरहम

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** सिफारिश-ऐ-दौर चला है अपनों की जगह कोई ओर चला है। खुदगर्ज-ऐ-दौर चला है निस्वार्थी मनुज की जगह मतलबखोरों का क्षण चला है। बेवफ़ा-ऐ-दौर चला है महोब्बत की जगह रूप सम्मोहन का काल चला है। मलाल-ऐ-दौर चला है हमदर्द की जगह बेदर्द इंसा का वक़्त चला है। जहालत-ऐ-दौर चला है संज्ञान की जगह अविद्या का अंधकार का चला है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ...
ऐसा बाग लगाओ माली
गीत

ऐसा बाग लगाओ माली

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ऐसा बाग लगाओ माली, खुशबू बहे जमाने में। लूट सके सो जी भर लूटे कमी न पड़े खजाने में।। उड़ें तितलियाँ रंग बिरंगी, चिड़े चिड़ी डालों पर खेलें। मदमाते मधुकर कुछ गायें, पेड़ों से लिपटीं हों बेलें।। मद्धिम-मद्धिम चलें बयारें, मस्ती की झर उठें फुहारें, कोई कसर न रहे प्रेम की, परिभाषा बतलाने में।। ऐसा बाग .... ।।१।। थके पखेरू भली नींद लें, सुबह मिले कलरव सुनने को। थिरक उठे संगीत प्रीति का, गीत चलें सपने चुनने को।। महक उठे धरती का कण-कण, बीते मदिर राग में क्षण-क्षण, पत्ती-पत्ती खुली हवा में, लग जाए इतराने में।। ऐसा बाग .... ।।२।। कलियों को खिल जाने देना, फूलों को मुस्काने देना। जो भी आना चाहे साथी, खोलो फाटक आने देना।। चौकीदारों से कह देना, सबके कोप तलक सह लेना, कोई रोक-टोक मत...
एक औरत
कविता

एक औरत

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** कितना गम दबाती मन मै, कितना गम वह पी जाती, ओरौ के खातिर जीती है वह, औरों के खातिर ही मर जाती? पल-पल जीती पल-पल मरती हर क्षण गिरकर फिर संभलती, अपने साहस अपने बल पर, गिरती पड़ती फिर उठती। मान, अपमान, नफरत,तिरस्कार, सब सहती जाती जीवन में। कभी सोचती कभी उलझन है, कभी उलझन को सुलझाती! कभी खुद उलझन में पढ़ जाती, हंस देती सब सह कर वह तो, नही खोलती मन का राज। हर नारी की गाथा है यह, हर नारी की परीक्षा है, चाहे रानी महारानी हो जग में, चाहे गरीब भीलनी वन की हो। चाहे सीता सतवंती नारी हो, चाहे प्यारी राधा रानी हो , चाहे सती सावित्री मीरा हो, अग्नि परिक्षा नारी की हो। "नारी की गाथा नारी की पहचान बखान कर रहा इतिहास है आज" परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (...
चित्रण
कविता

चित्रण

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चित्र पट सा चित्रित होता रवि रश्मि का चित्रांकान पीत, श्वेत, रक्तिम रश्मि का फैला आगन चीर सुनहरी लाल चुनरी निलाभ किनारी गगन की आती जाती नभ पटल मे सुन्दर नारी रत्न सी लहराती, फहराती आंचल चहू ओर दसो दिशा ऐ करती चन्चल। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं आप राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मान २०२३" से सम्मानित हैं। घोषणा पत्र : मैं यह...
तीजा के तिहार
आंचलिक बोली, कविता

तीजा के तिहार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) आवत होहीं गियाँ ओ, मोर भाई, ददा मन लेवाए ल। पोरा अउ तीजा के तिहार म, मइके जाहूँ मनाए ल।। मने-मन कुलकत हँव, फुरफुंदी बनके उड़ावत हँव। कपड़ा ल जोर डारेंव, बिहनिया ले सोरियावत हँव।। घेरी-बेरी निकल के देखत हँव, गली-खोर, अँगना म। बारह महीना के परब ए, बंधागेंव मया के बंधना म।। दाई के मँय ह दुलौरिन बेटी, ददा के सोनपरी आँव। भाई के मँय ह मयारु बहिनी, परुवार के जुड़ छाँव।। डेहरी म खड़े हे मोर बाबू, ए दे आगे मोला लेगे बर। जावत हँव लइका मन ल धरके, ए जी संसो झन कर‌।। भात रांध के तंय खाबे, हरिबे घर-कुरिया म अकेल्ला। कहूँ मोर सुरता आही त, ससुरार भागत आबे पल्ला।। बड़े किसान के तंय बेटा, बइला मन ल सुग्घर सजाबे। बइला दउँड़ खेल म जीतके, बइला के आरती उतारबे।। दीदी अउ बहिनी मन संग, सुख-दुख के गोठ गोठियाहूँ। माथा ...