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पद्य

शब्द नहीं उस माँ के लिए
कविता

शब्द नहीं उस माँ के लिए

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने है तुम्हें जन्म दिया | उपकार को उस कुल के लिए, सुधार तुमने मेरा है जन्म दिया || निर्वहन पतिव्रत धर्म के लिए, ऐसा अद्भुत कर्म किया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने तुम्हें है जन्म दिया || निर्वहन मातृत्व धर्म के लिए, ऐसी करुणा का ज्ञान दिया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने तुम्हें है जन्म दिया || शिव शक्ति की उपासना के लिए, इ, इ, इति में बदल दिया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने है तुम्हें जन्म दिया || निराकरण अपनी बाधाओं का, जिस पिता मातु ने दान दिया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने तुम्हें है जन्म दिया || सदा सिंदूर की रक्षा के लिए, जिसने चूड़ियों का नहीं ज्ञान दिया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने तुम्हें है जन्म दिया || स्वकुल के उपकार के लिए, स्व- सुता कुल ...
ये दुनिया सारी है जिनकी शरण में
कविता

ये दुनिया सारी है जिनकी शरण में

विकास कुमार औरंगाबाद (बिहार) ******************** ये दुनिया सारी है आज जिनकी शरण में, हमारा नमन है अपने उन बाबा के चरण में। पूजा के योग्य है बाबा हम सबकी नजर में, सब मिलकर फूल बरसायें बाबा के चरण में। जिनके नियम पर चलता रहेगा ये भारत सादा, ऐसा ही एक संविधान बनाए अपने भीम दादा। इस हिन्दुस्तान की धरती पर हम सबको चलना आया, बाबा ने इक नया संविधान लिखकर हमे लिखना बताया। देश प्रेम में जिसने आराम को दिए ठुकराए, गिरे हुए इंसान को अपना स्वाभिमान सिखाये। जिसने हमको अपने मुश्किलों से लड़ना सिखलाया, इस जमीन पर ऐसा दीपक बाबा साहब कहलाया। शिक्षा संगठन के थे अपने बाबा बड़ा पुजारी, अधिकार हेतु किए लाखो लोगो से संघर्ष भारी। मानव मे भी है रक्त एक, एक भाँति है सब आये, अपने स्वारथ के चक्कर में लोग जाति–पाति बनायें। युगो–युगो में यह पीड़ा रमी थी तब होता था दर्द ऐसा, छुवा-छूत...
बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे।
ग़ज़ल

बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे।

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** बातों का मेरी तुझपे गर-असर दिखाई दे। तब जा के मुझे तुझमें भी अनवर दिखाई दे।। मज़हब की सियासत ही है इंसान की दुश्मन। नीयत से मुझे इसकी सरासर दिखाई दे।। फ़िरते हैं हवस अपनी मिटाने को भेड़िये। बेशक़ न अभी तुमको ये मंज़र दिखाई दे।। उड़तीं हैं गरम रेत से जो झिलमिलाहटें। मुमक़िन है तुम्हें ये भी समंदर दिखाई दे। अब क़त्ल के सारे वो तऱीके बदल गये। वाज़िब कि नहीं हाथों में खंज़र दिखाई दे। शैतां ने तिलिस्मात बिछाया सियासतन। हर सर है खूँ-ब-खूं नहीं पत्थर दिखाई दे। बस ज़िस्म पे शैदा न हुआ कर ऐ नित्यानंद। हो सकता क़े चूनर में दु-नश्तर दिखाई दे।। हे! हरि के अवतंस प्रभो तुम, हो करुणा निधि श्री भगवान।। परिचय :- आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” जन्म तिथि : ३० जुलाई १९८२ पिता : भगवद्विग्रह श्री जय ज...
ऊफ ! ये गर्मी
कविता

ऊफ ! ये गर्मी

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** तेज हवा के थपेड़ों से सीहर उठा ये बदन। चारों तरफ सन्नाटा हैं खौफ हैं, कपड़े की परतों से झांकती कोमल ये आंखें, कितनी सूर्ख और लाल हैं। चलना दुस्वार हुआ पैदल बाहर पेट्रोल की मार हैं। दुबके कब तक रहेगें हम रोज रोटी कि तलाश हैं। अनगिनत पेड़ों की लाशों से सबक नहीं सीखा हमने आज चिलचिलाती धूप में ठंडे पानी कि सबको तलाश हैं। किससे गिला शिकवा करें, यहां हमाम में सब बेनकाब हैं। पेड़ लगाया एक पीढ़ी ने दूसरों ने उसे उजाड़ दिया। आंखें खुली तो याद आया धरा को किसने नरक बनाया। अबभी समय हैं संभलनें का जल जमीन को बचा लीजिए, इन तेज थपेड़ों से सबको पेड़ लगाकर राहत दीजिए। कर सको कोई पुनित काम तो पक्षियों को पानी दीजिए इस तेज गर्म धूप में कोई मिले उस भूखें नंगे को भी सहारा कीजिए। ये समय भी यूं ही गुजर जाएगा। बस! समय ब...
कायनात
कविता

कायनात

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन कमल के पराग, आकाश कुसुम क्या कहूं क्या कहूं, इस निर्विकार पृथ्वी को प्रकृति को जीवन महक गया जिंदगी संवर गई शरीर को नहलाया उसने आत्मा को अमृत ने। तुम मेरी दिशा दर्शक हो कैसे कहूं होंठ खुल नहीं पाते तुम से बतिया ने को इच्छाएं जागृत होकर पुनः सुप्त हो जाती हैं इस ओस भरी कायनात में दिल डूब गया जैसे चांद से मुखड़े को अमृत ने नहलाया मेरा रोम-रोम शीतल हो गया पवन के झोंकों से। आत्मा अभिमानी हो गई तुम्हारे दुलार से। क्या हुआ, कैसे हुआ क्या कहें जीवन आंगन सुना था आकर किसी ने फूल खिला दिए देखो फूल खिल गए प्रातः किरण से अपना पराग लुटाने अपना अमृत लुटाने। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती ह...
घायल
कुण्डलियाँ, छंद

घायल

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कुंडलियां छंद घायल की गति जानकर, करें त्वरित उपचार। मानवता का धर्म है, यह है शुभ ब्यवहार।। यह है शुभ ब्यवहार, इसे है सदा निभाना। खुद सहकर के कष्ट, उसे है तुम्हें बचाना।। कहे *राम* कवि राय, जमाना होगा कायल। मिटे सकल संताप, स्वस्थ होगा जब घायल।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिया...
तुम्हें ग़म देने वाला
कविता

तुम्हें ग़म देने वाला

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम्हें ग़म देने वाला तो तुम्हारा हो नहीं सकता कलेजा जो दुखाए वो सहारा हो नहीं सकता कहां है इस ज़िंदगी में सब को अपना ख़्वाब मिलता है तुम्हारा था जो अब फिर से दोबारा हो नहीं सकता हमेशा ही तुम्हें मौका मिलेगा सच नहीं है ये तेरी तक़दीर में ऐसा सितारा हो नहीं सकता यहां तक़दीर के मारे ज़हां में और हैं देखो अकेला तू मुसीबत का भी मारा हो नहीं सकता फ़िज़ा में फूल कितने हैं इन्हें हंसते हुए देखो ख़िज़ाओं को मगर सब कुछ गंवारा हो नहीं सकता परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में ...
फागुन ने आलाप भर …
दोहा

फागुन ने आलाप भर …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन ने आलाप भर, पढ़े प्रीति के छंद। बढ़ा समीरण में नशा, पुष्प-पुष्प मकरंद।।१ मन्मथ पर मधुमास का, ज्यों ही पड़ा प्रभाव। खारिज यौवन ने किया, पतझड़ का प्रस्ताव।।२ तन कान्हा की बाँसुरी, मन राधिका मृदंग। बजा स्वयं नित झूमता, 'जीवन'हुआ मलंग।।३ मन के गमले में खिला, दुर्लभ प्रीति गुलाब। झुककर स्वागत में खड़ा, इस तन का महताब।।४ देख रहा है स्वर्ग से, जब से मरा कबीर। भेदभाव की हो रही, गहरी और लकीर।।५ सड़कों पर आएँ निकल, घर के पूजन-पाठ। शिक्षित हो कर बन गया, हृदय हिन्द का काठ।।६ शकुनि चित्त जब-जब चले, छल चौसर के दाँव। दुख का आतप जीतता, हारे सुख की छाँव।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
साथ अपने …
ग़ज़ल

साथ अपने …

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ अपने क़िताब रखते हो। फ़लसफ़ा लाज़वाब रखते हो। रोशनी की तुम्हें कमी कैसी, पास जब माहताब रखते हो । है यहाँ और है वहाँ कितना, सब जुबाँ पर हिसाब रखते हो। हो जहाँ तुम समाँ महक जाए, साँस अपनी गुलाब रखते हो। हम इसी बात के रहे क़ाइल, दोस्ती बेहिसाब रखते हो। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
सादगी
कविता

सादगी

प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे बीड, (महाराष्ट्र) ******************** सादगी से सुंदरता जीवन की पहचान हो। आदर्श का प्रतिक ये आचरण का परिमाण हो। खुल कर बोलो बात दिल की, डालो आदत मेहनत और निष्ठा की। स्वार्थ छल कपट से रहना दूर- बात बन जाएगी सम्मान एवं प्रतिष्ठा की। अनमोल जीवन की, अनमोल ख्याति हो, सीधा जीवन उच्च विचार की नीति हो। देश दुनिया में फैला दो विचारों की सादगी- एक दूजे के प्रति उच्चकोटि की प्रीति हो।। परिचय :-  प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे निवासी - बीड, (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
युद्ध विभीषिका
छंद

युद्ध विभीषिका

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** मनोरम छंद युद्ध भीषणता कहूँ क्या। मौत का तांडव सहूँ क्या।। निज कलम आक्रोश करती। नित मनुज हिय जोश भरती।। हाल सब के अस्त से है। आम जन सब त्रस्त से है।। पीर वो किसको बताए। बन सहारा कौन आए।। रक्त की नदियाँ बहाती। फिर कथा सदिया सुनाती।। रोक लो गर हो सके तो। शांति माला पो तके तो।। विश्व सारे मौन क्यों है। सोच सबकी पौन क्यों है।। क्या समझ अब मर गई है। या किसी से डर गई है।। विश्व संकट तीव्र शंका। भीषिका का वज्र डंका।। एशिया पर डौलता है। वक्त भी अब बोलता है।। शांति की दरकार कर लो। राष्ट्र मिल करतार धर लो।। दूर सारी भ्रांति हो जब। एशिया में शांति हो अब।। परिचय :- रेखा कापसे "होशंगाबादी" निवासी - होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित म...
प्रेम की गली
कविता

प्रेम की गली

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** प्रेम की गली हमें दिखाई तो होती इश्क़ क्या हे हमें सिखाई तो होती फिजाओं में बिखरे हे रंग तेरे जो एक बारगी हमें दिखाई तो होती ज़ज़्बातो का महल हमने बनाया खूशबू कहीं-कहीं तो उड़ाई होती तेरे दर पर सजदे करने आते रोज काश हमारी दुनिया सजाई होती वादा जो बकाया चल रहा हमारा पूरा होता तो ये, न, रूसवाई होती तन मन मे अनुराग भर गया यारो सूरत उसकी हमे भी दिखाई होती कितने लोग पूछ गए पते हमसे भी मोहन प्यार की पाती लिखाई होती परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
वर्तमान, हनुमान और प्रतिमान
कविता

वर्तमान, हनुमान और प्रतिमान

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..? मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां..? धीर वीर गंभीर होते हैं वहीं तो बाहुबली है, जो रंग व ढंग बंदल दे वही तो बजरंगबली है। अष्टसिद्धियों में कुशल अब सर्व शक्तिमान कहां..? वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..? मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां..? काम क्रोध लोभ अंहकार को सूर्य जैसे निगल दिया, पवन जैसा वेग मारूत जैसे आवेग सबको बता दिया। केसरीसुत बलशाली जैसे अब स्वाभिमान कहां...? वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..? मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां ..? भावों का अंत नहीं उनके जैसे हनुमंत कहां..? मनगढ़ंत बातें नहीं उनके जैसे पारखी संत कहां..? दार्शनिक महावीर जैसे अब वर्धमान कहां... मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी के सच्चे वो भ...
समंदर को खल गई
ग़ज़ल

समंदर को खल गई

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** इतनी सी बात थी जो समंदर को खल गई। काग़ज़ की कश्ती कैसे भँवर से निकल गई।। पहले ये पीलापन तो नहीं था गुलाब में। लगता है अब ज़मीन की मिट्टी बदल गई।। अब पूरे तीस दिन की रियायत मिली उसे। फिर मेरी बात अगले महीने पे टल गई।। अशआर में बचे हैं मुहब्बत के हादसे। वरना मेरी कहानी मेरे साथ जल गई।। कल तक तो बेगुनाह समझते थे सब मुझे। क्यों राय आज सारे जहाँ की बदल गई।। मयख़ाने की डगर से जो मेरा गुज़र हुआ। वाइज़ की बात रह गई साक़ी की चल गई।। रंजो अलम हैं साथ ज़माने हुए "शलभ"। अब तो ये ज़िन्दगी इसी साँचे में ढल गई।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहि...
हमर बाबा धन्य होगे
आंचलिक बोली, कविता

हमर बाबा धन्य होगे

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे। लिखित संविधान के रचैय्या अम्बेडकर महान होगे।। सरल अउ सहज व्यक्तित्व के धनी हाबे जी। सादा जीवन उच्च विचार के मणि हाबे जी।। धरम करम के रद्दा बतैय्या वो तो पूजनीय होगे .. अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे .... जाति–पाति भेदभाव के गड्डा ला वो पाटीस हे। छुआछूत अऊ कुरीति के जड़ ल घलो वो गाढ़िस हे।। अइसनहा मानव जन के जनैय्या महामानव होगे ... अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे... संत मनीषी साधू संन्यासी मन के संग ल धरिस हे। तीन रतन अउ पञ्चशील के सन्देश ल गाढ़िस हे।। आष्टगिंक मारग म चलैय्या बौद्ध धरम के अनुयायी होगे.. अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे... बाबा के मारग ल अपनाही वोकरे जिनगी सरग बनत हे। खान-पान, रहन-सहन सुधारही उंख...
अक्सर
कविता

अक्सर

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** इश्क़ की रातें और इश्क़ की बातें अक्सर महँगी पड़ती है। ज्यादा समझदारी और लगी हुई इश्क़ बीमारी अक्सर महँगी पड़ती है। गैरों के साथ यारी और अपनों के साथ गद्दारी अक्सर महंगी पड़ती है। जरूरत से ज्यादा समझदारी और गैरों से वफादारी अक्सर महंगी पड़ती है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी...
छल-कपट
कविता

छल-कपट

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** छल-कपट दुनिया के देखते रहते हो! क्या आज कल तुम सोये हुए रहते हो? क्या तुम्हारी रूह जरा भी नहीं कांपती? घनघोर अन्याय के प्रत्यक्ष दर्शी होते हो! क्या कर बैठे हो दुर्योधनों से मिली भगत? या हफ्ता वसूली की आ गयी तुमपे भी नौबत? तुम्हारा अस्तित्व दिखता नहीं आज कल, भेड़ियों से बचने की चल रही है मशक्कत! द्रौपदी कितनी और जुएं मे है हारनी? कितनी गांधारी को आँखों पे है पट्टी बांधनी? गिरधारी आँख कब खुलेगी तुम्हारी? कितने महाभारत की मंशा और है बाकी? जाग जा… कर दे कुछ ऐसी अब करनी, राक्षसों की कर दे अब खत्म तू कहानी! या तो फिर कह दे तू दुनिया मे है नहीं, तेरे पास किसी समस्या का हल नहीं! परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला मह...
मैं जो पुकारूं… दौड़ी चली आना
भजन, स्तुति

मैं जो पुकारूं… दौड़ी चली आना

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** "मैं जो पुकारूं, दौड़ी चली आना, मैं तेरा भक्त हूं, देर ना लगाना।" मैं जो पुकारूं, दौड़ी चली आना, मैं तेरा भक्त हूं, देर ना लगाना। सदा नमन करूं, मेरी मईया..., पखारूं तेरे पईया। ऐसी दया करो, ऐसी दया करो, ऐसी दया करो, मेरी मईया..., पखारूं तेरे पईया।। तू..., पर्वत विराजी कहीं, धरातल विराजी, तेरे..., सच्चे भक्तों के तू, मन में विराजी, मन मंदिर पूजो, सब मन मंदिर पूजो, श्रद्धा भाव भक्ति से, मन मंदिर पूजो। सदा नमन करूं, मेरी मईया..., पखारूं तेरे पईया। ऐसी दया करो, ऐसी दया करो, ऐसी दया करो, मेरी मईया..., पखारूं तेरे पईया।। तेरे..., द्वारपाल बजरंगी, पवनसुत बाला, तूने..., धन्य किया है प्यारे, अंजनी का लाला, पल-पल पुकारूं, तुझें हर-पल पुकारूं, श्रद्धा भाव भक्ति से, पल-पल पुकारूं...
राम बने या रावण
कविता

राम बने या रावण

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर जीवात्मा में बसता है रावण या सदाचारी राम बुराई का प्रतीक ये रावण तो अच्छाई दर्शाते हैं राम काम क्रोध लोभ मोह मद जो देते तिलांजलि इनको वो हैं राम जैसे चरित्रवान लिखाते इतिहास में नाम पाँच विकारों से वशीभूत हो जो बन जाते दुष्ट दुराचारी सिया हरण सा पाप करते जग में कहलाते हैं ये रावण मानव स्वकर्मो से ही बनता जो वो चाहे, रावण या राम क्यूँ न हरादें अपने रावण को बन जाएँ मर्यादा पुरुषोत्तम हराके दशाननी विकारों को दशरथसुत राम ही बन जाएँ करें स्थापना रामराज्य की धरा पर स्वर्ग अब उतार दें आज सबके अपने रावण हैं रिश्तों, कुर्सी की मारामारी में कुकर्म, अनाचार आतंक में महाभारत का बोलबाला है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
कालचक्र
कविता

कालचक्र

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** जीवन के है तीन आधार भूत भविष्य और वर्तमान। जीना सबको पड़ता है इन्हीं तीनो कालो में। भूत बदले भविष्य बदले या बदले वर्तमान। फिर जीना पड़ता है इन्हीं कालो के साथ।। किसके भाग्य में क्या लिखा ये तो भाग्य विधाता जाने। पर मैं जो कुछ भी करता अपनी मेहनत और लगन से। तभी तो दिख रहे परिणाम मुझे इस मानव जीवन में। इसलिए मुझे आस्था है अपने भगवान के ऊपर।। बनो आशावादी तुम अपने मनुष्य जन्म में। करो भरोसा उस पर तुम जिसे तुम अपना समझते हो। और उसके लिए लड़ने को जमाने से भी तैयार हो। वो कोई और नहीं है ये तीनो ही काल है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी...
तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा
ग़ज़ल

तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ********************           २१२ २१२ २१२ २१२ तू न दिल से लगाए तो क्या फायदा दिल तुझे ही न पाए तो क्या फायदा बाग़बाँ के लिए लाख कलियाँ खिलीं लूट भँवरा ले जाए तो क्या फायदा आपने प्रेम से मुझको देखा नहीं सारी दुनिया बुलाए तो क्या फायदा मैं तो .मसरूर तेरी मुहब्बत में हूँ तू न रग़बत दिखाए तो क्या फायदा देश बरबाद करते रहे लोग जो उन पे हीरे लुटाए तो क्या फायदा आज कातिब ही ग़ालिब हुआ है यहाँ सत्य लिखना न आए तो क्या फायदा ख़ूब साक़िब ने देखा मुझे ग़ौर से फिर भी रजनी न भाए तो क्या फायदा शब्दार्थ मसरूर- प्रसन्न रग़बत- दिलचस्पी कातिब- लिखने वाला ग़ालिब- छाया हुआ साक़िब- चमकता तारा परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व...
डाँ. अम्बेडकर
कविता

डाँ. अम्बेडकर

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** प्रतिष्ठित विद्वान विधि वेत्ता, अम्बेडकर समाराधक माँ भारती के थे | न बने आराधक गांधी-नेहरू के, भीमराव जी ऐसे लाल माँ भारती के थे || कटु आलोचक गांधी नेहरू उनके, विद्वत्ता गुण से विधि न्याय मंत्री थे | संविधान समिति मसौदा उनके, अध्यक्ष डॉ अंबेडकर विधि न्याय मंत्री थे || प्रबल विरोधी तीन सौ सत्तर के, समर्थक समान नागरिक संहिता के थे | कर सिफारिश इसे अपनाने की, समाज सुधारक इप्सिता युत थे || रोका हिंदू कोड विधेयक नेहरू ने, मंत्री पद ही अंबेडकर ने त्याग दिया | थी बात विधेयक में महिला अधिकारों की, बिल हिंदू कोड क्यों नेहरू ने त्याग दिया || ना समर्थक थे भारत विभाजन के/ न विभाजकों को भीम ने भाव दिया | कहते थे विभाजित करने वाले ने, भारत के लिए अभिशाप दिया || सपना अंबेडकर का भारत की समानता, अब तक न किसी ने पू...
सपने मनु शतरूपा के
कविता

सपने मनु शतरूपा के

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कभी मिले थे हम तुम नादान थे अनजान थे सच में हम थे दो दीवाने खुली आँखों के वे सपने तेरे मेरे नहीं, वे थे अपने *सुदूर फैली वादियों में फूलों का शहर छोटा सा पेड़ो के झुरमुठ से घिरा प्यारा नायाब सा घरौंदा मनु और शतरूपा का हो *झरोखों रोशनदानों से रवि किरणें फैल जाएँगी हमारे घर के हर कोने में पंछियों की चहचहाट सुन चाय पीते खूब बतियाएँगे *मनु हवाई किस उड़ाते चल देंगे अपने काम पर कान्हा को पूजते झुलाते खो जाऊँगी मैं सपनों में कब गूँजेगी किलकारियां *हमारी बगिया में खिलेंगे प्रसून और पर्णा दो फ़ूल महकेगा आशियाँ न्यारा बच्चे भी मंजिलें तलाशते नए नीड़ों को उड़ जाएंगे *ऐनक चढाए हकलाते अँगीठी के पास बैठ कर गुम खयालों में ख़्वाबों के कॉफी की चुस्कियों में मनु शतरूपा खो जाएँगे परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) ...
रा म जैसे सुंदर दो अक्षर
स्तुति

रा म जैसे सुंदर दो अक्षर

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** रा म जैसे सुंदर दो अक्षर छत्र, मुकुट, मणिरुप हैं सबसे ऊपर धारण करते नर नारायण श्री राम रघुकुल के नामी, रघुनाथ श्री राम मन मोह बसते हैं, मनोहर श्री राम सुंदर, चितवन नयन राजीव लोचन श्री राम द्युति दे सूर्यवंश को भानुकुल भूषण श्री राम शर, चाप, बल धर धनुर्धर श्री राम मर्यादा की ध्वजा लहराते, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम राम नाम जप कलि काल में कल्प तरु श्री राम चंद्र हास को मान देते, रामचन्द्र श्री राम दया, करुणा का कोष बिखराते, करुणानिधान श्री राम सत,रज,तम निधान त्रिगुण श्री राम जीत क्रोध, ल़ोभ, मोह, जितेंद्रिय श्री राम दैहिक, दैविक, भौतिक ताप हर तारणहार श्री राम मन मोह जानकी का, जानकीवल्लभ श्री राम राम, रमापति स्त्री धन को देते मान सिया-राम हैं जय जय श्री राम जय-जय श्री राम हैं सियाराम। परि...
महंगाई
आंचलिक बोली

महंगाई

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी सुबह-शाम लोगन हलाकान हे, महंगाई ले परेशान हे, अच्छे दिन अही कही के सबला भरमात हे.! गर्मी ले ज्यादा तो महंगाई पसीना निकाल दीस, गरीबी के रददा देखावद हे, अच्छा दिन ला लुकावत हे, दु:ख ला बलावत हे.! जीवन जीये मा परेशानी कर दीस ये महंगाई हा, कर्जा ऊपर कर्जा करा दीस ये महंगाई हा.! अकेले नहीं पुरा देश के कहानी हे, गरीब के कोनो नई हे सहारा, छोड दिस बेसहारा, कर्जा बोडी के चक्कर मा होगे हे परेशान, ये महंगाई सब ला कर दे हे हलाकान.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्...