Monday, May 19राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

रखना चाहिए जीव दया
कविता

रखना चाहिए जीव दया

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** बेजुबां है ये पशु पक्षी सभी विचारे बस प्रेम ही आपसे चाहते है सभी, जो कह नही सकते है दुख अपना! उनपर सदा रखनी चाहिए जीव दया।। एक भाग अन्न का इनके लिए भी रख दो बेजुबान है इन्हें भी कभी भोजन करा दो आ जाए द्वार पे तुम्हारे प्रेम से यदि पशु, कभी इनको भी तुम पानी पिला दो।। क्यों मारो पीटो इनको बेकार, करते सभी से पशु प्रेम प्यार ये, इनकी भी है एक प्रेम की भाषा! पहचानो तुम करके इनपर जीव दया।। आबादी बढ़ रही हमारी है जब से छीन लिया है हमने इनका जंगल, सही मायने में वही था घर इनका, प्रकृति मां भरती थी भोजन से पेट इनका।। आज घर घर आते है आस यही लेकर कोई तो होगा भोजन देने वाला इनको! आज कचरा खाने पर विवश हुए पशु, भोजन देकर कोई तो रखेगा जीव दया।। हमें समझना होगा अब इनको क्यों व्याकुल है हर पशु इतना! न...
मैं क्या पाठ पढ़ाऊँ उन बच्चों को …
कविता

मैं क्या पाठ पढ़ाऊँ उन बच्चों को …

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** मैं क्या पाठ पढ़ाऊँ उन बच्चों को, जिनको आज़ादी का एहसास नहीं। मातृभूम हेतु मर मिटने वाले, अब लगते इनको ख़ास नहीं॥ कोख़ में पलते बच्चे कहते थे, माँ मुझको धरती पर क़ुर्बान करो। पुष्प सरीखा बलिवेदी पर चढ़ जाऊँ तो, गर्भ पे अपने अभिमान करो॥ अब भ्रूण को मिलता वो रसपान कहाँ, आँवल में भी वो त्रास नहीं। मातृभूम हेतु मर मिटने वाले, अब लगते इनको ख़ास नहीं॥ जो थे मात-पिता के राज दुलारे, वो घर की चौखट भूल गये। पकी हुई फसलों-से उनके बच्चे, फाँसी के फंदे झूल गये॥ नवयुग की इस पीढ़ी को देखो, रत्ती भर मन में इनके वो उल्लास नहीं॥ मातृभूम हेतु मर मिटने वाले, अब इनको लगते ख़ास नहीं॥ ये दक्खिन वाली चलते हैं चाल, परकटे-से बिखरे-बिखरे बाल। अब बिगड़ गया है माँ का लाल, और सिमट गया है इनका जीवन-काल॥ रक्त सनी उन तारीख़...
तलबगार हम भी थे
ग़ज़ल

तलबगार हम भी थे

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** नशा बनकर होठो पर पैमानों की शराबों में मिलेंगे दुआ बन कर आपको आपकी फरियादो में मिलेंगे प्यार का खत बनकर आपको किताबों में मिलेंगे करोंगे जब याद कभी तुम हमको अपने दिल से खुदा कसम तन्हाई में आपको ख्वाबों में मिलेंगे। इश्क है तो इश्क का इजहार करना भी जरूरी है। कोशिश तो करो हम आपको उन इरादों में मिलेंगे। सुना है इश्क का अक्सर नशा सर चढ़कर बोलता है नशा बनकर होठो पर पैमानों की शराबों में मिलेंगे। जब कभी देखोगे तुम अपने आपको आईने में हम आपको आपके चढ़ते हुए शबाबो में मिलेंगे। तुमने भी पूछा था कि क्या हमको तुमसे इश्क है तुम भी हमारा खत पढ़ लेना उत्तर खत के जवाबों में मिलेंगे। कभी तुम्हारी खूबसूरती के तलबगार हम भी थे। कभी अपने चेहरे से लगाओ हम रेशमी नक़ाबो में मिलेंगे। परि...
दर्द सहना, दर्द लिखना मेरी पहचान रहने दो …
ग़ज़ल

दर्द सहना, दर्द लिखना मेरी पहचान रहने दो …

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** दिल में खौफ ए ख़ुदा मंदिर में भगवान रहने दो, करम इतना तो हो हमारे सब अरमान रहने दो। रोटी की कीमत, भूख की तलब पूछिए गरीब से, बेघर खुश हूं ऊंचे महलों के तो दरबान रहने दो। ठोकड़ों में जी रहे लिवास दवा न दुआ मिलती है, खुली किताब हूं मेरे सर पे आसमान रहने दो। लफ्जों का कोई ख़ास नायाब कारीगर नहीं हूं मैं, दर्द सहना दर्द लिखना मेरी ये पहचान रहने दो। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ह...
यूं ही बस
कविता

यूं ही बस

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब भी तुम रूठ कर न बोलोगे जानता हूं कि छुपके रो लोगे इश्क का दर्द जानता हूं मैं ये भी मुमकिन नहीं कि सो लोगे ज़िंदगी का वज़न जियादा है कैसे तन्हाइयों में ढो लोगे ग़म बहुत वैसे हैं तुम्हें हासिल खुद को इस गम में भी डुबो लोगे वक्त का इंतज़ार है मुझको साथ मेरे कभी तो हो लोगे है यकीन मुझको अपने रिश्तों में ख़ूब बारीकियों से तोलोगे याद आएगी तुमको जब मेरी अपने दामन को भी भिगो लोगे परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाश...
राम जब वन को जाते हैं
भजन, स्तुति

राम जब वन को जाते हैं

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** प्रेमी प्रजा की आँखों से आंसू बह जाते हैं ह्रदय ह्रदय में बसे राम जब वन को जाते हैं मात कौशल्या देख दृश्य यह करुण पुकार करें ह्रदय फटा जाता है उनका कौन् उपाय करें कोई नहीं जो उनके दुःख को दूर भागते हैं यह क्या सीता माई भी प्रभु राम के संग चली लक्ष्मण भी संग साथ चले यह कैसी विकट घड़ी देने को सांत्वाना नहीं कोई भी आते हैं कैकेइ, मंथरा हो रहीं पुलकित तन मन से भरत राज कर लेंगे दूर हुई बाधा हमसे मुर्छित दशरथ से भी उनके दिल न् लजाते हैं परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं य...
भारत देश की शान
कविता

भारत देश की शान

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** भारत का हर कोना-कोना, भारत के वीर पुरुषो की शान है, देखो ये भारत देश... हमारी पहचान है... देखो ये भारत देश हमारी पहचान है। उत्तर मे कश्मीर है जिसके, हिमालय जिसकी पहचान है, जहाँ रचे गए पंचतंत्र और नाट्यशास्त्र, ऋषियो की है वो तपस्थली, ऐसा ये सुन्दर कश्मीर, भारत देश की शान है। भारत के इस स्वर्ग मे कैसा वो अत्याचार था, कश्मीर का हिन्दू- मुस्लिम युद्ध देख, सबकी आंखे नम हुई, वो लहुलुहान दृश्य देख, सबका ह्दय रो पड़ा, चारो ओर एक ही गुंज 'आजादी, आजादी '। भारत का हर कोना -कोना, भारत के वीर पुरुषो की शान है, ये कश्मीर भारत देश की शान है, देखो ये भारत देश... हमारी पहचान है... परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्...
हां मैं पुरुष हूं …
कविता

हां मैं पुरुष हूं …

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** हां मैं पुरुष हूं ।। विधाता की रचना हूं। मैंब्रह्मा हूं, विष्णु हूं, महेश हूं। मै एक पुरुष हूं।।‌‌ नारी का अभिमान हूं, नारी का सौभाग्य हूं। हां में एक पुरुष हूं।।‌‌ मन की बात मन में रखकर ऊपर से हरदम, खुशमिजाज दिखने वाला परिवार की जिम्मेदारी निभाने वाला। हां मैं पुरुष हूं।।‌‌ पिता का स्वाभिमान हूं, मां के आंचल का अभिमान हूं। बचपन से घर की जिम्मेदारी लेने वाला पिता के सपनों को साकार करने वाला। हां मैं एक पुरुष हूं मैं।।‌‌ जीवन में आतेही, आपेक्षाओं से लगता है यह जीवन। बहन की शादी के सपनों का आधार हूं। हां मैं एक पुरुष हूं।।‌‌ थक कर कभी हारा नहीं, निरंतर मुझको चलना है हरदम।। आशाओं की मीनार हूं। परिवार का आधार स्तंभ हूं।। हां मैं एक पुरुष हूं।।‌ रो में सकता नहीं, डर अपना बतला सकता नहीं। ...
ऐ दुनिया वालो
कविता

ऐ दुनिया वालो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** ना खुरचो परत मेरे जख्मों से ऐ दुनिया वालो। ब-मुश्किल फरेरा किया है मैंने गमों के जख्मों को, ये गहरे घाव न बन जाएंँ तुम्हारी बेरूखी से, ऐ दुनिया वालो। बार बार गिरा हूँ लड़खड़ाया हूँ, मगर चौखट पर आकर उसकी फिर संभला हूँ, ऐ दुनिया वालो। मुझे सहारा दे देना मैं रुह को अपनी रब से मिलाने आया हूँ ऐ दुनिया वालो। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
इश्क बेहिसाब
कविता

इश्क बेहिसाब

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सारे काम वो लाजवाब कर बैठी इश्क हमसे वो बेहिसाब कर बैठी । सब देखते रहे मुुझे अखबार की तरह वो मेरे चेहरे को किताब कर बैठी। ना पीना कभी भी यह देके कसम खुद की आँखों को शराब कर बैठी। वफाओं का मिला यह सिला उसे कई रातों की नींद खराब कर बैठी। लिपट कर खूब रोए हम दोनों ही वो अपनी वफा का हिसाब कर बैठी। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अप...
येसो के गरमी बिक्कट हे
आंचलिक बोली

येसो के गरमी बिक्कट हे

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी बबा दाई हलाकान हे, येसो के गरमी मा परेशान हे, दिन अउ रात पटका (गमछा) मा दुखत बइठे, गांव मा बर-पीपर के सुघ्घर छांव हे.! गरमी अउ महंगाई सन्गरा आगे लोगन के मुठी पीरा गे, गरमी कर देहे बुरा हाल हे सर्दी बुखार आहु काल हे.! गरमी के महीना मा भोजन ले ज्यादा जल ही जीवन ये, बेजुबान जानवर अउ चिरई-चुरगुन राहगीर ला पानी ही सहारा ये.! शहर ले अच्छा मोर गांव हे, ऐसी-कुलर ले बढीया रुक छईया के सुघ्घर छांव हे, गांव के ढीहडेवाहिरन ला परमा के प्रमाण हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी - मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
मनहर के आने का संदेश पाने पर मनहरी की मनोदशा
आंचलिक बोली, छंद, सवैया

मनहर के आने का संदेश पाने पर मनहरी की मनोदशा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** सुंदरी सवैया छंद (अवधि भाषा) मुसकातु अहै उ कपाटु धरे मनवा हुलरै पियवा अजु आवै । भिनही कगवा मुँडरा चढ़िके कहवाँ-कहवाँ भलुके दुलरावै । ननदा बिहँसै जरि जायि हिया सनकी-मनकी करि खूबि खिझावै । ढुरकैं जबहीं सुरजू तबहीं फँसि जायि परानु कछू नहिं भावै ।।१।। परछायि दिखै दुअरा दुलरा दुलही जियरा खुलिके हरसावै । कबहूँ अँगना महिं नाचि करै कबहूँ ननदा बहियाँ लिपिटावै । चुपके-चुपके नियरानि जबै अँखियाँ लड़ितै घुँघटा लटकावै । कहिजा मँखना अँगना तड़पै कबुलौं दहकै कसिके समुझावै ।।२।। तुहिंसे लड़ना सजना जमुके बतिया दुइठूं करना तुम नाहीं । इसकी उसकी परके घरकी नथिया-नकिया धरना तुम नाहीं । फिरकी फिरकी अपनी-अपनी भलुके भरिके फँसना तुम नाहीं । रचिके बचिके चँदना बहकौ कपरा सबुके सजना तुम नाहीं ।।३।। पतझारि दिखै जिनिगी...
एक अनोखा ग्रह
कविता

एक अनोखा ग्रह

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सौरमण्डल का अनोखा यह ग्रह जल] थल] वायु का इच्छित संगम जन जीवों का रहवासी ये स्थल पंच तत्वों में प्रमुख इसका स्थान ये गोल ग्रह परिक्रमा करे रवि की चंदा मामा थामके पल्लू धरा का अंग-संग रहता है नन्हें मुन्नू जैसा भूमध्य रेखा मध्य से है गुज़रती सूरज दद्दू की किरणें सीधी पड़ती ज्यों-ज्यों केंद्र से दूर होते जाते ठिठुरन ज़्यादा ही कपकपाती है दोनों ध्रुवों पर तो बर्फ़ जम जाती उत्तरी व दक्षिणी ये दो गोलार्ध हैं ठन्डों में भारत मनाता क्रिसमस आस्ट्रेलिया में सेंटा गर्मी में आते कहीं नदियाँ ताल, कहीं पठार हैं कहीं हरे मैदान कहीं रेगिस्तान हैं रहते हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हैं प्रभु की ये रचना बड़ी करिश्माई है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह र...
आंखे
कविता

आंखे

सुरभि शुक्ला इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** कमाल होती हैं आंखे बिन बोले सब कह देती हैं दिल में छिपे सारे राज़ खोल देती हैं सच और झूठ से पर्दा उठा कर एक-एक रहस्य उजागर करती हैं आंखे क्या कहें इनके बारे में रोज‌ नई कहानी सुनाती हैं हर किरदार का नया रंग दिखाती हैं ये, अपने और परायों की असली पहचान कराती हैं आंखे जिनसे हम अन्जान होते हैं उन्ही किताबों के पन्ने खोलती हैं और एक नया सबक सिखाती हैं हर आदमी के अध्याय को बार-बार समझ कर पढ़ने को कहती हैं आंखे परिचय :-   सुरभि शुक्ला शिक्षा : एम.ए चित्रकला बी.लाइ. (पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान) निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) जन्म स्थान : कानपुर (उत्तर प्रदेश) रूचि : लेखन, गायन, चित्रकला सम्प्रति : निजी विद्यालय में पुस्तकालयाध्यक्ष आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
श्रृद्धांजलि
कविता

श्रृद्धांजलि

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** जब कोई सिपाही होता है शहीद मेरी आंखें होती हैं नम एक आंसू टपक कर बनता है अविरल धारा शहादत की वो अपूर्व गाथा। भले ही मेरा कुछ ना लगता हो वो अनजाना सा अपरिचित, फिर क्यों मेरे ज़हन में उठती है इक मायूसी और टीस बलिदान हमारे लिए देगया वीर। छह महीने पहले जिसकी सधवा बिलखती बन गई विधवा, नैतृत्व करते अपनी टुकड़ी तेलंगाना शूर हुआ शहीद बेहिचक नन्ही बेटी जलाती है दीप उसकी स्मृति में असमंजस। वो बीस सिपाही दस्त-बदस्त लड़े डंडे पत्थरों के ज़ख्मों से आहत, गवां गए अपने प्राण, कभी ना सोचा अपना स्वार्थ जान हथेली पर ले तत्पर। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित...
प्रदूषण का पिंजरा
कविता

प्रदूषण का पिंजरा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** झर-झर बहते झरने कल-कल बहती नदियों की आवाजें मानो गुम सी हो गई हो या हम बहरे हो गए ये समझ में नहीं आता। सोचता हूँ कैद कर लिए होंगे इन्हें प्रदूषणों के पिंजरों में किसी ने इनके मीठे शोरों को। पर्यावरण को बचाने हेतु शुष्क कंठ लिए मृगतृष्णा सा भटकता इंसान क्या इन्हे प्रदूषण मुक्त कर पाएगा। श्रमदान से नदियों को पुनर्जीवित करके इंसान माँग ले यदि वरदान भागीरथ सा तो फिर से झर-झर बहते झरने कल-कल बहती नदियों की आवाजें इस धरा पर पा सकता है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशि...
साथ उसके हबीब है कोई
ग़ज़ल

साथ उसके हबीब है कोई

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ उसके हबीब है कोई। शख़्स वो खुशनसीब है कोई। पास जिसकी हर दुआ उस पर, यार उसका ग़रीब है कोई। नींद के हाल मुस्कुराता है, ख़ाब उसके करीब है कोई। देखकर रह गया वहीं थमकर, वो नज़ारा अजीब है कोई। जान देने को अपनी हाज़िर है, वो परिंदा अदीब है कोई। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
ख़्वाहिशें जगने लगी
कविता

ख़्वाहिशें जगने लगी

ऋषभ गुप्ता तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाब) ******************** बूंदे बरसने लगी ख़्वाहिशें जगने लगी ठहरी-ठहरी सी ये जिंदगी फिर से चलने लगी, मौसम भी सुहाना हो गया आसमान का दीवाना ये राही हो गया पहाड़ों की चोटियों पर जब ठण्डी-ठण्डी हवाएं चलने लगी ठहरी-ठहरी सी ये जिंदगी फिर से गुनगुनाने लगी, ख्वाहिशों की मोमबत्तियां कैसे बुझ जाती एक हवा के झोंकें से ठहरे हुए समंदर में भी कश्ती चलने लगी, बेड़ियों में बंधा ये परिंदा आज़ाद हो गया राहों पर खड़ी ख़्वाहिशें जब ज़ोर से पुकारने लगी, नया दौर नई दास्तां आँखों में आशाएँ लिये वही पुरानी ख्वाहिशों को कलम की जुबानी ये नज़्म सुनाने लगी ठहरी-ठहरी सी ये ज़िंदगी फिर से कदम बढ़ाने लगी परिचय :- ऋषभ गुप्ता निवासी : तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाबप्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ...
निशा की माया
कविता

निशा की माया

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** फैलाई निशा ने माया, चाँद सितारों की! लौट गए रवि लेकर, अपना स्वर्णिम रथ! नर्तन कर संध्या भी, चल दी अपने पथ! निशा ने सुलाया सबको जो थे थके हुए लथपथ! विरहदग्ध रहे देखते, रातभर यात्रा तारो की!....... फैल गई चांदनी गगन, में जैसे हृदय की आस! लगे दौड़ने तारे नभ में, दग्ध मन के से संत्रास! शशि अपनी शीतलता से, उर में भर रहा विश्वास! पंहुची साधना चरम पर प्रभु पथ के प्यारो की!....... गहन तिमिर में निकल, निशाचर पा रहे आहार! मिलन की इस यामिनी में, युगल कर रहे हैं विहार! अधर्मियों के लिए निशा, सुलभ करने पीत व्यापार! निशा साक्षी हर हृदय में बनती गिरती दीवारों की! फैलाई निशि ने माया, चाँद सितारों की! परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह...
शतरंजी चालें
कविता

शतरंजी चालें

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन की *शतरंजी* चालें, हरदम चलना पड़ती। जैसी चाल कोई पड़ जाए, वैसा जीवन गढ़ती। भारतवंशी *चौरंगी* ने, बौद्धिक खेल बनाया। स्वस्थ मनोरंजन होता था, यह *चतुरंग* कहाया। चौंसठ खाने इसमें होते, यह *चौपाट* कहाती। सोलह-सोलह मोहरे लेकर, भिड़ते हैं दो साथी। श्वेत- श्याम इसके पाँसे हैं, जो *मोहरे* कहलाते। इन्हें खेलने वाले जन भी, गोरे काले कहलाते। *प्यादे* सा जीवन बचपन का, धीरे-धीरे चलता । चाहे जितना पानी डालो, वृक्ष समय पर फलता। युवा काल में होता मानव, बिल्कुल *घोड़े* जैसा। कर दिन रात परिश्रम भारी, खूब जोड़ता पैसा। युवा काल जाते ही जीवन, होता जैसे *हाथी*। खाता, पीता, मौज मनाता, परिजन, संगी -साथी। इसी समय मानव जीवन में, बजे खुशी का बाजा। मानव तभी समझता खुद को, है शतरंजी *राजा*। रहता है ...
जय हनुमान
स्तुति

जय हनुमान

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शुभ दिवस चैत्र पूर्णमासा, जन्म लियो है कृपा निधाना पिता केसरी अति प्रसन्ना जागे भाग अंजनी माता ठुमक-ठुमक पैंजनियाँ बाजे सर्व जगत को अति मन भावे लाँघे जंगल, पर्वत नापे मारुतिनंदन रवि ही निगले सीताहरण सुने हनुमाना लिए मुद्रिका आए लँका देखि दूत हर्षित है माता मीठे फल दीनी सौगाता अजब गजब ये वानर आया तहस नहस भई स्वर्णलंका महा कहर चहुँ ओर बरपा खंडहर भए महल चौबारा लखन ह्रदय तीर जब लागा अमृत जड़ ले आए वीरा दशानन का हुआ संहारा विभीषण हुए लंका राजा रामकथा वाचन नित होवे रघुनाथ नाम की जोत जले मन वचन कर्म से शुभ सोचे सर्व काज त्याग हनु विराजे परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
परमप्रीय
कविता

परमप्रीय

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** हर मन में तुम्ही बसे हो सब ग्रंथो का अर्थ हो तुम हर धर्म का आधार हो तुम सब पंथो ने किया तुम्हे वर्णित सब संतो ने किया तुम्हे प्रणीत सब शास्त्रों के हो तुम्ही कर्णित निराकार साकार तुम्ही हो सृष्टि का आभास तुम्ही हो जीवन का आधार तुम्ही हो जो पुकारे तुम्हे दिल से होते हो तुम उसे सहाई फिर चाहे हो वो कोई प्रणाई जो प्रेम करे तुम्हें अंतर से जो प्रेम करे तुम पे ह्रदय से सुनते हो तुम उसकी दुहाई फिर चाहे वो तुम्हे किसी रूप में फिर देखे वो तुम्हे किसी रूप में आते हो पास उसी रूप में भूला के उसके सारे अवगुण लगा लेते हो उसे ह्रदय से भाग्य उसका किया न जाये वर्णित ईश्वर पुकारो, अल्लाह कहो बुलाओ चाहे उसे जिजस राम कहो, रहीम कहो कन्हैया कान्हा मनमोहन पुकारो रसुलुल्लाह कहो चाहे महबुबे खुदा कहो चाहे...
चिंता…. चिंतन
दोहा

चिंता…. चिंतन

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चिंता चिंता कभी न कीजिए यह है चिता समान सेहत तन मन की हरे रखो सदा यह भान चिंता से कुछ ना बने तन दुर्बल हो जाय सुख व चैन मन का लुटे काज न कोई भाय चिंतन चिंता से चिंतन भला मन हर्षित हो जाय राम नाम का सिलसिला बन्धन मुक्त कराय शुभ चिंतन करो मनवा सभी पाप मिट जाय बिन पानी साबुन बिना मन निर्मल हो जाय परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindir...
तू… मेरी जां है…!
कविता

तू… मेरी जां है…!

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** तू..., मेरी जां है, जां है..., तू भूल गया..., मेरा..., तू जहां था, जहां था..., तू भूल गया...। तू भूल गया...।। तू..., मेरी जां है, जां है..., तू भूल गया..., मेरा..., तू जहां था, जहां था..., तू भूल गया...। तू भूल गया...।। तू सांचा था क्यूं, गैर हुआ, अपना रिश्ता क्यूं, गैर किया। दर्द भरी यादें, तू दे गया, सुना जहां मेरा, तू कर गया।। "दुआ मैं करूं..., तू खुश रहे सदा..., मुझे प्यार में..., धोखा मिल गया..., बेवफा तू..., क्यों हो गया.., बेवफा तू...।" तू भूल गया..., तू भूल गया...। तू..., मेरी जां है...।। खुला आसमां है, तू उड़ जा, संग मेरी यादें, सब भूल जा। सपने संवर गए, जो अब तेरे, कैसे बिखर गए, जो थे अपने।। "जिंदगी तुझपर मेरी..., कुर्बान हो जाए सदा..., मुझे प्यार में..., ...
मर्यादा
कविता

मर्यादा

अमित डोगरा कांगड़ा, (हिमाचल प्रदेश) ******************** मर्यादा एक परंपरा है मर्यादा एक आभूषण है। मर्यादा एक पहचान है मर्यादा स्वर की झंकार है। मर्यादा जीवन का संघर्ष है मर्यादा सच की कसौटी है। मर्यादा कुछ पाने की कसक है मर्यादा अस्तित्व की झलक है। मर्यादा जीवन का सारांश है मर्यादा परमसत्ता का अहसास है। परिचय :- अमित डोगरा निवासी : जनयानकड़ कांगड़ा, (हिमाचल प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने ...