Monday, December 15राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

बिटिया
कविता

बिटिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** माँ से बिटिया का स्नेह होता है लाजवाब बिटिया को सुलाती अपनी गोदी में लगता है जैसे फूलों के मध्य पराग हो झोली में। माँ की आवाज कोयल सी और बिटिया की खिलखिलाहट पायल की छुन-छुन सी लगता है जैसे मधुर संगीत हो फिजाओं में। माँ तो ममता की अविरल बहती नदी बिटियाँ हो जैसे कलकल सी आवाज निर्मल पावन जल की लगता है जैसे पूजते रहे सदियों से इन्हे। माँ होती चांदनी सी बिटिया हो सूरज की पहली किरण दोनों देती है रौशनी अपने-अपने पथ/कर्तव्य की लगता हो जैसे भ्रूण-हत्या का अंधकार हटा रही हो माँ-बेटी से जन्म लेते है कई रिश्ते ये होती है समाज का आधार दोनों के बिना होता है जीवन सूना लगता है जैसे इनमे बसती जीवन की सांस। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज...
आज गोकुल में बाजे बधावा
कविता

आज गोकुल में बाजे बधावा

प्रो. डॉ. विनीता सिंह न्यू हैदराबाद लखनऊ (उत्तरप्रदेश) ******************** आज गोकुल में बाजे बधावा जनम लिए नंद कुमार आज गोकुल में बाजे बधावा नन्द जी के आँगन, यशोदा जी के आँचल खेलें जग पालन हार जिसे देख दानव डर जाते दुष्ट दलन जाके निकट ना आते दुष्ट दलन जाके भय से काँपे तेरी दाँट से रह्यो घबराय, हे मैया जग पालन हार देव आदि जाको पार ना पाये ऋषि मुनि जिसे बाँध ना पाये तैने ऊखल से दियो बांध, हे मैया जग करतार ग्वाल बाल मिल मोद मनायें घर घर नाचें मंगल गायें ब्रिज नर नारी हर्षाए, जनम लिए जग पालनहार ब्रिज नर नारी हर्षाए, जनम लिए धन-धन भाग नंद बाबा के धन्य भाग यशोमति मैया के जाकी गोद में करें किलकार, हो खेलें जग पालन हार परिचय :- प्रो. डॉ. विनीता सिंह निवासी : न्यू हैदराबाद लखनऊ (उत्तरप्रदेश) व्यवसाय : नेत्र विशेषज्ञ सेवा निवृत, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष नेत्र विभ...
तिहार तीजा पोरा
आंचलिक बोली, कविता

तिहार तीजा पोरा

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता भादों महीना के तिहार तीजा पोरा! दाई, बहिनी मन ल रहिथे अगोरा! बछर म आथे बेटी माइ के तिहार, मइके जाए के करत रहिथे जोरा!! बरसत पानी करिया बादर छाय हे! भाई ह बहिनी ल तीजा ले आए हे! दाई के मया अउ ददा के दुलार ल, ठेठरी, खुरमी संग म धर के लाए हे!! भाई ल देख के बहिनी मुसकावत हे! मने मन म मइके ल सोरियावत हे! ले अब सुरु होगे तीजा के तियारी हे, गुलगुला भजिया, अइरसा बनावत हे!! मइके आके सुख दुख गोठियावत हे! जम्मों तिजहारिन करू भात खावत हे! नीरजला उपास रहे जम्मों उपासनिन, भोला शंकर कना माथ ल नवावत हे!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
दीवारें
कविता

दीवारें

सूर्यपाल नामदेव "चंचल" जयपुर (राजस्थान) ******************** दीवारें वही घर बनाती हैं जो मिलकर खड़ी होती है। तनहा पड़ी ईंटों की कोई पहचान नहीं होती।। नींव भले गहरी हो पर नफ़रते जब उनमें बोती है। गगनचुंबी नाम हो कर भी कभी आसमान नहीं होती।। तोड़ द्वेष की दीवारें आज नया विश्वास लिखें, हाथ दिलों पर रख कर प्यार का एहसास लिखें। लकीरें खींच कर रिश्ते मोहब्बत के बदनाम किए, दीवारों से ऊपर उठकर नभ में उड़ते परवाज़ लिखें। दीवारें चौकस ही रहीं जब तलक दरवाजा एक दिखे, खुशियां महफूज ही रही जो इरादे सबके नेक दिखे। निज स्वार्थ की खातिर झरोखे तुम ही बनाया किए, वो निगेहबान दीवार भी छलनी कैसे दर्द को लिखें। दीवारें सख्त जो है ये पुरानी सोच तुम्हारी दिखे, खड़ी कहां इनको करें ये जरूरत हमारी दिखे। घर भी इन्हीं से और नफरत भी इन्हीं से है, आओ सजाकर इनको प्यार का संदेश लिखें। परिचय :- सूर्यप...
भंवर
कविता

भंवर

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* एक ऐसे समय में जब काला सूरज ड़ूबता नहीं दिख रहा है और सुर्ख़ सूरज के निकलने की अभी उम्मीद नहीं है एक ऐसे समय में जब यथार्थ गले से नीचे नहीं उतर रहा है और आस्थाएं थूकी न जा पा रही हैं एक ऐसे समय में जब अतीत की श्रेष्ठता का ढ़ोल पीटा जा रहा है और भविष्य अनिश्चित अति असुरक्षित दिख रहा है एक ऐसे समय में जब भ्रमित दिवाःस्वप्नों से हमारी झोली भरी है और पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक रही है एक ऐसे समय में जब लग रहा है कि पूरी दुनिया हमारी पहुंच में है और मुट्ठी से रेत का आख़िरी ज़र्रा भी सरकता सा लग रहा है एक ऐसे समय में जब सिद्ध किया जा रहा है कि यह दुनिया निर्वैकल्पिक है कि इस रात की कोई सुबह नहीं और मुर्गों की बांगों की गूंज भी लगातार माहौल को खदबदा रही है एक ऐसे समय म...
संकल्प
गीत

संकल्प

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** संकल्पों को शीश झुकाकर, संस्कार को ग्रहण करो। सद्गुण की माला फेरो तुम, सत्कर्मों को वरण करो।। मर्दन करके सदा दंभ का, एक नया इतिहास गढ़ो। पौरुष से जीतो इस जग को, सत्य राह पर सदा बढ़ो।। कुंठित मन के भाव त्याग कर, नित उत्तम आचरण करो। अंतर्मन विश्वास जगा कर, साहस संयम धैर्य रहे। शोषित जन के दग्ध हृदय में, शीतल जल भी स्निग्ध बहे।। दीनों के तुम बनो मसीहा, तन की पीड़ा हरण करो। स्वारथ के बादल उमड़े हैं, मानवता की ज्योति जगा। चीर-हरण रोको धरती का, चंदन माटी माथ लगा।। दुष्ट दानवों का वध करके, वीरों का अनुसरण करो। मायावी आँधी को रोको, छल- प्रपंच से सदा बचो। निष्ठाओं की डोर पकड़कर, कोमल सुर संगीत रचो।। सद्भावों की बाजे सरगम, यह प्रण तुम आमरण करो। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवास...
मिथ्या फड़फड़ाहट
कविता

मिथ्या फड़फड़ाहट

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** क्यों? अब टूट गया अहम का वहम तुम तो कहते थे सब कुछ मैं ही हूं। मेरे इशारे पर ही सब चलता है मैं न चाहूं तो यहां पत्ता भी न हिलता है क्या ? अब भी कोई पूछता मांगता है? शायद नहीं क्योंकि जिद्दी व्यक्तित्व हर किसी को रास नहीं आता है। बीत गया न वक्त चली गई न सत्ता आहत कर रहे है न अपने क्या अब भी बचा है अहम का वहम? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित क...
उस पार
कविता

उस पार

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** क्या होगा मृत्यु के बाद उस पार जब बुझ जायेंगें आँखों के दिए क्या उजाला दिख पाएगा उस पार?? जब धड़कने शांत हो जाएंगीं, जितना जीवन जी लिया, क्या उतना ही मरना होगा, क्या जिया जीवन साथ ले जाना होगा उस पार?? क्या कर्म किया क्या धर्म था, यह सब भी निभाना होगा उस पार? क्या यात्रा की तैयारी कर जाना होगा जैसे जीवन भर सहेजते रहे, बटोरते रहे, समान बांधते रहे जरूरी चीजों के हर यात्रा पर कुछ जरूरी बाँध कर ले जाना होगा उस पार?? बही खाता, हिसाब-किताब में जीवन बिताया कुछ थोड़ा खुद मरे कभी कोई निर्दोष मरा ये सारी वसीयत भी ले जाना होगा उस पार?? सच-झूठ, राग द्वेष की परिभाषा नासमझ बन समझता रहा ये जीवन क्या इसका अर्थ समझ आएगा उस पार? जीवन के बाद मृत्यु तय है किसकी जीत होगी किसकी हार जीत परमा...
बंधन की मोहताज नहीं
कविता

बंधन की मोहताज नहीं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** भाई बहन का रिश्ता अटूट होता है, इस रिश्ते को किसी धागे के बंधन की आवश्यकता नहीं होती, जब मुसीबत में हो भाई तो बहन की आंखों में नींद नहीं होती, बहन-भाई का रिश्ता दिल का होता है जिन्हें जगवालों को दिखाने की जरूरत क्यों, यह भावनात्मक जुड़ाव इतना खूबसूरत क्यों, नैतिकता से परिपूर्ण इस रिश्ते में दुराव, छिपाव, साम-दाम-भेद के लिए रत्ती भर जगह नहीं होता, जगह होता है तो प्यार दुलार अपनत्व की, यह संबंध है पंचरत्न सी, बहन कभी जान नहीं मांगती मगर भाई जान लुटाने को भी तैयार रहता है, गर हो भरोसा चाहत की बयार होता है, इस ताउम्र के बंधन के बीच किसी धागे का खुमार मत लाओ, किसी के मंत्र या किसी के व्यापार के ओछी सोच को परवाज दे न फैलाओ। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत...
मां तुम्हे प्रणाम
कविता

मां तुम्हे प्रणाम

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** मां सारे पुण्यों का परिणाम हो तुम। जीवन दिया इस संसार में। जब आया तो मेरे कोरे मन पर, पहला नाम हो तुम। तुम्हारी, ममता त्याग, तपस्या, कर्तव्यनिष्ठा का परिणाम हें हम। हमेशा रहती यादों में अब भी, भूलीं बिसरी स्मृतियों में। छोड़ दिया हमारा साथ जल्दी ही, अब यादें बाकी है‌। सब-कुछ पाकर भी, अब दिल का कोना खाली है। बीते दिनों की यादें कर, अब भी आंखें नम हो जाती है। जन्म जयंती पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि सादर चरण स्पर्श नमन ... परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
तुम अजेय हो
कविता

तुम अजेय हो

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** सुनो! स्वयं के विश्वासों पर, ही जगती में टिक पाओगे। गांँठ बाँध लो मूल मन्त्र है, यही अन्यथा मिट जाओगे।। साहस - शुचिता से भूषित तुम, धरती माँ के दिव्य पुत्र हो। घबराहट से परे शौर्य की, सन्तानों के तुम सुपुत्र हो।। तुम अतुल्य अनुपम अजेय हो, बुद्धि वीरता के स्वामी हो। स्वर्ण पिंजरों के बन्धन से, मोह मुक्ति के पथगामी हो।। चलते चलो रुको मत समझो, जीवटता का यह जुड़ाव है। संघर्षों में मिली विफलता, मूल‌ सफलता का पड़ाव है।। करते हैं संघर्ष वही बस, पा पाते हैं मंजिल पूरी। भीरु और आलसी जीव की, रहती हर कामना अधूरी।। भरो आत्मविश्वास स्वयं में, स्वयं शक्ति अवतरण करेगी। बैशाखी पर टिके रहे तो, कुण्ठित आशा वरण करेगी।। घोर निराशा भरी कलह का, जीवन भी क्या जीवन जीना । तज कर निर्मल नीर नदी का, गन्दी नाली...
घूंघट
कविता

घूंघट

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** सिमट गया घूंघट देहली तक, सिमत गया घूंघट घर द्वार, सिमट गया घूंघट होठों पर, सिमट गया चित्रों में आज। घूंघट में अब लाज छुपी नहीं, घूंघट में अब शान छुपी नहीं, मान सम्मान की बात छुपी नहीं, घूंघट में अब शर्म छुपी नहीं। घूंघट में अरमान छुपे नहीं , घूंघट में कुछ बात छुपी नहीं, घूंघट में अब मान छुपा नहीं, घूंघट में कुछ राज छुपा नही। घूंघट में अब मान बिक रहा, घूंघट में सम्मान बिक रहा, घूंघट अब बाजार बन रहा, घूंघट अब व्यापार बन रहा। घूंघट कवियों की वाणी मै, घूंघट कविताओं की लेखनी मै, घूंघट बड़े बूढ़ों का मान, घूंघट राजपूतो की शान, मर्यादा और सम्मान का भाव। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूम...
स्वप्न या हकीकत
कविता

स्वप्न या हकीकत

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** एक तरफ कुंआ और एक तरफ खाई है, देखो चोर चोर मौसेरे भाई है, एक पुचकारता है एक दहलाता है, मरे कटे कोई भी इनका क्या जाता है, बातों में एक उखाड़ता है एक बसाता है, एक का छुड़ाने का नाटक एक फंसाता है, हमारे जीवन की बागडोर इन्हीं ने पकड़ा है, हमारी मस्तिष्क को इनकी चालों ने जकड़ा है, एक संयम की मूरत दूजे की चालबाजी, अंत में आधा इनका और उनकी होगी आधी, चक्र का ये प्रणेता देखो धुरंधर है, शक्ल से बदसूरत और चालें भयंकर है, ये इनकी राजनीति और यही कूटनीति, देखना न चाहे एका चलाते हैं फुटनीति, बनते हैं पथप्रदर्शक और बनते पुरोधा है, ये अपनी राह बनाने घर बहुतों का खोदा है, लोगों को मूर्ख बनाना इनकी परंपरा है, पद प्रतिष्ठा इनको मिलता अनुकंपा है, सच्चाई न पास इनके और न नैतिकता है, उलजुलूल बोल है देत...
भाई-बहन का प्यार
दोहा

भाई-बहन का प्यार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी की फैली महक, बँध जाने के बाद। रक्षा की थी बात जो, फिर से वह आबाद।। नेहभाव पुलकित हुए, पुष्पित है अनुराग। टीका, रोली, आरती, सचमुच में बेदाग।। मीलों चलकर आ गया, इक पल में तो पर्व। संस्कार मुस्का रहे, मूल्य कर रहे गर्व।। अनुबंधों में हैं बँधे, रिश्तों के आयाम। मानो तो बस हैं यहीं, पूरे चारों धाम।। सावन तो रिमझिम झरे, बाँट रहा अहसास। बहना आ पाई नहीं, भैया हुआ उदास।। एक लिफाफा बन गया, आज हर्ष-उल्लास। आएगा कब डाकिया, टूट रही है आस।। भागदौड़ बस है बची, केवल सुबहोशाम। धागे ने सबको दिया, नवल एक पैग़ाम।। खुशियों के पर्चे बँटे, ले धागों का नाम। बचपन है अब तो युवा, यादें करें सलाम।। दीप जला अपनत्व का, सम्बंधों के नेग। भावों का अर्पण "शरद", आशीषों का वेग।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म...
असहजता
कविता

असहजता

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** संघर्ष है तो हारने के डर से फिर विराम क्यों? राम है तो औरों से फिर काम क्यों? ज्ञान है तो फिर अज्ञानता का भार क्यों? जीत की तलब है तो फिर हार का खौफ क्यों? अजनबी हूँ तो फिर इतना अपनापन क्यों? अहम है तो फिर वहम भरी बातें क्यों? सहज हो तो फिर व्यवहार में असहजता क्यों? ज्ञात है सब तो फिर अज्ञात का बोध क्यों? जीवंत हो तो फिर मरण से भय क्यों? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाच...
रौद्र नाद
कविता

रौद्र नाद

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हे पाखण्ड खण्डिनी कविते ! तापिक राग जगा दे तू। सारा कलुष सोख ले सूरज, ऐसी आग लगा दे तू।। कविता सुनने आने वाले, हर श्रोता का वन्दन है। लेकिन उससे पहले सबसे, मेरा एक निवेदन है।।१।। आज माधुरी घोल शब्द के, रस में न तो डुबोऊँगा। न मैं नाज-नखरों से उपजी, मीठी कथा पिरोऊँगा।। न तो नतमुखी अभिवादन की, भाषा आज अधर पर है। न ही अलंकारों से सज्जित, माला मेरे स्वर पर है।।२।। न मैं शिष्टतावश जीवन की, जीत भुनाने वाला हूँ। न मैं भूमिका बाँध-बाँध कर, गीत सुनाने वाला हूँ।। आज चुहलबाज़ियाँ नहीं, दुन्दुभी बजाऊँगा सुन लो।। मृत्युराज की गाज काल भैरवी सुनाऊँगा सुन लो।।३।। आज हृदय की तप्त वीथियों, में भीषण गर्माहट है। क्योंकि देश पर दृष्टि गड़ाए, अरि की आगत आहट है।। इसीलिए कर्कश कठोर वाणी का यह निष्पादन है। सुप्...
फटा बनियान
कविता

फटा बनियान

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** फटे बनियान का राज बहुत है, पिता के मन का भाव जुडा़ है, छुपा है उसमें कहीं है राज, देखो एक पिता का त्याग। जोड़-जोड़ कर आगे बढ़ता, कंजूसी उस पर है थोपता, छिन-छिन हो जाये जब तक ना आप। बच्चों की हर उमंग तार मै, डॉक्टर इंजीनियर का राज तार मै, परिवार का हर भार तार मै, कई भोझ का भार तार मै, नहीं खरीदता पहने रहता, कोई आए उसे ढक वह लेता, कई दिल के अरमान है तार। सूरज की तपन है सहता, लाज शर्म मेहनत है तार मै, अपनी धुन अपना एक भाव, आगे बढ़ना उसका काम। अपने मन पर कंट्रोल हर वक्त है, नहीं चलेगी किसकी बात, फटी बनियान का बड़ा है राज, फिर भी जीता यथार्थ में आज। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन वि...
भटकाव
कविता

भटकाव

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** जिंदगी में भटकाव ही भटकाव है भटकाव दर भटकाव मेला लगा है भटकावों का मन का भटकाव... तन का भटकाव... मन चंचल है न जाने कहाँ-कहाँ भटकता है.... जब मन भटकता है मनु की सोच भटकती है जब चटकती है अतृप्त महत्वाकांक्षाएं जब खटकती है पर-प्रगति लटकती है लालसायें मटकती मन-मरीचिका सोच को उद्विग्न करती है मन डूबता जाता है आकांक्षाओं के समंदर में समंदर में भांति भांति की क्रोध,मा न, माया, लोभ सरूपी मीन सुनहरी आकर्षित करती मछलियाँ मन डोल कर हो जाता है पथच्युत भटकता स्व-निर्मित जाल में.... तन जब भटकता है उद्वेलित कर काम आवेशित कर तृष्णा भटका देता है मन भी भटकती राहें तन लिप्सा की बदल जाते संदर्भ जब भटकते तन-मन कहाँ बच पाता मन भटकाव से कैसे हो पाये मन स्थित प्रज्ञ कैसे लिख पाये व्यथित मन ...
ग़ज़ल मेरे नाम की
ग़ज़ल

ग़ज़ल मेरे नाम की

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन पहचान ही मेरी है ग़ज़ल मेरे नाम की। बूढ़ा हूॅं मेरी अब नहीं तस्वीर काम की। आए न जो समझ में गजल वो ग़ज़ल नहीं। भाषा सरल हो शेर में अदबी पयाम की।। वह दानियत के सच का ये जब से चढ़ा नशा। चाहत नहीं है अब मुझे साक़ी के जाम की।। मंजिल है क़ब्र मेरी मैं उसके क़रीब हूॅं। तारीफ़ हो रही मेरे फिर भी कलाम की।। मेहनत की खाऍंगे वो जो ईमानदार हैं। मक्कार झूठे खा रहे सारे हराम की।। ख़ामोश हो गए हैं वो कुर्सी पे बैठ कर। आवाज पहले जो थे उठते अवाम की।। बे-ख़ौफ़ हैं दरिंदे ये जिनकी पनाह में। हाथों में उनके आ गई चाबी निज़ाम की।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) भारत शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर...
बस मन से लिखूं
कविता

बस मन से लिखूं

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सुबह जागते ही आते ख्याल दिनभर कुछ लिखूं सोचकर समझकर लिखकर सचेत सबको करूँ, क्या लिखूं, कैसा लिखूं लिखकर ना कागज में रखूं लिफाफे में बंद कर ना रखूं, मनगढ़त चुभती बातें ना लिखूं मन के उपजे सवालों में, लिखकर विचारों से, जीवन का सार बदल दूँ,।। कभी घर में, कभी बाहर कभी जमीन में, कभी आसमां में, झांकता हूँ, सोचता हूँ, समझता हूं, उत्साहित, उदासीन मन को लगता है मुझे चुप क्यों फिर रहूँ, लिखने की शक्ति भरूँ इनपर भी मन की बातों का मन को स्पर्श करने सा मनभावन विचार क्यों न मन से लिखूं।। देश, समाज, जाति, की बातें मन में कैसे रखूं, मन करता है हर रोज मुसीबतों में भी मुसीबतों से लड़ने की बेधड़क मन की उपजी बातों को कलम से कागज में अविराम एकांत लिखूं।। परिचय :- ललित शर्मा निवासी : खलिहामारी, ड...
श्री गणेश जी की आरती
भजन

श्री गणेश जी की आरती

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** आरती गणपति गौरी सुतम्। सर्व मगंलकारी है गजमुखम्। आरती गणपति… सर्व लोक कल्यानार्थ अवतरितम्। सर्व सिद्ध विनायक विघ्न हरणम्। आरती गणपति… सर्व देव वरद, हो प्रथम पुजितम्। सर्व दिव्य कलाओं मे हो परिपूर्णम् आरती गणपति… सर्व शक्ति स्वरूप है सिद्धेश्वरम्। सर्व माया अधिपति विश्वेश्वरम्। आरती गणपति… सर्व बाधा हरे गणेश आयुधम्। सर्व मूषक, पाश, भुजंग, अंकुशम्। आरती गणपति… सर्व मधुर, मनोरम ये छबी अनुपम। सर्व देवों मे देव ,तुम आशुतोषम्। आरती गणपति… सर्व दुर्दिन, दुविधा, दुःख हरणम्। गण नायक, गजानन, गज कर्णम्। आरती गणपति... सर्व विद्यावन, गुणी, अति चतुरम्। सर्व आनन्द दायक है चतुर भुजम्। आरती गणपति… सर्व काज सँवारे शशीवरनम्। आए जो गजानन की शरणम्। परिचय :- कमल किशोर नीमा पिता : मोतीलाल जी नीमा जन्म दिना...
नील गगन में विजयी तिरंगा
कविता

नील गगन में विजयी तिरंगा

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** नील गगन में विजयी तिरंगा, उन्मुक्त लहराता रहे। वसुंधरा पर हो रहे शत्रु प्रबल। मां भारती तुम्हें पुकारती, बढ़े चलो अपने लहू से, विजय तिलक करे चलो। कहती मां भारती बिना डरे, गोलियों से उतार दो इनकी आरती। भारत माता की जयकार करो, शत्रु सिरों का संहार करो। तिरंगे का परचम फहरायेजा। शूरवीर गुरु गोविंद,वीर शिवाजी राजपुताना की लाज बढ़ायेजा। हाथों में तिरंगा शान से लहरायेजा। नील गगन में विजयी तिरंगा, विश्व गुरु बनकर उन्मुक्त फहराता रहे। मेरे वतन के सीने पर हमेशा, तिरंगा लहराता रहे। जन्मों तक वतन हो हिंदुस्तान, हाथों में तिरंगा शान से लहराता रहे। जय हिंद जय मां भारती।। भारत माता की जय, वंदे मातरम। परिचय :- संजय कुमार नेमा निवासी : भोपाल (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
कर्म से किस्मत
कविता

कर्म से किस्मत

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** जंग अपनी थी जंग लड़े हम लड़ के खुद सम्हल गए हम..!! दर्द था दिल में जताया नहीं अश्क आँखों से बहाया नहीं..!! राहें अपनी खुद गड़कर हम बाधाओं से खुद लड़कर हम..!! लक्ष्य मार्ग पर बढ़कर हम सफल हुए मेहनत कर हम..!! किस्मत पर भरोसा किए नहीं कर्म से किस्मत लिखें हम..!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
श्रीकृष्णावतार
दोहा

श्रीकृष्णावतार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** कृष्ण जन्मदिन मांगलिक, एक सुखद उपहार। बिखरा सारे विश्व में, गहन सत्य का सार।। कृष्ण जन्म दिन दे खुशी, सौंपे हमको धर्म। देवपुरुष सिखला गए, करना सबको कर्म।। कृष्ण जन्मदिन रच रहा, गोकुल में उल्लास। जिसने सबको सीख दी, रखना हर पल आस।। कृष्ण जन्मदिन सत्य का, बना एक उद्घोष। कंस हनन कर हर लिया, कान्हा ने सब दोष।। कृष्ण जन्मदिन कह रहा, चलो सत्य की राह। नहीं धर्मच्युत हो कभी, तभी बनोगे शाह।। कृष्ण जन्मदिन मति रचे, देता व्यापक न्याय। है दुष्टों पर वार जो, रचे नवल अध्याय।। कृष्ण जन्मदिन पूज्य है, वंदन का है पाठ। बालरूप में चेतना, निश्छल मन का ठाठ।। कृष्ण जन्मदिन रच रहा, राधाजी से नेह। अंतर का आवेग बस, दूर सदा ही देह।। कृष्ण जन्मदिन सदफलित, गीता का नव सार। उजियारे की वंदना, अँधियारे की हार।। कृष्ण ...
तानाशाह के पास
कविता

तानाशाह के पास

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* अपने वफ़ादार वर्दीधारी सैनिक थे, अपने चुने हुए जन-प्रतिनिधि थे, अपने अमले-चाकर थे, अफ़सर-मुलाज़िम-कारकुन थे, अपनी न्यायपालिका थी, अपने शिक्षा-संस्थान थे जहाँ टैंक खड़े रहते थे और तानाशाही तले जीने की शिक्षा दी जाती थी। पर तानाशाह की सबसे बड़ी ताक़त हिंसक भेड़ियों के झुण्ड जैसी वह भीड़ थी जो तानाशाह के लोगों ने बड़ी मेहनत से तैयार की थी। इसमें समाज के अँधेरे तलछट के लोग थे और सीलन भरे उजाले के पीले-बीमार चेहरों वाले लोग थे और जड़ों से उखड़े हुए सूखे-मुरझाये हुए लोग थे। यह भीड़ तानाशाह के इशारे पर किसीको बोटी-बोटी चबा सकती थी, सड़कों पर उन्माद का उत्पात मचा सकती थी, बस्तियों को खून का दलदल बना सकती थी। सम्मोहित-सी वह भीड़ हमेशा तानाशाह के पीछे चलती थी और तानाशाह के इशारे का इंतज़ार करती थी। त...