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पद्य

बाट और बटोही
कविता

बाट और बटोही

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** सब चले हैं, सब चलते हैं, सब चलेंगे... अपनी अपनी बाट। कोई सोचता चलने से पूर्व कोई सोचता ठोकर के बाद। कोई बिछाता कंटक राह में, कोई करता कंटक साफ। राह में रोड़े,पत्थर तमाम मिलेंगे सघन झाड़ियां की उलझाहट विषैली बेलों की लिपटाहत। धूप छांव में अपनी परछाई पहचान खुद से करवाती हुई घने जंगल मे खो जाएगी । उंगली पकड़ सहारा देने वाले सिमटे हुए पीछे रह जाएंगे। कदमों मे गर ताकत होगी, सफर बाट का आसान होगा। इच्छा शक्ति से मन भरा हो तो मंजिल का दरवाजा पास होगा। अपनी बाट, अपनी हो चाल धोखा दे कोई, क्या मजाल? देखा-देखी दूसरों के कहने लगे नशे के गर्त में रहने। झूठी शान,झूठा दिखावा एकमात्र मन का बहकावा। बाट कुसंगति की अति वृथा मानव समाज से होता पृथा। समय, स्थान, स्थिति को जानो तब राह पर पग धरने की ठानो। बि...
जिंदगी धोखा है और मौत सच्चाई
कविता

जिंदगी धोखा है और मौत सच्चाई

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ऐसा नहीं है कि मुझे कोई दर्द नहीं होता मुस्कुराती हूँ हरदम पर साथ हमदर्द नहीं होता जिंदगी के हर मोड़ पर लोगों ने कदम रोका है, काम निकल जाने पर छोड़ा और दिया धोखा है। हमने भी अब समझ ली है दुनिया की ये रस्म अपने अफसानों की ये बना ली नज्म वफ़ा के बदले हमको मिलती है बेवफाई। जिंदगी हसीन धोखा है और मौत है सच्चाई ।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके...
खट्टी मीठी यादें
कविता

खट्टी मीठी यादें

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** वर्ष बीत गया कुछ कुछ कवड़ी मगर सच्ची यादें सब के जीवन को बदला कुछ अच्छी सच्ची बातें आहिस्ता-आहिस्ता नव वर्ष आ ही गया करें स्वागत नव ऊर्जा नव उमंग नव उत्साह संग आओ करें स्वागत कुदरत ने ये कैसा कहर बरपाया कांप उठा इंसान सांसों ही सांसों में जहर घुल गया फंस गई थी जान डर-डरकर दूर-दूर रहकर पल-पल जीता इंसान हर पल मौत का साया मंडराता था कांपता जहान क्या होगा कैसे होगा कोई ना समंझ पाता था इंसान के समक्ष सात्विक जीवन ही आधार था मौत के खौफ से सीख लिया जीने हुनर इंसान धन, दौलत सोना चांदी सब माया है समझा इंसान कुछ ऐसा शपथ लें और पूर्ण करें हम सारे वादे जिंदगी और कुछ भी नहीं केवल खट्टी-मिठ्ठी यादे लगता था जैसे सब कुछ खो जाएगा मन बेहाल जद्दोजहद थी जीवन की उतने ही था आटा दाल सम्हलकर चलना यारों जिन्द...
अभिनन्दन है, नववर्ष
कविता

अभिनन्दन है, नववर्ष

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** अभिनन्दन है, सादर अभिनन्दन स्वागत पुनः, पावस वर्ष तुम्हें उम्मीदों कि, सुबह लिए खुशियों की, अद्भुत शाम लिए कुछ बेहतरीन सा, याद लिए कुछ चुनिंदे, वो फरियाद लिए बागों में, बसंत, लाजवाब लिए पल-पल की, खुशियाँ बेहिसाब लिए कई बेहतरीन, कुछ ख्वाब लिए कुछ दिलों के लिए, जज्बात लिए कुछ खास, मिलन कि, किताब लिए कुछ, बिछड़ने का, जवाब लिए अद्भुत सुन्दर सी, सुबह लिए कई खास सुहानी, रात लिए खेतों की मेड़ो पर, फिर चमक लिए फसलों में सौंधी सी, शाम लिए अभिनन्दन है, सादर अभिनन्दन स्वागत है, पावस, वर्ष तुम्हे!! परिचय : दुर्गादत्त पाण्डेय सम्प्रति : परास्नातक (हिंदी साहित्य ) डीएवी पीजी कॉलेज, बनारस यूनिवर्सिटी वाराणसी निवासी : वाराणसी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
शरणागत
भजन, स्तुति

शरणागत

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं दीनहीन दुखीयार हूं मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं जन्म-जन्म का मारा हूं मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं हर जगह से हारा हूं मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। रोग शोक ने मुझे घेरा है मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं अज्ञान अंधकार में डूब रहा मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं चेतन से जड़ बन रहा मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं हर दिन पाप कर्म कर रहा मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं तेरी खोज में हर पल भटक रहा मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। मैं तेरे प्रेम स्नेह के लिए तरस रहा मुझे अपनी शरण में प्रभु रख लो न। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता ...
करुणा
कविता

करुणा

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** जब देखूँ उसकी दारुण दशा, हृदय में करुणा भर आती है। हमदर्दी वश रहा नहीं जाता, सदा उसकी फ़िक्र सताती है।.... फटी बंडी टूटी चप्पलों में, सर्दी गरमी सब सहता है। मन मौसकर रहता सदा, कुछ ना किसीको कहता है। जानें क्यों आँखें कतराती है, जब देखूँ उसकी दारुण ......। दो वक्त सादा खाकर भी, स्वाभिमान से वह जीता है। छल कपट से दूर रहकर भी, जीवन ना उसका रीता है। यह देख दीनता भी शरमाती है, जब देखूँ उसकी दारुण......। राष्ट्र धर्म की बातें करते, सब झूठी आहें भरते है। है फ़िक्रमंद इनका भी कोई, तो फुटपाथ पर क्यों मरते है। देख दीन दशा आँखें पथराती है, जब देखूँ उसकी दारुण.......। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह ...
वक़्त की गाड़ी
कविता

वक़्त की गाड़ी

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** वक़्त की गाड़ी है वक़्त के  साथ चलेगा ! उगता हुआ सूरज भी शाम को   ढलेगा !! ज़ख्म है जिस्म में तो मल हम भी मिलेगा ! आज है ख़ुशी तो  कल गम भी मिलेगा  !! बागों में कलिया है तो फूल भी खिलेगा ! महकेगा चमन तो कभी कांटे भी चुभेगा !! कभी जीत मिलेगा तो कभी हार मिलेगा ! कभी पतझड़ मिलेगा तो कभी बहार मिलेगा !! कर रहे हो  मेहनत  तो  फल भी मिलेगा ! दुनिया में हर समस्या का हल भी मिलेगा !! थक कर ना बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर ! आज नहीं तो कल  मंजिल  भी  मिलेगा !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
जीवन की कठिन परीक्षा में
कविता

जीवन की कठिन परीक्षा में

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवन की कठिन परीक्षा में, अब वो ही अव्वल आएंगे। जो खुद से रोज़ लड़ेंगे अब, खुद को ही रोज हराएंगे। इसलिए कभी फूलों की खातिर, घर से नहीं निकलता हूं। कांटों की सेज बना ली है, अब कांटों पर ही चलता हूं। ये देख तमाशा दुनिया का, मैं अंदर से घबराया हूं। औरों की खातिर अपना हूं, अपनों के लिए पराया हूं। अब इस छोटे से जीवन को, तन्हां ही सही जिया जाए। औरों को खुशियां दी जाएं, अपनों का दर्द लिया जाए। मैं नहीं कभी अब रोऊंगा, ऐसा संकल्प लिया जाए। मेरी खातिर जो रोया है, खुश उसको आज किया जाए। परिचय :-  प्रशान्त मिश्र निवासी : ग्राम पचवारा पोस्ट पलरा तहसील मऊरानीपुर झांसी उत्तर प्रदेश शिक्षा : बी.एस.सी., डी.एल.एड., एम.ए (राजनीतिक विज्ञान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौ...
दहेज़ एक कुप्रथा
कविता

दहेज़ एक कुप्रथा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** लिखा नही इस विषय में निर्मल, लिखना बहुत ज़रूरी है सच बोलो ऐ दहेज़ लोभियों क्या दहेज़ लेना मजबूरी है? न जाने कितने ही घर बर्बाद हो रहे दहेज़ की बोली में बेमौत मर रही कितनी ही बेटियाँ, बैठ न पाईं डोली में। पिता के नयनों में आंसू है, बेटी के हाथ पीले कराने में कितनों के जोड़े हाथ, पैर पड़े, शर्म आती है बतलाने में। घर गहने, खेत, खलिहान बिके इस दहेज़ की बोली में बेमौत मर रही कितनी ही बेटियाँ, बैठ न पाईं डोली में। दहेज़ लोभी समाज की हैं यह कितनी भयावह तस्वीरें बिखर चुके कई परिवार यहाँ और फूट रही हैं तकदीरें। पढ़े-लिखे, शिक्षित जवान, क्यूँ बनते आज भिखारी हो दहेज़ मांगने वालों तुम समाज की गंभीर बीमारी हो। जिस पर गुजरे वो ही जाने, बात नही है यह कहने की इतना मत माँगो दहेज़ कि सीमा टूट ही जाए सहने की। इसी दहेज़ के ...
तू नारी है तू भी जी ले…
कविता

तू नारी है तू भी जी ले…

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** खुले घाव को बखिया करले फटे जख्म पेबंद लगा ले रंजो गम को दरकिनार कर तकलीफों पर बाम लगा लें तू नारी है तू भी जी ले पल्लू के पहले कोने पर बांध समय अपने हिस्से का सखी सहेली संग साथ ले कुछ अपनी मर्ज़ी का कर ले तू नारी है तू भी जी ले... रिश्ते नाते बहुत सवांरे बिखरे कुंतल भी सवांरले सख्त इरादे रख मुट्ठी में तारे धरती पर उतार ले तू नारी है तू भी जी ले... देवी बनकर नहीं पुजाना नेह उड़ेल सबको समझादे तू है सृजना इस सृष्टि की कभी बोलकर भी बतला दे तू नारी है तू भी जी ले... तू इंसां है तू भी जी ले!!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
नव तरंग
कविता

नव तरंग

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** महके मधुबन-सा जीवन गुंजार करे भ्रमर-सा मन बजे खुशियों की पायल कूके मन के आंगन कोयल करे ना अपनों से कोई छल बने मन पावन जै से गंगाजल उमंगों की हो मन में नव तरंगें हर्ष सुमन खिले हो रंग बिरंगे नववर्ष लेकर आए जीवन में नव मधुमास महके हर तन मन लेकर नव सुवास सजे घर-घर संस्कृतियों की थाली फैले चहुं ओर  संस्कारों की सुरभि निराली सपने सच हो सबके सहनी पड़े ना अब कोई पीर पूर्ण हो अभिलाषा हृदय की चाहे अब यही "नीर" परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्...
प्रकृति की पूजा
कविता

प्रकृति की पूजा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गरजती-चमकती बिजलियों से अब डर नहीं लगता अपने पसीने से सींचे हुए खेतोँ में लगे अंकुरों को देखकर लगने लगा हमने जीत ली है मान-मन्नतो के आधार पर बादलों से जंग। वृक्ष कब से खीचते रहे बादलों को अब पूरी हुई उनकी मुरादें पहाड़ो पर लगे वृक्ष ठंडी हवाओं के संग देने लगे है बादलो को दुआएँ। पानी की फुहारों से सज गई धरती की हरी-भरी थाली और आकाश में सजा इन्द्रधनुष उतर आया हो धरती पर बन के थाली पोष। खुशहाली से चहुँओर हरी-भरी थाली के कुछ अंश नैवेध्य के रूप में ईश्वर को समर्पित कर देते है किसान श्रद्धा के रूप में शायद, ये प्रकृति की पूजा का फल है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश...
हम छोटे ही अच्छे थे
कविता

हम छोटे ही अच्छे थे

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मासूमी से बाते करते, समझदारी में कच्चे थे बड़े होने का शौक चढ़ा था, जब हम छोटे बच्चे थे नंगे पैर दौड़ लगाते, सजाते ख्याबो के लच्छे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे स्कूल जाना वापस आना, संग दीदी के होती थी डांट पड़ती हमको, जब गुम कोई चीज होती थी टूटे दांतो मे दर्द होगा, बस इतनी चिंता होती थी अब चिंता से गहरा नाता, तब नादानी में सच्चे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे राजा जैसा रख रखाव और जेवर गुड़ियां होती थी नखरे बढ़ते जाते मेरे, घर में रौनक होती थी दालमोट संग बिस्कुट खाना, ऐसी सुबह तब होती थी अब हड़बड़ में जिंदगी, तब हँसी के घरों में छज्जे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे दोस्त यार अब साथ नही, गपशप किसके साथ करे नियम बना है जीवन मेरा, नि...
कहाँ गंगाजल है
ग़ज़ल

कहाँ गंगाजल है

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** निकलता नहीं, क्यों सवालों का हल है, हैं गलत फॉर्मूले और कुतर्कों में बल है । लूटे जाएं हमसे और निठल्लों में बांटे- राजधानी, या फिर, घाटी-ए-चम्बल है । सब अपेक्षाओं से नाता, जो हैं तोड़ देते- उन्हीं बावलों का, बस जीवन सफल है । अपनी व्यवस्था की डोर, है चार हाथों- व निर्णय सभी का, अलग आजकल है । जब आजाद हैं हम, तो कुछ भी करेंगे- और कुर्सी पर बैठे, गांधी जी अटल हैं । गिरी मक्खी नहीं, दूध में छिपकली है- इसे पूरा ना बदलना, मेरे साथ छल है । तूने ही तो किया, सारे तत्वों को दूषित- अब ढूंढ़ता फिर रहा, कहाँ गंगाजल है । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षि...
तेरे पहलू में मुझे आने की तेरी इजाज़त न सही …
ग़ज़ल

तेरे पहलू में मुझे आने की तेरी इजाज़त न सही …

सुधाकर मिश्र "सरस" किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) ******************** तेरे पहलू में मुझे आने की तेरी इजाज़त न सही। अपने दिल से कर दो रुखसत ये हो नहीं सकता।। लाख फेरो यूँ नज़र मुझको जलाने की खातिर। पलट - पलट के न देख तू ये हो नहीं सकता।। मैं वाकिफ हूं तेरी हर एक उन कमजोरियों से। तुम उनसे तोड़ चुकी हो रिश्ता ये हो नहीं सकता।। मुझको मालूम है तेरे दिल को बिछड़ने का है डर। जिस्म से जान हो जाए अलग ये हो नहीं सकता।। हम तुम एक हैं जनम से, है ज़माने को खबर। तेरी इजाज़त न हो ज़माने को ये हो नहीं सकता।। परिचय :-  सुधाकर मिश्र "सरस" निवासी : किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) शिक्षा : स्नातक व्यवसाय : नौकरी पीथमपुर जन्मतिथि : ०२.१०.१९६९ मूल निवासी : रीवा (म.प्र.) रुचि : साहित्य पठन व सृजन, संगीत श्रवण उपलब्धि : आकाशवाणी रीवा से कहानियां प्रसारित, दैनिक जागरण री...
रिश्ते
कविता

रिश्ते

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** रिश्ते अपने रिश्तों से दूर होने लगे है, क्यों लोग इस कदर मजबूर होने लगे हैं। दुश्मनो से दोस्त कर रहें है इल्तजा, कपटहीन चेहरे कितने मगरूर होने लगे है। ज़माने का कैसा हो गया मिजाज, भ्रातृ भाव कितने बेनूर होने लगे है। आजमा कर देख निर्दय ज़माने को, चेहरे पर कई चेहरे जरुर होने लगे है। रिश्ते,नाते सब विचित्र मायाजाल, पैसे ही चेहरों के नूर होने लगे है। चाह न रख स्वर्णिम पंखो की अब, सारे सपने अब चूर चूर होने लगें है। तंगहाली, कविता हमारी हमसफर, अल्लाह के करम, पुरनूर होने लगें हैं। परिचय :- नितेश मंडवारिया निवासी : नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
दौर-ऐ-गर्दिश आते जरुर है
ग़ज़ल

दौर-ऐ-गर्दिश आते जरुर है

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** मुझको आदत नही ठगने की जमाने को, हर रोज निकलता कमर कस कमाने को। साफगोई ने दुश्मन बना लिऐ, चारो ओर, जुबां जब बोले बचता न कुछ छुपाने को। तुम भी कभी कर के देखो मेरी तरहा से, तुमको भी मजा आऐगा सच दिखाने को। माना कि मुश्किल है मगर पिछे न हठना, बढ़ाऐं कदम जब कहे कोई आजमाने को। करते रहे यूं ही गर हम हर बार नादानियां, रहेगा न इक पल पास हमारे पछताने को। दौर-ऐ-गर्दिश आते जरुर सभी के "जैदि" थोड़ा कहीं ज्यादा, छोड़ो न इस पैमाने को। अर्थ :- साफगोई :- स्पष्ट वादिता दौर-ऐ-गर्दिश :- बुरा समय परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) कार्य : राजकीय सेवा, पद : वरिष्ठ तकनीक सहायक, सरदार पटे...
आना जाना
कविता

आना जाना

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** लगा हुआ है आना जाना! बंदे इस पर क्या पछताना! सृष्टि ने यह नियम बनाया, जो भी जीव यहां हैं आया, वक़्त सीमित सबने पाया, रह कर बंदे इस दुनिया में इक दिन सबको चले जाना!... सारे आने वाले यहां पर, देखे दुनियादारी यहां पर, मेरा मेरा ही करे यहां पर, इतना सा भूल है जाता, कुछ भी साथ नही जाना!.... ये दुनिया जानी पहचानी, वो दुनिया तो है अनजानी, दोनों की हैं अजब कहानी, चले गए जो इस दुनिया से, नही उन्हें अब वापस आना!... सुख- मंदिर जग में सारे, लगते जो हैं सब को प्यारे पर ये नही है तारणहारे करना होगा सत्कर्म फ़कत यही तो बस साथ हैं जाना!... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं...
ठिठुरन
कविता

ठिठुरन

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** समय पुराना बीत गया, धूँध से सहम रीत गया, कहीं बाढ़ की आफत आयी, महामारी ने छीना सब हर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। कुंठित मन का आस है झेला, कंपित है बर्फ रुग्ण मन ढेला, दिनकर को ढक दी तम चादर, जन जीवों में छिपा उत्कर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। कामगार भी ठिठुर गए हैं, सबके अरमां भी बिटुर गए हैं, मानवता पर बड़ी बीमारी, अब पाँव फुलाये विदेशी फर्श, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। लटके कुसुम भारी जल कण से, दुबके बाल शीतों के रण से, देती है दर्द अब ठलुआ रुई ठंडक रवि का बड़ा प्रतिकर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
दिल से
कविता

दिल से

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** वो यादें वो लम्हें वो बातें वो दिन, क्यां लिखूं मैं अपनी कलम से। वो दोस्तों के साथ बितें दिनों की बात क्यां कहूं मैं अपने दिल से।। आखिर अपने तो अपने ही होते है याद कर लेता हूं मैं फिर से। बस यूं चलते रहे आगे बढ़ते रहे मिलेंगी सफलता जरुर राही ने कहां मंजिल से। दिल की सुन अपनी मन की कर और आगें बड़ लहारों ने कहां साहिल से। जिंदगी एक खेल हैं कभी खुशी-कभी गम है और मत ले टेंशन जियों दिल से।। गीत-संगीत‌ सुर ताल जहां सुनाई देती है भरी महफिल से। हर समंदर के उस पार तैर कर जाना है जहां गहराई ही क्यों न हो झिल से।। परिचय :- डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
जादुई चिराग़
कविता

जादुई चिराग़

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** सफल होती जिंदगी भी बेहिसाब लगती है! मेरी मेहनत लोगों को जादुई चिराग़ लगती है।। थक हार के जब भी कभी मैं बैठ जाती हूं, सोचती हूं फिर में खुद को अकेला ही पाती हूं ।। एक दिन मैं अपने मन को बड़ा किया नही जाता, छोटे-छोटे पहलुओं से मिलाकर जिया नहीं जाता ।। काश सच मैं कोई जादुई चिराग़ मेरे पास भी होता अब छुट्टी लेकर इंतमिनान से घर बैठा नही जाता।। की लम्हे छोटे-छोटे से है और काम बहुत है मुझे किसी एक के हालत को देखकर सोचा नहीं जाता।। जादुई चिराग़ होता तो मांग लेती सबकी खुशी, किसी एक की खुशी पर मुझसे खुश रहा नही जाता।। मेरे पहलू मैं बैठकर देखोगे तो पाओगे मुझे तुम इस कदर, तुम्हारी खुशी मैं खुश हूं मुझे अपने लिए जीना नहीं आता।। नायाब कोई जादुई चिराग़ की तरह अब और मुझसे, वक्त की रेत पर...
वही अनबुझे से सवाल हैं वो ही टीस वो ही मलाल है
ग़ज़ल

वही अनबुझे से सवाल हैं वो ही टीस वो ही मलाल है

मुकेश सिंघानिया चाम्पा (छत्तीसगढ़) ********************          ११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२ वही अनबुझे से सवाल हैं वो ही टीस वो ही मलाल है नया कुछ कहाँ नये साल में वही सब पुराना सा हाल है लुटी सी थकी सी हैं ख्वाहिशें दबी हैं जरूरतों के तले सरेआम होती नीलाम रोज तमन्नाएं बेमिसाल है नही बदला ढंग कहीं कोई वही आदतें है पुरानी सब है अभी भी बेपरवाहियाँ नही समझा कोई कमाल है यूँ डरे डरे तो हैं सब मगर है दिलों में सबके ही खौफ़ सा तो भी जश्न कैसे छूटे कोई ये तो रूतबे का सवाल है न की खैर की कभी मिन्नतें किसी हाल चाहे ही हम रहे जो मैं पी गया हूँ उदासियाँ मेरे दर्द को भी मलाल है न ही दिन ही बदला न रात ही न नया कोई भी कमाल है कहो किस तरह से कहें इसे भला हम की ये नया साल है मत पूछ मुझसे तू रास्ता मैं भटक रहा हूँ यहाँ वहाँ मुझे खुद की कुछ भी खबर नही मेरा जीना जैसे बवाल है ...
पानी के मुहावरों पर आधारित गीतिका
गीतिका

पानी के मुहावरों पर आधारित गीतिका

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** जल ही जीवन, तत्त्व प्रमुख है, जलमय है सारा संसार। उठ जाता है दाना-पानी, बिन जल मचता हाहाकार।।१ जल में रहकर बैर मगर से, करता कभी नहीं विद्वान, पानी फिर जाता है श्रम पर, मत पानी पर लाठी मार।।२ कच्चे घट में पानी भरना, अर्थ और श्रम का नुकसान, आग लगा देता पानी में, जिसने खुद को लिया निखार।।३ अधजल गगरी चले छलकते, जाने कब पानी का मोल, पानी भरना, पानी देना, पानी सा रखना व्यवहार।।४ चुल्लू भर पानी में मरना, नहीं चाहता है गुणवान, तलवे धोकर पानी पीना, सीख गया मन का मक्कार।।५ दूध-दूध पानी को पानी, करता सच्चे मन का हंस, हुक्का-पानी बंद न करना, कभी किसी का पानी मार।।६ घाट-घाट का पानी पीना, नहीं सभी के वश की बात, पानी पीकर कोस न 'जीवन', पानी की सबको दरकार।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतू...
नया साल ऐसा आये
कविता

नया साल ऐसा आये

आशीष कुमार मीणा जोधपुर (राजस्थान) ******************** नया साल ऐसा आये सबकी खुशियाँ लाये। गरीब का ठिकाना हो सबको आबो-दाना हो रहे नहीं तकलीफ कोई भी सबकी बिगड़ी बात बनाये नया साल ऐसा आये...... कोई ना बीमार रहे खुशियों की बौछार रहे बैर रहे ना कहीं किसी में सब अपना कर्तव्य निभाये नया साल ऐसा आये ..... माता पिता का हो सम्मान पूरे सबके हों अरमान बनी रहे जीवन भर शान बात समझ ये सबके आये नया साल ऐसा आये ....... कब किसको आना-जाना है वक्त के हाथ जमाना है प्रेम की बांधे डोर चलो रब के मन को ये ही भाए नया साल ऐसा आये सबकी खुशियां लाये। परिचय :- आशीष कुमार मीणा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र ...
नव नवल नूतन
कविता

नव नवल नूतन

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** कल रात से ही, ज़मी से लेकर, आसमाँ तक था, ठंड का पहरा, दसों दिशाओं तक उसने फैला रखा था कोहरा ही कोहरा, जम चुकी थो नवजात ओस, कहीं नहीं था कोई भी शोर, सनसनाती तीर सी हवा चल रही ठंड के पँखों से दिखला रही जोश, सूरज खो चुका गर्म एहसास, नहीं मानता धरा का ऐहसान, पर जरा ठहरो! गौर से देखो नर्म-गर्म हथेलियाँ फैलाकर, भविष्य के गर्भ से पैदा हो रहे नव वर्ष शिशु को थाम रहा सूरज परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...