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पद्य

माँ की बेटी
कविता

माँ की बेटी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** खुशीयाँ है बेटी, स्नेह है बेटी, भाव है बेटी प्रित है बेटी। मान हे बेटी सम्मान है बेटी, घर आंगन में बहार हे बेटी। शुभ हे बेटी, पूज्य हे बेटी, मर्यादा की मूरत है बेटी। गंभीर हे बेटी, संतोष हे बेटी, सबके मन का राज हे बेटी। दया हे बेटी क्षमा हे बेटी, शक्कर से भी मीठी है बेटी। काम में बेटी नाम मे बेटी, दीपक सा प्रकाश हे बेटी। साहस बेटी, शक्ति बेटी, आन बान और शान हे बेटी। किरण का सा तेज है बेटी, विजय की पहचान है बेटी। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक ...
अग्रगण्य बजरंगबली हैं
कविता

अग्रगण्य बजरंगबली हैं

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अग्रगण्य बजरंगबली हैं, अतुलित बल पाया है। माता सीता पुत्र मानतीं, रघुवर का साया है। अग्रगण्य जो हैं दुनिया में, उनका वंदन होता। पर उपकारी का दुनिया में, है अभिनंदन होता। अग्रगण्य हैं श्री गणेश जी, घर-घर पूजे जाते। शुभारंभ में गौरा सुत को, मिलकर सभी मनाते। अग्रगण्य गुरुवर समाज में, अंधकार को हरते। सिखा ककहरा, हृदय शिष्य के, ज्ञान उजाला करते। अग्रगण्य ऋषि मुनि सन्यासी, हमें सुपथ दिखलाते। जीवन जीने का कौशल भी, हमें सदा सिखलाते। माता अग्रगण्य गुरुओं में, जीवन सुखमय करती। प्रथम पाठशाला बनाकर माँ, ज्ञान हृदय में भरती। जो सेवा में अग्रगण्य हैं, उनको मिलता मेवा। सेवक की रक्षा करते हैं, सदा गजानन देवा। अग्रगण्य बनकर जीवन को, हम खुशहाल बना लें। जो रूठे हैं स्वजन हमारे, चलकर उन्...
जिंदगी खंडहरों में
कविता

जिंदगी खंडहरों में

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** बिखरी हुई छोटी-छोटी खुशियों को, नजरंदाज करके, उलझी पड़ी है जिंदगी खंडहरों में। बेलगाम इच्छाएं, मुंह बाए खड़ी मौत सी, पाने की जद्दोजहद तिल तिल तनाव में। परिवार समाज को छोड़कर, अपनी नज़र से कभी खुद को देखो, तुम खुद पर फ़िदा हो जाओगे। धूल जम गई है हजारों सपनों पर, उन सपनों को बुनने लग जाओगे। एक बार फिर से सुन लिजिए, ध्यान मग्न मुनियों से, भर यौवन बहती नदी की कल-कल को। खिल उठोगे अबोध बालक से, चिंता को किनारे लगा, क्षण भर निहारे खिलते फूलों को। तितली के सुनहरे पंखों सी जिंदगी, गुनगुना ने दो भ्रमर को, गाने दो मन की कोयल को। संघर्ष और जिजिविषा, पहाड़ों की तलहटी में नदी से, सीख ले पत्थरों को चीरना। डूबने का डर छोड़कर जान ले, पानी के वक्ष पर नाव से चलना। कभी सुनो तो सही, बाग में बैठकर शांति से, खेलते बच्...
लम्हों में सिमटी ज़िंदगी
कविता

लम्हों में सिमटी ज़िंदगी

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** ज़िंदगी लम्हों में सिमटी है। खुशी और गम में बंटी है। ******* कुछ लम्हें खुशी के होते हैं। कुछ लम्हें दुःख देते हैं। और हम ज़िंदगी भर यूं ही रोते हैं। ******* लम्हा जिंदगी का एक क्षण है। जो बदलता हर पल है। ******* लम्हें चाहें क्षण भर के हो। पर याद उम्र भर की होती हैं। इसी के सहारे हमें गम या खुशी नसीब होती है। ******* कभी फुरसत के लम्हें होते है कभी काम के लम्हें होते हैं। परन्तु हर वक्त मेरे प्रियतम मेरी यादों में होते है। ******* चुरा लो खूबसूरत लम्हें इस जिंदगी से क्योंकि कितनी बाकी है जिंदगी? किसीको पता नहीं। ******* लम्हों पर भारी पड़ गई है महंगाई। इसलिए फुर्सत के लम्हें नहीं मिलते मेरे भाई। ******* अफसोस न कीजिए बुरे लम्हों को। बुरे थे इसलिये जल्दी चले गये । *****...
कुमुदिनियों के गजरे सूखे
गीत

कुमुदिनियों के गजरे सूखे

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कुमुदिनियों के गजरे सूखे, वसंत की अगवानी में। रोम-रोम छलनी भँवरे का, माली की मनमानी में।। परिवर्तन आया जीवन में फूल गुलाबों के चुभते। गुलमोहर के पेड़ो में अब, बस काँटे निशदिन उगते।। गयीं रौनकें हैं उपवन की सुगंध न रातरानी में। बोली लगती सच्चाई की, मिथ्या सजी दुकानों में। प्रतिपक्षी आश्वासन देते, नारों भरे विमानों में।। दाग लगा अपनी निष्ठा को, पोंछें चूनर धानी में। लाक्षागृह का जाल बुन रही, बैठी कौरव की टोली। विष का घूँट पी रहे पाँडव, खाकर रिश्तों की गोली।। जमघट अधर्मियों का लगता, आग लगाते पानी में। पाँच सितारा होटल में तो, भाग्य गरीबों का सोता। नित्य करों के नये बोझ से, व्यापारी बैठा रोता।। चोट बजट घाटे का देता, अपनी ही नादानी में। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवा...
मरा हुआ आदमी
कविता

मरा हुआ आदमी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मरा हुआ आदमी सबसे पहले मरने का इंतजार करता है, होते भी है या नहीं वो आत्मा भी मर जाती है, फिर मरा हुआ आदमी बोलना चाहता है, पता नहीं किस मंसूबे से मुंह खोलना चाहता है, पर मुंह खोल नहीं पता, कुछ भी बोल नहीं पाता, क्योंकि वो पहले से मरा हुआ जो है, वो चीखना चाहता है, चिल्लाना चाहता है, पर कुछ भी कर नहीं पाता, क्योंकि पहले कभी मुंह खोला जो नहीं था, समाज को कुछ बताना चाहता है, कुछ जताना चाहता है, पर कुछ कर नहीं सकता, क्योंकि समाज के बीच कभी गया नहीं, मरी हुई जिंदगी में सिर्फ तृष्णा के पीछे भागा था, समाज खातिर चंद लम्हा भी नहीं जागा था, इस तरह फिर से मर जाता है वो मरा हुआ आदमी। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
ह्र्दयप्रदेश मध्यप्रदेश
कविता

ह्र्दयप्रदेश मध्यप्रदेश

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** भारत भूमि का अनुपम अंग सुख समृधि से भरा परिवेश। प्राणों से भी प्राण प्यारा है, ह्र्दयप्रदेश हमारा मध्यप्रदेश।। तीन सौ बाइस ईसा के पूर्व, चंद्रगुप्त मौर्य राज उदय हुआ। उन्नीस सौ पचास में बना म.प्र. कई रियासतों का विलय हुआ।। भोपाल बनी नव राजधानी नव खुशियों का आगाज़ हुआ। लड़े समर स्वतंत्रता हित कई तब स्थापित ये स्वराज हुआ।। बनी हमारी राजभाषा "हिंदी" "बारहसिंगा" बना पशु प्रथम। "माच" नाट्य शिरमोर हुआ नृत्य "राई" भी बना हमदम।। खेल भाया है "मलखम्ब" का, पक्षी "दूधराज" भी अनुपम है। सफेद "लिली" की निर्मल गंध चित्रकूट की छटा सर्वोउत्तम है।। "बरगद" वृक्ष शान राज की, भाता फल "आम" रसीला भी। ओरछा, सांची, खजुराहो, मांडू, का नीलाभ है कुछ हठीला भी।। समेटे हुए है जिले पचपन अब तहसील चार सौ अ...
जनम दिन के बधाई
आंचलिक बोली, कविता

जनम दिन के बधाई

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता जस किरती बाढ़य तोर, समे होवय सुखदाई। जनम बछर के प्रियांशी बिटिया ल, घेरी बेरी बधाई। दाई ददा के दुख पीरा म अपन हरदम साथ तैय देबे। अऊ डोकरा बाबा के तैय बन जाबे संगवारी जी जिनगी ल जे हार चुके हे, आंखी में जेखर आंसू भरे हे। दुखिया जान के हाथ बढ़ाबे, अईसे ओकर करबे तैय ओकर भलाई जी सादा जीवन अऊ उच्च विचार ले अपन जीवन ल सुघ्घर कर जाना हे घर परिवार अऊ संगी साथी संग मया पिरित के बंधना म अईसे तैय बंध जाबे, चाहे कतको मजबूरी होवय। दाई-ददा के संग अपन सपना ल सिरतोन करे बर, पढई-लिखई म अभी ले तैय जुड़ जाबे जी सगरो पराणी के आशीर्वाद मिलय अऊ तोर सपना कभु झन खाली होवय। मान अऊ मर्यादा के हितइशी बन, घर समाज के रखवाली होवय। जनम देवईया महतारी के अंचरा म, सबके होवय सहाई जी। अऊ जनम बछर के प्रियांशी ...
निःशब्द रात
कविता

निःशब्द रात

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** निःशब्द रात रात की चादर ओढ़ फिर आइ निःशब्द रात निर्जन तिमिर भरी राह की रात दुबके हुए चीखते चिल्लाते निशाचरों की ये रात !! ना जाने कहाँ गुम थे चांद सितारे अंधेरा तैरता हुआ घने बादलों की तरह फिर भी चल पडी तन्मयता से ओढ़ कर सन्नाटे की चादर यादो के दिए कि झिलमिल रोशनी अम्बर पर टिमटिमाते आंख फाड़े तारो की रात ! गुम हुए थे ये सारे रात के सहारे कभी पालकी सजा चलते थे ये हरकारे चाँद से मिलने के बहाने सुख दुख को गले लगाने, जाना है उसपार, जहां से वापस आना है दुश्वार! शनैः शनैः ढल रही है रात!! क्षितिज पर भोर ने दस्तक दी गहरी नींद से तब मैं भी जागी थी आप बीती सुना थक गई है रात गगन में सुनहरे सज रहे हैं तोरण द्वार निःसतबध कर गुजर गई निःशब्द रात!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी...
ऐ वक्त जरा ठहर जा
कविता

ऐ वक्त जरा ठहर जा

हितेश्वर बर्मन 'चैतन्य' डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** ऐ वक्त जरा ठहर जा, मेरी भी सुन जरा रुक जा। तेरे जाने से मैं छुट जाऊंगा, तू चला गया तो मैं मंजिल को कैसे पाऊंगा।। ऐ वक्त जरा थम जा, आ मेरे साथ जरा विश्राम तो कर ले। मुझे अपनी मंजिल का बेसब्री से इंतजार है, जरा रूक जा अपने साथ मुझे भी ले जा।। ऐ वक्त जरा पीछे मुड़कर भी देख ले, तेरा पीछा करते-करते मैं भी आ रहा हूँ। मेरा हाथ पकड़ कर मुझे खींच ले, समय का दो बूंद मेरे ऊपर भी सींच दे।। ऐ वक्त जरा मेरी बातें भी सुन ले, न बढ़ इतनी तेजी से जरा ठहर जा। तू इतनी जल्दी में कहां जा रहा है, बिना मंजिल के बस चलता ही जा रहा है।। ऐ वक्त जरा ठहर जा, एक पल मेरे ऊपर भी नजर तो उठा। कर न मुझे यूं अनदेखा, जरा थम जा मुझसे एक पल नज़र तो मिला।। तूझे रोकना मेरे सामर्थ्य में नहीं है, ऐ जाते हुए लम्हें मुझे अलविदा...
निशब्द
कविता

निशब्द

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* कभी-कभी जीवन में कुछ ऐसे पल हैं आते जब समझा समझा कर खुद का ही अन्तर्मन कोई समझ ना पाता और हम थक है जाते। शब्दों के कोलाहल में सब अर्थ अनर्थ हो जाते मन की व्यथा समझाने के सारे प्रयत्न व्यर्थ हो जाते आपके हर तर्क के विरुद्ध अनेक प्रत्यर्थ हैं टकराते। तब सिर्फ एक मौन का ही सहारा समर्थ कर जाता है बिन कुछ कहे ही वो तो सारा भाव व्यक्त कर जाता है। चीखता तो घमंड है विनय तो बस मौन है हठ में तो कर्कशता है त्याग तो बस मौन है झूठ के हैं लाखों तर्क सत्य की भाषा तो मौन है। मौन है दर्पण मौन है तर्पण मौन है अर्पण मौन समर्पण मौन प्यार है मौन स्वीकार है मौन तकरार है मौन ही इकरार है। हर वाद-विवाद प्रतिवाद से मुक्त हो पाते हैं जब आपके शब्द निशब्द हो जाते हैं। जब आपके शब्द निशब्द हो जाते ...
विनती हनुमान जी से
स्तुति

विनती हनुमान जी से

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** मेरे हनुमान जी है तुमसे विनती मेरी, शक्ति मोदी की हरदम बढ़ाते चलो जो हैं हिंदू मगर हैं विमुख देश से, उनको निज कर्मों का फल चखाते चलो मेरे हनुमान जी... मोदी सनातनी हैं, और राम भक्त हैं वो हैं शिव जैसे फक्कड़, न आसक्त हैं उनकी निष्काम सेवा को आशीष दे, जग को मोदी ही मोदी रटाते चलो। मेरे हनुमान जी... आज दुश्मन सब थर्राएं इनके नाम से हैं खड़े सीना तानें दुनिया के सामने अब बजा है बिगुल आर्थिक तेज़ी का इस प्रगति पथ पर भारत चलाते रहो मेरे हनुमान जी... मोदी परिवार मानें, अखिल राष्ट्र को, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, प्रिय आपको सबका परिवार सुख से रहे देश में, ऐसी अपनी कृपा को बरसाते चलो मेरे हनुमान जी... भ्रष्ट और भ्रष्टतम उनके पीछे पड़े उनको पथ से हटाने पर हैं सब अड़े आज भारत को उनकी ज़रूरत बड़ी,...
युवा पीढ़ी में परिवर्तन
कविता

युवा पीढ़ी में परिवर्तन

प्रीति तिवारी "नमन" गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** नई पीढ़ी में परिवर्तन तनिक करना जरूरी है, धर्म से डिगनें ना पायें, कर्म करना जरूरी है।। भान अधिकारों का उनको बात यह है, बहुत अच्छी। किंतु कर्तव्य लौ जागे, तो यह सबके लिए अच्छी।। संगठन सद विचारों का बहुत होना जरूरी है, नई पीढ़ी में परिवर्तन तनिक करना जरूरी है।। संभाले संस्कारों को रखें सिद्धांत जीवन में, स्वयं परिवार या हो राष्ट्र प्रगति की बात हो मन में।। सजग कर्तव्य पथ पर हों, भागीदारी जरूरी है। नूतन युग में नवनिर्माण वफादारी जरूरी है।। नई पीढ़ी में परिवर्तन तनिक करना जरूरी है। न हो अन्याय अत्याचार न दूदम्य साहस हो। नैतिक सभ्यता हो, प्रेम मन के भाव समरस हों।। आस्था और आदर मान अनुशासन जरूरी है, ना हो पथभ्रष्ट जीवन में मार्गदर्शन जरूरी है।। नई पीढ़ी में परिवर्तन तनिक क...
मांँ
कविता

मांँ

चेतना प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** बताओ पापा ! मांँ कैसी होती है? जितना मैंने जाना मांँ भगवान की प्रतिरूप होती है। बताओ दीदी! माँ कैसी होती है? जितना मैंने पहचाना माँ ममता की मूरत होती है। बताओ भैया! माँ कैसी होती है? जितना मैंने समझा, हर मांँ सुंदर है, जिसके हृदय में स्नेह अपार होती है। मेरे पापा! मेरी दीदी! मेरे भैया! मैंने महसूस किया, माँ तारा बनकर भी हम सबके पास रहती है। माँ की सूरत कभी नहीं देखी, लेकिन मैं जान गया, माँ किसी से भेदभाव नही करती, माँ सबसे अच्छी होती है। परिचय :- चेतना प्रकाश "चितेरी" निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...
समझो क्या होती है मां
कविता

समझो क्या होती है मां

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मां सुबह से शाम, बिन आराम बच्चों का हरदम रखती है ध्यान खुद भूखी रहकर बच्चो को पहले कराती है जलपान मां पहले बेटे को खिलाकर भोजन लेती चैन करती आराम हिम्मत इतनी देती थकने का नहीं लेती नाम खुद आग के धुएं में रोटी पकाकर हाथों से सेंककर बच्चो को खिलाती बच्चों की दुःख विपदाओं में मां पहले आगे आती मां आंखों में आंसू नहीं कभी झलकाती मां होती है कितनी भोली दुःख दर्द पीड़ा बच्चो की सबसे पहले समझ जाती बच्चों के जीवन की खुशियां मां अन्तर्मन से खुशियां लाती बच्चों के कष्टों के बादलों को मां पल भर में चतुराई से खुद कष्ट झेलकर हटाती जीवन के सच्चे पाठ सिखलाती जीवन की नैया पार लगाती जीवन का जंजाल मां स्वयं गले लगाती बच्चो की खुशियां खातिर सारी मोहमाया हटाती बच्चों की खातिर मां सुबह से शाम तक बरामदे में बैठी...
पहले मतदान … फिर जलपान
छंद

पहले मतदान … फिर जलपान

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सरसी छन्द **** देखो तो चुनाव है आया, करें सभी मतदान। पहले अपना कर्म निभाएँ, फिर ही हो जलपान।। ******* अब चुनाव तो पावन आया, जाएँ सब ही जाग। रखना सबको वोटिँग के प्रति, सतत गहन अनुराग।। ********* निर्वाचन का शंख बजा है, बेशक़ीमती वोट। अपना कर्म नहीं कर पाए, तो ख़ुद पर ही चोट।। *********** चलो उठो सबको है जाना, बुला रहा मतदान। अपना वोट सही को देंगे, करें पूर्ण अरमान।। ******** सबको ही तो फर्ज़ निभाना, लेकर के उल्लास। तभी सभी की निश्चित होगी, मन की पूरी आस।। ******** मम्मी-पापा को करना है, अब की फिर मतदान। दर्ज़ हो गए जो सूची में, उनका हो जयगान।। ********* युवा,प्रौढ़ सारे नर-नारी, करें सुपावन कर्म। लोकतंत्र ताक़त पायेगा, वोट बना है धर्म।। ******* आलस्य को सारे ही त्यागें, बूथ नहीं है दूर। शत-प्रतिशत ...
वोट डालने जाना होगा
कविता

वोट डालने जाना होगा

शंकरराव मोरे गुना (मध्य प्रदेश) ******************** वर्ष अठारह पार कर गए, नागरिक धर्म निभाना होगा। वोट डालने जाना होगा।। ओ भारत के रहने वालो, निज कर्तव्य निभाना होगा। वोट डालने जाना होगा।। हो किसान, मजदूर, व्यापारी, अपना फर्ज निभाना होगा। वोट डालने जाना होगा।। शासकीय सेवक पद कोई, पद को आज भुलना होगा। वोट डालने जाना होगा।। महिला पुरुष देश सेवक बन, अपना फर्ज निभाना होगा। वोट डालने जाना होगा।। टाल ना देना समय आलसी, काम देश के आना होगा । वोट डालने जाना होगा।। देशभक्त हो यदि तुम सचमुच, सबको यही सिखना होगा। वोट डालने जाना होगा।। भूल गए यदि मित्र पड़ोसी, उनको याद दिलाना होगा। वोट डालने जाना होगा।। यदि असमर्थ दिखे जो कोई, उसे मदद पहुंचाना होगा। वोट डालने जाना होगा।। मत पूछो किसको देना है, किसको दिया नकहना होगा। वोट डालने जाना होगा।। मत-...
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप
कविता

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** शेर जब दहाडता हे, मुगलो के होश उड़ा देता, ५६ इंच छाती के सामने कोई माई का लाल नहीं टीकता। हवा वेग सम चलता चेतक, वैसे चलता भाला है। जो सामने आता है उसके धड़ मस्तक भेद कर जाता है। प्रताप के शौर्य की गाथा सुन, दुश्मन के होश उड़ जाते थे, अपनी मातृभूमि की रक्षा में, चाहे प्राण भी अपने चले जाते। नहीं झुके दुश्मन के आगे, चाहे मातृभूमि का त्याग सही। चाहे खानी पड़ी घास की रोटी, चाहे जंगल मै छुपना ही पड़े। नही मिले उन गद्दारो मे, अपनी शान ना जाने दी चाहे हल्दी घाटी हुई रक्त रंजिश, चाहे मिट्टी मे घुली लालिमा सी। सच्चे वीर योद्धा थे वो, थे मातृभूमि के वीर सपूत। हिन्दू थे हिदूत्वं का खून था, वीर सिपाही भारत माता के वो। धन्य कोख माता ने जाया, न्योछावर भारत माता पर वो, शत शत नमन करते हम सब उनको, वीर योद्ध...
उद्गार
कविता

उद्गार

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** उद्गार लालायित हैं उद्गार भरे मन को लेखनीबद्ध करने को स्तंभकार बनाने जीवन को। उद्गारों का ही खेल है लेखन लेख, कहानी, उपन्यास मन अगन, पवन, विज्ञान ज्ञान धरा, जलधि, पाताल, गगन। अंबर पर चंदा सूरज नवग्रह का जाल बिछा है धरती पर पल्लव, वृक्षों का गहन अंधकार छुपा है । आदिमानव के मन अनुभूति क्षुधा, प्यास की आपस में घिस पाहन को अनल ज्वाल प्रज्ज्वलित की। भाषा का आविष्कार तभी जब मन‌ में उद्गार भरे हों वेद पुराण उपनिषद् शास्त्र अष्टाध्यायी या नाट्यशास्त्र अभिज्ञान शाकुन्तल या कादंबरी मुद्राराक्षस या राजतरंगिणी। क्षत-विक्षत आहत तन हुआ आयुर्वेद का आविष्कार हुआ जब वर्षा की मृदुल फुहार गीत नर्तन का जन्म हुआ। मन रोया, आदि कवि की सृष्टि युवाकाल की हंसी निराली प्रेम, विनोद, क्रोध, विभीषिका व्यंग्य हास्य नवरस क...
भगवान परशुराम
कविता

भगवान परशुराम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** भगवान परशुराम का अवतार सत्य से आप्लावित था। अनीति, अधर्म को ख़त्म करने के संकल्प से प्रेरित था।। त्याग, तपस्या, संघर्ष उनके जीवन की सुखद कहानी है। महकती-मुस्कराती हुई एक सुपावन ज़िन्दगानी है।। हमें सिखाया कि धर्म से ही सदा मनुष्यता का श्रृंगार होता है। जो अनीति के पथ चलता वह आजीवन सिसकता-रोता है।। हमें बताया कि शास्त्रों ने ही तो हमें नित जीना सिखाया है। शिवत्व धारण करने हमको शास्त्रों ने गरल पीना सिखाया है।। हमें बताया कि शस्त्र उठाकर अन्याय का प्रतिकार करना है। बनकर परशुराम जैसा ही आततायियों का संहार करना है।। सनातनी ध्वज लेकर हमको तो सकल विश्व को जगाना है। जन-जन के हृदय मंगलभाव फिर आज फिर से लाना है।। हमें, वेद-पुराणों को जगाना, और धनुष-बाण सजाना है। हमें, कृष्ण बनना और अर्जुन भी ख़ुद को ही बन...
मां
कविता

मां

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। मां करती जीवन साकार। बिन तेरे यह जग बेकार। मां ईश्वर का अहसास, जन्नत होता मां का प्यार। मां बिन प्रभु भी लाचार। चुकता नहीं मां का उपकार। मां खुश होती है, जग में जीवन अपना वार। मां अनगिनत तेरे प्रकार। तूं ही दुनिया की सरकार। भिन्न नहीं ईश्वर से मां, बनता नहीं बिन मां संसार। संतान में माॅं होती संस्कार। मां ही जग की तारणहार। प्रकृति संवारने में होती, ईश्वर को माॅं की दरकार। मां की परिभाषा संसार। ममता ईश्वर का आकार। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवित...
वासंती-बंगा
गीत

वासंती-बंगा

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** शब्दों की धक्का-मुक्की को, कविवर तुम दंगा मत कहना।। मर्यादित है संज्ञा इसको, वासंती-बंगा मत कहना।। केवल कंकड़ ही फेंके हैं, मैंने ही वे भी गुलेल से। कहीं किसी को चोट न पहुँचे, शब्द भिगोये इत्र तेल से।। नमक डालता हूँ घावों पर कहीं इसे पंगा मत कहना।।१ संता बंता और महंता, मेरे सभी सहोदर भाई। अपनी नाक दिखाने ऊँची, इनकी लंका रोज ढहाई।। राज घाट का पानी पी-पी, राजा को नंगा मत कहना।।२ ज्ञान पत्रिका अर्जित करने, भिड़ा दिये थे शब्द मवाली। काँव-काँव के राग सियासी, छीन गये इस मुख की लाली।। मुख से निकल रही जो अविरल, गाली को गंगा मत कहना।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी...
मैं तुमसे दूर
कविता

मैं तुमसे दूर

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** चला जा रहा हूँ, मैं तुमसे दूर। मुझे याद करना, साथी जरूर।। जिंदगी तेरे नाम कर दी, जान भी-जान भी। दिल तेरे नाम कर दिया, मान भी-मान भी।। माना था सभी को अपना, चाहा था भरपूर। चला जा रहा हूँ, मैं तुमसे दूर। मुझे याद करना, साथी जरूर।। यादों की परछाईयाँ, धुँधली होने न पाई। तेरी बातें मुझे, पल-पल बहुत रूलाई।। जूदा होके अभी से, जा रहा हूँ सुदूर। चला जा रहा हूँ, मैं तुमसे दूर। मुझे याद करना, साथी जरूर।। खुश रहना सदा, हँसते-मुस्कुराते रहना। थाम आशाओं का दामन, समय के संग में बहना।। कड़ी मेहनत से मिलेगी, कामयाबी का सुरूर। चला जा रहा हूँ, मैं तुमसे दूर। मुझे याद करना, साथी जरूर।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित...
काया
कविता

काया

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** आज मैंने अपनी काया से पूछा तुम्हें और क्या चाहिए, इतनी लंबी यात्रा हुई कोई तो वज़ह होगी कुछ तो चाहत होगी चलते रहने की औषधियाँ तो बहुत हुई अब कौन सा परिपूरक चाहिए ? आकार पर बहस छिड़ी जो रंग रूप पर आकर ठहरी समय ने कई निशान दिए हैं भेंट स्वरूप इन खिंचाव भरे निशान पर चिंतन करना चाहती है कोमलता नहीं दृढ़ता चाहती है, पडती हुई सिलवटों को रोकना चाहती है उन सभी जानी अनजानी औषधियों से दूर होना चाहती है जो पुनः जीवित होने का ढोंग रचती हैं, "स्वयं" के बंधन तोड़ना चाहती है नश्वर जगत को समझना चाहती है उसके सारे प्रश्न धीरे-धीरे तैयार हो रहे थे तभी कानों में धीमी सी फुसफुसाहट सुनाई दी क्या अब भी तुम मुझसे प्यार करोगी!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश...
वो एक लमहा
कविता

वो एक लमहा

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* वो एक लमहा अब तक नहीं पकड़ पाया मैं जब बदल गयीं थी दिशाएँ हमारी गुज़रते वक्त से बार-बार गुज़रकर मैं अब भी ढूँढता हूँ वो पल जो ले गया तुम्हें दूर मुझसे न जाने वो क्या था जो अदृश्य सा तैरता रहा हमारे बीच और जिसके रहते तय न हो सके फासले कभी ! वक्त का एक बड़ा सा टुकडा बेरहमी से भाग रहा है हमारे बीच कहते हैं कि वक्त के साथ सब बदल जाता है मै देखना चाहता हूँ तुम्हे भी तुम्हारे बदले हुए रूप में तो क्या अब तुम नहीं पहनती वो आसमानी नीली साड़ी जिसे देखते ही मैं बन जाता था उफनता पागल सा सागर ! शायद अब तुम्हारी डायरी के पन्ने किसी और रास्ते से गुजरकर मुकम्मल होते होंगे और शायद तुमने अब मीठे की जगह नमकीन खाना भी सीख लिया होगा शायद तुम छोड़ चुके होंगे मेरे न होते हुए भी मु...