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पद्य

हनुमत ऐसा भाव बहा दो
भजन

हनुमत ऐसा भाव बहा दो

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** हनुमत ऐसा भाव बहा दो, जिससे सुंदर गीत बन सकें। पूर्ण समर्पित हो मन तुमको, और भक्ति रसधार बह सके। हनुमत ऐसा भाव ... तुमने जिस पर कृपा दृष्टि की, उसका ही उद्धार हो गया। जिसको स्वामी से मिलवाया, वो ही भव से पार हो गया। मुझको मार्ग दिखाते रहना, जिससे सेवक धर्म निभ सके। हनुमत ऐसा भाव ... तुमने प्रभु राम से अपने, राजा की संधी करवाई। अभय दान दिलवा राजा को, बाली को मुक्ति दिलवाई। राम काज को भूला राजा, नीति बताई, प्राण बच सके। हनुमत ऐसा भाव ... तेरे संत हृदय ने दंभी, रावण को सद्ज्ञान था दिया। पर निज अहंकार के कारण, उसने इसका मान ना किया। रावण ने कुल नाश कराया, प्रभु हाथों से मुक्ति मिल सके। हनुमत ऐसा भाव ... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रम...
श्रीराम
भजन

श्रीराम

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** श्रीराम ही शक्ति के दाता दर्शन मात्र से सारे सुख पाता। जब ध्यान लगाएं हरदम तुझमें पुनीत विचार सब समाए मुझमे। श्री राम की छवि बड़ी निराली कण-कण में समाई खुशहाली। सारा जग होता तुझसे ही रोशन प्राणी पाते धन धान्य और पोषण। सांस-सांस में है बसा नाम तुम्हारा श्रीराम ही तो है बस मेरा सहारा। हे श्रीराम सारा जग तो है तुम्हारा जग में तुम बिन कोई नही है हमारा। पूजन करो और बोलो जय श्री राम दुःख दूर होगा मिलेगा सुख आराम। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प...
यशोदा नंदन
कविता

यशोदा नंदन

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** १ यशोदा नंदन करता जग सारा अभिनंदन प्रगटे नंदलाला। २ नाच नचावत छछिया भर छाछ दिखाबत ब्रज ग्वालिन। ३ आठवी संतान लियो रूप नर,नाराण मुरली मनोहर। ४ वृषभानु दुलारी बनी कृष्ण प्राणन प्यारी अनुपम जोड़ी। ५ दाऊ भैय्या कहत मोल लीनो मैय्या खींजत घनश्याम। ६ त्यागे मिष्ठान तोड़ो दुष्ट दुर्योधन अभिमान विधुर भाए। ७ बन शांतिदूत किया कौरव कुल आहूत त्यागो विद्वेष। विधान - पहली पंक्ति २ शब्द, दूसरी पंक्ति ४ शब्द, तीसरी पंक्ति २ शब्द शब्द से आशय - दो या दो से अधिक सार्थक वर्णों से मिलकर बनने बाले शब्द परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, क...
सिद्धार्थ
दोहा

सिद्धार्थ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जन्म मरण का खेल यह, समझ न पायी पार्थ। गीत ग़ज़ल था छंद भी, सब कुछ था सिद्धार्थ।। बसे क्षितिज के पार तुम, भूल गए सिद्धार्थ। अब जीवन ये बोझ है, क्या साउथ क्या नार्थ।। चली तेज पछुआ हवा, रूप बड़ा विकराल। जलता दीपक बुझ गया, खोया घर का लाल।। पीर समझ पाया नहीं, बैरी था संसार। मित्र अकेली मातु थी, करे स्वप्न साकार।। सूखे-सूखे हैं अधर, अँखियों में है नीर। ममता बड़ी अधीर है, उर है अथाह पीर।। कबिरा साखी मौन है, चुप मीरा के श्याम। रूठे सीता राम भी, जप लूँ कैसे नाम।। चर्चा करती रात-दिन, मिटे नहीं संताप। खंडित है विश्वास सब, करते नित्य विलाप।। मोह त्याग कर चल दिया, भूला मातु दुलार। पल-पल लड़ता मौत से, लिए अश्रु की धार।। अतिशय अन्तस् पीर है, मनवा रहे उदास। राजा बेटा लाड़ला, करे हृदय...
सामना
कविता

सामना

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** रुख पहाड़ों की तरफ किया तो समझ आया जन्नत इस धरा पर भी है। रुख बादलों की तरफ किया तो समझ आया बदमाशी इनमें भी है। रुख बहती नदी की तरफ किया तो समझ आया जीवन का बहाव इनमें भी है। रुख हरे-भरे खेतों की तरफ किया तो समझ आया जीवन का अंश इनमें भी है। रुख वृक्षों की तरफ किया तो समझ आया जीवन की समझदारी इनमें भी है। रुख डूबती हुई नाव की तरफ गया तो समझ आया जीवन का अंतिम पड़ाव इनमें भी है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
असंगत
कविता

असंगत

शैल यादव लतीफपुर कोरांव (प्रयागराज) ******************** जो संगत नहीं होता वही 'असंगत' है, यह संसार दोनों में ही बहुत पारंगत है। 'असंगत' दैनिक जीवन का‌‌ ही एक अङ्ग है, बदलता‌ प्रतिदिन जीवन का जैसे रङ्ग है। असंगत हैं सभी के शरीर के कुछ अङ्ग भी, असंगत हैं चाल-चलन असंगत हैं ढङ्ग भी। शरीर की सभी अंगुलियाॅं होती असंगत हैं, किन्तु सभी कार्यों में ‌वे होती पारंगत हैं। असंगत सदैव ही नकारात्मक नहीं होता, ‌बुराइयों से असंगत होना ही सही होता। असंगत है संसार के सभी व्यक्तियों का रुप, मिलता नहीं कभी भी किसी का स्वरूप। कोई यहाॅं श्याम वर्ण तो कोई पूरा श्वेत है, कहीं है धरा उर्वर तो कहीं बिलकुल रेत‌ है। कोई अकिंचन तो कोई‌ धनपति कुबेर है, कहीं गेंदा, गुलाब तो कहीं केवल कनेर है। असंगत हैं बोली-भाषा असंगत हैं देश, असंगत हैं रहन-सहन असंगत हैं वेश। असंगत को संगत का मिले जब...
प्रेम किया नहीं जाता
कविता

प्रेम किया नहीं जाता

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* प्रेम में मांगा नहीं जाता प्रेम में दिया जाता है प्रेम किया नहीं जाता प्रेम जीया जाता है प्रेम में स्वार्थ नहीं होता प्रेम में परमार्थ होता है प्रेम को मापा नहीं जाता प्रेम को साधा जाता है प्रेम एक तरफा भी होता है प्रेम दूर से भी निभाया जाता है अखंड प्रेम बार-बार नहीं होता प्रेम एक ही बार में संपूर्ण होता है प्रेम पागल नहीं होता प्रेम तो चैतन्य संक्रिया है प्रेम को सोचा नहीं जाता प्रेम एक सतत प्रक्रिया है प्रेम में किसी बांधा नही जाता प्रेम में इंसान खुद बंध जाता है प्रेम में सतत प्रवाह होता है प्रेम को कहीं रोका नहीं जाता प्रेम में गमगीन नहीं होना पड़ता प्रेम में पूर्णत: लीन होना होता है 'तू नहीं तो कोई और' अ-प्रेम है प्रेम का कोई विकल्प नहीं होता परिचय :- शिवदत्त डोंगरे...
माला के मोती
गीत

माला के मोती

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** देख-देख कर पीड़ा होती। बिखर रहे, माला के मोती।। तंत्र बना अब लूट तंत्र है, है बस्ती का मुखिया बहरा। गली-गली में दिखी गरीबी, कितने ही दर, तम है गहरा।। झूठ ठहाके लगा रहा है, सच्चाई छुप-छुपकर रोती। बहुतायत झूठे नारों की, मिलते हैं वादों के प्याले। कहते थे सुख घर आयेंगे, मिले पाँव को लेकिन छाले।। रोज बयानों के खेतों में, बस नफ़रत ही फसलें बोती। जाने कितनी ही दीवारें, मन से मन के बीच बना दी। बात किसी की कब सुनता है, मौसम हठी, ढीठ, उन्मादी।। उसकी बातें, उसकी घातें, लगता जैसे सुई चुभोती। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : नि...
मत  हो  दुःखी…मेरे  देश
कविता

मत हो दुःखी…मेरे देश

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** आयेगा लौट तेरा यश पावन मत हो दुःखी मेरे देश ....!! छट जाएगा छल-छद्म धरा से, जायेगी थम नफ़रत की आंधी। आयेगी बसंत-बहार चमन में, प्रगटेगा फिर एक अटल गांधी। शोलों पे होगी बर्षा शबनम की, कांटें कलियां बन जाएंगे महक। सरिता भर नेह अगाध बहेगी, शाँखें पंखुड़ी बन जाएंगी चहक। उन्मुक्त गगन में उड़ते पंक्षी, देते जायेंगे अनुपम सन्देश ! आयेगा लौट तेरा यश-बैभव मत हो दुःखी मेरे देश !!१!! उगलेगी धरा मोती-माणिक्य, खलिहान धान से विपुल भरेंगे। कल-कल बहेंगे निर्झर हरदम, पतझड़ में पुनीत मुकुल खिलेंगे। हर अधर गीत गायेगा मिलन के हर अल्फ़ाज़ राग बन जायेगा। सदभावों की शुभ घड़ी लगेगी, स्वार्थ का कलंक धूल जाएगा। हर ख़्वाब समर्पित होगा तुझ पर हर ख़ुशी होगी तेरा उद्देश्य। आयेगा लौट तेरा यश पावन मत हो दुःखी मेरे देश ...
नवमी तिथि मधुमास पुनीता
भजन

नवमी तिथि मधुमास पुनीता

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** राम जन्मदिन शुभ अवसर है जनगण मन उत्सव सा प्लावित है राम हैं भारत कीआत्मा नर रूप धरा आये परमात्मा ये भारत के प्राणपुरुष हैं राम हैं मर्यादा, हाथ धनुष है। जब घायल हो भारत माता क्षत विक्षत हो मर्यादा भारत की अस्मत पानी होती और धर्म की हानि होती धरणी तब आवाहन करती मनुष्य रूप आयें तब धरती भारत धरती करे पुकार राम रूप आये अवतार राम पे कोई न चक्र चले प्रत्यंचा पर जब तीर चढ़े संकेत राम का है आना युद्ध न्याय का जीता जाना। रामलला की छवि हर मन है राम बसे जन जन के हिय हैं राम धरे धनुसायक हैं राम हमारे नायक हैं आस्था, मन, अंतःकरण पर्याय राम भारत के जीवन राम बिना नहि कुछ स्वीकार राम हैं प्राणों के उद्धार भक्त तुम्हारे तुम्हरे द्वार तुम्हें नमन है बारंबार तुम्हें नमन है बारंबार।। परिचय :- डॉ. किरन अवस...
अयोध्या
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अयोध्या

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नगरी हो अयोध्या सी जहाँ राम का वास हो घण्टियों, शंखों का जहाँ सुमधुर ध्वनियों का नाद हो मेरे राम सदा ह्रदय बसे बस इतना सा मीठा ख्वाब हो। ध्वज सदा लहराए कीर्तन एक साथ हो मंगल आरती गाए संग राम का विश्वास हो नगरी हो अयोध्या सी जहां राम का वास हो। फूलों से सुशोभित मंदिर को दर्शन जावे मंत्रमुग्ध हो ध्यान लगावे मांगे और कई है आशा रामजी करेंगे पूरी अभिलाषा नगरी हो अयोध्या सी जहां राम का वास हो। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवा...
राम नाम महिमा
भजन

राम नाम महिमा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** राम का नाम मुक्ति का साधन सरल, शक्ति दो नाम लेखन बढ़ाता चलूं। ऐसी गंगा बहा दो हृदय में प्रभु, आखिरी सांस तक नाम सुमिरन करूं। राम का नाम मुक्ति.......... नाम महिमा अकल्पित, असीमित है प्रभु, ज्ञान अनुरूप महिमा को गाता रहूं। भाव मां दे रही, शक्ति हनुमत ने दी, मैं तो बस लेखिनी को चलाता रहूं। राम का नाम मुक्ति........... बहुत संतो ने महिमा सुनाई सदा, पर नहीं कोई संपूर्ण को गा सका। नाम पर शोधकर लोग डॉक्टर बने, पर नहीं कोई भी अंत को पा सका। मुझको हनुमतकृपा राम सेवा मिली, सांस जब तक चले, मैं निभाता रहूं। राम का नाम मुक्ति........ सोते जगते सदा, साथ में नाम हो, कार्य जग के करूं, मन में बस राम हो। नाम के जाम इतने पिला दो हनु, जिसको देखूं उसी में मेरा राम हो। मेरी सांसों में बस नाम चलने लगे, राम ही...
श्रीरामजी पर रोला
रोला

श्रीरामजी पर रोला

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** (१) महाशक्ति है दिव्य, रामजी जो कहलाते। हर पल ही जो भव्य, भक्त जिनको हैं भाते।। प्रभुवर रखते ताप, सभी के दुख हैं हरते। महिमा का विस्तार, पुष्प गरिमा के झरते।। (२) महाशक्ति है दिव्य, रामजी की है माया। करना प्रभु उद्धार, बोझ यह नश्वर काया।। तुम तो दीनानाथ, तुम्हीं हो सबके स्वामी। मैं तो नित्य अबोध, दुर्गुणी, अति खल, कामी।। (३) महाशक्ति है दिव्य, हृदय में सबके रहते। बनकर के उपहार, भक्ति में नित ही बहते।। यह जीवन अभिशाप, दुखों ने डाला डेरा। हे मेरे प्रभु राम !, मुझे पापों ने घेरा।। (४) महाशक्ति है दिव्य, उसी ने जगत बनाया। कहीं रची है धूप, कहीं पर शीतल छाया।। बाँटा है उजियार, रचा है मानवता को। लेकर के अवतार, मारते दानवता को।। (५) महाशक्ति है दिव्य, जिन्हें हम रघुवर कहते। बनकर जो शुभभाव, हमारे सँग नित रहत...
जल बिन सब सून
कविता

जल बिन सब सून

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** पंच तत्व में है अनमोल जीवन आधार जल करते जो बर्बाद आज उसे पछताओगे तुम कल। जल बिन होगा सूना सागर नदियाँ होंगी सूखी जो न सहेजा इस अमृत को धरती होगी भूखी। पीयूष रूपी गंगा जल का कर न सकोगे वंदन प्यासे कंठ से गूंजेगा चहुँ क्षुधित जीवन का क्रंदन अंधाधुंध जो करते रहोगे भूमि जल का दोहन न देख सकोगे अंबर में तुम वारिद का आरोहण। जल से ही तो जीवन हुआ धरती पर साकार जो मोल न समझे इसका तुम यह जीवन है बेकार। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिच...
जीवन बचाव केंद्र
कविता

जीवन बचाव केंद्र

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिंदगी बचाने और देखभाल करने की ग्यारंटी देने वाले मशहूर चिकित्सकीय संस्थान के द्वारा जैसे ही स्पेशल वार्ड से जनरल वार्ड में मरीज की शिफ्टिंग हुई व्यवहार बदला बदला सा दिखाया जाने लगा, मरीज के परिजनों को इस बदले व्यवहार से झटका आने लगा, कहां रात व दिन भर मिटने को तैयार संस्थान के स्टॉफ वालों को अटेंडरों में बित्ते भर भर कांटे नजर आने लगे, महानुभव लोग गरियाने झुंझलाने लगे, छत्तीस घंटों से नींद से दूर मरीजों के रिश्तेदारों से चिकित्सालय को खतरा नजर आने लगे, इधर मरीज परेशान, उधर चौकीदार सुजान, पेशेंट की चिंता कि अब मुझे रात में कहीं जरूरत की जगह पकड़कर ले जायेगा कौन? पहरेदार का गुरूर कैसे रहे मौन? मरीज और उसके घरवाले सोच रहे कि कल तक गूगल में सकारात्मक फ़ीडबैक लिखाने वाले आज कौन सा ...
विकल्प
कविता

विकल्प

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** समय कभी तय नहीं होता होता भी तो मेरे हाथ मे नही है किन्तु विकल्प क्या है! चाँद और सूरज ने अकेले ही मजबूत बनने के बहाने दे दिए बारिश की बूँदों ने हथेलियों पर कुछ ख्वाहिशे रख दी जिनसे हथेलियाँ तो भीगी किन्तु रेखाएं भरी नहीं, ऊँचाई ने चलते चलते पर्वत के शिखर पर पहुचा दिया आनंदित हूँ क्युकी विदा का पल निकट आता जा रहा है उस हवा की तरह जाना चाहती हूँ कि गुजरूं करीब से तो सरसराहट की भनक भी ना हो, शिकन नहीं मुस्कराहट छोड़ जाना चाहती हूँ जीवन पर्यंत प्रयासशील रही सबकी झोली खुशियों से भरना चाहती थी जीना कोई मजबूरी नहीं, बस शिवमय होना चाहती हूँ!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्...
न्याय
कविता

न्याय

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** कलयुग है कलयुग आज का रावण एक नहीं हर जगह दिखाई देने लगे खूनी खेल, बलात्कार, पाखंड, दबाव डालना आदि क्रियाएं प्राचीन रावण को भी पीछे छोड़ती दिखाई देने लगी आकाशवाणी मौन सब बने हो जैसे धृतराष्ट्र जवाब नहीं पता किसी को जैसे इंसान को सॉँप सूंघ गया आवाज उठाने की हिम्मत होगई हो परास्त शर्मो हया रास्ता भूल गई पहले के रावण का अंत नाभि में एक बाण मार कर किया आज के रावणों का अंत कानून के तरकश में न्याय के तीर ने कर डाला जो उनको मानते /चाहते अब वो ही उनसे मुँह छुपाने लगे कतारे लगी जेलों में उनकी अशोभनीय हरकतों से आज के रावणों ने आस्था के साथ खिलवाड़ करके मासूमों का हरण करके कई चीखों को दफ़न कर दिया आज के इन रावणों ने पूरी दुनिया इनकी हरकतों को देख थू- थू कर रही आवाज उठाने वालों और न्याय ने मिलकर किया शंखनाद उ...
जीवन अनंत संघर्ष हुआ
कविता

जीवन अनंत संघर्ष हुआ

लक्ष्मीनारायण धिरहे हसौद, जिला सक्ति, (छत्तीसगढ़) ******************** कभी चंचल ये तन हुआ कभी विचलित ये मन हुआ ... कभी निराशा सा गट्ठर लिए कभी हर्ष का संगम लिए ... ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी आंखों में अश्रु सा छलका, कभी दुख में कभी सुख में झलका, आंखों में ये असार लिए, ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी पहाड़ों सा चलना हुआ, कभी ढलानों सा उतरना हुआ ... चल रही ज़िंदगी, यही कश्मकश लिए, यह जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी बढ़ना हुआ, कभी रुकना हुआ, गिर कर उठना, उठ कर चलना हुआ ... न रुकने, न झुकने का आव्हान लिए, ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी इनकार हुआ, कभी स्वीकार हुआ, कभी बना काम का, कभी बेकार हुआ, साहस, धैर्य का प्रमाण लिए ... फिर मन में ये नित प्राण लिए, ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... परिचय :- लक्ष्मीनारायण धिरहे छात्र : दिल्ली विश्वविद्यालय निवासी : ह...
कोमल है कमनीय भी
दोहा

कोमल है कमनीय भी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कोमल है कमनीय भी, शुभ्र भाव रसखान। यशवर्धक मन मोहिनी, हिंदी सरल सुजान।। भाग्यविधाता देश की, संस्कृति की पहचान। देवनागरी लिपि बनी, सकल विश्व की जान।। अधिशासी भाषा मधुर, दिव्य व्याकरण ज्ञान। सागर सी है भव्यता, निर्मल शीतल जान।। सम्मोहित मन को करे, नित गढ़ती प्रतिमान। पावन है यह गंग-सी, माॅंग रही उत्थान।। आलोकित जग को किया, सुंदर हैं उपमान। अलख जगाती प्रेम का, नित्य बढ़ाती शान।। उच्चारण भी शुद्ध है, वंशी की मृदु तान। सद्भावों का सार है, श्रम का है प्रतिदान।। पुष्पों की मकरन्द है, शुभकर्मों की खान। भारत की है अस्मिता, शुभदा का वरदान।। पुत्री संस्कृत वाग्मयी, लौकिक सुधा समान। स्वर प्रवाह है व्यंजना, माँ का स्वर संधान।। दोहा चौपाई लिखें, तुलसी से विद्वान। इसकी शक्ति अपार पर, करते हम अभिम...
चलो मिटा दें घृणित दायरे
कविता

चलो मिटा दें घृणित दायरे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** चलो मिटा दें घृणित दायरे, सभी एक हो जाएँ। छुआछूत का घृणित दायरा, मिलकर सभी मिटाएँ। ऊँच-नीच का भेद मिटा दें, समरसता आएगी। होगी तब समाज में समता, सबके मन भाएगी। पनप रहा है एक दायरा, ऊँच-नीच का भारी। निर्धन और धनी का अंतर, बहुत बड़ी बीमारी। कुछ दायरे सदा दुखदाई, हमें कलंकित करते। भाईचारा सदा मिटाते, जीवन में दुख भरते। करें विनष्ट दायरे मिलकर, बंधन दूर हटा दें। पड़े जरूरत घर, समाज को, अपना शीश कटा दें। नहीं दायरे कामयाब हों, जो संघर्ष बढ़ाते। मीलों दूर रहे हम उनसे, जो पीड़ा पहुँचाते। जीवन के दायरे मिटा लें, रहें सदा हिल मिलकर। मन की बगिया, महके ऐसे, सुमन सुगंधित खिलकर। भाईचारा रहे पल्लवित, प्रमुदित दुनिया सारी। सुरभित सुषमा रहे हिंद की, ज्यों केसर की क्यारी। परिचय ...
फकीर तुम्हारे गाँव में
कविता

फकीर तुम्हारे गाँव में

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** आओं लेकर चलें तुम्हें एक ऐसे गाँव में.... जहाँ आज भी खटिया बिछीं रहतीं है नीम की छाँव में... क्या तुम्हारे गाँव की धरा को भी पुजा जाता है ऐसे ही बिन पहने चप्पल पाँव में... क्या फकीर तुम्हारे गाँव में भी ऐसा होता है... रातें के अंधेरे में मौन रहकर कोई बालक रोता है... जैसे पुकारते है... मुझे मेरे दादाजी के नाम से... क्या तुम्हें भी तुम्हारा गाँव तुम्हारे दादाजी के नाम से पुकारता है... क्या फकीर तुम्हारे गाँव में भी ऐसा होता है... दादी की परीयों वाली कहानी और पेडों पर तोता है... जहाँ गाती है नदियाँ... आज भी घोसला बनाती है पेडों पर गौरय्या... क्या तुम्हारे गाँव की गलियों में भी बाँसुरी बजाता है कोई कन्हैया... क्या फकीर तुम्हारे गाँव में भी ऐसा होता है... पंछी आजाद है और कहां जाता नदियों को...
लेखनी मुझसे रूठ जाती है
कविता

लेखनी मुझसे रूठ जाती है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* जब मैं लिखने बैठता कविता, लेखनी मुझसे रूठ जाती है, वह कहती मेरा पीछा छोड़ दो, मुझसे अपना नाता तोड़ दो, क्या तुम मुझे सौंदर्य में ढाल सकोगे, इस घुटन भरे माहौल से निकाल सकोगे, क्या तुम कुछ अलग लिख सकोगे, या तुम भी दुनिया की बुराइयों को, अपनी रचना में दोहराओगें ? दहेज, भूख, बेकारी के शब्द में अब ना मुझको जकड़ना, हिंसा दंगों या अलगाव के चक्कर में ना पड़ना, नेताओं को बेनकाब करने में मेरा सहारा अब ना लेना, बुराइयां ना गिनाना अब बीड़ी सिगरेट या शराब की, उकता गई हूं अब मैं, बलात्कार हत्या या हो अपहरण, इन्हीं शब्दों ने किया है जैसे मेरे अस्तित्व का हरण। लेखनी बोलती रही, मुझे मालूम है तुम इंसानियत की दुहाई दोगे, इसलिए मैं पास होकर भी हूं पराई। अगर लिखना हो तो लिखो, प्रकृति की गोद में बैठ कर, ...
प्रहार
कविता

प्रहार

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भावना क्यों शून्य हुईं, शब्द कहां गुम हुए हे मनु मन भंवर तुम कहां खो गये खनक चूड़ियों की गुम हुईं इस लिप्त से संसार में हर जगह इज्जत लुटती है यहां बाज़ार में वजृ सा प्रहार होता शब्द झ झंझावातों का। वक्त की पुकार में गुम गये ख्याल सभी वक्त की धार में सुप्त हो गये ख्याल सभी यादों के झुरमुट से झांकती रवि किरण ख्यालों की चाल में दफन हुईं सहम, सहम। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर स...
नववर्ष
कविता

नववर्ष

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** नया वर्ष शुभ मंगल मय हो, चहु दिशा सब आनंद मय हो, विक्रम संवत का शुभारंभ आज से नवरात्रि का मंगल पर्व है, चेटीचंड का पर्व आज है, राज्य तिलक प्रभु राम का आज है, सब मिल आज नया वर्ष मनाए, पूरन पूरी सब मिलकर खाएं, सभी रोग अब कोसो दूर, मुख पर सदा मुस्कान बनी हो, सावन सी हरियाली आये, आमो पर छाये हे मोड, नई कोपले पेड़ पर आई, हरियाली चहुँ दिशा है छाई, वन मै नाचे देखो मोर, जीवन हराभरा हो जावे, आपस मै सब प्रेम लुटावे, मन मै कोई राग द्वेष ना, निर्बल सबका मन बन जाये, दुख सुख मै सब साथ रहे हम, ऐसा नववर्ष मंगलमय बन जाए, किरण विजय शुभ कर्म करे हम, जीवन सार्थक अपना हो जाये, नववर्ष मंगल बन जाये। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व...
ऐ वक्त तेरी अदाओं को देख …
कविता

ऐ वक्त तेरी अदाओं को देख …

शोभा रानी खूंटी, रांची (झारखंड) ******************** ऐ वक्त तेरी अदाओं को देख ... बिखर सा गया हूं मैं.... बहुत याद आती है मुझे.... खुद की.... मुनासिब होगा अगर तू मुझे पहले जैसा कर दे..!! बहुत याद आती है मुझे... वो बचपन के ख्याली पुलाव... वो लड़कपन के हजारों खिलौने... वो अल्हड़ आजादी... वो निश्चल हृदय... वो बेख्याल सा मन... वो सुकून भरी नींद... वो सुनहरी खुशनुमा सुबह... भरी दोपहरी में दोस्तों संग... कच्ची अंबिया चुराना... यारों संग बर्फ के गोलो को... मां से छुपा कर खाना.. वो बारिश के पानी मे... कागज की कश्ती चलाना... वो पूस की ठिठरन में .... अपनो संग आग सेकना... वो सावन के झूले मे... गूंजती हंसी और ठिठोलियां.... वो ख्वाबो का जहँ।... और मुट्ठी भर आसमा... वो बचपन के दिन.... वो इंद्रधनुषी सा सतरंगी समा.... बदलते वक्त के साथ .... खोता हुआ झिलमिलाता सा.... ...