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पद्य

आओ मिलजर मनाएं मकर सक्रांति
कविता

आओ मिलजर मनाएं मकर सक्रांति

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** पौष जाए माघ आए शीत की छटा बह आये मकर सक्रांति पर खुशियाँ घर घर आये।। घरपरिवार में तिल गुड़ चिड़वा मुड़ी लाये मकरसक्रांति पर्व की खुशियाँ तनमनमे छाए।। मकर सक्रांति पर्व है ऐसा दान धर्म स्नान भाये वस्त्र अन्न बर्तन कम्बल का दानपुण्य बढ़ जाए।। तीर्थों में आनाजाना, मकर सक्रंति पर्व बताये भारतवर्ष के हर कोने में, मकरसक्रांति मनाए।। नदियां कुंड तालाब पोखरे में ठंडे जल से नहाए मकर सक्रांति पर्व की परंपरा की रीत निभाए।। दही चिड़वा घेवर खानपान में आनंद खूब लाये एक संग में शीत की लहर में अलाव को जलाए।। आसमान की रौनक चारो तरफ यह पर्व महकाये रंग बिरंगी लाखों पतंगों को उड़ाने की मस्ती लाये।। मकर सक्रांति माघ महीने का है दान धर्म का पर्व परंपरा को परम्परागत निभाये, सन्देश सब फैलाये।। आओ हम सभी प्...
छेरछेरा : दान के परब
आंचलिक बोली, कविता

छेरछेरा : दान के परब

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता झटकुन सूपा म, धान देदे, झन कर तंय बेरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। ए ओ नोनी, फईका ल खोल दे। देबे के नहीं तेला बोल दे।। कोठी ल झाँक ले। मोर मन ल भाँप ले।। काठा-पैली भर हेर-हेरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। बड़े बिहनिया ले लईका मन आए। जाके घरों-घर सबला जगाए।। होगे हवन जइसे बगरे पैरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। एक खोंची, दू खोंची देदे मोला। सबे घर जाए के का मतलब मोला।। मन के बात बताहूँ, तोर मेरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। मुँह ल सुघ्घर तंय धोले। रात के बासी ल पोले।। मोला भीतरी कोती बला ले। तोर कोठी म मोला चघा ले।। जादा लालच नइहे, मोला थोरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। परिचय : अशोक कुमार यादव निव...
देश संविधान से चलता है
कविता

देश संविधान से चलता है

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** बताओ देवतुल्य अपना जहर कहां रखते हो, उड़ेल उड़ेल क्यों नहीं थकते हो, रह रह फिजां में विष घोल देते हो, माजरा समझे बिना कुछ भी बोल देते हो, अधिकार हनन बिना भी चिल्लाते हो, दूसरों का हक़ बेदर्दी से खाते हो, बचा खुचा खुरचन भी डालते हो खुरच, क्या डर नहीं लगता हो न जाये अपच, क्या जहां और देश आपके लिए बना है, हैवानियत कर क्यों सीना तना है, देखो अपना लेकर बैठे हो संपूर्ण आरक्षण, किस बात से आ रहा हीनता वाला लक्षण, कुंडली हर जगह है तो करो सबका रक्षण, कर्तव्य भूल कर रहे हो भक्षण पर भक्षण, हां आपकी पीड़ा इसलिए है कि व्यवस्थाई नियम खुद नहीं बनाये हो, अपने अनुसार व्यवस्था न होने पर बौखलाये हो, अच्छा बता दो औरों को कितना सम्मान देते हो, अस्पृश्यता की नजर रख इम्तिहान लेते हो, आपके भ्रामक नजरिये ...
कर्मठता का गीत
गीत

कर्मठता का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं। नहीं अनमनापन हम में है, नित हम गाते हैं।। चंद्रगुप्त की धरती है यह, वीर शिवा की आन है। राणाओं की शौर्य धरा यह, पोरस का सम्मान है। वतनपरस्ती तो गहना है, हृदय सजाते हैं। तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं।। शीश कटा, सर्वस्व गंवाकर, जिनने वतन बनाया। अपने हाथों से अपना ही, जिनने कफ़न सजाया।। भारत माता की महिमा की, बात सुनाते हैं। तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं।। नहीं अनमनापन उन में था, जिनने फर्ज़ निभाया। वतनपरस्ती का तो जज़्बा, जिनने भीतर पाया।। हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं। तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं।। सिसक रही थी माता जिस, तब जो आगे आए। राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह, बिस्मिल जो कहलाए।। ब्रिटिश हुक़ूमत से लोहा लेने, निज प्राण गँवाते हैं।...
मार पड़ी महँगाई की
गीत

मार पड़ी महँगाई की

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मार पड़ी महँगाई की है, नहीं सूझती बात। मिली आज की दौर की हमें, आँसू ही सौग़ात।। रोते बच्चे मिले बटर भी, कुछ रोटी के साथ। पल्लू से आँसू पोंछे माँ, पर मारे-दो हाथ।। छूट गया काम क्या करे अब, खाओ सूखा भात। रोज़ गालियाँ देता पति भी, आती उसे न लाज। कटे जीवनी कैसे उसकी, करे न कोई काज।। पीने दारू बेचें जेवर, रोती बस दिन-रात। घूरे के भी दिन आते हैं, उर रखती बस आस। काम मिलेगा कल फिर उसको, पूरा है विश्वास।। तगड़ा नेटवर्क उसका भी, देगी सबको मात। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्या...
वल्लरी
कविता

वल्लरी

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लिपटी हुई वृक्ष वल्लरी वृक्ष से झुककर गहन कूप के जल में अपना प्रतिबिम्ब देखकर कुछ लजाई हरित परणमे। कोमल कांति कदम्ब तले वल्लरी सब के मन को भाई पर्ण, पर्ण संग पुष्प किले हैं मंडराते भंवरे, पांखी। मदमाती सुगन्ध दिख, दिगंत में बसती मन्द पवन के झोंकों ने वल्लरी को स्पर्श किया भय नहीं थावल्लरी को क्यों, क्योकि उसे था वृक्ष, धरा का सम्बल प्यारा। झूम, झूमकर नाजती वल्लरी गाती स्वर में सरगम। उपवन में कोयल गाती संग नदियों कल, कल स्वर में गाती। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय...
शांति नववर्ष
कविता

शांति नववर्ष

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** नया साल नया पैगाम लाया नफ़रत के बगीचे में महोब्बत का गुलाब खिलाया। छोड़ चुके हैं जो हमें उनको भी हमारा मुस्कुराना याद आया। जलते हैं जो हमारे कार्य से उनको भी हमारा काबिल किरदार याद आया। हार चुके हैं जो जीवन से उनको भी अपना कोई जिंदादिल यार याद आया। थक चुके है जो निज के युद्ध से उनको भी शांति का पैगाम याद आया। नया साल विश्व शांति की अद्भुत सौगात लाया। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परि...
मुर्दों की बस्ती में
ग़ज़ल

मुर्दों की बस्ती में

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन मुर्दों की बस्ती में यहाॅं ज़िंदा कोई नहीं। आवाज़ हक़ की डर से उठता कोई नहीं।। हद पार हो गई है ज़ुल्मों सितम की अब। किस पर करें भरोसा की अपना कोई नहीं।। अपने भी अपने अब यहाॅं अपने रहे कहाॅं। नफ़रत की ऑंधी चल रही अच्छा कोई नहीं।। मरना है सबको पैदा यहाॅं पर हुआ है जो। ज़िंदा रहा जहाॅं में हमेशा कोई नहीं।। ऑंखों में पट्टी बाॅंध के बे-अक़्ल जीते हैं। ये चार दिन की ज़िंदगी समझा कोई नहीं।। किसका शिकार हो रहा किसका विकास है। सब दिख रहा है मुल्क में अंधा कोई नहीं।। बेख़ौफ़ है दरिंदे ये कैसा निज़ाम है। इस बे-लगाम भीड़ में इंसाॅं कोई नहीं।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी...
रफ्तार
कविता

रफ्तार

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां थे बहुत लोग उसके बनकर या कहें सब थे गिरफ्तार, रफ्तार का था शौकीन नाम था रफ्तार, जिस अंदाज में आता था, उसी अंदाज में जाता था, कुछ लोग उन्हें देखकर ताली बजाते थे, कुछ लोग उन्हें देखकर गाली सुनाते थे, उनका अलग ही धुन था, जल्दबाजी उनका अपना गुन था, उसी रफ्तार ने उसे बुला लिया, मौत ने एक दिन नींद भर सुला दिया, जिस रफ्तार से आया था, उसी रफ्तार से चला गया, एक जिंदगी तेजी के द्वारा छला गया, वो नादान था, दुनियादारी से अनजान था, तभी तो उनका जीवन जीने का तरीका रहा धांसू, ताउम्र रहेंगे परिजनों की आंखों में आंसू। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
पीड़ाओं के घट
गीत

पीड़ाओं के घट

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** पीड़ाओं के घट भरते सब, घोर विरोधाभास। संकट की पगडंडी चलते, वन गुलमोहर आज। बोधिवृक्ष नित काटे जाते, बस बबूल का राज।। डोर भावनाओं की काटे, गर्वित हो उपहास। आतिशबाजी है युद्धों की, होगी किसकी जीत। बारूदों के ढ़ेर लगे पर, कोयल गाती गीत।। मानवता का नाम नहीं है, गुदड़ी सोता दास। झूठों के बाज़ार लगे हैं, समय बड़ा बलवान। श्रमकण धूल मिला है अब तो, शहरी जीवन शान।। दर्पण मैला है शुचिता का, सच भेजा वनवास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्...
जीवन हो गतिमान … सरोठा
सरोठा

जीवन हो गतिमान … सरोठा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन हो गतिमान, यही कामना मैं करूँ। बढ़े सभी की शान, सुख को जियरा में भरूँ।। हर पल में आनंद, अच्छाई को यदि वरूँ। बुरे काम कर बंद, अपना सारा दुख हरूं।। मैं-मैं करना छोड़, हम के पथ पर हम चलें। अहंकार को तोड़, मृदु बन जाएँ, क्यों खलें।। कितना कटु है आज, तज दें यह कहना अभी। सबके दिल पर राज, कर सकते हैं अब सभी।। कितना प्यारा रूप, संतों का लगने लगा। लगे खिली हो धूप, हर गुण लगता है सगा।। जीवन मंगल गान, खुशियों का मेला लगा। कर लो अनुसंधान, मन होता नित शुभ पगा।। फैल रहा अँधियार, साधें हम आलोक अब। अवसादों को मार, बन जाएँ खुशहाल सब।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास) सम्प्रति : प्राध्यापक...
साँसें साँसत में
गीत

साँसें साँसत में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** चलें धार पर रहीं हमेशा, साँसें साँसत में। एक कुल्हाड़ी और दराती, मिली विरासत में।। रोज उज्ज्वला सिर पर ढोती, लकड़ी का गट्ठर, पथ पर भूखे देख भेड़िये, देह स्वेद से तर, भूख-प्यास लेकर बैठी है, देह हिरासत में।। कानी-खोटी सुनकर पाया, दाम इकाई में, नमक-मिर्च भी लाना मुश्किल, इस महँगाई में, है गरीब का सस्ता सब कुछ, यहाँ रियासत में।। पाँच बरस में एक बार ही, मंडी खुलती है, जिसमें अपने जीवन भर की, किस्मत तुलती है, वोट तलक अपनापन मिलता, हमें सियासत में।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित कर...
प्रयाग-कुम्भ
कविता

प्रयाग-कुम्भ

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** यह कुम्भ धर्म से संगम है साहित्य संस्कृति सर्जन का। उत्थान पतन चिन्तन मन्थन मन मर्दन मन संवर्धन का।।१।। आलिंगन का आलिंपन का आलम्बन का अवलम्बन का। तर्कों के खण्डन मण्डन का कचमुण्डन पिण्डन पुण्डन का।।२।। यह कुम्भ धर्म से .............।। अंजन मंजन मन रंजन का भय भंजन का दुख भंजन का। कन्दर कानन के आँगन से निकले सन्तानन पादन का।।३।। चतुरानन का पंचानन का सप्तानन और षडानन का। आवाहन का अवगाहन का आराधन का अवराधन का।।४।। यह कुम्भ धर्म से .............।। मोहन मारण उच्चाटन का भोजन भाजन भण्डारण का। चारण उच्चारण तारण का कुल कारण और निवारण का।।५।। गायन नर्तन संकीर्तन का पूजन अर्चन पदसेवन का। वन्दन अभिनन्दन चन्दन का फिर खुलकर आत्मनिवेदन का।।६।। यह कुम्भ धर्म से .............।। स्पर्शन ...
आत्मवंचना
कविता

आत्मवंचना

माधवी तारे लंदन ******************** पंचतत्व में विलीन मनमोहन मत सुनो जनता की वलगना आयु सागर में डुबकी लगा कर प्रशंसा के स्तुति मौतिक लाए ये जन बंधवा दिए इन्होंने स्तुति के पुल। दुनिया की है यह रीति पुरानी जीते जी तो करे मनमानी श्मशानभूमि पर करे वंदना स्तुतिसुमनों की उछाले रचना। विपक्ष जब खोले शब्द खजाना उम्र और पद का रखे न पैमाना संविधान की करे अवमानना जब सत्तांध का मद चढ़े सातवें आसमाना। तुष्टिकरण का चुनावी बाणा मुक्त हस्त से बांटे जन मेहनताना अर्थनीति के दम को तोड़ना देशभक्ति का पहन कर जामा। लाए उबार आप राष्ट्र कोष मौन की बहुत उड़ाई खिल्ली काम किए पर मिली न प्रशंसा जाने पर दौड़ी वाहवाही को दिल्ली। इसलिए कहते हैं कवि दुनिया की सबसे बड़ी सेवा खुद को संतुष्ट कर खुश रहना दे श्रद्धा सुमन जो दिल से उन्हें ही आप सच्चा मानना। परिचय :-  माधवी तारे वर्तमा...
रिश्ते में है अनमोल खुशी
कविता

रिश्ते में है अनमोल खुशी

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** रिश्ते में है रहता अटूट स्नेहप्रेम प्यार रिश्ते में विद्यमान चैन सांस, रिश्ते में सकुशलता, जीने की सफलता रिश्ते में बहती प्रेम बंधन की सरिता।। रिश्ते में खून का नहीं देखते रिश्ता, रिश्ते में अपनेपन अहसास का जुड़ा होता रिश्ता रिश्ते बिना समूचा जग सुना सुना। रिश्ते से बढ़ता एक सशक्त अपना परिवार।। रिश्ते में रहती खुशियां और चाहत बहार रिश्ते में धन दौलत का नहीं रहता मोल रिश्ते में दिलों के रिश्ते होते अनमोल देते मन को तौल रिश्ते में न रहे दरार, बढ़े हरदम प्यार।। रिश्ते में सदैव बसा रहे करुणा, प्रेम प्यार रिश्ते में रोज रहे आपसी आना जाना रिश्ते में दुःख सुख में संगी हो नहीं बनाए बहाना रिश्ते की दीवार में भेदभाव हरदम घटाना।। रिश्ते में रखना सीखो रखो एक थाली रिश्ते में एक संग खाने की लाएं हरियाली रिश्ते में ...
नया साल मुबारक हो
कविता

नया साल मुबारक हो

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** जो पहले था नया साल, अब अतीत बन गया। आने वाला नया साल, विश्वासी मीत बन गया।। केक काटो, पटाखे फोड़ो, मनाओं सभी जश्न। परिवर्तन कर पाओगे परिस्थिति, यही मेरा प्रश्न? दुःख, सुख में बदलेगा, मन को मिलेगी शांति। खुशी ढूँढ रही है दुनिया, यह सबकी है भ्रांति।। असफलताओं के कैदखाने में कैद हैं आदमी। निराशा के जाल में फँसे वेशभूषा बदले छद्मी।। अच्छाई का मुखौटा पहने रह रहे सभ्य समाज में। अति प्राचीन रीति-रिवाजों के रूढ़िवादी राज में।। तुम तो पहले जैसे थे, तुम आज भी वैसे ही हो। बदल ना पाए स्वभाव, शब्द जहर उगलते हो।। धर्म और जाति बंधन से परे मानवता हो मूल मंत्र। भाईचारे से गले मिलो, समानता जन-जन में तंत्र।। कर्म क्रांति की मशाल से नवजीवन सुधारक हो। शानदार सफलता मिले, नया साल मुबारक हो।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेल...
नया साल-नया संकल्प
कविता

नया साल-नया संकल्प

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** नये साल का आज नया सवेरा आया है। चारों तरफ हर्ष और उल्लास का माहौल छाया है। ******* हर 365 दिन बाद नया साल आता है। और हमारा समय यूं ही बीतता जाता है। ******* जब तक हम कोई उद्देश्य नहीं बनायेंगे। तब तक जिंदगी के पल यूं ही व्यर्थ में गंवायेंगे। ******* नए साल से हम नई आशाएं रखें। और नई सफलता का स्वाद चखें। ******* लीजिए कुछ नए संकल्प जीवन को प्रगतिशील बनाईये। कुछ अच्छे नये काम करकर जग में नाम कमाइये। ******* किसी भी परिस्थिति में न माने हार। डटे रहेंगे तो जीत में बदल जायेगी हार। ******* संकल्प के अनुसार ही अपना योजना बनाएं। कड़ी मेहनत कर अपनी इच्छित मंजिल को पाएं। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उ...
न्यू ईयर और…
कविता

न्यू ईयर और…

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सुबह-सुबह किसी ने उसे उठाया, हैप्पी न्यू ईयर की बधाई चिपकाया, उन्हीं शब्दों को उन्हें वापस लौटाया, फिर उसने एक गंभीर बात बताया, कि इसका तो काम ही है हर साल आना, जो हम गरीबों को नहीं दे सकता खाना, हमारा तो हर दिन एक जैसा होता है, हमें नहीं पता नया साल कैसा होता है, कभी-कभी तो यह दिन हमारी बेबसी को उतार डालता है, भरपेट वालों की अत्यधिक खुशी हमें भूखा मार डालता है, किसी दिन काम ही नहीं होगा तो वो दिन हमारे किस काम का, हो जाता दिन हमारी भुखमरी और पैसे वालों के दिनभर के जाम का, हम तो चाहते हैं न्यू ईयर मियां तुम चुपके से आओ, इस दिन को छुट्टी के बजाय भरपूर काम की ओर ले जाओ, काम होगा तो देश का विकास होगा, रूटीन बदलेगी नहीं पर भोजन पास होगा, जिम्मेदार गरीबी दूर करने का नारा लगाते...
इस नये साल में
कविता

इस नये साल में

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** विद्यार्थी बिना शिक्षा न हो भिखारी बिना भिक्षा न हो। कोई युवा बेरोजगार न हो पल-पल होते भ्रष्टाचार न हो। नारी पर कोई अत्याचार न हो जिससे वो असहाय लाचार न हो। मंहगाई की बिल्कुल मार न हो जिसका कोई जिम्मेदार न हो। बिजली बिल अतिभार न हो किसान बेचारा लचार न हो। कोई भी घर बिना टीन न हो संपेरा बिना बीन न हो। डाक्टर बिना आला न हो माली बिना माला न हो। घर बिना ताला न हो दामाद बिना साला न हो। मुर्गी बिना अंडा न हो टीचर बिना डंडा न हो। मछली बिना पानी न हो राजा बिना रानी न हो। भोजन बिना तेल न हो यात्री बिना रेल न‌‌ हो । आटा बिना चोकर न हो सर्कस बिना जोकर न हो। सब्जी बिना नमक न हो वर्तन बिना चमक न हो। टीवी बिना पिक्चर न हो कोहली बिना सिक्सर न हो। गाड़ी बिना तेल न हो टंकी बिना पेट्...
बदल दिया है साल
कविता

बदल दिया है साल

किशनू झा “तूफान” ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** अहंकार था वर्षों को वह, दिन से बहुत बड़े हैं। सोच नहीं सकते थे, पल पल के बल साल खड़े है। टूटा अहंकार टुकड़ों में, कर डाला बेहाल। पल-पल दिन महीनों ने मिलकर, बदल दिया है साल। बहुत लाड़ली बनी जनवरी, सबसे मिली बधाई। और फरवरी प्यार भरी थी, दिल से दिल मिलवायी। मार्च और अप्रैल तो निकली, होली के रंग डाल। पल पल दिन महीनों ने मिलकर, बदल दिया है साल। बहुत क्रोध में मई जून थी, गर्म हवा ले आयी। रिमझिम बारिश लेकर आई, सबसे मधुर जुलाई। खेतों खलिहानों में पानी भर, अगस्त किया बेहाल। पल पल दिन महीनों ने मिलकर, बदल दिया है साल। अम्बर स्वच्छ सितंबर करके, शीत हवा ले आया। अक्टूबर और नवंबर ने, दीवाली दीप जलाया। कटा दिसंबर इंतजार में, कब आये नया साल। पल पल दिन महीनों ने मिलकर, बदल दिया है साल। परिचय : किशनू झा "तूफ...
लो बीता है फिर एक साल
कविता

लो बीता है फिर एक साल

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** लो बीता है फिर एक साल, क्या खोया क्या ही पाया। हम तो गणित लगाना भूले, यूं ही किस्मत ले आया। अच्छी बुरी खबर सदा मीडिया ने सभी को दिया होगा। अपने हृदय स्वभाव मुताबिक शौक से ही लिया होगा। दंगल विवाद राजनीति का नया द्वार खुलता होगा। सनातन राह पे आने से, लाखों हृदय टूटा होगा। पांच सौ वर्ष बहस उपरांत, भव्य राम धाम सजाया। सम्मान मार्ग देख किसी ने, बहुतों को ही ललचाया। लो बीता है फिर एक साल, क्या खोया क्या ही पाया। हम तो गणित लगाना भूले, यूं ही किस्मत ले आया। विवाद तनातनी मारकाट किस्से नित्य ही पढ़ा सुना। धर्मजाति हत्या जिहादकथा, का मनमाना रूप चुना। विदेश नेतृत्व लाजवाब, देश लोग ने खूब धुना। कहीं उपलब्धि जानदार पर बहुतों ने किया अनसुना। चुनाव अखाड़े में पटकनी करतब रोचक दिखलाया। दिखता जहां योजना वर्चस्व, मसखरी ठिठोली छ...
नया काल है… नया साल है…
गीत

नया काल है… नया साल है…

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नया काल है, नया साल है, गीत नया हम गाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। बीत गया जो, उसे भुलाकर, हम गतिमान बनेंगे। जो भी बाधाएँ, मायूसी, उनको आज हनेंगे।। गहन तिमिर को पराभूत कर, नया दिनमान उगाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। काँटों से कैसा अब डरना, फूलों की चाहत छोड़ें। लिए हौसला अंतर्मन में, हम दरिया का रुख मोड़ें।। गिरियों को हम धूल चटाकर, आगत में हरषाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। जीवन बहुत सुहाना होगा, यही सुनिश्चित कर लें। बिखरी यहाँ ढेर सी खुशियाँ, उनसे दामन भर लें।। सूरज से हम नेह लगाकर, आलोकित हो जाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। अंधकार को मिटना होगा, दूर भग रहा है ग़म। नहीं व्यथा-बेचैनी होगी, मंगलमय है मौसम...
कवि “प्राण” की अर्थ सहित तीन डमरू घनाक्षरियाँ
धनाक्षरी

कवि “प्राण” की अर्थ सहित तीन डमरू घनाक्षरियाँ

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** डमरू का वर्ण विधान और वर्ण विज्ञान =============================== मेरे द्वारा रचित तीनों डमरू घनाक्षरियाँ हैं। इनमें पहली एवं तीसरी घनाक्षरी अकारान्त लघु वर्णों के शब्द समूहों में हैं व दूसरी घनाक्षरी अकारान्त‌, इकारान्त, उकारान्त लघु वर्णों के शब्द समूहों में है। पहली डमरू घनाक्षरी में शुद्ध हिन्दी की क्रियाओं का प्रयोग किया गया है व शेष दो में ब्रज, अवधी और बुन्देली की क्रियाएँ प्रयोग की गई हैं। ऐसा इसलिए किया है क्योंकि जब हम हिन्दी में रचना कर रहे हैं तो हमें शुद्ध हिन्दी की क्रियाओं का ही उपयोग करना चाहिए और यदि किसी अन्य भाषा में रचना कर रहे हैं तो सम्बन्धित भाषा की क्रिया का ही उपयोग होना चाहिए। मेरी जानकारी में हिन्दी में यह प्रथम रचना है। क्यों कि कुछ कवियों ने डमरू घनाक्षरी की रचना तो की है किन्त...
सत्य के पैर नहीं होते
कविता

सत्य के पैर नहीं होते

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** ईश्वर सत्य, सत्य ही ईश्वर ईश्वर का अर्थ जो न हो नश्वर सत्य अडिग खड़ा रहता है उसे छुपाया जा सकता हैं नहीं भगाया जा सकता है सत्य के पैर नहीं होते। मृत्यु हो या मानव पर्वत धरती या सागर ग्रह नक्षत्रों का मंडल इन्हें डिगाया नहिं जा सकता है सत्य के पैर नहीं होते। पाताल अटल है नीचे ऊपर छाया है अंबर दसों दिशाएं अचल खड़ी हैं एक दूसरे के सब संबल इन्हें चलाया नहिं जा सकता है सत्य के पैर नहीं होते। एवरेस्ट की चोटी, मानसरोवर गंगोत्री का नीर, जलधि की राशि देते जीवन, काल सनातन गगन से शीतलता देता शशि इन्हें हटाया नहिं जा सकता सत्य के पैर नहीं होते। आज नहीं तो कल वर्तमान न ही सही अतीत हो जाने पर सच आता है पल पल मिले चिह्न हैं, घर संभल। इन्हें दबाया न जा सकता है ईश्वर सत्य, सत्य ही ईश्वर सत्य के पैर नहीं होत...
ऐसा दुख मत देना
कविता

ऐसा दुख मत देना

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अस्थिर मन के मोल बिक रहा, मेरे मन का सोना। तुम्हें भुला करके जीना हो, ऐसा दुख मत देना।। निष्ठुर है कितना परिवर्तन, टूट रही आशाएँ! क्यों हो रहें निवेदन निष्फल, अब किसको समझाएँ! कैसे दिन अब दिखलाए हैं, 'नादाँ प्रिय का होना'! अस्थिर मन के मोल बिक रहा, मेरे मन का सोना।। जग की भीड़ बढ़ेगी जिस दिन, होंगी कितनी राहें। देश बदल देना मेरे सँग, छोड़ न देना बाँहें। कहा था प्रिय कि, 'खाली रखना.. मन का कोई कोना।' अस्थिर मन के मोल बिक रहा, मेरे मन का सोना।। हँसी अलग, बोली तेरी इक, वो तेरी मुस्कानें। कभी कहाँ आपस में सीखा, लड़ना किसी बहाने? अब तो लगता दुख है मिलना, अरु जीवन में रोना।। अस्थिर मन के मोल बिक रहा, मेरे मन का सोना।। फूल, बहारों और बादल सँग, स्वप्न तुम्हारे देखे। लेकिन अब हैं रूखे लगते,...